08/09/2025
हम अक्सर कहते हैं – “अगर #पेट ठीक है, तो पूरा शरीर ठीक है।” यह वाक्य केवल कहावत नहीं, बल्कि हमारे स्वास्थ्य का वास्तविक आधार है। पेट यानी Stomach सिर्फ़ भोजन को पचाने का स्थान नहीं है, बल्कि यह शरीर के हर हिस्से को ऊर्जा देने वाला मुख्य केंद्र है। आधुनिक विज्ञान और आयुर्वेद दोनों ही मानते हैं कि अच्छे स्वास्थ्य की शुरुआत पेट से ही होती है। आइए, जानते हैं पेट का परिचय, आयुर्वेदिक महत्व, कुछ अनजाने लेकिन वास्तविक तथ्य और देखभाल के आसान उपाय।
❓ पेट (Stomach) का परिचय
पेट हमारे पाचन तंत्र (Digestive System) का एक प्रमुख अंग है।
इसका काम भोजन को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ना और उसे रसायनिक रूप से पचाना है।
यहाँ पर Hydrochloric Acid और Digestive Enzymes निकलते हैं, जो भोजन को तरल और सुपाच्य बनाते हैं।
इसके बाद भोजन धीरे-धीरे आंतों में जाता है, जहाँ से शरीर को ऊर्जा और पोषण मिलता है।
🕉️ आयुर्वेदिक दृष्टिकोण
आयुर्वेद में पेट को “अग्नि का स्थान” कहा गया है।
जठराग्नि (Digestive Fire) – यह हमारे स्वास्थ्य का मूल है। अगर जठराग्नि तेज़ है तो शरीर निरोग रहता है, और अगर यह मंद है तो रोगों का घर बन जाता है।
अम (Toxins): जब भोजन सही से नहीं पचता, तो अधपचा अंश शरीर में अम (विष) का रूप ले लेता है और कई बीमारियों की जड़ बन जाता है।
दोषों का संबंध:
वात दोष – गैस, पेट फूलना, कब्ज़।
पित्त दोष – एसिडिटी, जलन, अल्सर।
कफ दोष – आलस्य, भारीपन, अपच।
👉 इसलिए पेट को स्वस्थ रखना दोष संतुलन के लिए सबसे ज़रूरी है।
💡 पेट से जुड़े कुछ अनजाने लेकिन वास्तविक तथ्य
पेट हर दिन लगभग 1.5–2 लीटर गैस्ट्रिक जूस बनाता है।
हमारे पेट की परत इतनी मज़बूत होती है कि वह अपने ही तेज़ अम्ल (Hydrochloric Acid) से गलती नहीं।
ज़्यादा तनाव लेने से पेट की अम्लीयता बढ़ती है, जिससे अल्सर और एसिडिटी होती है।
अगर पेट लगातार गड़बड़ रहे तो यह स्किन रोग, सिरदर्द और थकान तक का कारण बन सकता है।
आयुर्वेद मानता है कि 80% बीमारियों की जड़ पेट की गड़बड़ी है।
देर रात का भोजन, बार-बार स्नैकिंग और ठंडा-गरम एक साथ खाना पेट के लिए सबसे बड़ा शत्रु है।
🌱 पेट की देखभाल के आयुर्वेदिक उपाय
समय पर भोजन करें – “कालभोजन” आयुर्वेद का नियम है। नाश्ता, दोपहर और रात का खाना निश्चित समय पर लें।
अति भोजन से बचें – आधा पेट अन्न, चौथाई जल और चौथाई खाली स्थान गैस के लिए छोड़ना चाहिए।
भोजन चाव से खाएँ – अच्छे से चबाकर खाने से अग्नि प्रज्वलित होती है और भोजन आसानी से पचता है।
गर्म जल का सेवन – सुबह खाली पेट गुनगुना पानी पीना पाचन के लिए उत्तम है।
मसाले और औषधियाँ – हींग, सौंठ, जीरा, अजवाइन, हल्दी पाचन को मज़बूत करते हैं।
दूध-दही साथ न खाएँ – यह आयुर्वेद में विरुद्ध आहार माना गया है, जिससे पेट में विकार उत्पन्न होते हैं।
योग और प्राणायाम – पवनमुक्तासन, भुजंगासन और कपालभाति पेट को स्वस्थ और सक्रिय रखते हैं।
🏠 घरेलू नुस्ख़े
हींग-अजवाइन का पानी: गैस और अपच में लाभकारी।
त्रिफला चूर्ण: रात को गुनगुने पानी के साथ लेने से कब्ज़ दूर होता है और पेट साफ़ रहता है।
आंवला रस: अग्नि को प्रज्वलित करता है और पेट की जलन को शांत करता है।
जीरे का पानी: भोजन के बाद जीरे का काढ़ा पाचन को मज़बूत बनाता है।
तुलसी-पुदीना चाय: अपच और एसिडिटी के लिए उत्तम।
🚫 पेट की बीमारियों से बचाव
देर रात खाना न खाएँ।
अत्यधिक तैलीय, मसालेदार और जंक फूड से बचें।
भोजन के तुरंत बाद सोने की आदत छोड़ें।
मानसिक तनाव और चिंता को कम करें।
रोज़ाना कम से कम 30 मिनट पैदल चलें।
🌿 निष्कर्ष
पेट सिर्फ़ भोजन पचाने का अंग नहीं, बल्कि पूरे शरीर की ऊर्जा का केंद्र है। आयुर्वेद कहता है कि अगर जठराग्नि प्रबल है तो रोग पास भी नहीं फटकते। इसलिए सही भोजन, सही समय और सही आदतें अपनाकर पेट को स्वस्थ रखना ही लंबे और निरोग जीवन का सबसे पहला कदम है।
👉नागार्जुन आयुर्वेदा एवं क्षार सूत्र सेन्टर👈
✅बवासीर✅भगंदर
✅फिशर✅हाइड्रोसील
✅हर्निया✅कब्ज
✅पेट सम्बंधी रोग✅किडनी सम्बंधी रोग
✅यकृत सम्बंधी रोग एवं ✅समस्त गुदा रोग आदि का
आयुर्वेदिक चिकित्सा, क्षार सूत्र चिकित्सा एवं अग्निकर्म चिकित्सा द्वारा सम्पूर्ण इलाज व समाधान
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Dr. Anup Kumar | B.A.M.S., M.S.(Ayu.)
Proctologist (Laser and Kshar-sutra Surgeon )
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