Achary pt sanjay Mishra

Achary pt sanjay Mishra शिक्षा कैरियर भाग्योदय,विवाह,रोगनिर्णय,व्यापार,
बिन्दुओं पर विशेष सलाह के लिए गुरु जी से बात करें-
(1)

06/12/2025
 #अग्नि में डाला हुआ पदार्थ नष्ट नहीं होता, फैल जाता हैयह बात बुद्धिगम्य कर लेनी चाहिए कि अग्नि में डाला हुआ पदार्थ नष्ट...
28/11/2025

#अग्नि में डाला हुआ पदार्थ नष्ट नहीं होता,
फैल जाता है

यह बात बुद्धिगम्य कर लेनी चाहिए कि अग्नि में डाला हुआ पदार्थ नष्ट नहीं होता ।

अग्नि का काम स्थूल पदार्थ को सूक्ष्म रूप में परिवर्तित कर देना है ।

यज्ञ करते हुए अग्नि में घी डालते हैं, वह नष्ट नहीं होता, स्थूल घी, घी के सूक्ष्म परमाणुओं में बदल जाता है ,
जो घी एक कटोरी में था,
परमाणुओं के रूप में वह सारे वातावरण में फैल जाता है ।
सामग्री गुग्गल, जायफल, जावित्री, मुनक्का आदि जो कुछ डाला गया था,
वह परमाणुओं में टूटकर सारे वायुमण्डल में व्याप्त हो जाती है ।
किसी बात का पता चलता है, किसी का नहीं ।
उदाहरण के लिए स्थूल (साबुत) मिर्च को आप जेब में डाल कर घुमते रहें,
किसी को कुछ पता नहीं चलेगा,
उसी को हमाम दस्ते में कूटें तो उसकी धमक से छीकें आने लगेंगी,
उसी को आग में डाल दें तो सारे घर के लोग दूर-दूर बैठे हुए भी परेशान हो जाएँगे ।
क्यों परेशान हो जाएँगे ?
क्योंकि आग का काम स्थूल वस्तु को तोड कर सूक्ष्म कर देना है और वस्तु सूक्ष्म हो कर परिमित स्थान में कैद न रह कर दूर-दूर फैल जाती है और असर करती है।

मनु महाराज ने ठीक कहा है आग में डालने से हवि सूक्ष्म हो कर सूर्य तक फैल जाती है

"अग्नौ हुतं हविः सम्यक् आदित्यम् उपतिष्ठति ।"

👋👋रुकिए कृपया एक नजर इधर भी...!!!इन्हें आवारा समझ कर दुत्कारिये नहीं..इनके दर्द को भी समझिये..ये देर रात को रोते हुए सुन...
27/11/2025

👋👋रुकिए कृपया एक नजर इधर भी...!!!
इन्हें आवारा समझ कर दुत्कारिये नहीं..इनके दर्द को भी समझिये..ये देर रात को रोते हुए सुनाई दे तो..सहमे या डरे नही..इनके दर्द को समझिये..ये दर्द उस भूख का भी हो सकता है जो पेट में कुछ न होने के कारण उठा हो । मै प्रत्यक्ष गवाह हूँ इनके दर्द का..इन दिनों स्वच्छ्ता अभियान के चलते न सड़कों और न गलियों में कोई कुछ फेंक रहा है । व्यवस्था में लगी कचरे ले जाने वाली गाड़ियों में कुछ भोजन इन्ही मूक पशुओं का भी होता है जो अब इन्हें मिलता नहीं है । इनका कोई मालिक नही है । अभियान अच्छा है उसमें सहभागिता निभाते हुए शहर को साफ़ रखना हमारी जिम्मेदारी है लेकिन उसके अलावा हमारा फ़र्ज़ और मानवीयता इन मूक पशुओं के दर्द को भी समझने की है । आप बस इतना कीजिये आपके घर, गली, मोहल्ले, कॉलोनी में कही ऐसे आवारा श्वान दयनित हालात में नज़र आएं तो उन्हें कुछ खाने को जरूर दे दें । आग्रह है स्वीकारना या न स्वीकारना आपके विवेक पर निर्भर करता है ।...!!!

जय श्री राम

⚜️गीता जी के 18 अध्यायो का संक्षेप - हिंदी सारांश"""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""भग...
25/11/2025

⚜️गीता जी के 18 अध्यायो का संक्षेप - हिंदी सारांश
"""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत के युद्ध में अर्जुन को गीता का उपदेश दिया और इसी उपदेश को सुनकर अर्जुन को ज्ञान की प्राप्ति हुई। गीता का उपदेश मात्र अर्जुन के लिए नहीं था बल्कि ये समस्त जगत के लिए था, अगर कोई व्यक्ति गीता में दिए गए उपदेश को अपने जीवन में अपनाता है तो वह कभी किसी से परास्त नहीं हो सकता है। गीता माहात्म्य में उपनिषदों को गाय और गीता को उसका दूध कहा गया है। इसका अर्थ है कि उपनिषदों की जो अध्यात्म विद्या है , उसको गीता सर्वांश में स्वीकार करती है। गीता के 18 अध्याय में क्या संदेश छिपा हुआ है।

👉पहला अध्याय
अर्जुन ने युद्ध भूमि में भगवान श्री कृष्ण से कहा कि मुझे तो केवल अशुभ लक्षण ही दिखाई दे रहे हैं, युद्ध में स्वजनों को मारने में मुझे कोई कल्याण दिखाई नही देता है। मैं न तो विजय चाहता हूं, न ही राज्य और सुखों की इच्छा करता हूं, हमें ऐसे राज्य, सुख अथवा इस जीवन से भी क्या लाभ है। जिनके साथ हमें राज्य आदि सुखों को भोगने की इच्छा है, जब वह ही अपने जीवन के सभी सुखों को त्याग करके इस युद्ध भूमि में खड़े हैं। मैं इन सभी को मारना नहीं चाहता हूं, भले ही यह सभी मुझे ही मार डालें लेकिन अपने ही कुटुम्बियों को मारकर हम कैसे सुखी हो सकते हैं। हम लोग बुद्धिमान होकर भी महान पाप करने को तैयार हो गए हैं, जो राज्य और सुख के लोभ से अपने प्रियजनों को मारने के लिए आतुर हो गए हैं। इस प्रकार शोक से संतप्त होकर अर्जुन युद्ध-भूमि में धनुष को त्यागकर रथ पर बैठ गए तब भगवान श्री कृष्ण ने अपने कर्तव्य को भूल बैठे अर्जुन को उनके कर्तव्य और कर्म के बारे में बताया। भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को जीवन के सच के परिचित कराया। कृष्ण ने अर्जुन की स्थिति को भांप लिया भगवान कृष्ण समझ गए की अर्जुन का शरीर ठीक है लेकिन युद्ध आरंभ होने से पहले ही उसका मनोबल टूट चुका है। बिना मन के यह शरीर खड़ा नहीं रह सकता। अत: भगवान कृष्ण ने एक गुरु का कर्तव्य निभाते हुए तर्क, बुद्धि, ज्ञान, कर्म की चर्चा, विश्व के स्वभाव, उसमें जीवन की स्थिति और उस सर्वोपरि परम सत्तावान ब्रह्म के साक्षात दर्शन से अर्जुन के मन का उद्धार किया।

👉दूसरा अध्याय
दूसरे अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने बताया कि जीना और मरना, जन्म लेना और बढ़ना, विषयों का आना और जाना। सुख और दुख का अनुभव, ये तो संसार में होते ही हैं। काल की चक्रगति इन सब स्थितियों को लाती है और ले जाती है। जीवन के इस स्वभाव को जान लेने पर फिर शोक नहीं होता। काम, क्रोध, भय, राग, द्वेष से मन का सौम्यभाव बिगड़ जाता है और इंद्रियां वश में नहीं रहती हैं ।इंद्रियजय ही सबसे बड़ी आत्मजय है। बाहर से कोई विषयों को छोड़ भी दे तो भी भीतर का मन नहीं मानता। विषयों का स्वाद जब मन से जाता है, तभी मन प्रफुल्लित, शांत और सुखी होता है। समुद्र में नदियां आकर मिलती हैं पर वह अपनी मर्यादा नहीं छोड़ता। ऐसे ही संसार में रहते हुए, उसके व्यवहारों को स्वीकारते हुए, अनेक कामनाओं का प्रवेश मन में होता रहता है। किंतु उनसे जिसका मन अपनी मर्यादा नहीं खोता उसे ही शांति मिलती हैं। इसे प्राचीन अध्यात्म परिभाषा में गीता में ब्राह्मीस्थिति कहा है।

👉तीसरा अध्याय
तीसरे अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने बताया कि कोई व्यक्ति कर्म छोड़ ही नहीं सकता। कृष्ण ने अपना दृष्टांत देकर कहा कि मैं नारायण का रूप हूं, मेरे लिए कुछ कर्म शेष नहीं है। फिर भी मैं तंद्रारहित होकर कर्म करता हूं और अन्य लोग मेरे मार्ग पर चलते हैं। अंतर इतना ही है कि जो मूर्ख हैं वे लिप्त होकर कर्म करते हैं पर ज्ञानी असंग भाव से कर्म करता हैं। गीता में यहीं एक साभिप्राय शब्द बुद्धिभेद है। अर्थात् जो साधारण समझ के लोग कर्म में लगे हैं उन्हें उस मार्ग से उखाड़ना उचित नहीं, क्योंकि वे ज्ञानवादी बन नहीं सकते और यदि उनका कर्म भी छूट गया तो वे दोनों ओर से भटक जाएँगे। प्रकृति व्यक्ति को कर्म करने के लिए बाध्य करती है। जो व्यक्ति कर्म से बचना चाहता है वह ऊपर से तो कर्म छोड़ देता है पर मन ही मन उसमे डूबा रहता है।

👉चौथा अध्याय
चौथे अध्याय में बताया गया है कि ज्ञान प्राप्त करके कर्म करते हुए भी कर्मसंन्यास का फल किस उपाय से प्राप्त किया जा सकता है। यह गीता का वह प्रसिद्ध आश्वासन है कि जब जब धर्म की ग्लानि होती है तब तब मनुष्यों के बीच भगवान का अवतार होता है, अर्थात् भगवान की शक्ति विशेष रूप से मूर्त होती है। यहीं पर एक वाक्य विशेष ध्यान देने योग्य है- क्षिप्रं हि मानुषे लोके सिद्धिर्भवति कर्मजा। 'कर्म से सिद्धि'-इससे बड़ा प्रभावशाली सूत्र गीतादर्शन में नहीं है। किंतु गीतातत्व इस सूत्र में इतना सुधार और करता है कि वह कर्म असंग भाव से अर्थात् फलाशक्ति से बचकर करना चाहिए।

👉पाँचवा अध्याय
पाँचवे अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि कर्म के साथ जो मन का संबंध है, उसके संस्कार पर या उसे विशुद्ध करने पर विशेष ध्यान दिलाया गया है। किसी एक मार्ग पर ठीक प्रकार से चले तो समान फल प्राप्त होता है। जीवन के जितने कर्म हैं, सबको समर्पण कर देने से व्यक्ति एकदम शांति के ध्रुव बिंदु पर पहुँच जाता है। किसी एक मार्ग पर ठीक प्रकार से चले तो समान फल प्राप्त होता है। जीवन के जितने कर्म हैं, सबको समर्पण कर देने से व्यक्ति एकदम शांति के ध्रुव बिंदु पर पहुँच जाता है और जल में खिले कमल के समान कर्म रूपी जल से लिप्त नहीं होता।

👉छठा अध्याय
भगवान श्री कृष्ण ने छठे अध्याय में कहा कि जितने विषय हैं उन सबसे इंद्रियों का संयम ही कर्म और ज्ञान का निचोड़ है। सुख में और दुख में मन की समान स्थिति, इसे ही योग कहा जाता है। जब मनुष्य सभी सांसारिक इच्छाओं का त्याग करके बिना फल की इच्छा के कोई कार्य करता है तो उस समय वह मनुष्य योग मे स्थित कहलाता है। जो मनुष्य मन को वश में कर लेता है, उसका मन ही उसका सबसे अच्छा मित्र बन जाता है, लेकिन जो मनुष्य मन को वश में नहीं कर पाता है, उसके लिए वह मन ही उसका सबसे बड़ा शत्रु बन जाता है। जिसने अपने मन को वश में कर लिया उसको परमात्मा की प्राप्ति होती है और जिस मनुष्य को ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है उसके लिए सुख-दुःख, सर्दी-गर्मी और मान-अपमान सब एक समान हो जाते हैं। ऐसा मनुष्य स्थिर चित्त और इन्द्रियों को वश में करके ज्ञान द्वारा परमात्मा को प्राप्त करके हमेशा सन्तुष्ट रहता है।

👉सातवां अध्याय
सातवें अध्याय में श्री कृष्ण ने कहा कि सृष्टि के नानात्व का ज्ञान विज्ञान है और नानात्व से एकत्व की ओर प्रगति ज्ञान है। ये दोनों दृष्टियाँ मानव के लिए उचित हैं। इस अध्याय में भगवान के अनेक रूपों का उल्लेख किया गया है जिनका और विस्तार विभूतियोग नामक दसवें अध्याय में आता है। यहीं विशेष भगवती दृष्टि का भी उल्लेख है जिसका सूत्र-वासुदेव: सर्वमिति, सब वसु या शरीरों में एक ही देवतत्व है, उसी की संज्ञा विष्णु है। किंतु लोक में अपनी अपनी रु चि के अनुसार अनेक नामों और रूपों में उसी एक देवतत्व की उपासना की जाती है। वे सब ठीक हैं। किंतु अच्छा यही है कि बुद्धिमान मनुष्य उस ब्रह्मतत्व को पहचाने जो अध्यात्म विद्या का सर्वोच्च शिखर है।

👉आठवां अध्याय
आठवें अध्याय में श्री कृष्ण ने बताया कि जीव और शरीर की संयुक्त रचना का ही नाम अध्यात्म है। देह के भीतर जीव, ईश्वर तथा भूत ये तीन शक्तियाँ मिलकर जिस प्रकार कार्य करती हैं उसे अधियज्ञ कहते हैं। उपनिषदों में अक्षर विद्या का विस्तार हुआ और गीता में उस अक्षरविद्या का सार कह दिया गया है-अक्षर ब्रह्म परमं, अर्थात् परब्रह्म की संज्ञा अक्षर है। मनुष्य, अर्थात् जीव और शरीर की संयुक्त रचना का ही नाम अध्यात्म है। जीवसंयुक्त भौतिक देह की संज्ञा क्षर है और केवल शक्तितत्व की संज्ञा आधिदैवक है। देह के भीतर जीव, ईश्वर तथा भूत ये तीन शक्तियाँ मिलकर जिस प्रकार कार्य करती हैं उसे अधियज्ञ कहते हैं।

👉नवां अध्याय
नवें अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि वेद का समस्त कर्मकांड यज्ञ, अमृत, मृत्यु, संत-असंत और जितने भी देवी-देवता हैं सबका पर्यवसान ब्रह्म में है। इस क्षेत्र में ब्रह्मतत्व का निरूपण ही प्रधान है, उसी से व्यक्त जगत का बारंबार निर्माण होता है। वेद का समस्त कर्मकांड यज्ञ, अमृत, और मृत्यु, संत और असंत, और जितने भी देवी देवता है, सबका पर्यवसान ब्रह्म में है। लोक में जो अनेक प्रकार की देवपूजा प्रचलित है, वह भी अपने अपने स्थान में ठीक है, समन्वय की यह दृष्टि भागवत आचार्यों को मान्य थी, वस्तुत: यह उनकी बड़ी शक्ति थी।

👉दसवां अध्याय
दसवें अध्याय का सार यह है कि लोक में जितने देवता हैं, सब एक ही भगवान की विभूतियाँ हैं, मनुष्य के समस्त गुण और अवगुण भगवान की शक्ति के ही रूप हैं। इसका सार यह है कि लोक में जितने देवता हैं, सब एक ही भगवान, की विभूतियाँ हैं, मनुष्य के समस्त गुण और अवगुण भगवान की शक्ति के ही रूप हैं। बुद्धि से इन देवताओं की व्याख्या चाहे न हो सके किंतु लोक में तो वह हैं ही। कोई पीपल को पूज रहा है। कोई पहाड़ को कोई नदी या समुद्र को, कोई उनमें रहनेवाले मछली, कछुओं को। यों कितने देवता हैं, इसका कोई अंत नहीं। विश्व के इतिहास में देवताओं की यह भरमार सर्वत्र पाई जाती है। भागवतों ने इनकी सत्ता को स्वीकारते हुए सबको विष्णु का रूप मानकर समन्वय की एक नई दृष्टि प्रदान की। इसी का नाम विभूतियोग है। जो सत्व जीव बलयुक्त अथवा चमत्कारयुक्त है, वह सब भगवान का रूप है। इतना मान लेने से चित्त निर्विरोध स्थिति में पहुँच जाता है।

👉11वां अध्याय
11वें अध्याय में अर्जुन ने भगवान का विश्वरूप देखा। विराट रूप का अर्थ है मानवीय धरातल और परिधि के ऊपर जो अनंत विश्व का प्राणवंत रचनाविधान है, उसका साक्षात दर्शन। विष्णु का जो चतुर्भुज रूप है, वह मानवीय धरातल पर सौम्यरूप है। विष्णु का जो चतुर्भुज रूप है, वह मानवीय धरातल पर सौम्यरूप है। जब अर्जुन ने भगवान का विराट रूप देखा तो उसके मस्तक का विस्फोटन होने लगा। 'दिशो न जाने न लभे च शर्म' ये ही घबराहट के वाक्य उनके मुख से निकले और उसने प्रार्थना की कि मानव के लिए जो स्वाभाविक स्थिति ईश्वर ने रखी है, वही पर्याप्त है।

👉बारहवां अध्याय
बारहवें अध्याय में श्री कृष्ण ने बताया कि जो भगवान के ध्यान में लग जाते हैं वे भगवन्निष्ठ होते हैं अर्थात भक्ति से भक्ति पैदा होती है। नौ प्रकार की साधना भक्ति हैं तथा इनके आगे प्रेमलक्षणा भक्ति साध्य भक्ति है जो कर्मयोग और ज्ञानयोग सबकी साध्य है। भगवान कृष्ण ने कहा जो मनुष्य अपने मन को स्थिर करके निरंतर मेरे सगुण रूप की पूजा में लगा रहता है, वह मेरे द्वारा योगियों में अधिक पूर्ण सिद्ध योगी माने जाते हैं। वहीं जो मनुष्य परमात्मा के सर्वव्यापी, अकल्पनीय, निराकार, अविनाशी, अचल स्थित स्वरूप की उपासना करता है और अपनी सभी इन्द्रियों को वश में करके, सभी परिस्थितियों में समान भाव से रहते हुए सभी प्राणीयों के हित में लगा रहता है वह भी मुझे प्राप्त करता है। भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा की तू अपने मन को मुझमें ही स्थिर कर और मुझमें ही अपनी बुद्धि को लगा, इस प्रकार तू निश्चित रूप से मुझमें ही सदैव निवास करेगा। यदि तू ऐसा नही कर सकता है, तो भक्ति-योग के अभ्यास द्वारा मुझे प्राप्त करने की इच्छा उत्पन्न कर। अगर तू ये भी नही कर सकता है, तो केवल मेरे लिये कर्म करने का प्रयत्न कर, इस प्रकार तू मेरे लिये कर्मों को करता हुआ मेरी प्राप्ति रूपी परम-सिद्धि को प्राप्त करेगा।

👉तेरहवां अध्याय
तेरहवें अध्याय में एक सीधा विषय क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ का विचार है। यह शरीर क्षेत्र है, उसका जानने वाला जीवात्मा क्षेत्रज्ञ है। गुणों की साम्यावस्था का नाम प्रधान या प्रकृति है। गुणों के वैषम्य से ही वैकृत सृष्टि का जन्म होता है। अकेला सत्व शांत स्वभाव से निर्मल प्रकाश की तरह स्थिर रहता है और अकेला तम भी जड़वत निश्चेष्ट रहता है। किंतु दोनों के बीच में छाया हुआ रजोगुण उन्हें चेष्टा के धरातल पर खींच लाता है। गति तत्व का नाम ही रजस है। भगवान् कृष्ण ने कहा कि मेरे अतिरिक्त अन्य किसी वस्तु को प्राप्त न करने का भाव, बिना विचलित हुए मेरी भक्ति में स्थिर रहने का भाव, शुद्ध एकान्त स्थान में रहने का भाव, निरन्तर आत्म-स्वरूप में स्थित रहने का भाव और तत्व-स्वरूप परमात्मा से साक्षात्कार करने का भाव यह सब तो मेरे द्वारा ज्ञान कहा गया है और इनके अतिरिक्त जो भी है वह अज्ञान है।

👉चौदहवां अध्याय
चौदहवें अध्याय में समस्त वैदिक, दार्शनिक और पौराणिक तत्वचिंतन का निचोड़ है-सत्व, रज, तम नामक तीन गुण-त्रिको की अनेक व्याख्याएं हैं। जो मूल या केंद्र है, जिसे ऊर्ध्व कहते हैं, वह ब्रह्म ही है एक ओर वह परम तेज, जो विश्वरूपी अश्वत्थ को जन्म देता है, सूर्य और चंद्र के रूप में प्रकट है, दूसरी ओर वही एक एक चैतन्य केंद्र में या प्राणि शरीर में आया हुआ है। जैसा गीता में स्पष्ट कहा है-अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रित: । वैश्वानर या प्राणमयी चेतना से बढ़कर और दूसरा रहस्य नहीं है। नर या पुरुष तीन हैं-क्षर, अक्षर और अव्यय। पंचभूतों का नाम क्षर है, प्राण का नाम अक्षर है और मनस्तत्व या चेतना की संज्ञा अव्यय है। इन्हीं तीन नरों की एकत्र स्थिति से मानवी चेतना का जन्म होता है उसे ही ऋषियों ने वैश्वानर अग्नि कहा है।

👉पंद्रहवां अध्याय
पंद्रहवें अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने विश्व के अश्वत्थ रूप का वर्णन किया है। यह अश्वत्थ रूपी संसार महान विस्तार वाला है। वह ब्रह्म ही है एक ओर वह परम तेज, जो विश्वरूपी अश्वत्थ को जन्म देता है, सूर्य और चंद्र के रूप में प्रकट है। यह सृष्टि के द्विविरुद्ध रूप की कल्पना है, एक अच्छा और दूसरा बुरा। एक प्रकाश में, दूसरा अंधकार में। एक अमृत, दूसरा मर्त्य। एक सत्य, दूसरा अनृत। नर या पुरुष तीन हैं-क्षर, अक्षर और अव्यय। पंचभूतों का नाम क्षर है, प्राण का नाम अक्षर है और मनस्तत्व या चेतना की संज्ञा अव्यय है। इन्हीं तीन नरों की एकत्र स्थिति से मानवी चेतना का जन्म होता है उसे ही ऋषियों ने वैश्वानर अग्नि कहा है।

👉सोलहवां अध्याय
सोलहवें अध्याय में देवासुर संपत्ति का विभाग बताया गया है। आरंभ से ही ऋग्देव में सृष्टि की कल्पना देवी और आसुरी शक्तियों के रूप में की गई है। यह सृष्टि के द्विविरुद्ध रूप की कल्पना है, एक अच्छा और दूसरा बुरा। एक प्रकाश में, दूसरा अंधकार में। एक अमृत, दूसरा मर्त्य। एक सत्य, दूसरा अनृत। भगवान कृष्ण ने कहा की अनेक प्रकार की चिन्ताओं से भ्रमित होकर विषय-भोगों में आसक्त आसुरी स्वभाव वाले मनुष्य नरक में जाते हैं। आसुरी स्वभाव वाले व्यक्ति स्वयं को ही श्रेष्ठ मानते हैं और वे बहुत ही घमंडी होते हैं। ऐसे मनुष्य धन और झूठी मान-प्रतिष्ठा के मद में लीन होकर केवल नाम-मात्र के लिये बिना किसी शास्त्र-विधि के घमण्ड के साथ यज्ञ करते हैं। आसुरी स्वभाव वाले ईष्यालु, क्रूरकर्मी और मनुष्यों में अधम होते हैं, ऐसे अधम मनुष्यों को मैं संसार रूपी सागर में निरन्तर आसुरी योनियों में ही गिराता रहता हूं ।

👉सत्रहवां अध्याय
सत्रहवें अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने बताया कि सत, रज और तम जिसमें इन तीन गुणों का प्रादुर्भाव होता है, उसकी श्रद्धा या जीवन की निष्ठा वैसी ही बन जाती है। इसका संबंध सत, रज और तम, इन तीन गुणों से ही है, अर्थात् जिसमें जिस गुण का प्रादुर्भाव होता है, उसकी श्रद्धा या जीवन की निष्ठा वैसी ही बन जाती है। यज्ञ, तप, दान, कर्म ये सब तीन प्रकार की श्रद्धा से संचालित होते हैं। यहाँ तक कि आहार भी तीन प्रकार का है। उनके भेद और लक्षण गीता ने यहाँ बताए हैं। जिस प्रकार यज्ञ से, तप से और दान से जो स्थिति प्राप्त होती है, उसे भी "सत्‌" ही कहा जाता है और उस परमात्मा की प्रसन्नता लिए जो भी कर्म किया जाता है वह भी निश्चित रूप से "सत्‌" ही कहा जाता है। बिना श्रद्धा के यज्ञ, दान और तप के रूप में जो कुछ भी सम्पन्न किया जाता है, वह सभी "असत्‌" कहा जाता है, इसलिए वह न तो इस जन्म में लाभदायक होता है और न ही अगले जन्म में लाभदायक होता है।

👉अठारवां अध्याय
अठारवें अध्याय में गीता के समस्त उपदेशों का सार एवं उपसंहार है। जो बुद्धि धर्म-अधर्म, बंधन-मोक्ष, वृत्ति-निवृत्ति को ठीक से पहचानती है, वही सात्विकी बुद्धि है और वही मानव की सच्ची उपलब्धि है। पृथ्वी के मानवों में और स्वर्ग के देवताओं में कोई भी ऐसा नहीं जो प्रकृति के चलाए हुए इन तीन गुणों से बचा हो। मनुष्य को बहुत देख भालकर चलना आवश्यक है जिससे वह अपनी बुद्धि और वृत्ति को बुराई से बचा सके और क्या कार्य है, क्या अकार्य है, इसको पहचान सके। धर्म और अधर्म को, बंध और मोक्ष को, वृत्ति और निवृत्ति को जो बुद्धि ठीक से पहचनाती है, वही सात्विकी बुद्धि है और वही मानव की सच्ची उपलब्धि है। जो मनुष्य श्रद्धा पूर्वक इस गीताशास्त्र का पाठ और श्रवण करते हैं वे सभी पापों से मुक्त होकर श्रेष्ठ लोक को प्राप्त होते हैं।

🕉🆑🕉ॐ नमो भगवते वासुदेवाय🕉🆑🕉
🕉 नमो भगवते तुभ्यं वासुदेवाय धीमहि 🕉
🕉 प्रधुम्नायनिरुध्धाय नमः संकर्षणाय च 🕉

ग्रहों को मजबूत बनाती हैं ये दैनिक आदतेंप्रतिदिन की 12 आदतें जो आपका भाग्य बदलती हैं ● अतिथि को पानी पिलाएं - ऐसा करने स...
21/11/2025

ग्रहों को मजबूत बनाती हैं ये दैनिक आदतें

प्रतिदिन की 12 आदतें जो आपका भाग्य बदलती हैं

● अतिथि को पानी पिलाएं - ऐसा करने से राहु शुभ फल देता है और जीवन में सहयोगी बढ़ते हैं।

● मंदिर की सफाई करें - मंदिर या पूजा स्थान साफ रखने से बृहस्पति के दोष दूर होते हैं और ज्ञान व समृद्धि बढ़ती है।

● रसोईघर साफ रखें - किचन की सफाई मंगल ग्रह को शांत करती है और घर में सौहार्द व स्वास्थ्य बना रहता है।

● माता का सम्मान करें - मां की सेवा करने से चंद्रमा शुभ फल देता है, मन स्थिर रहता है और तनाव कम होता है।

● पेड़-पौधों की देखभाल करें - ग्रीनरी से प्यार बुध ग्रह को मजबूत करता है, जिससे बुद्धि और संवाद क्षमता बढ़ती है।

● श्रृंगार और इत्र लगाएं - हल्का-फुल्का श्रृंगार या सुगंध शुक्र ग्रह को प्रभावी बनाता है और आकर्षण व सौभाग्य बढ़ाता है।

● पैर घसीटकर न चलें - ऐसा करने से राहु और शनि कमजोर होते हैं, इसलिए हमेशा सलीके से चलें।

● नौकर या कर्मचारियों का सम्मान करें - इससे शनि ग्रह के दोष दूर होते हैं और जीवन में स्थिरता आती है।

● फटे या गंदे कपड़े न पहनें - ऐसा करने से शुक्र दोष पैदा होता है, हमेशा साफ-सुथरे कपड़े पहनें।

● दाम्पत्य में प्रेम बनाए रखें - पति-पत्नी के मधुर संबंध गुरु और शुक्र दोनों को मजबूत करते हैं।

● शनिवार को जरूरतमंद को भोजन दें - यह आदत शनि को शांत करती है और बीमारियों से राहत मिलती है।

● चीखकर या कठोर आवाज में न बोलें - ऐसा करने से शनि दोष लगता है, इसलिए बातचीत में मधुरता रखें।

 #शवयात्रा और  #अर्थी भी करती है इच्छाएं पूरी, दिखने पर करें ये काम● हम किसी अंजाने व्यक्ति की अंतिम यात्रा में शामिल नह...
20/11/2025

#शवयात्रा और #अर्थी भी करती है इच्छाएं पूरी, दिखने पर करें ये काम

● हम किसी अंजाने व्यक्ति की अंतिम यात्रा में शामिल नहीं हो सकते हैं तो ऐसे में जब भी शवयात्रा दिखे तो हमें रुक जाना चाहिए और पहले शवयात्रा को निकलने देना चाहिए और जब भी कोई शव यात्रा अथवा अर्थी दिखे तो उसे दोनों हाथ जोड़कर, सिर झुका कर प्रणाम करें और मुंह से शिव-शिव का जाप करें।

● अगर कोई व्यक्ति किसी की अंतिम यात्रा में शामिल होता है, शव को कंधा देता है तो उसे पुण्य की प्राप्ति होती है, इस पुण्य के असर से पुराने पाप नष्ट होते हैं, इसी मान्यता के कारण अधिकतर लोग शवयात्रा में शामिल होकर शव को कंधा जरूर देते हैं, इस संदर्भ में शास्त्र कहते हैं, जो मृतात्मा संसार छोड़ कर जा रही होती है वह अभिवादन करने वाले व्यक्ति के तन-मन से जुड़े सभी संताप हर कर अपने साथ ले जाती है।

● जब किसी की यात्रा दिखती है तो राम नाम का जाप करना चाहिए, श्रीरामचरित मानस के मुताबिक राम नाम के जाप से शिवजी अति प्रसन्न होते हैं, शिवपुराण में बताया गया है कि मृत्यु के बाद आत्मा परमात्मा यानी शिवजी में ही विलीन हो जाती है, इस कारण शवयात्रा दिखे तो राम नाम का जाप करना चाहिए, इससे शिवजी की कृपा मिलती है और आयु लंबी हो जाती है, मनुस्मृति में कहा गया है, किसी भी व्यक्ति के शव को ले जाते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि मार्ग में गांव ज़रूर पड़े, शव यात्रा में जाते हुए संसारिक बातें करने की अपेक्षा भगवत नाम का सिमरन करें, मृत आत्मा के लिए भजन करें, शवयात्रा देखना सुखद एवं मंगलमय भविष्य का संकेत देता है।

● जब भी कहीं शवयात्रा दिखाई देती है तो हमें मौन हो जाना चाहिए, अगर हम कार या बाइक पर हैं तो ऐसे समय पर हॉर्न भी नहीं बजाना चाहिए, ये काम मृत व्यक्ति के प्रति आदर और सम्मान की भावना प्रकट करता है, शव यात्रा को देखने से अधूरे काम पूरे होने की संभावनाएं बनने लगती हैं, दुखों का नाश और सुखी जीवन का आगाज होता है, अर्थी को कंधा देने से यज्ञ के समान पुण्य लाभ होता है, अर्थी को कंधा देने से व्यक्ति जितने कदम चलता है, उसे उतने यज्ञ का लाभ मिलता है, साधारण जल में डुबकी लगाने से पवित्र हो जाता है।

✅ एकादशी व्रत विधि (स्टेप-बाय-स्टेप)1. व्रत की तैयारी (दशमी तिथि)एकादशी से एक दिन पहले दशमी तिथि में सात्त्विक भोजन करें...
15/11/2025

✅ एकादशी व्रत विधि (स्टेप-बाय-स्टेप)

1. व्रत की तैयारी (दशमी तिथि)

एकादशी से एक दिन पहले दशमी तिथि में सात्त्विक भोजन करें।

भोजन में अनाज, तामसिक चीजें (लहसुन-प्याज), शराब, मांस आदि बिल्कुल न लें।

जल्दी सो जाएं और मन में व्रत का संकल्प करें:
"मैं श्रीहरि की कृपा के लिए एकादशी व्रत करूंगा/करूंगी।"

---

✅ 2. एकादशी के दिन व्रत कैसे रखें

(A) सुबह की दिनचर्या

सुबह स्नान करें।

भगवान विष्णु या श्रीकृष्ण की पूजा करें।

धूप-दीप जलाएं, तुलसी जल अर्पित करें।

पीले फूल, पीला वस्त्र, तुलसी दल चढ़ाएं।

एकादशी की कथा पढ़ें/सुनें।

मंत्र जाप करें:
"ॐ नमो भगवते वासुदेवाय",
"ॐ विष्णवे नमः"

(B) व्रत के प्रकार (आप अपनी क्षमता के अनुसार रखें)

1. निर्जल व्रत – बिना पानी के (सबसे कठिन, स्वास्थ्य ठीक हो तभी करें)

2. जलाहार व्रत – केवल पानी

3. फलों का व्रत – फल, दूध, नारियल पानी

4. सात्त्विक व्रत – साबूदाना, सिंघाड़ा आटा, कुट्टू आटा, मूंगफली, दूध आदि

❗ एकादशी में अनाज वर्जित है।

---

✅ 3. पूरे दिन में क्या करें

बार-बार भगवान हरि का स्मरण करें।

भजन, कीर्तन, पाठ करें।

किसी को दुख न दें, क्रोध न करें।

दान-पुण्य करें – फल, कपड़ा, जल, भोजन दान करें।

---

✅ 4. एकादशी की रात्रि

यदि संभव हो तो जागरण करें या कम से कम देर तक भजन-पूजन करें।

---

✅ 5. द्वादशी के दिन पारण (व्रत खोलना)

द्वादशी तिथि में सूर्योदय के बाद समय देखकर व्रत खोलें।

पारण में हल्का सात्त्विक भोजन लें।

किसी ब्राह्मण या जरूरतमंद को भोजन या दान दें।

---

⭐ विशेष बातें

एकादशी में तुलसी को जल देना शुभ है।

चावल खाने की मनाही इसलिए है कि चावल आलस्य बढ़ाते हैं।

व्रत मन से किया जाए — यही सबसे बड़ा नियम है।

10/11/2025

10 नवंबर से इन राशियों का शुरू होगा गोल्डन टाइम, #बुध की वक्री चाल से होगा लाभ

वैदिक ज्योतिष में बुध ग्रह को बुद्धि, तर्क, संवाद, गणित और व्यापार का कारक ग्रह कहा जाता है। बुध को ग्रहों का राजकुमार कहा जाता है। बुध मिथुन और कन्या राशि के स्वामी हैं और लगभग 23 दिनों तक एक राशि में रहते हैं, फिर अगली राशि में प्रवेश करते हैं। समय-समय पर ये ग्रह वक्री और मार्गी भी होते रहते हैं, जिसका असर सभी राशियों पर अलग-अलग पड़ता है। इस बार 10 नवंबर, रविवार को बुध ग्रह वृश्चिक राशि में वक्री होने जा रहे हैं। यह राशि मंगलदेव के स्वामित्व में है, इसलिए इस परिवर्तन का प्रभाव थोड़ा तीव्र रहेगा। बुध की यह वक्री चाल 30 नवंबर तक जारी रहेगी। इस दौरान कुछ राशियों को शुभ फल की प्राप्ति होगी। आइए जानते हैं, बुध की वक्री चाल से किन राशियों का शुरू होगा गोल्डन टाइम-

मिथुन राशि- मिथुन राशि वालों के लिए बुध ग्रह स्वामी होते हैं, इसलिए इन पर इसका असर सीधा और गहरा पड़ता है। बुध के वक्री होने से आपकी सोच और निर्णय क्षमता और मजबूत होगी। पुराने अटके हुए काम पूरे होंगे, खासकर वे जो संवाद या डॉक्यूमेंटेशन से जुड़े हैं। अगर कोई व्यापारिक सौदा या बातचीत लंबे समय से अटकी है, तो अब आगे बढ़ेगी। नौकरीपेशा लोगों के लिए यह समय आत्ममंथन और नई रणनीति बनाने का है। किसी पुराने मित्र या रिश्तेदार से संपर्क फिर से जुड़ सकता है, जो भविष्य में लाभदायक साबित होगा। बस, जल्दबाजी में कोई बड़ा फैसला न लें।

https://whatsapp.com/channel/0029VaAek77CXC3FyvkOZs05

कन्या राशि- कन्या राशि के जातकों के लिए भी बुध ग्रह स्वामी हैं, इसलिए यह समय आपके लिए सकारात्मक आत्मविश्लेषण का रहेगा। जो लोग शिक्षा, लेखन, मीडिया या मार्केटिंग से जुड़े हैं, उन्हें इस अवधि में बड़ा फायदा मिल सकता है। आपकी सोच में स्पष्टता आएगी, और आप पुराने अधूरे काम को नई दिशा में पूरा कर पाएंगे। किसी नई योजना या प्रोजेक्ट की नींव रखने का यह अच्छा समय रहेगा। हालांकि, संवाद में सटीकता रखें। गलतफहमियों से बचें। सेहत में सुधार के संकेत हैं और पारिवारिक रिश्तों में मधुरता लौटेगी।

वृश्चिक राशि- बुध इस बार वृश्चिक राशि में ही वक्री हो रहे हैं, इसलिए इसका सबसे बड़ा असर इसी राशि पर दिखेगा। लेकिन यह असर नकारात्मक नहीं, बल्कि परिवर्तनकारी रहेगा। आपकी सोच गहरी होगी, आत्मविश्वास बढ़ेगा और निर्णय लेने की क्षमता मजबूत होगी। जो लोग रिसर्च, लेखन, वित्त, इंवेस्टमेंट या मनोविज्ञान जैसे क्षेत्रों में हैं, उन्हें इसका सीधा लाभ मिलेगा। इस समय लिए गए ठोस निर्णय आने वाले महीनों में बड़े परिणाम देंगे। बस, रिश्तों में भावनात्मक प्रतिक्रिया देने से बचें। बातों को शांत मन से संभालें।

मकर राशि- मकर राशि वालों के लिए बुध की वक्री चाल करियर और प्रतिष्ठा के लिए लाभकारी साबित होगी। अब तक जो काम धीरे चल रहे थे, उनमें गति आएगी। बॉस या वरिष्ठ अधिकारियों से संबंध सुधरेंगे। जो लोग अपना व्यवसाय करते हैं, उन्हें ग्राहक या बाजार से अच्छा रेस्पॉन्स मिल सकता है। आर्थिक स्थिति धीरे-धीरे बेहतर होगी। नई नौकरी या प्रमोशन की संभावना भी बन रही है। हालांकि, खर्चों पर थोड़ा संयम रखें और निर्णय भावनाओं में आकर न लें। मानसिक रूप से यह समय आत्मविश्वास बढ़ाने वाला रहेगा।

मीन राशि- मीन राशि वालों के लिए बुध का वक्री होना नई सोच और आर्थिक प्रगति लेकर आ सकता है। जिन कामों में लंबे समय से देरी हो रही थी, वे अब गति पकड़ेंगे। विदेश या दूरस्थ स्थान से कोई अच्छी खबर मिल सकती है। व्यापारियों के लिए यह समय नए क्लाइंट और अवसर लाएगा। नौकरी में बदलाव या पदोन्नति की संभावना है। विद्यार्थियों को पढ़ाई में एकाग्रता बढ़ाने की जरूरत है, लेकिन मेहनत का फल निश्चित मिलेगा। प्रेम जीवन में स्पष्टता आएगी और रिश्ते मजबूत होंगे

https://whatsapp.com/channel/0029VaAek77CXC3FyvkOZs05

Address

Garhmuktesar

Opening Hours

Monday 6am - 10pm
Tuesday 6am - 10pm
Wednesday 6am - 10pm
Thursday 6am - 10pm
Friday 6am - 10pm
Saturday 6am - 10pm
Sunday 6am - 10pm

Telephone

+918630182382

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when Achary pt sanjay Mishra posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Share

Share on Facebook Share on Twitter Share on LinkedIn
Share on Pinterest Share on Reddit Share via Email
Share on WhatsApp Share on Instagram Share on Telegram