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19/04/2025

गुरु-केतु युति वाले जातकों के विशेष गुण

जीवन की हर समस्या का समाधान निकालने में सक्षम होते हैं. यह युति बुद्धि और अंतर्ज्ञान को तीव्र बनाती है. अगर यह 12वें भाव में हो, तो व्यक्ति मोक्ष मार्ग की ओर अग्रसर होता है. यह व्यक्ति को दैवीय ज्ञान, अंतर्ज्ञान और रहस्यमयी शक्तियों से जोड़ता है.

नीचभंग राजयोगज्योतिष के अनुसार, कुंडली में ग्रह उच्च राशि, मूल त्रिकोण राशि, स्व राशि, मित्र राशि, सम राशि, शत्रु राशि औ...
02/09/2024

नीचभंग राजयोग

ज्योतिष के अनुसार, कुंडली में ग्रह उच्च राशि, मूल त्रिकोण राशि, स्व राशि, मित्र राशि, सम राशि, शत्रु राशि और नीच राशि में उपस्थित होता है। इस प्रकार उच्च राशि में ग्रह के होने पर शुभ प्रभाव पड़ता है और नीच राशि में होने पर बुरा प्रभाव पड़ता है। लेकिन कई बार कोई नीच ग्रह इस तरह बैठा होता है कि उसकी नीच अवस्था समाप्त हो जाए और वह प्रबल तौर पर राजयोग कारक ग्रह बन जाए तो उसे वैदिक ज्योतिष में नीचभंग राजयोग(Neech Bhang Raj yoga in Astrology) कहते हैं। इस योग में रंक को राजा बनाने की क्षमता है।

कुंडली में नीचभंग राजयोग का निर्माण

यदि किसी कुंडली में एक उच्च ग्रह के साथ एक नीच ग्रह रखा जाता है, तो कुंडली में नीचभंग राजयोग बनता है। उदाहरण के लिए, यदि शुक्र और बुध को मीन राशि में रखा जाता है, जहां बुध दुर्बल है और शुक्र उच्च है तो नीचभंग राजयोग बनता है।

यदि किसी कुंडली में कोई ग्रह अपनी नीच राशि में बैठा हो और उस राशि का स्वामी लग्न भाव या चंद्रमा से केंद्र स्थान में हो तो कुंडली में नीचभंग राजयोग बनता है। उदाहरण के तौर पर बृहस्पति की नीच राशि मकर है और मकर का स्वामी शनि यदि चंद्रमा से केंद्र स्थान में हो तो नीचभंग राजयोग बनता है।

यदि किसी कुंडली में कोई ग्रह अपनी नीच राशि में हो और उस राशि में उच्च होने वाला ग्रह चंद्रमा से केंद्र स्थान में हो तो नीचभंग राजयोग बनता है। उदाहरण के लिए शनि की नीच राशि मेष है और सूर्य की उच्च राशि मेष है। सूर्य चंद्रमा से केंद्र स्थान में हो तो इस राजयोग का निर्माण होता है।

यदि किसी कुंडली में नीच ग्रह के स्वामी की दृष्टि भी किसी नीच ग्रह पर हो तो नीचभंग राजयोग बनता है। जैसे- बुध की नीच राशि मीन है और मीन का स्वामी गुरु है और गुरु की दृष्टि बुध पर हो तो नीचभंग राजयोग बनता है।

यदि किसी कुंडली में किसी ग्रह की नीच राशि का स्वामी और उसकी उच्च राशि का स्वामी परस्पर केंद्र स्थान में हो तो नीचभंग राजयोग बनता है। उदाहरण के तौर पर मंगल की नीच राशि का स्वामी चंद्रमा है और मंगल की उच्च राशि का स्वामी शनि है। दोनों परस्पर केंद्र स्थान में हो तो नीचभंग राजयोग बनता है।

इसके अलावा यदि किसी कुंडली में नीच का ग्रह वक्री हो तो नीचभंग राजयोग बनता है।

यदि नीच ग्रह कुंडली में नौवें घर में उच्च का है तो नीचभंग राजयोग बनता है।

26/07/2024

पंचम भाव का स्वामी नवम भाव में:
जातक राजकुमार होगा, या उसके समकक्ष होगा, ग्रंथों की रचना करेगा, प्रसिद्ध होगा और अपने वंश में चमकेगा।

26/07/2024

कुंडली के नवम भाव में केतु हो तो
केतु की इस स्थिति के कारण व्यक्ति योग्य और बहादुर होता है। केतु के कारण इन लोगों के पास पर्याप्त पैसा होता है। साथ ही, ये लोग धन संबंधी कार्यों में तेजी से सफलता प्राप्त करते हैं।

04/03/2024

मेष लग्न के जातक के लिए मूंगा, माणिक, और पुखराज रत्न धारण करना शुभ फल दयाक होता है ।

26/02/2024

वैदिक ज्योतिष अनुसार अगर किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में बुध ग्रह नीच यानि अशुभ स्थित हो तो इस स्थिति में जातक अपने विचारों को सही रूप में बोलकर पेश नहीं कर पाता है। साथ ही ऐसा व्यक्ति गणित विषय में कमज़ोर होता है और उसे गणना करने में परेशानी का सामना करना पड़ता है। उककी तार्किक क्षमता भी कमजोर होती है।

25/02/2024

वैदिक ज्योतिष अनुसार अगर किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में बुध मजबूत होता है, वह व्यक्ति बहुत ही समझदार, तर्क करने में कुशल, अच्छा विश्लेषक होता है. सूर्य के सबसे नजदीक बुध ग्रह ही है. इस ग्रह का सीधा संबंध इंसान की तर्क शक्ति से होता है |

24/02/2024

बृहस्पति प्राकृतिक धन-कारक (धन का कारक) में से एक है, एक मजबूत बृहस्पति आजीवन समृद्धि और वित्तीय स्थिरता देता है।

राजयोग कब और कैसे बनते हैंआइये जानते हैं -धार्मिक जीवन- जब लग्न या लग्नेश के साथ नवम भाव अथवा नवमेश का निकट संबंध हो तो ...
12/03/2023

राजयोग कब और कैसे बनते हैं
आइये जानते हैं -

धार्मिक जीवन-
जब लग्न या लग्नेश के साथ नवम भाव अथवा नवमेश का निकट संबंध हो तो मनुष्य के भाग्य और धर्म दोनों का उत्थान होता है। यदि चन्द्र तथा सूर्य से नवम भाव के स्वामी का संबंध चन्द्र व सूर्य अधिष्ठित राशियों के स्वामी से हो जाए तो मनुष्य का जीवन पूर्णतः धर्ममय हो जाता है।

राज्यकृपा-
नवम भाव को राज्यकृपा का भाव भी कहते हैं। यदि इस भाव का स्वामी राजकीय ग्रह सूर्य, चन्द्र अथवा गुरु हो और बलवान भी हो तो मनुष्य को राज्य(सरकार आदि) की ओर से विशेष कृपा प्राप्त होती है अर्थात वह व्यक्ति राज्य अधिकारी, उच्च पद पर आसीन सम्मानीय व्यक्ति होता है

प्रभुकृपा-
नवम भाव का स्वामी बलवान हो तथा शुभ ग्रहों से युक्त अथवा दृष्ट होकर जिस शुभ भाव में स्थित हो जाता है, मनुष्य को अचानक प्रभुकृपा व दैवयोग से उसी भाव द्वारा निर्दिष्ट वस्तु की प्राप्ति होती है। जैसे नवमेश बलवान होकर दशम भाव में हो तो राज्य प्राप्ति, चतुर्थ भाव में हो तो वाहन व घर की प्राप्ति, द्वितीय भाव में हो तो अचानक धन की प्राप्ति होती है।

राजयोग-
पराशर ऋषि के अनुसार नवम भाव को कुंडली के सबसे शुभ भावों में से एक माना गया है। इस भाव के स्वामी का संबंध यदि दशम भाव व दशमेश के साथ हो तो मनुष्य अतीव भाग्यशाली, धनी, मानी तथा राजयोग भोगने वाला होता है।

वैदिक ज्योतिष के अनुसार जन्म कुंडली में नवम भाव व्यक्ति के भाग्य को दर्शाता है और इसलिए इसे भाग्य का भाव कहा जाता है। जि...
11/03/2023

वैदिक ज्योतिष के अनुसार जन्म कुंडली में नवम भाव व्यक्ति के भाग्य को दर्शाता है और इसलिए इसे भाग्य का भाव कहा जाता है।
जिस व्यक्ति का नवम भाव अच्छा होता है वह व्यक्ति भाग्यवान होता है। इसके साथ ही नवम भाव से व्यक्ति के धार्मिक दृष्टिकोण का पता चलता है। अतः इसे धर्म का भाव भी कहते हैं।
इस भाव से व्यक्ति के आध्यात्मिक जीवन का विचार किया जाता है। यह भाव जातकों के लिए बहुत ही शुभ होता है। इस भाव के अच्छा होने से जातक हर क्षेत्र में तरक्की करता है।
आचार्य, पितृ, पूर्व भाग्य, पूजा, धर्म, पौत्र, जप, दैव्य उपासना, भाग्य आदि को नवम भाव से दर्शाया जाता है। नवम भाव के स्वामी का अन्य भावों से संबंध कुछ विशेष प्रकार के राजयोगों का निर्माण भी करता है |

धन-द्रव्य विचार1. धनेश, लग्नेश, लाभेश के सबल होने पर खूब द्रव्य प्राप्ति होकर धनसंचय भी होता है 2. धनेश बलवान, लाभेश निर...
01/03/2023

धन-द्रव्य विचार

1. धनेश, लग्नेश, लाभेश के सबल होने पर खूब द्रव्य प्राप्ति होकर धनसंचय भी होता है

2. धनेश बलवान, लाभेश निर्बल से पैसा खूब आयेगा लेकिन रुकेगा नहीं।

3. लाभेश बलवान धनेश निर्बल होने पर भी खूब धन होगा, किन्तु संचय नहीं होगा।

4.यदि लग्नेश निर्बल हो तब प्राप्ति के योग श्रेष्ठ होने पर भी धन की चिन्ता बनी रहती है।

5.नवमेश शुक्र और गुरु केन्द्र त्रिकोण में स्थित होने से भाग्यशाली धनीयोग बनाते

6.लग्नेश भाग्येश चतुर्थ में अथवा चतुर्थेश और नवमेश एकादशभाव में स्थित होने से धनाढ्य योग बनता है ।

7.लग्नेश उच्चराशि गत केन्द्र त्रिकोण धनभाव में या एकादश भाव में हो तो धनी होता है।

पारिजात योगकुंडली के अनुसार, लग्नेश जिस राशि में स्थित हो, उस राशि का स्वामी कुंडली में अगर उच्च स्थान में हो या फिर अपन...
04/07/2022

पारिजात योग

कुंडली के अनुसार, लग्नेश जिस राशि में स्थित हो, उस राशि का स्वामी कुंडली में अगर उच्च स्थान में हो या फिर अपने ही घर में हो तो ऐसी दशा पारिजात योग बनाता है। पारिजात योग व्यक्ति को प्रसिद्ध, विलक्षण, धनी, वाहनों से युक्त व परंपराओं और रीति रिवाजों को मानने वाला बनता है। इस योग का प्रभाव आधा जीवन बीत जाने के बाद दिखाई देता है। यह योग कामयाब बनाता है और सफलता के शिखर तक पहुंचाता है।

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