21/04/2022
❌ ~*ढोल, गवार, शूद्र, पशु, नारी.!*~❌
*आज तक गलत प्रचारित किया गया है*
*सही शब्द हैं ✅👇🏿*
*ढोल, गवार, क्षुब्ध पशु, रारी.!”*
*श्रीरामचरितमानस मे, शूद्रों और नारी का अपमान कहीं भी नहीं किया गया है।*
*भारत के राजनैतिक शूद्रों* को पिछले 450 वर्षों में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित हिंदू महाग्रंथ 'श्रीरामचरितमानस' की कुल 10902 चौपाईयों में से
*आज तक मात्र 1 ही चौपाई पढ़ने में आ पाई है, और वह है भगवान श्री राम का मार्ग रोकने वाले समुद्र द्वारा भय वश किया गया अनुनय का अंश है जो कि सुंदर कांड में 58 वें दोहे की छठी चौपाई है ..*
*"ढोल, गँवार, क्षुब्ध, पशु नारी.! सकल ताड़ना के अधिकारी”*
इस सन्दर्भ में चित्रकूट में मौजूद तुलसीदास धाम के पीठाधीश्वर और विकलांग विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री राम भद्राचार्य जी जो नेत्रहीन होने के बावजूद संस्कृत, व्याकरण, सांख्य, न्याय, वेदांत, में 5 से अधिक GOLD Medal जीत चुकें हैं।
महाराज का कहना है कि बाजार में प्रचलित रामचरितमानस में 3 हजार से भी अधिक स्थानों पर अशुद्धियां हैं और..
*इस चौपाई को भी अशुद्ध तरीके से प्रचारित किया जा रहा है।*
उनका कथन है कि..
*तुलसी दास जी महाराज खलनायक नहीं थे,*
आप स्वयं विचार करें
*यदि तुलसीदास जी की मंशा सच में शूद्रों और नारी को प्रताड़ित करने की ही होती तो क्या रामचरित्र मानस की 10902 चौपाईयों में से वो मात्र 1 चौपाई में ही शूद्रों और नारी को प्रताड़ित करने की ऐसी बात क्यों करते ?*
यदि ऐसा ही होता तो..
*भील शबरी के जूठे बेर को भगवान द्वारा खाये जाने का वह चाहते तो लेखन न करते।यदि ऐसा होता तो केवट को गले लगाने का लेखन न करते।*
स्वामी जी के अनुसार..
*ये चौपाई सही रूप में -*
*ढोल,गवार, शूद्र,पशु,नारी नहीं है*
बल्कि यह *"ढोल,गवार,क्षुब्ध पशु,रारी” है।*
ढोल = बेसुरा ढोलक
गवार = गवांर व्यक्ति
क्षुब्ध पशु = आवारा पशु जो लोगो को कष्ट देते हैं
रार = कलह करने वाले लोग
चौपाई का सही अर्थ है कि जिस तरह बेसुरा ढोलक, अनावश्यक ऊल जलूल बोलने वाला गवांर व्यक्ति, आवारा घूम कर लोगों की हानि पहुँचाने वाले..
*(अर्थात क्षुब्ध, दुखी करने वाले पशु और रार अर्थात कलह करने वाले लोग जिस तरह दण्ड के अधिकारी हैं.!*
उसी तरह मैं भी तीन दिन से आपका मार्ग अवरुद्ध करने के कारण दण्ड दिये जाने योग्य हूँ।
स्वामी राम भद्राचार्य जी जो के अनुसार श्रीरामचरितमानस की मूल चौपाई इस तरह है और इसमें ‘क्षुब्ध' के स्थान पर 'शूद्र' कर दिया और 'रारी' के स्थान पर 'नारी' कर दिया गया है।
भ्रमवश या भारतीय समाज को तोड़ने के लिये जानबूझ कर गलत तरह से प्रकाशित किया जा रहा है।इसी उद्देश्य के लिये उन्होंने अपने स्वयं के द्वारा शुद्ध की गई अलग रामचरित मानस प्रकाशित कर दी है।रामभद्राचार्य कहते हैं धार्मिक ग्रंथो को आधार बनाकर गलत व्याख्या करके जो लोग हिन्दू समाज को तोड़ने का काम कर रहे है उन्हें सफल नहीं होने दिया जायेगा।
नोट - तुलसीदास जी को , उनकी कालजई रचना को और सनातन संस्कृति को तोड़ने व अपमानित करने के लिए विरोधियों ने जानबूझकर यह षडयंत्र रचा । हम यहां कुछ उदाहरण देकर इसका विश्लेषण करेंगे -
1) - मनुस्मृति की मूल प्रति में स्पष्ट कहा गया है कि जाति का आधार कर्म है न कि जन्म (समाज को सुचारू व व्यवस्थित रूप से चलाने के लिए जाति व्यवस्था की आवश्यकता हुई । उदाहरण स्वरूप आज भी देश या संस्थान को चलाने के लिए भिन्न भिन्न पदों की व्यवस्था होती है जैसे - बोर्ड आफ डायरेक्टर , सीनियर स्टाफ , जूनियर स्टाफ , लेबर आदि)
* दूसरा क्षूद्र कोई अपमान जनक शब्द नहीं है अपितु संस्कृत में दीर्घ या वृहद अर्थात बड़ा , विस्तृत और क्षूद्र या ह्रस्व अर्थात लघु , छोटा । उदाहरणार्थ शरीर रचना विज्ञान में भी पढ़ते हैं वृहद आंत्र(बड़ी आंत) तथा क्षूद्र आंत्र (छोटी आंत)।
जिन कार्यों को करने के लिए किसी विशेषज्ञता या ज्ञान विज्ञान, पढ़ाई की आवश्यकता नहीं होती थी वो कार्य क्षूद्र कार्य कहलाते थे। तात्पर्य यह है कर्म के द्वारा ही निर्धारित होता था कि कौन किस वर्ग से है जैसे कि शबरी जन्म से नहीं कर्म से मतंग ॠषि की शिष्या व उत्तराधिकारी बनी , बाल्मीकि जन्म से नहीं कर्म से महर्षि बने , विश्वामित्र भी जन्म से नहीं कर्म से महर्षि बने , परशुराम भी जन्म से नहीं कर्म से योद्धा बने , ॠषिपुत्र रावण कर्म से राक्षसराज कहलाया , प्रहलाद राक्षसकुल में जन्म लेकर अपने कर्मों से भक्त शिरोमणि कहलाया , वेदव्यास अपने कर्मों द्वारा ॠषि कहलाए जिन्हें मधुसूदन भी प्रणाम करते थे और भी ऐसे अनेकों उदाहरण है। ये सिर्फ भारतीय सनातन समाज को बांटने की चाल , एक षडयंत्र था क्योंकि यह सर्वाधिक उन्नत व शिक्षित समाज था ।
चौपाई में " क्षुब्ध पशु " है जिसका अर्थ होता है हानि पहुंचाने वाला या आवारा पशु जो कि तथ्यात्मक प्रतीत होता है लेकिन कुछ षडयंत्र वश व कुछ अपभ्रंश वश क्षूद्र कर दिया गया (ऊपर हम क्षूद्र या उसका जन्म व कर्म से सम्बंध आदि का विष्लेषण कर चुके हैं)
2) इसी प्रकार इस चौपाई में नारी शब्द को भी षडयंत्र वश , जानबूझकर समाज में , स्त्री पुरुष में वैमनस्य पैदा करने के लिए , एक खाई पैदा करने के लिए वह सनातन संस्कृति , सभ्यता को नीचा दिखाने के लिए ऐसा किया गया है, जो सही मूल शब्द है वो है " रारि " अर्थात रार (लड़ाई, वैमनस्यता) पैदा करने वाला ।
स्त्री को तो सनातन संस्कृति में सर्वोच्च स्थान दिया गया है ।कहां भी गया है - " यत्र नार्स्यतु पूज्यंते , तत्र रमंते देवता " जहां स्त्री की मां के रूप में , शक्ति के रूप में पूजा होती है क्या ऐसे में नारी की ताड़ना तर्क संगत प्रतीत होती है।
यूं भी प्राचीन काल में तो पुरुष की पहचान अपने से ज्यादा उस स्त्री से जो मां होती थी, जननी थी अधिक प्रचलित थी तभी तो कौशल्या नंदन , देवकी नंदन , यशोदा नंदन कहलाए या वो स्त्री जो संगिनी थी तो उसको भी सम्मान देने हेतु जानकीवल्लभ , रुक्मिणी नाथ आदि कहलाए और तो और सनातन संस्कृति में स्वयं देवाधिदेव महादेव ने अर्धनारीश्वर रूप धरकर स्त्री के महत्व को इंगित किया है , उसे प्रकृति बताया है । उस सभ्यता में नारी को प्रताड़ित करने के लिए कहा जाए , वो भी उस महान ग्रंथ में जहां स्वयं भगवान श्री राम ने उच्च मर्यादाओं का उदाहरण प्रस्तुत किया है , पूर्णतः असत्य है।
और तो और सनातन संस्कृति में तो स्वयं भगवान से पहले देवी का नाम आता है जैसे - सीताराम, राधेश्याम, लक्ष्मीनारायण, उमा महेश्वर आदि। उस समय तो समाज में स्त्री और उसकी इच्छा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती थी इसलिए स्वयंवर होता था ताकि स्त्री अपनी इच्छा,अपनी पसंद से अपना वर चुन सकें ।अब और कितने उदाहरण दिए जाएं कि उस उच्च शिक्षित व प्रगतिशील सभ्यता में स्त्री को कितना ऊंचा स्थान व मान सम्मान प्राप्त था , ऐसा कोई भी दूसरा उदाहरण किसी भी दूसरे समाज में नहीं मिलता अतः स्पष्ट है कि ऐसी भ्रान्तियां ईर्ष्या वश व शत्रु भाव के कारण फैलाई गई हैं।
इसलिए ही मूल पाठ में अतिक्रमण कर क्षुब्ध पशु को " क्षूद्र - पशु " व रारी को " नारी " में बदल दिया गया ।
अतः सनातन समाज से आग्रह है कि इस मिथ्या व असत्य से किसी प्रकार भी भ्रमित न हो , हम सब एक हैं। धन्यवाद।
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