Ashutosh mishra

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!!कर्षति आकर्षति इति कृष्णः!!कृष्ण के अनंत स्वरूप हैं। अपनी अपनी मूल प्रकृति के अनुसार भारत की हर भाषा, हर बोली, हर  सां...
17/08/2025

!!कर्षति आकर्षति इति कृष्णः!!

कृष्ण के अनंत स्वरूप हैं। अपनी अपनी मूल प्रकृति के अनुसार भारत की हर भाषा, हर बोली, हर सांस्कृतिक-समूह, हर उपासना पद्धति, हर प्रान्त-जनपद ने कृष्ण को बारम्बार सुमिरा है।

हर दर्शन परम्परा, हर एक आयातित निर्यातित विचारधारा ने कृष्ण को येन केन प्रकारेण भजा है।
अद्वैत, द्वैत, द्वैताद्वैत हो या आधुनिक लेफ्टिस्म, फेमिनिज्म़ जैसे वाद। कृष्ण का संक्रामक आकर्षण सबको है।

शांकर दार्शनिकों को लुभाता कृष्ण-काली ऐक्य हो या राधा-कृष्ण अद्वैत हो। तनिक स्त्रैण सौंदर्य वाले, तीन माताओं वाले सौभाग्यशाली त्रयम्बक 'मम्मास् ब्वाय' मातृशक्तियों को लुभाते हैं।तो एंटी इस्टेब्लिशमैंट प्रकृति वालों को इन्द्र,वरुण,कुबेर,अग्नि,ब्रह्मा,काम,नाग का मानमर्दन करने वाले क्रांतिकारी देवदमन श्रीकृष्ण पसंद आते हैं। नागरों को द्वारिकाधीश, ग्राम्यों को गोकुल का लल्ला,बौद्धिकों को गीता-गीतकार, प्रेमियों को राधावल्लभ, नीतिज्ञों को महाभारत-सूत्रधार पसंद हैं। संगीत-रस मर्मज्ञ वंशी पर मोहित हैं, टैगोर कह चुके 'तोमार वांशि आमार प्राणे बेजे छे'। मल्ल योद्धा को चाणूर-मुष्टिक मर्दनम् पर आसक्ति है। और सुकुमारियों के आकर्षण पर कहने ही क्या।

अनासक्त योगीश्वर महादेव तक तो आसक्त हैं।
यशोदा का आदेशात्मक स्वर पहचानिए शिव के लिए:-" जब-जब मेरौ लाला रोबै,तब-तब दरसन दीजै।"

मिथक और इतिहास की परिधि से बहुत बाहर कृष्ण का एक रूप भारत भाव-रूप भी है। गोप संस्कृति का गोपाल दक्षिण में कण्णन है। भारतीय कलाओं का मादन-मोहन-रमण-आकर्षण तत्व उड़िया में जगन्नाथ है।वही दक्षिण में तिरुपति, वेणुगोपाल और वरदराज हैं तो उत्तराखंड में बदरीनाथ हैं ।मराठों के बिठोवा गर्वीले गुजरातियों के द्वारकानाथ और राजपूताने में श्रीनाथ हैं।

कृष्ण के राष्ट्र-नायक स्वरूप और राष्ट्र-निर्माण की रचना प्रक्रिया को समझना होगा। युगधर्म का यही संदेश है।

ध्यान रहे कि उस समय अश्वमेध राजसूय आदि यज्ञ श्रेष्ठता की स्वीकृति थे कोई स्वामित्व या दास्य बोध नहीं। कब्जा करने की परिपाटी तो संभवतः मगध के नन्द वंश से शुरू हुई। उसके पहले एक राज्य की पहचान उसके देवता, ध्वज, संस्कृति, गुरू, भोजन शैली, समृद्धि,कला आदि से अधिक थी भौगोलिक स्थिति से कम।

एक तरफ जैसे जैसे सरस्वती का जल सूखता जाता है वैसे ही मगध और मथुरा की शत्रुता और प्रगाढ़ होती जाती है। हिरण्यवती की स्वामिनी अन्नवती सरस्वती के प्रवाह-क्षेत्र में क्रमशः आती रिक्तता के कारण एक बड़ी जनसंख्या गंगा-आप्लावित भूभाग की तरफ शनैः शनैः 'पलायन' कर रही है। मथुरा और मगध के वैवाहिक संबंधों ने वैमनस्य कम जरूर किया है पर यह पर्याप्त नहीं। इस वैमनस्य के मूल में शक्ति असंतुलन है। मगध मध्य भारत के अपने यादव सहयोगियों चेदिराज(बुंदेलखंड), विदर्भराज भीष्मक, रूक्मी, करवीर-राज (आज का कोल्हापुर) आदि के कारण अति महत्वाकांक्षी है।

दूसरी तरफ 'कुरु' राजवंश है जिसपर अनेक राजा रजवाड़ों रियासतों की भृकुटि पहले से ही टेढ़ी है। गांधार क्रुद्ध हैं कि अन्धे धृतराष्ट्र से गांधारी का विवाह उनके साथ विद्रूप छल है। उनका श्रेष्ठतम रणनीतिकार 'राजकुमार शकुनि' उसी छल के बदले के लिए हस्तिनापुर में ही विराज रहा है। काशीनरेश स्पष्टतः खिन्न और अप्रसन्न हैं कि उनकी तीन अनिंद्य सुंदरी राजकुमारियों को भीष्म अपहृत कर ले गए। अपहरण के बाद का अपमान तो किसी भी स्त्री का भयंकरतम भीषणतम अपमान होगा।

कुरुवंश का अर्थ तंत्र 'आदिबद्री' से निकलने वाली वेदस्मृति सरस्वती पर निर्भर है। वेदवती सरस्वती की कलाएं दिन प्रतिदिन क्षीण हो रही हैं। मुख्य धारा के सूखने से इसकी सहायिकाएं कालिन्दी यमुना और सदानीरा शतद्रु अर्थात सतलुज भी क्षीणकाय होती जा रही हैं। और क्षीण हो रही है 'कुरु' की आभा। एक जड़त्व घेर रहा है उसे।

उधर जड़मति किंकर्तव्यविमूढ 'पांचाल'! कभी यह कुरु और मगध के बीच 'बफर स्टेट' रहे। अभी इनकी स्थिति इन दो महाशक्तियों के बीच 'स्विंग स्टेट' की है। पर जैसा कि द्रौपदी के स्वयंवर के समय मागध सामंतों, राजकुमारों और राज्याश्रयी गुप्तचरों की उपस्थिति से सिद्ध होता है कि पांचाल अब मगध की तरफ झुकने लगे थे। तिस पर द्रोण द्वारा अपने पुराने मित्र पांचालनरेश को बलपूर्वक दण्डित करना।

हालांकि इस दण्डित करने के प्रयास में पाण्डुपुत्र राजकुमार युधिष्ठिर एक अलग स्तर का राजनीतिक 'एक्यूमेन' प्रदर्शित करते हैं जब वह दुर्योधन के पांचालों द्वारा परास्त होने के बाद अर्जुन भीम के साथ बिना कुरु-वंश के ध्वज के लड़ते हैं।

यहाँ दो सगे वृष्णिवंशी भाई जो सहोदर भी हैं और नहीं भी। संकर्षण बलराम और कृष्ण जो महाविलासी अभिमानी कंस के भान्जे हैं अपने आततायी मामा का वध कर देते हैं। कृष्ण दोनों मामियों को ससम्मान गिरिव्रज (आधुनिक राजगीर) भेजते हैं। मथुरा में एक रिक्तता का निर्माण हो जाता है। नए राजा 'एक रबर स्टैम्प' हैं और बहुत हद तक 'प्रो-मगध साफ्ट पालिसी' रखते हैं।

उधर चालाक मगध मथुरा पांचाल और कुरु की वास्तविकता को समझता है। श्रीमद्भागवत के अनुसार जरासन्ध मथुरा पर कुल सत्रह बार आक्रमण करता है। पर हलधर-चक्रधर वृष्णि-बंधु हर बार उसके आक्रमण को विफल करते हैं। अन्तिम अठारहवें आक्रमण की योजना जरा अलग है। पश्चिम से पर्शियन म्लेच्छराज कालयवन जो लूटपाट की नीयत रखता है और पूर्व से मागध जरासंध जो यदुकुल के विनाश और मथुरा पर अधिकार की मंशा रखता है, दोनों एक साथ आक्रमण करते हैं।

'रणछोड़' तपस्वी मुचुकुन्द की सहायता से कालयवन का वध करते हैं फिर दोनों भाई दक्षिण दिशा में भाग लेते हैं। 'यदु' की प्रभाव सीमा के बाहर जाकर वह मगध के हितैषी करवीर-नरेश श्रगाल का वध करते हैं। मागध सैन्य-शक्ति से बचने छिपने के क्रम में दोनों भाई गोमांतक प्रदेश यानि कि आज के गोवा और कोंकण पहुंचते हैं।

एक घनघोर तटीय वन में मागध सेना को घेर वहाँ आग लगा देते हैं। हताश निराश जरासंध वापस मगध लौट जाता है।

यहाँ से दक्षिणापथ मार्ग पर यह दोनों वृष्णिवंशी श्रीविद्यापरमाचार्य विष्णु के छठे अवतार'जामदग्नेय परशुराम' से मिले। श्री हरिवंश के अनुसार तो कृष्ण को सुदर्शन चक्र भी यहीं परशुराम से ही प्राप्त हुआ।

बार बार के आक्रमणों से प्रजा की रक्षा के लिए यदुकुल की राजधानी द्वारिका स्थानांतरित की गई।शूरसेन यादव पूरे सौराष्ट्र, पश्चिमी घाट, दक्खिनी पठार और सिंध तक फैल गए। बिल्कुल जैसा विस्तार बहुत बाद में मराठों का हुआ था एक बार।

यमुना सरस्वती का लगभग बंजर इलाका पांडवों को दिया और गंगा बेसिन रिजर्व का उपजाऊ क्षेत्र दुर्योधन ने अपने पास रखा था। यही समय था जब भारतीय राजनीति में इन दो वृष्णि वंशी भाइयों का शानदार पदार्पण हुआ। वाचाल छलिया अनुज को पता है कितना कैसे कहाँ कब बोलना है उधर महीधर अग्रज कब चुप रह जाना है यह जानते हैं, सुभद्रा हरण और महाभारत युद्ध इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।

कृष्ण बलराम ने वंचित पाण्डवों के साथ सहृदयता का संबंध बना लिया। यहीं योगेश्वर श्रीकृष्ण को एक सुयोग्य 'निमित्तमात्र सव्यसाचिन्' भी मिल जाते हैं। यह वृष्णि-पाण्डव गठबंधन प्रजा की अभिलाषाओं के अनुरूप ' खाण्डव दाह' भी करते हैं। 'कृष्णार्जुन' से भयभीत अनार्य 'नाग' और असुर सिंधु घाटी की उपरी उपत्यकाओं की तरफ भागने को विवश होते हैं जहाँ 'तक्षक' के नेतृत्व में तक्षशिला नगर बसाया जाता है।

खाण्डवप्रस्थ की इस घटना के समय ही युद्ध बंदी 'मयासुर' को अभयदान देकर कृष्ण अनार्यों का भी हृदय जीत लेते हैं। इन्हीं अनार्यों के विश्वकर्मा के माध्यम से इंद्रप्रस्थ और द्वारिका का निर्माण कराया जाता है जो भारतीय स्थापत्य के अद्भुत उदाहरण बने।

यह द्वारिका-इंद्रप्रस्थ गठबंधन वैसे तो माधवी राजनीतिक शैली थी पर इसे कृष्णार्जुनी आक्रमण समझा गया जो कुरु के विरोध तथा मगध के विकल्प के तौर पर उभर रही थी। भ्रमित पांचाल सदा के लिए इनके साथ हो लिए।

उधर जरासंध का प्रभाव अवन्तिका तक पहुँच रहा था जहां उसके पक्षधर विन्द और अनुविन्द का राज्य था। मगध कुरू और द्वारका को घेरने के प्रयास में था तो उधर कृष्ण ने विदर्भ की राजकुमारी रूक्मिणी, उज्जैन की राजकुमारी तथा अपने वंश की भी एक कन्या से विवाह संबंध बनाकर अपनी स्थिति बहुत मजबूत कर ली।

पाण्डव अभी भी कुरू वंश के ही भाग थे। तो,दुर्योधन भी कहाँ कम रणनीतिकार थे। मित्र कर्ण को अंग देश (उत्तरी बंगाल/उड़ीसा) ही क्यों दिया? क्योंकि मगध को वहाँ से नियंत्रित किया जा सकता था और सूर्यपुत्र कर्ण कलिंग में हुए एक द्वन्द युद्ध में पहले ही जरासन्ध को परास्त कर चुके थे।

यहाँ से कृष्ण के राजनीतिक कौशल का असल खेल शुरू होता है। कृष्ण अपने हर स्वरूप में अतुलनीय हैं पर थोड़ी 'पोएटिक फ्रीडम' के साथ उनकी तुलना चाणक्य या फिर गाडफादर-१ के डान कार्लियोन से कर सकते हैं।

कृष्ण के उद्देश्य और द्वारिका-इन्द्रप्रस्थ धुरी के लिए तात्कालिक चुनौती थी कि मगध नरेश जरासंध को भारत के राजनीतिक परिदृश्य से सदा सदा के लिए हटा दिया जाए। यहाँ कृष्ण-अर्जुन-भीम की तिकड़ी ने लगभग वैसा ही गेम प्लान बनाया जैसा कि शिवाजी ने शाइस्ता खान के लाल महल में अंजाम दिया।

जरासंध और भीम को द्वन्द युद्ध के लिए तैयार कर लेना एक बहुत बड़े मनोवैज्ञानिक के ही वश की बात थी। लक्षणा में कहा जाए तो एक तरफ साठ हजार हाथियों के बल वाला वृद्ध जरासंध जिसकी मृत्यु का तरीका रहस्य है दूसरी तरफ दस हजार गजशक्ति युक्त युवा भीम जिसे आश्वस्त किया गया है कि जरासंध अपराजेय नहीं है क्योंकि कुछ वर्ष पहले कर्ण के हाथों वह पहले पराभव फिर क्षमादान प्राप्त कर चुका है।

भीम के हाथों जरा की मृत्यु के बाद कृष्ण कामरूप (असम) के आततायी शासक नरकासुर को मारकर उसके पुत्र भगदत्त को वहाँ प्रतिष्ठित करते हैं। जरासंध के पुत्र सहदेव की भगिनी का विवाह सुंदर नकुल से कराने का प्रस्ताव भी होता है। पश्चात, पौंड्र प्रदेश(मध्य बंगाल) के नकलची राजा पौंड्रक का वध करते हैं।

चंद्रवंश और सूर्यवंश ने भी एक बड़े समय तक जिस यज्ञ के आयोजन का साहस न किया उस 'राजसूय' के लिए महाराज युधिष्ठिर कैसे तैयार हो गए? इस रहस्य के सूत्रधार भी कृष्ण ही थे। अर्जुन भीम सात्यकि धृष्टद्युम्न आदि के भुजबल कृष्ण के चातुर्य और युधिष्ठिर की धर्मनिष्ठा ने अंग को छोड़ समूचे पूर्वी और पूर्वोत्तर क्षेत्र को अपना बना लिया। नागकन्या उलूपी, मणिपुर की चित्रांगदा आदि से अर्जुन के विवाहों ने भी इन्हें शक्ति दी। राजसूय के समय शिशुपाल वध ने इनकी शक्ति को आधिकारिक प्रतिष्ठा दी।

दूसरे वृष्णि वंशीय शेषावतार संकर्षण की तीर्थयात्राओं ने भारत को और मजबूती से जोड़ने का काम किया। वह वर्तमान पाकिस्तान के अटक में सिन्धु-कुभा संगम तक गए।

रोहिणीनन्दन सीरपाणी अपने प्रतिलोम सरस्वती यात्रा के क्रम में प्रभास, पृथुदक, त्रितकूप, बिंदुसर, चक्रतीर्थ नैमिष, विशाल, ब्रह्मतीर्थ, सरयू, हरिद्वार, गोंती, गंडकी,गया, शोणभद्र, विपाशा,परशुराम क्षेत्र,वेणा, पंपा, सप्तगोदावरी,दुर्गा देवी, त्रिगर्त, केरल,श्रीरंग, मदुरै, दण्डकारण्य, अर्या देवी, कांची, कावेरी, कामोष्णी, सेतुबंध, कृतमाला,पयोष्णी, ताम्रपर्णी, नर्मदा अनेकानेक स्थानों को एकसूत्र जोड़ते चले गए।

सम्पूर्ण भारत और भारतवंशी उन वृष्णिवंशी भाइयों का ऋणी है।

धूमधाम से इनका जन्मोत्सव मनाया जाए।

सभी को शुभकामनाएं, बधाई

गोपिका-वृन्द-मध्यस्थं, रास-क्रीडा-स-मण्डलम्।
क्लम प्रसति केशालिं, भजेऽम्बुज-रूचि हरिम्।।

साभार
😋मधुसूदन
कृष्ण जन्माष्टमी, वि. सं. २०७६

"जिसका जितना दायरा, उसकी उतनी सोच" — ये पंक्ति सिर्फ किसी मानसिक सीमा का बयान नहीं है, यह उस असहनीय अनुभव की गवाही है जब...
08/08/2025

"जिसका जितना दायरा, उसकी उतनी सोच" — ये पंक्ति सिर्फ किसी मानसिक सीमा का बयान नहीं है, यह उस असहनीय अनुभव की गवाही है जब आपकी उड़ान को कोई ज़मीन से बाँधने की कोशिश करता है, वो भी अपने छोटे नजरिए की रस्सियों से। ऐसे लोग न आपकी दृष्टि समझते हैं, न आपके दृष्टिकोण को स्वीकारने की क्षमता रखते हैं। वे आपके विचारों को नकारते हैं क्योंकि उनके पास तर्क नहीं, सिर्फ तंज होते हैं।

ऐसे लोग अक्सर आपको ‘अजीब’, ‘ज्यादा सोचने वाला’, ‘व्यर्थ गंभीर’, या ‘दूसरी दुनिया का प्राणी’ घोषित कर देते हैं। लेकिन सच यह है कि वे आपकी दुनिया से डरते हैं — क्योंकि वह उनकी सीमित सोच की दीवारों को तोड़ देती है। वे खुद के बौनेपन को बनाए रखने के लिए आपकी ऊंचाई को झूठ, घमंड या पागलपन कहकर खारिज करना चाहते हैं।

इसलिए ऐसे लोगों को वैचारिक अछूत की तरह देखिए — न तिरस्कार से, बल्कि तटस्थ उपेक्षा से। वे आपकी चेतना में जगह पाने लायक नहीं हैं। न उन्हें समझाइए, न उन्हें मनाइए। बस मुस्कराइए और चलते रहिए — क्योंकि आपकी यात्रा उनके छोटे खांचों में समाने के लिए नहीं बनी है।

सोच बड़ी है, तो अकेलापन स्वाभाविक है — लेकिन वही अकेलापन आपकी ऊंचाई का प्रमाण है। आपकी दुनिया को वही समझ सकता है, जिसकी चेतना उड़ने लायक हो — रेंगने वाले नहीं।

साभार
प्रवीण त्रिवेदी जी

🪲 **असैसिन बग: एक खतरनाक कीड़ा**सोचो अगर कीड़ों की कोई माफिया होती,तो ये कीड़ा बॉस होता — सबसे ऊपर!ये अपने मरे हुए दुश्म...
01/08/2025

🪲 **असैसिन बग: एक खतरनाक कीड़ा**

सोचो अगर कीड़ों की कोई माफिया होती,
तो ये कीड़ा बॉस होता — सबसे ऊपर!
ये अपने मरे हुए दुश्मनों की लाशें पहनकर चलता है, जैसे कोई फैशनेबल जैकेट पहन ली हो।

इसका नाम है **असैसिन बग** — यानी "हत्यारा कीड़ा"।

बाकी कीड़े तो डरकर भागते हैं,
लेकिन ये ऐसा लगता है जैसे पूरा जंगल इसका दुश्मन हो।

इसकी सबसे खतरनाक बात?
इसका मुंह — जो असली मुंह नहीं, बल्कि सुई जैसा होता है।

ये क्या करता है?

1. किसी छोटे, नरम कीड़े को ढूंढता है।
2. अपने सुई जैसे मुंह से उसमें ज़हर भरता है।
3. अंदर के सारे अंग पिघल जाते हैं — सब चीज़ें लिक्विड बन जाती हैं।
4. फिर वो सब पी जाता है — जैसे स्मूदी पी रहा हो।

ना चबाना, ना काटना — बस चुपचाप पी जाना।

और बात यहीं खत्म नहीं होती...

कुछ असैसिन बग्स अपने मरे हुए शिकारों की लाशें अपनी पीठ पर ले चलते हैं —
छुपने के लिए, बचाव के लिए, और डराने के लिए।

सोचो आप जंगल में हो और मरे हुए चींटियों का ढेर अचानक चलने लगे —
वो असैसिन बग ही होता है!

दूसरे कीड़े उसे देखकर डर जाते हैं और भाग जाते हैं।

और ये सिर्फ शिकारी नहीं है —
माँ-बाप भी होते हैं।
अपने अंडों की इतनी सुरक्षा करते हैं कि पास आने वाले मकड़ी या चींटी को भी मार डालते हैं।

कुछ प्रजातियाँ इंसानों को भी नुकसान पहुंचा सकती हैं —
कभी बीमारियां फैलाकर, तो कभी सीधे काटकर।

ये कीड़ा चुपचाप आता है, हमला करता है, और बिना शोर किए चला जाता है।
जैसे कीड़ों की दुनिया का **जॉन विक** हो।

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⚠️ **नाम 'असैसिन' ऐसे ही नहीं मिला —**
ये सच में एकदम परफेक्ट हंटर है — शांत, धैर्यवान, और खतरनाक।

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\ #असैसिनबग #प्रकृति\_का\_हत्यारा #डरावना\_कीड़ा #कीड़ों\_की\_दुनिया

**केरल यूरोप नहीं है — ऐसा दिखावा करना बंद करें**लोग केरल को ऐसे दिखाते हैं जैसे यह कोई यूरोपीय देश हो।“100% साक्षरता।” ...
30/07/2025

**केरल यूरोप नहीं है — ऐसा दिखावा करना बंद करें**

लोग केरल को ऐसे दिखाते हैं जैसे यह कोई यूरोपीय देश हो।
“100% साक्षरता।” “सबसे अच्छा एचडीआई।” “आदर्श राज्य।”

लेकिन असली सच्चाई कोई नहीं कहता:

यूरोप इसलिए यूरोप नहीं है कि वहाँ एचडीआई ऊँचा है।
यूरोप इसलिए आगे है क्योंकि उसने *ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था* बनाई।
• जर्मनी: बेहतरीन इंजीनियरिंग, कारें और क्लीन टेक्नोलॉजी।
• फ्रांस: लग्ज़री, कला और फैशन — ये संस्कृति का निर्यात करते हैं।
• इटली: फेरारी, लैम्बॉर्गिनी, वर्साचे — गुणवत्ता, मात्रा नहीं।
• ब्रिटेन: फाइनेंस, कानून, शिक्षा — ये सिर्फ़ कामगार नहीं भेजते, नियम लिखते हैं।

अब ईमानदारी से पूछिए:
केरल की अर्थव्यवस्था है क्या?

इतनी उपजाऊ ज़मीन… जहाँ अमेज़न जितनी बारिश होती है…
लेकिन ग़ल्फ़ देशों में नर्सें, नौकरानियाँ और ड्राइवर भेजता है।

और फिर एचडीआई पर गर्व करता है?

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# # # **कड़वी सच्चाई: केरल की कोई ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था नहीं है**

• कोई IIT नहीं
• कोई IIM नहीं
• कोई AIIMS नहीं
• कोई अंतरराष्ट्रीय स्तर का विश्वविद्यालय नहीं
• कोई वैश्विक कंपनियाँ नहीं
• कोई पेटेंट नहीं
• कोई टेक्नोलॉजी निर्यात नहीं
• कोई नोबेल विजेता नहीं
• कोई मौलिक ब्रांड नहीं
• कोई मैन्युफैक्चरिंग वैल्यू चेन नहीं

अगर साक्षरता से रचनात्मकता, नवाचार या उद्योग नहीं आते,
तो ये सिर्फ़ किताबों की लाइनें हैं — असली बदलाव नहीं।

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# # # **यमन कोई उपलब्धि नहीं है**

निमिषा प्रिया — केरल की एक नर्स — आज यमन में मौत का सामना कर रही है।
सोचिए… यमन!
एक युद्धग्रस्त, ढहा हुआ देश।
हमारी बेटियाँ वहाँ जीने के लिए जाती हैं।

क्या जापान या जर्मनी का कोई व्यक्ति यमन जाएगा?
वहाँ काम करना तो छोड़िए, घूमने भी नहीं जाएंगे।

और नहीं — आपको वहाँ कर्नाटक, आंध्र या गुजरात की महिलाएँ नहीं मिलेंगी।
क्योंकि उन राज्यों ने असली अर्थव्यवस्था बनाई है, भले ही उनके पास कम संसाधन हैं।

इस बीच, केरल झारखंड या छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों से भी कम जीएसटी योगदान देता है।

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# # # **प्रकृति ने सब दिया, व्यवस्था ने खो दिया**

केरल के पास सब कुछ है:
• खूब बारिश
• नदियाँ
• रबर
• मसाले
• बंदरगाह
• महिला शिक्षा में 100 साल की बढ़त

फिर भी…
सबसे पढ़ी-लिखी महिलाएँ सोमालिया, इराक, कुवैत और यमन जाती हैं।
किसी और के बच्चों की देखभाल करने, जबकि उनके अपने बच्चे घर पर अकेले बड़े होते हैं।

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# # # **ये सिर्फ़ आर्थिक नहीं, भावनात्मक चोट है**

• माँएँ रेगिस्तानी देशों में अकेली रहती हैं।
• बच्चे वॉइस नोट और वीडियो कॉल से बड़े होते हैं, गले लगाने से नहीं।
• घर बनाने के लिए परिवार टूटते हैं।
• खाली जन्मदिन, छूटे हुए अंतिम संस्कार।

भारत का कोई और राज्य इतनी बड़ी मानवीय कीमत नहीं चुकाता घर पाने के लिए।

उपजाऊ धरती का क्या फायदा, अगर वहाँ रहकर जी नहीं सकते?

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# # # **गलत चीज़ों को महिमामंडित करना बंद करें**

ग़ल्फ़ देश तेल से अमीर बने — किस्मत से।
लेकिन हम उनके ड्राइवर और नौकर बन गए।

ये कोई मॉडल नहीं, एक चेतावनी है।

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# # # **केरल क्या बन सकता था**

अपनी प्रतिभा और संसाधनों से केरल ये कर सकता था:
• आयुर्वेदिक बायोटेक्नोलॉजी में अग्रणी बन सकता था
• ग्रीन टेक्नोलॉजी और सस्टेनेबल आर्किटेक्चर का निर्यात कर सकता था
• विश्वस्तरीय मेडिकल रिसर्च सेंटर बना सकता था
• वृद्ध समाजों के लिए मलयालम में एआई प्लेटफ़ॉर्म बना सकता था
• समुद्री पारिस्थितिकी, औषधीय पौधों या जलवायु अनुकूलन में नए उद्योग बना सकता था

लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।
क्योंकि हमने *जीवित रहने को सफलता* और *विदेशी पैसे को पुनर्जागरण* समझ लिया।

और अब अगली पीढ़ी को भी यही सिखा रहे हैं।

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# # # **अब भागने नहीं, आगे बढ़ने का समय है**

ये केरल के लोगों पर हमला नहीं है।
ये उनकी पीड़ा को रोमांटिक बनाना बंद करने की अपील है।

हमें बंद करना होगा:
• ग़ल्फ़ में काम करने को गौरव मानना
• टूटे परिवारों को आर्थिक ताकत बताना
• महिलाओं के विदेश जाने को सशक्तिकरण कहना

हमें बंद करना होगा उस सिस्टम की तारीफ जो:
• महिलाओं को युद्धग्रस्त देशों में भेजता है
• पासपोर्ट पर लगी मुहरों से सफलता नापता है
• घर बनाने के लिए परिवार तोड़ता है

हमें चाहिए:
• केरल में ही नौकरियाँ, न कि बाहर जाने वाली फ्लाइट्स
• महिलाएँ जो नए उद्योग खड़ी करें, न कि मरुस्थलों की जेलों में मरें
• अपना ज्ञान और नवाचार पैदा करना, उधार का गर्व नहीं
• ऐसा भविष्य जहाँ केरल अपने दिमाग का निर्यात करे, अपने लोग नहीं

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# # # **सुंदर भूमि। बहादुर लोग। पर टूटा हुआ मॉडल।**

हाँ, केरल सुंदर है।
हाँ, उसके लोग साहसी हैं।
लेकिन यह पीड़ा छुपाने का कारण नहीं है।

अब इसे “केरल मॉडल” कहना बंद करें।
सच कहें: यह है *केरल का घाव*।

हमें सच में यूरोप बनना चाहिए — यूरोप होने का दिखावा नहीं।

You’re not just one person, you’re 37 trillion cells working together in perfect sync. From your brain to your bloodstre...
29/07/2025

You’re not just one person, you’re 37 trillion cells working together in perfect sync. From your brain to your bloodstream, every second of your life is powered by mind-blowing biological precision.

🧠 Your brain alone contains 100 billion neurons, firing up to 60,000 thoughts per day. That’s your internal supercomputer in action.

👁️ Your eyes hold 127 million retinal cells, giving you the power to perceive up to 10 million colours in vivid detail.

🩸 Your blood is a complex river of life:
• 30 trillion red blood cells
• 42 billion blood vessels
• 6 liters of blood that account for about 10% of your body weight

👃 Your nose is more than a scent detector, it’s a chemical analysis tool with 1,000 olfactory receptors capable of recognising 50,000 unique smells.

🧴 And your skin? It’s your body’s largest organ, made up of 100 billion cells, shielding and regulating everything beneath.

You are not a machine, you are billions of them, working in harmony every second. Respect the system. Fuel it. Take care of it.

Follow for more mind-blowing science facts about the body you live in every day.

कॉकरोच को मारेंगे तो बहादुर कहलाएंगे,तितली को मारेंगे तो बेरहम।बाक़ी सब अब आपके हाथ में है।कैमरा किस पर फोकस कर रहा है —...
27/07/2025

कॉकरोच को मारेंगे तो बहादुर कहलाएंगे,
तितली को मारेंगे तो बेरहम।
बाक़ी सब अब आपके हाथ में है।
कैमरा किस पर फोकस कर रहा है — वही तय करेगा कि आप हीरो हैं या विलेन।

मतलब सीधा है —
दया उसी पर की जाती है जो ‘दिखने लायक’ हो।

जिस पर नज़र टिक जाए।
जिसके पंख हों, रंग हों, उड़ान हो।
जिसकी तस्वीर सोशल मीडिया पर दिल जीत ले।

लेकिन कॉकरोच के पास?
ना कोई रंग।
ना आवाज़।
ना उड़ने की अदा।
उसकी मौत... साफ़-सुथरी लगती है।

पर क्या पता वो भी थककर घर लौट रहा हो।
क्या पता वो भी अपने बच्चों के लिए कुछ लाया हो।
और आपने चप्पल मारी —
क्योंकि वो आपको 'घिनौना' लगा।

पर क्या घिन से नैतिकता तय होती है?

और वो जो आप हर बार कहते हैं न ,
“तितली को मत मारो, वो प्यारी है…”
मतलब अगर वो बदसूरत होती, तो मार देना ठीक होता? जैसे की मच्छर, सांप या किसी गरीब का फटेहाल बच्चा जो क्यूट नही है

आपकी दया, आपका प्यार, आपकी इंसानियत — सब सशर्त है।

शर्त — सुंदरता।
शर्त — उड़ सकना।
शर्त — picture पे अच्छा दिखना।

वरना?

आप भी कॉकरोच हैं

और आपके लिए भी कहीं न कहीं एक चप्पल तैयार रखी है।

बाक़ी आप समझदार हैं।
तय कर लीजिए —
आप तितली हैं, कॉकरोच हैं, या बस वो हाथ जो चप्पल उठाता है।

साभार
प्रांशु वर्मा

**जीवन का सबसे सूक्ष्म रूप हमारी कल्पना से कहीं अधिक रोमांचक है।**वैज्ञानिकों ने अब तक की सबसे सटीक **3D मॉडलिंग** के ज़...
27/07/2025

**जीवन का सबसे सूक्ष्म रूप हमारी कल्पना से कहीं अधिक रोमांचक है।**

वैज्ञानिकों ने अब तक की सबसे सटीक **3D मॉडलिंग** के ज़रिए **एक एकल मानव कोशिका (human cell)** का ऐसा चित्र प्रस्तुत किया है, जो सिर्फ कला नहीं, बल्कि **वास्तविक आणविक डेटा पर आधारित वैज्ञानिक चित्रण** है।

इस अभूतपूर्व मॉडल को तैयार करने में **X-ray क्रिस्टलोग्राफी**, **इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी** और अत्याधुनिक कम्प्यूटेशनल तकनीकों का उपयोग किया गया है।
प्रत्येक अंगक (organelle) — चाहे वह **नाभिक (nucleus)** हो, **माइटोकॉन्ड्रिया**, या **साइटोस्केलेटन** — को **अद्भुत सटीकता** और **यथार्थवादी विवरण** के साथ दर्शाया गया है।

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# # # कोशिका: एक सूक्ष्म जगत

यह कोशिका कोई साधारण गोला नहीं है, बल्कि **सूक्ष्म आणविक मशीनों का एक महानगर** है।

* **प्रोटीन** सटीकता से मुड़ते और जुड़ते हैं,
* **अंगक ऊर्जा का प्रबंधन** करते हैं,
* और **साइटोस्केलेटन (कोशिकीय ढांचा)** चलायमान और लचीला संरचनात्मक आधार प्रदान करता है।

यह कोशिका स्थिर नहीं, बल्कि एक **निरंतर चलती-फिरती दुनिया** है — जिसमें **व्यवस्था, अव्यवस्था और एक जीवंत नृत्य** समाया हुआ है।
3D मॉडल में प्रयोग किए गए **प्रकाश, छाया और पारदर्शिता प्रभाव** इसे लगभग जीवंत महसूस कराते हैं — और **टेक्स्टबुक की शुष्क अवधारणाओं** को एक **भावनात्मक और नेत्रविभोर कर देने वाले अनुभव** में बदल देते हैं।

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# # # क्यों यह महत्वपूर्ण है?

चाहे आप **वैज्ञानिक हों, छात्र हों या जीवन की जड़ों को समझने के इच्छुक व्यक्ति**, यह मॉडल एक **शैक्षणिक साधन** ही नहीं, बल्कि **प्रेरणा का स्रोत** भी है।

यह हमें यह समझने में मदद करता है कि **एक कोशिका केवल जीवन की इकाई नहीं**, बल्कि **अपने आप में एक पूरा ब्रह्मांड** है।

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📚 **स्रोत**: *Journal of Molecular Visualization, 2025* | *NIH 3D Cell Project*
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20/07/2025

"फोन से जुड़ा जीवन और खनिजों की मौत"

जैसा कि मैंने पहले साझा किया था, मेरा एक स्मार्टफोन पहले ही खराब हो चुका था और दूसरा मैंने स्वयं तोड़ दिया — क्योंकि वह मेरी स्वतंत्रता में बाधा बन रहा था। लेकिन समस्या यहीं समाप्त नहीं होती। आज मेरे मेल से लेकर सोशल मीडिया और बैंकिंग तक, लगभग हर डिजिटल सेवा मेरे फोन और फोन नंबर से जुड़ी है। कोई भी पोर्टल लॉगिन करने जाओ, तो फ़ोन ऑथेंटिकेशन मांगा जाता है।

अब किसी दूसरे का फोन उधार लेकर काम चला रहा हूँ। लेकिन इस पूरी परिस्थिति ने एक बहुत गंभीर सवाल खड़ा कर दिया है —

अगर फोन आज के जीवन का अनिवार्य हिस्सा बन गया है, तो इसकी उम्र महज़ पाँच वर्ष क्यों होती है?

नियोजित अपव्यय (Planned Obsolescence)

आज के स्मार्टफोन एक साजिश के तहत बनाए जाते हैं। यह साजिश है – "नियोजित अल्पायु उत्पाद" की। पुराने जमाने में एक कहावत प्रचलित थी —

"दादा खरीदे, पोता बरते"
अब वह कहावत इतिहास हो गई। अब हम ऐसे उत्पादों के आदी हो चुके हैं जिनका जीवनकाल ही पहले से तय होता है — चार से पाँच वर्ष। उसके बाद या तो हार्डवेयर नाकाम हो जाएगा, या सॉफ़्टवेयर अपडेट बंद हो जाएंगे।

आप कहेंगे – "पुराना फोन रिपेयर करवा कर भी तो इस्तेमाल कर सकते हैं।"
हां, कर सकते हैं। मैं खुद कर रहा था — दस वर्ष पुराना फोन।
लेकिन अब उसमें अपडेट नहीं आते। हर छह महीने में नया अपडेट, नया एंड्रॉइड वर्ज़न, और नई सिक्योरिटी — ये सब ना मिले, तो वो फोन खुद-ब-खुद असुरक्षित और अनुपयोगी घोषित हो जाता है।
लेकिन क्या कभी आपने सोचा है, कि एक स्मार्टफोन बनाने में क्या-क्या लगता है?

एक औसत स्मार्टफोन में 50 से अधिक धातुएँ और दुर्लभ तत्वों का उपयोग होता है।

प्रमुख धातुएँ और उनके उपयोग:
धातु/तत्व उपयोग वैश्विक मांग में योगदान
कोबाल्ट (Cobalt) बैटरी (लिथियम-आयन) में 50% खपत मोबाइल और EVs में
लिथियम (Lithium) बैटरी निर्माण में EVs और फोन बैटरियों में तेजी से बढ़ोतरी
टैंटलम (Tantalum) माइक्रोचिप्स, कैपेसिटर डिजिटल डिवाइस का मूल तत्व
टंगस्टन (Tungsten) कंपन मोटर (वाइब्रेशन) छोटे उपकरणों के लिए अनिवार्य
सोना, चांदी, पैलेडियम, प्लेटिनम कनेक्टर, सर्किट बोर्ड महंगे और सीमित भंडार वाले धातु
एल्युमीनियम, तांबा, टिन केसिंग, वायरिंग भारी मात्रा में खपत
प्रभाव का दायरा:

खनिज दोहन का विस्तार – अफ्रीका, एशिया और दक्षिण अमेरिका के जंगलों में लाखों एकड़ भूमि खोदी जाती है।

वन्यजीवों पर संकट – खनन के कारण उनके आवास नष्ट होते हैं, शिकार और अवैध व्यापार भी बढ़ता है।

स्थानीय जनजातियों का विस्थापन – जल, जंगल और जमीन से काटे गए समुदायों का शोषण।

कार्बन उत्सर्जन – खनन और शोधन प्रक्रियाएं भारी मात्रा में ग्रीनहाउस गैसें छोड़ती हैं।

क्या आप जानते हैं — एक स्मार्टफोन बनाने में जितनी ऊर्जा खपत होती है, उससे अधिक उसके निर्माण के दौरान उत्सर्जित कार्बन का असर होता है?

हम विकल्प क्यों नहीं तलाशते?

हमने कभी यह मांग क्यों नहीं उठाई कि:

फोन अपग्रेडेबल हार्डवेयर के साथ आए।

सॉफ़्टवेयर 10 वर्षों तक अपडेट हो।

कंपनियाँ मरम्मत योग्य डिज़ाइन बनाएं।

फोन में प्रयोग होने वाली धातुओं का रिक्लेमेशन सिस्टम अनिवार्य हो।

हम एक ऐसे दौर में हैं जहाँ स्मार्टफोन का मतलब है: नए खनिजों की कब्रगाह।
समाधान क्या है?

✅ स्थायी तकनीक की मांग करें
✅ पुराने फोन को रिसायकल करें
✅ ओपन-सोर्स सॉफ़्टवेयर को बढ़ावा दें
✅ उपयोग की संस्कृति से हटकर संरक्षण की संस्कृति की ओर लौटें
✅ “दादा खरीदे पोता बरते” जैसी सोच को फिर से जीवित करें
यह केवल एक फोन नहीं है, यह एक जंगल है जो मरा है। यह एक जानवर है जो उजड़ गया है। यह एक बच्चा है, जो अपने ही गाँव से विस्थापित कर दिया गया है।

अगर हम नहीं जागे, तो अगली बार जब आप नया फोन खरीदेंगे, शायद आप अनजाने में किसी पहाड़ को खा जाएंगे — या किसी पक्षी का घर।

अब फैसला हमें करना है — सुविधा के नाम पर कितनी तबाही और कितना जीवन निगलना है।

साभार
✍🏻 ~ विशुद्ध चैतन्य

10/07/2025

प्रेम के हर इक वचन की, आज अंतिम रात साथी
आज कुछ मत शेष रखना!

आज से ख़ुद पर जताना, तुम स्वयं अधिकार अपने
सौंप कर संकल्प सारे, हम चले संसार अपने
आज से हम हो रहे हैं, इक नदी के दो किनारे
आज अपनी बाँह में ही बांध लो अभिसार अपने

आज से केवल नयन में नेह के अवशेष रखना
आज कुछ मत शेष रखना!

चांद से अब मत उलझना, याद कर सूरत हमारी
अब नदी की चाल में मत ढूंढना कोई ख़ुमारी
अब नहीं रंगत परखना धूप से, कच्चे बदन की
अब हमारी ख़ुश्बुओं से हो चलेंगे फूल भारी

मात्र सुधियों में हमारे श्यामवर्णी केश रखना
आज कुछ मत शेष रखना!

देखकर पानी बरसता, आज से बस मन रिसेगा
अब हमेशा प्रेम के हर रूप पर दरपन हंसेगा
मेघ की लय पर सिसकती बूंद अब छम-से गिरेगी
आज जूड़े में ज़रा-सा अनमना सावन कसेगा

है कठिन अब बिजलियों के प्राण में आवेश रखना
आज कुछ मत शेष रखना!

साभार
©मनीषा शुक्ला

02/07/2025

सुनो देवसेना !

जानती हो अनिंद्य सौन्दर्यं का प्रतिमान क्या है ??
पिंगल वसनो से प्रच्छन्न देह का अभिमान क्या है ??

सुनो फिर !.... वो रहस्य जो कही कहा-सुना नही जाता ,
देखो वो सत्य सौंदर्य का जो कही सिला-बुना नही जाता ।

सौन्दर्य वह है , जो अद्वैत मे भी द्वंद्व उत्पन्न कर दे ,
विश्वामित्र जैसे तपस्वी को मदनोत्सव मे मग्न कर दे ।

सौंदर्य वह हैं , जो नश्वर देह को " स्व " का शोध करा दे ,
पाराशर जैसे विदेह का "भास" हर ,रति का बोध करा दे ।

सौंदर्य वह है जो देह के जड़ रसायनों मे चैतन्य के संचरण को साध्य कर दे !
पुरुरवा जैसे स्थिरप्रज्ञ को उर्वशी के " अ-दृश्य " दर्शन को बाध्य कर दे !

सौंदर्य वह है , जो नयनों से प्रविष्ट होकर हृदयस्थ आत्म को विचलित कर दे ,
अर्जुन जैसे पशुपति को स्वयंवर में चलित मत्स्य भेदने को उद्वेलित कर दे !

सौंदर्य वह है , जो नैराश्य को जय कर जीवन को स्पंदित कर दे ,
नारद जैसे ब्रह्मस्थ को वानर रूप धरवा महामाया को रंजित कर दे !

सौंदर्य वह है जो परम पुरुष को भी पुरुष "मात्र" बनने का अपयश कर दे ,
गुणातीत ,योगीश्वर महादेव को भी मोहिनी के अनुगमन को विवश कर दे !

सौंदर्य वह है ,जो अव्यक्त को व्यक्त कर दे सृष्टि का सृजन करने ,
शंकर सन्यासी निर्मोही महीनों श्वसुराल रहे गौरजा का आलिंगन करने !

सुनो सुभद्रे ! इस मृदामयी वर्ण पर जो प्रकाश को बद्ध कर लिया है तुमने ,
अनावृत पार्श्व , सुलोचन दृष्टिशरो से जो त्रिभुवन अवरुद्ध कर दिया है तुमने !

वक्र कटि ,वक्र ग्रीवा ,वक्र दृष्टि संग मुक्तावलि की मणियों को झंकृत कर दिया है तुमने ,
रक्तमर्यादित पीत वस्त्रो को धारण कर वृहस्पति को उपकृत कर दिया है तुमने ।

ये जो सुरम्य गर्त निर्मित है पार्श्व मे तुम्हारे ,उसे कैसे शब्दो से रचु मैं सायास ,
दृष्टि जहाँ जाकर लुप्त हो जाती है ज्यूँ श्याम विवर्त मे लीन होता है प्रकाश !

देखो ! सघन कृष्ण केशराशि की अपने शत्रु श्वेत पुष्पो से ये कैसी युति है ,
रोमहीन याज्ञसेनी से गौर सुतल उदर पर परावर्तित होती ये कैसी धवल द्युति है !

आज यह ग्लानि है कि क्यों दिव्यचक्षु हम मानवो को सिद्ध नही होते है ,
पार्श्व दिखता है जिस क्षण आवक्ष ओझल हो जाता है ,ज्यो अहर्निश होते है !

हे प्रकृति ! दे दृष्टि ,...एक क्षण में ही चतुर्दिक सुदर्शन नैत्रबद्ध कर लूं ,
क्षीण कटि , पुष्ट नितंब ,उन्नत उरोज संग मुखमंडल को हृदयस्थ कर लूं !

भंगिमाएं तुम्हारी हे सौंदर्या ! निष्प्राण प्रस्तर को चैतन कर दे,
मुस्कान मनोहर त्रिभुवनमोहिनी , दृष्टिपात से तांडव कर दे !


दुर्गम ज्ञान है ,दुर्गम भक्ति , दुर्गम संसार सागर विकराल ,
विचलित धृति ,विचलित मति , बन धारणा ध्यान सहस्त्रार धरो ।
सुनो सुदर्शना ,सुनो सुहासिनी , मेरा विनय प्रस्ताव सुनो ,
बनकर कुंडलिनी सुषुम्ना से होकर मुझ शिव संग अभिसार करो !!
मुझ शिव संग अभिसार करो !!

#पुरोहितजी_कहिन

--------------------------------------------
( प्रिय मित्रों ! संभव है बहुत से मानव मन को ऐसी रचनाये रुचिकर ना हो यदि ऐसा अनुभव करें तो मुझे क्षमादान देकर इस रचना को अनदेखा कर दे !
मेरा उद्देश्य रति एवं श्रृंगार की साहित्यिक परम्परा को यथासंभव समृद्ध करने का गिलहरी प्रयास करना है , मेरा स्पष्ट मानना है कि ऐसा साहित्य तरंग उत्पन्न करता है ,रस उत्पन्न करता है ,आनंद उत्पन्न करता है किंतु कोई यदि विकार ग्रहण कर लेता है तो यह उसकी प्रकृति का दोष माना जाना चाहिए क्योंकि सज्जन कमल के समान प्रत्यक्ष संपर्क के होते हुए भी निस्पृह रहते है जबकि दुर्जनो का क्या है वे तो प्रतिच्छाया (परछाई) के दर्शन पर भी विकारित हो जाते है !

अस्तु शुभरात्रे !

21/06/2025

जब भी कहीं से...किसीके पास से वापिस लौटना हो तो याद रखो....
खुद को पूरा का पूरा समेट कर
साथ ले आना...
कोई ज़रा सा हिस्सा भी वहां छूटने न पाए.....और.....और...
जब भी कोई...जा रहा हो तुम से दूर...तुमको छोड़ कर तो...याद रखो...उसे पूरा मत जाने देना...

उसका कुछ हिस्सा...कुछ यादें...
अपने पास रख लेना...उस से छिपा कर ,उसकी नज़र बचा कर...
तन्हाई भी तो काटनी होगी न...

21/06/2025

क्या कभी आपने सोचा है कि भारत में यूट्यूब, गूगल या फ़ेसबुक क्यों नहीं बन सका?

मेरे एक मित्र से मैं अभी कुछ दिन पहले मिला.. उनका बेटा जो मात्र 8 साल है, वो सुपर इंटेलीजेंट बच्चा है.. इतना समझदार कि लगता है कि वो कोई बहुत बूढ़ी आत्मा है.. अपने से बड़ों की इतनी इज़्ज़त करता है और इतना संस्कारी है कि क्या बताऊं.. मगर उनके पिता को देखिए तो लगता है कि जैसे ये आदमी बच्चों के लिए तैयार ही नहीं था, ज़बरदस्ती बाप बन गया है

उनका बच्चा, जो हमारे साथ खाना खा रहा था, खाने के बाद उसको डकार आई, बस इसी डकार की वजह से उसके पिता ने उसको बीस बात सुनाई.. ऐसे करते हैं? जंगली हो क्या, ये है, वो है.. वो बेचारा एकदम डर गया.. मैने समझाया मगर वो समझे नहीं... मेरे अपने बच्चे ज़ोर से पादते हैं तब तो मैं उन्हें इस बात का एहसास नहीं होने देता हूं और ये डकार आने पर बच्चे को बीस बात सुना रहे हैं.. मुझे अजीब लगा मगर मैं क्या कर सकता था.. वो रजिस्टर्ड पिता थे उसके

जिन लोगों ने यूट्यूब का निर्माण किया है, उनके बच्चे जब कैमरा पा गए तो तो हरदम उस से शूटिंग ही किया करते थे.. रास्ता चलते, मॉल जाते, डॉक्टर के यहां जाते, किसी की मौत में जाते, यहां तक कि हर समय उनके हाथ में कैमरा होता था और वो सब कुछ रिकॉर्ड करते थे.. और उनके माँ बाप ये स्वीकार करके चलते थे कि इसे कैमरा का शौक है, ये हर जगह कैमरा ले कर चलेगा.. आप सोचिए कि आप क्या अपने बच्चों की किसी की मौत शूट करने देंगे? आप डकार तो लेने नहीं देते हैं पब्लिक में

मेरा बेटा जब 5 साल का था, उसे लेकर मैं अपने एक मित्र के यहां गया.. मेरे मित्र की माँ मेरे बेटे को जबरदस्ती खींच कर अपनी गोद में बिठाने लगीं.. मेरे बेटे ने पहले विरोध किया, क्योंकि मेरे घर में ऐसे जबरदस्ती खींच के गोद में बिठाने का माहौल नहीं है.. मगर जब वो औरत नहीं मानी और उस ने 5 साल के बच्चे की इच्छा और पसंद की कोई परवाह किए बिना उसे बार बार खींचना चाहा तो मेरे बेटे ने ज़ोर से चिल्ला के ख़ूब कस के उन्हें डांटा.. कहा कि आपको तमीज़ नहीं है कि बच्चों से कैसे बर्ताव करते हैं? उसके जवाब में वो बेशर्मों की तरह हंसने लगीं और कहने लगीं "बड़े शैतान हैं चीकू, बात नहीं मानते हैं".. उसके बाद कभी दुबारा मेरा बेटा उनके यहां नहीं गया

ये भारत है.. जहां 99% लोगों को ये तमीज़ ही नहीं होती है कि उनके घर में एक इंसान का बच्चा है.. वो माता, पिता, चाचा, चाची, आंटी वगैरह बन जाती हैं मगर उन्हें एक 5 साल के बच्चे के साथ रहने की तमीज़ नहीं आती है.. बच्चा उनके लिए एक कुत्ता या फिर कोई एक जानवर होता है.. वो जिस किसी भी बात पर चाहें उसे मार दें, उसे उसका काम करने से रोक दें, उसकी पसंद, नापसंद कुछ भी इनके लिए होती हो नहीं है.. ये जगराता में जायेंगे, बच्चा वहां जायेगा, ये नाचेंगे तो बच्चे को नचाएंगे, ये बोलेंगे तो बच्चा पोयम सुनाएगा नहीं तो इनकी मार खाएगा.. बच्चा मतलब कुछ नहीं.. ये अजीब तरह के लोग होते हैं.. तभी मैं इनके परिवार बनाने के खिलाफ़ होता हूं मगर आप समझते नहीं हैं.. आपके लिए सेक्स करने बच्चा पैदा करना सबका अधिकार होता है भले ख़ुद इन्हें बेसिक जीवन जीने की समझ न हो

कितने माता पिता को मैने देखा है कि वो बच्चों को खिलौना ला कर देते हैं तो उसे सेफ जगह उठा के रख देते हैं.. कि खिलौना टूट न जाए.., सोचो.. खिलौना, वो भी टूट न जाए.,., वो खिलौने वाली कार की चाभी अपने हाथ से भरकर चलाते हैं कि उनका बच्चा ज़्यादा ऐंठ देगा चाभी तो कार टूट जायेगी.. ये इनका खिलौना और खेलने वाले का कांसेप्ट है और ये माता पिता बन जाते हैं जो कि इनकी संस्कृति में भगवान होता है

यूट्यूब, गूगल, फेसबुक तुम्हारे बच्चे कैसे बनायेंगे? तुम उन्हें डकार लेने, पादने, ज़ोर से हंसने, ज़ोर से खेलने तक के लिए तो डांटते हो.. तुम माता पिता बनने लायक होते नहीं हो.. तुम खुद न कभी खेल पाए, न जी पाए.. बस सेक्स करके बच्चा ले आए इस धरती पर.. और तुम्हें लगता है तुम्हारा ये अधिकार है.. जबकि तुम माता पिता बनने के लायक़ ही नहीं होते हो.. तभी तुम्हारी पीढ़ियां यूट्यूब, गूगल आदि में नौकरी करती हैं.. उसे बना नहीं पाती हैं.. तुम बच्चे नहीं, "नौकर" पैदा करते हो.. आज्ञाकारी "नौकर"

~सिद्धार्थ ताबिश

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