24/07/2025
जीवन के लिए चार दिव्य सूत्र: मैत्री, करुणा, मुदिता और उपेक्षा
पतंजलि योगसूत्र (साधनपाद – सूत्र 1.33)
“मैत्री करुणा मुदिता उपेक्षाणां सुखदुःखपुण्यापुण्यविषयाणां भावनातश्चित्तप्रसादनम्॥”
सुखी व्यक्तियों के प्रति मैत्री (मित्रता),
दुखी व्यक्तियों के प्रति करुणा (दया),
पुण्य आत्माओं के प्रति मुदिता (प्रसन्नता),
और अपुण्य या दोषयुक्त व्यक्तियों के प्रति उपेक्षा (वैराग्यपूर्ण तटस्थता) —
इनका भाव करने से चित्त प्रसन्न और शांत होता है।
पतंजलि का यह सूत्र — “मैत्री, करुणा, मुदिता, उपेक्षा” — न केवल योगियों के लिए बल्कि हर मनुष्य के लिए एक दिशा-सूचक दीपक के समान है। आज के समाज में जहाँ ईर्ष्या, द्वेष, प्रतिस्पर्धा और जलन लोगों को भीतर से खोखला कर रही हैं, यह सूत्र हमें आंतरिक शांति, स्थिरता और प्रसन्नता की ओर ले जाता है।
1. मैत्री – मित्रता और स्नेह का भाव
जब हम दूसरों के सुख से ईर्ष्या नहीं करते, बल्कि उसमें सहभागी बनते हैं, तब जीवन में सच्चा संतोष आता है।
मैत्री का अर्थ है — बिना किसी स्वार्थ के, दूसरे के कल्याण की भावना रखना।
आज समाज में किसी की तरक्की देख, बहुत से लोग कुढ़ते हैं। इस स्थिति में मैत्री की भावना हमें भीतर से स्वस्थ करती है।
2. करुणा – दुखियों के प्रति संवेदना
करुणा का अर्थ केवल दया नहीं, बल्कि दूसरों के दुःख को समझना और उस दुःख को कम करने की सच्ची भावना रखना है।
जब हम किसी दुःखी के प्रति संवेदनशील होते हैं, तो हमारे भीतर मानवीयता का सच्चा स्वरूप विकसित होता है। करुणा हमें कठोरता से बचाती है और हमारे चित्त को कोमल बनाती है।
3. मुदिता – दूसरों की सफलता में प्रसन्न होना
यह सबसे कठिन किन्तु सबसे ऊँचा गुण है।
जब हम किसी पुण्यशील, सफल, सच्चे मनुष्य की उन्नति देखकर हर्षित होते हैं, तब यह हमारी आत्मा की विशालता दर्शाता है।
आज जहां लोग जलन और स्पर्धा में जकड़े हुए हैं, वहाँ मुदिता हमें विष के स्थान पर अमृत पीने का विकल्प देती है।
4. उपेक्षा – दोषियों के प्रति तटस्थता
जब कोई व्यक्ति हमें दुःख दे या अनाचार करे, तो उसके प्रति उपेक्षा का भाव रखना — यह कोई पलायन नहीं, बल्कि आत्म-संरक्षण और विवेक का संकेत है।
उपेक्षा का अर्थ है – न तो घृणा, न क्रोध, न बदला – बस शांत तटस्थता, जैसे कमल जल में रहते हुए भी उससे अछूता रहता है।
क्यों ज़रूरी हैं ये चार सूत्र आज के युग में?
• क्योंकि हर मनुष्य के भीतर अशांति, असंतोष और असहिष्णुता बढ़ रही है।
• क्योंकि सोशल मीडिया, विज्ञापन और प्रतिस्पर्धा ने हमें दूसरों से तुलना करने की आदत डाली है।
• क्योंकि जीवन में शांति अब “साधारण” नहीं रही – उसे साधना पड़ता है।
यह सूत्र हमें सिखाता है कि चित्त की शांति कोई बाहर की चीज़ नहीं है, वह हमारे दृष्टिकोण और भावनाओं का परिणाम है।
पतंजलि का यह सूत्र कोई धार्मिक वाक्य नहीं, बल्कि एक मानव धर्म है।
यदि हम इन चार भावनाओं को अपने जीवन में उतार लें —
तो न केवल हमारा मन शांत होगा, बल्कि हमारा समाज भी एक सुंदर, स्नेहमय स्थान बन जाएगा।
मैत्री – हमें जोड़ती है,
करुणा – हमें नम्र बनाती है,
मुदिता – हमें बड़ा बनाती है,
उपेक्षा – हमें बचाती है।
इन चारों को अपने जीवन के चार स्तंभ बनाएं — ताकि हमारा चित्त प्रसन्न हो, और हमारा जीवन शांतिमय।
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