22/07/2025
पंच क्लेश – हमारे दुखों की पाँच जड़ें
हर इंसान के जीवन में कोई न कोई दुःख जरूर होता है — मन की बेचैनी, रिश्तों की उलझन, इच्छाओं की पूर्ति न होना या फिर किसी प्रिय के खो जाने का डर।
योग कहता है — इन सभी दुखों की जड़ें हमारे ही भीतर होती हैं। इन्हें ‘पंच क्लेश’ कहा गया है।
योगसूत्र 2.3:
"अविद्यास्मितारागद्वेषाभिनिवेशाः क्लेशाः॥"
अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष और अभिनिवेश — ये पांच क्लेश हैं जो हमारे दुःखों की जड़ हैं।
1. अविद्या – जो जैसा है, उसे वैसा न देख पाना | गलत समझ ही सबसे बड़ा दुख है
योगसूत्र 2.5:
"अनित्याशुचिदुःखनात्मसु नित्यशुचिसुखात्मख्यातिरविद्या॥"
जो नाशवान है, उसे शाश्वत समझना, जो अशुद्ध है, उसे शुद्ध मानना, जो दुःखद है उसे सुखद मानना, और जो आत्मा नहीं है उसे आत्मा समझना — यही अविद्या है।
हम चीजों को जैसे हैं, वैसे नहीं देख पाते।
अस्थायी चीज़ों में स्थायित्व ढूंढते हैं — शरीर, पैसा, रिश्ते, पद, सब बदलने वाले हैं, लेकिन हम इन्हें पकड़कर बैठ जाते हैं।
👉 यही भ्रम है — यही अविद्या है।
और यहीं से दुखों की शुरुआत होती है।
2. अस्मिता – "मैं" का झूठा एहसास
योगसूत्र 2.6:
"दृग्दर्शनशक्त्योरेकात्मतेवास्मिता॥"
जब आत्मा और बुद्धि को एक मान लिया जाता है, तब अस्मिता पैदा होती है — "मैं ही शरीर हूँ", "मैं ही सोच हूँ"।
जब हम अपने नाम, काम, पहचान को ही अपना 'स्वरूप' मान बैठते हैं, तब हमारा अहं बढ़ता है, दुख भी। जब हम खुद को केवल नाम, शरीर, काम या पहचान से जोड़ लेते हैं — "मैं डॉक्टर हूँ", "मैं माँ हूँ", "मैं बड़ा आदमी हूँ", "मैं फेल हो गया", "मैं बहुत कुछ हूँ" —
तो ये ‘मैं’ बहुत भारी हो जाता है।
👉 यही अहं है — असली 'मैं' को भूल जाना।
3. राग – जो अच्छा लगा, उसे बार-बार पाना चाहना | सुख की आदत लग जाना
योगसूत्र 2.7:
"सुखानुशयी रागः॥"
जो अनुभव सुखद रहे हों, उनसे बार-बार जुड़ने की इच्छा ही राग है।
हमें जो अच्छा लगता है — मन करता है बार-बार मिले। हम सबको कुछ न कुछ अच्छा लगता है — कोई स्वाद, कोई व्यक्ति, कोई अनुभव। और जब वो चीज़ नहीं मिलती, तो बेचैनी होती है।
👉 यही राग है — सुख की लालसा।
4. द्वेष – जो दुख दिया, उसे भूल नहीं पाना
योगसूत्र 2.8:
"दुःखानुशयी द्वेषः॥"
जो अनुभव दुखद रहे, उनसे दूर भागने या नफरत करने की प्रवृत्ति ही द्वेष है।
कोई हमें अपमानित करता है, मन दुखी होता है। हम उसे भूल नहीं पाते।
हर बार उसका चेहरा, उसकी बात याद आती है — यही द्वेष है। जिससे कभी दुख मिला, चोट लगी, अपमान हुआ — उसे देखकर ही मन सिमट जाता है। हम उसे मन से निकाल नहीं पाते।
👉 यही द्वेष है — दुःख की स्मृति से उपजा गुस्सा या घृणा।
5. अभिनिवेश – खो जाने का डर, मौत का भय
योगसूत्र 2.9:
"स्वरसवाही विदुषोऽपि तथारूढोऽभिनिवेशः॥"
मृत्यु का भय — ज्ञानी व्यक्ति में भी होता है। यह जीवन को छोड़ने का डर है।
यह सबसे गहरा क्लेश है — मृत्यु का डर, हमें अपनों को खोने का डर सताता है, बीमार पड़ने या बूढ़ा होने का डर भी।
👉 यही अभिनिवेश है — सबसे सूक्ष्म लेकिन सबसे गहरा क्लेश। यही डर हमें बाँधता है, और जीवन में खुलकर जीने नहीं देता।
क्या करें इन क्लेशों का?
योग कहता है —
पहचानिए इन्हें, स्वीकार कीजिए, और धीरे-धीरे योग के अभ्यास से इनकी जड़ों को ढीला कीजिए।
योग कोई चमत्कारी उपाय नहीं देता, बल्कि एक धैर्यपूर्ण साधना का मार्ग बताता है:
• रोज़ ध्यान कीजिए
• खुद से संवाद करें — स्वाध्याय (आत्म-चिंतन) की आदत डालिए, "मैं किस क्लेश में फँसा हूँ?"
• धीरे-धीरे वैराग्य (अनासक्ति) को अपनाइए
• जीवन को जैसा है, वैसा स्वीकार करना सीखिए
• और अपने आप से पूछते रहिए —
"क्या मैं राग में हूँ?"
"क्या मैं किसी बात से द्वेष पाल रहा हूँ?"
"क्या मैं कुछ खोने से डर रहा हूँ?"
ये प्रश्न ही आपको मुक्त करना शुरू कर देंगे।
पहचान, स्वीकार और अभ्यास — यही है क्लेशों से मुक्ति का पहला कदम।
दुख मिटाना है तो जड़ तक जाना होगा, जब जड़ समझ आ जाए, तब इलाज आसान हो जाता है
दुख जीवन का हिस्सा है, पर उसका कारण समझना — और उससे मुक्त होना — योग का उपहार है।
पंच क्लेश केवल दर्शन नहीं, हमारे रोज़मर्रा के जीवन की सच्चाई हैं।
जब हम इन्हें देखना शुरू करते हैं, तब जीवन हल्का, सरल और शांत होने लगता है।
दुख बाहर की दुनिया से नहीं आते —
वे हमारे भीतर के क्लेशों से पैदा होते हैं।
योग हमें सिर्फ शरीर लचीला बनाने का साधन नहीं देता,
बल्कि मन को हल्का और आत्मा को मुक्त करने का रास्ता देता है।
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