Jeevniya Ayurved

Jeevniya  Ayurved Jeevniya Ayurveda is best Ayurveda Treatment Center in Gurgaon India near Vishal Mega Mart. We provi They were supposed to be used to protect oneself from evil.

सभी का स्बागत है ..कृपया यहाँ आयुर्वेद / प्राकर्तिक चिकित्सा /रेकी/स्पर्श चिकित्सा /स्वास्थ्य सम्बंधित यौगिक चिकितसा प्रयोग से अन्यथा पोस्ट न करें ..अन्य पोस्ट स्वत हटा दी जाएँगी ..लाभ लें और व्यवस्था में सहयोग दें ..धन्यवाद

The word occult comes from the Latin word occultus (clandestine, hidden, secret), referring to "knowledge of the hidden".[1] In the medical sense it is used to refer to a structure or process that is hidden, e.g. an "occult bleed"[2] may be one detected indirectly by the presence of otherwise unexplained anemia. The term occult is also used as a label given to a number of magical organizations or orders, the teachings and practices taught by them, and to a large body of current and historical literature and spiritual philosophy related to this subject. Occult concepts have existed in Hinduism from the time of vedas and it is ingrained into the Hindu thought.The Atharvana Veda contains a number occult practices. Tantra, originating in India, includes amongst its various branches a variety of ritualistic practices ranging from visualisation exercises and the chanting of mantras to elaborate rituals. There a hundreds of mystic amulets or Yantra in Hinduism for various deities. we will try to explore & share the knowledge of occultism mentioned in hindu scriptures / practised by hindu deiteis / sages from millions of years thru' experiences & knowledge shared from "GURU SHISHYA" parampras. In addition , it will also be a place for sharing thoughts for healthy life principals as per ayurveds/accupuncture & other various natural therapies existing on earth ...language may be a barrier in some case...but feelings matters ....let it be in english aur hindi , but at last knowledge is knowledge.....

Please post here only related to ayurveda/natural therapy/yogic remedies/healthy living practices...else post will be deleted .......plz co-operate all to make it a better place.......

सभी का स्बागत है ..कृपया यहाँ आयुर्वेद / प्राकर्तिक चिकित्सा /रेकी/स्पर्श चिकित्सा /स्वास्थ्य सम्बंधित यौगिक चिकितसा प्रयोग से अन्यथा पोस्ट न करें ..अन्य पोस्ट स्वत हटा दी जाएँगी ..लाभ लें और व्यवस्था में सहयोग दें ..धन्यवाद
ओम् ओम् ओम्

09/11/2023

..बदलते मौसम में बुखार होना आम बात है .घरेलु या स्वयं चिकित्सा के २ – ३ दिन बाद भी लक्षणों में आराम ना होने पर हम डॉक्टर का रूख करते है और डॉक्टर जांच पड़ताल का . आम तौर पर होने वाली रक्त की जांच में डेंगू मलेरिया और टाइफाइड के एंटीजन की पुष्टि की जाती है और पुष्टि होने पर तो उस रोग के अनुसार उपचार होगा ही पर पुष्टि ना होने पर भी वायरल बुखार कहकर निदान किया जाता है .अब इनमे से डेंगू भी वायरस के संक्रमण से ही होता है तो अन्य वायरल बुखारों की तरह इसे भी लेना चाहिए परन्तु इसमें रक्तस्रावी होने की संभावना के चलते समाज में भय ज्यादा है .
आइये , डेंगू से जुड़े कुछ तथ्यों पर गौर करते हैं
डेंगू वायरस से संक्रमित मच्छर द्वारा काटे जाने पर ही डेंगू बुखार की संभावना होती है . संभावना इसलिए क्योंकि हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) यदि संक्रमण से नहीं लड़ पाती तभी रोग होता है इसलिए मच्छर तो बहुत लोगों को काटता है पर सभी को संक्रमण नहीं होता . इसका अर्थ ये हुआ कि मच्छरों की रोकथाम के साथ साथ बेहद महत्वपूर्ण है अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) के संवर्धन का उपाय करना .
एंटी वायरल दवाएं – गंभीर संक्रमण के लिए एकाध विशिष्ठ दवाओं को छोड़कर आम तौर पर वायरल संक्रमण के खिलाफ कोई कारगर दवा नहीं है . प्राकृतिक रूप से सामान्य वायरल बुखार सप्ताह दस दिन में अपने आप ही ठीक हो जाता है इसलिए केवल लक्षणों जैसे उलटी ,बुखार, जी-मचलाना , जुकाम - खांसी आदि के लिए ही हल्का फुल्का उपचार किया जाना चाहिए . एंटी बायोटिक्स दवाएं केवल बैक्टीरियल संक्रमण में ही उपयोगी होती हैं वायरल संक्रमण में नहीं इसलिए ऐसी विशिष्ठ दवाओं का प्रयोग जाने अनजाने ना केवल हमें नुकसान पहुंचाता है बल्कि डेंगू के उपद्रवों को भी बढ़ा देता है . पेरासिटामोल के अलावा अन्य दर्दनाशक व बुखार उतारने की तेज़ दवाये प्लेटलेट्स को ज्यादा मात्रा में तोड़ कर रक्तस्राव का खतरा बढ़ा देती हैं
प्लेटलेट्स – प्लेटलेट्स को लेकर समाज में अनावश्यक रूप से एक भय का माहौल बन गया है
(या बनाया गया है). रक्त में आवश्यक रूप से रहने वाले प्लेटलेट्स डेढ़ लाख से साढ़े चार लाख के बीच रहते हैं . किसी भी रोग में अथवा वायरल बुखार में इनकी संख्या घटती बढती रहती है . डेंगू बुखार हो जाने के 4-5 दिन के बाद प्लेटलेट्स के कण टूटने लगते हैं जो कि कुछ दिनों में ही अपने आप सामान्य होने लगते हैं पर भय का माहौल इतना ज्यादा है पहले दुसरे दिन भी रक्त की सामान्य जाँच होने पर भी रोगी या उसके परिजनों का ध्यान केवल प्लेटलेट्स की संख्या पर रहता है और 1.5 लाख से कम होने पर भय और चिंता दोनों शुरू हो जाते हैं जबकि 20 से 25 हज़ार तक प्लेटलेट्स आ जाने पर बाहर से रक्त या प्लेटलेट्स चढाने की आवश्यकता होती है लेकिन एक लाख से कम होते ही रोगी के परिजनों का जोर रोगी को हस्पताल में भरती कराने का रहता है और हालात यहाँ तक हो जाते हैं की निजी या सरकारी किसी भी हस्पताल में बिस्तर तक खाली नहीं मिलता... इतने भय के प्रचार की सचमुच जरुरत नहीं है .
क्या करना चाहिए – किसी भी रोग से मुकाबला करने के लिए पर्याप्त जानकारी पहली आवश्यकता है . डेंगू होने पर भयग्रस्त न हों इसे भी अन्य वायरल बुखार की तरह समझें जो कि 7-8 दिनों में स्वतः ही ठीक हो जाता है . हलके फुल्के लाक्षणिक उपचार के साथ साथ पर्याप्त विश्राम , .भोजन में दलीया खिचड़ी, नारियल पानी, घर का बना बिना मिर्च मसालों का सब्जियों का सूप, मूंग दाल मसूर दाल, चपाती , पुराना चावल , घीया तोरई टिंडे आदि सब्जियां व अधिक तरल पदार्थों का सेवन और लघु सुपाच्य आहार का सेवन करना चाहिए किसी खास फल और कोई दूध – विशेष डेंगू में बहुत लाभकारी है ऐसी अफवाहें आमतौर पर आती जाती रहती हैं जो प्रामाणिक नहीं होती
तुलसी गिलोय लौंग अदरक अमलतास त्रिफला कुटकी चिरायता आदि आयुर्वेदिक औषधियां डेंगू बुखार में उपयोगी रहती हैं जिन्हें किसी वैद्य के परामर्श से लिया जाना चाहिए
चिकित्सक के परामर्श से OPD स्तर ही उपचार पर जोर दें , भयग्रस्त होकर अथवा MEDICLAIM POLICY की वज़ह से हस्पताल में भरती होने के लिए अनावश्यक जिद न करें . प्लेटलेट्स की संख्या 20-25 हज़ार से नीचे जाने पर और रक्तस्राव होने या संभावना होने पर सघन निगरानी की जरुरत होती है उसके लिए चिकित्सक का निर्णय ही उपयुक्त होता है .. आंकड़े गवाह हैं कि डेंगू से और प्लेटलेट्स घटने से आमतौर पर मृत्यु नहीं होती है
गिलोय और पपीते के पत्ते – पिछले 8-10 वर्षों में गिलोय और पपीते के पत्तों का प्रयोग डेंगू और प्लेटलेट्स संख्या बढाने के लिए काफी प्रचलित हुआ है , यह लाभकारी भी है . अनेक दवा निर्माता कंपनियां इनका रस बोतल में बंद करके खूब बेच रही हैं. कडुवा होने के बावजूद इन दिनों इनका प्रयोग खूब हो रहा है हालाँकि ताज़ा लेना ही ज्यादा लाभकारी है .
प्लेटलेट्स के बारे में यहाँ ये भी जानना चाहिए कि इनकी संख्या 5 लाख से ऊपर जाना भी सुरक्षित नहीं होता बल्कि रक्त केंसर की स्थिति बनने का डर होता है . लेकिन गिलोय का प्रयोग दोनों ही स्थितियों में बहुत लाभकारी है . गिलोय प्लेटलेट्स की संख्या को अस्थिमज्जा (BONE MARROW) पर सकारात्मक प्रभाव डालकर संतुलित करती है. इसके अलावा गिलोय रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढाने में विशेष उपयोगी है . इसका प्रयोग ऋतुसंधिकाल (एक मौसम से दूसरे मौसम के बीच के 15 दिन) में अथवा बरसात शुरू होने से पहले से लेकर बरसात समाप्त होने तक के 3 महीने रोजाना सेवन किया जाये तो शरीर के हमेशा रोगों से बचा रहने के साथ साथ ये भी संभव है कि संक्रमित मच्छर के काटने के बावजूद डेंगू मलेरिया ना हो .. ये ही रोगरोधी ताक़त (Immunity) बढ़ने का लक्षण है.
कभी कभी वायरल बुखार में होने वाला जोड़ों का दर्द और सूजन 2 – 3 महीने बाद भी ठीक नहीं होता जिसे चिकनगुनिया या चिकनगुनिया जैसा कहा जाता है . ऐसे लगभग 40 % रोगी आमवात , गठिया बाय या रूमेटिक आर्थराइटिस में परिवर्तित हो जाते हैं इसके उपचार में भी आयुर्वेदिक चिकित्सा काफी कारगर रहती है
🙏🙏🙏
डॉ सुनील आर्य
ऍम. डी.(आयु)

लंदन के हवाले से छपी ये बात खबर के लायक़ है , ये हम भारतीयों के लिए आश्चर्य से ज़्यादा अफ़सोस की बात है क्योंकि हज़ारों ...
20/09/2023

लंदन के हवाले से छपी ये बात
खबर के लायक़ है , ये हम भारतीयों के
लिए आश्चर्य से ज़्यादा अफ़सोस की
बात है क्योंकि हज़ारों वर्षों से ये हम
जानते,मानते और अपनाते आए हैं
-
…आयुर्वेद चिकित्सा का सिद्धांत है -
'ज्वरे लंघनम्’.. यानी बुख़ार में
सर्वप्रथम लंघन करना चाहिए ..
लंघन के दो मतलब हैं लघु अन्न
माने हल्का/कम भोजन और
दूसरा भोजन निषेध माने ना खाना ..
आयुर्वेद हमेशा इस बात पर ज़ोर देता
है कि आहार सेवन अग्नि के सापेक्ष
होना चाहिए मतलब भूख के हिसाब
से भोजन लेना ..
अब अग्नि क्या है ?
पाचक शक्ति .. माने जो खाया
वो पच जाए..
खाया कब जाता है ?
जब भूख लगती है ..
भूख कब लगती है ?
जब पचाने वाले रस या अम्ल या
एंज़ायम पेट में आने लगते हैं ..
वो कब आते हैं ?
आम तौर पर निर्धारित समय होने
पर और शरीर को ऊर्जा की ज़रूरत
पड़ने पर (अथवा स्वादिष्ट भोजन देखकर , सोचकर भी उद्दीपन होता है )..
इसका मोटा अर्थ ये हुआ कि भोजन भीतर
जाने से पहले पाचन की व्यवस्था होती है ..
अभी अग्नि की बात पूरी नहीं हुई
ये तो केवल खा लेने तक हुआ है
असली खेल तो बाक़ी है !
खा लिया .. पर हज़म नहीं हुआ
क्योंकि बिना भूख खाया था
और जठराग्नि या पाचक अग्नि कमजोर है
माने थोड़ी भूख थी पर खाया ज़्यादा या
मुश्किल से पचने वाला खाया
माने अग्नि की ताक़त से ज़्यादा
तो ?
वो भी हज़म नहीं होगा
पेट का फूलना , डकारें , खट्टा पानी
बेचैनी , खाते ही भागना , उलट देना और
भी ढेर सारी परेशानियाँ
सिर्फ़ अग्नि सापेक्ष भोजन
की उपेक्षा करने से ..
क्यों होता है ऐसा ?
आयुर्वेद कहता है
" रोगाः सर्वेsपि मंदाग्नौ “
माने रोग कोई भी हो कारण एक ही है
अग्नि का मंद होना
चाहे बाहर के कीटाणु विषाणु रोगाणुओं के हमलों से होने वाला इन्फ़ेक्शन हो ,
अग्नि कमजोर तो इम्यूनिटी कमजोर
या फिर अपने ही भीतर से होने वाले
जीवन शैली जनित या ऑटो इम्यून रोग
.. कारण एक ही है
अग्नि का बिगड़ा हुआ होना ..
आख़िर अग्नि मंद से होता क्या है ?
हाँ ! ये ही समझने की बड़ी बात है ..
जैसे बाहर आग कमजोर होने पर
लकड़ी से राख नहीं कोयला बनता है
वैसे ही समझें कि
पेट की अग्नि
(डायजेस्टिव फ़ायर + मेटबॉलिक फ़ायर )
कमजोर होने पर खाए हुए अन्न से सबसे अंतिम अंश पूरी तरह से बनने की बजाय 'आम’ की उत्पत्ति होती है जो शरीर में रोग पैदा करने का कारण बनती है
इसलिए जब भी शरीर अस्वस्थ होता है
सबसे पहले भोजन करने की इच्छा
कम या ख़त्म हो जाती है
ऐसे ही बुख़ार होने पर भी होता है
इसलिए बुख़ार होते ही वैद्य लोग सबसे
पहले लंघन की सलाह देते हैं जिससे
आम पच जाता है और रोग निपटने
लगता है , और ये बात हज़ारों वर्षों से
आयुर्वेद दर्शन का हिस्सा है ..
और अब जब नए विज्ञानवादी लोग उसे अविष्कार कह कर प्रस्तुत करते हैं उन पर हंसी और स्वयं पर अफ़सोस ही होता है ... आजकल हर पढ़ा लिखा व्यक्ति
डाईटीसीयन का आदेश मानकर अपने
स्वास्थ्य संवारने की कोशिश करता है . बहुत अच्छी बात है
लेकिन नाप तोल कर प्रोटीन , कार्ब्स और चिकनाई खाने से भी ज़्यादा महत्वपूर्ण
है खाये हुए को पचाने की कला आना ..
मूँह से भीतर जाना ही काफ़ी नहीं पचकर
शरीर का हिस्सा भी तो बनना चाहिए ..
आयरन को गोली हो या कैल्सीयम पिल्स ,
कृत्रिम विटामिन की गोलियाँ हों या प्रोटीन सप्लीमेंट ,वो शरीर का हिस्सा तभी होगा
जब उनको पचाने वाली अग्नि उसके लायक़ होगी और ये बात सोचने की है कि
अग्नि मजबूत होगी तो जो भी
सामान्य,सात्विक भोजन खाएँगे
उसका निचोड़ शरीर को पूरा मिलेगा
और यदि अग्नि कमजोर हुई तो आप
कुछ भी कितना भी पौष्टिक खाइए
मल की ही वृद्धि होगी ताक़त की नहीं ..
शरीर के बाहर से भीतर जाने वाली
चीजों को शरीर का हिस्सा बना
देने की प्रक्रिया माने
bio transformation ही अग्नि का
काम है और लंघन अथवा उपवास में
अग्नि का संवर्धन करने की ताक़त
ज़बरदस्त है चाहे बुख़ार हो
या कोई और रोग पर वो भी किसी
विज्ञ वैद्य की सलाह से ही कीजिए !
हाँ ये सलाह आप
बिना पूछे भी मान सकते हैं कि
बिना भूख कभी ना खाइए ,
भूख से कम खाइए .और कभी ज़्यादा खा लिया जाए तो
अगले समय का भोजन छोड़ केवल
जल का सेवन कीजिए , वो जल चाहे गुनगुना पानी हो ,जीरा पानी हो , धनिया पानी हो ,
सौंठ पानी हो , मोथा पानी हो ,
नारियल पानी , दाल पानी , चावल पानी ,
नींबू पानी या सब्ज़ियों का पानी हो ,
और सामान्यतः लंघन इतना ही आसान है ..अलम !
DrSunil Arya
🙏🙏🙏🙏
डॉ सुनील आर्य
एम डी (आयुर्वेद)
9811759964

उत्सुकता या जिज्ञासा चेतन मन का आवश्यक गुण है इसलिए मन में उठने वाले 'क्या, क्यों और कैसे‘ के प्रश्न ज्ञान विज्ञान की प्...
27/03/2023

उत्सुकता या जिज्ञासा
चेतन मन का आवश्यक गुण है
इसलिए मन में उठने वाले
'क्या, क्यों और कैसे‘ के प्रश्न
ज्ञान विज्ञान की प्रक्रिया को प्रारंभ कराते हैं
पीड़ा या दर्द चेतन शरीर की
वो पहली अनुभूति है जिससे वह बचना
चाहता है और उससे बचने और हो जाने पर
दूर करने के लिए जो सहज स्फूर्त प्रयास
होता है उनका विस्तार ही
आयुर्विज्ञान/आयुर्वेद अथवा
Medical Science को जन्म देता है .
The Third Eye Integrated Hospital
देहरादून में तीन दिन के आवासीय शिविर में प्रतिभागी छात्रों को आयुर्वेद , पंचकर्म और जलौका चिकित्सा पर विस्तृत उद्'बोधन

ज्ञान की कोई सीमा नहीं आचार्य चरक का स्पष्ट आदेश -" नानौषधि जगति भूतम् यत्किंचित उपलभ्यते “जो कुछ सृष्टि में उपलब्ध है व...
27/03/2023

ज्ञान की कोई सीमा नहीं
आचार्य चरक का स्पष्ट आदेश -
" नानौषधि जगति भूतम् यत्किंचित उपलभ्यते “
जो कुछ सृष्टि में उपलब्ध है
वो हमारे लिए औषधि के रूप में है
इसलिए चिकित्सक किसी भी पदार्थ,वस्तु के
गुण,कर्म को जानकर प्रयोग करने को
स्वतंत्र है

जलौका (Leech) सोरायसिस जैसे असाध्य चर्म रोगों में बहुत उपयोगी है
26/03/2023

जलौका (Leech) सोरायसिस जैसे
असाध्य चर्म रोगों में बहुत उपयोगी है

स्वस्थस्य स्वास्थ्य रक्षणम्,आतुरस्य विकार प्रशमनम् ….. अपना उद्देश्य यही तो है
26/03/2023

स्वस्थस्य स्वास्थ्य रक्षणम्,
आतुरस्य विकार प्रशमनम्
….. अपना उद्देश्य यही तो है

24/12/2022

'सर्दियों में स्वास्थ्य की देखभाल’
————-————————-
शास्त्रीय दृष्टिकोण से भले ही हम
वर्ष भर में छह ऋतुएँ
(शिशिर बसंत ग्रीष्म वर्षा शरद हेमंत)
गिनते हों पर समझ में पांच ही ऋतुएँ आती हैं - सर्दी गर्मी बरसात पतझड़ और बसंत।
और सर्दियाँ सुनते ही
दीवाली से होली के बीच का
मौसम मन में कौंधता है।
ये वो मौसम होता है जिसमे
अच्छी लगती गुनगुनी धूप है तो
कड़ाके की ठण्ड की सिरहन भी है ,
कोहरे की चादर भी तन जाती है तो
कभी कभी सूरज देवता छुट्टी पर भी चले जाते हैं....
हम सब जानते हैं कि सूर्य की तरफ
थोड़ी झुकी पृथ्वी अपनी धुरी पर
घूमती घूमती एक साल में
सूर्य के चारों ओर अपनी परिक्रमा
पूरी करती है तो ही मौसम में बदलाव होता है
और जब पृथ्वी सूर्य से थोड़ा दूर
हो जाती है तो सूर्य का ताप कम मिलने से
सर्दियों का मौसम आ जाता है।
वर्ष भर मौसम बदलने का क्रम
धीरे धीरे इस प्रकार होता रहता है कि
हमारा शरीर उस बदलाव के अनुसार
ढलता रहता है और कोई ख़ास कठिनाई
नहीं आती और जो समस्याएं आती भी हैं
या आ सकती हैं उनका उपचार या बचाव
मौसम की विशेषताओं को , शरीर की रचना
और क्रियात्मकता को समझ कर
आसानी से किया जा सकता है।
स्वास्थ्य की दृष्टि से सर्दियाँ
सेहत बनाने की ऋतु है।
आयुर्वेद में इस समय को विसर्ग काल
माना गया है , माने इसमें शरीर में
बल और ऊर्जा का संवर्धन होता है
इसके विपरीत गर्मियों को आदान काल
माना जाता है जिसमे सूर्य के ताप में
वृद्धि के कारण शरीर में बल और ऊर्जा की
हानि होती है , और यह प्रत्यक्ष में
देखा भी जाता है।
सर्दियों के मौसम में आयुर्वेद में कही
दो ऋतुओं का समावेश है
हल्की और लुभावनी सी ठण्ड वाली
हेमंत ऋतु और तेज़ कड़ाके की ठण्ड वाली शिशिर ऋतु।
हेमंत ऋतु में शरीर आम तौर पर स्वस्थ रहता है। शरीर के वात पित्त कफ आदि दोष
आमतौर पर शांत रहते हैं ,
अग्नि (पाचक अग्नि भी धातु अग्नि भी)
मजबूत रहने से बढ़िया भूख , बढ़िया पाचन , भरपूर ऊर्जा और रोग प्रतिरोधी क्षमता
अच्छी बनी रहती है।
लेकिन ठंडे मौसम के कुछ अन्य प्रभाव
भी होते हैं जिनका स्वास्थ्य पर असर होता है
जैसे शीत के कारण चमड़ी के नीचे की रक्तवाहिकाएं सिकुड़ती हैं
(पेरिफरल वासोकॉन्सट्रिक्शन )
जिससे ब्लड प्रेस्सर और ह्रदय रोगियों को दिक्कत होती है और उसी कारण से आर्थराइटिस के रोगियों मे
जोड़ों-माँसपेशियों में सूजन व अकड़न
बढ़ने की सम्भावना बढ़ जाती है ।
बाहरी ठण्ड से लड़ने के लिए शरीर को अधिक ऊर्जा की जरुरत होती है इसलिए चयापचय (मेटाबोलिज्म) अपने आप बढ़ जाता है ,
कैलोरी-खपत बढ़ने से मांग बढ़ती है
परिणाम स्वरूप भूख बढ़ती है और
वज़न बढ़ जाता है साथ ही दिन छोटे और
रातें बड़ी होने के चलते शारीरिक श्रम
करने की अवधि घट जाती है इसलिए
मोटापा व मधुमेह रोगियों को विशेष सावधान रहने की जरुरत होती है।
ऐसे ही पसीना कम या ना आने से
प्यास भी कम लगती है,पानी कम पीया जाता है ,मूत्र निर्माण भी कम होता है
जिससे मूत्र संक्रमण और कब्ज़ होने की
संभावना रहती है ,
सर्दियों में कोहरे की वजह से दमा,खांसी और जुकाम (अस्थमा साइनस ब्रोंकाइटिस)
के रोगियों का संकट बढ़ जाता है
और वैसे भी इस प्रकार की एलर्जी
ठण्ड से बढ़ती ही है।
बच्चों में टॉन्सिल का संक्रमण
सर्दियों में बार बार हो जाता है और
खास तौर पर नवजात शिशुओं के लिए
पहली ठण्ड में बहुत ज्यादा सावधानी
बरतनी चाहिए ,ठण्ड के चलते
शरीर ताप का घटना (हाइपोथरमिआ)
जानलेवा हो सकता है
फिर भी सर्दियों में चूँकि विविध प्रकार की
खाद्य सामग्री गरमियों के मुक़ाबले
ज़्यादा उपलब्ध होती हैं और भूख भी ज़्यादा लगती है इसलिए खाने मे आनंद भी
ज़्यादा आता है यही कारण ह
वजन बढ़ाने के इच्छुक लोगों के लिए
सर्दियाँ बहुत अनुकूल रहती हैं ।
सर्दियाँ निश्चित रूप से स्वास्थ्यवर्धक
होती हैं पर अपने खान पान और
रहन सहन में थोड़ी सावधानी रखकर
इसमें होने वाले रोगों से बचा जा सकता है।
सर्दियों के मौसम में ठण्ड से बचाव के लिए
गर्म कपडे पहने जाते हैं साथ ही
भीतरी गर्मी भी पर्याप्त बनी रहे इसके लिए
उष्ण व पौष्टिक आहार की जरुरत होती है
जैसे बाजरा इस मौसम में खाया जाने वाला पोषक तत्वों से भरपूर अद्भुत अनाज है
यह प्रोटीन कैल्शियम, लोहा,ज़िंक,एंटीऑक्सिडेंट्स,
कई तरह के विटामिन बी ,रेशा (फाइबर)
का अच्छा स्त्रोत है।
इसकी रोटियां घी गुड़ के साथ
स्वादिष्ट होने के साथ साथ ऊष्मा और पोषण का अच्छा माध्यम है
और अच्छी बात यह है कि गरम होने के
बावजूद एसिडिटी भी नहीं करता है
इसकी खीर , खिचड़ी , चूरमा या
भूनकर भी भोजन के रूप में प्रयोग
किया जा सकता है
इसी प्रकार मूंगफली भी पर्याप्त पोषण
देती है,तिल तो जैसे है ही सर्दियों का आहार। बादाम ,अंजीर,अखरोट ,खजूर इत्यादि मेवे खनिजों से भरपूर होने के साथ साथ रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाने में उपयोगी हैं.
इसी प्रकार शहद व गुड़ चीनी का बेहतर
विकल्प होने के अलावा ऊष्मा और पोषण
भी देते हैं
मेथी,गाजर,चुकंदर,बथुआ,पालक,
शकरगंदी,सिंघाड़ा सर्दियों में
खूब मिलने वाली शाक सब्ज़ियां हैं और
शरीर को स्वस्थ रखने में इनका योगदान
सदियों से हम जानते हैं।
लहसुन ,अदरक ,हल्दी,कालीमिर्च ,
आमला ,अलसी आदि हमारे घरों में
मसालों के तौर पर प्रयोग होती ही है
लेकिन सर्दियों में होने वाले वायरल या बैक्टीरियल संक्रमण से बचाव में ये
अद्भुत रूप से लाभप्रद साबित हैं
ऋतु विरुद्ध आचरण से बचा जाना चाहिए ,
जैसे बहुत ठण्ड होने पर ठन्डे पानी से नहाना , शीतल पेय अथवा आइस क्रीम का सेवन
तेज़ ठण्ड का सामना करने से बचना चाहिए
ह्रदय रोगियों को बहुत ठण्ड में
प्रातः भ्रमण का समय बदल लेना चाहिए
और अस्थमा रोगियों को घने कोहरे में
प्रातः भ्रमण में सावधानी बरतनी चाहिए
शरीर ताप को बनाये रखने के लिए
पर्याप्त कपडे पहनने चाहिए
सर्दियों में त्वचा स्वाभाविक रूप से
खुश्क हो जाती है और खुजली की समस्या
बढ़ जाती है इसलिए पर्याप्त जल/तरल
का सेवन , तेल मालिश रोज़ाना अथवा साप्ताहिक जैसी भी सुविधा हो
अवश्य करनी चाहिए।
उष्ण पेय के रूप में अदरक ,तुलसी ,जीरा ,मुलेठी का फांट/ चाय उपयोगी रहते हैं जबकि अधिक मात्रा में
कॉफ़ी या चाय शरीर के जलीयांश को
कम कर देने से उपयोगी नहीं होती।
सब्जियों के सूप इसका स्वस्थ विकल्प
हो सकते हैं। गुनगुना पानी पीते रहने से
गले से शुरू होने संक्रमणों से
काफी बचाव रहता है।
कसरत करने का श्रेष्ठ मौसम सर्दियाँ ही हैं
वज़न बढ़ाना हो तो भी और बढ़ने ना देना हो
तो भी।
जब अवसर मिले तब खुले बदन
धूप का सेवन विटामिन डी का एकमात्र
भरपूर स्त्रोत है

🙏🙏🙏🙏🙏
डॉ सुनील आर्य
एम.डी (आयुर्वेद)
9811759954

06/11/2022

वायु प्रदूषण/स्मॉग/ज़हरीली धुँध से कैसे लड़ें?.........

मूलेठी 5 ग्राम + सूखे लिसोडे 5 ग्राम + लौंग 2ग्राम , इन सब की अच्छी तरह उबाली हुई चाय अथवा 250 मिली पानी मिलाकर आधा रहने तक उबाल , काढ़ा बना छानकर गुनगुना रहने पर शहद मिलाकर सुबह शाम पीयें..इससे फेफड़ों में साँस की नलियों से म्यूकस का स्त्राव बढ़ जाता है जिससे हवा में घुले ज़हरीले कण आराम से फेफड़ों से बाहर आ जाते हैं
और ... कम से कम 15-20 मिनट कपाल भाति और 3-5 मिनट तीव्र भस्त्रिका ( ख़ूब तेज़ी से लम्बा गहरा साँस लेना छोड़ना) करना चाहिए ... इससे फेफड़ों को उत्तेजना मिलती है और रक्त का संचार बढ़ता है जिससे ज़हरीले कणों व धूल के कणों के साथ बलगम को फेफड़े आसानी से बाहर फेंक देते हैं
मधुमेह रोगी बिना शहद भी ले सकते हैं

डॉ. सुनील आर्य
एम. डी. (आयुर्वेद)

भोजन को औषधि होने के लिए माँ को सख़्त होना चाहिये
03/11/2022

भोजन को औषधि होने के लिए माँ को सख़्त होना चाहिये

हरियाणा दिवस पर 'शौर्य-सम्मान समारोह’ में अपनी बात ..मेरी प्रौद्योगिकी संस्थान सांपला (रोहतक )
01/11/2022

हरियाणा दिवस पर
'शौर्य-सम्मान समारोह’ में अपनी बात ..
मेरी प्रौद्योगिकी संस्थान सांपला (रोहतक )

हरियाणा दिवस पर 'शौर्य-सम्मान’..द्वारा प्रख्यात सिनेमा कर्मी यशपाल शर्मा साथ में पूर्व पुलिस महानिरीक्षक पंजाब ,श्री सुर...
01/11/2022

हरियाणा दिवस पर 'शौर्य-सम्मान’..
द्वारा प्रख्यात सिनेमा कर्मी यशपाल शर्मा
साथ में पूर्व पुलिस महानिरीक्षक पंजाब ,
श्री सुरेश शर्मा.
मेरी प्रौद्योगिकी संस्थान सांपला (रोहतक )

दक्षिण भारतीयों को भोजन और स्वास्थ्य का सम्बन्ध समझाना ज़्यादा आसान है आज कर्नाटक के प्रशिक्षुओं के बीच ...IFFCO Trainin...
21/10/2022

दक्षिण भारतीयों को भोजन और स्वास्थ्य
का सम्बन्ध समझाना ज़्यादा आसान है
आज कर्नाटक के प्रशिक्षुओं के बीच ...
IFFCO Training College , Gurgaon

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