09/11/2023
..बदलते मौसम में बुखार होना आम बात है .घरेलु या स्वयं चिकित्सा के २ – ३ दिन बाद भी लक्षणों में आराम ना होने पर हम डॉक्टर का रूख करते है और डॉक्टर जांच पड़ताल का . आम तौर पर होने वाली रक्त की जांच में डेंगू मलेरिया और टाइफाइड के एंटीजन की पुष्टि की जाती है और पुष्टि होने पर तो उस रोग के अनुसार उपचार होगा ही पर पुष्टि ना होने पर भी वायरल बुखार कहकर निदान किया जाता है .अब इनमे से डेंगू भी वायरस के संक्रमण से ही होता है तो अन्य वायरल बुखारों की तरह इसे भी लेना चाहिए परन्तु इसमें रक्तस्रावी होने की संभावना के चलते समाज में भय ज्यादा है .
आइये , डेंगू से जुड़े कुछ तथ्यों पर गौर करते हैं
डेंगू वायरस से संक्रमित मच्छर द्वारा काटे जाने पर ही डेंगू बुखार की संभावना होती है . संभावना इसलिए क्योंकि हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) यदि संक्रमण से नहीं लड़ पाती तभी रोग होता है इसलिए मच्छर तो बहुत लोगों को काटता है पर सभी को संक्रमण नहीं होता . इसका अर्थ ये हुआ कि मच्छरों की रोकथाम के साथ साथ बेहद महत्वपूर्ण है अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) के संवर्धन का उपाय करना .
एंटी वायरल दवाएं – गंभीर संक्रमण के लिए एकाध विशिष्ठ दवाओं को छोड़कर आम तौर पर वायरल संक्रमण के खिलाफ कोई कारगर दवा नहीं है . प्राकृतिक रूप से सामान्य वायरल बुखार सप्ताह दस दिन में अपने आप ही ठीक हो जाता है इसलिए केवल लक्षणों जैसे उलटी ,बुखार, जी-मचलाना , जुकाम - खांसी आदि के लिए ही हल्का फुल्का उपचार किया जाना चाहिए . एंटी बायोटिक्स दवाएं केवल बैक्टीरियल संक्रमण में ही उपयोगी होती हैं वायरल संक्रमण में नहीं इसलिए ऐसी विशिष्ठ दवाओं का प्रयोग जाने अनजाने ना केवल हमें नुकसान पहुंचाता है बल्कि डेंगू के उपद्रवों को भी बढ़ा देता है . पेरासिटामोल के अलावा अन्य दर्दनाशक व बुखार उतारने की तेज़ दवाये प्लेटलेट्स को ज्यादा मात्रा में तोड़ कर रक्तस्राव का खतरा बढ़ा देती हैं
प्लेटलेट्स – प्लेटलेट्स को लेकर समाज में अनावश्यक रूप से एक भय का माहौल बन गया है
(या बनाया गया है). रक्त में आवश्यक रूप से रहने वाले प्लेटलेट्स डेढ़ लाख से साढ़े चार लाख के बीच रहते हैं . किसी भी रोग में अथवा वायरल बुखार में इनकी संख्या घटती बढती रहती है . डेंगू बुखार हो जाने के 4-5 दिन के बाद प्लेटलेट्स के कण टूटने लगते हैं जो कि कुछ दिनों में ही अपने आप सामान्य होने लगते हैं पर भय का माहौल इतना ज्यादा है पहले दुसरे दिन भी रक्त की सामान्य जाँच होने पर भी रोगी या उसके परिजनों का ध्यान केवल प्लेटलेट्स की संख्या पर रहता है और 1.5 लाख से कम होने पर भय और चिंता दोनों शुरू हो जाते हैं जबकि 20 से 25 हज़ार तक प्लेटलेट्स आ जाने पर बाहर से रक्त या प्लेटलेट्स चढाने की आवश्यकता होती है लेकिन एक लाख से कम होते ही रोगी के परिजनों का जोर रोगी को हस्पताल में भरती कराने का रहता है और हालात यहाँ तक हो जाते हैं की निजी या सरकारी किसी भी हस्पताल में बिस्तर तक खाली नहीं मिलता... इतने भय के प्रचार की सचमुच जरुरत नहीं है .
क्या करना चाहिए – किसी भी रोग से मुकाबला करने के लिए पर्याप्त जानकारी पहली आवश्यकता है . डेंगू होने पर भयग्रस्त न हों इसे भी अन्य वायरल बुखार की तरह समझें जो कि 7-8 दिनों में स्वतः ही ठीक हो जाता है . हलके फुल्के लाक्षणिक उपचार के साथ साथ पर्याप्त विश्राम , .भोजन में दलीया खिचड़ी, नारियल पानी, घर का बना बिना मिर्च मसालों का सब्जियों का सूप, मूंग दाल मसूर दाल, चपाती , पुराना चावल , घीया तोरई टिंडे आदि सब्जियां व अधिक तरल पदार्थों का सेवन और लघु सुपाच्य आहार का सेवन करना चाहिए किसी खास फल और कोई दूध – विशेष डेंगू में बहुत लाभकारी है ऐसी अफवाहें आमतौर पर आती जाती रहती हैं जो प्रामाणिक नहीं होती
तुलसी गिलोय लौंग अदरक अमलतास त्रिफला कुटकी चिरायता आदि आयुर्वेदिक औषधियां डेंगू बुखार में उपयोगी रहती हैं जिन्हें किसी वैद्य के परामर्श से लिया जाना चाहिए
चिकित्सक के परामर्श से OPD स्तर ही उपचार पर जोर दें , भयग्रस्त होकर अथवा MEDICLAIM POLICY की वज़ह से हस्पताल में भरती होने के लिए अनावश्यक जिद न करें . प्लेटलेट्स की संख्या 20-25 हज़ार से नीचे जाने पर और रक्तस्राव होने या संभावना होने पर सघन निगरानी की जरुरत होती है उसके लिए चिकित्सक का निर्णय ही उपयुक्त होता है .. आंकड़े गवाह हैं कि डेंगू से और प्लेटलेट्स घटने से आमतौर पर मृत्यु नहीं होती है
गिलोय और पपीते के पत्ते – पिछले 8-10 वर्षों में गिलोय और पपीते के पत्तों का प्रयोग डेंगू और प्लेटलेट्स संख्या बढाने के लिए काफी प्रचलित हुआ है , यह लाभकारी भी है . अनेक दवा निर्माता कंपनियां इनका रस बोतल में बंद करके खूब बेच रही हैं. कडुवा होने के बावजूद इन दिनों इनका प्रयोग खूब हो रहा है हालाँकि ताज़ा लेना ही ज्यादा लाभकारी है .
प्लेटलेट्स के बारे में यहाँ ये भी जानना चाहिए कि इनकी संख्या 5 लाख से ऊपर जाना भी सुरक्षित नहीं होता बल्कि रक्त केंसर की स्थिति बनने का डर होता है . लेकिन गिलोय का प्रयोग दोनों ही स्थितियों में बहुत लाभकारी है . गिलोय प्लेटलेट्स की संख्या को अस्थिमज्जा (BONE MARROW) पर सकारात्मक प्रभाव डालकर संतुलित करती है. इसके अलावा गिलोय रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढाने में विशेष उपयोगी है . इसका प्रयोग ऋतुसंधिकाल (एक मौसम से दूसरे मौसम के बीच के 15 दिन) में अथवा बरसात शुरू होने से पहले से लेकर बरसात समाप्त होने तक के 3 महीने रोजाना सेवन किया जाये तो शरीर के हमेशा रोगों से बचा रहने के साथ साथ ये भी संभव है कि संक्रमित मच्छर के काटने के बावजूद डेंगू मलेरिया ना हो .. ये ही रोगरोधी ताक़त (Immunity) बढ़ने का लक्षण है.
कभी कभी वायरल बुखार में होने वाला जोड़ों का दर्द और सूजन 2 – 3 महीने बाद भी ठीक नहीं होता जिसे चिकनगुनिया या चिकनगुनिया जैसा कहा जाता है . ऐसे लगभग 40 % रोगी आमवात , गठिया बाय या रूमेटिक आर्थराइटिस में परिवर्तित हो जाते हैं इसके उपचार में भी आयुर्वेदिक चिकित्सा काफी कारगर रहती है
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डॉ सुनील आर्य
ऍम. डी.(आयु)