
03/05/2024
०००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००ब. आजकल स्टेटस प्रदर्शन और आलस की वजह से लोगो का होटल और रेस्टरेंट में खाना खाने का चलन काफी ज्यादा बढ़ गया है सरकारी एजेंसी की मानें तो पिछले 5 साल की तुलना में 200% अधिक ज्यादा होटल्स और रेस्टोरेंट्स में बिक्री हो रही है।
रही कही कसर जोमैटो और स्वीगी पूरी कर देते हैं। बाहर खाने और आॅनलाइन मंगाने का चलन इतना ज्यादा बढ़ गया है कि छोटे-बड़े शहर में लोग क्लाउड किचन चलाना शुरू कर दिए हैं।
एक घंटे के आलस के चक्कर लोग कितनी बड़ी तादाद में अपने हेल्थ से खिलवाड़ कर रहे हैं ये कोई नही समझता।
पहले घर की महिलाओ का मुख्य काम खाना बनाना होता था, घर का शुद्ध प्यार से बनाए खाने को खा कर मन तो प्रसन्न होता था, साथ में स्वास्थ्य भी ठीक रहता था। इससे परिवार की एकता और अखंडता बरकरार रहती थी।
लेकिन आजकल की मॉडर्न मां मॉडर्न वाइफ को यह स्किल ही नहीं आती हैं न इसका तथ्यात्मक भाव ही समझ आता है। हर वीकेंड पर आराम करना ( खाना ना बनाना) अब उन सब का मौलिक अधिकार है, बाहर नौकरी करना और पैसे कमाना हसबैंड-वाइफ का कंधे से कंधे मिलकर काम करना अच्छा पैसा कमाना और बाहर खा कर पैसा खर्च करना सामान्य प्रवृत्ति बन गयी है।
बाहर का खाना अधिकांशतः बनावटी, मिलावटी, कदाचित बासी, अशुद्ध, अस्वास्थ्यकर और महंगा भी होता है। और फिर इन्ही खाने के खाने से बीमारी होने पर उसके इलाज पर कमाए हुए पैसे खर्च करना संपन्न और आधुनिक जीवन शैली मानी जा रही है।
आज अगर आप घर का खाना खा रहे हैं, आफिस में भी बाहर का नही खाना चाहते तो लोग आप को ओल्ड फैशन समझेंगे।
आप को बता दें बाहर खाना खिलाने वाले 90 प्रतिशत रेस्टुरेंट खाने का टेस्ट बढ़ाने के लिए आर्टिफिशियल फ्लेवर एड करते हैं
सबसे निम्न क्वालिटी का तेल, मसाला आदि इस्तेमाल करते हैं।
और साथ में जो भर-भर के बटर डालते हैं वास्तव में वह वेजिटेबल तेल अथवा बटर आयल होता है जिसे गूगल से जाना-समझा जा सकता है।
तो आज से आप खुद तय कीजिए कि पैसा कमा कर बाहर खाना है फिर कमाए हुए पैसे को बीमारी खे इलाज पर खर्च करना है या घर का खाना खा कर सपरिवार स्वस्थ रहना चाहते हैं।