16/10/2024
शरद पूर्णिमा की अनंत शुभकामनाएं
शरद के शशि की शुभ्र प्रभा में श्याम ने गोपियों संग महारास किया था।
इत उत गोपी बिच बिच माधव नाचत ता ता थेई।
अलौकिक महारास की वह महारात्रि थी जो बीते न बीतती थी।
रसिकों ने अपनी रचनाओं में महारास का अनुपम वर्णन किया है।
आजु गोपाल रास रस खेलत, पुलिन कल्प तरु तीर री सजनी
शरद विमल नभ चंद्र विराजत, रोचक त्रिविध समीर री सजनी
चंपक बकुल मालती मुकलित, मत्त मुदित पिक कीर री सजनी
देसी सुधंग राग रंग नीकौ, ब्रज जुबतिन की भीर री सजनी
मघवा मुदित निसान बजायौ, व्रत छांड्यौ मुनि धीर री सजनी
जै श्री हित हरिवंश मगन मन श्यामा, हरत मदन घन पीर री सजनी
सरद की रैन जगमगै, तामें खेलत गौर स्याम मिलि रास
आछौ नीकौ कानन फूल्यौ, आछी नीकी सरसि कुमुदिन भई है प्रकास
आछी नीकी वारि जगमगति, रविजा नीकी पुलिन सौहै पबन सुबास
वृंदावन हितरूप परस्पर होड़ा-होड़ी, निरतत राधालाल हिय भरे बिपुल हुलास। चाचा वृंदावनदासद्ध
आज बन नीकौ रास बनायौ
आज बन नीकौ रास बनायौ
पुलिन पवित्र सुभग यमुना तट मोहन बेनु बजायौ
कल कंकन किंकिनि नूपुर ध्वनि सुनि खम मृग सचु पायौ
जुवतिनु मंडल मध्य स्याम-घन सारंग राग जमायौ
अभिनय-निपुन लटकि लट लोचन, भृकुटि अनंग नचायौ
तत्ताथेई धरति नूतन गति, पति ब्रजराज रिझायौ
दै वरदान संग खेलन कौं शरद रैनि जब आई
रचिकैं रास सबन सुख दीन्हौं रजनी अधिक कराई
मानौ माई घन घन अंतर दामिनि
घन दामिनि दामिनि घन अंतर, सोभित ब्रज भामिनि
जमुना पुलिन मल्लिका मुकुलित, सरद सुहाई जामिनि
सुंदर ससि गुन रूप रासि निधि, आनंद मन विस्त्रामिनि
रच्यौ रास मिलि रसिकराइ सौं, मुदित भई ब्रजधामिनि
रूप निधान श्यामघन सुंदर, अंग अंग अभिरामिनि
खंजन हंस मयूर मीन पिक, भयी भेद गजगामिनि
कौतुक रचे श्सूरश् नागर संग, काम बिमोह्यौ कामिनि
रास में खेलत हैं पिय प्यारी
रास में खेलत हैं पिय प्यारी
सोभा सुभग विलास रास वृंदावन कुंज बिहारी
बाजत ताल मृदंग झालिरी, श्री मंडल सुखकारी
जै जै कार होत वसुधा में, गावत हें सुरभारी
प्रभु मेरो निर्तत कालिंदी तट, नंदलाल ब्रिजनारी
चतुर सिरोमनि जुगल जोरी पर श्सूरदासश् बलिहारी
पिय कौं नचवन सिखवत प्यारी।
वृंदावन में रास रच्यौ है, सरद चंद उजियारी
ताल मृदंग उपंग बजावत प्रफुल्लित ह्नै सखी सारी
बीन वेणु ध्वनि नूपुर ठुमकत, खग-मृग दसा बिसारी
मान गुमान लकुट लिए ठाढी, डरपत कुंज बिहारी
श्व्यासश् स्वामिनी की छबि निरखत हंसि हंसि दै करतारी।
प्यारे नांचत प्रान अधार।
रास रच्यौ बंसीवट नट नागर बर सहज सिंगार
पाइन की पटकार मनोहर, पैजनि की झनकार
रुनु झुनु नूपुर किंकिनि बाजत संग पखावज तार मोहन धुनि मुरली सुनि कर तब मोहे कोटिक मार
स्थावर जंगम की गति भूली, भूले तन ब्योहार
अंग सुधंग अनंग दिखाइ रीझि सर्वसु दोऊ देत उदार
व्यास स्वामिनी पिय सौं मिलि रस राख्यौ कुंज बिहारी
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