OJASVI AYURVEDA HAPUR

OJASVI AYURVEDA HAPUR स्वर्णप्राशन ,एक रसायन विधा है जो नोनिहालों के लिऐ प्रशस्त है।

27/01/2021
From the wall of Dr Ashish k Gupta SirMy dear Public● कोरोना केस, टेस्ट ज़्यादा होने से नहीं बढ़ रहे।केस इसलिये बढ़ रहे हैं...
09/09/2020

From the wall of Dr Ashish k Gupta Sir
My dear Public

● कोरोना केस, टेस्ट ज़्यादा होने से नहीं बढ़ रहे।

केस इसलिये बढ़ रहे हैं कि

-6 महीने बाद भी आपको ये समझ नहीं आया कि मास्क नाक के ऊपर रखना है और दूसरों से दूरी बना कर रखनी है

-आपको क्रिकेट प्रतियोगिताओं में भी जाना है , मेलो में भी जाना है , धार्मिक आयोजन भी करने है , शव यात्राओं में भी शरीक होना है , बरसात में घूमने का कोई मौका नही छोड़ना

-आप को बिना जरूरत के बाजार में भी जाना है

-आप को जिनसे बीते 6 महीनों में नही मिले , उन सब से अब जब कोरोना पूरे शबाब पर है , तब मिलने भी जाना है

-अब जब सरकारी मशीनरी अन्य जरूरी कामों में वापसी कर रही है , तब आप को तनिक भी कष्ट उठाये , रोज इधर उधर सारे जहान की पंचायती भी करनी है

और हर वो काम करना है जिसमे आप खुद को और परिवार को संक्रमित होने का मौका देते है ।

● आप चकित हैं कि आपके दादाजी को कोरोना कैसे हो गया, जब कि वो तो 6 महीने से घर से बाहर ही नहीं निकले!

तो आपको लाउड स्पीकर से सूचित हो कि उन्हें कोरोना आपके घर के उस मेंबर की वज़ह से हुआ जो बाहर निकला और जिसने बचाव के इन बहुत ही सिंपल नियमों का पालन नहीं किया और फ़िर अपने साथ कोरोना को घर ले कर आया। वो खुद तो बच गया, लेकिन उसने घर के बुज़ुर्ग का बैंड बजा दिया।

● आप गुस्से में हैं कि हॉस्पिटल ने आपको लूट लिया। आपके टेस्ट की ग़लत रिपोर्ट दे दी , आपके साथ वालो को किसी को तो हुवा ही नही , आपको कोरोना कैसे हो सकता है ।

तो प्रभु मेरी विनती है कि सबसे पहले गुस्सा ख़ुद पर करें कि

- आप हॉस्पिटल गए किसलिये?

- आपकी तबियत ख़राब हुई क्यों?

- आपको कोरोना हुआ कैसे?

- क्या आपने मास्क ढंग से नहीं पहना?

- क्या आप दूसरों से चिपके चिपके नही घूम रहे थे ?

- क्या आपने हाथ ठीक से साफ़ नहीं किये?

-क्या आप अपने जरूरी कामो का कहकर इधर-उधर भटकते नही फिर रहे थे ?

अग़र आपने कोई कोताही नहीं बरती, तो आपको कोरोना हो ही नहीं सकता

*( ऐसा आप मानते है )*

लेकिन श्रीमान जी , आपके ये सारे तर्क कोरोना नही समझता

ये एक ऐसा वायरस है जिसके प्रकृति बहुत अलग है , ये कितनी डोज में शरीर मे enter होता है , कितनी बार होता है , किस माध्यम से होता है और फिर उस वायरस के प्रति आपके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कितनी है , ये वायरस खुद 10-12 टाइप का है , आपको कौनसी टाइप वाला का कितनी डोज में , कितनी बार मे हुवा है

इस सब पर निर्भर करता है आपकी रिपोर्ट +ve आएगी या -ve

आपकी रिपोर्ट +ve लाकर किसी को 1 रुपया भी नही मिलने वाला और आपकी किसी से कोई अदावत भी नही है और अदावत हो तो भी कम से कम 6 घण्टे की प्रक्रिया के बाद आती है , आपकी रिपोर्ट +ve आएगी या -ve , इसको कोई manage नहीं कर सकता

~~~ *ये बात आप बिना भावुक हुए मान लीजिये।*

● आपने कोरोना से बचने में घनघोर लापरवाही की, लेकिन आप ये चाहते हैं कि आपका इलाज़ करने वाला डॉक्टर, नर्स बिना ख़ुद की जान की परवाह किये, आपके बिल्कुल नज़दीक आ कर आपको पूरा चैक करे, दिन में चार बार आपको देखने आए, आपकी पल पल की मॉनिटरिंग करे , आप खुद अपने परिवार वाले +ve से भागे भागे फिर रहे है पर चाहते है कि डॉक्टर , आपको पूरी attention दे तो वाकई में बड़े सयाने हैं आप !!

● इस झगड़े को ख़त्म करने का एक ही उपाय है कि आप डॉक्टरों और हॉस्पिटल पर तान तोड़ना छोड़ें, कोरोना से बचने के सरल नियमों का समझ और ईमानदारी से पालन करें। ना होगा कोरोना, और ना लूटेंगे डॉक्टर।

ऐसा नहीं करना है तो लादें कोरोना को अपने सिर, फ़िर प्राइवेट अस्पताल की ओर मुंह करके, बिना वहां पधारे ही दूर से उसे गाली दे लें

और

फ़िर सरकारी अस्पताल की तरफ़ अपनी गाड़ी मोड़ लें...क्योंकि सरकारी तो बैठे ही आपकी सेवा में है ।

ईश्वर आपको नियमों को समझने लायक बुद्धि दे और आपको सदा स्वस्थ रखे

पुनश्च : एकदा वैद्य मित्रों के लिए मनोगत,मित्रों!जीवन मे अनुभव चीजों के अर्थ किस तरह से बदल देता है,ये जानना भी किसी चमत...
08/09/2020

पुनश्च : एकदा
वैद्य मित्रों के लिए मनोगत,
मित्रों!
जीवन मे अनुभव चीजों के अर्थ किस तरह से बदल देता है,ये जानना भी किसी चमत्कार के जैसा ही है।
आयुर्वेदाचार्य ,प्रथम वर्ष ,वैद्यकीय सुभाषित साहित्यम ,रणजीत राय देसाई जी की पुस्तक में एक श्लोक है,जो सामान्य अर्थों में एक साधारण सा श्लोक दृष्टिगोचर होता है ,जिसका कोई महत्त्व हमें उस समय शायद ही विषय सामयिक लगा होगा।
सद्य फलन्ति गान्धर्वम ,मासमेकम पुराणकम।
वेदा फलन्ति कालेषु ,ज्योतिरवैद्यो निरन्तरं।।
निश्चय ही अनेकानेक वैद्यमित्रों को शायद स्मरण भी न हो,क्योंकि थोड़ा लीक से हटकर श्लोक है।साधारण रूप से इसका अर्थ पुस्तक के ऐसा लिखा है,के गान्धर्व विद्या ,नृत्य गायन शीघ्रता पूर्वक फल देने वाली होती है,पुराण का पाठ अपना फल देने के लिए महीने भर की मेहनत करवाता है।वेदों के फल बहुत काल मे मिलते हैं और ज्योतिष और वैद्यक के फल निरंतर मिलते रहते हैं।
मेरे वैद्यक जीवन के प्रारम्भ में ,अपने नगर के एक प्रतिष्ठित चिकित्सालय में जो कि धार्मिक चिकित्सालय था,में सेवा देने के साथ साथ प्रारम्भ हुआ था, एक भद्र महिला मेरे पास चिकित्सा के लिए आई थी।मैं नया नया वैद्य,ओर रोगिणी पुरानी रोग से पीड़ित।रोगिणी की मात्र एक समस्या के मेरे पूरे शरीर मे चींटियां चलती है हर वक़्त।महिला प्रतिष्टित परिवार से थीं ,लगभग आधुनिक चिकित्सा के सभी निदान कर चुकी थी कोई लक्षण नही था । सम्मिलित रुप से सभी चिकित्सक इसे मनोव्यथा मान कर चिकित्सा कर चुके थे,ओर उक्त चिकित्सा से भी कोई लाभ नहीं था, रुग्णा औषधालय में मेरे समीप बैठ कर अपनी सम्पूर्ण काया को कभी यंहा कभी वंहा मलती थी ।आयु लगभग उस समय 60 वर्ष के आस पास होगी।बड़ी ही कातर दृष्टि से मेरी तरफ हाथ जोड़ती ,वैद्य जी ,कुछ उपकार कर दो या जहर का इंजेकशन लगा दो ,में बहुत थक गई हूं।
पूज्य गुरुदेव के स्मरण के साथ औषधि प्रारम्भ की।
रोग का अधिष्ठान प्रश्न से संपुर्ण त्वचा थी,मनोवह स्रोट्स के अनुसार मज्जा अधिष्ठान थी।दोनों ही वात के अधिष्ठान मानकर वातशामक ,अनुलोमक औषधि दे दी गई ।
3 दिन बाद रुग्णा कुछ संयत थी निद्रा आ गयी थी, कातरता अल्प थी।
शुद्ध पित्तल प्रकृति की सी रुग्णा, उसके 3 दिन बाद पुनः पहली अवस्था मे ।औषधि की कभी कारमुक्ता दिखती कभी व्यर्थ ।मित्रो कभी कभी किसीरोगी की स्थिति रोगी से ज्यादा वैद्य को(dr को नहीं,कारण संतान वत रोगी को संभालने का निर्देश केवल आयुर्वेद शास्त्र का है,आधुनिक शास्त्र का नही,मेरे बहुत से मित्रों ने इसे महसूस किया होगा।)संताप दे देती है।ऐसी ही एक स्थिति में रुग्णा से बातचीत करते समय ,अचानक से रुग्णा बोली ,ऐसा लगता है के जैसे भूखी चीटियां कुछ खाने को मेरे पूरे शरीर मे दौड़ लगा रही है,अनायास मेरे मुँह से निकल गया के भूखी है!तो इन्हें भोजन कर दो।अचानक से वाग्भट ,हृदय का कुष्ठ/श्वित्र चिक्तिसा का व्रत,दम यम सेवा,वाला श्लोक स्मरण हो आया ।मेरा द्वितीय अनुराग ,आयुर्वेद के अतिरिक्त ज्योतिष होने के कारण से ,मैंने औषधि के साथ साथ रुग्णा को प्रतिदिन चींटियों को सिता मिश्रित भुर्जित पिष्ट गोधूम डालने के लिए प्रेरित किया तीसरे दिन से रुग्णा स्वस्थ थी।उसके जन्मांग का अध्धयन कर उसे लगभग 3 माह औषधि दी गई।साधारण रूप से।अनुलोमनार्थ अविपत्तिकर चूर्ण
मज्जागत वातशामक ,ज्योतिष्मती तेल, सारस्वत चूर्ण,गोघृत
मित्रो ये एक ऐसे घटना थी ,जिसने कुछ चीजो कि देखने की दृष्टि बदल दी।मेरे दोनी विषय होने के कारण मुझे ऊपर वाला श्लोक हमेशा ही प्रिय रहा ।परंतु उस रुग्णा के बाद मुझे कुछ अर्थ यूं प्रतीत होने लगा,शायद विद्यार्थी हूँ इसलिये
नृत्य गायन शीघ्रता से आत्मसात किये जा सकते है,पुराणो को जानने के लिए माह भर का अध्धयन आवश्यक है।वेद वर्षानुवर्ष लग जाने के बाद अपने अर्थ को प्रदर्शित करते हैं।और आयुर्वेद और ज्योतिष को जान ना है तो सदैव,निरंतर ,अनवरत अभ्यास करना पड़ेगा। आयुर्वेद करना है तो आयुर्वेद में जीना ,आयुर्वेद में सोचना आयुर्वेद में हंसना ओर आयुर्वेद में रोना पड़ेगा।दूसरे रास्ते ,पैथी का मोह जब तक नहीं छूटेगा ,आयुर्वेद में उन्नति का पथ तब तक अवरुद्ध ही रहेगा।
किसी आयुर्वेद प्रवर को मेरे कथन में त्रुटि लगे तो विद्यार्थी समझ कर क्षमा करने की कृपा करें।मेरे कोई मित्र मेरे कथन से प्रेरणा लेकर आयुर्वेद अनुगामी बन जाएं तो मेरा ये छोटा सा लेखन सफल हो ,ऐसी मनो कामना सहित
ज्योतिरवैद्यो निरन्तरं

श्रीएक पुराना चुटकुला ,माता बच्चे के अध्यापक से – मास्टरजी मेरा बच्चा बड़ा कोमल है , इसे समझाना हो या डांटना हो तो इसे कु...
14/02/2020

श्री
एक पुराना चुटकुला ,माता बच्चे के अध्यापक से – मास्टरजी मेरा बच्चा बड़ा कोमल है , इसे समझाना हो या डांटना हो तो इसे कुछ मत कहना ,इसके पास वाले बच्चे को डांट देना ये भी समझ जायेगा | फ़िलहाल ये चुटकुला हकीकत हो चूका है , समझे ...........पड़ोसी हे न अपना , चीन | हाल देखा उसका
कभी सोचा ये हाल क्यूँ है उसका ,नहीं न ...अजी वंहा वायरस फैल गया है न करोना ,वो कुछ करने नहीं दे रहा |क्या करोना कोई नया वायरस है , जिसका ये एक दम से आक्रमण हो गया ,तो जवाब है नहीं, पर ये नए रूप में आया है तयारी के साथ जिसका प्रतिरोध न तो उपलब्ध दवाएं कर पा रहीं ,न ही हमारा शरीर| ऐसी स्थिथि क्यूँकर आयी ....कुछ सोचा|
चलिये थोडा में समझाने का प्रयास करूँ, अपनी अल्पमति से |आयुर्वेद का एक सामान्य सा सिद्धांत है , सभी रोग मन्दाग्नि से होते हैं,अब ये मन्दाग्नि क्या है ? शरीर में बाहर से प्रविष्ट हुये खाद्य पदार्थों को शरीर के अनुरूप परिवर्तित करना जिस से शरीर उन्हें समग्र रूप से गृहण कर स्व रक्षण/पोषण/वर्धन जो भी यथावश्यक हो, कर सके| अब मन्दाग्नि होती क्यूँ है? इसके कुछ प्राकृत कारण हैं यथा ऋतु (ग्रीष्म/वर्षा) यथा काल (रात्री/उषाकाल) आयु (वृद्ध )|और अप्राकृत कारणों में शास्त्रोक्त मिथ्या आहार विहार| पुनश्च: ये मिथ्या आहार विहार क्या हैं,सामान्य अर्थों में देश,काल और वातावरण के विरुद्ध किये जाने वाले आहार और विहार यथा ठण्ड के दिनों में icecream खाना,भरे पेट पर पुनश्च: भोजन करना ,भरे पेट से दक्षिण कुक्षि से आराम करना या मेहनत का काम करना |
मूल रूप से हम भारतीयों की भोजन वयवस्था जिस विज्ञानं के अनुरूप है,उसे सामान्य रूप से आयुर्वेद के नाम से जाना जाता है,आयुर्वेद के प्रथम सिद्धांत स्वस्थ के स्वास्थ का रक्षण जिन विधियों से किया जाता रहा है उनमे से सर्वप्रमुख हम भारतीयों के रसोई घर में ही निहित है अर्थात इस विज्ञान का एक बड़ा भाग हमारी रसोई में समाया हुआ है,जब से हमारी खान पान व्यवस्था रसोई से निकलकर व्यवसायीक प्रतिस्पर्धा वाले लोगों के हाथों में पहुंच गई है ये मूल उद्देश्य ख़त्म हो कर के मात्र स्वाद ,और उदरपूर्ति का मात्र रह गया है स्वस्थ नाम का कंटेंट इस में से गायब है|
ओजस्वी औषधालय , हापुड़ में हमारा प्रयास मूल रूप से सभी रोगी और उनके परिवार जनों को ये समझाने में रहता है के भोजन आपका ( जो भी आप मुख से गृहण कर रहे हैं) औषधि से ज्यादा महत्वपूर्ण है उसे अपनी आवश्यकताओं के अनुसार लीजिये,हमरी जरूरत कम से कम पड़ेगी| हमारे इसी सिद्धांत के कारण हमे मात्र रुग्ण नहीं बल्कि परिवार प्राप्त होतें हैं,जिस कारण से हम अपने आप को ओजस्वी औषधालय मात्र न मानकर ओजस्वी औषधालय परिवार मानते हैं|
हमारा भोजन न केवल हमारी दैनिक आवश्यकताओं को पूर्ण करता है वरन सही रूप से किआ हुआ भोजन (आहार) ओर् सामायिक क्रिया कलाप( विहार) न केवल हमें स्वस्थ रखतें है अपितु रोगों से लड़ने के भी सक्षम बनाते हैं| सामान्य रूप से औषधालय में आने वाले नवीन रोगी so called over medication का शिकार होते हैं| रोग का मूल कारण समझे बिना ,बिना व्यवस्था पत्र के औषधि सेवन करने वाले महानुभवों का एक बहुत बड़ा प्रतिशत हमारे आस पास मोजूद है ,और इन सबके दुष्परिणाम आने पर भी हम सब चेतने को तैयार नहीं| ख़ैर ये भी शिक्षा का ही विषय| मूल विषय पर आते हैं ----
चीन के लोगों की खान पान व्यवस्था के चित्र आजकल हम सभी के whatsapp और अन्य social media plateforms पर उपलब्ध हैं, मुझे लगता है उपर लिखा विवरण ये सब समझाने के लिए पर्याप्त है| अपने क्षेत्रीय और आंचलिक भोजन को अपनाइए ,इसके लिए अपने निकट के आयुर्वेदिक पद्वीधरों से संपर्क करें ,दादा दादी नाना नानी की सहायता लें|आपकी शंकाओं का inbox और whatsapp 9897197491 पर स्वागत है|
ओजस्वी आयुर्वेद परिवार आपके स्वस्थ एवं खुशहाल जीवन की कामना करते हैं | धन्यवाद|

अभी पिछेले हफ्ते की ही बात है,फ़ेसबुक के किसी ग्रुप पर किसी ने प्रश्न किया था के साहब मेरा 5 वर्ष का बच्चा है, बोलने में ...
21/10/2019

अभी पिछेले हफ्ते की ही बात है,फ़ेसबुक के किसी ग्रुप पर किसी ने प्रश्न किया था के साहब मेरा 5 वर्ष का बच्चा है, बोलने में शब्द इधर से उधर कर देता है,बात नही सुनता,जैसा कहता हूँ वैसा नहीं करता,पढ़ाई में बिल्कुल ध्यान नहीं है।प्रतिप्रश्न में मैंने भी लिख दिया भाई आपका बच्चे वाला निर्णय गलत हो गया ,आपको रोबोट की आवश्यकता थी।बाकी कुछ लोगों ने इलाज भी लिख मारे ,कंसलटेंट का पता भी दे दिया ,अपना अड्रेस भी चिपका दिया।खैर गूगल बाबा का प्रसाद विधि पूर्वक सेवन न करने से ही ये दोष होता है।सामान्य रूप से ये पीड़ा हर किसी गूगल भक्त माता पिता की है।
सामान्य रूप से 2 वर्ष के बच्चे का शब्दकोश 20 शब्दों के आसपास का होता है,बच्चे ने पहली बार मे जो समझा वही अंकित हो जाता है,उसमे परिवर्तन सामान्य रूप से 7 वर्ष की अवस्था मे होना शुरू होता है,हर एक बच्चे के लिए ये व्यवस्था अलग उम्र में अलग रूप में होती है,इसे एकीकृत कर के कोई व्यवस्था नही बनाई जा सकती मात्र अनुसरण रूपी अनुसंधान किआ जा सकता है।किसी भी बच्चे के सामान्य रूप से स्वस्थ होने का सामान्य लक्षण है उसका जिज्ञासु होना,आप मेरे मत से सहमत न हो भले,परन्तु मै अपने कक्ष में प्रवेश किये बच्चे के उछलकूद के आधार पर ही उसकी औषध की मात्रा का विनिश्चय आराम से कर लेता हूँ।शैतान बच्चे आराम से मुझसे प्रसन्न रहते हैं,क्योंकि उनको मात्र अर्क रूप के मधुर क्वाथ जैसे सूक्ष्म औषधियों से तुरंत आराम आ जाता है,इसके विपरीत अति सुस्त बच्चों को सदैव महुर्मुह वाली औषधी योजना करनी पड़ती है।
यंहा में सभी माता पिताओं से अनुरोध करना चाहता हूँ,बच्चे के लिए अपने प्रारम्भ काल में स्वास्थ्य को प्राप्त करना मूल उद्देश्य है,स्वस्थ शिशु से स्वस्थ बाल का निर्माण होगा ,जिसका मस्तिष्क स्वस्थ होगा वही शिक्षा को समग्र ग्रहण करने की पात्रता भी रखेगा।हमारा वैदिक धर्म भी उपनयन के लिए कम से कम 8 वर्ष ओर सामान्य रूप से 11 वर्ष की आयु को प्रस्तावित करता है।यह समय शिशुओं ,बालकों के लिए मात्र गणित और भाषा के प्रारंभिक सूत्रों को आत्मसात करने मात्र के लिए श्रेष्ठ होता है।अतः बच्चोंह को बच्चा ही रहने दें,विश्वविद्यालयों के पदवीधर न बनाएं,उन्हें खूब खेलने दें खूब खाने दें।कोई समस्या आये तो अपने आसपास के चिकित्सक से निसंकोच सलाह लें।सामान्य रूप से आयुर्वेदिक दिनचर्या का अभ्यास करें और अपने बच्चों को भी कराएं।
आपकी अनुभूतियाँ,मार्गदर्शन ,समस्या सभी आमन्त्रित हैं।

17/09/2019

मांस-भक्षण-निषेध : संक्षिप्त प्रमाण
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महाभारत में कहा है-

धनेन क्रयिको हन्ति खादकश्चोपभोगतः।
घातको वधबन्धाभ्यामित्येष त्रिविधो वधः॥

आहर्ता चानुमन्ता च विशस्ता क्रयविक्रयी ।
संस्कर्ता चोपभोक्ता च खादकाः सर्व एव ते॥
–महा० अनु० ११५/४०, ४९

’मांस खरीदनेवाला धन से प्राणी की हिंसा करता है, खानेवाला उपभोग से करता है और मारनेवाला मारकर और बाँधकर हिंसा करता है, इस पर तीन तरह से वध होता है । जो मनुष्य मांस लाता है, जो मँगाता है, जो पशु के अंग काटता है, जो खरीदता है, जो बेचता है, जो पकाता है और जो खाता है, वे सभी मांस खानेवाले (घातकी) हैं ।’

अतएव मांस-भक्षण धर्म का हनन करनेवाला होने के कारण सर्वथा महापाप है । धर्म के पालन करनेवाले के लिये हिंसा का त्यागना पहली सीढ़ी है । जिसके हृदय में अहिंसा का भाव नहीं है वहाँ धर्म को स्थान ही कहाँ है?

भीष्मपितामह राजा युधिष्ठिर से कहते हैं-

मां स भक्षयते यस्माद्भक्षयिष्ये तमप्यहम ।
एतन्मांसस्य मांसत्वमनुबुद्ध्यस्व भारत ॥
–महा० अनु० ११६/३५

' हे युधिष्ठिर ! वह मुझे खाता है इसलिये मैं भी उसे खाऊँगा यह मांस शब्द का मांसत्व है ऐसा समझो ।'

इसी प्रकार की बात मनु महाराज ने कही है-

मां स भक्षयितामुत्र यस्य मांसमिहाद्म्यहम् ।
एतन्मांसस्य मांसत्वं प्रवदन्तिं मनीषणः


–मनु0 ५/५५

’ मैं यहाँ जिसका मांस खाता हूँ, वह परलोक में मुझे (मेरा मांस) खायेगा। मांस शब्द का यही अर्थ विद्वान लोग किया करते हैं ।’

आज यहाँ जो जिस जीव के मांस खायेगा किसी समय वही जीव उसका बदला लेने के लिये उसके मांस को खानेवाला बनेगा । जो मनुष्य जिसको जितना कष्ट पहुँचाता है समयान्तर में उसको अपने किये हुए कर्म के फलस्वरुप वह कष्ट और भी अधिक मात्रा में (मय व्याज के) भोगना पड़ता है, इसके सिवा यह भी युक्तिसंगत बात है कि जैसे हमें दूसरे के द्वारा सताये और मारे जाने के समय कष्ट होता है वैसा ही सबको होता है । परपीड़ा महापातक है, पाप का फल सुख कैसे होगा? इसलिये पितामह भीष्म कहते हैं-

कुम्भीपाके च पच्यन्ते तां तां योनिमुपागताः ।
आक्रम्य मार्यमाणाश्च भ्राम्यन्ते वै पुनः पुनः ॥
–महा० अनु० ११६/२१

’ मांसाहारी जीव अनेक योनियों में उत्पन्न होते हुए अन्त में कुम्भीपाक नरक में यन्त्रणा भोगते हैं और दूसरे उन्हें बलात दबाकर मार डालते हैं और इस प्रकार वे बार- बार भिन्न-भिन्न योनियों में भटकते रहते हैं ।’

इमे वै मानवा लोके नृशंस मांसगृद्धिनः ।
विसृज्य विविधान भक्ष्यान महारक्षोगणा इव ॥
अपूपान विविधाकारान शाकानि विविधानि च ।
खाण्डवान रसयोगान्न तथेच्छन्ति यथामिषम ॥
–महा० अनु० ११६/१-२

’ शोक है कि जगत में क्रूर मनुष्य नाना प्रकार के पवित्र खाद्य पदार्थों को छोड़कर महान राक्षस की भाँति मांस के लिये लालायित रहते हैं तथा भाँति-भाँति की मिठाईयों, तरह-तरह के शाकों, खाँड़ की बनी हुई वस्तुओं और सरस पदार्थों को भी वैसा पसन्द नहीं करते जैसा मांस को।’

डिनर छोड़ें: आज से ही मानसिकता बनाये रात्रि को भोजन नही ?(ओजस्वी आयुर्वेद हापुड़,९८९७१९७४९१)दरअसल यह आयुर्वेद का सूत्र है...
24/01/2019

डिनर छोड़ें: आज से ही मानसिकता बनाये रात्रि को भोजन नही ?

(ओजस्वी आयुर्वेद हापुड़,९८९७१९७४९१)

दरअसल यह आयुर्वेद का सूत्र है—

चरक संहिता और अष्टांग संग्रह भी रात में खाने से बचने के लिए कहता हैं;क्योंकि उस समय जठराग्नि, जो खाना पचाने का काम करती हैं,बहुत कमजोर रहती है. जैसे-जैसे सूर्य ढलता है, जठराग्नि भी मंद पड़ने लगती है.

सायं भुक्त्वा लघु हितं समाहितमना: शुचि:|
शास्तारमनुसंस्मृत्य स्वशय्यां चाथ संविशेत ||

रात्रौ तु भोजनं कुर्यातत्प्रथमप्रहरान्तरे|
किञ्चिदूनंसमश्नयाद्दुर्जरं तत्र पर्जयेत् ||

रात का भोजन सूर्यास्त के पूर्व ही कर लेना चाहिए और पेट भरकर नहीं खाना चाहिए, पेट को कुछ खाली रखकर ही भोजन करना चाहिए.

हिंदुओं के प्राचीन शास्त्रों में भी यह कहा गया है कि, “चत्वारि नरक्द्वाराणि प्रथमं रात्रिभोजनम्”, मतलब रात्रिभोजन नरक का पहला द्वार है| 'नरक के द्वार' से अभिप्राय यहां अस्वस्थता ही समझें.
"जो व्यक्ति शराब, मांस, पेय, सूर्यास्त के बाद खाता है और जमीन के नीचे उगाई सब्जियों का उपभोग करता है; उस व्यक्ति के किये गए तीर्थयात्रा, प्रार्थना और किसी भी प्रकार कि भक्ति बेकार हैं|"
- महाभारत (रिशिश्वरभरत)

जैन धर्म में भी सूर्यास्त के बाद भोजन निषिद्ध है. वे तो अबतक पालन कर रहे हैं.

भगवान बुद्ध भी अपने भक्तों को आयुर्वेद का ये उपदेश देते हुए कहा करते थे कि स्वस्थ और युवा रहना चाहते हो, तो कभी भी सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करो। हमेशा सूर्य डूबने से पहले भोजन कर लो और किसी हाल में सूर्यास्त के बाद कुछ भी न खाओ। लोग उनकी बात मान कर ऐसा ही करते थे और मोटापे सहित कई गंभीर वीमारियों से बचे रहते थे, पर बाद में लोगों ने यह कहकर इसका मजाक उड़ाना शुरू कर दिया कि चूंकि प्राचीन काल में बिजली नहीं थी, इसीलिए लोग जल्दी खाना खा लेते थे। ऐसा कहने वाले लोगों ने देर रात डिनर करने की आदत लगायी. बहुत पहले लोग रात में नहीं खाते थे. गांव के लोग तो विल्कुल ही नहीं खाते थे. और, अब हाल यह है कि मोटापा दुनिया में महामारी बन चुका है।
अब जब यही बात अमेरिका और यूरोप के वैज्ञानिक शोध (रिसर्च) के बाद कह रहे हैं, तो सबके कान खड़े हुए हैं।

अगर आप सूरज डूबने से पहले डिनर कर लेंगे, तो यह तय है कि आपको मोटापे की समस्या से कभी नहीं जूझना पड़ेगा और अगर आप मोटापे की समस्या से जूझ रहे हैं, तो आपको इससे जरूर मुक्ति मिल जाएगी। अगर आप कब्ज, गैस या दूसरी तरह की पेट की बीमारियों से जूझ रहे हैं या फिर पेट बाहर निकल रहा है, तो सूर्यास्त से पहले भोजन करना इसका रामबाण इलाज है। इससे कब्ज, गैस और दूसरी पेट की वीमारियों से मुक्ति मिलेगी। दरअसल डिनर करने और बेड पर सोने जाने के बीच गैप (समय का अंतर) होना चाहिए। ऐसा न हो कि रात 10 बजे डिनर किया और 10.30 बजे सो गए। जब ऐसा होता है, तो इससे पेट से संबंधित समस्याएं पैदा होती है। कब्ज, गैस और दूसरी समस्याएं होती हैं। इन्हीं समस्याओं से हृदय व्याधि भी होती है.

जब हम सोने जाते हैं तो हमारे शरीर के अधिकांश अंग रेस्ट मोड में चले जाते हैं;पर जब हम देर से डिनर करते हैं, तो हमारा डाइजेस्टिव सिस्टम सोते वक्त भी पूरी तेजी से काम करता रहता है। इस वजह से गहरी नींद नहीं आती, नींद कई बार टूट भी जाती है, निद्रा-चक्र में व्यवधान होता है, जिससे कलेजे में जलन महसूस होता है. रात में भोजन करने से पेशाब में वृद्धि और उत्सर्जन की आवश्यकताएं बढ़ जाती हैं, जिससे अनावश्यक निद्रा-नाश होता है. अगर हम सूर्यास्त के पहले भोजन कर लेंगे, तो सुबह सोकर उठने पर खुद को ताजा-ताजा महसूस करेंगे। सुबह से ही अच्छे मूड में बने रहेंगे.

बहुत से लोग ये कहने लगते हैं कि हमारा जीवन शैली ही कुछ ऐसी है कि जल्दी नहीं खा सकते, पार्टियों में जाना पड़ता है या फिर प्रोफेशन ही ऐसा है। बॉलीवुड में अपनी फिटनेस के लिए खिलाड़ियों के खिलाड़ी के नाम से मशहूर अक्षय कुमार कहते हैं कि चाहे कुछ भी हो जाए, मैं सूर्यास्त के बाद डिनर नहीं करता। अगर अक्षय ऐसा कर सकते हैं, तो आप क्यों नहीं? आपको चुस्त-दुरुस्त और निरोगी बने रहना है, तो डिनर छोड़ ही दें. यह भारतीय संस्कृति है भी नहीं.
(ओजस्वी आयुर्वेद हापुड़,९८९७१९७४९१)

किसी चीज को जानना और उसे समझना दोनों अलग अलग बातें हैं |आज सुबह ही एक श्लोक उसके अर्थ सहित प्रेषित किया ,शाम तक अनेक जिज...
16/12/2018

किसी चीज को जानना और उसे समझना दोनों अलग अलग बातें हैं |
आज सुबह ही एक श्लोक उसके अर्थ सहित प्रेषित किया ,शाम तक अनेक जिज्ञासुओं द्वारा प्रश्न उमड़ पड़े ,उन सभी का यंहा समाधान करने की कोशिश कर रहा हूँ,आशा है विद्वत जन आशीर्वाद देंगे ,ऐसी अपेक्षा के साथ|
पहला भोजन के अंत में तक्र/मट्ठे का सेवन करना चाहिये,क्यों?......साधारण रूप से जवाब यह है की हमारे आचार्यों ने भोजन करने का जो नियम बतलाया है उसमे सर्वप्रथम मधुर द्रव्य और सबसे अंत में कषाय या कसेले स्वाद के आहार का ग्रहण करना बतलाया है,जिस समय में ये शास्त्र लिखे गये थे उस समय में तक्र एक आसानी से उपलब्ध होने वाली सबसे निर्दोष एवं उत्तम कषाय रस वाला द्रव्य था ,कालान्तर में मनुष्य सुविधाओं के साथ देव वत हो गया है तो,जैसा की शास्त्र कहते हैं "तक्रं देवानां दुर्लभं |"ऐसी ही स्तिथि हो गयी है,|तक्र पाचक है ,और कषाय रस की वजह से तृप्ति देने वाला भी है,भोजन के अल्प दोषों को नाश करने वाला एवं स्वादु/स्वादिस्ट भी है ही | एक बात यंहा स्मरणीय यह है के तक्र की कषायता ताजे तक्र का गुण हे आम्ल रस वाले तक्र का भोजन में निषेध है|
दूसरा दिन के अंत में दूध का सेवन करना चाहिये ......अब यंहा स्थिति थोड़ी भिन्न मिलती है उत्तर भारत में सोते समय रात्री में दूध पीने का जो नियम दिखलाई पड़ता है,वह इस ही शास्त्र वाक्य का अपभ्रंश है,कारण पहले रात्री का भोजन so called dinnerसूर्यास्त से पहले का नियम था ,जिस कारण दिन के आंत में दूध पीने का नियम पालन हो ही जाता था ,वस्तुतः यह नियम गोवंश का पालन करने वालों के लिए वरदान स्वरुप ही था जिस के कारण से गो दुग्ध का रसायन रूप में सेवन हो पाता था और रसायन सेवन के लाभ अनायास ही प्राप्त हो जाते थे|
तीसरा रात्री के अंत में जल का सेवन करना चाहिये| अब ये समझना थोडा सा मुश्किल है, रात्री का अंत से यंहा अभिप्राय यह है ,सूर्योदय से लेकर सूर्य दर्शन का समय ,दुसरे शब्दों में उषाकाल ,गणना की दृष्टि से लगभग 8 मिनिट का होता है ,यह क्रिया मात्र इसी ही समय में की जा सकती है ,शास्त्रीय रूप से यह ,गणना प्रत्येक स्थान के लिए की जानी चाहिये,तब ही इस नियम का फल मिल सकता है,फल श्रुति यह है के इनके सेवन से रोग नही होते,अर्थात यह नियम ,आयुर्वेद के मूल उद्देश्य "स्वस्थस्य स्वास्थ रक्षणम " के लिये है .....स्वस्थ व्यक्ति के लिए हे न के रोग निवारण के लिए|

06/11/2018

Celebrate the magic and joys of Diwali
Happy Diwali to all

12/07/2018

असल में गड़बड़ अब समझ में आती सी लगती है के क्यों आयुर्वेदिक दवा कम काम करती हे मधुमेह में। होता कुछ यूँ हे के हम लोग निदान और सम्प्राप्ति तो इस्तेमाल करते है आधुनिक चिकित्सा शास्त्र की और उपयोग करते है आयुर्वेदिक औषध एवम् साथ ही साथ पथ्य आदि का सेवन भी गलत रीती से करते है ।मेरा मानना यंहा ऐसा है के पथ्य आदि भी यदी आयुर्वेदिक विधान से करके निदान भी और चिकित्सा भी अगर आयुर्वेदिक तरीके से ही की जायेगी तो भले से समय लगे परंतु चिकित्सा में अवश्य ही सफलता मिलेगी।हम अक्सर यंहा छोटी किन्तु महत्वपूर्ण बातो को भूल जाते है यथा पृकृति देश काल और आप्त उपदेश सभी कुछ।शेष आगे.......

12/07/2018
20/06/2018

एक निवेदन
जरूरी नही कोई प्रितिक्रिया दें
शांति से पढ़ें मनन करें,कुछ होता से लगे तो shere कर दें।अच्छे विचारों के बीज जितने फैल जाएं अच्छा है,कोई तो वृक्ष बनेगा,कंही तो छांव होगी एक लड़का था।

बहुत brilliant था। सारी जिंदगी फर्स्ट आया। साइंस में हमेशा 100% स्कोर किया। ऐसे बच्चे आमतौर पर इंजिनियर बनने चले जाते हैं, सो उसका भी सिलेक्शन हो गया IIT चेन्नई में। वहाँ से B Tech किया और आगे पढने अमेरिका चला गया। वहाँ आगे की पढ़ाई पूरी की। M.Tech बगैरह कुछ किया होगा फिर उसने यूनिवर्सिटी ऑफ़ केलिफ़ोर्निआ से MBA किया।
अब इतना पढने के बाद तो वहाँ अच्छी नौकरी मिल ही जाती है। सुनते हैं कि वहाँ भी हमेशा टॉप ही किया, और वहीं अमेरिका में नौकरी करने लगा। बताया जाता है कि 05 बेडरूम का घर था उसके पास।
शादी भी वहीं, चेन्नई की ही एक बेहद खूबसूरत लड़की से हो गई। बताते हैं कि ससुर साहब भी कोई बड़े आदमी ही थे, कई किलो सोना दिया उन्होंने अपनी लड़की को दहेज़ में।
अब हमारे यहाँ आजकल के हिन्दुस्तान में इससे आदर्श जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। एक मनुष्य को और क्या चाहिए अपने जीवन में? पढ़ लिख के इंजिनियर बन गए, अमेरिका में सेटल हो गए, मोटी तनख्वाह की नौकरी, बीवी-बच्चे, सुख ही सुख, इसके बाद हीरो-हेरोइन के मानिंद सुखपूर्वक वहाँ की साफ़-सुथरी सड़कों पर भ्रष्टाचार मुक्त माहौल में सुखपूर्वक विचरने लगे...
दूसरा परिदृश्य:
अब एक दोस्त हैं हमारे, भाई नीरज जाट जी। एक नंबर के घुमक्कड़ हैं, घर कम रहते हैं, सफ़र में ज्यादा रहते हैं। ऐसी-ऐसी जगह घूमने चल पड़ते हैं पैदल ही कि बता नहीं सकते, 04-06 दिन पहाड़ों पर घूमना, trekking करना आदि उनके लिए आम बात है। एक से बढ़कर एक दुर्गम स्थानों पर जाते हैं, और फिर आके किस्से सुनाते हैं, ब्लॉग लिखते हैं। उनका ब्लॉग पढ़ के मुझे थकावट हो जाती है, न रहने का ठिकाना न खाने का ठिकाना (मानों जिंदगी ही सफ़र में हो), फिर भी कोई टेंशन नहीं। चल पड़ते हैं घूमने, बैग कंधे पर लाद के। मेरी बीवी अक्सर मुझसे कहती है कि एक तो तुम पहले ही आवारा थे ऊपर से ऐसे दोस्त पाल लिए, नीरज जाट जैसे! जो न खुद घर रहते हैं और न दूसरों को रहने देते हैं!! बहला-फुसला के ले जाते हैं अपने साथ!!!
पर मुझे उनकी घुमक्कड़ी देख सुनके रश्क होता है, कितना रफ एंड टफ है यार ये आदमी! कितना जीवट है! बड़ी सख्त जान है!
आइए अब जरा कहानी के पहले पात्र पर दुबारा आ जाते हैं। तो आप उस इंजिनियर लड़के का क्या फ्यूचर देखते हैं लाइफ में?
क्यों, सब बढ़िया ही दीखता है? पर नहीं, आज से तीन साल पहले उसने वहीं अमेरिका में, सपरिवार आत्महत्या कर ली! अपनी पत्नी और बच्चों को गोली मारकर खुद को भी गोली मार ली! What went wrong? आखिर ऐसा क्या हुआ, गड़बड़ कहाँ हुई???
ये कदम उठाने से पहले उसने बाकायदा अपनी wife से discuss किया, फिर एक लम्बा su***de नोट लिखा और उसमें बाकायदा justify किया अपने इस कदम को और यहाँ तक लिखा कि यही सबसे श्रेष्ठ रास्ता था इन परिस्थितयों में! उनके इस केस को और उस su***de नोट को California Institute of Clinical Psychology ने study किया है! What went wrong?
हुआ यूँ था कि अमेरिका की आर्थिक मंदी के दौर में उसकी नौकरी चली गई! बहुत दिन खाली बैठे रहे! नौकरियाँ ढूँढते रहे! फिर अपनी तनख्वाह कम करते गए और फिर भी जब नौकरी न मिली... मकान की किश्त भी टूट गयी... तो सड़क पे आने की नौबत आ गई! बताते हैं, कुछ दिन किसी पेट्रोल पम्प पे तेल भरा! साल भर ये सब बर्दाश्त किया और फिर अंत में ख़ुदकुशी कर ली...
ख़ुशी-ख़ुशी! उसकी बीवी भी इसके लिए राज़ी हो गई, ख़ुशी ख़ुशी!! जी हाँ लिखा है उन्होंने- हम सब लोग बहुत खुश हैं, कि अब सब-कुछ ठीक हो जाएगा, सब कष्ट ख़त्म हो जाएँगे!!!
*इस case study को ऐसे conclude किया है experts ने :*

This man was programmed for success but he was not trained, how to handle failure.
यह व्यक्ति सफलता के लिए तो तैयार था, पर इसे जीवन में ये नहीं सिखाया गया कि असफलता का सामना कैसे किया जाए!
आइए ज़रा उसके जीवन पर शुरु से नज़र डालते हैं! बहुत तेज़ था पढने में, हमेशा फर्स्ट ही आया! ऐसे बहुत से Parents को मैं जानता हूँ जो यही चाहते हैं कि बस उनका बच्चा हमेशा फर्स्ट ही आए, कोई गलती न हो उस से! गलती करना तो यूँ- मानो कोई बहुत बड़ा पाप कर दिया!!! और हमेशा फर्स्ट आने के लिए वो "सब-कुछ" करने को तत्पर रहते हैं,
फिर ऐसे बच्चे चूँकि पढ़ाकू कुछ ज्यादा होते हैं सो खेलकूद, घूमना फिरना, लड़ाई-झगडा, मार-पीट, ऐसे पंगों का मौका कम मिलता है इन बेचारों को!
12 th करके निकले तो इंजीनियरिंग कॉलेज का बोझ लद गया बेचारों पर, वहाँ से निकले तो MBA और अभी पढ़ ही रहे थे की मोटी तनख्वाह की नौकरी! अब तनख्वाह मोटी तो जिम्मेवारी भी उतनी ही विशाल! यानि बड़े-बड़े targets...
कमबख्त ये दुनिया, बड़ी कठोर है और ये जिंदगी, अलग से इम्तहान लेती है! आपकी कॉलेज की डिग्री और मार्कशीट से कोई मतलब नहीं उसे! वहाँ कितने नंबर लिए कोई फर्क नहीं पड़ता! ये जिंदगी अपना अलग question paper सेट करती है! और सवाल साले,सब out ऑफ़ syllabus होते हैं, टेढ़े मेढ़े, ऊट-पटाँग और रोज़ इम्तहान लेती है, कोई date sheet नहीं!
एक बार एक बहुत बड़े स्कूल में हम लोग summer camp ले रहे थे दिल्ली में। Mercedeze और BMW में आते थे बच्चे वहाँ। तभी एक लड़की, रही होगी यही कोई 7-8 साल की, अचानक जोर-जोर से रोने लगी! हम लोग दौड़े, क्या हुआ भैया, देखा तो वो लड़की हल्का सा गिर गई थी। वहाँ ज़मीन कुछ गीली थी सो उसके हाथ में ज़रा सी गीली मिटटी लग गई थी और थोड़ी उसकी frock में भी!! बस!!! सो वो जार-जार रोए जा रही थी! खैर हमने उसके हाथ धोए और ये बताया कि कुछ नहीं हुआ बेटा, ये देखो, धुल गयी मिटटी खैर साहब, थोड़ी देर में high heels पहने उसकी माँ आ गई... और उसने हमारी बड़ी क्लास लगाई कि आप लोग ठीक से काम नहीं करते हो, लापरवाही करते हो, कैसे गिर गया बच्चा, अगर कुछ हो जाता तो? इतना बड़ा हादसा, भगवान न करे किसी और के साथ हो जीवन में...!!!
एक और आँखों देखी घटना बताता हूँ कि कैसे माँ-बाप स्वयं अपने बच्चों को spoil करते हैं!
हम लोग एक स्कूल में एक और कैंप लगा रहे थे, बच्चे स्कूल बस से आते थे। ड्राईवर ने जोर से ब्रेक मारी तो एक बच्चा गिर गया और उसके माथे पे हल्की सी चोट लग गई, यही कोई एक सेन्टीमीटर का हल्का सा कट! अब वो बच्चा जोर-जोर से रोने लगा, बस यूँ समझ लीजे, चिंघाड़-चिंघाड़ के, क्योंकि उसने वो खून देख लिया अपने हाथ पे! खैर मामूली सी बात थी, हमने उसे फर्स्ट ऐड दे के बैठा दिया! तभी, यही कोई 10 मिनट बीते होंगे, उस बच्चे के माँ बाप पहुँच गए स्कूल... और फिर वहाँ जो रोआ-राट मची... वो बच्चा जितनी जोर से रोता, उसकी माँ उससे भी ज्यादा जोर से चिंघाड़ती और एक तरफ़ उसका बाप जोर-जोर से चिल्ला रहा था, पागलों की तरह! मेरे बच्चे को सर में चोट लगी है, आप लोग अभी तक हॉस्पिटल ले के नहीं गए? अरे ये तो न्यूरो का केस है सर में चोट लगी है!!!
मेरा एक दोस्त जो वहाँ PTI था उसके साथ हम उसे एक स्थानीय neurology के हॉस्पिटल में ले गए। अब अस्पताल वालों को तो बकरा चाहिए काटने के लिए! वहाँ पर भी उस लड़के का बाप CT Scan, Plastic surgery न जाने क्या-क्या बक रहा था! पर finally उस अस्पताल के doctors ने एक BANDAID लगा के भेज दिया।
एक और किस्सा उसी स्कूल का, एक श्रीमान जी सुबह-सुबह आ के लड़ रहे थे, क्या हुआ भैया, स्कूल बस नहीं आई, हमें आना पड़ा छोड़ने! बाद में पता चला श्रीमानजी का घर स्कूल से बमुश्किल 200 मीटर दूर, उसी कालोनी में तीन सड़क छोड़ के था और लड़का उनका 10 साल का था!!

क्या बनाना चाहते हैं आजकल के माँ-बाप अपने बच्चों को? ये spoon fed बच्चे जीवन के संघर्षों को कैसे या कितना झेल पाएँगे?

अगले परिदृश्य पर गौर फरमाएँ-
आज से लगभग 15 साल पहले, मेरा बड़ा बेटा 4-5 साल का था, अपने खेत पे जा रहे थे हम। बरसात का season था, धान के खेतों में पानी भरा था। मेरे बेटे ने मुझसे कहा, पापा, मुझे गोदी उठा लो. मैंने कहा कुछ नहीं होता बेटा, पैदल चलो और वो चलने लगा और थोड़ी ही देर बाद पानी में गिर गया! कपडे सब कीचड में सन गए! अब वो रोने लगा, मैंने फिर कहा कुछ नहीं हुआ बेटा, उठो, वो वहीं बैठा-बैठा रो रहा था! उसने मेरी तरफ हाथ बढाए, मैंने कहा अरे पहले उठो तो और वो उठ खड़ा हुआ! मैंने उसे सिर्फ अपनी ऊँगली थमाई और वो उसे पकड़ के ऊपर आ गया। हम फिर चल पड़े। थोड़ी देर बाद वो फिर गिर गया, पर अबकी बार उसकी प्रतिक्रिया बिलकुल अलग थी। उसने सिर्फ इतना ही कहा, अर्रे... और हम सब हँस दिए, वो भी हँसने लगा... फिर अपने आप उठा और ऊपर आ गया। मुझे याद है उस साल हम दोनों बाप-बेटे बीसों बार उस खेत पे गए होंगे, वो उसके बाद वहाँ से आते-जाते कभी नहीं गिरा!

कल मैं मेरे वह मित्र, नीरज जाट जी की करेरी झील की trekking वाली पोस्ट पढ़ रहा था। 04 दिन उस सुनसान बियाबान में रहे, जिसमें रास्ता तक का पता नहीं चलता, और वो भी इतनी बारिश और ओला वृष्टि में, ऊपर से लेकर नीचे तक भीगे हुए, भूखे/प्यासे, न रहने का आसरा न सोने का ठिकाना!!! उस कीचड भरे मंदिर के कमरे में, उस बिना chain वाले स्लीपिंग बैग में, रात बिता के भी, कितने खुश थे वो। इतना संघर्षशील आदमी भला क्या जीवन में कभी हार मानेगा?

कार्तिक राजाराम! जीहाँ, यही नाम था उस लड़के का। काश उसे भी बचपन में गिरने की, गिर-गिर के उठने की, बार-बार हारने की, और हार के बार-बार जीतने की ट्रेनिंग मिली होती!!!

कठोपनिषद में एक मंत्र है, उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत। उठो जागो और लक्ष्य प्राप्ति तक आगे बढ़ते रहो। शुरू से ही अपने बच्चों को इतना कोमल, इतना सुकुमार मत बनाइए कि वो इस ज़ालिम दुनिया के झटके बर्दाश्त ही ना कर सके!!

एक अंग्रेजी उपन्यास में एक किस्सा पढ़ा था- एक मेमना अपनी माँ से दूर निकल गया। आगे जाकर पहले तो भैंसों के झुण्ड से घिर गया, उनके पैरों तले कुचले जाने से बचा किसी तरह! अभी थोड़ा ही आगे बढ़ा था कि एक सियार उसकी तरफ झपटा! किसी तरह झाड़ियों में घुस के जान बचाई तो सामने से भेड़िए आते दिखे!! वह बहुत देर तक वहीं झाड़ियों में दुबका रहा, फिर किसी तरह माँ के पास वापस पहुँचा तो बोला, माँ, वहाँ तो बहुत खतरनाक जंगल है!!!
Mom, there is a jungle out there.

*"इस खतरनाक जंगल में जिंदा बचे रहने की ट्रेनिंग अभी से अपने बच्चों को दीजिए।"*

01/03/2018

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