Pandit Mayaram ji Teert Purohit Tehri/Paudi Garhwal , Haridwar wale

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Pandit ji Works for:
Ganga ji pujan,Asthi Visarjan,10 Pind Kriya,Pitra dosh Nivaran,Narayan bali,Panchak Shanti,Pitra gayatri,kaal sarp dosh nivaran,Varshik Shradh also Pandit ji is Teerth Purohit in haridwar maintaining family genealogy.

स्वर्ग देख लो हरिद्वार:देव दीपावली पर रोशनी से जगमगाई हर की पौड़ी
08/11/2022

स्वर्ग देख लो
हरिद्वार:देव दीपावली पर रोशनी से जगमगाई हर की पौड़ी

स्वर्ग देख लो हरिद्वार:देव दीपावली पर रोशनी से जगमगाई हर की पौड़ी
08/11/2022

स्वर्ग देख लो
हरिद्वार:देव दीपावली पर रोशनी से जगमगाई हर की पौड़ी

23/06/2022
15/05/2022
आज माँ भारती के वीर सपूत देवभूमि गढ़वाल व राष्ट्र के गौरव प्रथम सी डी एस जनरल विपिन जी रावत व उनकी धर्मपत्नी श्रीमती मधुल...
16/12/2021

आज माँ भारती के वीर सपूत देवभूमि गढ़वाल व राष्ट्र के गौरव प्रथम सी डी एस जनरल विपिन जी रावत व उनकी धर्मपत्नी श्रीमती मधुलिका रावत की अस्थियां पवित्र गंगा में उनकी पुत्रियों कृतिका व तारिणी के द्वारा गढ़वाली पुरोहित मायाराम जी आदित्य वशिष्ठ व अभिनव वशिष्ट के आचार्यत्व में विसर्जित की गई।माँ गंगा उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे।

पंडित मायाराम जी हरिद्वार से समस्त टिहरी गढ़वाल व पौड़ी गढ़वाल के तीर्थ पुरोहित |
03/05/2021

पंडित मायाराम जी हरिद्वार से समस्त टिहरी गढ़वाल व पौड़ी गढ़वाल के तीर्थ पुरोहित |

11/03/2021

भगवान शंकर के सभी भक्तों को महाशिवरात्रि और महाकुंभ के प्रथम शाही स्नान की हार्दिक शुभकामनाएं।
साथ ही आपके लिए हरिद्वार में महाकुंभ 2021 के महा सैलाब की कुछ झलके आपके लिए।
जय भोलेनाथ।

492 वर्षों की प्रतीक्षा के बाद अयोध्या नगरी में श्री राम मंदिर का आज शिलान्यास एवं भूमि पूजन हुआ। इस उपलक्ष्य में तीर्थ ...
05/08/2020

492 वर्षों की प्रतीक्षा के बाद अयोध्या नगरी में श्री राम मंदिर का आज शिलान्यास एवं भूमि पूजन हुआ। इस उपलक्ष्य में तीर्थ नगरी हरिद्वार के हरकी पौड़ी क्षेत्र का नज़ारा। श्री गंगा सभा द्वारा 11000 (गयारह हज़ार) दीपों को प्रज्वलित कर खुशी मनाई गयी।

चित्र में ब्रह्मकुण्ड स्थित मुख्य एवं प्राचीन श्री लक्ष्मीनारायण मंदिर जिसे कि आपके तीर्थ पुरोहित पंडित मायाराम जी के वंशज यानि स्व. पंडित राम रखा वशिष्ठ ने बनवाया था।

जय श्री राम🙏

श्री गंगा तिथि एवं पर्व 6 जुलाई से 3 अगस्त, 2020
05/07/2020

श्री गंगा तिथि एवं पर्व 6 जुलाई से 3 अगस्त, 2020

गंगा जल शरीर मैं रोग प्रतिरोधक शमत्ता बढ़ाता हैं वैज्ञानिकों भी माना।
07/06/2020

गंगा जल शरीर मैं रोग प्रतिरोधक शमत्ता बढ़ाता हैं वैज्ञानिकों भी माना।

श्री गंगा तिथि एवं पर्व 6 जून से 5 जुलाई, 2020
06/06/2020

श्री गंगा तिथि एवं पर्व 6 जून से 5 जुलाई, 2020

🚩🚩The four kumars,creation of lord brahma and adorable kids of universe. 🔥🔥कुमार भाइ चार ऋषि हैं, जो हिंदू धर्म के पुराण...
05/06/2020

🚩🚩The four kumars,creation of lord brahma and adorable kids of universe. 🔥🔥

कुमार भाइ चार ऋषि हैं, जो हिंदू धर्म के पुराण ग्रंथों के अनूसार बच्चों के रूप में ब्रह्मांड में घूमते हैं।

इनके नाम हैं *'सनक', 'सनातन', 'सानंदन' और 'सनतकुमार'*।

उन्हें निर्माता-देवता ब्रह्मा के पहले मनोरचित पुत्रों के रूप में (Mind born) वर्णित किया गया है। ब्रह्मा के मन से पैदा हुए, चार कुमारों ने अपने पिता की इच्छा के खिलाफ ब्रह्मचर्य आजीवन प्रतिज्ञा की। उन्हें बिना किसी इच्छा के आध्यात्मिक शिक्षण के उद्देश्य से ब्रह्मांड में घूमने के लिए कहा जाता है। चारों भाइयों ने बचपन से ही वेदों का अध्ययन किया और हमेशा साथ-साथ यात्रा की।
भागवत पुराण में '12 महाजनों' के बीच कुमारों को सूचीबद्ध किया गया है, वे कई हिंदू आध्यात्मिक परंपराओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, विशेष रूप से विष्णु और उनके अवतार कृष्ण की पूजा से जुड़े हुए हैं, कभी-कभी भगवान शिव से संबंधित परंपराओं में भी। समूह को विभिन्न नामों से जाना जाता है:
*"कुमार"* (लड़के / पुरुष बच्चे / युवा लड़के),
*"चतुरसन"* या "चतुः सन" (सन के साथ शुरू होने वाले 4 नाम)
व्यक्तिगत नामों में आमतौर पर सनाक (Ancient), सनातन (शाश्वत,Eternal), सानंदन (हर्षित,Joyful) और सनतकुमार (Ever young) शामिल हैं। कभी-कभी, सनातन को सनात्सुजात से बदल दिया जाता है।
*रिभु* नामक पाँचवाँ कुमार कभी-कभी जोड़ा जाता है।
चार कुमार ब्रह्मा के सबसे बड़े पुत्र हैं। जब ब्रह्मा ने ब्रह्मांड के निर्माण का कार्य शुरू किया, तो उन्होंने पहली बार अपने शरीर के विभिन्न हिस्सों से कुछ प्राणियों की सहायता के लिए बनाया। कुमार पहले ऐसे प्राणी थे। वे उनके दिमाग से पैदा हुए थे और शिशुओं के रूप में दिखाई दिए। ब्रह्मा ने उन्हें सृष्टि में सहायता करने का आदेश दिया, लेकिन सत्त्व (पवित्रता) की अभिव्यक्तियों के रूप में, और सांसारिक जीवन में उदासीन, उन्होंने इनकार कर दिया और इसके बजाय अपने पिता की इच्छाओं के खिलाफ खुद को भगवान और ब्रह्मचर्य के लिए समर्पित किया।

भागवत पुराण हमें बताता है कि उनके इनकार ने ब्रह्मा को क्रोधित कर दिया और उनका क्रोध भगवान रुद्र के रूप में प्रकट हुआ, जिन्हें भगवान शिव के नाम से भी जाना जाता है।

चारों कुमारों ने पांच साल की उम्र में वेदों को सीखा। वे इस प्रकार महान ज्ञानी ,योगी और सिद्ध (पूर्ण ज्ञानी) बन गए। कुमार अपने आध्यात्मिक गुणों के कारण बच्चों के रूप में बने रहे।
इन ऋषियों की आयु विभिन्न पवित्र ग्रंथों में भिन्न-भिन्न है।
उन्होंने संन्यास और ब्रह्मचर्य पालन करने का अभ्यास किया और नग्न रहे।
वे बिना किसी इच्छा के, लेकिन शिक्षण के उद्देश्य से भौतिकवादी (materialistic) और आध्यात्मिक (Spiritualistic) ब्रह्मांड में एक साथ घूमते हैं। उन्हें कभी-कभी सिद्धों की सूची में शामिल किया जाता है।
कहा जाता है कि चारों कुमार जन लोक या जनार लोक में रहते हैं (वर्तमान उपलक्ष्य में बुद्धिजीवियों की दुनिया) या विष्णु के निवास स्थान वैकुंठ में।
वें लगातार मंत्र *हरि शरणम्* (विष्णु - "भगवान हमारे शरणदाता") का पाठ करते या विष्णु के भजन गाते।
विष्णु के ये भजन और महिमा उनके एकमात्र भोजन के रूप में काम करते।

ब्रह्मा के एक अन्य पुत्र, ऋषि नारद, जिन्हें कुमारों के शिष्य के रूप में वर्णित किया गया है, पद्म पुराण में उनके गुणों का उल्लेख करते हैं। नारद कहते हैं कि हालांकि वे पांच साल के बच्चों के रूप में दिखाई देते हैं, वे दुनिया के महान पूर्वज हैं।

सनतकुमार का तो महाभारत में भी उल्लेख है।
एक महान ऋषि के रूप में, जो संदेह को दूर करते हैं और योग के सभी मामलों में उपदेशक हैं।
इसके अलावा 'गंगाद्वार' या 'हरिद्वार' के पास *कनखल* के तीर्थ का उल्लेख है, जहां व्यापक तप के माध्यम से, उन्होंने महान तपस्वी शक्तियों को प्राप्त किया था।

तीर्थ पुरोहित हरिद्वार
गंगा बिल्डिंग हरकी पौडी
फ़ोन-7830312120 🚩

Source-Various spiritual websites

*The concept of 33 koti dev in Hinduism*🔥🔥🚩🚩वेदों में जिन देवताओं का उल्लेख किया गया है उनमें से अधिकतर प्राकृतिक शक्तिय...
03/06/2020

*The concept of 33 koti dev in Hinduism*🔥🔥🚩🚩

वेदों में जिन देवताओं का उल्लेख किया गया है उनमें से अधिकतर प्राकृतिक शक्तियों के नाम है जिन्हें देव कहकर संबोधित किया गया है। दरअसल वे देव नहीं है। देव कहने से उनका महत्व प्रकट होता है। उक्त प्राकृतिक शक्तियों को मुख्‍यत: *आदित्य समूह*, *वसु समूह*, *रुद्र समूह*, *मरुतगण समूह*, *प्रजापति समूह* आदि समूहों में बांटा गया हैं।

प्रारंभ ने ऋषियों ने 33 प्रकार के अव्यय (Inexhaustable) जाने थे। परमात्मा ने जो 33 अव्यय बनाए हैं वैदिक ऋषि उसी की बात कर रहे हैं। उक्त 33 अव्यवों से ही प्रकृति और जीवन का संचालन होता है। वेदों अनुसार हमें इन 33 पदार्थों या अव्ययों को महत्व देना चाहिए। इनका ध्यान करना चाहिए तो ये पुष्ट हो जाते हैं।

वैदिक विद्वानों अनुसार 33 प्रकार के अव्यय या पदार्थ होते हैं जिन्हें देवों की संज्ञा दी गई है। ये 33 प्रकार इस अनुसार हैं:-

1.इन 33 में से *8 आठ वसु है*। वसु अर्थात हमें वसाने वाले आत्मा का जहां वास होता है। ये आठ वसु हैं: धरती, जल, अग्नि, वायु, आकाश, चंद्रमा, सूर्य और नक्षत्र। ये आठ वसु प्रजा को वसाने वाले अर्थात धारण या पालने वाले हैं।



2.इसी तरह *11 रुद्र* आते हैं। दरअसल यह रुद्र शरीर के अव्यय है। जब यह अव्यय एक-एक करके शरीर से निकल जाते हैं तो यह रोदन कराने वाले होते हैं। अर्थात जब मनुष्य मर जाता है तो उसके भीतर के यह सभी 11 रुद्र निकल जाते हैं जिनके निकलने के बाद उसे मृत मान लिया जाता है। तब उसके सगे-संबंधी उसके समक्ष रोते हैं।

शरीर से निकलने वाले इन रुद्रों ने नाम हैं:- प्राण, अपान(fart), व्यान (Air circulating inside body), समान, उदान, नाग, कुर्म, किरकल, देवदत्त और धनंजय। प्रथम पांच *प्राण* और दूसरे पांच *उपप्राण* हैं अंत में 11वां जीवात्मा हैं।
ये 11 जब शरीर से निकल जाते हैं तो सगे-संबंधी रोने लग जाते हैं। इसीलिए इन्हें कहते हैं रुद्र। रुद्र अर्थात रुलाने वाला। *8 वसु और 11 रुद्र मिलकर हो गए 19 उन्नीस*।



3. *12 आदित्य होते हैं* आदित्य सूर्य को कहते हैं। भारतीय कैलेंडर सूर्य पर ही आधारित है। समय के 12 माह को 12 आदित्य कहते हैं। इन्हें आदित्य इसलिए कहते हैं क्योंकि यह हमारी आयु को हरते हैं। जैसे-जैसे समय बढ़ता जाता है हमारी आयु घटती जाती है। ये बारह आदिय 12 माह के नाम हैं। सूर्य की 12 रश्मियों को भी इन्हीं की श्रेणी में रखा गया है। 8 वसु, 11 रुद्र और 12 आदित्य को मिलाकर कुल हुए *31 अव्यय*।




4. *32वां है इंद्र*। इंद्र का अर्थ बिजली या ऊर्जा। *33वां है यज्ज*। यज्ज अर्थात प्रजापति, जिससे वायु, दृष्टि, जल और शिल्प शास्त्र हमारा उन्नत होता है, औषधियां (Medicines) पैदा होती है।

कुछ विद्वान इन्द्र और प्रजापति की जगह *2 अश्विनी कुमारों* को रखते हैं।
अश्विनी कुमार त्वष्टा की पुत्री प्रभा से उत्पन्न सूर्य के दो पुत्र हैं इन्हें आयुर्वेद का आदि आचार्य भी माना जाता है।

ये 33 कोटी अर्थात 33 प्रकार के अव्यव हैं जिन्हें देव कहा गया। देव का अर्थ होता है दिव्य गुणों से युक्त। हमें ईश्वर ने जिस रूप में यह 33 पदार्थ दिए हैं उसी रूप में उन्हें शुद्ध, निर्मल और पवित्र बनाए रखना चाह

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