20/02/2024
परम पिता परमात्मा द्वारा की गई अहेतु की कृपा एवं जन्मजन्मांतरों के संचित पुण्यकर्मों के पुण्य प्रताप से जीवात्मा नाना योनियों में भटकता हुआ मानव - योनि को प्राप्त करता है । मानव देह को प्राप्त करके भी संसार की विविध प्रवृत्तियों में बड़ा हुआ व्यक्ति , सुयोग से ही आस्तिक बनता है । स्वयं के साथ साथ समाज के कल्याण की कामना से ईश्वर में श्रद्धा रखकर , पूजा पाठ संस्कार यज्ञ अनुष्ठानों को संम्पन्न करवाने की विद्या तो बिना परमात्मा की कृपा के एवं बिना गुरु अनुग्रह के प्राप्त करना अति कठिन है । उसमें भी वैदिक विधि द्वारा देवपूजन करना , अथवा यजमानों के द्वारा यज्ञ पूजन करवाना तो अति दुर्लभ ही है । क्योंकि वैदिक विधि द्वारा किया गया देवार्चन ही भुक्ति मुक्ति को देने वाला होता है , अतः देवपूजन संम्पन्न करवाने वाले सभी जनों को सर्वप्रथम वैदिक पूजा पद्धति का समुचित ज्ञान अवश्य ग्रहण करना चाहिए । वैदिक कर्मकांड अर्थात पूजा में शास्त्रविधि की आवश्यकता स्वयं भगवान श्री कृष्ण जी ने श्रीमद्भगवद्गीता में बतलाई है -
यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारतः ।
न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम् ।।
यदि शास्त्रविधि का त्याग कर कोई भी कार्य किया जाए तो उस कार्य में सिद्धि प्राप्त नहीं होती और ना ही सुख प्राप्त होता है । अतः हजारों वर्षों से चली आ रही वैदिक कर्मकांड पूजा पद्धति का ज्ञान , सुख प्राप्ति , मनोकामना पूर्ति के साथ ही मोक्षप्राप्ति में पूर्ण सहायक होता है । ' बहुत से जनमानस का मानना है कि मानसिक ध्यान - जप आदि ही श्रेष्ठ हैं , बाह्य - पूजा - विधान अर्थात कर्मकांड यज्ञ पूजा आदि आडम्बर मात्र हैं, किन्तु यह कथन वास्तविकता से बहुत दूर है । क्योंकि शास्त्र कहते हैं कि -
पूजनं त्रिविधं प्रोक्तं मनः साक्षाद् वचोमयम् ।
मानसं योगिनां प्रोक्तं साक्षात् पूजा गृहं प्रभो ॥
वाचामयं तामसानां नृपाणां कामिनां तथा ।।
अर्थात् , पूजा तीन प्रकार की होती है , मानसिक , प्रत्यक्ष और वाचिक । इनमें योगियों के लिए मानसिक पूजा श्रेष्ठ है , गृहस्थों के लिए प्रत्यक्ष पूजा उत्तम हैं और राजाओं तथा कामासक्तों तामस लोगों के लिए वाचिक पूजा श्रेष्ठ है । यदि पूजा समय की बात करें तो गृहस्थों के लिए यथा समय पूजा , अर्थात नैमित्तिक पूजन मुहूर्त के अनुसार एवं नित्य पूजा प्रातःकाल एवं सन्ध्या समय में करना श्रेष्ठ है । ब्रह्मचारी के लिए त्रिकाल सन्ध्या एवं योगियों के लिए सर्वकाल में पूजा करने का निर्देश है । अतः सभी को शास्त्र आज्ञानुसार वैदिक विधि से ही पूजन सम्पादित करना चाहिए । सर्वप्रथम नित्यकर्म अर्थात सन्ध्या पूजन अवश्य करें , तत्पश्चात् नैमित्तिक कर्मों में प्रयोग होने वाले वैदिक मंत्रों को गुरुमुख से पढ़कर , पूजन विधियों को जानकर फिर आवश्यकतानुसार स्वयं के एवं यजमानों के कल्याण हेतु प्रयोग करे । यही वैदिक कर्मकांड हेतु उत्तम मार्ग है । अतः गुरु के द्वारा बतलाए गए वैदिक मार्ग का ही अनुसरण करना श्रेष्ठ है । पूजन से पूर्व आत्म रक्षा के लिए न्यास , कवच पाठ अवश्य सीखने चाहिए ।
पूजन विधि एवं मंत्रो में मानवीय त्रुटियां हो जाती हैं अतः पूजन के उपरांत किये जाने वाले स्तुति पाठ , अपराध क्षमापन भी अवश्य गुरुदेव से विधिवत सीख लेने चाहिए । कभी - कभी अपने पूर्व - संस्कारों की दुर्बलता के कारण पूरा प्रयास करने पर भी ज्ञानार्जन में न्यूनता रह जाती है । ऐसी स्थिति में अविश्वास , अश्रद्धा अथवा / निन्दा बुद्धि नहीं करनी चाहिए और मन को धैर्य दिलाने के लिए अपने ही दोष रह गये होंगे , यह विचार कर पुनः शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए तथा प्रार्थना करनी चाहिए । ज्ञानप्राप्ति के प्रति आतुरता , विह्वलता अथवा विकलता से मन में चंचलता बढ़ जाती है । अतः वैदिक कर्मकांड के ज्ञान प्राप्ति हेतु संयम , शान्ति एवं धैर्य की परम आवश्यकता होती है । सदाचार , पवित्रता , उदारता , परोपकारिता , अयाचकता आदि ऐसे गुण हैं जो ज्ञानप्राप्ति में सहायक होते हैं । इन्हीं गुणों से एक उत्तम आचार्य उत्तम पुरोहित बना जा सकता है । हालांकि शास्त्र बहुत हैं विधाएं बहुत हैं मन्त्र बहुत हैं और यहां तक कि पूजन की परम्पराएँ भी बहुत हैं किन्तु सीमित समय मे यदि विधिवत कर्मकांड सीखना चाहते हैं तो आपका स्वागत है।
कर्मपात्र पूजन | पूजा करना सीखें | puja shuroo karane se pahale kaun sa mantr bola jaata hai? ...