Om Rudraksh Ratan Kendra

Om Rudraksh Ratan Kendra Service to humanity is service to God. Mr. Krishanmurty former Chief Election Commissioner, Shri Romesh Bhandari former U.P. Governor, Shri B.
(268)

This is the principle doctrine of “GMP Certified Adarsh Ayurvedic Aushdhalaya, Kankhal.” This Aushdhalaya has been rendering free services to the poor and the needy. Deepak Kumar the talented expert Vaidya belongs to the dynasty of renowned Veteran Vaidya (Late) Shri Lallu Ji, and Late Shri Vijay Kumar Ji who laid the foundation of Adarsh Ayurvedic Aushdhalaya (Regd) in 1947. It is worth remembering that Shri DEEPAK KUMAR was honored with Rastriya Swasthaya Samman Puraskar in 2004 by Central State Minister for Science and Technology, Government of India, Honorable Bacchi Singh Rawat in auspicious Alankaran Samaroh , in presence of Shri G.B.G. Satyanarayan Reddy, former Governor(U.P.), Dr. A.R. Kidwai former Governor, Bihar. Vaidya Deepak Kumar has been Honored with Arch of Excellence (Medicare) Award in 2006 by All India Achievers Conference, New Delhi on the occasion of 55th National Seminar on “INDIVIDUAL ACHIEVEMENTS & NATION BUILDING”

Vaidya Deepak Kumar has also been Honored with Health Excellence Award in 2007 by All India Business & Community Foundation(AIBCF) on the Occasion of National Seminar on “EMERGING INDIA :CHALLENGES & OPPORTUNITIES”

हर हर महादेव
31/07/2025

हर हर महादेव

आज के बिल्वकेश्वर महादेव जी के दर्शन कीजिए ।।हर हर महादेव
29/07/2025

आज के बिल्वकेश्वर महादेव जी के दर्शन कीजिए ।।
हर हर महादेव

कांवड़ यात्रा में हरिद्वार पधार रहे सभी शिवभक्तों का ॐ रुद्राक्ष रत्न केंद्र हार्दिक स्वागत करता हे ।।ॐ नमः शिवाय
17/07/2025

कांवड़ यात्रा में हरिद्वार पधार रहे सभी शिवभक्तों का ॐ रुद्राक्ष रत्न केंद्र हार्दिक स्वागत करता हे ।।

ॐ नमः शिवाय

आप सभी शिवभक्तों को श्रावण मास के प्रथम सोमवार की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🙏🙏
14/07/2025

आप सभी शिवभक्तों को श्रावण मास के प्रथम सोमवार की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🙏🙏

गुरु बिना ज्ञान नहीं, ज्ञान बिना आत्मा नहीं, ध्यान, ज्ञान, धैर्य और कर्म सब गुरु की ही देन है। गुरु पूर्णिमा की हार्दिक ...
10/07/2025

गुरु बिना ज्ञान नहीं, ज्ञान बिना आत्मा नहीं, ध्यान, ज्ञान, धैर्य और कर्म सब गुरु की ही देन है। गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं

04/07/2025

रुद्राक्ष महात्म्य-प्राचीन कथा

भगवान रुद्र की आँखों से टपके आँसुओं से रुद्राक्ष की उत्पत्ति होने के कारण ही रुद्राक्ष को साक्षात् शिव स्वरूप ही माना जाता है। पुराणों की ऐसी मान्यता है कि रुद्राक्ष धारण करने वाला साक्षात् रुद्र को ही धारण करता है। रुद्राक्ष का महात्म्य अति अद्भुत और आश्चर्यजनक है। रुद्राक्ष धारण करने वाला या उसकी पूजा करने वाला शिव सायुज्य मुक्ति को प्राप्त करता है। इस विषय में अनेक प्राचीन कथायें पुराणों में वर्णित हैं। इसी क्रम में यहाँ एक प्राचीन कथा का उल्लेख किया जा रहा है।

किसी समय केरल प्रदेश के एक ग्राम में सभी शास्त्रों का ज्ञाता देवदत्त नामक एक विद्वान ब्राह्मण रहता था। वह ब्राह्मण वेद-वेदांगों के तत्वों में पारंगत था। देवदत्त धर्मशास्त्रों में पारंगत, सर्वज्ञ, सर्ववेत्ता पण्डित था और श्रौत विधान व स्मार्त विधान के कर्मकाण्डों में लगा रहता था।

कुछ समय पश्चात् दैवयोग से कुसंगति के कारण देवदत्त नामक उस ब्राह्मण की मति विपरीत हो गयी और वह पापयुक्त कर्म करने लगा। उन पापकर्मों को करने से वह नीच ब्राह्मण कहलाने लगा। देवदत्त दूसरों को लूटने लगा, पर-स्त्रियों में लम्पट रहने लगा। इसी प्रकार जुआ खेलना, चोरी करना, वेश्याओं के साथ रमण करना, शराब पीना, मांस भक्षण करना आदि जितने भी बुरे कर्म हैं, वह उन्हीं में रत रहने लगा। देवदत्त पाप बुद्धि वाले धूर्त पापियों के साथ मिलकर ग्रामवासियों को तरह-तरह से सताने लगा।

देवदत्त के पाप-कर्मों से परेशान होकर एक दिन सभी ग्रामवासियों तथा ब्राह्मण वर्ग ने सलाह की कि क्यों न उसे गाँव से ही निकाल दिया जाये। इस प्रकार देवदत्त को मार-पीटकर ग्रामवासियों ने ग्राम से निकाल दिया। उस गाँव से निकाले जाने पर देवदत्त एक अन्य गाँव में पहुँचा, किन्तु वहाँ भी वह अपने पाप-कर्मों से बाज नहीं आया। उस दूसरे गाँव के लोग भी कुछ ही समय में उसके पाप-कर्मों और अत्याचार से तंग हो गये, फलस्वरूप उस ग्राम के निवासियों ने भी देवदत्त को अपने ग्राम से भगा दिया। इस प्रकार, अन्य किसी भी ग्राम में जब देवदत्त को शरण नहीं मिली तो अन्त में वह जंगल में जाकर रहने लगा।

जंगल में रहते हुये भी देवदत्त की पापवृत्तियों में कोई कमी नहीं आई। जंगल में भी वह निरीह पशु-पक्षियों को मारकर उनसे अपनी क्षुधा शान्त करता रहा। इस प्रकार, काफी समय तक वह एक जंगल से दूसरे जंगल में भटकता फिरा। उसी समय उस पापिष्ट, दुरात्मा, दुराचारी, दुष्ट देवदत्त का मृत्यु का समय आ गया। देवदत्त किसी निर्जन वन में विचरण कर रहा था कि एक स्थान पर मुर्छित होकर गिर पड़ा और वहीं पर मर गया।

मृत्यु-मूर्च्छा से पीड़ित, मृत्यु को प्राप्त देवदत्त को यमपुरी ले जाने के लिये यमराज के दूत वहाँ पर पहुँचे और यमपाश उसके गले में बाँधकर उसे घसीटते हुये यमपुर की ओर ले जाने लगे, किन्तु जिस भूमि पर गिरकर देवदत्त की मृत्यु हुई थी वहाँ संयोग से रुद्राक्ष स्पर्श करने से देवदत्त को शिवलोक कैलाश में उपस्थित करने की आज्ञा शिवदूतों को शंकर जी ने दी। कैलाश से आये शिवदूतों ने रास्ते में यमदूतों द्वारा देवदत्त को पाश में बाँधकर घसीटते हुये और कोड़ों से पीटते हुये यमपुर की ओर ले जाते हुये देखा। इस पर यमदूतों और शिवदूतों में परस्पर विवाद छिड़ गया। यमदूतों और शिवदूतों में आपस में युद्ध हुआ। यमदूत घबराकर भाग गये। अन्त में शिवदूत देवदत्त को छुड़ाकर, उसके गले से पाश खोलकर, उसे दिव्यरूपधारी बनाकर, वस्त्र और गहनों से अलंकृत करके, दिव्य-विमान में बैठाकर शिवलोक ले गये और वहाँ पहुँचने पर उसे शिव सानिध्य प्राप्त हुआ। इस प्रकार रुद्राक्ष इस तरह से प्रभावशाली तथा साक्षात् शिवस्वरूप होते हैं।

रुद्राक्ष के महत्व एवं महात्म्य को प्रदर्शित करने वाली इसी प्रकार की अन्य कथायें भी पौराणिक ग्रन्थों में मिलती हैं, किन्तु उपर्युक्त कथा हो गये, फलस्वरूप उस ग्राम के निवासियों ने भी देवदत्त को अपने ग्राम से भगा दिया। इस प्रकार, अन्य किसी भी ग्राम में जब देवदत्त को शरण नहीं मिली तो अन्त में वह जंगल में जाकर रहने लगा।

जंगल में रहते हुये भी देवदत्त की पापवृत्तियों में कोई कमी नहीं आई। जंगल में भी वह निरीह पशु-पक्षियों को मारकर उनसे अपनी क्षुधा शान्त करता रहा। इस प्रकार, काफी समय तक वह एक जंगल से दूसरे जंगल में भटकता फिरा। उसी समय उस पापिष्ट, दुरात्मा, दुराचारी, दुष्ट देवदत्त का मृत्यु का समय आ गया। देवदत्त किसी निर्जन वन में विचरण कर रहा था कि एक स्थान पर मुर्छित होकर गिर पड़ा और वहीं पर मर गया।

मृत्यु-मूर्च्छा से पीड़ित, मृत्यु को प्राप्त देवदत्त को यमपुरी ले जाने के लिये यमराज के दूत वहाँ पर पहुँचे और यमपाश उसके गले में बाँधकर उसे घसीटते हुये यमपुर की ओर ले जाने लगे, किन्तु जिस भूमि पर गिरकर देवदत्त की मृत्यु हुई थी वहाँ संयोग से रुद्राक्ष स्पर्श करने से देवदत्त को शिवलोक कैलाश में उपस्थित करने की आज्ञा शिवदूतों को शंकर जी ने दी। कैलाश से आये शिवदूतों ने रास्ते में यमदूतों द्वारा देवदत्त को पाश में बाँधकर घसीटते हुये और कोड़ों से पीटते हुये यमपुर की ओर ले जाते हुये देखा। इस पर यमदूतों और शिवदूतों में परस्पर विवाद छिड़ गया। यमदूतों और शिवदूतों में आपस में युद्ध हुआ। यमदूत घबराकर भाग गये। अन्त में शिवदूत देवदत्त को छुड़ाकर, उसके गले से पाश खोलकर, उसे दिव्यरूपधारी बनाकर, वस्त्र और गहनों से अलंकृत करके, दिव्य-विमान में बैठाकर शिवलोक ले गये और वहाँ पहुँचने पर उसे शिव सानिध्य प्राप्त हुआ। इस प्रकार रुद्राक्ष इस तरह से प्रभावशाली तथा साक्षात् शिवस्वरूप होते हैं।

रुद्राक्ष के महत्व एवं महात्म्य को प्रदर्शित करने वाली इसी प्रकार की अन्य कथायें भी पौराणिक ग्रन्थों में मिलती हैं, किन्तु उपर्युक्त कथा पढकर यदि कोई इसका निष्कर्ष यह निकालें कि जीवन भर पाप-कर्मों में लिप्त रहा जाये और अन्तिम समय में रुद्राक्ष माला या रुद्राक्ष का दाना गले में डाल लिया जाये अथवा रुद्राक्ष माला धारण किये रहो और पाप-कर्मों में लिप्त रहो, अन्त में रुद्राक्ष के पुण्य-प्रभाव से मोक्ष प्राप्ति हो ही जानी है, तो यह उनकी भूल होगी। रुद्राक्ष मुक्ति में तभी सहायक हो सकता है, जब हम रुद्राक्ष धारण करने के साथ ही साथ नित्य-जीवन में आचरण एवं अपने कर्मों की ओर भी ध्यान दें। जब हम सदाचरण, सत्यकर्म अपनायें, शिव-पूजन में श्रद्धापूर्वक मन लगायें, दुष्कर्मों को यत्नपूर्वक जीवन से निकालने का प्रयत्न करें तभी रुद्राक्ष धारण करने से कुछ लाभ सम्भव हो सकता है।

दक्षेश्वर महादेव की जय
25/06/2025

दक्षेश्वर महादेव की जय

20/06/2025

19/06/2025

श्री गौरी शंकर रुद्राक्ष

प्राकृतिक रूप से परस्पर जुड़े दो रुद्राक्षों को गौरी-शंकर रुद्राक्ष कहा जाता है। गौरी-शंकर रुद्राक्ष को भगवान शिव और माता गौरी का रूप माना जाता है इसलिये इसका नाम गौरी शंकर रुद्राक्ष पड़ा है। यह रुद्राक्ष एक मुख वाला तथा चौदह मुख वाले की तरह बहुत ही दुर्लभ और विशिष्ट रुद्राक्ष होता है। इसमें भगवान शंकर का वरदान और माँ पार्वती की दिव्य शक्तियाँ निहित होती है। इसको पहनने से भगवान शंकर और माता पार्वती दोनों ही समान रूप से खुश होते हैं और अनेक प्रकार के वरदान और शक्तियाँ धारणकर्ता को प्राप्त होते हैं। माता पार्वती हमेशा ही भगवान शंकर को मनुष्यों को वरदान देने को प्रेरित करती रहती हैं। यह रुद्राक्ष मानव को हर तरह के रुद्राक्ष से होने वाले लाभ को अकेले ही दिलवाता है, जो व्यक्ति एक मुख वाला अथवा चौदह मुख वाला रुद्राक्ष पहनना चाहते हों और पहन नहीं सकते हों उन्हें गौरी-शंकर जरूर ही धारण करना चाहिये, क्योंकि एक मुख वाले और चौदह मुख वाले के समान ही यह रुद्राक्ष भी हर तरह की सिद्धियों का दाता है। यह अपने आप में विशिष्ट रुद्राक्ष है। इस रुद्राक्ष को पहनने के लिये सोने अथवा चाँदी में मढवा लेना श्रेष्ठ है।

17/06/2025

रुद्राक्ष खरीदने से पहले ध्यान देने योग्य बातें

रुद्राक्ष के विषय में लोगों में काफी भ्रम व्याप्त है। विश्व में सबसे ज्यादा रुद्राक्ष की फसल 'इण्डोनेशिया' में होती है, इसके बाद नेपाल, अफ्रीका, जावा, सुमात्रा, मलेशिया, भूटान और भारत में होती है।

रुद्राक्ष सिर्फ नेपाल का ही शुभ होता है ऐसी बात मिथ्या है। यह मान्यता हिन्दुओं में हिन्दू देवता शिव के साथ ही जुड़ी हुयी है। नेपाल जिसकी भौगोलिक सीमा को इन्सान ने बाँटा है, भी हिमालय की तराई में बसा हुआ है। पशुपतिनाथ का क्षेत्र होने से हिन्दुओं की नेपाल के प्रति गहरी आस्था है, किन्तु यथार्थ में किसी भी देश-प्रदेश के रुद्राक्ष के स्वभाव-तासीर एक ही है।

नेपाल में बड़े आकार के दाने पैदा होते हैं, जबकि इण्डोनेशिया में छोटे आकार के दाने सबसे ज्यादा मात्रा में होते हैं।

रुद्राक्ष का मुख्य एवं सीधा-सा कार्य मानसिक शान्ति प्रदान करना है। इसकी अपनी एक चुम्बकीय शक्ति होती है, जो कि रक्तचाप को सन्तुलित कर हृदय को मजबूती प्रदान करता है।

रुद्राक्ष एक्यूप्रेशर की तरह ही काम करता है। इसके उठे हुए नोंक उंगलियों को उचित दबाव देते हैं, जिसमें हृदय सम्बन्धित अंगुली भी है, जिससे हृदय को शक्ति मिलती है। रुद्राक्ष में छेद नहीं होता बल्कि वृक्ष से तोड़ने के पश्चात् किया जाता है। इनके छिलके मजबूत होते हैं, जिसे एक विशेष प्रक्रिया के माध्यम से उतारा जाता है। फिर भी यदा-कदा कुछ दानों में छिलके लगे रह जाते हैं, जो कि इस बात का प्रमाण है कि ब्ल पकने से पहले तोड़ा गया है।

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