Atulya Hospital

Atulya Hospital Complete health care through Ayurveda

07/08/2024
15/06/2024

टॉयलेट धोने का हार्पिक अलग,

बाथरूम धोने का अलग!

टॉयलेट की बदबू दूर करने के लिए खुशबु छोड़ने वाली टिकिया भी जरुरी है!

कपडे हाथ से धो रहे हो तो अलगवाशिंग पाउडर
और
मशीन से धो रहे हो तो खास तरह का पाउडर

नहीं तो तुम्हारी 20000 की मशीन बकेट से ज्यादा कुछ नहीं!

और हाँ कॉलर का मैल हटाने का वेनिश तो घर में होगा ही,

हाथ धोने के लिए
नहाने वाला साबुन तो दूर की बात,
एंटीसेप्टिक सोप भी काम में नहीं ले सकते,

लिक्विड ही यूज करो

साबुन से कीटाणु ट्रांसफर होते है

(ये तो वो ही बात हो गई कि कीड़े मारनेवाली दवा में कीड़े पड़ गए)

बाल धोने के लिए शैम्पू ही पर्याप्त नहीं ,
कंडीशनर भी जरुरी है,

फिर बॉडी लोशन,
फेस वाश,
डियोड्रेंट,
हेयर जेल,
सनस्क्रीन क्रीम,
स्क्रब,
गोरा बनाने वाली क्रीम

काम में लेना अनिवार्य है ही.

और हाँ दूध
( जो खुद शक्तिवर्धक है)
की शक्ति बढाने के लिए हॉर्लिक्स मिलाना तो भूले नहीं न आप...

मुन्ने का हॉर्लिक्स अलग,
मुन्ने की मम्मी का अलग,
और मुन्ने के पापा का डिफरेंट.

साँस की बदबू दूर करने के लिये ब्रश करना ही पर्याप्त नहीं,
माउथ वाश से कुल्ले करना भी जरुरी है....

तो श्रीमान जी...

10-15 साल पहले जिस घर का खर्च 8हज़ार में आसानी से चल जाता था

आज उसी का बजट 40 हजार को पार कर गया है

तो उसमें सारा दोष महंगाई का ही नहीं है,
कुछ हमारी बदलती सोच भी है

सीमित साधनों के साथ स्वदेशी जीवन शैली अपनायें,

08/06/2024

थायराइड रोग, थायराइड ग्रंथि से संबंधित विभिन्न स्थितियों को शामिल करता है। थायराइड एक छोटी ग्रंथि है , जो गले के सामने स्थित होती है और यह शरीर की मेटाबॉलिज्म को नियंत्रित करने वाले हार्मोन (टी3 और टी4) का उत्पादन करती है। थायराइड के रोगों को मुख्यतः दो भागों में बांटा जा सकता है ---------
हाइपोथायरायडिज्म और हाइपरथायरायडिज्म।
*1- हाइपोथायरायडिज्म -------*
हाइपोथायरायडिज्म 1ब होता है जब थायराइड ग्रंथि पर्याप्त मात्रा में थायराइड हार्मोन नहीं बनाती। इसके लक्षणों में शामिल हैं ---------
थकान और कमजोरी, वजन बढ़ना, ठंड महसूस होना , त्वचा का सूखापन, बालों का झड़ना , मासिक धर्म में गड़बड़ी ।
*2- हाइपरथायरायडिज्म -------*
हाइपरथायरायडिज्म, तब होता है। जब थायराइड ग्रंथि अत्यधिक मात्रा में थायराइड हार्मोन बनाती है। इसके लक्षणों में शामिल हैं ---------
तेजी से वजन घटाना, धड़कन बढ़ना, पसीना आना , घबराहट और चिड़चिड़ापन, नींद की समस्या ,
आंखों की समस्या ।
*3- अन्य थायराइड संबंधित रोग -----*----
*(1) गॉइटर (Goiter)-----* थायराइड ग्रंथि का असामान्य रूप से बढ़ना।
*(2) थायराइड नोड्यूल्स ------* थायराइड ग्रंथि में गांठों का बनना।
*(3) थायराइड कैंसर -----* थायराइड ग्रंथि में कैंसर का विकास।
*4- परीक्षण ---------*
थायराइड रोगों के निदान के लिए खून की जांच की जाती है, जिससे टीएसएच (थायराइड स्टीमुलेटिंग हार्मोन), टी3 और टी4 के स्तर का पता चलता है।
थायराइड रोगों का सही समय पर पता लगाना और उपचार करना महत्वपूर्ण है ताकि इनके प्रभाव को कम किया जा सके और जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाया जा सके।
5- थायराइड का आयुर्वेद चूर्ण ----------
*(1) घटक द्रव्य और निर्माण ---------*
त्रिकूट व त्रिफला 150 - 150 ग्राम, बायविडिंग, अजवाइन व चित्रकमूल 50-50 ग्राम,
काष्ठ औषधीय का महीन चूर्ण बनाकर दें।
*(2) मात्रा और अनुपान ---------*
सुबह खाली पेट, एक चम्मच, सादा पानी से लें।
एक सप्ताह के अंदर थायराइड नियंत्रित हो जाएगा।
*(3) अन्य उपाय --------*
हरी धनिए की पत्ती का रस सुबह खाली पेट लें। यह भी नियंत्रित करता है।
अन्य जानकारी के लिए संपर्क करे
अतुल्य आयुर्वेद चिकित्सा केंद्र
3348, सैक्टर 14 पार्ट 2 हिसार
मो. 094666 97773

31/05/2024

यदि कोई व्यक्ति कभी अधिक भोजन करता है, कभी कम भोजन करता है या असमय भोजन करता है, ऐसी स्थिति को विषम भोजन अभ्यास (Irregular food habits) या विषमाशन कहते हैं। ऐसा करने वाले व्यक्ति के शरीर में हमेशा आलस्य, भारीपन, पेट में गुड़गुड़ाहट की समस्या बनी रहती है।

क्या करें:
स्वस्थ और संतुलित आहार का सेवन करें,
भोजन करने का समय निर्धारित करें
और भोजन के दौरान टीवी-मोबाइल से दूर रहें।

Reference-Yog Ratnakar

बहु स्तोकमकाले वा जेयं तद्विषमाशनम् । आलस्यगौरवाटोपशब्दांश्च कुरुते गदान् । ।।145 ।।

28/05/2024

डायबिटीज:

सिर्फ चीनी और मिठाइयाँ कम करने से टाइप 2 डायबिटीज को ठीक नहीं किया जा सकता। लोग अक्सर सोचते हैं कि चावल और सफेद चीनी की मात्रा कम करना ही डायबिटीज के लिए मुख्य आहार सुधार है, लेकिन यह एक बड़ा मिथक है। टाइप 2 डायबिटीज के कई कारण होते हैं, जैसे खराब कार्बोहाइड्रेट मेटाबोलिज्म, शरीर में इंसुलिन प्रतिरोध, जहरीले बाहरी तत्वों का प्रयोग, रासायनिक दवाओं के कारण लीवर का खराब स्वास्थ्य, संक्रमण का उचित प्रबंधन न करना, और आंतों का खराब स्वास्थ्य। आयुर्वेद के अनुसार, इन कारणों का गहन विश्लेषण करना महत्वपूर्ण है ताकि सभी ठीक होने योग्य (आयुर्वेद के प्राग्नॉस्टिक मानकों के अनुसार 'साध्य') मामलों में स्थिति को सुधारने का प्रयास किया जा सके। केवल रक्त शर्करा को कम करने के लिए हाइपोग्लाइसेमिक दवाओं का उपयोग करना न केवल एक धोखा है, बल्कि यह दीर्घकालिक जटिलताओं और गंभीर समस्याओं को भी जन्म दे सकता है।

27/05/2024

*आपका स्वास्थ्य... आयुर्वेद के साथ*

*ज्येष्ठ माह_ ऋतुचर्या_आहार विहार_दिवाशयन_पथ गमन का निषेध_मुनक्का के सेवन का महत्व_वात का संचयकाल_आषाढ़ का ज्वर_पित्त का अस्वाभाविक प्रकोप_पित्त से सम्बन्धित व्याधियाँ_रोहिणी का तपना_नोतपा_बैशाख में बिल्व प्रयोग*

ग्रीष्म ऋतु के इस काल में कुछ बेहद जरुरी विषय पर आप सभी का ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा

आप सबको ये विदित हे
की अभी ग्रीष्म ऋतु का ज्येष्ठ माह चल रहा हे

उसके बाद आषाढ़ माह प्रारंभ होगा

इन दोनो माह का आरोग्य में बड़ा महत्व हे
आपको जिन जरुरी दिशा निर्देशों की पालना आयुर्वेद मतानुसार इस ज्येष्ठ माह में करनी हे
वो हे
पहला तो "दिवाशयन"(Day Sleep) करे

आपको इस माह में दिवाशयन(Day sleep) करना हे
और जरूर करना हे
यूँ तो आयुर्वेद में दिवाशयन को मना किया गया हे,किन्तु ग्रीष्म के सिर्फ एक माह में यानि ज्येष्ठ माह में इसे बहुत लाभदायक माना गया हे ,
और दिवाशयन इस माह में करना चाहिए
क्युँ करना चाहिए ?
वो इसलिए की

"जेठ मास जो दिन में सोवे"
"ताको ज्वर आषाढ़ में रोवे"

यदि हम ज्येष्ठ माह में दिवाशयन करते हे तो हम आषाढ़ माह में आने वाले ज्वर से पूर्णतया बच जाएँगे
आप देखतें हे की हर वर्ष आषाढ़ माह से OPD बढ़ जाती हे , ज्वर के रोगी इस समय अधिक हो जाते हे

इसके पीछे का जो शास्त्र हे वो ये हे की ज्येष्ठ माह में हमारे शरीर में वात या कहे वायु का संचय हो रहा होता हे
और इस संचय को यदि हमने होने दिया तो आने वाले काल में हमें वात के प्रकोप से होने वाले रोगों से सामना करना पड़ेगा
अत: यदि हम संचय काल में ही वात के अनावश्यक संचय से बचने का आहार विहार करते हे तो भविष्य में आने वाले रोगों से हम बहुत हद तक बचने में सफल हो पाएँगे
एक और जो महत्वपूर्ण कारण दिवाशयन के पीछे है
वो है पित्त के शमन मे शयन का महत्व
आचार्यों ने कहा है
👇
"शयनं पित्तनाशाय वातनाशाय मर्दनम्।"
"वमनं कफनाशाय ज्वरनाशाय लंघनम्।।"

अर्थात शयन पित्त का शमन करता है
यदि हम इस काल में शयन करते है
तो पित्त के अस्वाभाविक प्रकोप से बच जाते हैं

आप सब जानते ही है
की पित्त का प्रकोप शरद ऋतु में होता है
किन्तु शरद ऋतु में होने वाला प्रकोप पित्त का स्वाभाविक प्रकोप होता है
जबकि ग्रीष्मकाल में अभी एवं होलिका दहन के समय पित्त का अस्वाभाविक प्रकोप होता है
यानि की जब जब मौसम शीत गुण से अचानक उष्ण गुण में परिवर्तित होगा तब पित्त का स्वभाव से प्रकोप के काल के नहीं होते हुए भी वह उष्णता की वृद्धि से भभक जाता है
जेसे पेट्रोल हल्की सी आग देखकर जल उठता है
क्युँकि अभी जेठ माह में ग्रीष्मकाल में वेसे ही उष्णता अधिक हो गयी है
उपर से "रोहिणी" के तपने से ये उष्णता और अधिक बढ़ जाती है
और फलस्वरूप पैत्तीक बिमारियों से हमें सामना देखने को मिलता है
आचार्यों ने पित्त के प्रकोप में एक कारण उष्णता के साहचर्य को भी माना है
अष्टांग हृदय सूत्र स्थान 12/20 के श्लोक को आप देखेंगे
तो वहाँ साफ साफ लिखा है
"उष्णेन कोपं"
अर्थात पित्त का प्रकोप उष्णता से होता है

क्यूँ होती हे मौसम में अभी इतनी उष्णता ?

दरअसल सूर्य 12 राशियों 27 नक्षत्रों में भ्रमण करता है
अभी सुर्य ने 14 अप्रैल को सूर्य की उच्च राशि मेष राशि में प्रवेश किया था
जिससे दिनो दिन गर्मी बढ़ती गयी

ज्योतिष के अनुसार सूर्य कुंडली में जिस भी ग्रह के साथ बैठता है तो उसके प्रभाव को अस्त कर देता है
रोहिणी नक्षत्र का अधिपति ग्रह चंद्रमा होता है
ऐसे में जब सूर्य रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करता है तो वह चंद्र की शीतलता के प्रभाव को पूर्णत: समाप्त करके ताप को बढ़ा देता है
यानी पृथ्वी को शीतलता प्राप्त नहीं हो पाती
इस कारण ताप और अधिक बढ़ जाता है
नौतपा के दौरान सूर्य की किरणें सीधी पृथ्वी पर आती जिसके चलते तापमान में जरुरत से ज्यादा उष्णता हो जाती है

रोहिणी क्या है ?
नौतपा क्या है ?
और हमारे स्वास्थ्य विज्ञान में इसकी क्या भुमिका है ?
सूर्य जब रोहिणी नक्षत्र में 15 दिनों के लिए आता है तो उन पंद्रह दिनों के पहले नौ दिन सर्वाधिक गर्मी वाले होते हैं
इन्हीं शुरुआती नौ दिनों को नौतपा के नाम से जाना जाता है
इसको भी अच्छे से समझने की यहाँ जरुरत है
आप देखेंगे की रोहिणी लगने के बाद मौसम में गर्मी की तेजी बहुत ज्यादा हो जाती है
असल मेँ रोहिणी इस बार 25 मई से 3 जून तक रहेगी
प्रतिवर्ष ग्रीष्म ऋतु में नौतपा प्रारंभ होता है
इस बार नवतपा वैशाख शुक्ल की चतुर्दशी यानी 25 मई 2021 से प्रारंभ हो चुका है

27 नक्षत्रों में शामिल रोहिणी नक्षत्र के दिन ही रोहणी व्रत रखा जाता है
यही कारण है कि इस व्रत का नाम ही रोहणी रखा गया है
यह व्रत जैन समुदाय के लिए बहुत ही खास महत्व रखता है
माना जाता है कि इस व्रत को करने से आत्‍मा के विकारों को दूर किया जाता है
साथ ही ये कर्म बंध से भी छुटकारा दिलाता है, यानी मोक्ष की प्राप्ति होती है

सीधे सीधे हम इसे समझे तो ये मतलब निकालता है की जेठ में सुर्य रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश किया

रोहिणी नक्षत्र का अधिपति चन्द्रमा है या कहें सोम या जल गुण के कारक का सुर्य की उष्णता से यहाँ ह्रास हो जाता है

और इस सौम्यता के लोप से एवं सूर्य की उष्णता से पित्त का अस्वाभाविक प्रकोप हमे देखने को मिलता है
जिससे हमे कई पैत्तीक रोग देखने को अभी मिल रहे है
जिसमें मुख्यतया
मुहँ में छाले
अतिसार
मूत्रदाह(Burning Urination )
अंगावदारण
चर्मदलन
रक्त कोठ (शरीर में लाल चकते निकलना)
हर्पिज़
दाह
रक्तपित्त (thrombosis, TIA (transient ischemic attack episode)
गलपाक
मुखपाक
गुदपाक या a**l fissures
रक्तमण्डल, आदि रोग शामिल है

इस समय रोहिणी का व्रत करने से, (लन्घन करने से) "पित्त का पाचन" हो जाता है
पित्त दोष पच जाता है
शास्त्रों में भी "पित्त दोष के पाचन" के लिए भावप्रकाश ज्वराधिकार में और आचार्य सुश्रुत अनुसार पित्त प्रकोप में दस दिवस लन्घन बतलाया है
जो नोतपा अनुसार नोरात्रि(नवरात्रि) के व्रत की तरह ठीक जान पड़ता है

दुसरा जरुरी निर्देश इस माह में हे वो हे
"पथ गमन नहीं करना हे"
🏃‍♂️🏃‍♀️❌

अर्थात अत्यधिक पैदल नहीं चलना हे
ज्यादा पैदल चलने से वात का संचय होगा
जो वर्षा ऋतु में वात का भयानक प्रकोप करेगा
इसलिए आवश्यक हे की ज्यादा पैदल चलने से, अत्यधिक दौड़ने भागने से अभी कुछ दिवस परहेज़ करें

तीसरा जो आवश्यक निर्देश हे
वो हे
बड़े द्राक्षा का सेवन
यानि की बड़े वाले द्राक्षा या कहें मुनक्के इस समय प्रतिदिन 15 से 20 की संख्या में सेवन करें

इस समय ज्येष्ठ माह में सुर्यबल पूर्णतम की अवस्था में होता हे
तथा चंद्रबल क्षीणतम अवस्था में होता हे
भूमण्डल का स्वभाव रुक्षतम होता हे
और प्राणियों में अल्पबल होता हे
ये स्थिती शरीर में अत्यधिक रुक्षता, उष्णता और दाह पैदा करती हे
तथा शरीर में सोमान्श की अल्पता हो जाती हे
इसलिए मुनक्के का मधुर रस इस रुक्षता ,उष्णता और दाह को समाप्त करने में प्रभावी भुमिका निभाता हे
तथा सोम अंश को शरीर में स्थित रखता हे
मुनक्के(बड़े दाख ) इस समय वात और पित्त शामक होते हे
ग्रीष्म ऋतु में जो इसका सेवन करता हे वो ग्रीष्मकालीनरोगों से बच जाता हे, ये वात के अनावश्यक संचय को भी रोक देता हे
ये सनद रहे मुनक्का यहाँ Symbolic द्रव्य हे
द्राक्षा से मिलते जुलते रस गुण का हम यहाँ युक्ति से प्रयोग करने के लिए स्वतंत्र हे

अन्त में बिल्व का प्रयोग हमने बैशाख में बतलाया था
यदि आपने बैशाख में बिल्व का प्रयोग किया होता तो इस महीने ग्रहणी और अतिसार और पित्त की अत्यधिक द्रवता से उत्पन्न बीमारियों से भी बच जाते

बिल्व संग्राही होने से रक्त का भी संग्राहक होता है इसलिए वो रक्तपित्त(thrombosis) में भी लाभदायक सिद्ध होता है
रक्तपित्त में रक्त की अत्यधिक तनुता को ये दूर करता है
क्युँकि संग्राही द्रव्य सिर्फ़ मल के लिए ही संग्राही नही होते है वो तीनो दोष धातु और मल के लिए भी बराबर संग्राही होते है

ये सभी प्रयोग हमारे पूर्वजों, ने लोकोक्तीयों के माध्यम से सहेज कर रखे थे
आप सभी प्रियजनों की सेवा में इन्हे मैं सादर समर्पित करता हूँ

जय धनवंतरि जी
जय आयुर्वेद
🌹🌹🙏🙏

13/05/2024

यदि आप लंबे समय तक ब्लूटूथ डिवाइस का उपयोग करते हैं या मोबाइल फोन का उपयोग अधिक समय तक करते हैं, तो यह आपके शारीरिक स्वास्थ्य पर असर डाल सकता है। अधिक समय तक ब्लूटूथ डिवाइस का उपयोग करने से कानों की गर्माहट बढ़ सकती है, जिससे टिनिटस (कानों में घंटियों की गूंज) जैसी समस्याएं हो सकती हैं। इसके अलावा, यह आपके कानों में गर्माहट की अनिवार्य हानि को भी पहुंचा सकता है, जिससे कान की ट्यूमर का खतरा बढ़ सकता है। इसके अलावा ब्लूटूथ उपयोगकर्ताओं को कानों के ऊपर बालों का झड़ना देखा गया है,यह वास्तव में चिंताजनक है।
इसलिए, अगर आप स्मार्टफोन या ब्लूटूथ उपकरणों का उपयोग करते हैं, तो इसका बहुत सावधानीपूर्वक उपयोग करें और इसे अधिक समय तक न लगाएं। समय-समय पर आराम करें और अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें। यदि संभव हो, तो स्पीकर्स का उपयोग करें, जो आपके कानों को ब्लूटूथ या डायरेक्ट फोन उपयोग के नुकसान से बचाएगा।यह आपके कानों और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बेहतर होगा।
अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना बहुत महत्वपूर्ण है, इसलिए आपकी जागरूकता और सावधानी आपके लिए वास्तव में महत्वपूर्ण हो सकती है।

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