25/10/2018
जैसे क्रिकेट मैच के दौरान रनों का, चुनाव के नतीजों के वक़्त सीटों का, और भाषण के दौरान मोदी जी के लिखे इतिहास का स्कोर हर ज़बान पर रहता है उसी तरह आजकल डेंगू के ज़माने में पलेटों या कीटाणुओं का स्कोर हर ज़बान पर रहता है. अंग्रेज़ी में इन्हें प्लेटलेट्स कहते हैं जिसका मतलब है छोटी प्लेट और जिसे शुद्ध हिंदुस्तानी में हम पलेटची या चुमरुक पलेट कह सकते हैं. एक तो डेंगू का नाम सुनते ही लोग ऐसे घबरा जाते हैं जैसे उनका मोबाइल पानी में गिर गया हो. ऐसे में अगर ये चुमरुक पलेटें भी कम हो जाएँ तो वो ऐसे सहम जाते हैं जैसे उन्हें शेर के पिंजरे में डालने की सज़ा सुना दी गई हो.
इन चुमरुक पलेटों की गिनती को डेंगू के ख़तरे का पैमाना मानना उतना ही फ़ुज़ूल है जितना कि सरदार पटेल की मूर्ति या इलाहाबाद का नाम बदलने को विकास का, या टोपी पहनने को धर्म निरपेक्ष होने का, पैमाना मानना.
डेंगू को ख़तरे के हिसाब से तीन क़िस्मों में बाँटा जाता है, मामूली डेंगू, मज़े का डेंगू और भयंकर डेंगू.(mild, moderate and severe dengue). इनमें से हर क़िस्म के डेंगू में ये चुमरुक पलेटें (प्लेटलेट्स) एक लाख से कम हो सकती हैं.
मामूली डेंगू कुछ ऐसा मामूली भी नहीं होता, बस जान ही नहीं लेता है. तेज़ बुख़ार आता है, हाथ पैरों में, सर में और आँखों के पीछे बहुत तेज़ दर्द होता है. बदन पर दाने आ सकते हैं. पेट दर्द, उल्टियाँ और दस्त भी हो सकते हैं.
इनके अलावा अगर कुछ ख़तरे की घंटियाँ बजने लगें तो ऐसे डेंगू को ‘मज़े का’ डेंगू कहते हैं. पेट में तेज़ दर्द हो रहा हो, उल्टियाँ रुकने का नाम न ले रही हों, बहुत कमज़ोरी या थकान महसूस हो रही हो, साँस फूलने लगे, हीमोग्लोबिन 20% से ज़्यादा बढ़ जाए तो इनमें से हर तकलीफ़ पर ख़तरे की घंटियाँ बजना शुरू हो जाती हैं. ये ख़तरे की घंटियाँ नहीं एम्बूलेंस का सायरन हैं.
इनके अलावा कुछ लोग डेंगू होते ही ख़तरे की गोद में बैठ जाते हैं जैसे दिल के मरीज़, लक़वाग्रस्त लोग, बहुत कम उम्र के बच्चे और बहुत बुज़ुर्ग लोग, वो औरतें जो उम्मीद से हों, ऐसे मरीज़ जो ख़ून पतला करने की दवाइयाँ या स्टेरॉइड ले रहे हों, जिन्हें शुगर या ब्लड प्रेशर हो, एड्स हो, जो बहुत मोटे हों, जिन्हें ख़ून की बीमारियाँ हों. ऐसे लोगों का मामूली डेंगू भी मज़े का डेंगू होता है.
जब डेंगू, मज़े का हो तो मरीज़ पर बहुत ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत है. अगर यह घर पर रह कर किया जा सकता हो तो ठीक है वर्ना अस्पताल में भर्ती करना बेहतर है. ऐसे वक़्त बोतल चढ़ाने से कई जानें बचाई जा सकती हैं लेकिन यह काम अस्पताल में भर्ती होने के बाद विशेषज्ञ की निगरानी में ही होना चाहिए वर्ना बोतल चढ़ाना जानलेवा भी हो सकता है. ऐसे वक़्त इंजेक्शन सिर्फ़ नसों में लगना चाहिए.
भयंकर डेंगू में हाथ पैर ठंडे हो जाते हैं. पेशाब, पाख़ाने में ख़ून आने लगता है. बदन के दूसरे हिस्सों से भी ख़ून का रिसाव शुरू हो जाता है. गुर्दे, फेफड़े और लीवर में ख़राबी आ जाती है. ऐसे मरीज़ों को किसी बड़े अस्पताल में भर्ती करने की ज़रूरत होती है.
डेंगू से बचने के लिए सफ़ाई पर ध्यान दें. घर के अंदर और आसपास पानी न इकट्ठा होने दें. मच्छरों से बचें. डेंगू के मरीज़ को दिन में भी मच्छरदानी में रखें. नगर निगम को मच्छरों पर कंट्रोल के लिए मजबूर करें.
अगर डेंगू हो ही जाए तो घबराएँ नहीं, सावधानी रखें. अगर डेंगू ऐसा ही जानलेवा होता तो एक चौथाई शहर डेंगू से मर चुका होता.
अगर डेंगू के बारे में आप कुछ और जानना चाहें तो कमेंट बॉक्स में आपका स्वागत है.