Dr. Nadim Farooqui Clinic

Dr. Nadim Farooqui Clinic Online Consultation Family Physician, Skin treatment by qualified and experienced doctor
फैमिली डॉक्ट

15/08/2020
एक्ने या मुंहासे चमड़ी की सबसे आम बीमारी है. लगभग 85% लोगों में कम या ज़्यादा असर कभी न कभी ज़रूर हुआ होता है. कुछ में य...
20/07/2020

एक्ने या मुंहासे चमड़ी की सबसे आम बीमारी है. लगभग 85% लोगों में कम या ज़्यादा असर कभी न कभी ज़रूर हुआ होता है. कुछ में यह बहुत मामूली से होते हैं लेकिन कुछ में बड़े बड़े निशान हो जाते हैं और चेहरे की चमड़ी बहुत खराब हो जाती है. कुछ के चेहरे पर मुंहासे तो कम होते हैं लेकिन इनके छोड़े गए निशान बहुत गहरे और काफ़ी नज़र आते हैं.
आमतौर पर लोग इसके मनोवैज्ञानिक प्रभाव के कारण परेशान रहते हैं. जहां कुछ लड़कियां एक छोटी सी फुंसी को लेकर ऐसे आती हैं जैसे यह उनकी ज़िंदगी की सबसे ख़तरनाक दुर्घटना है, वहीं कुछ ऐसे लापरवाह होते हैं कि दिल करता है इन्हें गिरफ़्तार करके इनका इलाज कर दूं.
मुहांसों के लिए खाने पीने की चीजों को इल्ज़ाम दिया जाता है. कोई कहता है तेल मत खाओ, कोई कहता है चॉकलेट मत खाओ, कोई कहता है चाय मत पियो, कोई कहता है नॉनवेज मत खाओ. लेकिन इनका किसी का भी संबंध मुहांसों से नहीं है.
मुहांसों पर इलाज का असर धीरे-धीरे होता है. लगभग दो महीने में फ़र्क़ नज़र आना शुरू होता है और चार महीने में चेहरा काफ़ी अच्छा दिखने लगता है. लेकिन लोगों से इतना सब्र नहीं होता और वह डॉक्टर बदलते रहते हैं. इसके कारण वह ठीक नहीं होते और उनके चेहरे पर मुहांसों के छोड़े गए गड्ढे बढ़ते जाते हैं.
अगर आपके मुहासे हैं तो डॉक्टर की सलाह से इलाज लें. हो सकता है कोई ट्यूब ठीक होने के बाद भी आप को लगाते रहना पड़े. साथ में यह भी ध्यान रखें कि चेहरे पर बार-बार हाथ न लगाएं. दिन में दो या तीन बार साबुन से मुंह धोएं. तीन बार से ज्यादा धोने पर चमड़ी ज्यादा ख़ुश्क हो जाती है और खुजली चलती है. इसलिए चेहरा तीन बार से ज़्यादा साबुन से ना धोएं. तेलीय क्रीम चेहरे पर ना लगाएं.
कभी-कभी मुहांसों के इलाज से त्वचा में जलन होने लगती है और चमड़ी लाल लाल हो जाती है. इस वजह से कई मरीज बीच में ही इलाज बंद कर देते हैं. ऐसे में इलाज बंद ना करें, अपने डॉक्टर से मिलें.
विश्वास रखिए आपका चेहरा एक दिन आपके दिल की तरह ही सुंदर दिखेगा.

फ़ंगस को हिंदी में फफूंद कहते हैं. फ़ोटो में यह भले ख़ूबसूरत दिख रहा हो शरीर में अगर इन्फ़ेक्शन करे तो कई बीमारियाँ करता है....
17/07/2020

फ़ंगस को हिंदी में फफूंद कहते हैं. फ़ोटो में यह भले ख़ूबसूरत दिख रहा हो शरीर में अगर इन्फ़ेक्शन करे तो कई बीमारियाँ करता है. फ़ंगस शरीर के हर अंग में इन्फ़ेक्शन करता है. आज हम बात करेंगे चमड़ी के इन्फ़ेक्शन की.
आजकल चमड़ी के फ़ंगल इन्फ़ेक्शन की महामारी फैली हुई है. हर घर में कोई न कोई इससे परेशान है. शरीर का जो हिस्सा नम रहता है वहाँ इसके बीज उगने लगते हैं और फिर इन्फ़ेक्शन धीरे धीरे बढ़ने लगता है. जांघ के जोड़ में, पेट के निचले हिस्से पर, कूल्हे पर आम तौर पर इसका असर होता है लेकिन शरीर के हर हिस्से की त्वचा पर इसका इन्फ़ेक्शन हो सकता है.. इसके बीज कपड़ों पर लग जाते हैं और हवा मैं भी फैलते हैं. इस कारण इसका इन्फ़ेक्शन घर के दूसरे सदस्यों में भी हो जाता है. इससे बचने के लिए शरीर के उन हिस्सों को टेलकम पाउडर लगा कर सूखा रखना चाहिए जो पसीने के कारण गीले रहते हैं. घर के सभी सदस्यों को जिन्हें ये इन्फ़ेक्शन हो रहा है एक साथ इलाज करवाना चाहिए वरना घर के किसी न किसी सदस्य को इसका इन्फ़ेक्शन होता रहेगा.
इसे ठीक करने के लिए लगभग एक महीना इलाज की ज़रुरत होती है. जब खुजली कम हो जाती है तो मरीज़ दवा लेना बंद कर देता है और मरहम लगाने में सुस्ती करने लगता है जिसके कारण यह बार बार उभर कर आता है. बीच में दवा बंद करने से फ़ंगस में उस दवा के लिए प्रतिरोधक क्षमता पैदा हो जाती है फिर वह दावा असर करना भी बंद कर देती है. ऐसे व्यक्ति से अगर इन्फ़ेक्शन दुसरे व्यक्ति तक पहुंचता है तो उस पर भी यह दवा असर नहीं करती है क्योंकि फ़ंगस तो पहले से ही प्रतिरोधक क्षमता हासिल कर चुका होता है. इसका इलाज जब तक डॉक्टर बंद न करे चलने दें. कपड़ों और अंडर वियर पर प्रेस कर के ही पहने. तभी इससे मुक्ति मिलेगी.

हाईपरपिगमेंटेशन का मतलब होता रंग का गहरा होना. हमारी त्वचा में एक रंग होता है जिसे मिलेनिन कहते हैं जब ज़्यादा बनने लगता ...
16/07/2020

हाईपरपिगमेंटेशन का मतलब होता रंग का गहरा होना. हमारी त्वचा में एक रंग होता है जिसे मिलेनिन कहते हैं जब ज़्यादा बनने लगता है तो त्वचा का रंग गहरा हो जाता है और धब्बे बन जाते हैं. यह रंग धूप में जाने से और भी गहरा हो जाता है. हाईपरपिगमेंटेशन कई तरह का होता है. सबसे आम है मिलेस्मा, फिर अकेंथोसिस नाइग्रिकन्स और उम्र के कारण होने वाले निशान. इनके अलावा हाईपरपिगमेंटेशन के कई और भी कारण होते हैं.आज हम बात करेंगे मिलेस्मा के बारे में.
आम तौर पर महिलाओं के और कभी कभी पुरषों के चेहरे पर गाल, नाक और भाल पर गहरे निशान हो जाते हैं. इसका मुख्य कारण हार्मोन हैं. गर्भावस्था में महिलाओं के चेहरे पर ये अक्सर हो जाता है और बाद में अपने आप ठीक भी हो जाता है. यह भी धूप में मौजूद ए और बी अल्ट्रा वायोलेट किरणों की वजह से गहरा हो जाता है.
मिलेस्मा में कोई तकलीफ़ नहीं होती और न ये आगे चल कर कोई नई बिमारी पैदा करता है. लेकिन गहरे रंग के धब्बों के कारण कुछ लोगों को मनोवैज्ञानिक रूप से प्रभावित करता है, जिसके कारण उनमें आत्मविश्वास की कमी हो जाती है.
इलाज के लिए सबसे महत्वपूर्ण है धूप से बचना. जब भी बाहर निकलें चेहरे पर SPF 30 वाला सनस्क्रीन लगा कर निकलें. सनस्क्रीन अगर ज़िंक ऑक्साइड वाला हो तो बेहतर है. खाने में सलाद और सब्ज़िया ज़्यादा लें. पानी ख़ूब पियें. नींद आठ घंटे की लें. घरेलु उपचार के लिए हल्दी, चन्दन और एलोवेरा तो हैं ही.
डॉक्टर इसके लिए लगाने के लिये अलग अलग तरह की क्रीम देते हैं. यह क्रीम ब्लीच करती है और मेलेनिन बनने से रोकती है. कई बार इलाज बंद करने के बाद मिलेस्मा दुबारा हो जाता है.
जब दवाइयों से बराबर कण्ट्रोल नहीं होता तो माइक्रोडर्मएब्रेजन, केमिकल पीलिंग या लेज़र का प्रयोग करना होता है.

Now consult online safely from home, especially for skin diseases. To book an appointment tap here.अब सुरक्षित रहते हुए ...
11/07/2020

Now consult online safely from home, especially for skin diseases. To book an appointment tap here.
अब सुरक्षित रहते हुए घर बैठे ऑनलाइन इलाज लें सकते हैं ख़ास तौर पर चर्म रोगों के लिए. अपाइंटमेंट बुक करने के लिए टेप करें.
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10/07/2020

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28/03/2020

मैं होम क्वारंटीन पर हूँ सिर्फ़ फ़ोन पर ही मिल पाऊँगा
I'm on home quarantine can meet on phone only

अगर आपको* ऐसा लगता है कि बुख़ार आने वाला है.* या हल्की फुल्की खाँसी सर्दी है* या पंद्रह दिन से जोड़ों में दर्द है.* या ह...
26/03/2020

अगर आपको
* ऐसा लगता है कि बुख़ार आने वाला है.
* या हल्की फुल्की खाँसी सर्दी है
* या पंद्रह दिन से जोड़ों में दर्द है.
* या हल्का फुल्का कमर दर्द है
* या पेट भारी है
* या गेस की बीमारी है
* या कई दिनों से हाथ पैरों में झुनझुनी आती है
* या कई दिनों से कमज़ोरी लगती है.
* या ऐड़ी में दर्द है
तो आप दवाख़ाने जा कर मुसीबत मोल ले सकते हैं. घर पर रहें, बहुत ज़रूरी होने पर ही दवाख़ाने जाएँ. 🙏
(डॉक्टर नदीम फ़ारूक़ी, एम बी बी एस
31 साल से सेवारत.
हर दिन विश्व स्वास्थ्य संगठन के निर्देशों के संपर्क में.)

भारत ने 1966 में फ़ैसला लिया था कि अगले दस सालों में चेचक को भारत से मिटा कर रहेंगे. आठ साल बाद, 1974 में भी 188000 नए ल...
09/02/2019

भारत ने 1966 में फ़ैसला लिया था कि अगले दस सालों में चेचक को भारत से मिटा कर रहेंगे. आठ साल बाद, 1974 में भी 188000 नए लोगों को चेचक हो गया था जिन में से 31263 बच्चे चेचक से अपनी जान गँवा बैठे थे. जैसे जैसे सरकार अपनी मुहीम तेज़ करती वैसे वैसे चेचक के टीकों का विरोध बढ़ता जा रहा था. अंधविश्वास और अशिक्षा की वजह से लोग टीके लगाने वालों के हाथ पैर तोड़ देते थे. नतीजे में मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश और बिहार में चेचक ख़तरनाक तरीक़े से फैल रही थी. शरारती लोग अफ़वाहें फैला रहे थे कि इस टीके से बच्चे मर जाएँगे या वह बच्चे पैदा करने लायक़ नहीं बचेंगे. लेकिन अगले ही साल 24 मई 1975 के बाद भारत में किसी को चेचक नहीं हुई. सरकार की लगन और सर फुड़वा कर भी टीके लगाने वाले कर्मचारियों की क़ुर्बानियाँ आख़िर रंग ले ही आईं थीं.
पोलियो की भी यही कहानी है. वह ज़माना तो ज़्यादातर लोगों के ज़हन में ताज़ा होगा. जब सरकार ने पोलियो ख़त्म करने का बीड़ा उठाया तब भी शरारती लोगों ने अफ़वाहें फैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी.
वही शरारत, वही अंधविश्वास, वही कमीनापन, वही नीचता आज फिर उफान पर है. सरकार ने रुबेला और ख़सरे को पूरी तरह साफ़ करने की ठान ली है. 2020 के बाद भारत में ये बीमारियाँ किसी को नहीं होंगी. बहुत पुरानी बात नहीं है जब ख़सरे से पीड़ित कई बच्चे हर मोहल्ले में हर साल मर जाया करते थे.
व्हाट्सएप पर मुस्लिम ग्रुप में एक मेसेज चल रहा है कि ये टीका मोदी और आर एस एस का टीका है. मुसलमानों की आबादी कम करने के लिए लगाया जा रहा है. मोदी से भी घातक अगर देश के लिए कुछ हो सकता है तो वो है ये अफ़वाहें.
पढ़े लिखों के ग्रुप में कहा जाता है कि इससे ऑटिज़्म होता है. ये पढ़े लिखे असल में वो गधे हैं जिनकी पीठ पर किताबें लाद दी गई हैं. अगर कोई अमरीकी कम अक़्ल अपनी 'रिसर्च' से नासमझी भरा नतीजा निकालता है तो ये 'समझदार' लोग दुनियाभर के डॉक्टरों को अनाड़ी समझने लगते हैं.
अख़बार भी पीछे नहीं हैं. एक अख़बार की कटिंग ख़ूब वायरल हो रही है. इसमें हेडलाइन है 'रुबेला के टीके से मध्यप्रदेश में पहली मौत'. ये अख़बार ऐसे हैं कि अगर एम आर का टीका लगने के बाद कोई कुचल कर भी मर जाए तो उसे यह यूँ छापेंगे ' एम आर टीका लगने के बाद एक और मौत'.
यह टीका किसी भी प्राइवेट क्लीनिक पर नहीं लग रहा है. जिन बच्चों को सभी टीके लग चुके हैं यह टीका उन्हें भी लगना चाहिए.
दोस्तो, अपने बच्चों को यह टीका ज़रूर लगवाएँ. वरना वो ये कहेंगे -
"बापू सेहत के लिए तू तो हानिकारक है"
ख़सरा और रुबेला का 2020 तक सफ़ाया तय है. ख़ास बात ये है कि इसमें आपका रोल क्या होगा, हाथ बँटाने का या टाँग अड़ाने का?
- डॉ. नदीम फ़ारूक़ी

मैं जो बताने जा रहा हूँ इन बातों पर अगर आप अब तक ध्यान नहीं दे रहे हैं तो मुझे डर है कि आपके बच्चे सुरक्षित नहीं हैं. ‘ड...
23/12/2018

मैं जो बताने जा रहा हूँ इन बातों पर अगर आप अब तक ध्यान नहीं दे रहे हैं तो मुझे डर है कि आपके बच्चे सुरक्षित नहीं हैं. ‘डर’ शब्द सुन कर मुझे नसीरुद्दीन शाह कह कर ट्रॉल करने के बदले अगर आप ऐसा माहौल बनाने में सरकार की मदद करें कि आपके बच्चे सुरक्षित रहें तो मेरा डर ख़ुद ब ख़ुद दूर हो जाएगा और शायद नसीर का भी.
बच्चों की सेहत हमारी प्राथमिकता में कहाँ है यह इसी से ज़ाहिर होता है कि जो भारत 3000 करोड़ के स्मारक को बना कर गर्व से अपना सीना ठौकता है वही भारत बच्चों के टीकों के 100 करोड़ के लिए दूसरे देशों के आगे हाथ फैलाता है. इसके बावजूद भारत ने यह ठान लिया है कि 2020 तक ख़सरा और रुबेला भारत से वैसे ही साफ़ कर देंगे जैसे चेचक, पोलियो या गधे के सर से सींग. चाहे इसके लिए भारत को एक बार और कटोरा क्यूँ न उठाना पड़े.
ख़सरा (बोदरी) में तेज़ बुख़ार आता है और बदन पर बारीक बारीक दाने हो जाते हैं. खाँसी और निमोनिया भी हो जाता है. आम तौर पर ये बीमारी बच्चों को होती है लेकिन अगर टीका नहीं लगा है तो बड़ों में भी हो सकती है.
रूबेला ख़सरे से मिलती जुलती बीमारी है. इसमें बुख़ार इतना तेज़ नहीं होता और दाने भी हल्के होते हैं. क़रीब आधे मरीज़ों को ये बीमारी इतनी हल्की होती है कि उन्हें लगता ही नहीं कि वो बीमार हैं.
इन बीमारियों के वायरस, चाहे बीमारी का ज़ोर कम हो या ज़्यादा, मरीज़ की खाँसी और छींक से हवा में फैलते हैं. जब ये वायरस साँस के साथ तंदरुस्त लोगों में जाते हैं तो वो भी बीमार हो जाते हैं. जब ये बीमारियाँ ऐसी औरतों में होती हैं जिनका पैर भारी है तो उनके बच्चों में कई लाइलाज पैदाइशी बीमारियाँ हो सकती हैं.
अगर ये बीमारियाँ हो जाती हैं तो डॉक्टर को ज़रूर दिखाएँ. डॉक्टर को न दिखा कर घर पर झाड़-फूँक करने से बच्चे की जान भी जा सकती है.
लेकिन ये बीमारियाँ होने ही क्यूँ दें? 9 महीने और 15 महीने की उम्र में एम एम आर (MMR) का टीका लगवा कर आप अपने बच्चों को इन बीमारियों से बचा सकते हैं. अगर इस उम्र में ये टीका नहीं लग पाया है तो उम्र की कोई पाबंदी नहीं, हर उम्र में लगाया जा सकता है.
इन बीमारियों को और चिकन पॉक्स (अछफोड़ा) को माता कहा जाता है. ऐसा माना जाता है कि माता के नाराज़ होने से ये बीमारियाँ होती हैं. अगर टीका लगवा लिया तो ये बीमारियाँ होंगी ही नहीं. यानी माता नाराज़ होंगी ही नहीं. देखो बच गए ना माता के ग़ुस्से से?

जैसे क्रिकेट मैच के दौरान रनों का, चुनाव के नतीजों के वक़्त सीटों का, और भाषण के दौरान मोदी जी के लिखे इतिहास का स्कोर ह...
25/10/2018

जैसे क्रिकेट मैच के दौरान रनों का, चुनाव के नतीजों के वक़्त सीटों का, और भाषण के दौरान मोदी जी के लिखे इतिहास का स्कोर हर ज़बान पर रहता है उसी तरह आजकल डेंगू के ज़माने में पलेटों या कीटाणुओं का स्कोर हर ज़बान पर रहता है. अंग्रेज़ी में इन्हें प्लेटलेट्स कहते हैं जिसका मतलब है छोटी प्लेट और जिसे शुद्ध हिंदुस्तानी में हम पलेटची या चुमरुक पलेट कह सकते हैं. एक तो डेंगू का नाम सुनते ही लोग ऐसे घबरा जाते हैं जैसे उनका मोबाइल पानी में गिर गया हो. ऐसे में अगर ये चुमरुक पलेटें भी कम हो जाएँ तो वो ऐसे सहम जाते हैं जैसे उन्हें शेर के पिंजरे में डालने की सज़ा सुना दी गई हो.
इन चुमरुक पलेटों की गिनती को डेंगू के ख़तरे का पैमाना मानना उतना ही फ़ुज़ूल है जितना कि सरदार पटेल की मूर्ति या इलाहाबाद का नाम बदलने को विकास का, या टोपी पहनने को धर्म निरपेक्ष होने का, पैमाना मानना.
डेंगू को ख़तरे के हिसाब से तीन क़िस्मों में बाँटा जाता है, मामूली डेंगू, मज़े का डेंगू और भयंकर डेंगू.(mild, moderate and severe dengue). इनमें से हर क़िस्म के डेंगू में ये चुमरुक पलेटें (प्लेटलेट्स) एक लाख से कम हो सकती हैं.
मामूली डेंगू कुछ ऐसा मामूली भी नहीं होता, बस जान ही नहीं लेता है. तेज़ बुख़ार आता है, हाथ पैरों में, सर में और आँखों के पीछे बहुत तेज़ दर्द होता है. बदन पर दाने आ सकते हैं. पेट दर्द, उल्टियाँ और दस्त भी हो सकते हैं.
इनके अलावा अगर कुछ ख़तरे की घंटियाँ बजने लगें तो ऐसे डेंगू को ‘मज़े का’ डेंगू कहते हैं. पेट में तेज़ दर्द हो रहा हो, उल्टियाँ रुकने का नाम न ले रही हों, बहुत कमज़ोरी या थकान महसूस हो रही हो, साँस फूलने लगे, हीमोग्लोबिन 20% से ज़्यादा बढ़ जाए तो इनमें से हर तकलीफ़ पर ख़तरे की घंटियाँ बजना शुरू हो जाती हैं. ये ख़तरे की घंटियाँ नहीं एम्बूलेंस का सायरन हैं.
इनके अलावा कुछ लोग डेंगू होते ही ख़तरे की गोद में बैठ जाते हैं जैसे दिल के मरीज़, लक़वाग्रस्त लोग, बहुत कम उम्र के बच्चे और बहुत बुज़ुर्ग लोग, वो औरतें जो उम्मीद से हों, ऐसे मरीज़ जो ख़ून पतला करने की दवाइयाँ या स्टेरॉइड ले रहे हों, जिन्हें शुगर या ब्लड प्रेशर हो, एड्स हो, जो बहुत मोटे हों, जिन्हें ख़ून की बीमारियाँ हों. ऐसे लोगों का मामूली डेंगू भी मज़े का डेंगू होता है.
जब डेंगू, मज़े का हो तो मरीज़ पर बहुत ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत है. अगर यह घर पर रह कर किया जा सकता हो तो ठीक है वर्ना अस्पताल में भर्ती करना बेहतर है. ऐसे वक़्त बोतल चढ़ाने से कई जानें बचाई जा सकती हैं लेकिन यह काम अस्पताल में भर्ती होने के बाद विशेषज्ञ की निगरानी में ही होना चाहिए वर्ना बोतल चढ़ाना जानलेवा भी हो सकता है. ऐसे वक़्त इंजेक्शन सिर्फ़ नसों में लगना चाहिए.
भयंकर डेंगू में हाथ पैर ठंडे हो जाते हैं. पेशाब, पाख़ाने में ख़ून आने लगता है. बदन के दूसरे हिस्सों से भी ख़ून का रिसाव शुरू हो जाता है. गुर्दे, फेफड़े और लीवर में ख़राबी आ जाती है. ऐसे मरीज़ों को किसी बड़े अस्पताल में भर्ती करने की ज़रूरत होती है.
डेंगू से बचने के लिए सफ़ाई पर ध्यान दें. घर के अंदर और आसपास पानी न इकट्ठा होने दें. मच्छरों से बचें. डेंगू के मरीज़ को दिन में भी मच्छरदानी में रखें. नगर निगम को मच्छरों पर कंट्रोल के लिए मजबूर करें.
अगर डेंगू हो ही जाए तो घबराएँ नहीं, सावधानी रखें. अगर डेंगू ऐसा ही जानलेवा होता तो एक चौथाई शहर डेंगू से मर चुका होता.
अगर डेंगू के बारे में आप कुछ और जानना चाहें तो कमेंट बॉक्स में आपका स्वागत है.

अगर आपका सांस फूलता है.आपको दमा या सी ओ पी डी हैतो ये जांच ज़रूर करवाएं.इस जांच के पाँच सो रूपये लगते हैं लेकिन हमारे क्ल...
26/06/2018

अगर आपका सांस फूलता है.
आपको दमा या सी ओ पी डी है
तो ये जांच ज़रूर करवाएं.
इस जांच के पाँच सो रूपये लगते हैं लेकिन हमारे क्लिनिक पर मुफ़्त होगी.

मिशन शिफ़ा ए रहमानी के ज़रिये सी.टी. या एम.आर.आई. स्केन, 40% से 50% डिस्काउंट पर यानी सरकारी दामों पर सभी के लिए उपलब्ध ...
11/12/2017

मिशन शिफ़ा ए रहमानी के ज़रिये सी.टी. या एम.आर.आई. स्केन, 40% से 50% डिस्काउंट पर यानी सरकारी दामों पर सभी के लिए उपलब्ध है. उक्त जाँच के लिए मिशन शिफ़ा ए रहमानी के ज़िम्मेदारों से संपर्क करें.

रिज़वान ख़ान 9753639961
शकील शैख़ 8827314441

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