FACE Reader

FACE Reader For centuries, people have tried to understand aspects of a person’s character just by looking at their face.

hello welcome to face Reader this page is all astrology based predictions any problem like love relationship, career, marriage, videsh Yatra, face Reading, plam Reading etc.acharya Vinod 10 years experience in astrology. The ancient Chinese believed that your face was a reflection of your inner spirit. In Medieval Europe, beauty was considered to be synonymous with virtue, and ugliness was sometimes considered a sign of evil. No claims are made to prove this is an exact science, but it may be worth putting it in a similar bracket to things like astrology and palm reading. Each and every aspect of your face tells a different story about your fate and personality. Don’t just look at your facial features, but notice their size (thin eyebrows, small eyes), and type (sloped forehead, square face), as well as any lines or wrinkles that are present. All of these features tell a story, and this blog on face reading will take you deeper into the science of physiognomy…

        *🌹  #श्री_कृष्ण_जन्माष्टमी_व्रत_निर्णय_पूजा_विधि,  #भोग_व्रत_महत्व2024 🌹🙏* अर्धरात्रि व्यापिनी भाद्रपद कृष्ण पक्...
25/08/2024




*🌹 #श्री_कृष्ण_जन्माष्टमी_व्रत_निर्णय_पूजा_विधि, #भोग_व्रत_महत्व2024 🌹🙏*
अर्धरात्रि व्यापिनी भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी को चंद्रोदय के समय रोहिणी नक्षत्र से सहयोग होने पर श्री कृष्ण जन्माष्टमी को श्री कृष्ण जयंती के नाम से संबोधित किया जाता है इस वर्ष 26 अगस्त सोमवार को अर्धरात्रि चंद्रोदय कालीन अष्टमी रोहिणीयुता है अतः यहां कृष्ण जयंती नामक पूण्यतम योग बना है सोमवार और बुधवार जन्माष्टमी के दिन पड़ने पर अधिक संयोग माना जाता है निशीथकाल एवं चंद्रोदय के समय यह योग बनने से 26 अगस्त 2024 को सर्वेषां मान्य है इस निर्विवाद पूर्वक जन्माष्टमी व्रत करना चाहिए मथुरा जन्मभूमि में इसी दिन भगवान का जन्मोत्सव मनाया जा रहा है एवं वृंदावन नंदगांव आदि स्थानों में गोकुल नवमी नंदोत्सव दूसरे दिन मनाया जाएगा
*Krishna Janmashtami, Dahi Handi (Gokulashtami) Pooja Vidhi, vrat mahtva, in hindi*
#कृष्ण_जन्माष्टमी_का_व्रत_विधान_महिमा

कृष्ण जन्माष्टमी सिर्फ भारत मे ही नहीं बल्कि भारत के बाहर रहने वाले हिन्दू भी अपनी जगहो पर इस उत्सव को अपने हिसाब से मनाते है तथा श्री कृष्ण की आराधना करते है . जन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण का जन्म दिवस के रूप मे पूरे भारत मे बहुत ही उत्साह के साथ मनाई जाती है.

श्री कृष्ण जी को भगवान विष्णु का अवतार भी माने जाते है. भारत विभिनता मे समानता का देश है, इसी का उदहारण है कि जन्माष्टमी को कई नामो से जाना जाता है. जैसे
अष्टमी रोहिणी
श्री जयंती
कृष्ण जयंती
रोहिणी अष्टमी
कृष्णाष्टमी
गोकुलाष्टमी (Gokulashtami)

*जन्माष्टमी व्रत कथा...*🌹

पाप और शोक के दावानल को दग्ध करने हेतु, भारत की इस पावन धरा पर स्वयं भगवान विष्णु अपनी सोलह कलाओं के साथ भगवान श्रीकृष्ण के रूप में भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मध्यरात्रि को रोहिणी नक्षत्र में अवतरित हुए। भगवान श्रीकृष्ण के प्राकट्य उत्सव के रूप में ही हम इस पावन दिवस को महापर्व जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। पौराणिक कथानुसार जब भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ उस समय आकाश में घना अन्धकार छाया हुआ था, घनघोर वर्षा हो रही थी, उनके माता-पिता वसुदेव-देवकी बेड़ियों में बंधे थे, लेकिन प्रभु की कृपा से बेड़ियों के साथ-साथ कारागार के द्वार स्वयं ही खुल गए, पहरेदार गहरी नींद में सो गए और वसुदेव श्रीकृष्ण को उफनती यमुना के पार गोकुल में अपने मित्र नन्दगोप के घर ले गए और नन्द की पत्नी यशोदा के गर्भ से उत्पन्न कन्या को लेकर वापस कारागार आ गए।

*कृष्ण जन्माष्टमी व्रत विधि...*🌹

भगवान श्री कृष्ण के जन्म दिवस को कृष्ण जन्माष्टमी के त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। भगवान के जन्मदिवस को लोग खूब धूम धाम से मानते हैं और भगवान कृष्ण के लिए व्रत भी रखते हैं।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का त्यौहार मनाकर उनका व्रत रखने से हर मनोकामना पूरी की जा सकती है। लेकिन यदि आप वास्तव में भगवान से प्रेम करते हैं तो आप भगवान से ये मत माँगिएगा कि भगवान आप हमें ये वस्तु दें। भगवान से कहियेगा भगवान आपको मेरे लिए जो अच्छा लगे आप मुझे वो दें।
आपको जितना फल भगवान का व्रत रखने से मिलेगा उतना ही फल भगवान श्री कृष्ण के व्रत की कथा सुनने भी मिलेगा। भगवान के जन्म की कथा ही, उनके व्रत की कथा है

*जन्माष्टमी व्रत कैसे करे...🌹*

वैसे तो इस व्रत को जैसे आपका परिवार करता आ रहा है, वैसे ही कर लीजिये। कोई विशेष नियम वगैरह की जरुरत नहीं है। यदि आप सोच रहे हैं बहुत ज्यादा नियम से आप व्रत करेंगे तो ही आपको फल मिलेगा या भगवान ज्यादा खुश होंगे तो ऐसा कुछ भी नहीं है। इस व्रत में आपका भाव कितना है, आपका भगवान से प्रेम कितना है, इस बात से भगवान खुश होंगे। आपको जैसे सहज हो, सुलभ हो, वैसे आप व्रत कीजिये।

व्रत के दिन प्रातःकाल स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त हो जाएँ। उस दिन ब्रह्मचर्य आदि नियमों का पालन करते हैं

कुछ लोग इस दिन पूरे दिन का व्रत/उपवास रखते है और कृष्ण जन्म के पश्चात रात 12 बजे बाद भोजन गृहण करते है।
वैसे तो कुछ लोग इस दिन निराहार रहते हैं। कुछ लोग तो पानी तक भी नहीं पीते हैं पूरा दिन। कुछ लोग सिर्फ 1 बार पानी पीते हैं। कुछ लोग एक समय फलाहार लेते हैं। आप इनमें से जो भी कर पाओ वो करना चाहिए। कोई विशेष नियम नहीं है। एक भगवान का छोटा सा झूला रखो, उसमे बाल गोपाल को बिठाओ और झूला झुलाओ। झूला नहीं है तो आप मंदिर में शाम को जाओ, रात में जाओ और वहाँ पर भगवान को झूला झुलाओ। आप इस दिन खूब भगवान का नाम लो। भजन करो। उनको याद करो, भगवान का दर्शन करो। इसके बाद रात में 12 बजे भगवान की आरती करो, सभी को जन्मदिवस की बधाई दो।
नन्द के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की
हाथी दिने घोडा दिने और दिनी पालकी।

*कृष्ण जन्माष्टमी पूजा विधि कैसे करे... 🌹*

श्री कृष्ण का जन्म वसुदेव तथा देवकी के घर रात्री 12 बजे हुआ था. इसलिए पूरे भारत मे कृष्ण जन्म को रात्री मे ही 12 बजे मनाया जाता है. हर साल भादव मास की अष्टमी के दिन रात्रि मे 12 बजे हर मंदिर तथा घरो मे प्रतीक के रूप मे लोग श्री कृष्ण का जन्म करते है. जन्म के बाद उनका दूध, दही तथा शुध्द जल से अभिषेक करते है, तथा माखन मिश्री, पंजरी तथा खीरा ककड़ी का भोग लगाते है. तत्पश्चात कृष्ण जी की आरती करते है, कुछ लोग खुशी मे रात भर भजन कीर्तन करते तथा नाचते गाते है.

*कृष्ण जन्माष्टमी भोग कैसे बनाये... 🌹*

श्री कृष्ण जी भोग स्वरूप माखन मिश्री, खीरा ककड़ी, पंचामृत तथा पंजरी का भोग लगाया जाता है. ध्यान रखिए श्री कृष्ण को लगाया हुआ भोग बिना तुलसी पत्र के स्वीकार नहीं होता है. इसलिए जब भी आप कृष्ण जी को भोग लगाए, उसमे तुलसी पत्र डालना ना भूले. श्री कृष्ण जी के भोग मे बने पंचामृत मे दूध, दही, शक्कर, घी तथा शहद मिला रहता है, तथा भोग लगते वक़्त इसमे तुलसी पत्र मिलाये जाते है.
श्री कृष्ण जी को जो पंजरी भोग मे लगाई जाती है वह भी साधारण पंजरी से अलग होती है. वैसे तो पंजरी आटे की बनती है, परंतु जो पंजरी कृष्ण जी को अर्पित करते है, उसे धनिये से बनाया जाता है. पंजरी बनाने के लिए पिसे हुये धनिये को थोड़ा सा घी डालकर सेका जाता है. और इसमे पिसी शक्कर मिलाई जाती है. लोग इसमे अपनी इच्छा अनुसार सूखे मेवे मिलाते है, कुछ लोग इसमे सोठ भी डालते है और फिर श्री कृष्ण को भोग लगाते है.

*जन्माष्टमी पूजन के मंत्र...🌹*

योगेश्वराय योगसम्भवाय योगपताये गोविन्दाय नमो नमः (इस मंत्र द्वारा श्री हरि का ध्यान करें)
यज्ञेश्वराय यज्ञसम्भवाय यज्ञपतये गोविन्दाय नमो नमः (इस मंत्र द्वारा श्री कृष्ण की बाल प्रतिमा को स्नान कराएं)
वीश्वाय विश्वेश्वराय विश्वसम्भवाय विश्वपतये गोविन्दाय नमो नमः (इस मंत्र द्वारा भगवान को धूप ,दीप, पुष्प, फल आदि अर्पण करें)
धर्मेश्वराय धर्मपतये धर्मसम्भवाय गोविन्दाय नमो नमः (इस मंत्र से नैवेद्य या प्रसाद अर्पित करें)

*जन्माष्टमी व्रत का फल...🌹*

भविष्यपुराण के अनुसार जन्माष्टमी व्रत के पुण्य से व्यक्ति पुत्र, संतान, अरोग्य, धन धान्य ,दीर्घायु, राज्य तथा मनोरथ को प्राप्त करता है। इसके अलावा माना जाता है कि जो एक बार भी इस व्रत को कर लेता है वह विष्णुलोक को प्राप्त करता है यानि मोक्ष को प्राप्त करता है।
जन्माष्टमी का त्यौहार का एक मनोरंजक पक्ष दही-हांडी भी है। यह प्रकार का खेल है जिसमें बच्चे भगवान कृष्ण द्वारा माखन चुराने की लीला का मंचन करते हैं। महाराष्ट्र और इसके आसपास की जगहों पर यह प्रसिद्ध उत्सव है
➡ *१] भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठिरजी को कहते हैं : “२० करोड़ एकादशी व्रतों के समान अकेला श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत हैं |”*
➡ *२] धर्मराज सावित्री से कहते हैं : “ भारतवर्ष में रहनेवाला जो प्राणी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत करता है वह १०० जन्मों के पापों से मुक्त हो जाता है |”

🌷 *चार रात्रियाँ विशेष पुण्य प्रदान करनेवाली हैं*
🙏 *१ )दिवाली की रात २) महाशिवरात्रि की रात ३) होली की रात और ४) कृष्ण जन्माष्टमी की रात इन विशेष रात्रियों का जप, तप , जागरण बहुत बहुत पुण्य प्रदायक है |*
🙏 *श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की रात्रि को मोहरात्रि कहा जाता है। इस रात में योगेश्वर श्रीकृष्ण का ध्यान,नाम अथवा मन्त्र जपते हुए जागने से संसार की मोह-माया से मुक्ति मिलती है। जन्माष्टमी का व्रत व्रतराज है। इस व्रत का पालन करना चाहिए।*
🙏 *(शिवपुराण, कोटिरूद्र संहिता अ. 37)*
🌞 *~ वैदिक पंचांग ~* 🌞

🌷 *जन्माष्टमी व्रत-उपवास की महिमा* 🌷
🙏🏻 *जन्माष्टमी का व्रत रखना चाहिए, बड़ा लाभ होता है ।इससे सात जन्मों के पाप-ताप मिटते हैं ।*
🙏🏻 *जन्माष्टमी एक तो उत्सव है, दूसरा महान पर्व है, तीसरा महान व्रत-उपवास और पावन दिन भी है।*
🙏🏻 *‘वायु पुराण’ में और कई ग्रंथों में जन्माष्टमी के दिन की महिमा लिखी है। ‘जो जन्माष्टमी की रात्रि को उत्सव के पहले अन्न खाता है, भोजन कर लेता है वह नराधम है’ - ऐसा भी लिखा है, और जो उपवास करता है, जप-ध्यान करके उत्सव मना के फिर खाता है, वह अपने कुल की 21 पीढ़ियाँ तार लेता है और वह मनुष्य परमात्मा को साकार रूप में अथवा निराकार तत्त्व में पाने में सक्षमता की तरफ बहुत आगे बढ़ जाता है । इसका मतलब यह नहीं कि व्रत की महिमा सुनकर मधुमेह वाले या कमजोर लोग भी पूरा व्रत रखें ।*
💥 *बालक, अति कमजोर तथा बूढ़े लोग अनुकूलता के अनुसार थोड़ा फल आदि खायें ।*
🙏🏻 *जन्माष्टमी के दिन किया हुआ जप अनंत गुना फल देता है ।*
🙏🏻 *उसमें भी जन्माष्टमी की पूरी रात जागरण करके जप-ध्यान का विशेष महत्त्व है। जिसको क्लीं कृष्णाय नमः मंत्र का और अपने गुरु मंत्र का थोड़ा जप करने को भी मिल जाय, उसके त्रिताप नष्ट होने में देर नहीं लगती ।*
🙏🏻 *‘भविष्य पुराण’ के अनुसार जन्माष्टमी का व्रत संसार में सुख-शांति और प्राणीवर्ग को रोगरहित जीवन देनेवाला, अकाल मृत्यु को टालनेवाला, गर्भपात के कष्टों से बचानेवाला तथा दुर्भाग्य और कलह को दूर भगानेवाला होता है।*

👉🏻 *जन्माष्टमी पर 20 करोड एकादशी का पुण्य या 100 ब्रह्महत्या का पाप*⤵️
🌷 *जन्माष्टमी* 🌷
➡ *26 अगस्त 2024 सोमवार को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी है।*
🙏🏻 *भारतवर्ष में रहनेवाला जो प्राणी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत करता है, वह सौ जन्मों के पापों से मुक्त हो जाता है | - ब्रह्मवैवर्त पुराण*



🌷 *गर्भवती देवी के लिये–जन्माष्टमी व्रत* 🌷
👩🏻 *जो गर्भवती देवी जन्माष्टमी का व्रत करती हैं..... उसका गर्भ ठीक से पेट में रह सकता है और ठीक समय जन्म होता है..... ऐसा भविष्यपुराण में लिखा है |*

🌞 *~ वैदिक पंचांग ~* 🌞

🌷 *20 करोड एकादशी का फल देनेवाला व्रत* 🌷
🙏 *जन्माष्टमी के दिन किया हुआ जप अनंत गुना फल देता है । उसमें भी जन्माष्टमी की पूरी रात, जागरण करके जप-ध्यान का विशेष महत्व है ।*
🙏 *भविष्य पुराण में लिखा है कि जन्माष्टमी का व्रत अकाल मृत्यु नहीं होने देता है । जो जन्माष्टमी का व्रत करते हैं, उनके घर में गर्भपात नहीं होता ।*
🙏 *एकादशी का व्रत हजारों - लाखों पाप नष्ट करनेवाला अदभुत ईश्वरीय वरदान है*
🙏 *एकादशी के दिन जो संयम होता है उससे ज्यादा संयम जन्माष्टमी को होना चाहिए ।*
*बाजारु वस्तु तो वैसे भी साधक के लिए विष है लेकिन जन्माष्टमी के दिन तो चटोरापन, चाय, नाश्ता या इधर - उधर का कचरा अपने मुख में न डालें ।*
🙏 *इस दिन तो उपवास का आत्मिक अमृत पान करें ।अन्न, जल, तो रोज खाते - पीते रहते हैं, अब परमात्मा का रस ही पियें । अपने अहं को खाकर समाप्त कर दें।*

** जय श्री कृष्णा **🙏
जय लड्डू गोपाल🌹

                    मकर संक्रांति 15 जनवरी विशेष〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️मकर संक्रांति का पौराणिक महत्व〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️श...
14/01/2024



मकर संक्रांति 15 जनवरी विशेष
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मकर संक्रांति का पौराणिक महत्व
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शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायण को देवताओं की रात्रि अर्थात् नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात् सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है।

मकर संक्रांति से अग्नि तत्त्व की शुरुआत होती है और कर्क संक्रांति से जल तत्त्व की. इस समय सूर्य उत्तरायण होता है अतः इस समय किये गए जप और दान का फल अनंत गुना होता है मकर संक्रान्ति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यन्त शुभ माना गया है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है। सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है। यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अन्तराल पर होती है। भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। मकर संक्रान्ति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है अर्थात् भारत से अपेक्षाकृत अधिक दूर होता है। इसी कारण यहाँ पर रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है। अतएव इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू हो जाता है। दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अन्धकार कम होगा। अत: मकर संक्रान्ति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होगी।

मकर संक्रांं‍ति पूजा व‍िध‍ि
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भविष्यपुराण के अनुसार सूर्य के उत्तरायण के दिन संक्रांति व्रत करना चाहिए। पानी में तिल मिलाकार स्नान करना चाहिए। अगर संभव हो तो गंगा स्नान करना चाहिए। इस द‍िन तीर्थ स्थान या पवित्र नदियों में स्नान करने का महत्व अधिक है।इसके बाद भगवान सूर्यदेव की पंचोपचार विधि से पूजा-अर्चना करनी चाहिए इसके बाद यथा सामर्थ्य गंगा घाट अथवा घर मे ही पूर्वाभिमुख होकर यथा सामर्थ्य गायत्री मन्त्र अथवा सूर्य के इन मंत्रों का अधिक से अधिक जाप करना चाहिये।

मन्त्र 👉 1- ऊं सूर्याय नम: ऊं आदित्याय नम: ऊं सप्तार्चिषे नम:

2- ऋड्मण्डलाय नम: , ऊं सवित्रे नम: , ऊं वरुणाय नम: , ऊं सप्तसप्त्ये नम: , ऊं मार्तण्डाय नम: , ऊं विष्णवे नम:

पूजा-अर्चना में भगवान को भी तिल और गुड़ से बने सामग्रियों का भोग लगाएं। तदोपरान्त ज्यादा से ज्यादा भोग प्रसाद बांटे।

इसके घर में बनाए या बाजार में उपलब्ध तिल के बनाए सामग्रियों का सेवन करें। इस पुण्य कार्य के दौरान किसी से भी कड़वे बोलना अच्छा नहीं माना गया है।

मकर संक्रांति पर अपने पितरों का ध्यान और उन्हें तर्पण जरूर देना चाहिए।

राशि के अनुसार दान योग्य वस्तु
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मेष🐐 गुड़, मूंगफली दाने एवं तिल का दान करें।
वृषभ🐂 सफेद कपड़ा, दही एवं तिल का दान करें।
मिथुन👫 मूंग दाल, चावल एवं कंबल का दान करें।
कर्क🦀 चावल, चांदी एवं सफेद तिल का दान करें।
सिंह🦁 तांबा, गेहूं एवं सोने के मोती का दान करें।
कन्या👩 खिचड़ी, कंबल एवं हरे कपड़े का दान करें।
तुला⚖️ सफेद डायमंड, शकर एवं कंबल का दान करें।
वृश्चिक🦂 मूंगा, लाल कपड़ा एवं तिल का दान करें।
धनु🏹 पीला कपड़ा, खड़ी हल्दी एवं सोने का मोती दान करें।
मकर🐊 काला कंबल, तेल एवं काली तिल दान करें।
कुंभ🍯 काला कपड़ा, काली उड़द, खिचड़ी एवं तिल दान करें।
मीन🐳 रेशमी कपड़ा, चने की दाल, चावल एवं तिल दान करें।

कुछ अन्य उपाय
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सूर्य और शनि का सम्बन्ध इस पर्व से होने के कारण यह काफी महत्वपूर्ण है
👉 कहते हैं इसी त्यौहार पर सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने के लिए आते हैं
👉 आम तौर पर शुक्र का उदय भी लगभग इसी समय होता है इसलिए यहाँ से शुभ कार्यों की शुरुआत होती है
👉 अगर कुंडली में सूर्य या शनि की स्थिति ख़राब हो तो इस पर्व पर विशेष तरह की पूजा से उसको ठीक कर सकते हैं
👉 जहाँ पर परिवार में रोग कलह तथा अशांति हो वहां पर रसोई घर में ग्रहों के विशेष नवान्न से पूजा करके लाभ लिया जा सकता है
👉 पहली होरा में स्नान करें,सूर्य को अर्घ्य दें
👉 श्रीमदभागवद के एक अध्याय का पाठ करें,या गीता का पाठ करें
👉 मनोकामना संकल्प कर नए अन्न,कम्बल और घी का दान करें
👉 लाल फूल और अक्षत डाल कर सूर्य को अर्घ्य दें
👉 सूर्य के बीज मंत्र का जाप करें
मंत्र "ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः"
👉 संध्या काल में अन्न का सेवन न करें
👉 तिल और अक्षत डाल कर सूर्य को अर्घ्य दें
👉 शनि देव के मंत्र का जाप करें
👉 मंत्र "ॐ प्रां प्री प्रौं सः शनैश्चराय नमः"
👉 घी,काला कम्बल और लोहे का दान करें।

मकर संक्रांति 14 या 15 जनवरी को, शंका समाधान
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मकर संक्रांति का त्योहार हर साल सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के अवसर पर मनाया जाता है। बीते कुछ वर्षों से मकर संक्रांति की तिथि और पुण्यकाल को लेकर उलझन की स्थिति बनने लगी है। आइए देखें कि यह उलझन की स्थिति क्यों बनी हैं और मकर संक्रांति का पुण्यकाल और तिथि मुहूर्त क्या है। दरअसल इस उलझन के पीछे खगोलीय गणना है। गणना के अनुसार हर साल सूर्य के धनु से मकर राशि में आने का समय करीब 20 मिनट बढ़ जाता है। इसलिए करीब 72 साल के बाद एक दिन के अंतर पर सूर्य मकर राशि में आता है। ऐसा उल्लेख मिलता है कि मुगल काल में अकबर के शासन काल के दौरान मकर संक्रांति 10 जनवरी को मनाई जाती थी। अब सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का समय 14 और 15 के बीच में होने लगा क्योंकि यह संक्रमण काल है।

साल 2012 में सूर्य का मकर राशि में प्रवेश 15 जनवरी को हुआ था इसलिए मकर संक्रांति इस दिन मनाई गई थी। पिछले कुछ वर्षों में मकर संक्रांति 15 जनवरी को ही मनाई गयी ऐसी गणना कहती है। इतना ही नहीं करीब पांच हजार साल बाद मकर संक्रांति फरवरी के अंतिम सप्ताह में मनाई जाने लगेगी

ज्योतिषीय गणना एवं मुहुर्त चिंतामणी के अनुसार सूर्य सक्रान्ति समय से 16 घटी पहले एवं 16 घटी बाद तक का पुण्य काल होता है निर्णय सिन्धु के अनुसार मकर सक्रान्ति का पुण्यकाल सक्रान्ति से 20 घटी बाद तक होता है किन्तु सूर्यास्त के बाद मकर सक्रान्ति प्रदोष काल रात्रि काल में हो तो पुण्यकाल दूसरे दिन माना जाता है। इस वर्ष भगवान सूर्य देव 14 जनवरी रविवार को रात्रि 02 बजकर 42 मिनट पर मकर राशि में प्रवेश करेगें।
सूर्य धनु से मकर राशि में 14 जनवरी को प्रवेश कर रहा है। अतः धर्म सिंधु के मतानुसार..

मकरे पराश्चत्वारिंशत्।।
अर्थात मकर में परली चालीस घड़िया पुण्यकाल है।

इदं मकरकर्कातिरिक्तं सर्व- त्र रात्रिसंक्रमे ज्ञेयम् ॥
अयने तु मकरे रात्रिसंक्रमे सर्वत्र परदिनमेव पुण्यम् ॥

अर्थात👉 मकर में रात्रि को संक्रांति होय तो सर्वत्र परदिन में पुण्यकाल माना जाता है।

अतः इस वर्ष उदया तिथि के में संक्रांति आरम्भ होने के कारण 15 जनवरी सोमवार के दिन संक्रान्ति का पर्व मनाया जाना ही शास्त्रोचित है।

ज्योतिष गणना के अनुसार इस बार मकर संक्रांति की शुरुआत शतभिषा नक्षत्र के दौरान हो रही है। धनिष्ठा नक्षत्र 14 जनवरी को प्रातः 10 बजकर 21 मिनट तक रहेगा इसके बाद शतभिषा नक्षत्र आरम्भ हो जाएगा। धर्म शास्त्रों के अनुसार शतभिषा नक्षत्र होने पर दान, स्नान, पूजा पाठ और मंत्रों का जाप करने पर विशेष शुभ फल की प्राप्ति होती है। मकर संक्रांति पर शतभिषा नक्षत्र के साथ वरियान योग का निर्माण हो रहा है।

मकर संक्रांति फल
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वेदों में सूर्य उपासना को सर्वोपरि माना गया है। जो आत्मा, जीव, सृष्टि का कारक एक मात्र देवता है जिनके हम साक्षात रूप से दर्शन करते है। सूर्य देव कर्क से धनु राशि में 6 माह भ्रमण कर दक्षिणयान होते है जो देवताओं की एक रात्रि होती है। सूर्य देव मकर से मिथुन राशि में 6 माह भ्रमण कर उत्तरायण होते है जो एक दिन होता है। जिसमें सिद्धि साधना पुण्यकाल के साथ-साथ मांगलिक कार्य विवाह, ग्रह प्रवेश, जनेउ, संस्कार, देव प्राण, प्रतिष्ठा, मुंडन कार्य आदि सम्पन्न होते है। सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश करते है इस सक्रमण को मकर सक्रान्ति कहा जाता है जिसमें स्वर्ग के द्वार खुलते है।

संक्रांति शुभ होगी या अशुभ इसका विचार उसके वाहन एवं उपवाहन से किया जाता है। फिर उसका नाम भी रखा जाता है और फिर देखा जाता है कि वह देश-दुनिया के लिए कैसी रहेगी। माना जाता है कि संक्रांति जो कुछ ग्रहण करती है, उसके मूल्य बढ़ जाते हैं या वह नष्ट हो जाता है। वह जिसे देखती है, वह नष्ट हो जाता है, जिस दिशा से वह जाती है, वहां के लोग सुखी होते हैं, जिस दिशा को वह चली जाती है, वहां के लोग दुखी हो जाते हैं।

इस बार संक्रांति का वाहन अश्व और वस्त्र श्याम यानि काले रंग का होगा, सूर्य देव श्याम वस्त्र पहनें, घोड़े पर सवार होकर दक्षिणायन से उत्तरायण होंगे, सूर्य देव का उपवाहन सिंहनी है. उनका अस्त्र तोमर है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव की दृष्टि नैऋत्य होगी. दक्षिण-पश्चिम दिशा को नैऋत्य कहते हैं, सूर्य महाराज नैऋत्य दृष्टि से पूर्व दिशा में गमन करेंगे, उनका पुष्प दूर्वा है, मकर संक्रांति पर दूर्वा अर्पित करने से सूर्य देव प्रसन्न होंगे, सूर्य देव के भोग का पदार्थ खिचड़ी है।

मकर संक्रांति 2023 के वाहनादि परिचय
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नाम👉 घोर
वार मुख 👉 पूर्व
दृष्टि 👉 नैऋत्य
गमन 👉 पूर्व
वाहन 👉 अश्व
उपवाहन 👉 सिंहनी
वस्त्र 👉 श्याम
आयुध 👉 तोमर
भक्ष्य पदार्थ 👉 खिचड़ी
गन्ध द्रव्य 👉 जोखर
वर्ण 👉 ब्राह्मिन
पुष्प 👉 दूर्वा
वय 👉 वृद्ध
अवस्था 👉 भुक्ति
करण मुख 👉 ईशान
स्थिति 👉 बैठी
भोजन पात्र 👉 पात्र
आभूषण 👉 घुँघची
कन्चुकी 👉 काली

मकर संक्रान्ति का पुण्यकाल
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मकर संक्रांति का पुण्य काल 15 जनवरी प्रातः 07:15 से सायं 05:46 तक रहेगा।

मकर संक्रान्ति महा पुण्य काल👉 प्रातः 07:15 से प्रातः 09:00 तक रहेगा। इस काल में तिल, गुड़, वस्त्र का दान करना और तर्पण करना पुण्य फलदायी होगा।

संक्रान्ति 2024 फल
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नाम के अनुरूप यह संक्रांति जन मांस में कहीं भय कहीं प्रसन्नता का वातावरण लायेगी। चोरों के लिए यह संक्रान्ति शुभ है। बाजार मे वस्तुओं की लागत सामान्य होगी। जीवन में स्थिरता लाएगी। लोग खांसी और ठण्ड से पीड़ित होंगे, राष्ट्रों के बीच संघर्ष होगा और बारिश के अभाव में अकाल की सम्भावना बनेगी।

राशि अनुसार मकर संक्राति का प्रभाव, दान एवं उपाय
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मेषः👉 आपकी राशि से दशम कर्म भाव में गोचर करते हुए सूर्य का प्रभाव आपके लिए किसी वरदान से कम नहीं है। जैसी सफलता चाहेंगे हासिल कर सकते हैं। जमीन जायदाद से जुड़े मामले हल होंगे। मकान अथवा वाहन का क्रय करना चाह रहे हों तो उस दृष्टि से भी ग्रह स्थितियां अनुकूल रहेंगी। किसी भी सरकारी टेंडर के लिए आवेदन करना चाह रहे हों तो भी सफलता की संभावना प्रबल रहेगी। शासनसत्ता का पूर्ण सहयोग मिलेगा। उच्चाधिकारियों से संबंध मजबूत होंगे। किए गए कार्यों की सराहना भी होगी।

👉ॐ सूर्याय नमः का जाप करें । गुड़ व गेहूं का दान करें।

वृषभ:👉 राशि से नवम भाग्य भाव में गोचर करते हुए सूर्य का प्रभाव अच्छा ही रहेगा। काफी दिनों के प्रतीक्षित कार्य संपन्न होंगे। यात्रा देशाटन का लाभ मिलेगा। विदेशी कंपनियों में सर्विस अथवा नागरिकता के लिए किया गया प्रयास भी सफल रहेगा। जो लोग आपको नीचा दिखाने की कोशिश में लगे थे वही मदद के लिए आगे आएंगे। कोर्ट-कचहरी के मामलों में भी निर्णय आपके पक्ष में आने के संकेत हैं। धार्मिक ट्रस्टों और अनाथालय आदि में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेंगे और दान पुण्य करेंगे।

👉 कनक (गेंहू) एवं गुड़ का दान करें।

मिथुनः👉 राशि से अष्टम आयु भाव में गोचर करते हुए सूर्यदेव का प्रभाव कई तरह के अप्रत्याशित परिणाम दिलाएगा। मान-सम्मान और पद-प्रतिष्ठा की वृद्धि तो होगी किंतु स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। कार्यक्षेत्र में षड्यंत्र का शिकार होने से बचें। आकस्मिक धन प्राप्ति का योग बनेगा। काफी दिनों का दिया गया धन भी वापस मिलने की उम्मीद है। परिवार में अलगाववाद की स्थिति उत्पन्न न होने दें। विवादित मामले कोर्ट-कचहरी से बाहर ही सुलझा लेना समझदारी रहेगी।

👉 गुड़ का हलवा गरीबों को खिलाएं।

कर्कः👉 राशि से सप्तम दांपत्य भाव में गोचर करते हुए सूर्य का प्रभाव सामान्य फलकारक ही रहेगा। सफलताओं के बावजूद कहीं न कहीं पारिवारिक कलह और मानसिक अशांति का सामना करना पड़ेगा। दांपत्य जीवन में कड़वाहट न आने दें। अलगाववाद की स्थिति से दूर रहें। वैवाहिक वार्ता सफल होने में थोड़ा और समय लगेगा। अपनी ऊर्जा शक्ति का पूर्ण उपयोग करते हुए कार्य करेंगे तो अधिक सफल रहेंगे। सरकारी विभागों में टेंडर आदि के लिए आवेदन करना सुखद रहेगा।

सिंहः👉 राशि से छठे शत्रु भाव में गोचर करते हुए सूर्य का प्रभाव आपके लिए किसी वरदान से कम नहीं है। सोची-समझी सभी रणनीतियां कारगर सिद्ध होंगी। यात्रा देशाटन का लाभ मिलेगा। सरकारी विभागों के प्रतीक्षित कार्य संपन्न होंगे। कोर्ट-कचहरी के मामलों में निर्णय आपके पक्ष में आने के संकेत दिखाई दे रहे हैं। रचनात्मक कार्यों में सफलता मिलेगी। विद्यार्थियों और प्रतियोगिता में बैठने वाले छात्रों के लिए समय अपेक्षाकृत चुनौतियों भरा रहेगा इसलिए परीक्षा में अच्छे अंक लाने के लिए और प्रयास करें।

👉 गेहूं या बेकरी उत्पाद का दान करें।

कन्याः👉 राशि से पंचम विद्या भाव में गोचर करते हुए सूर्य आपके लिए बेहतरीन सफलता दिलाएंगे। शिक्षा-प्रतियोगिता में तो सफलता मिलेगी ही शोधपरक और आविष्कारक कार्यों में भी अत्यधिक सफल रहेंगे। प्रेम संबंधी मामलों में उदासीनता रहेगी। संतान संबंधी चिंता परेशान कर सकती है। नवदंपति के लिए संतान प्राप्ति एवं प्रादुर्भाव के भी योग बन रहे हैं। परिवार के वरिष्ठ सदस्यों से सहयोग मिलेगा। उच्चाधिकारियों से संबंध मजबूत होंगे और किए गए कार्यों की सराहना होगी।

👉 गाय को चारा दें। जल में तिल डाल कर स्नान करें। किसी प्रियजन को मोबाइल भेंट करें या जरुरतमंद को दान करें।

तुलाः👉 राशि से चतुर्थ सुख भाव में गोचर करते हुए सूर्य का प्रभाव कई तरह के उतार चढ़ाव और अप्रत्याशित परिणामों का सामना करवाएगा। सफलताओं का सिलसिला तो चलता रहेगा किंतु पारिवारिक कलह और मानसिक अशांति के कारण उलझन में रहेंगे। मित्रों तथा संबंधियों से अप्रिय समाचार प्राप्ति हो सकते हैं। कष्टकारक यात्रा भी करनी पड़ सकती है। माता-पिता के स्वास्थ्य के प्रति चिंतनशील रहें। यात्रा सावधानीपूर्वक करें। सामान चोरी होने से बचाएं।

👉 खिचड़ी और खीर का दान करें। इस अवसर पर चांदी खरीदें।

वृश्चिकः👉 राशि से तृतीय पराक्रम भाव में गोचर करते हुए सूर्य का प्रभाव बेहतरीन सफलता दिलाएगा। अपने साहस और पराक्रम के बल पर कठिन परिस्थितियों पर भी आसानी से विजय प्राप्त कर लेंगे। नए लोगों से मेल-जोल बढ़ेगा। परिवार में मांगलिक कार्यों का सुअवसर आएगा। नए मेहमान के आगमन से माहौल खुशनुमा रहेगा। धर्म और आध्यात्म के प्रति रुचि बढ़ेगी। घूमने फिरने और धार्मिक कार्यों पर भी अधिक खर्च होगा। परिवार के छोटे सदस्यों से मतभेद बढ़ने न दें।

👉 गज्जक , रेवड़ी का दान फलेगा। जल में गुड़ डाल कर सूर्य को अर्पित करें।

धनुः👉 राशि से द्वितीय धन भाव में गोचर करते हुए सूर्य देव का प्रभाव स्वास्थ्य विशेष करके हृदय विकार और दाहिनी आंख से संबंधित समस्याओं का सामना करवा सकता है। परिवार में अलगाववाद की स्थिति उत्पन्न न होने दें। पैतृक संपत्ति संबंधी विवाद हल होंगे। इस अवधि के मध्य किसी को भी अधिक धन उधार के रूप में न दें अन्यथा वह धन समय पर नहीं मिलेगा। घूमने फिरने पर अधिक खर्च होगा। अपनी रणनीतियां तथा योजनाओं को गोपनीय रखते हुए कार्य करेंगे तो अधिक सफल रहेंगे।

👉 खिचड़ी स्वयं बनाकर 9 निर्धन मजदूरों को खिलाएं। नेत्रहीनों को भोजन करवाएं। चने की दाल का दान करें।

मकरः👉 आपकी राशि में सूर्यदेव का आगमन किसी वरदान से क म नहीं है। मान सम्मान तथा पद और गरिमा की वृद्धि होगी। चुनाव संबंधी कोई निर्णय लेना चाह रहे हों तो उस दृष्टि से भी सफल रहेंगे। केंद्र अथवा राज्य सरकार के विभागों के प्रतीक्षित कार्य संपन्न होंगे। किसी भी तरह के टेंडर आदि के लिए आवेदन करना चाह रहे हों तो उस दृष्टि से भी ग्रह स्थितियां अनुकूल रहेंगी। स्वास्थ्य के प्रति चिंतनशील रहें, विशेष करके शरीर में कैल्शियम की कमी न होने दे और शारीरिक पीड़ा से सावधान रहें।

👉 गरीबों में सवा किलो चावल और सवा किलो काले उड़द या इसकी खिचड़ी दान करें। तांबे के बर्तन धर्मस्थान पर दान दें।

कुंभः👉 राशि से बारहवें व्ययभाव में गोचर करते हुए सूर्य का प्रभाव बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता है। अत्यधिक भाग दौड़ और आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ सकता है इसलिए खर्च के प्रति चिंतनशील रहें। वैवाहिक वार्ता में थोड़ा और समय लगेगा। इस अवधि के मध्य किसी को भी अधिक धन उधार के रूप में न दें अन्यथा वह धन समय पर नहीं मिलेगा। उच्चाधिकारियों से संबंध बिगड़ने न दें। किसी दूसरे देश के लिए वीजा आदि का आवेदन करना चाह रहे हों तो उस दृष्टि से समय सर्वथा अनुकूल रहेगा।

👉 मरीजों को मीठा दलिया खिलाएं। काला सफेद कंबल या गर्म वस्त्र दान करें।

मीनः👉 राशि से एकादश लाभ भाव में गोचर करते हुए सूर्य का प्रभाव बेहतरीन सफलता कारक रहेगा। संतान संबंधी चिंता दूर होगी। नवदंपति के लिए संतान प्राप्ति के भी योग। परिवार के वरिष्ठ सदस्यों तथा बड़े भाइयों से भी सहयोग मिलेगा। काफी दिनों का प्रतीक्षित कार्य संपन्न होगा। आर्थिक पक्ष और मजबूत होगा। जमीन-जायदाद से संबंधित समस्याओं का भी हल होगा। मकान अथवा वाहन क्रय करना चाह रहे हों तो उस दृष्टि से भी परिस्थितियों आपके पक्ष में होंगी। समाज में मान प्रतिष्ठा बढ़ेगी।

👉 तिल के लडडू या बेसन से बनी चीजें दान करें।

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     करवा चौथ नवम्बर 1, 2023 विशेष〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️करवा चौथ व्रत का हिन्दू संस्कृति में विशेष महत्त्व है। इस दिन पति क...
31/10/2023




करवा चौथ नवम्बर 1, 2023 विशेष
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करवा चौथ व्रत का हिन्दू संस्कृति में विशेष महत्त्व है। इस दिन पति की लम्बी उम्र के पत्नियां पूर्ण श्रद्धा से निर्जला व्रत रखती है।

कार्तिक मास की चतुर्थी को करवा चौथ का त्योहार मनाया जाता है. इस साल एक नवंबर को करवा चौथ का व्रत रखा जाएगा. दरअसल, इस साल कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 31 अक्टूबर मंगलवार रात 9 बजकर 30 मिनट से शुरू होकर एक नवंबर रात 9 बजकर 19 मिनट तक है. ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, करवा चौथ का व्रत बुधवार एक नवंबर को रखा जायेगा।

1 नवंबर को चन्द्रमा अपनी उच्च राशि वृषभ में होंगे। इसी के साथ मंगल, बुध और सूर्य तुला राशि में हैं। सूर्य और बुध बुधादित्य योग बना रहे हैं तो मंगल और सूर्य मिलकर मंगलादित्य योग बना रहे हैं। शनि भी 30 साल बाद अपनी मूलत्रिकोण राशि कुंभ में शश योग बना रहे हैं। इस दिन शिवयोग मृगशिरा नक्षत्र और बुधादित्य योग का संगम रहेगा। शिव योग शिव को समर्पित, मृगशिरा नक्षत्र मंगल को समर्पित, बुधादित्य योग यश और ज्ञान का प्रतीक माना गया है। इन योगों से पर्व का महत्व हजारों गुना बढ़ गया है।

करवा चौथ महात्म्य
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छांदोग्य उपनिषद् के अनुसार चंद्रमा में पुरुष रूपी ब्रह्मा की उपासना करने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। इससे जीवन में किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होता है। साथ ही साथ इससे लंबी और पूर्ण आयु की प्राप्ति होती है। करवा चौथ के व्रत में शिव, पार्वती, कार्तिकेय, गणोश तथा चंद्रमा का पूजन करना चाहिए। चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अघ्र्य देकर पूजा होती है। पूजा के बाद मिट्टी के करवे में चावल,उड़द की दाल, सुहाग की सामग्री रखकर सास अथवा सास के समकक्ष किसी सुहागिन के पांव छूकर सुहाग सामग्री भेंट करनी चाहिए।

महाभारत से संबंधित पौराणिक कथा के अनुसार पांडव पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी पर्वत पर चले जाते हैं। दूसरी ओर बाकी पांडवों पर कई प्रकार के संकट आन पड़ते हैं। द्रौपदी भगवान श्रीकृष्ण से उपाय पूछती हैं। वह कहते हैं कि यदि वह कार्तिक कृष्ण चतुर्थी के दिन करवाचौथ का व्रत करें तो इन सभी संकटों से मुक्ति मिल सकती है। द्रौपदी विधि विधान सहित करवाचौथ का व्रत रखती है जिससे उनके समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं। इस प्रकार की कथाओं से करवा चौथ का महत्त्व हम सबके सामने आ जाता है।

सरगी का महत्त्व
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करवा चौथ में सरगी का काफी महत्व है। सरगी सास की तरफ से अपनी बहू को दी जाती है। इसका सेवन महिलाएं करवाचौथ के दिन सूर्य निकलने से पहले तारों की छांव में करती हैं। सरगी के रूप में सास अपनी बहू को विभिन्न खाद्य पदार्थ एवं वस्त्र इत्यादि देती हैं। सरगी, सौभाग्य और समृद्धि का रूप होती है। सरगी के रूप में खाने की वस्तुओं को जैसे फल, मीठाई आदि को व्रती महिलाएं व्रत वाले दिन सूर्योदय से पूर्व प्रात: काल में तारों की छांव में ग्रहण करती हैं। तत्पश्चात व्रत आरंभ होता है। अपने व्रत को पूर्ण करती हैं।

महत्त्व के बाद बात आती है कि करवा चौथ की पूजा विधि क्या है? किसी भी व्रत में पूजन विधि का बहुत महत्त्व होता है। अगर सही विधि पूर्वक पूजा नहीं की जाती है तो इससे पूरा फल प्राप्त नहीं हो पाता है।

चौथ की पूजन सामग्री और व्रत की विधि
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करवा चौथ पर्व की पूजन सामग्री👇

कुंकुम, शहद, अगरबत्ती, पुष्प, कच्चा दूध, शक्कर, शुद्ध घी, दही, मेंहदी, मिठाई, गंगाजल, चंदन, चावल, सिन्दूर, मेंहदी, महावर, कंघा, बिंदी, चुनरी, चूड़ी, बिछुआ, मिट्टी का टोंटीदार करवा व ढक्कन, दीपक, रुई, कपूर, गेहूँ, शक्कर का बूरा, हल्दी, पानी का लोटा, गौरी बनाने के लिए पीली मिट्टी, लकड़ी का आसन, छलनी, आठ पूरियों की अठावरी, हलुआ, दक्षिणा के लिए पैसे। सम्पूर्ण सामग्री को एक दिन पहले ही एकत्रित कर लें।

व्रत वाले दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर स्नान कर स्वच्छ कपड़े पहन लें तथा शृंगार भी कर लें। इस अवसर पर करवा की पूजा-आराधना कर उसके साथ शिव-पार्वती की पूजा का विधान है क्योंकि माता पार्वती ने कठिन तपस्या करके शिवजी को प्राप्त कर अखंड सौभाग्य प्राप्त किया था इसलिए शिव-पार्वती की पूजा की जाती है। करवा चौथ के दिन चंद्रमा की पूजा का धार्मिक और ज्योतिष दोनों ही दृष्टि से महत्व है। व्रत के दिन प्रात: स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोल कर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें।

करवा चौथ पूजन विधि
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प्रात: काल में नित्यकर्म से निवृ्त होकर संकल्प लें और व्रत आरंभ करें।
व्रत के दिन निर्जला रहे यानि जलपान ना करें।
व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें-
प्रातः पूजा के समय इस मन्त्र के जप से व्रत प्रारंभ किया जाता है-

'मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।'

अथवा👇
ॐ शिवायै नमः' से पार्वती का,
'ॐ नमः शिवाय' से शिव का,
'ॐ षण्मुखाय नमः' से स्वामी कार्तिकेय का, 'ॐ गणेशाय नमः' से गणेश का तथा
'ॐ सोमाय नमः' से चंद्रमा का पूजन करें।

शाम के समय, माँ पार्वती की प्रतिमा की गोद में श्रीगणेश को विराजमान कर उन्हें बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी अथवा लकड़ी के आसार पर शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा की स्थापना करें। मूर्ति के अभाव में सुपारी पर नाड़ा बाँधकर देवता की भावना करके स्थापित करें। पश्चात माँ पार्वती का सुहाग सामग्री आदि से श्रृंगार करें।

भगवान शिव और माँ पार्वती की आराधना करें और कोरे करवे में पानी भरकर पूजा करें। एक लोटा, एक वस्त्र व एक विशेष करवा दक्षिणा के रूप में अर्पित करें।

सौभाग्यवती स्त्रियां पूरे दिन का व्रत कर व्रत की कथा का श्रवण करें। चंद्रोदय के बाद चाँद को अर्घ्य देकर अपने पति के हाथ से जल एवं मिष्ठान खा कर व्रत खोले।

करवा चौथ प्रथम कथा
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बहुत समय पहले की बात है, एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। यहाँ तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी। शाम को भाई जब अपना व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्‍य देकर ही खा सकती है। चूँकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है।

सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चाँद उदित हो रहा हो।
इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि चाँद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चाँद को देखती है, उसे अर्घ्‍य देकर खाना खाने बैठ जाती है।

वह पहला टुकड़ा मुँह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुँह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह बौखला जाती है।

उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है।
सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है।

एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियाँ करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियाँ उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से 'यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो' ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है।

इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूँकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना। ऐसा कह के वह चली जाती है। सबसे अंत में छोटी भाभी आती है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है। इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है, लेकिन करवा नहीं छोड़ती है।

अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अँगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुँह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठता है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है। हे श्री गणेश माँ गौरी जिस प्रकार करवा को चिर सुहागन का वरदान आपसे मिला है, वैसा ही सब सुहागिनों को मिले।

करवाचौथ द्वितीय कथा
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इस कथा का सार यह है कि शाकप्रस्थपुर वेदधर्मा ब्राह्मण की विवाहिता पुत्री वीरवती ने करवा चौथ का व्रत किया था। नियमानुसार उसे चंद्रोदय के बाद भोजन करना था, परंतु उससे भूख नहीं सही गई और वह व्याकुल हो उठी। उसके भाइयों से अपनी बहन की व्याकुलता देखी नहीं गई और उन्होंने पीपल की आड़ में आतिशबाजी का सुंदर प्रकाश फैलाकर चंद्रोदय दिखा दिया और वीरवती को भोजन करा दिया।

परिणाम यह हुआ कि उसका पति तत्काल अदृश्य हो गया। अधीर वीरवती ने बारह महीने तक प्रत्येक चतुर्थी को व्रत रखा और करवा चौथ के दिन उसकी तपस्या से उसका पति पुनः प्राप्त हो गया।

करवा चौथ तृतीय कथा
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एक समय की बात है कि एक करवा नाम की पतिव्रता स्त्री अपने पति के साथ नदी के किनारे के गाँव में रहती थी। एक दिन उसका पति नदी में स्नान करने गया। स्नान करते समय वहाँ एक मगर ने उसका पैर पकड़ लिया। वह मनुष्य करवा-करवा कह के अपनी पत्नी को पुकारने लगा।

उसकी आवाज सुनकर उसकी पत्नी करवा भागी चली आई और आकर मगर को कच्चे धागे से बाँध दिया। मगर को बाँधकर यमराज के यहाँ पहुँची और यमराज से कहने लगी- हे भगवन! मगर ने मेरे पति का पैर पकड़ लिया है। उस मगर को पैर पकड़ने के अपराध में आप अपने बल से नरक में ले जाओ।
यमराज बोले- अभी मगर की आयु शेष है, अतः मैं उसे नहीं मार सकता। इस पर करवा बोली, अगर आप ऐसा नहीं करोगे तो मैं आप को श्राप देकर नष्ट कर दूँगी। सुनकर यमराज डर गए और उस पतिव्रता करवा के साथ आकर मगर को यमपुरी भेज दिया और करवा के पति को दीर्घायु दी। हे करवा माता! जैसे तुमने अपने पति की रक्षा की, वैसे सबके पतियों की रक्षा करना।

करवाचौथ चौथी कथा
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एक बार पांडु पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी नामक पर्वत पर गए। इधर द्रोपदी बहुत परेशान थीं। उनकी कोई खबर न मिलने पर उन्होंने कृष्ण भगवान का ध्यान किया और अपनी चिंता व्यक्त की। कृष्ण भगवान ने कहा- बहना, इसी तरह का प्रश्न एक बार माता पार्वती ने शंकरजी से किया था।

पूजन कर चंद्रमा को अर्घ्‍य देकर फिर भोजन ग्रहण किया जाता है। सोने, चाँदी या मिट्टी के करवे का आपस में आदान-प्रदान किया जाता है, जो आपसी प्रेम-भाव को बढ़ाता है। पूजन करने के बाद महिलाएँ अपने सास-ससुर एवं बड़ों को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लेती हैं।
तब शंकरजी ने माता पार्वती को करवा चौथ का व्रत बतलाया। इस व्रत को करने से स्त्रियाँ अपने सुहाग की रक्षा हर आने वाले संकट से वैसे ही कर सकती हैं जैसे एक ब्राह्मण ने की थी। प्राचीनकाल में एक ब्राह्मण था। उसके चार लड़के एवं एक गुणवती लड़की थी।

एक बार लड़की मायके में थी, तब करवा चौथ का व्रत पड़ा। उसने व्रत को विधिपूर्वक किया। पूरे दिन निर्जला रही। कुछ खाया-पीया नहीं, पर उसके चारों भाई परेशान थे कि बहन को प्यास लगी होगी, भूख लगी होगी, पर बहन चंद्रोदय के बाद ही जल ग्रहण करेगी।
भाइयों से न रहा गया, उन्होंने शाम होते ही बहन को बनावटी चंद्रोदय दिखा दिया। एक भाई पीपल की पेड़ पर छलनी लेकर चढ़ गया और दीपक जलाकर छलनी से रोशनी उत्पन्न कर दी। तभी दूसरे भाई ने नीचे से बहन को आवाज दी- देखो बहन, चंद्रमा निकल आया है, पूजन कर भोजन ग्रहण करो। बहन ने भोजन ग्रहण किया।
भोजन ग्रहण करते ही उसके पति की मृत्यु हो गई। अब वह दुःखी हो विलाप करने लगी, तभी वहाँ से रानी इंद्राणी निकल रही थीं। उनसे उसका दुःख न देखा गया। ब्राह्मण कन्या ने उनके पैर पकड़ लिए और अपने दुःख का कारण पूछा, तब इंद्राणी ने बताया- तूने बिना चंद्र दर्शन किए करवा चौथ का व्रत तोड़ दिया इसलिए यह कष्ट मिला। अब तू वर्ष भर की चौथ का व्रत नियमपूर्वक करना तो तेरा पति जीवित हो जाएगा। उसने इंद्राणी के कहे अनुसार चौथ व्रत किया तो पुनः सौभाग्यवती हो गई। इसलिए प्रत्येक स्त्री को अपने पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत करना चाहिए। द्रोपदी ने यह व्रत किया और अर्जुन सकुशल मनोवांछित फल प्राप्त कर वापस लौट आए। तभी से हिन्दू महिलाएँ अपने अखंड सुहाग के लिए करवा चौथ व्रत करती हैं। सायं काल में चंद्रमा के दर्शन करने के बाद ही पति द्वारा अन्न एवं जल ग्रहण करें। पति, सास-ससुर सब का आशीर्वाद लेकर व्रत को समाप्त करें।

पूजा एवं चन्द्र को अर्घ्य देने का मुहूर्त
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कार्तिक कृष्ण चतुर्थी (करवाचौथ) 1 नवम्बर को करवा चौथ पूजा मुहूर्त- सायं 05:35 से 06:55 बजे तक।

चंद्रोदय- 20:06 मिनट पर।

चतुर्थी तिथि प्रारम्भ 👉 31 अक्टूबर को रात्रि 09:30 बजे से।

चतुर्थी तिथि समाप्त 👉 01 नवम्बर को रात्रि 09:19 बजे।

13 घंटे 26 मिनट का समय व्रत के लिए है। ऐसे में महिलाओं को सुबह 6 बजकर 40 मिनट से शाम 08 बजकर 06 मिनट तक करवा चौथ का व्रत रखना होगा।

करवा चौथ के दिन चन्द्र को अर्घ्य देने का समय रात्रि 8:07 बजे से 8:55 तक है।

करवाचौथ के दिन भारत के कुछ प्रमुख नगरों का चंद्रोदय समय
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नई दिल्ली – रात 8:15 बजे
लखनऊ – रात 8:05 बजे
नोएडा- रात 8:14 बजे
गुरुग्राम- रात 8:16 बजे
मुंबई – रात 8:59 बजे
चेन्नई- रात 8:43 बजे
आगरा – रात 8:16 बजे
कोलकाता- शाम 7:46 बजे
भोपाल – रात 8:29 बजे
अलीगढ़ – रात 8:13 बजे
हिमाचल प्रदेश – रात 8:07 बजे
पणजी- रात 9:04 बजे
जयपुर – रात 8:26 बजे
पटना- शाम 7:51 बजे
चंडीगढ़ – रात 8:10 बजे
पुणे- रात 8:56 बजे
हैदराबाद – रात 8:40 बजे
भुवनेश्वर – रात 8:02 बजे
कानपुर – रात्रि 8:08 बजे

इन शहरों के लगभग 200 किलोमीटर के आसपास तक चंद्रोदय के समय मे 1 से 3 मिनट का अंतर आ सकता है।

प्राचीन मान्यताओं के अनुसार करवा चौथ के दिन शाम के समय चन्द्रमा को अर्घ्य देकर ही व्रत खोला जाता है।

चंद्रदेव को अर्घ्य देते समय इस मंत्र का जप अवश्य करना चाहिए। अर्घ्य देते समय इस मंत्र के जप करने से घर में सुख व शांति आती है।

"गगनार्णवमाणिक्य चन्द्र दाक्षायणीपते।
गृहाणार्घ्यं मया दत्तं गणेशप्रतिरूपक॥"

इसका अर्थ है कि सागर समान आकाश के माणिक्य, दक्षकन्या रोहिणी के प्रिय व श्री गणेश के प्रतिरूप चंद्रदेव मेरा अर्घ्य स्वीकार करें।

सुख सौभाग्य के लिये राशि अनुसार उपाय
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मेष राशि👉 मेष राशि की महिलाएं करवा चौथ की पूजा अगर लाल और गोल्डन रंग के कपड़े पहनकर करती हैं तो आने वाला समय बेहद शुभ रहेगा।

वृषभ राशि👉 वृषभ राशि की महिलाओं को इस करवा चौथ सिल्वर और लाल रंग के कपड़े पहनकर पूजा करनी चाहिए। इस रंग के कपड़े पहनकर पूजा करने से आने वाले समय में पति-पत्नी के बीच प्यार में कभी कमी नहीं आएगी।

मिथुन राशि👉 इस राशि की महिलाओं के लिए हरा रंग इस करवा चौथ बेहद शुभ रहने वाला है। इस राशि की महिलाओं को करवा चौथ के दिन हरे रंग की साड़ी के साथ हरी और लाल रंग की चूड़ियां पहनकर चांद की पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से आपके पति की आयु निश्चित लंबी होगी।

कर्क राशि👉 कर्क राशि की महिलाओं को करवा चौथ की पूजा विशेषकर लाल-सफेद रंग के कॉम्बिनेशन वाली साड़ी के साथ रंग-बिरंगी चूडि़यां पहनकर पूजा करनी चाहिए। याद रखें इस राशि की महिलाओं को व्रत खोलते समय चांद को सफेद बर्फी का भोग लगाना चाहिए। ऐसा करने से आपके पति का प्यार आपके लिए कभी कम नहीं होगा।

सिंह राशि👉 करवा चौथ की साड़ी चुनने के लिए इस राशि की महिलाओं के पास कई विकल्प मौजूद हैं। इस राशि की महिलाएं लाल, संतरी, गुलाबी और गोल्डन रंग चुन सकती है। इस रंग के कपड़े पहनकर पूजा करने से शादीशुदा जोड़े के वैवाहिक जीवन में हमेशा प्यार बना रहता है।

कन्या राशि👉 कन्या राशि वाली महिलाओं को इस करवा चौथ लाल-हरी या फिर गोल्डन कलर की साड़ी पहनकर पूजा करने से लाभ मिलेगा। ऐसा करने से दोनों के वैवाहिक जीवन में मधुरता बढ़ जाएगी।

तुला राशि👉 इस राशि की महिलाओं को पूजा करते समय लाल- सिल्वर रंग के कपड़े पहनने चाहिए। इस रंग के कपड़े पहनने पर पति का साथ और प्यार दोनों हमेशा बना रहेगा।

वृश्चिक राशि👉 इस राशि की महिलाएं लाल, मैरून या गोल्डन रंग की साड़ी पहनकर पूजा करें तो पति-पत्नी के बीच प्यार बढ़ जाएगा।

धनु राशि👉 इस राशि की महिलाएं पीले या आसमानी रंग के कपड़े पहनकर पति की लंबी उम्र की कामना करें।

मकर राशि👉 मकर राशि की महिलाएं इलेक्ट्रिक ब्लू रंग करवा चौथ पर पहनने के लिए चुनें। ऐसा करने से आपके मन की हर इच्छा जल्द पूरी होगी।

कुंभ राशि👉 ऐसी महिलाओं को नेवी ब्लू या सिल्वर कलर के कपड़े पहनकर पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से गृहस्थ जीवन में सुख शांति बनी रहेगी।

मीन राशि👉 इस राशि की महिलाओं को करवा चौथ पर लाल या गोल्डन रंग के कपड़े पहनना शुभ होगा।
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