माँ ललिताम्बा ज्योतिष सेवा केंद्र

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👉बात हम केतु की 2 दिन से कर रहे है, ये ग्रह ही ऐसा है जिसके फल बहुत छुपे और कॉम्लिकेटेड है, क्यूंकि केतु गुप्त फल देने म...
23/08/2025

👉बात हम केतु की 2 दिन से कर रहे है, ये ग्रह ही ऐसा है जिसके फल बहुत छुपे और कॉम्लिकेटेड है, क्यूंकि केतु गुप्त फल देने मे ही माहिर है क्यूंकि इसमें धड़ से निचे फल विधमान है हलाकि ये देखता सब है पर इसके फल देने की छमता राहु तेज है भले ही इसके फल देर से आये क्यूंकि ये न तोह शनि की दसा मे न गुरु की दसा फल उजागर नहीं करता, राहु शॉर्टकट है हर जगह जल्दी से उसे चाहिए ये ही भ्र्म जातक के मानसिकता मे भरता है, वही केतु गहन रूप से सोच विचार के घाट घाट का पानी पिला के जो छमता देता है तोह उसके फल और परिणाम सुगम या अधिक कस्ट कारी होते है जिनको लोग उम्र भर भूल भी नी पाते ऐसा झख्म देता है और सुख भी ऐसा देता है जिसका भोग लम्बे समय तक होता है.. केतु से चंद्र और बुध अधिक ख़राब फल मे होते है इनमे कर्जमुक्त आदमी हों नी पाता बिमारी उसके घर से जाती नहीं, बुरी नजर, काल जादू भी केतु पीड़ित पे अधिक होता है और जो एस्ट्रो इनको यानी तंत्र से बढ़ावा देता है या समसान मे लोगो की परेशानी का निदान के लिए बैठता है सिर्फ पैसे के लिए उसके खुद अपने परिवार के सुख नस्ट होते है ख़ासकर जो वासिकरण करके नाश मारते है लोगो का उनके छणिक की खुशी उनके लिए जीवन का सबसे बड़ा दुख बनता है और इनकी संतान बहुत बुरे परिणाम भुगत ती है.. उलटे सीधे काम वाले जो भी होते है उनके घर ही उनकी संताने अपंग, दिव्याग, मानसिक रूप से विकलांग संतान पैदा होती है क्यूंकि उनके कर्मो का फल उनकी संतान भोगति है, यही केतु जा सबसे बुरा असर है.. और जिनके घर से बिमारी नी जाती दवाईया अधिक चलती है आज एक कल दूसरी बिमारी आती है ये भी केतु के साथ अस्त बुध का असर होता है.. और जो जितना दुसरो का जितना भला करता है और लोग पलट के उसे ही दोसी बना देते है और जिसका जितना भला करता है उतनी ही बेइज्जती लोग उसकी करते है ये केतु का पहला लक्षन है उसकी बुरे फल का.. केतु के फल अक्सर पीढ़ी भुगगति है क्यूंकि पूर्वजो के कर्म और उंनके पूर्व कर्म सामने आते है. और अधिकतर ये देखा है की इनको किसी की बद्दुआ लगी होती है या किसी श्राप से इनकी पीढ़ी पीड़ित होती है.. ये कहते है की हमने तोह कुछ नी किया कभी किसी का तोह हम क्यों भोग करें लेकिन ये ग्रह का नियम है आपके दादा का ऋण पिताजी भोग करेगा और ओ पूरा न कर पाए तोह पोते करेंगे.. और ये भोग किसी भी रूप मे उजागर होता है.. जैसे संतान गलत रास्तो पे, घर मे बिमारी, गरीबी, लोगो के कर्ज के निचे दबे रहना, किसी की तो संतान ही कम उम्र चली जाती है दुर्घटना मे, मतलब एक दुख और एक सुख जो लम्बा चले यही है केतु की...अब आज जो गोचर राहु केतु का होगा सभी के लिए सब उनके फल और परिनाम लम्बा आएगा. बस जिनका केतु 8-12 या राहु 1-4-5-7-8-9-12 आयेग्गा उनको सावधान तोह रहना है पर सुरु मे कुछ नी फल आएगा जैसे ही 4 महीने से और 7 महीने का समय अंतराल बीतेगा तब नज़र आएगा और तब भी लगेगा नहीं की इनका ही बुरा असर चालू हों गया.. ये उलटे वक्री चलने वाले ग्रह है जिंनके फल देरी से उजागर होंगे और होते है.. डर राहु से नहीं केतु से अधिक मैंने पाया है क्यूंकि छुपे फल बड़े घातक होते है और जिनका काम बड़े लेवल का है यानि मंगल और शनि समन्धि है, जैसे प्रॉपर्टी, रियल स्टेट, राजनीति, और उनकी कुंडली मे केतु मंगल का योग है या वर्षफल मे बने षडाष्टक योग ज़ब भी बनेगा तोह जीवन मे आ बनेगी इनको हथियार न रखना है न देना है..
केतु की बात इसलिए कर रहा हु क्यूंकि तत्कालीन स्थति जो बनी है ओ बहुत साल बाद बनी है लेकिन बड़ी विकट है सडक हादसे इतने होरे है की जवान तो जवान बच्चे तक की हादसे मे घटना घट रही है केतु मंगल के जितने करीब होगा और जिनकी कुंडली मंगल शनि का या केतु से षडाष्टक बनेगा उतना ख़राब रिजल्ट होगा किसी को कारोबार से नुकसान होगा, किसी को स्वास्थ्य से, किसी कर्जदार को लोग बहुत परेशान करेंगे जिससे वाह खुद खत्म तक करने की सोचेगा यदि बुध और चंद्र उसके बलि न हुए तोह, लोग सोचते है राहु ही बुरा होता है जबकि रिजल्ट केतु के बुरे होते है राहु ऊपरी मार करता है लेकिन केतु की पीड़ा लम्बी चलती है जो मन के अंदर किसी को खोने की पीड़ा बरकरार रखता है, कम उम्र मे बच्चों को वाहन न दे यदि उनको लगातार चोट लग रही है स्वास्थ्य ख़राब होरा है तोह सावधान रहने की आवश्कता है।

कुंडली विश्लेषण के लिए अवश्य सम्पर्क करे ।
माँ ललिताम्बा ज्योतिष सेवा केंद्र
सम्पर्क :- 077260 26005
विश्लेषण शुल्क :- 501₹

23/08/2025

आप सभी को जय श्री कृष्णा
प्रेम से बोलो राधे राधे
सीताराम
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

22/08/2025
नवग्रह शान्ति के लिए विशेष दक्षिणामूर्ति स्त्रोत्र ।।
22/08/2025

नवग्रह शान्ति के लिए विशेष दक्षिणामूर्ति स्त्रोत्र ।।

कुशा का आध्यात्मिक एवं पौराणिक महत्त्व🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸अध्यात्म और कर्मकांड शास्त्र में प्रमुख रूप से काम आने वाली वनस्पतिय...
22/08/2025

कुशा का आध्यात्मिक एवं पौराणिक महत्त्व
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अध्यात्म और कर्मकांड शास्त्र में प्रमुख रूप से काम आने वाली वनस्पतियों में कुशा का प्रमुख स्थान है। इसका वैज्ञानिक नाम Eragrostis cynosuroides है। इसको कांस अथवा ढाब भी कहते हैं। जिस प्रकार अमृतपान के कारण केतु को अमरत्व का वर मिला है, उसी प्रकार कुशा भी अमृत तत्त्व से युक्त है।

अत्यन्त पवित्र होने के कारण इसका एक नाम पवित्री भी है। इसके सिरे नुकीले होते हैं। इसको उखाड़ते समय सावधानी रखनी पड़ती है कि यह जड़ सहित उखड़े और हाथ भी न कटे। कुशल शब्द इसीलिए बना। " ऊँ हुम् फट " मन्त्र का उच्चारण करते हुए उत्तराभिमुख होकर कुशा उखाडी जाती है ।

यह पौधा पृथ्वी लोक का पौधा न होकर अंतरिक्ष से उत्पन्न माना गया है। मान्यता है कि जब सीता जी पृथ्वी में समाई थीं तो राम जी ने जल्दी से दौड़ कर उन्हें रोकने का प्रयास किया, किन्तु उनके हाथ में केवल सीता जी के केश ही आ पाए। ये केश राशि ही कुशा के रूप में परिणत हो गई। सीतोनस्यूं पौड़ी गढ़वाल में जहाँ पर माना जाता है कि माता सीता धरती में समाई थी, उसके आसपास की घास अभी भी नहीं काटी जाती है।

भारत में हिन्दू लोग इसे पूजा /श्राद्ध में काम में लाते हैं। श्राद्ध तर्पण विना कुशा के सम्भव नहीं हैं ।

कुशा से बनी अंगूठी पहनकर पूजा /तर्पण के समय पहनी जाती है जिस भाग्यवान् की सोने की अंगूठी पहनी हो उसको जरूरत नहीं है। कुशा प्रत्येक दिन नई उखाडनी पडती है लेकिन अमावस्या की तोडी कुशा पूरे महीने काम दे सकती है और भादों की अमावस्या के दिन की तोडी कुशा पूरे साल काम आती है। इसलिए लोग इसे तोड के रख लते हैं।

केतु शांति विधानों में कुशा की मुद्रिका और कुशा की आहूतियां विशेष रूप से दी जाती हैं। रात्रि में जल में भिगो कर रखी कुशा के जल का प्रयोग कलश स्थापना में सभी पूजा में देवताओं के अभिषेक, प्राण प्रतिष्ठा, प्रायश्चित कर्म, दशविध स्नान आदि में किया जाता है।

केतु को अध्यात्म और मोक्ष का कारक माना गया है। देव पूजा में प्रयुक्त कुशा का पुन: उपयोग किया जा सकता है, परन्तु पितृ एवं प्रेत कर्म में प्रयुक्त कुशा अपवित्र हो जाती है। देव पूजन, यज्ञ, हवन, यज्ञोपवीत, ग्रहशांति पूजन कार्यो में रुद्र कलश एवं वरुण कलश में जल भर कर सर्वप्रथम कुशा डालते हैं। कलश में कुशा डालने का वैज्ञानिक पक्ष यह है कि कलश में भरा हुआ जल लंबे समय तक जीवाणु से मुक्त रहता है। पूजा समय में यजमान अनामिका अंगुली में कुशा की नागमुद्रिका बना कर पहनते हैं।

कुशा आसन का महत्त्व
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कहा जाता है कि कुश के बने आसन पर बैठकर मंत्र जप करने से सभी मंत्र सिद्ध होते हैं। नास्य केशान् प्रवपन्ति, नोरसि ताडमानते। -देवी भागवत 19/32 अर्थात कुश धारण करने से सिर के बाल नहीं झडते और छाती में आघात यानी दिल का दौरा नहीं होता। उल्लेखनीय है कि वेद ने कुश को तत्काल फल देने वाली औषधि, आयु की वृद्धि करने वाला और दूषित वातावरण को पवित्र करके संक्रमण फैलने से रोकने वाला बताया है।

इसपर बैठकरसाधना करने से आरोग्य, लक्ष्मी प्राप्ति, यश और तेज की वृद्घि होती है। साधक की एकाग्रता भंग नहीं होती। कुशा की पवित्री उन लोगों को जरूर धारण करनी चाहिए, जिनकी राशि पर ग्रहण पड़ रहा है। कुशा मूल की माला से जाप करने से अंगुलियों के एक्यूप्रेशर बिंदु दबते रहते हैं, जिससे शरीर में रक्त संचार ठीक रहता है।

कुशा की पवित्री का महत्त्व
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कुश की अंगूठी बनाकर अनामिका उंगली में पहनने का विधान है, ताकि हाथ द्वारा संचित आध्यात्मिक शक्ति पुंज दूसरी उंगलियों में न जाए, क्योंकि अनामिका के मूल में सूर्य का स्थान होने के कारण यह सूर्य की उंगली है। सूर्य से हमें जीवनी शक्ति, तेज और यश प्राप्त होता है। दूसरा कारण इस ऊर्जा को पृथ्वी में जाने से रोकना भी है। कर्मकांड के दौरान यदि भूलवश हाथ भूमि पर लग जाए, तो बीच में कुश का ही स्पर्श होगा। इसलिए कुश को हाथ में भी धारण किया जाता है। इसके पीछे मान्यता यह भी है कि हाथ की ऊर्जा की रक्षा न की जाए, तो इसका दुष्परिणाम हमारे मस्तिष्क और हृदय पर पडता है।
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