
28/12/2024
#सर्जन ओर शरीर.. एक युद्ध || अनुभव हर एक डॉक्टर का।
यही कोई 40 वर्ष उम्र थी उस मरीज़ की, सुबह के 6 बजे होंगे, स्पाइन (रीढ़) की बड़ी सर्जरी के लिए तैयारी की जा चुकी थी। ऑपरेशन से पहले की जाँचे हो या फिटनेस, सब परफ़ेक्ट।
बेहोशी की टीम ने अपना काम कर सर्जन को आगे बढ़ने का इशारा किया। सर्जन हाथ में स्केल्पल (सर्जन्स नाइफ़) लेकर मानो अब डूब चुका था। चमड़ी से होते हुए रीढ़ तक पहुँच ओर फिर ख़राब हिस्से की सर्जरी, सब बिलकुल सटीक। ना कोई रक्तस्राव ओर ना ही कही डर-घबराहट। अपने रिकॉर्ड में से एक बेहतरीन ऑपरेशन।
#लगभग 4 घंटे चली सर्जरी में भी मानो एनस्थिसिया टीम ने तो जैसे हर एक पैरामीटर को सटीक रखे हुए है। बहुत ही आराम से सर्जरी “सफल” हुई। मरीज़ को सीधा लिटाया गया, बेहोशी वाले डॉक्टर साहब की भाषा में बोलूँ तो “मरीज़ अब होश में आ रहा है”।
मैं निष्फिक्र मुस्कुराता चेहरा लिये पहुँचा काउंसलिंग रूम में , जहाँ परिजन मानो सुनना चाह रहे हो की सब सफल रहा। हुआ भी यही- सब ठीक ही तो था। “कुछ समय में अपना बेटा अच्छे से चल पायेगा” मेरे शब्द मानो मरहम का काम किये। परिजन की मुस्कान आयी ही थी की…
की OT नर्स “सर, प्लीज़ एक बार- वो, वो एनस्थिसिया वाले बुला रहे है।”
हाँ, आता हूँ। कहकर मैंने टाल दिया।
सर, अर्जेंट हैं।
पिछले हज़ारों ऑपरेशन में ऐसा कभी नहीं हुआ था मेरे साथ। मैं OT में पहुँचा-
मानो एक बार थम गया। CPR ….एनस्थिसिया टीम CPR दे रही थी। वो उसकी स्वाँस की नली (ET tube) निकालने ही वाले थे की एकदम से हार्ट रुक गया। मरीज़ कार्डियक अरेस्ट में था।
कुछ सेकंड में मेरा दिमाग़ मरीज़ के ऑपरेशन से पहले मुस्कुराते हुए चहरे, परिवार वालों की आँखों में मेरा विश्वास, सफल सर्जरी से होते हुए, अब लास्ट स्टेज CPR पर था।
कही भी तो गलती नहीं थी। ना सर्जन की, ना स्टाफ की तरफ़ से ओर ना ही एनस्थिसिया टीम की। सब कुछ तो प्रोटोकॉल में था।
मुझे CPR देने दो, ओर तुरंत मरीज़ के हार्ट में बस कुछ सेंटीमीटर पर पोजीशन कर, परफ़ेक्ट कम्प्रेशन चालू किए।
#अब तक सेकड़ों बार CPR दिये होंगे, मरीज़ों को बचाने के लिए। पर आज शायद पहली बार ख़ुद को बचाने के लिए CPR दे रहा था।
रिपीट ADR+Atropine…चेक carotid पल्स।
करते करते 6 cycles हो गये। कब 20 मिनट हुए, पता ही नहीं चले।
OT में मची अफ़रा-तफ़री देख, अनहोनी के डर से परिवार वाले कब OT के बाहर खड़े हुए, हमे पता ना चला। CPR देते हुए मेरी नज़रे उनसे मिली तो लगा- उनकी आँखें डर कम ओर क्रोध ज़्यादा उगल रही है। उनको OT से बाहर किया तो वो इधर उधर फ़ोन करने लगे।
#सर, carotid पल्स महसूस हुई है। ओर मानो जैसे की मेरा ही हार्ट रुक गया हो। मॉनिटर पर VT रिदम आयी।
Ready electric Shock…Charge 200 Jule…मानो हमारी टीम अब विजय समझ रही थी। पर कुदरत अभी कुछ ओर ही रंग में थी।
Machine Charged…All clear…Delivered shock
Start CPR…No pulse
#पर हमारा जोश फिर जाग गया था। अब ख़ुद को बचाने के लिए भले ही घंटों CPR देना पड़े, हम तैयार थे।
मेरे दिमाग़ में आजकल का डॉक्टर्स को लेकर जो लोगो में ज़हर भरा गया है, वो सामने था। भीड़, मारपीट, हँगामा, राजनीति के छुटभैयो की पैसे वसूलने की भरसक कोशिश, मोताने के नाम पर लाखों की वसूली, मीडिया द्वारा खबर को सनसनी ओर चटपटी बनाने के लिए “मौत के सौदागर” जैसे शब्द, सोशल मीडिया पर बेचारे ग़रीब मरीज़ ओर शैतान डॉक्टर। मानो दिमाग़ में रील, हाथों से CPR ओर भावनाओं का सैलाब।
बाहर से गुजरते स्टाफ से परिवार के सवाल- क्या बेहोशी की दवा ज़्यादा दे दी, क्या सर्जरी में खून बह गया। हुआ क्या ? मानो वो सुनी सुनाई तरीको में सुराग ढूँढ रहे हो।
#हम डॉक्टर्स, ज़िंदगी ने वक़्त ही नहीं दिया किसी पार्टी का झंडा उठाने को, लोगो से मिलने ओर कनेक्शन बनाने को, भीड़ इकट्ठी के लिए छुटभैया दोस्त बनाने को। 15 साल की तपस्या के बाद जाकर खड़े होते है, हाथ में स्केल्पल लिये।
आज अपनी MCh. डिग्री “ट्रोमा सर्जरी & क्रिटिकल केयर” के ‘क्रिटिकल केयर’ का मानो सब एप्लाइड करना चाह रहा था।
Carotid Pulse आयी सर, ओर मेरी नज़र फिर मॉनिटर पर- VT रिदम है ये तो।
Charge 300J …Electric Shock Delivered.
VT persistent…Again Shock …
ओर नार्मल रिदम (धड़कन) के साथ अब हार्ट चलने लगा था।
ख़ुशी, प्राउड, कॉन्फिडेंस, टीम वर्क - सबके चहरे पर हल्की मुस्कान ओर थोड़ा डर- कही वापस अरेस्ट में ना चला जाये।
सब ठीक रहा। बहुत ही सामान्य रूप में मरीज़ घर पहुँचा।
इस मरीज़ में हमारी टीम ने जीतने प्रयास किए, उतने तो हर CPR देते समय करते है, पर दुर्भाग्य से बहुत कम बच पाते है।
#आपसे ये मेरी कहानी साझा करने का मक़सद तो कुछ ओर ही है। ये बताना-
डॉक्टर अपनी अती तक मरीज़ को बचाने के लिए लड़ता है।
ज़ीरो रिस्क ओर गारंटी शब्द मेडिकल साइंस में झूट है।
राजनीति, भीड़, मोताने के नाम पर मीडिया & सोशल मीडिया ट्रायल , अब कितने ही डॉक्टर्स का सेवाभाव वाला मन तोड़ चुका है।
ट्रेनिंग ओर अध्यन सभी डॉक्टर्स का मेडिकल कॉलेज से रहा है। Experience में भले ही अंतर हो सकता है, पर ज्ञान एक सा है। कोई भी सर्वज्ञानी नहीं, ओर डिग्री रखने वाला इतना भी अज्ञानी नहीं।
#फिर भी- आपकी भीड़, मारपीट ओर राजनीति होने के डर से गंभीर मरीज़ बिना उपचार के रेफेर किए जाते रहे है। मरीज़ जो शायद तुरंत समय पर कुछ करने से जान बचने की उम्मीद हो, वो रोड पर एम्बुलेंस में मर जा रहे है।
ये डॉक्टर्स की गलती नहीं। आत्मरक्षा का अधिकार तो संविधान देता है।
अब समाज का दिया, समाज को ही मिल रहा है।
बस, फ़र्क़ उसको पड रहा है, जो परिवार भुगत रहा है।