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16/05/2025

डेंगू ज्वर से बचाव के उपाय :
डेंगू ज्वर आजकल एक विकराल समस्या के रूप में उभर रहा है । सम्पूर्ण भारत देश में इसका आयुर्वेदिक उपचार उपलब्ध है तथा वह भी इतना सरल और सस्ता कि उसे कोई भी अपना सकता है l
यह एक विषाणु जनित रोग है । इस रोग में तेज बुखार, जोड़ों में दर्द तथा माथे में दर्द होता है । कभी-कभी रोगी के शरीर में आन्तरिक रक्तस्त्राव भी होता है ।
यह चार प्रकार के विषाणुओं के कारण होता है तथा इस रोग का वाहक एडिस मच्छर की दो प्रजातियां हैं । साधारणतः गर्मी के मौसम में यह रोग महामारी का रुप ले लेता है, जब मच्छरों की जनसंख्या अपने चरम सीमा पर होती है ।
यह संक्रमण सीधे व्यक्तियों से व्यक्तियों में प्रसारित नहीं होता है तथा यह भी आवश्यक नहीं कि मच्छरों द्वारा काटे गये सभी व्यक्तियों को यह रोग हो ।
डेंगु एशिया, अफ्रीका, दक्षिण तथा मध्य अमेरिका के कई उष्ण तथा उपोष्ण क्षेत्रों में होता है ।
डेंगु के चारो विषाणुओं में से किसी भी एक से संक्रमित व्यक्ति में बाकी तीनों विषाणुओं के प्रति प्रतिरोध क्षमता विकसित हो जाती है । पूरे जीवन में यह रोग दोबारा किसी को भी नहीं होता है ।
यह बुखार एक आम संक्रामक रोग है जिसके मुख्य लक्षण हैं :-
तीव्र बुखार होना, अत्यधिक शरीर दर्द होना तथा सिर दर्द होना ।
यह एक ऐसी बीमारी है जिसे महामारी के रूप में देखा जाता है । वयस्कों के मुकाबले, बच्चों में इस बीमारी की तीव्रता अधिक होती है । यह बीमारी यूरोप महाद्वीप को छोड़कर पूरे विश्व में होती है तथा काफी लोगों को प्रभावित करती है । एक अनुमान है कि प्रतिवर्ष पूरे विश्व में लगभग 2 करोड़ लोगों को डेंगू बुखार होता है ।
डेंगू होने के कारण :
यह "डेंगू" वायरस द्वारा होता है जिसके चार विभिन्न प्रकार हैं । टाइप 1,2,3,4 । आम भाषा में इस बीमारी को हड्डी तोड़ "बुखार" कहा जाता है क्योंकि इसके कारण शरीर व जोड़ों में बहुत दर्द होता है ।
डेंगू फैलता कैसे है ? :-
मलेरिया की तरह डेंगू बुखार भी मच्छरों के काटने से फैलता है । इन मच्छरों को 'एडीज मच्छर' कहते हैं जो काफी ढीठ व और दुस्साहसी मच्छर हैं और दिन में भी काटते हैं ।
डेंगू बुखार से पीड़ित रोगी के रक्त में डेंगू वायरस काफी मात्रा में होता है । जब कोई एडीज मच्छर डेंगू के किसी रोगी को काटने के बाद किसी अन्य स्वस्थ व्यक्ति को काटता है तो वह डेंगू वायरस को उस व्यक्ति के शरीर में पहुँचा देता है ।
संक्रामक काल जिस दिन डेंगू वायरस से संक्रमित कोई मच्छर किसी व्यक्ति को काटता है तो उसके लगभग 3-5 दिनों बाद ऐसे व्यक्ति में डेंगू बुखार के लक्षण प्रकट हो सकते हैं । यह संक्रामक काल 3-10 दिनों तक भी हो सकता है ।
डेंगू बुखार के लक्षण इस बात पर निर्भर करेंगे कि डेंगू बुखार किस प्रकार का है ।
डेंगू बुखार के तीन प्रकार :-
१. क्लासिकल अर्थात साधारण डेंगू बुखार
२. डेंगू हॅमरेजिक बुखार (डीएचएफ)
३. डेंगू शॉक सिंड्रोम (डीएसएस)
क्लासिकल अर्थात साधारण बुखार :
यह एक स्वयं ठीक होने वाली बीमारी है तथा इससे मृत्यु नहीं होती है लेकिन यदि (डीएचएफ) तथा (डीएसएस) का तुरन्त उपचार शुरू नहीं किया जाता है तो वे जानलेवा सिद्ध हो सकते हैं । इसलिए यह पहचानना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि बीमारी का स्तर कैसा है ।
विशेष लक्षण :
१. ठंड के साथ अचानक तीव्र ज्वर होना ।
२. सिर, मांसपेशियों तथा जोड़ों में दर्द होना ।
३. आँखों के पीछे दर्द होना ।
४. अत्यधिक कमजोरी लगना ।
५. अरुचि होना तथा जी मिचलाना ।
६. उल्टियाँ लगना ।
७. मुँह का स्वाद खराब होना ।
८. गले में हल्का सा दर्द होना ।
९. त्वचा का शुष्क हो जाना ।
१०. रोगी स्वयं को अत्यन्त दुःखी व बीमार महसूस करता है ।
११. शरीर पर लाल ददोरे (रैश) का होना शरीर पर लाल-गुलाबी ददोरे निकल सकते हैं । चेहरे, गर्दन तथा छाती पर विसरित दानों की तरह के ददोरे हो सकते हैं । बाद में ये ददोरे और भी स्पष्ट हो जाते हैं ।
१२. रक्त में प्लेटलेटस की मात्रा का तेज़ी से कम होना इत्यादि डेंगू के कुछ लक्षण हैं । जिनका यदि समय रहते इलाज न किया जाए तो रोगी की मृत्यु भी सकती है l
लाक्षणिक उपचार :
यदि रोगी को साधारण डेंगू बुखार है तो उसका उपचार व देखभाल घर पर भी की जा सकती है । चूँकि यह स्वयं ठीक होने वाला रोग है इसलिए केवल लाक्षणिक उपचार ही चाहिए ।
पेरासिटामॉल की गोली या सिरप से ज्वर को कम करना चाहिए । रोगी को डिस्प्रीन या एस्प्रीन कभी नहीं देनी चाहिए । यदि ज्वर 102 डिग्री फा. से अधिक है तो ज्वर को कम करने के लिए हाइड्रोथेरेपी अर्थात जल चिकित्सा को ही अपनाना चाहिए ।
यदि आपके किसी भी जानकार को यह रोग हुआ हो और खून में प्लेटलेट की संख्या कम होती जा रही हो तो निम्न चीजों का रोगी को सेवन करायें :
१) अनार का जूस
२) गेंहूँ के ज्वारे का रस
३) पपीते के पत्तों का रस
४) गिलोय/अमृता/अमरबेल सत्व अथवा रस
५) घृत कुमारी ( एलोवेरा ) स्वरस
६) बकरी का दूध
७) किवी फल का अधिक सेवन
८) नारियल पानी का अधिक सेवन
विशेष :.
इस के बचाव के लिए कुछ आयुर्वेदिक औषधियाँ अपने निकटतम आयुर्वेद चिकित्सक की देख -रेख में सेवन कर इन बीमारियों से बचा जा सकता हैं।
A.
1.महारास्नादि क्वाथ।
2.दशमूल क्वाथ।
3.गोजिह्वादि क्वाथ।
तीनों को समान मात्रा में मिलाकर रख लेवे।
ये क्वाथ आयुर्वेदिक दवाइयों के स्टोर पर आसानी से मिल जाते हैं,
इस संमिश्रण मे से 5ग्राम (एक टी स्पून ) लेकर उसमें,
एक लौंग,एक इलायची, दो कालीमिर्च, एक छोटा टुकडा अदरक, गिलोय की टहनी (लगभग 6 सेमी.), को 200एम. एल. पानी में उबाल कर आधा शेष रहने पर छान कर पीवे। स्वाद के लिए थोड़ी मिश्री डाल सकते हैं। इस क्वाथ को दिन में दोबार बनाकर लेवें।
B.
1. नीम गिलोय की टहनी (लगभग 6 सेमी.)
2.पपीते के पत्ते
का ताजा रस 10-10 एम. एल. निकाल कर छान कर पीवें।
C.
1. नीम के 2 - 4 पत्ते
2. तुलसी के 2- 4 पत्ते
3. 2ग्राम हल्दी पाउडर
4. अदरक की एक टुकड़ी।
5. पांच मुनक्का दाख
6. एक टुकड़ी गिलोय। की टहनी (लगभग 6 सेमी.)
सभी द्रव्यो को कूट ले। सभी द्र्व्यो को 100 एम. एल. पानी में उबाल कर छान कर गुनगुना -गुनगुना पीवे। दिन में दो बार लेवें।
D.
1.पांच मुनक्का दाख
2.दो ग्राम सोंठ
3.दो कालीमिर्च
4.एक छोटी इलायची
5.दो ग्राम मिश्री।
मुनक्का को कुछ समय भिगोकर बीज निकाल कर अन्य द्र्व्यो के साथ कूट कर 100 एम. एल. पानी में उबाल कर छानकर दिन में दो बार लेवें।

इन सभी प्रयोगों में से कोइ एक या दो प्रयोग योग्य आयुर्वेद चिकित्सक की देख रेख में लेवें।

आयुर्वेदिक औषधियाँ योग्य आयुर्वेद चिकित्सक की सलाह से ले सकते हैं। इन औषधियों को चिकित्सक रोगी, रोग, वय, बल, के अनुसार निरधारित करता है साथ ही चिकित्सक द्वारा बताए पथ्य का सेवन करना आवश्यक हैं।
E.
1.संजीवनी वटी
2.आन्दभैरव रस
3.त्रिभुवनकीर्ती रस
4.हरिताल गोदन्ती भस्म
5. कस्तुरी भैरव रस
6.सर्व ज्वरहर लौह
7.गिलोय सत्व
8.पुट पक्व विषम ज्वरान्तक लौह
9.महासुदर्शन घन वटी
10. करंजादि वटी
11.संशमनी वटी
इनऔषधियों मे से कोइ एक या अधिक का मिश्रण आयुर्वेद चिकित्सक के परामर्श से मात्रा निरधारित करा कर विधिपूर्वक लेने से सभी ज्वरो का नाश होता है।
F.
ऐसे मौसम में खान पान मे भी सावधानी रखे।
सादा सुपाच्य भोजन करना चहिए।
ताजा फल ( चीकू ,पपीता ,अनार ,सेव,)
दूध अदरक ,इलायची,मुलेठी,आदि मे उबाल कर लेवे।
टिण्डे, तुरही, परवल, लौकी, आदि सब्जियाँ व मूंग की पतली दाल लेवें।
पानी उबाल कर ठण्डा कर पीवें।
G.
अपने आस पास के परिसर की साफ सफाई का विशेष ध्यान रखे।
पानी इकठा नही होने देवें। मच्छरों से अपना बचाव करें।
H.
मच्छरों एवं अन्य कीटों से रक्षा के लिए
कपूर 5 ग्राम ,गुग्गुलु 20 ग्राम, लौहबाण 5 ग्राम,
नीम के पत्ते 100 ग्राम,
प्राकृतिक धूम(धूप) से परिसर को कीटणु रहित बनाया जा सकता है।
I.
रात सोते समय कपूर 5 ग्राम नीम तैल50 एम. एल. सरसों तैल 200 एम.एल. के सम्मिश्रण कर आवश्यकतानुसार शरीर पर लगाकर , मच्छरों से रक्षा की जा सकती है।
इस तरह से हमारी परम्परागत चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद से हम मौसमी बीमारियों से बचेंगे,एवं एलोपैथिक दवाइयों के दुष्प्रभाव से भी बचे रहेगे।
नोट:-मधुमेह के रोगी मिश्री एवं मुनक्का का प्रयोग नही करें।
"आयुर्वेद अपनाएं"।
"देश की हवा। देश की माटी।
देश की दवा। देश का पानी।"
वैद्य रवीन्द्र गौतम. 9414752038.
चिकित्साधिकारी
आयुर्वेद- विभाग ,राजस्थान- सरकार।

जयपुर शहर मे झोटवाड़ा, में RGHS के लिए आयुर्वेद हेतु   श्री महावीर मेडिसिन सेन्टर मैनकाटा चौराहा,कालवाड़ रोड, झोटवाड़ा ज...
26/09/2024

जयपुर शहर मे झोटवाड़ा, में RGHS के लिए आयुर्वेद हेतु श्री महावीर मेडिसिन सेन्टर मैनकाटा चौराहा,कालवाड़ रोड, झोटवाड़ा जयपुर ।
राज्य कर्मचारियों व पेंशनरों के लिए प्रमाणित केन्द्र।

20/09/2024
20/09/2024
20/09/2024

अविपत्तिकर चूर्ण के सेवन के लाभ घटक उपयोग


वर्तमान समय में घटते शारीरिक श्रम और बैठे रहकर ज्यादा कार्य करने की आदतों के कारण पाचन तंत्र के विकार शुरू होने लगते हैं। कब्ज के अतिरिक्त वर्तमान में अम्ल पित्त (एसिडिटी-गैस्ट्रोइसोफेजियल रिफलक्स डिजीज' (GERD) ), खट्टी डकार, भोजन के उपरान्त एकदम से भारीपन का आना अम्ल पित्त के ही सूचक हैं। जठराग्नि में उत्पन्न विकृति / विकार ही अम्ल पित्त के रूप में सामने आती है।

अम्ल पित्त : अविपत्तिकर चूर्ण अम्ल पित्त विकार में सबसे अधिक उपयोगी होता है। अविपत्तिकर चूर्ण के सेवन से अम्ल पित्त तथा अम्ल पित्त के कारण से होने वाले उदर शूल, अग्निमांद्य, वातनाड़ियां में उत्पन्न दर्द, अर्श, प्रमेह, मूत्रघात, मूत्राश्मरी का नाश होता है। शीघ्र लाभ के लिए केवल दूध और हल्का भोजन लेना चाहिए।

अम्ल पित्त :- विकार में छाती में जलन और भारीपन उत्पन्न हो जाता है। अम्ल पित्त के बढ़ जाने पर जी घबराना, मतलाई आना और उल्टी जैसा महसूस होने लगता है। वमन अत्यंत खट्टी और कंठ में जलन पैदा करने वाली होती है।

अविपत्तिकर चूर्ण एक आयुर्वेदिक ओषधि है जिसका उल्लेख रस तंत्र सार और आयुर्वेदा सार संग्रह ग्रन्थ से प्राप्त होता है। यह चूर्ण मुख्य रूप से अम्लपित्त (एसिडिटी),बदहजमी, खट्टी डकारें और पाचन तंत्र के विकारों को दूर करने के लिए किया जाता है। आयुर्वेदिक ग्रंथों में अनुसार अविपत्तिकर चूर्ण (Avipattikar Churna) अम्लपित्त (Acidity), शूल (पेट दर्द), अर्श (Piles), प्रमेह, मूत्राघात (पेसाबकी उत्पत्ति कम होना) और मूत्रास्मरी (पथरी) विकारों में लाभदाई होता है। यह औषधि अपच ,कब्ज, पेट दर्द ,गैस इत्यादि समस्याओं में उपयोगी है।
एसिडिटी (अम्ल पित्त) से बचने के उपाय
एसिडिटी से बचने के लिए आप निम्न चरणों/बातों का पालन कर सकते हैं।
गरिष्ट भोजन का सेवन नित्य नहीं करे। हल्का फुल्का और स्वास्थ्यवर्धक भोजन का सेवन करें। भोजन के उपरान्त कुछ मात्रा में सौंफ अवश्य खाएं। भोजन के सेवन के तुरंत बाद पानी नहीं पीएं।
भोजन के उपरान्त सोये नहीं हल्का फुल्का टहल लें।
माँसाहारी भोजन के स्थान पर शाकाहारी भोजन करें। मांसाहारी भोजन अधिक तैलीय होता है और मिर्च मसाले भी अधिक होते हैं।
मानसिक तनाव और चिंता से दूर रहें।
सिगरेट और शराब और तम्बाखू का सेवन नहीं करें।
सम्भव हो तो जैविक गेहूं और सब्जियों का उपयोग करें। कीटनाशक से उत्पन्न खाद्यान्न रोगों का घर हैं।
चाय और कॉफी का सेवन अधिक नहीं करें।
भोजन में खीरा, तरबूज आदि ऐसे फलों और सब्जियों को शामिल करें जिनमे प्राकृतिक रूप से जल की प्रधानता होती है।
सम्भव हो तो खाली पेट नारियल के पानी का सेवन करें।
भोजन के उपरान्त थोड़ा गुड़ खाएं।
अपनी दिनचर्या में शारीरिक मेहनत को शामिल करें। सुबह शाम टहलने जाएँ, व्यायाम और योग को अपनाएँ।
अविपत्तिकर चूर्ण के घटक:-
आयुर्वेदिक ग्रंथों के यथा रस तंत्र सार / रसेन्द्र चिंतामणि के अनुसार अविपत्तिकर चूर्ण के निम्न घटक होते हैं -
Sounth सौंठ जिंजिबर ऑफ़िसिनेल / Zingiber officinale
Kali Mirch काली मिर्च (Piper nigrum)
Pippal पिप्पल Piper longum
Harad हरड़ Haritaki Terminalia chebula
Baheda भरड़ Bibhitaka Terminalia bellirica
Amla आँवलाAmalaki Phyllanthus emblica
Nagarmotha नागरमोथा Musta Cyperus rotundus
Vid Namak विडनमक/नौसादर
VaiVidang बाय विडंग Embelia Ribes
Laghu Ela छोटी एला (Sukshmaila API) Eletteria cardamomum
Tej Patra तेजपत्र Cinnamomum tamala, Indian bay leaf
Lavang लौंगLavang (Syzgium aromaticum)
Nisoth निशोथ
Mishri मिश्री
अविपत्तिकर चूर्ण के फायदे:-
अम्ल पित्त : अविपत्तिकर चूर्ण हायपर एसिडिटी (अम्ल पित्त ) के विकार को दूर करने के लिए लाभदाई ओषधि है। अम्ल पित्त के होने पर छाती में जलन, छाती में भारीपन और उल्टी (वमन) जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। अम्ल पित्त के अतिरिक्त आमवात, सन्धिवात ,पक्षाघात, उदरशूल, पित्त प्रकोप, उन्माद आदि विकारों में भी अविपत्तिकर चूर्ण के सेवन से लाभ मिलता है।
क्रॉनिक गैस्ट्राइटिस को दूर करने के लिए पतंजलि अविपत्तिकर चूर्ण लाभदाई है।
खाने के उपरान्त इसका सेवन करने से बढ़ा हुआ पित्त शांत होता है।
पेट में बढ़ी हुई गैस को दूर करने में अविपत्तिकर चूर्ण लाभदाई होता है।
इसके सेवन से कब्ज दूर होता है, पाचन क्रिया सुधरती है।
अविपत्तिकर चूर्ण के सेवन से भोजन के पाचन में सुधार होता है, अस्वस्थ, असंतुलित आहार और गतिहीन जीवनशैली अक्सर पाचन से संबंधित समस्याओं का कारण बनती हैं। निशोथ के कारण इस चूर्ण में विरेचन का गुण भी सम्मिलित हो जाता है।
अविपत्तिकर चूर्ण का एक लाभ यह भी होता है की यह अम्ल की बढ़ी हुई मात्रा जो वात नाड़ियों तक पहुँच जाती को शांत करता है जिससे नसों में खिंचाव शुरू हो जाता है।ऐसी स्थिति में निश्चित ही अविपत्तिकर चूर्ण के सेवन से लाभ मिलता है।
अविपत्तिकर चूर्ण मंदाग्नि को दूर करने लाभदाई होता है।
अविपत्तिकर चूर्ण पित्त नाशक होता है। त्रिफला, लौंग, निशोथ, नागरमोथा बड़े हुए पित्त को संतुलित करते हैं।
मूत्र में विष का बढ़ जाना, मूत्र में जलन आदि विकारों में भी यह चूर्ण लाभदाई होता है। पित्त की अधिकता से आये मूत्र विकार में भी अविपत्तिकर चूर्ण लाभदाई होता है।
इस ओषधि के सेवन से पेट में अल्सर नहीं बनता है।
अविपत्तिकर चूर्ण में निशोथ मिलाने का प्रावधान भी है जिससे इसमें कुछ गुण विरेचन के भी प्राप्त होते हैं।
अविपत्तिकर चूर्ण का सेवन कैसे करें।
सामान्य परिस्थितियों में अविपत्तिकर चूर्ण का सेवन आप खाने के पूर्व ३ से ६ ग्राम तक शीतल जल के साथ कर सकते हैं। यद्यपि यह एक आयुर्वेदिक ओषधि है जिसके कोई दुष्प्रभाव नहीं होते हैं फिर भी आप इसके सेवन से पूर्व आयुर्वेद चिकित्सक (वैद्य) से सलाह अवश्य प्राप्त कर लें। रोग की जटिलता के आधार पर इसकी मात्रा और अन्य ओषधियों का योग होता है। आयुर्वेद चिकित्सक (वैद्य) के परामर्श के उपरान्त ७ से २१ दिनों तक इसका सेवन किया जा सकता है। इसे शीतल जल या फिर नारियल के पानी के साथ लेना चाहिए। आँतों में शोथ होने पर सामान्य रूप से इसका सेवन नहीं करना चाहिए या फिर आवश्यक ही हो तो घी या शहद के साथ इसका सेवन करना चाहिए।
अविपत्तिकर चूर्ण को घर पर कैसे बनाएं
अविपत्तिकर चूर्ण को आप आसानी से अपने घर पर ही तैयार कर सकते हैं। इसके लिए आपको संदर्भित ग्रन्थ के अनुसार निम्न ओषधियों की आवश्यकता है।
कालीमिर्च – 1 भाग
सोंठ – 1 भाग
पिप्पली – 1 भाग
आंवला (आमलकी) – 1 भाग
बहेड़ा (विभितकी) – 1 भाग
हरड (हरीतकी) – 1 भाग
नागर मोथा – 1 भाग
वायविडंग – 1 भाग
विड लवण – 1 भाग
इलायची – 1 भाग
तेजपत्र – 1 भाग
लौंग – 10 भाग
निशोथ – 40 भाग
मिश्री – 60 भाग
उपरोक्त सभी ओषधियों को साफ़ करके अच्छे से धूप में सूखा दें जिससे इनकी नमी निकल जाए। अब निश्चित मात्रा में ली गई घटक सामग्री को कूट लें और दरदरा होने पर मिक्सी में महीन चूर्ण बना लें। सावधानी रखें की इस चूर्ण को आप काँच की हवाबंद डिब्बे में रखें जिससे इसके प्राकृतिक तेल उड़े नहीं। प्राकृतिक तेल उड़नशील होते हैं। चूर्ण बनाने से पूर्व सामग्री की शुद्धता की जाँच अवश्य कर लेनी चाहिए।
अविपत्तिकर चूर्ण के दुष्परिणाम
अविपत्तिकर चूर्ण एक आयुर्वेदिक ओषधि है जिसके कोई ज्ञात दुष्परिणाम नहीं है फिर भी आप इसके सेवन से पूर्व वैद्य की सलाह लेंवे। आँतों में सूजन हो जाने पर, आँतों को ऊपर से दबाने पर यदि दर्द हो तो इसका सेवन प्रायः नहीं करना चाहिए। निश्चित मात्रा से अधिक मात्रा और आयुर्वेद चिकित्सक (वैद्य) द्वारा बताए गए समय से अधिक/लम्बे समय तक अविपत्तिकर चूर्ण का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए।

20/09/2024

आज विश्व मधुमेह दिवस है।आयुर्वेद अपना कर मधुमेह मुक्त हो विश्व।

20/09/2024

शिरःशूल :-
आधे सिर के दर्द (आधा सीसी या माईग्रेन)
1.
चन्द्रकान्त रस 250 एम.जी.
लक्ष्मीविलास रस (शिरो) 250 एम.जी.
शिर:शूलादिवज्ररस 250 एम.जी.
गोदन्ती भस्म 250 एम.जी.
ब्राह्मी वटी 250 एम.जी.
सूतशेखर रस 250 एम.जी.
स्वर्णमाक्षिक भस्म। 250 एम.जी.
महावातविध्वंसन रस 250 एम.जी. ――――――
1 × 2
――–―――
इन सात दवाओं के 10 10 ग्राम के पैकेट लेकर सभी को अच्छे से खरल मे पीस कर 30 मात्रा बनाकर सुरक्षित एयरटाईट डिब्बे मे सुरक्षित रख लेवें।
सुबह नाश्ते के बाद एवं शाम को 4. बजे . शहद के साथ ।
2.
प्रवाल पंचामृत 250 एम.जी.
पुनर्नवादि मण्डूर 250 एम.जी.
गिलोय सत्व 250 एम.जी.
अविपत्तिकर चूर्ण 3 .ग्राम.
――–――――
1 × 2
―――――――
1 टीस्पून, भोजन के पहले,सादा पानी के साथ
3. सुबह शाम।
पथ्यादि काढ़ा
20 एम.एल।( 4.चम्मच) + 20 एम.एल(.4 चम्मच )पानी से सुबह शाम खाना खाने के आधा घन्टे बाद लें
इन सभी औषधियों को अच्छे आयुर्वेद चिकित्सक की देख रेख में लेवे।
अपने आयुर्वेद चिकित्सक की सलाह से यह प्रयोग 45 दिन या 90 दिन नियमित लेवे।
पथ्य ( खावें):-
सादा सुपाच्य भोजन।
चीकू, पपीता ,अनार, सेव, आदि फल।
ताजा उवाल कर ठण्डा किया दूध।
टिण्डे ,तुरही,परवल, लौकी, हरी पत्तेदार सब्जियां

"विशेष:- कायफल की जलेबी, एवं दूध नाश्ते मे लेवें"।

अपथ्य (नही खावें):-
आलू,अरबी,बेसन,चना,केला,दही,चवल,रजमा,भारी पदार्थ, नही खावें।
इमली,अमचचूर, आचार, तेज मीर्च मसाला, तले भुने पदार्थ, कचौरी पकौडी़ समोसा,लहसुन ,बैगन, आदि राजोगुण युक्त आहार नही लेवेंः
ठण्डा ,बासी ,प्याज,एवं तमोगुण युक्त भोजन से बचें।

विहरः-
प्रातःजल्दी उठें।
प्रातः भ्रमण करे।
योग प्राणायाम का नियमित अभ्यास करे।
सूर्य नमस्कार करें।
ईश वंदन करें।
मानसिक तनाव से मुक्त रहे।
मद ,लोभ,मोह, ईर्श्या द्वेष,कोध आदि भावो से बचने का प्रयास करें।
सद् व्यवहार, एवं सम भाव रखें।
मल-मूत्रादि वेगों को नही रोके।

20/09/2024

नैत्र ज्योति ठीक रखने के लिए आयुर्वेद में बहुत से योग है एक योग का वर्णन कर रहा हूँ।

1. सप्तामृत लौह 250 मिलि ग्राम
प्रवाल पिष्टी 250 मिलि ग्राम
गिलोय सत्व. 250 मिलि ग्राम
आमलकी रसायन 2 ग्राम
1×2
यह मात्रा एक खुराक है। सुबह सायं एक एक मात्र लेवें।
जिन द्रव्यों की मात्रा 250 मिलि ग्राम बताई वे औषधि 7.5 ग्राम, एवं 2 ग्राम की मात्रा वाली औषधि 60 ग्राम
सब को बारीक पीस करक कर चूर्ण बनालें एवं

तीस मात्र बना लेवें एक एक मात्रा सुबह सायं शहद के साथ लेवें।

2.त्रिफला चूर्ण 1टी स्पून 250 मिलि लीटर स्वच्छ पानी में मिट्टी के साफ एवं नवीन पात्र (सिकोरे) में रात को भीगो कर सुबह पानी को छान कर आंखों को धोवें। छानने के बाद छलनी में बचे हुए द्रव्य को पानी के साथ खा लेवें।

3.नैत्र सुदर्शन अर्क 2 2बूंद आँखों में नियमित सुबह सायं डालें। यह प्रयोग आयुर्वेद चिकित्सक की देख रेख मे ही लेवें।

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