
18/05/2025
आज की कहानी : स्वास्थ्य एक अनमोल ख़ज़ाना
राजीव और मीरा शर्मा गुड़गांव के एक सामान्य मध्यमवर्गीय परिवार का हिस्सा थे। राजीव एक आईटी कंपनी में लंबे समय तक काम करता था, जबकि मीरा घर संभालती और उनके दो बच्चों, आरव (14) और रिया (10) की देखभाल करती। उनकी ज़िंदगी एक दौड़ जैसी थी—स्कूल की फीस, बढ़ते खर्चे, और नौकरी का दबाव, इन सबके बीच सेहत कहीं खो गई थी।
बच्चे होशियार थे, पर उनकी जीवनशैली भी माता-पिता जैसी ही थी। नाश्ता हमेशा जल्दबाज़ी में होता—ज़्यादातर मक्खन लगे परांठे या मीठे सीरियल्स, दोपहर का खाना जल्दी-जल्दी निपट जाता और रात का खाना अक्सर बाहर का तला-भुना ही होता। व्यायाम की तो किसी को फुर्सत ही नहीं थी। आरव और रिया के लिए होमवर्क और टीवी ही सबसे बड़ा मनोरंजन था। राजीव के लिए भी, "12 घंटे की नौकरी के बाद कौन दौड़ लगाए?" यह एक आम बहाना था। मीरा का भी वज़न थोड़ा बढ़ा हुआ था, पर वह इसे हमेशा "यह तो हमारे खानदान में ही है" कहकर टाल देती थी।
पहले लक्षण धीरे-धीरे दिखने लगे। आरव को दौड़ते समय जल्दी थकान होने लगी। उसके स्कूल के पीटी टीचर ने पेरेंट्स मीटिंग में इसका ज़िक्र भी किया और कहा कि उसे जंक फूड कम देना चाहिए। मीरा ने हां में हां मिला दी, पर ध्यान नहीं दिया। "अभी बच्चा है, बड़ा होते-होते सब ठीक हो जाएगा," उसने राजीव से कहा।
पर हालात सुधरे नहीं। आरव की थकान बढ़ती गई। वह अक्सर सिरदर्द और कमज़ोरी की शिकायत करता, जिसे मीरा स्कूल के तनाव का असर मानती रही। रिया भी अब हमेशा थकी-थकी सी रहने लगी। स्कूल से आते ही वह बैग फेंककर सीधा सोफे पर गिर जाती और खाना भी मुश्किल से खाती। मीरा को लगता, "बच्चे तो हमेशा से ही ऐसे ही होते हैं।"
एक पारिवारिक मिलन समारोह में राजीव के बड़े भाई समीर, जो खुद एक फिटनेस कोच थे, ने राजीव को देखा। "राजीव, तुम बहुत थके हुए लग रहे हो," उन्होंने कहा। राजीव ने मुस्कुराते हुए बात टाल दी, लेकिन समीर ने ज़िद की, "तुमने काफी वज़न बढ़ा लिया है, मीरा ने भी। सब ठीक तो है?"
मीरा ने हंसी में उड़ा दिया, "ये तो उम्र का असर है।"
समीर का चेहरा गंभीर हो गया। "उम्र बहाना नहीं है। शुरुआत यहीं से होती है, और अगर ध्यान न दो तो बाद में बड़ा ख़तरा बन जाता है," उन्होंने चेतावनी भरे लहजे में कहा। उन्होंने आरव और रिया की ओर देखा, जो टीवी पर नज़रें गड़ाए चिप्स खा रहे थे। "इनको भी बदलने की ज़रूरत है," उन्होंने धीरे से कहा।
राजीव ने हंसी में टाल दिया, "हम बिल्कुल ठीक हैं। बस ज़िंदगी की भागदौड़ है।"
लेकिन ज़िंदगी के अपने नियम होते हैं। एक शाम, जब राजीव तीसरी मंज़िल पर