Bibhash Mishra Astrology World

Bibhash Mishra Astrology World Astrologer Consultant

28/03/2024

ग्रह और मानव जीवन

मनुष्य जब गर्भ में होता है तो उसे अपने माता के पेट की दुनिया हि संपूर्ण दुनिया लगती है ।।

वहीं जब उसे यह बतलाया जाता है कि बाहर की भी दुनिया एक हसीन दुनिया है तो उसे विश्वास नहीं होता...

पर जब वह जन्म लेता है और इस हसीन दुनिया को देखता है तो वह चकित रह जाता है ।।

जब वह जन्म लेता है ठीक उसी वक्त आकाश में जो ग्रह की स्थिति होती है वह उस बच्चे की जन्म कुंडली कहलाती है ।।

अब यह आकाश में उपस्थित ग्रह जो बच्चे के जन्म के समय उपस्थित रहता है यह ग्रह आजीवन उस बच्चे के उपर अपना प्रभाव डालती है ।।

हर समय एक निश्चित ग्रह उस जातक के करीब में होता है जिसे ज्योतिष में महादशा कही जाती है ।।

जैसे जैसे वह बच्चा बड़ा होता जाता है, महादशाएं बदलती जाती है , और महादशा अपने हिसाब से उस जातक के मन मस्तिष्क पर प्रभाव डालती है ।।

और वह जातक उसी अनुरूप कठपुतली की तरह कार्य करता रहता है ।।

महादशा ही तय करती है कि उस बच्चे को भविष्य में किस रास्ते में जाना है ।।

यहीं पर एक ज्योतिष की भूमिका होती है जो सच्चे सलाहकार के रूप में आपके दिशा को तय कर दे ।।

ज्योतिष केवल सलाह दे सकता है आपके कर्म और प्रारंभ को नहीं काट सकता ।।

किन दिशाओं में आपका भविष्य हो सकता है , एक सलाहकार रूपी ज्योतिष यह आपके मार्गदर्शन दे सकता है ।।

ग्रह नित्य गति में अपना कार्य करते रहते हैं, और जातक के ऊपर अपना प्रभाव डालते हैं ..

कभी-कभी हमने देखा की एक बच्चा जो नवमी, दसवीं कक्षा तक बेहद सामान्य था , अचानक से 12वीं तक बेहद मजबूत स्थिति में आ गया और आईआईटी जैसे उच्च शिक्षण संस्थान में उसका चयन हो गया ।।

कहने का तात्पर्य दसवीं कक्षा तक उसकी महादशाएं भिन्न थी, पर ज्योंहि उच्च शिक्षा का समय आया संजोग और सौभाग्यवश 12वीं कक्षा के समय पंचमेश की महादशा चली और जातक का मन पढ़ाई में लगने लगा ।।

इसी दौरान प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी के वक्त षष्ठेश और दशमेश की महादशा आ गई , छठा भाव प्रतिस्पर्धा ,प्रतियोगिता परीक्षा का है , दशम भाव पद का है तो बच्चे की सरकारी नौकरी हो गई ।।

व्यापार कर रहे हैं ,इसी बीच अगर धनेश और लाभेश की महादशा आ गई तो व्यापार में चार चांद लग गया ।।

सही उम्र में सही ग्रहों की महादशा का संयोजन ही आपकी सफलता को तय करता है ।।।

किसी जातक की 60 वर्ष के उम्र में दशमेश की महादशा आए तो 60 वर्ष की उम्र में किसको नौकरी की आवश्यकता है ?

इसलिए कहा जाता है कि आपकी आयु के 30 वर्ष से 50 वर्ष के मध्य में चलने वाली महादशाएं ही आपके भविष्य को तय करती है ।।

यह महादशा अगर कल्याणकारी हुई तो आप सफल होंगे वरना संघर्षमय जीवन रहेगा ।।

और इन्हीं 30 वर्ष से 50 वर्ष के मध्य राहु जैसी महादशाएं चले और वह कुंडली में योग कारक हुआ तो आप सफल भी होंगे और इतिहास में रचेंगे।।

Er. Bibhash Mishra
Consultant
Research & Development

24/03/2024

चंद्रमा और मन

आपके शरीर में सबसे महत्वपूर्ण चीज जो है वह आपका मन है ।।

मन ही वह अंग है जो आपके पूरे शरीर के ऊपर आधिपत्य रखता है ।।

शायद इसलिए कहा भी जाता है की मन के जीते जीत और मन के हारे हार ...

यानी जो व्यक्ति मन से जीता हुआ है वह लाख अभाव के बावजूद भी विजयी है..

और जो व्यक्ति मन से हार चुका है उसके पास तमाम सुख सुविधाएं हैं और वह सभी सुविधाएं महज कागज के रद्दी के ढेर और मिट्टी के ढेले के समान है ।।

मन मनुष्य के शरीर के ऊपर कितना प्रभाव रखता है इसका उदाहरण हम ऐसे समझते हैं ...

अगर आप मंदिर जाते हैं तो आपका मन धार्मिक हो जाता है, रेस्टोरेंट जाते हैं तो भोजन का इच्छुक हो जाता है, पार्क जाते हैं तो रोमांटिक हो जाता है ...

यानी अलग-अलग जगह पर जाने के पश्चात मन जो प्रक्रियाएं देता है शरीर उस आदेश का पालन करता है ।।

मन का मानव जीवन के ऊपर कितना प्रभाव है आप इस प्रकार से समझिए कि लोग कहते भी हैं कि आज उनका शरीर खराब हो गया क्योंकि मन इतना दुखी था कि जिसका प्रभाव शरीर पर पड़ा ।।।

या फिर लोग ऐसे रहते हैं कि चेहरा चमक रहा है यानी मन इतना प्रफुल्लित है कि उसका प्रभाव चेहरे पर दिख रहा है ।।

तो आप जरा समझिए आपके जीवन में मन कितना महत्वपूर्ण है जो पूरे शरीर के प्रणाली के ऊपर अपना प्रभाव रखता है ।।

और इसी मन के ऊपर ज्योतिष में चंद्रमा का आधिपत्य है।।

और जब चंद्रमा प्रभावित होता है, दूषित होता है तो आपका मन दुविधाग्रस्त हो जाता है ।।

और आपकी पूरी जीवन प्रणाली जो है, ट्रैफिक जाम वाली स्थिति में आ जाती है ।।

शनि को नवग्रह में सबसे धीमा चलने वाला ग्रह कहा जाता है, और इस धीमा चलने वाला ग्रह का प्रभाव जब चंद्रमा रूपी मन के ऊपर आता है तो हम इसे साढेसाती का नाम देते हैं ।।

और लोग का मन व्यथित , चिंतित और परेशान होने लगता है ।।

आप जितना ज्यादा अपने मन के ऊपर काबू रखेंगे, जितना ज्यादा मन को मजबूत बना के रखेंगे , जितना ज्यादा अपने आप को आध्यात्मिक से जोड़कर अपने मनोबल को बनाए रखेंगे आप देखेंगे उतना ज्यादा साढेसाती और अन्य पाप , क्रुर अनिष्ट ग्रहों का प्रभाव जो है वह विफल नजर आएगा ।।

यह दुनिया एक प्रोटोकॉल से चलती है, यह दुनिया एक नियम से चलती है ।।

प्रकृति चीख चीखकर इशारा करती है कि वह वर्ष भर एक समान नहीं है ..

एक महीना पहले ठंड थी , आज बसंत है, दो महीने के बाद गर्मी आएगी ,तत्पश्चात बरसात आएगी ,वापस ठंड आएगी...

यानी प्रकृति खुद ही कहती है कि हम पूरे वर्ष एक समान नहीं रहते हैं...

एक दिन भी कहती है कि चंद घंटे पहले अंधकार था, अभी प्रकाश हो गया ...

कभी दिन है, तो कभी रात है ।।

यानी प्रकृति खुद इशारा करती है कि आपकी चलने वाली समस्या अस्थाई है ...सिर्फ और सिर्फ समय का इंतजार करके और अपने इष्ट का ध्यान करके बुरे समय को काटिए...

अब यहां ज्योतिष की भूमिका क्या है ???

अच्छा ज्योतिष सिर्फ और सिर्फ एक सलाहकार होता है ।।

ज्योतिष का पर्याय ही है ज्योति ...

यानी एक प्रकाश ...जो आप अंधेरे में भटक रहे हैं तो एक अच्छा ज्योतिष आपको प्रकाश दे देता है , ताकि आपको चीज जो है नजर आने लगे ।।

ज्योतिष सिर्फ सलाहकार होता है, वह आपके प्रारब्ध को नहीं काट सकता ।।

लोग सभी चीजों का उपाय पूछते हैं, तो ध्यान रखिए सभी चीजों के उपाय नहीं होते ...कुछ प्रारब्ध भी होते हैं जिन्हें भोगना ही पड़ता है ।।।

बरसात.. गर्मी.. ठंडक.. यह एक प्रकृति है, जिसे कोई ज्योतिषी रोक नहीं सकता ।।

एक अच्छा ज्योतिष बारिश में छाता.. ठंड में एक अच्छा स्वेटर और गर्मी में पंखे की व्यवस्था जरूर करवा देगा ।।

जिससे आप ठंड से, बरसात से , और गर्मी में लू लगने से बच जाए ।।

बाकी आपके प्रारब्ध से बचाने वाले एक ही हैं वह आपके इष्ट सच्चिदानंद भगवान श्री कृष्ण ।।

यानी इष्ट जिनकी आप अराधना करते हैं.. नाम अनेक है, पर ईश्वर एक ...

जैसे सभी छोटी-छोटी नदियां मिलकर एक महासागर में मिलते हैं , इसी तरीका से आप जिनकी भी ध्यान करते हैं... सभी जाकर एक अनंत महासागर की ही आराधना में मिलते हैं ।।

और तमाम नवग्रह भी उनके ही चरण में है तो इष्ट की आराधना करके ही आप अपने मन को मजबूत कर सकते हैं और अपने प्रारब्ध से भी पार हो सकते हैं ।।

जय श्री कृष्णा

Bibhash Mishra
Consultant
Research & Development

आत्मा कारक ग्रह/वृद्धावस्था ग्रहज्योतिष शास्त्र में दो ऐसे शब्द जो एक ही सिक्के के दो पहलू हैं जिनका मायने लगभग एक समान ...
16/03/2024

आत्मा कारक ग्रह/वृद्धावस्था ग्रह

ज्योतिष शास्त्र में दो ऐसे शब्द जो एक ही सिक्के के दो पहलू हैं जिनका मायने लगभग एक समान है, पर परिभाषा अलग-अलग है, आज इसके कांसेप्ट को समझने की कोशिश करते हैं ।।।

ग्रहों की तीन अवस्थाएं होती है बाल्यावस्था, युवावस्था ,और वृद्धावस्था

बाल्यावस्था ग्रह - 0 से 10 डिग्री ।।

युवावस्था ग्रह - 10 डिग्री से 25 डिग्री ।।

वृद्धावस्था ग्रह - 25 डिग्री से 30 डिग्री ।‌

ज्योतिष कहता है जब कोई ग्रह वृद्धा अवस्था में होता है मतलब 25 डिग्री से 30 डिग्री के मध्य होता है, तो अपनी क्षमता को खो देता है, यानी उसकी क्षमता उस प्रकार नहीं रहती है जितना ग्रह अगर कोई युवावस्था में हो ।।।

अगर कोई ग्रह उदाहरण के तौर पर 29 डिग्री का है तो वह वृद्धावस्था कहलाएगा और वह पूर्णतया फल देने लायक नहीं रहेगा ।।।

अब सिक्के के अगले पहलू को समझते हैं, अगला कॉन्सेप्ट यह कहता है कि आपकी कुंडली में जो ग्रह सर्वाधिक डिग्री का है वह आत्मकारक हुआ, और यह ग्रह बाकी के 8 ग्रह की तुलना में आपके ऊपर सर्वाधिक प्रभाव रखता है ।।

एक तरफ वृद्धावस्था कहकर उसे आप कमजोर कह रहे हैं दूसरी तरह आत्मकारक कहकर उसे सर्वाधिक बली ।।।

सही मायने में दोनों ही अपने-अपने जगह सही है सिर्फ समझने का फेर है ।।

यकीनन अगर कोई ग्रह सर्वाधिक डिग्री का होकर वृद्धावस्था में है तो उसकी शक्ति कमजोर पड़ जाती है, उसके तुलना में युवा ग्रह जो 10 से 25 डिग्री के मध्य हैं वह बेहतर परिणाम देने वाले होते हैं ।।।

पर अनुभव की बात करें तो वृद्धावस्था वाले ग्रह के पास ज्यादा अनुभव होता है ।।

उदाहरण के तौर पर एक परिवार में एक वृद्ध माता-पिता जिनके परिवार में रहना मात्र ही उस परिवार की हरियाली को बताता है ।।।

एक वृद्ध माता-पिता आर्थिक तौर पर परिवार में कोई योगदान नहीं देते हैं , यहां तक की परिवार के देखरेख में उनका कोई शारीरिक योगदानभी नहीं होता है , परंतु उनका परिवार में उपस्थित होना ही यही परिवार के लिए बहुत बड़ा धन होता है ।।

युवा धन कमाते हैं , पर अगर कहीं वह संकट में फंसते हैं तो वह सलाह वृद्ध माता-पिता से ही लेते हैं ।।

वृद्ध माता-पिता अपना तजुर्बा , अपना अनुभव अपने बेटे को शेयर करते हैं ।‌।

एक अन्य उदाहरण से समझते हैं सिटी एसपी शहर का कप्तान होता है और पुलिस की सभी कार्यभार को S.P ही संभालता है

पर जहां वह आपराधिक गतिविधि या अन्य मामलों के निपटारे में खुद को असहाय महसूस करता है, तो वह सलाह अपने वरीय पदाधिकारी DIG, IG और DGP से लेता है जो अभिभावक के तौर पर अपना अनुभव SP को शेयर करते हैं ।।

युवावस्था वाले ग्रह की भूमिका SP की भूमिका से समझना चाहिए ।।

वृद्धावस्था वाले ग्रह की भूमिका DIG, IG, और DGP की भूमिका से समझना चाहिए ।।।

उम्मीद करता हूं कि आपका कांसेप्ट क्लियर हो गया होगा ।।

Bibhash Mishra
Consultant
Astrologer

06/03/2024

राहु सिला ...

आज की इस पोस्ट में हम राहु के कुछ माया को समझने की कोशिश करेंगे

मैं अपनी पोस्ट के माध्यम से बस यह कहना चाहता हूं की राहु के प्रति जो भी भ्रम है आप अपने मन से निकाल फेकिए

लोग कहते हैं की नारायण ने राहु का गर्दन काटा था

यह भी नारायण की माया ही थी

रावण का जब वध हुआ तो मरते वक्त रावण ने कहा यह मेरा सौभाग्य है कि मेरी मृत्यु मर्यादा पुरुषोत्तम के हाथ से हो रही है और आज मेरा जन्म सफल हुआ ।।

अमृत पान के वक्त जब सूर्य और चंद्रमा के संकेत से नारायण ने राहु का गर्दन काटा तो यह भी राहु की सौभाग्य थी कि उसकी गर्दन कटना तीनों लोक के स्वामी नारायण के हाथों लिखा था ।।

फिर अगर राहु और केतु छली होता , कपटी होता,धोखेबाज होता तो उसे कतई नवग्रह में स्थान प्राप्त न होता ।।

राहु का अमृत पान करना छल प्रसंग था यह मान सकते हैं पर नवग्रह में स्थान हासिल करना यह तो शिव और नारायण की महिमा ही थी ।।

क्योंकि शिव ने ही आशीर्वाद के तौर पर राहु और केतु को नवग्रह में स्थान दिया ।।

फिर ऐसे छली, कपटी, प्रपंची की नवग्रह में क्यों पूजा की जाती है , सत्यनारायण जैसी कथा में भी जब नवग्रह का हवन होते हैं तो राहु और केतु के नाम पर भी हवन क्यों किया जाता है ।।

यह सवाल उन लोगों से जो राहु जैसे जबरदस्त मायावी ग्रह पर अपशब्दों का इस्तेमाल करते हैं ।।

सारे सृष्टि के कर्ताधर्ता शिव और नारायण है, हम उनके मर्जी के बगैर एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते और उन्हीं शिव और नारायण ने राहु को और केतु को नवग्रह में स्थान दिया फिर राहु केतु को बुरा कहना क्या शिव और नारायण के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं ???

क्या सृष्टि के साथ छेड़छाड़ नहीं ???

रही बात राहु की महादशा में जिंदगी का बर्बाद होना , केस मुकदमा होना, जीवन तहस नहस होना, जैसा लोग कहते हैं...

तो ध्यान रहे किसी भी मार्केश ग्रह की महादशा में यह कार्य हो सकता है शुक्र और गुरु जैसे शुभ की महादशा में भी या चीजे विपरीत हो सकती है , बीमारियां हो सकती है , रोग शोक, चिंता हो सकती है ।।

मैं इस मंच से कहना चाहता हूं , राहु से बड़ा मायावी कोई नहीं, और शिव और नारायण और ईश्वर की भक्ति ....राहु से बड़ा परम भक्त भी कोई नहीं ।।।

इंसान को हासिल होने वाला कष्ट उसके ही प्रारब्धो का फल है राहु तो मात्र निमित्त हैं ।।

जो लोग सफल हैं उनकी सफलता केवल दूर से नजर आती है करीब जाकर उनके पीठ पर पड़ने वाला खंजर देखें तो समझ आए आती है की सफलता को हासिल करने के पीछे उनकी कितनी कठोर तपस्या थी ।।।

तेज वाहन चलाना क्या राहु ने सिखाया... चरित्र खराब करना क्या राहु ने सिखाया ...गंदे आचरण करना क्या राहु ने सिखाया ...सुबह से रात तक गलत कार्यों में पड़े रहना क्या राहु ने सिखाया ...दिनचर्या आपकी गलत है दोष राहु को देते हैं...

मैं फिर से अनुरोध करता हूं कि जिन लोगों ने भी जिंदगी में बहुत बड़ी कामयाबी को हासिल की.. बड़े क्रिकेटर बने ...बड़े संगीतकार बने... राजनीति के क्षेत्र में बड़े सफलता को हासिल किया ..IIT UPSC जैसी कठिन परीक्षा को पास किया , आप सब की कुंडली खोलकर देख लीजिए सबने अपनी सफलता राहु की महादशा में हासिल की है ।।।

राहु अद्भुत पराक्रम का कारक है, वह कार्य जो आप सपने में भी नहीं सोच सकते इसका कारक राहु है, वह सफलता जो हासिल करने के लिए बाकी सोचेंगे ...राहु सफलता को हासिल करके बैठ चुका होगा ।।।

धर्म के प्रति बिल्कुल कट्टरता एक ईश्वर के प्रति समर्पण भावना का कारक राहु है ।।।

राहु इतिहास रचता है ।।।

स्वयं शिव और नारायण ने इस सृष्टि का संचालन इस धरती का संरक्षण राहु को देकर रखा है ।।

खासकर कलयुग की सभी गतिविधि राहु के हाथ में है ।।।

और कुछ लोग मलेच्छ और न जाने क्या-क्या बोलकर राहु के प्रति अपशब्दों का इस्तेमाल करते हैं वह कुछ नहीं अपने आराध्य को दुखी करते हैं ।।

बरसात का काम बारिश होना है, यह सही है की बारिश होने से कीचड़ होती है तकलीफ होती है पर यह भी याद रखें कि अगर बारिश नहीं होगी तो फसल ही खराब हो जाएंगे ।।।

ठंड का काम ठंड देना है तकलीफें होती है पर यह भी सही है कि कुहासे नहीं होंगे तो गेहूं की फसल खराब हो जाएंगे ।।।

गर्मी का मौसम कष्टदाई होती है फिर भी गर्मी भी होना आवश्यक है क्योंकि यह प्रकृति को संचालन करती है ।।

प्रकृति के संचालन में जितना गुरु, शुक्र, बुध, शनि का योगदान है ...सदैव याद रखें उतना ही सूर्य चंद्रमा का योगदान है ...

और उतना ही राहु केतु का योगदान है और यह नवग्रह मिलके ही एक तारामंडल का निर्माण करते हैं ।।।

और लोग आवेश में आकर कहते हैं कि राहु ने उनका जीवन बर्बाद कर दिया ।।।

अरे उसके हाथों में संचालन है ,वह चाहे तो एक दिन में तुम्हारे शब्दों का जवाब दे सकता है, किंतु नहीं वह परम मायावी है ...वह देवों के देव महादेव का भक्त है ...वह पालनहार नारायण का शिष्य है...

शालिग्राम शिला का भी रंग काला है, राहु शीला का भी रंग काला है असली शालिग्राम दो भागों में खंडित होता है, जब आप उसे खोलेंगे तो लक्ष्मी और नारायण का दर्शन होगा ...

राहु भी खंडित शीला है... राहु शीला को भी खोलेंगे तो राहु और केतु का दर्शन होगा दोनों में कोई फर्क नहीं...

आप शालिग्राम शिला में भी राहु के आशीर्वाद को प्राप्त कर सकते हैं ।।

नारायण का सबसे बड़ा भक्त परम मायावी राहु ही है ।।

शिव का सबसे बड़ा सेवक परम राहु ही है ।।।

भाग्यशाली है वह लोग जिनकी राहु की महादशा चल रही होती है

कहीं ऐसा ना हो कि बाद में पश्चाताप हो कि आपने बहुमुल्य हीरा को दिया...

ऊं रां राहवे नमः

Er. Bibhash Mishra
Consultant
Research & Development

05/03/2024

सफर राहु की महादशा का
(समय काल 18 वर्ष)

राहु की महादशा में राहु की अंतर्दशा -

यह समय जातक के जीवन का बहुमूल्य समय होता है, जिस तरह पुराना मकान को तोड़कर नए सिरे से नए मकान का रिकंस्ट्रक्शन होता है तो यह समय भी जातक के जीवन का रिकंस्ट्रक्शन का समय रहता है, राहु अपने हिसाब से चीजों को करता है , इस उद्देश्य से पुरानी चीजों को धराशाई करके नए तरीका से जीवन को मोड़ देता है ।।।

राहु की महादशा में गुरु की अंतर्दशा - इस समय जातक को शिक्षा संबंधित लाभ प्राप्त होता है, अध्यात्म में रुचि बढ़ती है व्यापार होती है पर जीवन संघर्ष में रहता है

राहु की महादशा में शनि की अंतर्दशा - यह समय जातक के जीवन का सबसे कष्टकारी समय होता है, तमाम प्रकार का नुकसान होता है, गृह क्लेश होता है, परिवार में किसी बुजुर्ग जनों का वियोग होता है

राहु की महादशा में बुद्ध की अंतर्दशा - जातक के जीवन का सबसे स्वर्णिम समय ।।

इस समय जातक को तमाम सफलताएं हासिल होती है, उच्च शिक्षा की प्राप्ति होती है, विवाह होता है , संतान सुख प्राप्त होता है , नौकरी व्यापार में उन्नति होती है, जातक सुखी रहता है ।।।

राहु की महादशा में केतु की अंतर्दशा - यह समय आर्थिक नुकसान का समय रहता है, संतान को कष्ट होता है, स्थान परिवर्तन तबादला इसी समय होता है ।।

राहु की महादशा में शुक्र की अंतर्दशा - जातक के जीवन का सबसे खुशनुमा समय, यह समय राहु आशीर्वाद रुपी जातक के जीवन को लबालब भर देता है

इसमें पुत्र रत्न की अवश्य प्राप्ति होती है, नए वाहन , नए मकान का सुख अवश्य मिलता है ,जातक बेहद सुखी रहता है ।।

राहु की महादशा में सूर्य की अंतर्दशा - मानसिक समस्याएं बढ़ जाती है, व्यापार में नुकसान होता है, पिता को कष्ट प्राप्त होता है , घर में मांगलिक कार्य होता है, भाई बहनों का विवाह होता है

राहु की महादशा में चंद्रमा की अंतर्दशा - जातक के जीवन का सबसे ज्यादा मानसिक तनाव का समय, चीजे विपरीत हो जाती है, संबंध टूट जाते हैं ,व्यापार खत्म हो जाता है ,नौकरी छूट जाती है ,असीम मानसिक तनाव रहता है

जीवनसाथी को कष्ट होता है, मानसिक क्लेश होता है ,यहां तक शरीर में पहने खुद के वस्त्र भी खिलाफ हो जाते हैं ,सभी शत्रु सक्रिय हो जाते हैं, गजब का तनाव रहता है

राहु की महादशा मंगल की अंतर्दशा - राहु वापसी पर रहता है कुंडली में शुभ स्थिति में हो तो जाते-जाते कुछ वसीयत गिफ्ट अवश्य देता जाता है, जातक के मन में बहुत सारा पश्चाताप रहता है और एक ही विचार मन में चलता रहता है

जय मां दुर्गा इस मंत्र का जाप करने से राहु संबंधित कष्टों का नाश होता है

अगर राहु कुंडली में शुभ हो तो अपनी योजनाएं कभी किसी को भूलकर भी नहीं बताएं

राहु गजब मायावी है

जन्म कुंडली में शुभ और योगकारक होने पर यह जातक को अपनी महादशा में वह दे देता है इसके बारे में जातक कल्पना भी नहीं कर सकता

कुछ लोग आवेश और अल्प ज्ञान होने के कारण राहु के माया पर प्रश्न उठाते हैं उसे अपशब्द कहते हैं

राहु की महादशा खत्म होने पर जातक के पास सिर्फ पश्चाताप रहती है

इन 18 वर्षों में...

क्या खोया... क्या पाया....

ऊं रां राहवे नमः

Er. Bibhash Mishra
Consultant
Research & Development

03/02/2024

वक्री ग्रह और उसका स्वभाव

आज के इस पोस्ट में हम वक्री ग्रह और उसके स्वभाव के बारे में पुनः चर्चा करेंगे ।।

कुछ दिन पहले हमने वक्री ग्रह पर एक पोस्ट किया था आज पुण : उसके बारे में और अधिक जानकारी हासिल करेंगे ।।।

अगर एक लाइन में वक्री ग्रह के कांसेप्ट को समझे तो

हर ग्रह का अपना एक मूल स्वभाव होता है

कोई ग्रह अगर वक्री होता है तो अपने मूल स्वभाव और गुण को खो देता है ।।।

उदाहरण के तौर पर हम समझते हैं

आपने कभी-कभी देखा होगा कुछ औरतों में मर्दों वाली गुण होती है

उदाहरण के तौर पर मर्दों जैसी फुर्ती होना, घर के भी काम को देखना संग ही बाहर बाजार के काम को भी कर लेना

सुबह से रात बिल्कुल एक्टिव रहना , यहां तक घर वाले बोले भी की यह भूल से ही लड़की पैदा हो गई इसे तो लड़का पैदा होना चाहिए था ।।।

यानी उसके स्वभाव में वह सारा गुण होगा जो एक लड़के के स्वभाव में होता है ।।।

इसके उलट कर कुछ मर्दों को हम देखेंगे तो लगेगा उनका स्वभाव कुछ शर्मिला है और हर काम में वह बिल्कुल शर्मीलापन महसूस करते हैं

यानी दोनों ही पक्ष में अपने मूल स्वभाव को खो देना ।।

एक बहन को हमने देखा, पिताजी के घर पर नहीं मौजूद होने के वजह से घर का सारा काम भी देखी थी , और अपनी स्कूटी से बाजार की सभी खरीदारी भी करती थी, यानी सुबह से रात की सारी गतिविधि जो एक लड़के की होनी चाहिए, उसमें थी ।।

यहां तक कि निडर होकर अपने घर की रखवाली भी करती थी ।।

यानी लड़कियों का जो मूल स्वभाव होता है वह गुण न होकर अलग स्वभाव उसमें था ।।

वक्री ग्रह के उदाहरण को हम यहां बेहतरीन तरीके से समझ सकते हैं ।।

इसी प्रकार सभी ग्रहों का भी अपना एक मूल गुण स्वभाव होता है

और जब वह ग्रह वक्री होता है तो अपने बेसिक सिद्धांत को भूलकर अलग फल देने लगता है ।।

ग्रह के इस अलग स्वभाव को ही ग्रह का वक्री होना कहते हैं ।।

अन्य उदाहरण से समझते हैं गर्मी का मूल स्वभाव हम सभी जानते हैं लू का चलना ।।

ठंड का मूल स्वभाव हम जानते हैं शीत लहरी का चलना ।।

पर कभी-कभी भीषण गर्मी में भी मौसम अगर बेहद सुहावना हो तो यहां गर्मी अपना मूल स्वभाव को चुकी होती है ।।

या दिसंबर महीने में भी आपने देखा होगा ठंड बिल्कुल नहीं पड़ रही है, और लोग कहते हैं कि लगता है इस बार ठंड नहीं पड़ेगी यानी ठंड ने अपना मूल स्वभाव कुछ दिनों के लिए खो दिया ।।

और जब-जब कोई अपना मूल स्वभाव को खोता है तो उसे हम वक्री होना कहते हैं ।।

अब ऊपर लिखे सभी कथनों को हम ग्रह पर अप्लाई करके देखते हैं ।।

अब गुरु का मूल स्वभाव क्या है यह आप सभी जानते हैं

गुरु 100% धर्म है गुरु बेहद बलवान हो तो जातक के माथे पर चंदन, सिखा, गले में तुलसी माला, गेरुआ वस्त्र, कथावाचक या सारा गुण उसमें मौजूद होगा ।।।

वही गुरु अगर वक्री हुआ तो जातक धार्मिक अवश्य होगा पर सूटेड बूटेड टाई लगाने वाला होगा ।।।

यानी यहां गुरु ने अपना मूल गुण को दिया ।।

हो सके जातक अपने धर्म में हुई आडंबर को दूर करने वाला भी होगा ।।

शनि खराब है तो शनि मंदिर में जाकर सरसों तेल शनि के पत्थर पर चढ़ाए यह मार्गी गुरु वाला बोलेगा ।।।

वक्री गुरु वाला बोलेगा कि पत्थर पर तेल चढ़ाना बेकार है वह तेल किसी गरीब को दीजिए जिससे शनि ज्यादा खुश होगा , क्योंकि गरीब का कारक भी शनि है ।।

दोनों ही अपने जगह सही है पर कॉन्सेप्ट की लड़ाई है ।।।

वक्री ग्रह का बेहतरीन मिसाल आप ऐसे समझ सकते हैं ।।।

शिवलिंग पर दूध चढ़ाना एक आस्था है,

गरीबों को दूध देना भी एक आस्था है ।।

मोहर्रम में मातम करना, हुसैन के नाम पर जंजीर से सीना पीटना और खून बहाना एक आस्था है ।।

ब्लड बैंक में गरीबों को खून देना भी एक आस्था है ।।

और जहां आस्था वाली बात है वह मार्गी गुरु है, पर वही आस्था पर जहां तर्क है वह वक्री गुरु है ।।।

शनि का मूल स्वभाव परिश्रम है, मेहनत है, दुख है , चिंता है ।।

पर वहीं शनि अगर वक्री हो जाए तो अपने मूल स्वभाव को खो देता है, यानि वक्री शनि वाले जातक बहुत मेहनत नहीं करते हैं और आराम पसंद से ही उनको चीजें हासिल हो जाती है ।।

शुक्र का मूल स्वभाव आराम पसंद है , मौज मस्ती है और सभी भौतिक सुख है ।।

वहीं अगर शुक्र वक्री हो जाए तो जातक आराम पसंद चीजों और भौतिक सुखों के भरपूर उपलब्धि होने के बावजूद भी उसे भोगना पसंद नहीं करेगा और उससे बचने की कोशिश करेगा ।।

वक्री ग्रह चीजों को भी दोहराती है ।।

चतुर्थ भाव वाहन और मकान का है अगर चतुर्थेश वक्री हुआ तो जातक के पास निश्चित तौर पर एक से ज्यादा वाहन और मकान होगा ही ।।।

पंचमेश वक्री हुआ तो एक से ज्यादा संतान एक से ज्यादा प्रेम संबंध एक से ज्यादा एजुकेशन की डिग्री होगी ।।

लग्नेश वक्री हुआ तो दीर्घायु होगा, अष्टमेश वक्री हुआ तो मौत के मुंह से भी बच जाएगा, और पुनर्जीवन की प्राप्ति होगी और दीर्घायु भोगेगा ।।।

धनेश और लाभेश वक्री हुआ तो एक से ज्यादा आय के साधन होंगे ।।

भाग्येश वक्री हुआ तो बारंबार भाग्योदय होगा ।।

सप्तमेश वक्री हुआ तो एक से ज्यादा विवाह होने की संभावना रहेगी ।।

दशमेश वक्री हुआ तो नौकरी बार-बार बदलेगा ।।
या संभवतः नौकरी के साथ-साथ साइड इनकम के तौर पर व्यापार भी हो ।।

बुद्ध का संबंध व्यापार से है और बुध का मूल स्वभाव ही व्यापार करना है, और बुध वक्री हुआ तो जातक व्यापार के नए-नए आइडिया बताएगा या बिज़नेस ट्रेनर होगा ।।

मंगल का मूल स्वभाव फुर्तीला जीवन, बगैर आलस के बिजली की फुर्ती , जातक क्रोधी स्वभाव का होता है ।।

मंगल अगर वक्री हुआ तो जातक मंगल के मूल गुण को खो देता है यानी वह अत्यधिक धैर्यवान होता है ।।

वक्री ग्रह पर आज इतना ही ...

Er. Bibhash Mishra
Research Scholar
Astrologer Consultant

01/02/2024

ग्रह और उसका प्रभाव

आज के इस पोस्ट में हम ग्रह और उसके प्रभाव पर चर्चा करेंगे

कुछ ग्रह सौम्य होते हैं जैसे गुरु शुक्र चंद्रमा और बुध...

वहीं कुछ ग्रह क्रूर होते हैं जैसे सूर्य और मंगल...

और कुछ ग्रह बेहद पाप प्रवृत्ति के होते हैं जैसे शनि राहु

यद्यपि केतु ने अमृत पान किया था फिर भी उसे हम पाप ग्रह की ही श्रेणी में रखते हैं ...

हर ग्रह का अपना एक मूल सिद्धांत होता है अपना एक चरित्र होता है जिसे वह किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ता है ।।।

उदाहरण के तौर पर शनि वैराग का कारक ग्रह है और कुंडली में वह बेहद राज योग कारक हो जैसे वृषभ लग्न और तुला लग्न की कुंडली और शनि की महादशा चल रही हो, तो बेहद राज योग कारक होने के बाद भी चुकी शनि की प्रवृत्ति अकेलापन और वैराग है तो वह अपना मूल प्रभाव राजयोग होने के बावजूद देगा।।।

गुरु बेहद संवेदनशील और सौम्य ग्रह है, धार्मिक प्रवृत्ति और ब्राह्मण ग्रह है...

तो कुंडली में अनिष्टकारी होने के बावजूद भी गुरु की महादशा में वह अपना मूल सिद्धांत धार्मिकता और सौम्यता जरूर रखेगा ।।।

और सभी ग्रह अपना पूरा प्रभाव महादशा में देते हैं ।।

जैसा हमने पहले भी कहा की दशा, दिशा तय करती हैं ।।।

कुंडली में अगर योग कारक ग्रह पंचमेश, भाग्येश , दशमेश लग्नेश की महादशा चले तो जीवन में सुख शांति संपन्नता रहती है ।।।

वही जीवन में अगर अनिष्टकारी ग्रह की महादशा षष्ठेश अष्टमेश और मारकेश ग्रह के महादशा चले तो जीवन में रोग , विपत्ति दुख और चिंता आती है ।।।

प्रकृति खुद बताती है कि वह परिवर्तनशील है, आज कडाके की ठंड है , तो चंद महीने के पश्चात प्रचंड गर्मी भी आएगी ।।

जिस सूर्य की धूप के लिए आज ठंड में लोग इंतजार कर रहे हैं चंद महीने के पश्चात इसी धूप को कोसा जाएगा, और इसी सूर्य की गर्मी से बच के पंखों और कुलर में जाया जाएगा ।।

1 वर्ष कभी एक समान नहीं रहता कभी सर्द, कभी गर्म, कभी पतझड़ तो कभी बसंत कभी बरसात ...

यहां तक एक दिन भी एक समान नहीं रहता कभी सुबह कभी दोपहर कभी शाम तो कभी रात ।।।

इसी तरह परिस्थिति भी एक समान नहीं रहती, कभी दुख तो कभी सुख.... महादशा बदलती रहती है और अपना प्रभाव दिखाती रहती है

और जीवन के रंग मंच पर लोग अपना किरदार निभाते हैं और चले जाते हैं ।।।

भूमि विवाद, जमीन विवाद, पति-पत्नी क्लेश ,आपसी मतभेद दुख रोग चिंता सभी यहीं छूट जाती है ।।।

दो भाइयों में एक जमीन के टुकड़ी को लेकर विवाद था, और विवाद भी ऐसा की दो सगे भाई आपस में बात तक नहीं करते थे, समय आया दोनों भाई पृथ्वी से विदा लिए जमीन यहीं रह गई दोनों सगे भाई चले गए ।।।

अब उस जमीन के लिए दोनों भाइयों के बेटे आपस में लड़ रहे हैं , कल अगली पीढ़ी लड़ेंगी ...जमीन यही रहेगी , पीढ़ी दर पीढ़ी धीरे-धीरे विदा होती जाएगी ।।।

शनि और राहु की महादशा चले तो ऐसे प्रारब्ध विशेष कर बढ़ जाते हैं ।।।

सतयुग में धर्म चार पायों पर थी...

त्रेता युग में धर्म तीन पाये पर थे...

द्वापर युग में धर्म दो पायों पर...

और आज कलयुग में धर्म केवल एक पाया पर खड़ी है बाकी तीन पाया अधर्म पर है ।।।

कलयुग प्लास्टिक युग में सिमट गई है, जहां रिश्ते से लेकर खाने तक सभी प्लास्टिक हैं ।।।

और प्लास्टिक का कारक राहु है इसलिए कलयुग पर राहु का वर्चस्व माना जाता है ।।।

सतयुग में लोग सोने के थाली में खाना खाया करते थे..

त्रेता में चांदी के थाली का प्रचलन हुआ...

द्वापर में कांसे के थाली का ...

और आज कलयुग में प्लास्टिक के थाली पर खाना खाया जाता है ।।।

सतयुग में लोग 50 हजार वर्ष जीते थे ..

त्रेता में लोग 10 हजार वर्ष वर्ष जीते थे ...

द्वापर में 1000 वर्ष ...

और आज कलयुग में आयु 65 से 70 वर्ष पर सिमट गई है ।।।

सतयुग पर देवगुरु बृहस्पति का प्रभाव था, तो आज कलयुग पर राहु का प्रभाव है ।।।

एक घर में रहकर पति-पत्नी के बीच करोड़ों का फैसला है

सभी रिश्ते नकली हैं

सबके हाथ में कीमती मोबाइल है, सब की कॉलिंग फ्री है पर बातचीत किसी को किसी से नहीं है ।।।

रिश्ते से लेकर खान-पान सब में मिलावट है, सामान्य भोजन चावल दाल रोटी से हटकर लोग पिज़्ज़ा बर्गर जैसे जहर खा रहे हैं ।।।

मैदा और चीनी जैसे सफेद जहर खाया जा रहा है ।।

मन दुषित ,भोजन दूषित, वायु दुषित,इंसान किस दौर में जी रहा है शायद उसे पता भी नहीं ।।।

और कलयुग में जितने भी चीज हैं, एंड्राइड मोबाइल, बाहरी खान-पान, पेट की समस्या, दुषित जलवायु, दूषित भोजन, सबके ऊपर अशुभ राहु का प्रभाव है ।।

दिखावटी जीवन, कर्ज लेकर घी पीने की आदत से हर व्यक्ति परेशान है ।।

यथार्थ जीवन छोड़कर सभी अंधेरे में चिरकाल के लिए भटक रहे हैं ।।।

तेज गति से वाहन चलाना, कम उम्र में बच्चों के हाथ में मोबाइल युवा बुरी तरीके से भटक चुके हैं ।।

और जवानी में ही बुढ़ापे का आनंद ले रहे हैं ।।।

40 से 45 वर्ष के जातकों का तो यह हाल है कि उनकी शक्ति क्षीण हो चुकी है और वह अपने जीवन को जी नहीं ढो रहे हैं ।।

पारिवारिक जिम्मेदारी और कर्ज तले इस कदर दबे हैं कि उनकी कमर टूट चुकी है ।।

और जब इतनी परेशानी हो तो इसका प्रभाव सेहत पर नजर आता है बस यही कारण है कि कलयुग में आयु 60 -65 तक सिमट गई है ।।।

अब इसका उपाय है... आवश्यकता कम कीजिए, दिखावटी जीवन जीना बंद कीजिए , यथार्थ पर चलिए, और सामान्य जीवन और ईमानदारी के साथ जीवन जीना सीखिए ।।।

बंद कमरे में भी लड्डू रखेंगे तो चींटी खोज कर आ ही जाएगी

लड्डू को खुला छोड़ना चींटी को खुला निमंत्रण है ।।।

ठंड में खाली बदन भ्रमण करना ठंड मारने को खुली चुनौती है ।।।

गर्मी को दिनों में धूप में घूमना लू मारने को खुली चुनौती है ।।

इसी प्रकार तेज वाहन चलाना, शराब पीना, चरित्र खराब करना , दूसरे के हक को मारना , इर्ष्या करना, द्वेष करना, बेईमानी करना, राहु और शनि के दुष्प्रभाव को खुली चुनौती है ।।

बस एक महीना अपने दिनचर्या को बदल के पूरी ईमानदारी के साथ जीवन जीकर देखिए राहु और शनि आपका बाल भी बांका नहीं करेंगे ।।।

Er. Bibhash Mishra
Research Scholar
Astrologer Consultant

26/01/2024

*श्री हरि जी ...*

कन्धे पर कपड़े का थान लादे और हाट-बाजार जाने की तैयारी करते हुए नामदेव जी से पत्नि ने कहा- आज घर में खाने को कुछ भी नहीं है।
आटा, नमक, दाल, चावल, गुड़ और शक्कर सब खत्म हो गए हैं।

शाम को बाजार से आते हुए घर के लिए राशन का सामान लेते आइएगा।

नामदेव जी ने उत्तर दिया- देखता हूँ जैसी श्री कृष्ण जी की इच्छा
अगर कोई अच्छा मूल्य मिला,
तो निश्चय ही घर में आज धन-धान्य आ जायेगा।

पत्नि बोली - अगर अच्छी कीमत ना भी मिले,
तब भी इस बुने हुए थान को बेचकर कुछ राशन तो ले आना।

घर के बड़े-बूढ़े तो भूख बर्दाश्त कर लेंगे।
पर बच्चे अभी छोटे हैं,
उनके लिए तो कुछ ले ही आना।

जैसी हरि इच्छा।
ऐसा कहकर भक्त नामदेव हाट-बाजार को चले गए।

बाजार में उन्हें किसी ने पुकारा- वाह कपड़ा तो बड़ा अच्छा बुना है और ठोक भी अच्छी लगाई है।

तेरा परिवार बसता रहे।

ये गरीब ठंड में कांप-कांप कर मर जाएगा।

दया के घर में आ और भगवान के नाम पर दो चादरों का कपड़ा इस गरीब की झोली में डाल दे।

भक्त नामदेव जी- दो चादरों में कितना कपड़ा लगेगा जी?

भिखारी ने जितना कपड़ा मांगा,
संयोग से भक्त नामदेव जी के थान में कुल कपड़ा उतना ही था।

और भक्त नामदेव जी ने पूरा थान उस भिखारी को दान कर दिया।।।

दान करने के बाद जब भक्त नामदेव जी घर लौटने लगे तो उनके सामने परिजनो के भूखे चेहरे नजर आने लगे।

फिर पत्नि की कही बात,
कि घर में खाने की सब सामग्री खत्म है।

दाम कम भी मिले तो भी बच्चो के लिए तो कुछ ले ही आना।

अब दाम तो क्या,
थान भी दान जा चुका था।

भक्त नामदेव जी एकांत मे पीपल की छाँव मे बैठ गए।।।

जैसी राधा मोहन की इच्छा।।

जब सारी सृष्टि की सार पूर्ती वो खुद करता है,
तो अब मेरे परिवार की सार भी वो ही करेगा।।।

और फिर भक्त नामदेव जी अपने हरि के भजन में लीन गए।।।

अब भगवान कहां रुकने वाले थे।।।

भक्त नामदेव जी ने सारे परिवार की जिम्मेवारी अब उनको सुपुर्द जो कर दी थी।।।

अब भगवान जी ने भक्त नामदेव जी की झोंपड़ी का दरवाजा खटखटाया।

नामदेव जी की पत्नी ने पूछा- कौन है?

नामदेव का घर यही है ना?
भगवान जी ने पूछा।

अंदर से आवाज हां जी यही आपको कुछ चाहिये ??

भगवान सोचने लगे कि धन्य है नामदेव जी का परिवार घर मे कुछ भी नही है फिर भी ह्र्दय में देने की सहायता की जिज्ञासा है ।।।

भगवान बोले दरवाजा खोलिये

लेकिन आप हैं कौन?

भगवान जी ने कहा- सेवक की क्या पहचान होती है ?

जैसे नामदेव जी , हरि के सेवक,
वैसे ही मैं नामदेव जी का सेवक हू ।।

ये राशन का सामान रखवा लो ।।

पत्नि ने दरवाजा पूरा खोल दिया।
फिर इतना राशन घर में उतरना शुरू हुआ....
कि घर के जीवों की घर में रहने की जगह ही कम पड़ गई ।।

इतना सामान! नामदेव जी ने भेजा है?
मुझे नहीं लगता।
पत्नी ने पूछा।

भगवान जी ने कहा- हाँ , आज नामदेव का थान सच्ची सरकार ने खरीदा है।

जो नामदेव का सामर्थ्य था उसने भुगतान दिया।

और अब जो सरकार का सामर्थ्य है वो चुकता कर रही है।।।

जगह और बताओ।
सब कुछ आने वाला है नामदेव जी के घर में।।।

शाम ढलने लगी थी और रात का अंधेरा अपने पांव पसारने लगा था।

समान रखवाते-रखवाते पत्नि थक चुकी थीं।।।

बच्चे घर में अमीरी आते देख खुश थे।।

वो कभी बोरे से शक्कर निकाल कर खाते और कभी गुड़।।।

कभी मेवे देख कर मन ललचाते और झोली भर-भर कर मेवे लेकर बैठ जाते।।।

उनके बालमन अभी तक तृप्त नहीं हुए थे।।।

भक्त नामदेव जी अभी तक घर नहीं आये थे,
पर सामान आना लगातार जारी था।।।

आखिर में पत्नी ने हाथ जोड़ कर कहा- सेवक जी! अब बाकी का सामान नामदेव जी के आने के बाद ही आप ले आना।।।

हमें उन्हें ढूंढ़ने जाना है क्योंकी वो अभी तक घर नहीं आए हैं।।।

श्री हरि बोले- वो तो गाँव के बाहर पीपल के नीचे बैठकर राधे‌ नाम का भजन कर रहे हैं।।।

अब परिजन नामदेव जी को देखने गये

सब परिवार वालों को सामने देखकर नामदेव जी सोचने लगे...

जरूर ये भूख से बेहाल होकर मुझे ढूंढ़ रहे हैं।।।

इससे पहले की नामदेव जी कुछ कहते
उनकी पत्नी बोल पड़ीं- कुछ पैसे बचा लेने थे,
अगर थान अच्छे भाव बिक गया था,
तो इतना सारा सामान आज ही खरीद कर घर भेजना था क्या?

भक्त नामदेव जी कुछ पल के लिए विस्मित हुए।।

फिर बच्चों के खिलते चेहरे देखकर उन्हें एहसास हो गया,
कि जरूर मेरे प्रभु ने कोई खेल कर दिया है।।।

पत्नि ने कहा अच्छी सरकार को आपने थान बेचा और वो तो समान घर में भेजना रुकता ही नहीं रहे ।।

पता नही कितने वर्षों तक का राशन दे गये ।।।

उनसे विनती कर के रुकवाया- बस कर! !!!

बाकी नामदेव जी के आने के बाद उनसे पूछ कर कहीं रखवाएँगे।।।

भक्त नामदेव जी हँसने लगे और बोले- ! *वो सरकार है ही ऐसी।*

*जब देना शुरू करती है तो सब लेने वाले थक जाते हैं।*
*उसकी दया कभी भी खत्म नहीं होती।*



*सदैव प्रसन्न रहिये।*
*जो प्राप्त है, वही पर्याप्त है।।*

25/12/2023

शनि और आपका जीवन

आज के इस पोस्ट में हम शनि ग्रह के स्वरूप को समझेंगे

नवग्रह में शनि को न्यायाधीश कहा गया है, शनि नवग्रह में सबसे मंद गति से चलने वाला ग्रह है, इसी वजह से इसका नाम शनिश्चर ... शनै अर्थात धीरे... चर अथार्त चलने वाला ..यानी धीरे-धीरे चलने वाला ।।।

जातक के जीवन के तमाम कर्मो का लेखा-जोखा शनि के ही पास होता है...

जो परिणाम उसे शनि की महादशा या फिर साढेसाती में नजर आता है

शनि की महादशा भले ही बहुतो के जीवन में आए ना आए पर साढ़ेसाती अवश्य ही आती है

शनि का प्रभाव एक मानव जीवन पर कितना है इसको हम यू समझते हैं

एक जातक के संपूर्ण जीवन में लगभग तीन बार उसे साढेसाती का सामना करना पड़ता है
(जब शनि का गोचर जन्म राशि से एक राशि पहले, जन्म राशि पर , और जन्म राशि से एक राशि बाद पर चले)

इसके बाद समय-समय पर ढैया भी आती है
(जब शनि का गोचर जन्म राशि से चतुर्थ और जन्म राशि से अष्टम चले)

इसके बाद शनि की अंतर्दशा और प्रत्यंतर, सूक्ष्मदशा और प्राणदशा भी

अब अगर शनि की महादशा किसी जातक के पूरे जीवन ना भी चले तो भी...

साढेसाती ...ढैया ...अंतर्दशा और प्रत्यंतर दशा, सूक्ष्मदशा और प्राण दशा मिला लिया जाए तो मानव के संपूर्ण जीवन पर लगभग 75% पर शनि अपना अधिकार रखता ही रखता है ।।।

अब नवग्रह पर और आपके जीवन पर शनि का क्या प्रभाव है इससे आप बेहतर समझ सकते हैं ।।।

इसलिए कहा जाता है कि आपके तमाम कर्मों का लेखा-जोखा शनि के पास है ...

यानी शनि ने आपकी हर गतिविधि पर मानो सीसीटीवी लगा कर रखी है ।।

और वही CCTV का Replay वह साढेसाती के दौरान करवाता है

अब आपकी कुंडली में शनि जिस स्थान का, जिस जिस भाव का अधिपति है साढेसाती में उससे संबंधित प्रारब्ध को भोग करवाता है

उदाहरण के तौर पर किसी की वृश्चिक लग्न की कुंडली है तो वृश्चिक लग्न की कुंडली में शनि चतुर्थ भाव का स्वामी है तो साढेसाती के दौरान संभवत उसको गृहक्लेश, मकान संबंधित विवाद या माता संबंधित या चतुर्थ भाव संबंधित तमाम प्रारब्ध को भोगना पड़े ।।।

किसी की कर्क लग्न या सिंह लग्न की कुंडली है तो वहां पर सप्तमेश शनि है तो उसे जीवन साथी, व्यापार संबंधित प्रारब्ध भोगना पड़े ।।।

कलयुग में लोग धरल्ले से पाप कर रहे हैं... उनकी सुबह से रात की तमाम गतिविधि ऐसी है... जिसे शनि को सख्त सख्त सख्त नफरत है ....

और शनि धारदार तलवार लिए ...आंखें लाल किए बैठा है ...और और इंतजार करता है तो बस साढेसाती का...

और जब साढ़ेसाती में शनि की जब हंटर चलती है तो जातक त्राहिमाम त्राहिमाम करता है...

हकीकत में यह उसके ही किए गए कर्मों का फल होता है।।।

वहीं हमने कई जातकों को ऐसे भी देखा है जो साढेसाती में बुलंदी पर होते हैं...

शनि की महादशा चल रही है... शनि की साढ़ेसाती चल रही है पर एक मक्खी तक नहीं हिलता है ...

सवाल है कोई बाल भी बांका कर दे...

क्योंकि शनि जब साढेसाती के दौरान उसे न्याय के कटघरे में खड़ा करता है... तो वह जातक बा इज्जत बड़ी हो जाता है...

यानी उसका कोई भी पाप शनि, प्रारब्ध और पहले का किया खराब कर्म शनि को नहीं नजर आता है ...

तो शनि उसे आशीर्वाद प्रदान करते हैं... और शनि की आशीर्वाद ...

दीर्घायु... दीर्घायु ....दीर्घायु

ध्यान रहे शनि जड़ है ...पेड़ में पीपल सबसे मजबूत है... पीपल की जड़ दूर-दूर तक होती है ... इतना कि कई मकानों के अंदर तक चली जाती है ...शनि की सफलता भी स्थायित्व होती है और उसकी सफलता कई पुश्ते भोगती है

शनि का प्रारब्ध हो ...या शनि का आशीर्वाद...उसको कई पुश्तों को भोगना पड़ता है

अगर शनि ने आशीर्वाद दिया तो इतना आलीशान मकान देगा जिसको कई वंश उसके सुख को भोगेंगे...

ऐसी प्रणाली... ऐसी व्यवस्था देगा... जिसको कई पुश्त , दर पुश्त याद रखेंगे... क्योंकि शनि जड़ है और शनि की सफलता में गजब का स्थायित्व होता है ।।।

शहर की मकान उतनी टिकाऊ नहीं होती... पर गांव का वह पुराना मिट्टी का मकान कई पुश्तों की निशानियां होती है...

वही पुराना मकान शनि है...

तमाम प्रकार के जमीन शनि है... जब शनि बलवान हो तो जातक जमींदार या गांव का मुखिया होता है ।।।

तमाम प्रकार के कोर्ट की न्याय प्रणाली... पुलिस प्रशासन की व्यवस्था...आपके सड़क नालों की साफ सफाई... तमाम प्रकार के न्यायिक प्रणाली पर शनि का अधिकार है ।।।।

खासकर ऐसे जातक जो बहुत ज्यादा दीर्घायु जीवन जीते हैं 100% शनि उनकी कुंडली में बलवान होती है... क्योंकि दीर्घायु शनि ही देता है ।।।

एक सज्जन जिनकी आयु लगभग 93 वर्ष की है... चर्चा के दौरान जब हमने उनसे पूछा तो उन्होंने आज से 50 वर्ष पूर्व अपने जमाने का समय बताया ....

कि उन जमाने में घर में मिट्टी के चूल्हे में रोटियां पकती थी, खेत में सब्जियां होती थी ...सरसों होते थे शुद्ध तेल निकाला जाता था ...और घर का ही भोजन खाया जाता था ...

कढ़ाई वर्ष में केवल दो बार चूल्हे पर मां चढ़ाती थी...

होली के वक्त और दशहरा के वक्त ...

यानी वर्ष में केवल चंद दिन होली... दिवाली... दशहरे ...रक्षाबंधन ...या किसी की जन्मदिन में पूरी और पकवान मां खिलाती थी... और पूरे वर्ष हम सुखी रोटी ही खाते थे... तब जाकर आज 93 वर्षों तक सभी दांत सुरक्षित हैं ।।।

आज के जमाने में सभी को हर दिन पकवान चाहिए...

हर दिन बाहर का खाना चाहिए.... घर के खाने रोटी और चावल से बच्चे दूर हो रहे हैं... केएफसी स्विग्गी जोमैटो ने घर के किचन प्रणाली को चौपट कर दिया है...

तो पेट और शरीर की क्या हालत होगा...

यानी तमाम प्रकार के प्रक्रिया फूड और कलयुग पर राहु का प्रभाव है जिन्होंने आपके किचन... घर और पेट सबको चौपट कर दिया है ।।।

जबकि पुराने ख्यालात ...सादा खान पान के ऊपर शनि का प्रभाव है जो दीर्घायु जीवन का कारक है ।।।।

ऊँ शन्नोदेवीर-भिष्टयऽआपो भवन्तु पीतये शंय्योरभिस्त्रवन्तुनः

Er. Bibhash Mishra
Research Scholar
Astrologer Consultant

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Sakchi Aambagan
Jamshedpur
831001

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