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17/03/2025

पेट की समस्याओं का समाधान पाने के लिए, संतुलित आहार, नियमित व्यायाम, और तनाव कम करना फ़ायदेमंद होता है. कुछ घरेलू उपाय भी अपनाए जा सकते हैं.
आहार
फ़ाइबर से भरपूर खाना खाएं.
मसालेदार, वसायुक्त, या अम्लीय खाद्य पदार्थों से बचें.
रात का खाना सोने से दो से तीन घंटे पहले खाएं.
केला, तरबूज़, पपीता, और खीरा जैसे फल खाएं.
बींस, सेम, कद्दू, बंदगोभी, और गाजर जैसी सब्ज़ियां खाएं.
चावल जैसे कार्बोहाइड्रेट से भरपूर भोजन खाएं.
व्यायाम
सुबह या शाम में हल्का-फ़ुल्का व्यायाम करें.
खाने के बाद टहलें.
पैदल चलने से पाचन तंत्र में रक्त का प्रवाह बढ़ता है.
योग मुद्राएं, जैसे "वायु-मुक्ति मुद्रा", पेट पर दबाव डालकर गैस को बाहर निकालने में मदद करती हैं.
दवा
कुछ मामलों में, पेट में एसिड को कम करने के लिए प्रोटॉन पंप अवरोधक या H2 ब्लॉकर्स जैसी दवाएं ली जाती हैं.
हेलिकोबैक्टर पाइलोरी संक्रमण जैसी स्थितियों के लिए एंटीबायोटिक दवाओं की आवश्यकता हो सकती है.
अन्य उपाय
हल्का गर्म पानी पिएं.
ध्यान, योग, या नियमित व्यायाम जैसी तकनीकों के ज़रिए तनाव कम करें.
शराब, धूम्रपान, और कैफ़ीन से परहेज़ करें.

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ब्लेफराइटिस आंखों की एक बीमारी है, जिसमें पलकों में सूजन आ जाती है। पलकों में सूजन आने का कारण हमारी त्वचा व पलकों के ऑयल ग्लैंड के ब्लॉकेज में पाए जाने वाले बैक्टीरिया और एलर्जी होती है। ब्लेफराइटिस को नज़रअंदाज किया तो आईलैशेज़ कम हो सकते हैं।
ब्लेफराइटिस होने पर पलकें लाल हो जाती हैं, उनमें सूजन आ जाती है, खुजली होने लगती है और आईलैश पर पपड़ी-सी पड़ जाती है। साथ ही आंखें सूख जाती हैं। आंखों के सूखने का प्रमुख कारण आईलिड के ऑयल ग्लैंड का काम न करना होता है।

ब्लेफराइटिस होने के कई कारण हैं। इनके कारणों की पहचान इस संक्रमण के प्रकार एक्यूट या क्रॉनिक के आधार पर की जाती है। एक्यूट ब्लेफराइटिस अल्सरेटिव और नॉन अल्सरेटिव दो तरह के होते हैं।
अल्सरेटिव एक्यूट ब्लेफराइटिस सामान्य तौर पर बैक्टीरियल इंफेक्शन के कारण होता है। यह संक्रमण आमतौर पर स्टेफाइलोकोक्कल एवं मेराक्जेला बैक्टीरिया के कारण होता है। वहीं हर्पीस सिम्पलेक्स और वेरिसेल्ला जोस्टर वायरस का संक्रमण भी ब्लेफराइटिस का आसाधारण कारण है।

नॉन अल्सरेटिव एक्यूट ब्लेफराइटिस होने का सामान्य कारण एलर्जिक रिएक्शन होता है। इस तरह के रिएक्शन होने पर एटॉपिक ब्लेफरो डर्मेटाइटिस, सीजनल एलर्जिक ब्लेफरो कंजंक्टिवाइटिस और डर्मेटो ब्लेफरो कंजंक्टिवाइटिस नामक संक्रमण हो जाता है।

कैसे करें पहचान- आंखों की जांच व मरीज की हिस्ट्री पता की जाती है कि उसे कब, किस तरह के आंखों का संक्रमण हुआ था। उसके बाद आंखों की बाहर से जांच की जाती है। इसमें लिड स्ट्रक्चर, स्किन टेक्श्चर और आइलैश अपीयरेंस की जांच की जाती है। आईलिड के किनारे, आइलैशेज के बेस और मेल्बोमियन ग्लैंड ओपनिंग की माइक्रोस्कोप द्वारा जांच की जाती है। आंसू की क्वालिटी और मात्रा की भी जांच की जाती है।

लक्षण : ऐसा महसूस होना कि आंखों में कुछ चला गया है। आंखों में जलन होना। आंखों से पानी आना। आंखों या पलकों का लाल होना और उनका सूज जाना। आंखों का सूखना, स्पष्ट दिखाई न देना, आईलैशेज पर पपड़ी जम जाना और उसका कड़ा हो जाना। पलकें झपकने पर आंखों में भारीपन महसूस होना। इस तरह के लक्षण प्रायः सुबह नींद से उठने के बाद ज्यादा परेशान करते हैं।

प्रकार : आईलिड के किनारों की दिखावट यानी अपीयरेंस के आधार पर ब्लेफराइटिस के प्रकार का निर्धारण किया जाता है। इंटीरियर ब्लेफराइटिस आईलिड के बाहरी किनारों पर जहां आईलैशेज जुड़े होते हैं, को प्रभावित करता है। पोस्टीरियर ब्लेफराइटिस आईलिड के ऑयल ग्लैंड, जो आंखों की तरलता बनाए रखने के लिए ऑयल का सीक्रिशन करती हैं, की कार्यप्रणाली में बाधा डालता है। इस संक्रमण से आंखों की तरलता खत्म हो जाती है और वे सूख जाती हैं। इस प्रकार का संक्रमण बैक्टीरिया के पनपने के लिए अनुकूल होता है। इसके अलावा मुंहासे और बालों में रूसी भी बैक्टीरिया के पनपने के लिए जिम्मेदार होती हैं। यह संभव है कि एकसाथ ही हमारी आंखें एंटीरियर और पोस्टीरियर दोनों प्रकार के ब्लेफराइटिस से संक्रमित हो जाएं। लेकिन दोनों प्रकार के संक्रमण की गंभीरता में फर्क हो सकता है।

उपचार : ब्लेफराइटिस के उपचार के लिए एंटी-माइक्रो बायल्स का इस्तेमाल किया जाता है और पलकों की साफ-सफाई का पूरा ख्याल रखना जाता है। एरिथ्रोमाइसिन, एजिथ्रोमाइसिन, क्लोरैमफेनिकॉल और टेट्रासाइक्लिन आदि एंटीबायोटिक्स आई ड्रॉप के तौर पर आंखों में डाला जाता है। बिना डॉक्टर की सलाह के दवा नहीं लेनी चाहिए।
सही इलाज न होने पर यह गंभीर रूप धारण कर लेता है। इसके कारण पलकों के किनारे असमान हो जाते हैं। ऐसा अल्सर के कारण घाव से होता है। इतना ही नहीं, इस बीमारी को नजरअंदाज करने से ट्राइकिएसिस भी हो सकता है। क्रॉनिक ब्लेफराइटिस के कारण आईलैशेज भी कम हो जाते हैं। ब्लेफराइटिस से बचने के लिए पलकों की साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखना चाहिए और गंदे हाथों से आंखों को छूने या उसे रगड़ने से बचना चाहिए। इस बीमारी के उपचार में डॉक्टरी सलाह के साथ ही खुद के द्वारा आंखों की देखभाल बहुत महत्वपूर्ण होती है। जिन लोगों की पलकों में सूजन है, उन्हें उपचार के दौरान काॅस्मेटिक जैसे मस्कारा सहित आंखों के दूसरे मेकअप से बचना चाहिए।

37 प्रतिशत लोग आंखों की परेशानी की वजह से डॉक्टर की सलाह लेते हैं। इनमें से 47 प्रतिशत लोगों को ब्लेफराइटिस की शिकायत होती है।

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