Make My Tooth Jaunpur: An ISO 9001:2015 certified dental clinic

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Make My Tooth Jaunpur: An ISO 9001:2015 certified dental clinic Make My Tooth is an ISO 9001:2015 certified dental clinic in jaunpur.Here we provide best treatment

*सीओपीडी (COPD)*सीओपीडी (COPD) यानी क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज फेफड़ों की एक गंभीर और दीर्घकालिक बीमारी है, जिस...
19/11/2025

*सीओपीडी (COPD)*

सीओपीडी (COPD) यानी क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज फेफड़ों की एक गंभीर और दीर्घकालिक बीमारी है, जिसमें फेफड़ों की वायुमार्ग (airways) संकुचित हो जाती हैं और वायु प्रवाह में बार-बार रुकावट आती है, जिससे सांस लेना मुश्किल हो जाता है।

# # # सीओपीडी क्या है?
- यह फेफड़ों की प्रगतिशील सूजन की बीमारी है।
- इसमें प्रमुख रूप से क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस और एम्फिसीमा जैसी स्थितियाँ आती हैं।
- सीओपीडी का कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन लक्षणों को नियंत्रित किया जा सकता है।

# # # मुख्य कारण
- लम्बे समय तक तंबाकू या सिगरेट पीना।
- वायु प्रदूषण, धूल, रसोईघरों का धुआं, औद्योगिक प्रदूषण।
- कुछ मामलों में आनुवंशिक कारण भी हो सकते हैं।

# # # लक्षण
- सांस लेने में समस्या (खासकर शारीरिक श्रम के समय)।
- लगातार या बार-बार खांसी और बलगम बनना।
- सीने में जकड़न और थकान।

# # # रोकथाम और उपचार
- धूम्रपान न करें और धुएं से दूर रहें।
- डॉक्टर द्वारा सुझाए गए दवाओं और इन्हेलर का प्रयोग करें।
- सांस की एक्सरसाइज और फेफड़ों की जांच नियमित कराते रहें।

# # # विशेष जानकारी
- सीओपीडी में समय के साथ लक्षण बिगड़ते जाते हैं और मरीज को अस्पताल में भर्ती भी होना पड़ सकता है।
- इसके लिए समय रहते सही निदान व उपचार जरूरी है।

सीओपीडी एक ऐसी बीमारी है जिससे बचाव सतर्कता और जीवनशैली में बदलाव से संभव है, और सही इलाज से जीवन की गुणवत्ता बेहतर बनाई जा सकती है।

*रानी लक्ष्मीबाई*रानी लक्ष्मी बाई भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की अद्वितीय और महान वीरांगना थीं। उनका जन्म 19 नवंबर 1828 को...
19/11/2025

*रानी लक्ष्मीबाई*

रानी लक्ष्मी बाई भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की अद्वितीय और महान वीरांगना थीं। उनका जन्म 19 नवंबर 1828 को वाराणसी, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनका बचपन का नाम मणिकर्णिका था, और उन्हें प्यार से "मनु" भी कहा जाता था। उनकी माता का नाम भागीरथी बाई और पिता का नाम मोरोपंत तांबे था।

# # # झांसी की रानी का विवाह और संघर्ष
रानी लक्ष्मी बाई का विवाह 1842 में झांसी के मराठा शासक राजा गंगाधर राव निवालकर से हुआ, जिसके बाद वे झांसी की रानी बनीं। राजा गंगाधर राव की मृत्यु के बाद, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने झांसी को अपने साम्राज्य में मिलाने का प्रयास किया। इस अन्याय के विरोध में रानी लक्ष्मी बाई ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध की तैयारी शुरू की और अपनी सेना तैयार की जिसमें महिलाओं ने भी भाग लिया।

# # # 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका
1857 के स्वतंत्रता संग्राम में रानी लक्ष्मी बाई ने अंग्रेज़ सेना के खिलाफ बहादुरी से अपनी सेना का नेतृत्व किया। जब अंग्रेजों ने झांसी के किले पर हमला किया, तो रानी ने सात दिन तक वीरतापूर्वक प्रतिरोध किया। हार के बाद उन्होंने अपने बेटे दामोदर राव को पीठ पर बाँधकर, घोड़े पर सवार होकर झाँसी छोड़ दीं और अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर अंग्रेजों से संघर्ष जारी रखा।

# # # वीरगति और विरासत
रानी लक्ष्मी बाई ने 1858 में ग्वालियर के कोटा की सराय में अंग्रेज़ों के मुकाबले में अपने प्राणों का बलिदान दिया। युद्धभूमि में वे पुरुष वेश में तलवार लिए घोड़े पर सवार थीं। उनका योगदान और बलिदान आज भी भारतीय इतिहास में अमर है, और उनकी वीरता की मिसाल से सभी महिलाओं को साहस और प्रेरणा मिलती है।

रानी लक्ष्मी बाई का जीवन देशभक्ति, अद्वितीय साहस और मातृत्व का अनुपम उदाहरण है। उनकी गाथा आज भी हर भारतीय के दिल में स्थान रखती है।

*पद्म श्री दारा सिंह जी*दारा सिंह भारत के प्रसिद्ध पहलवान, अभिनेता और नेता थे, जिन्हें अपनी अपराजेय कुश्ती कला और फिल्मो...
19/11/2025

*पद्म श्री दारा सिंह जी*

दारा सिंह भारत के प्रसिद्ध पहलवान, अभिनेता और नेता थे, जिन्हें अपनी अपराजेय कुश्ती कला और फिल्मों में उल्लेखनीय योगदान के लिए जाना जाता है।

# # # जीवन परिचय
दारा सिंह का जन्म 19 नवम्बर 1928 को पंजाब के अमृतसर जिले के धर्मूचक गांव में हुआ था। उनका पूरा नाम दीदार सिंह रंधावा था। वे बचपन से ही कुश्ती में रुचि रखते थे और अपनी मजबूत काठी व मेहनत के कारण जल्दी ही लोगों के आकर्षण का केंद्र बन गए।

# # # कुश्ती में करियर
दारा सिंह ने अपने सक्रिय कुश्ती करियर में 500 से अधिक मुकाबले लड़े और सभी में विजय प्राप्त की, उन्हें कभी हार का सामना नहीं करना पड़ा। 1947 में वे सिंगापुर गए जहाँ उन्होंने मलेशिया के चैम्पियन तरलोक सिंह को हराया और अपना विजयी अभियान शुरू किया। 1959 में कामनवेल्थ कुश्ती चैम्पियनशिप में कनाडा के जॉर्ज गोरडियान्का और न्यूजीलैंड के जॉन डेसिल्वा को हराकर भारत का नाम रोशन किया। 29 मई 1968 को उन्होंने अमेरिका के विश्व चैंपियन लाऊ थेज को हराकर फ्रीस्टाइल कुश्ती के विश्व चैंपियन बने। उन्हें 'रुस्तम-ए-पंजाब' (1966) और 'रुस्तम-ए-हिंद' (1978) की उपाधि से नवाजा गया। 1983 में उन्होंने संन्यास लिया।

# # # अभिनय व अन्य योगदान
दारा सिंह ने कई हिंदी फिल्मों व टीवी धारावाहिकों में काम किया। 'रामायण' में 'हनुमान' की भूमिका ने उन्हें अपार लोकप्रियता दिलाई। वे 2003-2009 तक राज्यसभा के सदस्य भी रहे। उनके अभिनय और नेतृत्व की वजह से उन्हें कई सम्मान मिले।

# # # निधन
दारा सिंह का निधन 12 जुलाई 2012 को दिल का दौरा पड़ने के कारण मुम्बई में हुआ।

# # # खास तथ्य
- दारा सिंह ने 200 किलो वज़न वाले ऑस्ट्रेलियाई पहलवान 'किंग कॉन्ग' को रिंग में उठा लिया था, जिससे वे रातोंरात सुपरस्टार बन गए थे।
- उनकी तुलना अक्सर गामा पहलवान से ही होती है, दोनों को उनकी अजेयता के लिए जाना जाता है।

दारा सिंह भारतीय खेल और फिल्म जगत के एक प्रेरणास्रोत व्यक्तित्व माने जाते हैं।

07/11/2025

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