24/09/2025
562.2
*ॐ प्रभु रामलाल परब्रह्मणे नमः*
*ॐ प्रभु चन्द्रमोहन मम सद्गुरवे नमः*
*सिद्धयोग मासिक पत्रिका से उद्धृत*
*शाश्वत शान्ति का मार्ग*
गतांक से आगे.....
अब यह जिज्ञासा स्वयं होती है कि क्या ऐसी स्थिर-शक्ति सर्व साधारण को प्राप्त हो सकती है? अथवा यह कुछ इने-गिने भाग्यशाली जीवों की ही बपोती है ? कारण, प्रायः संसार में अशान्ति का साम्राज्य है। जीवमात्र में स्पर्धा, द्वेष, डाह, ईर्ष्या आदि दुर्गुण पाये जाते हैं। धनी निर्धन, साधु, असाधु, रोगी, निरोग, मूर्ख, विद्वान् सभी में एक प्रकार की वासना-चाह-तृष्णा विद्यमान है, जिसके कारण "कुतः साद्वलतातस्य यस्याग्निः कोटरेतरोः" की उक्ति के अनुसार स्थिर शान्ति रूप हरियाली प्रायः देखने में नहीं आती। इसके उत्तर में यही कहा जा सकता है कि -
*मनुष्याणां सहस्रषु, कश्चिद्यतति सिद्धये ।*
*यततामपि सिद्धानां, कश्चिन्मां वेत्ति तत्वतः ॥*
इस परम शान्ति की प्राप्ति रूप सिद्धि के लिए हजारों पुरुषों में कोई ही प्रयत्न करता है और प्रयत्न करने वालों में भी कोई ही उस परम शान्ति के आश्रम-धाम भगवान् को प्राप्त कर पाता है। कारण प्रयत्न की विषमता एवं विफलता ही देखी जाती है। हजारों विद्यार्थियों में कोई एक ही सर्व प्रथम पदवी का अधिकारी होता है। शाश्वत सुख अभिलाषी जनों में भी विरले ही कोई उसको पाते हैं। हां, यह प्राप्य सबको हो सकता है। शास्त्र व विश्व के इतिहास को देखने से यही निश्चत होता है कि सच्ची लगन से दृढ़ता के साथ अनवरत प्रयत्न द्वारा जो भी चाहे अपने अभीष्ट को प्राप्त कर सकता है। सर्व प्रथम आदि कवि वाल्मीकि का उदाहरण विद्यमान है। डाकू लुटेरे का पेशा करने वाला व्यक्ति जो नित्य अनेकों की शान्ति को सर्वथा भंग करता था, उसे स्वयं स्थायी शान्ति कैसे प्राप्त हो सकती थी ? परन्तु भगवान् की माया बड़ी बलवती है। वही व्यक्ति उस पेशे को त्याग कर शान्ति की खोज में अपना जीवन समर्पण करके अन्त में असीम शान्ति का भागी बन गया और संसार में एक आदर्श छोड़ गया कि जो कोई भी मानव चाहे वह कितना ही पापी हो, सच्ची लगन से आत्म- शुद्धि करके अपना महत्त्व समझना चाहेगा तो निश्चय ही उसको पा लेगा। उसका बनाया हुआ महाकाव्य विश्व साहित्य का आदि स्रोत हुआ । उपनिषद् में लिखा है- जिसने इस रहस्य को जाना और अनुभव किया वही परम शान्ति का भागी बन गया; तथा जो और कोई भी ऐसा करेगा, वह भी उसको पाकर कृत-कृत्य हो जायेगा- इसमें सन्देह नहीं है।
उक्त कथन से यह सिद्ध हो गया कि जो कोई भी सत्य की खोज करने का निश्चय करेगा वहीं उसे पा सकेगा ।
वर्तमान काल में सर्व देशीय मनुष्य की गतिविधि को विचारने से स्थायी शान्ति की प्राप्ति एक स्वप्न के समान प्रतीत होती है।कारण जिन देशों के प्रकृति पर आधिपत्य जमाकर नाना प्रकार के आविष्कारों द्वारा मानव जगत् को विक्षुब्ध कर दिया। घोर युद्धों द्वारा भीषण संहार, परमाणु बम सदृश सर्व संहारक आविष्कारों द्वारा उथल-पुथल, आदि घटनाओं से तो शान्ति केवल शब्द मात्र, एक सीमाबद्ध सी ही शेष रह गई हो, ऐसा प्रतीत होता है। ऐसी दशा में विदेशों में होने वाले शान्ति सम्मेलनों की ओर मनुष्य समाज टकटकी लगाकर अपने भविष्य की विजय में सन्देह भरी निराशामयी दृष्टि से देख रहा है। ऐसा होने पर आधुनिक समीक्षाओं के दृष्टिकोण से तो शाश्वत शान्ति का होना असम्भव तथा केवल कुछ व्यक्तियों के सीमित आशावाद का विषयमात्र है। यद्यपि यह सब कुछ ठीक है और समष्टि गत तथ्य है, तथापि यह आवश्यक नहीं है कि विश्व के क्षुब्ध होने पर सभी प्राणी क्षुब्ध हों। समुद्र के विक्षुब्ध होने भी वहां की चट्टानें ज्यों की त्यों अटल शान्त बनी रहती हैं। भयंकर आंधी-तूफानों में भी पत्थर के टुकड़े निश्चल पड़े रहते हैं। इसी प्रकार भय के होने पर भी कई जीव निर्भय रहते हैं। अशान्ति के दौर में उनकी शान्ति भंग नहीं होती । वे ही यथार्थ में स्थायी शान्ति के सर्वेसर्वा होते हैं। ऐसी ही शान्ति के लिये सर्व साधारण को प्रयत्नशील होना है तथा अपना जीवन सफल करना है, इसको पाने की खोज करना यही जीवन की सार्थकता है। "ततः पद तत्परिमार्गितव्यम्” इस सत्युक्ति का यही लक्ष्य है। इस पद को ढूंढ निकालने में ही जीवन की सार्थकता है।
भारतवर्ष के महान् आचार्यों ने यही पद प्राप्त किया है और उसी की प्राप्ति जीवन का मुख्य उद्देश्य बनाया है। यह आध्यात्मिक तत्व है, जिसका श्रद्धालु कर्मठ वीरों ने साक्षात् किया है तथा अब भी कर रहे हैं। इसी मार्ग पर स्वयं चलकर महान् पुरुष संसार को मार्ग दिखा रहे हैं। ऐसे विजयी, विशुद्ध जीवन को प्राप्त करके उस परम एवं चरम शान्ति को प्राप्त करना हमारा मुख्य कर्त्तव्य है यह मार्ग श्रद्धा भक्ति पूर्वक, अनन्यता से तत्पर होकर प्राप्त किया जाता है । माता गायत्री के पावन जाप से सकल ताप नष्ट होकर आनन्द स्वरूप स्व का ज्ञान होगा, फिर विस्मृति न होने देने के लिए परम सावधान रह कर "ओं द्योः शान्तिः" आदि भावना से नित्य नियम पूर्वक प्रार्थना करने से शाश्वत शान्ति का निश्चय ही साम्राज्य होगा ।
*।।इति।।*
योगीश्वर पादकमलेभ्यो नमः