जीवनदान होम्योपैथी हस्पताल

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जीवनदान होम्योपैथी हस्पताल ईलाज की सबसे गतिशील व कोमल कला एकमात्र होम्योपैथी चिकित्सा विज्ञान हैं

पति के साथ संभोग करने में ना सिर्फ शरीर को आनंद आता है बल्कि ये एक बहुत बड़ा कारण होता है इमोशनल जुड़ाव का, एक अच्छा संभ...
20/08/2024

पति के साथ संभोग करने में ना सिर्फ शरीर को आनंद आता है बल्कि ये एक बहुत बड़ा कारण होता है इमोशनल जुड़ाव का, एक अच्छा संभोग करने से पति हो या पत्नी दोनो के मन में असीम भरोसे और समर्पण की भावना जागती है जो की रिश्ते में मजबूती का कारण बनती है यही कारण है की कुछ भी हो हफ्ते में २-३ बार कम से कम ये क्रिया करनी चाहिए

पेशे से में बैगलोर के एक सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में जिनक्लॉजिस्ट हूं
अपनी पढ़ाई के साथ साथ मुझे ये बात की खुशी थी की नव विवाहित जोड़े और औरतों की जिंदगी बेहतर बनाने का मुझे सौभाग्य प्राप्त होगा

लेकिन जैसे हो पढ़ाई पूरी हुई मैने इस अस्पताल को ज्वाइन किया
पर मैं तब हैरान हो गई थी जब मैने देखा मेरे पेशेंट कोई नव विवाहित लड़किया नही थी

बल्कि १२ में पढ़ रही लड़किया, २५ वर्ष की अविवाहित लड़किया थी

एक लड़की मेरे पास आती है, ये मेरे अस्पताल का ३ महिना था, उसे ये समस्या थी की सम्भोग करते समय दर्द होता था

जब मैने बोला आप के पति आए हैं तो उसने बोला की मेरी शादी नही हुई मैने ज्यादा निजी जीवन में इंटरफेयर नही किया और मेडिसिन लिख के उसे दे दी

फिर एक लड़की आई जिसके अपनी उम्र पर्ची में २७ वर्ष लिखवाई थी
उसके पेट में कई दिनों से काफी दर्द था मैने जांच की और पता की उसकी बच्चेदानी में सूजन है
मैने बोला तुम्हारी उम्र कोई ज्यादा नही है फिर कैसे

उसने मासूमियत में बोला की पाता नही कैसे

पर डॉक्टर होने के नाते मुझे पता था की ये कैसे हुआ है मैने तुरंत उससे पूछा की तुम ipill जैसी दवाई का सेवन करती हो ?? उसने बोला हां एक दो बार किया है

फिर मैने और जोर से पूछा सिर्फ एक दो बार ?? सही बताओ नही तो दावा फायदा नहीं करेगी

फिर उसने बोला की जब भी वो संबंध बनाती थी, तो 2nd दिन एक pill लेती थी और उसने लगभग हफ्ते में २ pill ली है और ये पिछले एक वर्ष से करते हुए आ रही है

उसने जब ये बोला तो मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर था
मैने बोला अपने पति को बुलाओ उन्हें बताती हूं की कैसे दावा देनी है,
वो चुप थी फिर बोलती है शादी नही हुई हैं
मैने बोला जब शादी ही नहीं तो किसके साथ तो बताया बॉयफ्रेंड है

मैने बोला फोन करो उसे बुलाओ पहले काफी मना किया उसने लेकिन जोर डालने पर वो आया

डर के मारे थर थर कांप रहा था
पहले तो मैने उसे रिलैक्स किया फिर बोला तुम तो काफी कम उम्र के हो उसने बोला अभी मैं १२ में पढ़ता हूं और मेरी गर्लफ्रेंड साथ में ही है

मुझे फिर गुस्सा आया क्यों की उसने अपनी उम्र २७ वर्ष बताई थी और इसी के आधार पर दावा का डोज और पॉवर निर्धारित होता है

फिर उससे मैने बहुत कठोर शब्दों में पूछा तुम्हारी असली उम्र कितनी है तो उसने बोला १७ war

अब सोचिए जो लड़की मात्र १७ वर्ष की उम्र में i pill जैसे जहर खा रही है क्या वो जिंदगी में कभी माँ बन पाएगी

मैने उसे बोला की तुम अपनी माँ का नंबर दो तो उसने मना किया फिर मैने भी बोला पता तो चल गया है की तुम किस स्कूल में की हो स्कूल से नंबर निकाल के तुम्हारी मां को फोन कर दूंगी नही तो उन्हें बुलाओ

इतना सुनने के बाद वो रोने लगी और बोला माँ को मत बताना फिर काफी देर बात करने और उसकी काउंसलिंग करने के बाद मैने उसे सहज किया ताकि वो मुझसे खुल के बात कर सके

मैने सबसे पहले पूछा की ये बताओ तुम्हे i pill जैसे दवा किसने खाने को कहा ??

उसने बोला टीवी पर विज्ञापन देखा था तो मेडिकल शॉप से ले लिया करती थी

फिर मैं बोला की तुम निरोध का इस्तेमाल भी कर सकती थी फिर दावा क्यों लेना,

उसका जवाब था की निरोध का इस्तेमाल करती थी फिर भी मन में डर रहता था, की प्रेगनेंट ना हो जाऊं

फिर मैने बोला जब मन में डर था तो अभी पढ़ाई की उम्र में ये सब क्यों करने गई

उसने बोला वेब सीरीज, और इंटरनेट पर ऐसी वीडियो देखने के बाद मन करता था, करने का फिर कुछ सहेलियों ने भी किया और उन्होंने बताया की कैसागता है
इस लिए इसे जानने के लिए कर लिया

मैने बोला स्कूल के बाद घर घर से स्कूल तो कहां और कैसे करती थी

उसका जवाब था जब दोस्तों के साथ पार्टी करने जाती तो १ घंटा पार्टी होती उसके बाद सब अपने अपने वाले के साथ होटल में चले जाते थे

फिर मैने बोला की क्या तुम्हारी माँ को इस बात की फिक्र नहीं होती

उसने बोला मम्मी फोन पर व्यस्त रहती इतना ध्यान नहीं देती

मैने सोचा किसको दोष दिया जाए ??

टीवी विज्ञापन वाले जो खुले तौर पर बिना किसी जानकारी की जहर वाली गोली बेच रहे हैं

या फिर गंदी फिल्म रील और वेबसीरेज बनाने वाले जिन्हे देख के बच्चे भी इस और आकर्षित होते हैं

या हमारा एजुकेशन सिस्टम जिसमे सेक्स शिक्षा सही से दी नही जाति

या वो होटल जो नाबलिको को भी अपने यहां एंट्री देती हैं

या फिर वो मॉर्डन मां जिसे फोन के आगे कुछ नहीं दिखाई देता

किसी एक को रोकना आसान है लेकिन इन जंजाल को रोकना नही

१२ में पढ़ने वाली उस बच्ची का १ वर्ष इलाज किया गया, ठीक ना होने पर उसके बच्चेदानी को बाहर निकाल दिया गया जिससे उसकी जान बच सके

इसके पीछे कारण इंजेक्शन बताया

अब वो बच्ची जिंदगी में कभी माँ नही बन सकती है,

एक डॉक्टर होने के नाते मैं चाहती हूँ की इस पोस्ट को पढ़ने वाला हर व्यक्ति इसे शेयर करे हर जगह, क्यों की हम खुद भी नही पता, की हमारी बहन और बेटियां पर्सनल लेवल पर क्या कर रही हैं, ना हम खुल कर उनसे इस बारे में बात कर सकते हैं

पर आप के इस शेयर से बहुत उम्मीद है की ये बात उन तक पहुंच जाए

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#कहानी #लाइफ #स्टोरी #हिंदी #कहानी

जाने हिन्दुधर्म के सोलह संस्कारों के बारे में?एक विस्तृत प्रस्तुति,,,,,,,,हिन्दू धर्म में सोलह संस्कारों (षोडश संस्कार) ...
23/07/2024

जाने हिन्दुधर्म के सोलह संस्कारों के बारे में?एक विस्तृत प्रस्तुति,,,,,,,,

हिन्दू धर्म में सोलह संस्कारों (षोडश संस्कार) का उल्लेख किया जाता है जो मानव को उसके गर्भ में जाने से लेकर मृत्यु के बाद तक किए जाते हैं। इनमें से विवाह, यज्ञोपवीत इत्यादि संस्कार बड़े धूमधाम से मनाये जाते हैं। वर्तमान समय में सनातन धर्म या हिन्दू धर्म में गर्भधान से मृत्यु तक सोलह संस्कार होते है।

हिन्दू संस्कार का इतिहास,,,,,,,,,,प्राचीन काल में प्रत्येक कार्य संस्कार से आरम्भ होता था। उस समय संस्कारों की संख्या भी लगभग चालीस थी। जैसे-जैसे समय बदलता गया तथा व्यस्तता बढती गई तो कुछ संस्कार स्वत: विलुप्त हो गये। इस प्रकार समयानुसार संशोधित होकर संस्कारों की संख्या निर्धारित होती गई।

गौतम स्मृति में चालीस प्रकार के संस्कारों का उल्लेख है। महर्षि अंगिरा ने इनका अंतर्भाव पच्चीस संस्कारों में किया। व्यास स्मृति में सोलह संस्कारों का वर्णन हुआ है। हमारे धर्मशास्त्रों में भी मुख्य रूप से सोलह संस्कारों की व्याख्या की गई है। इनमें पहला गर्भाधान संस्कार और मृत्यु के उपरांत अंत्येष्टि अंतिम संस्कार है। गर्भाधान के बाद पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण ये सभी संस्कार नवजात का दैवी जगत् से संबंध स्थापना के लिये किये जाते हैं।

नामकरण के बाद चूड़ाकर्म और यज्ञोपवीत संस्कार होता है। इसके बाद विवाह संस्कार होता है। यह गृहस्थ जीवन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण संस्कार है। हिन्दू धर्म में स्त्री और पुरुष दोनों के लिये यह सबसे बडा संस्कार है, जो जन्म-जन्मान्तर का होता है।

विभिन्न धर्मग्रंथों में संस्कारों के क्रम में थोडा-बहुत अन्तर है, लेकिन प्रचलित संस्कारों के क्रम में गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूड़ाकर्म, विद्यारंभ, कर्णवेध, यज्ञोपवीत, वेदारम्भ, केशान्त, समावर्तन, विवाह तथा अन्त्येष्टि ही मान्य है।

गर्भाधान से विद्यारंभ तक के संस्कारों को गर्भ संस्कार भी कहते हैं। इनमें पहले तीन (गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन) को अन्तर्गर्भ संस्कार तथा इसके बाद के छह संस्कारों को बहिर्गर्भ संस्कार कहते हैं। गर्भ संस्कार को दोष मार्जन अथवा शोधक संस्कार भी कहा जाता है। दोष मार्जन संस्कार का तात्पर्य यह है कि शिशु के पूर्व जन्मों से आये धर्म एवं कर्म से सम्बन्धित दोषों तथा गर्भ में आई विकृतियों के मार्जन के लिये संस्कार किये जाते हैं। बाद वाले छह संस्कारों को गुणाधान संस्कार कहा जाता है।

गर्भाधान संस्कार,,,,, हमारे शास्त्रों में मान्य सोलह संस्कारों में गर्भाधान पहला है। गृहस्थ जीवन में प्रवेश के उपरान्त प्रथम क‌र्त्तव्य के रूप में इस संस्कार को मान्यता दी गई है। गार्हस्थ्य जीवन का प्रमुख उद्देश्य श्रेष्ठ सन्तानोत्पत्ति है। उत्तम संतति की इच्छा रखनेवाले माता-पिता को गर्भाधान से पूर्व अपने तन और मन की पवित्रता के लिये यह संस्कार करना चाहिए। वैदिक काल में यह संस्कार अति महत्वपूर्ण समझा जाता था।

पुंसवन संस्कार,,,,गर्भस्थ शिशु के मानसिक विकास की दृष्टि से यह संस्कार उपयोगी समझा जाता है। गर्भाधान के दूसरे या तीसरे महीने में इस संस्कार को करने का विधान है। हमारे मनीषियों ने सन्तानोत्कर्ष के उद्देश्य से किये जाने वाले इस संस्कार को अनिवार्य माना है। गर्भस्थ शिशु से सम्बन्धित इस संस्कार को शुभ नक्षत्र में सम्पन्न किया जाता है। पुंसवन संस्कार का प्रयोजन स्वस्थ एवं उत्तम संतति को जन्म देना है। विशेष तिथि एवं ग्रहों की गणना के आधार पर ही गर्भधान करना उचित माना गया है।

सीमन्तोन्नयन संस्कार,,,,, सीमन्तोन्नयन को सीमन्तकरण अथवा सीमन्त संस्कार भी कहते हैं। सीमन्तोन्नयन का अभिप्राय है सौभाग्य संपन्न होना। गर्भपात रोकने के साथ-साथ गर्भस्थ शिशु एवं उसकी माता की रक्षा करना भी इस संस्कार का मुख्य उद्देश्य है। इस संस्कार के माध्यम से गर्भिणी स्त्री का मन प्रसन्न रखने के लिये सौभाग्यवती स्त्रियां गर्भवती की मांग भरती हैं। यह संस्कार गर्भ धारण के छठे अथवा आठवें महीने में होता है।

जातकर्म संस्कार,,,,नवजात शिशु के नालच्छेदन से पूर्व इस संस्कार को करने का विधान है। इस दैवी जगत् से प्रत्यक्ष सम्पर्क में आनेवाले बालक को मेधा, बल एवं दीर्घायु के लिये स्वर्ण खण्ड से मधु एवं घृत वैदिक मंत्रों के उच्चारण के साथ चटाया जाता है। यह संस्कार विशेष मन्त्रों एवं विधि से किया जाता है। दो बूंद घी तथा छह बूंद शहद का सम्मिश्रण अभिमंत्रित कर चटाने के बाद पिता यज्ञ करता है तथा नौ मन्त्रों का विशेष रूप से उच्चारण के बाद बालक के बुद्धिमान, बलवान, स्वस्थ एवं दीर्घजीवी होने की प्रार्थना करता है। इसके बाद माता बालक को स्तनपान कराती है।

नामकरण संस्कार,,,,, जन्म के ग्यारहवें दिन यह संस्कार होता है। हमारे धर्माचार्यो ने जन्म के दस दिन तक अशौच (सूतक) माना है। इसलिये यह संस्कार ग्यारहवें दिन करने का विधान है। महर्षि याज्ञवल्क्य का भी यही मत है, लेकिन अनेक कर्मकाण्डी विद्वान इस संस्कार को शुभ नक्षत्र अथवा शुभ दिन में करना उचित मानते हैं।

नामकरण संस्कार का सनातन धर्म में अधिक महत्व है। हमारे मनीषियों ने नाम का प्रभाव इसलिये भी अधिक बताया है क्योंकि यह व्यक्तित्व के विकास में सहायक होता है। तभी तो यह कहा गया है राम से बड़ा राम का नाम हमारे धर्म विज्ञानियों ने बहुत शोध कर नामकरण संस्कार का आविष्कार किया। ज्योतिष विज्ञान तो नाम के आधार पर ही भविष्य की रूपरेखा तैयार करता है।

निष्क्रमण संस्क,,,,, दैवी जगत् से शिशु की प्रगाढ़ता बढ़े तथा ब्रह्माजी की सृष्टि से वह अच्छी तरह परिचित होकर दीर्घकाल तक धर्म और मर्यादा की रक्षा करते हुए इस लोक का भोग करे यही इस संस्कार का मुख्य उद्दे निष्क्रमण का अभिप्राय है बाहर निकलना। इस संस्कार में शिशु को सूर्य तथा चन्द्रमा की ज्योति दिखाने का विधान है। भगवान भास्कर के तेज तथा चन्द्रमा की शीतलता से शिशु को अवगत कराना ही इसका उद्देश्य है। इसके पीछे मनीषियों की शिशु को तेजस्वी तथा विनम्र बनाने की परिकल्पना होगी। उस दिन देवी-देवताओं के दर्शन तथा उनसे शिशु के दीर्घ एवं यशस्वी जीवन के लिये आशीर्वाद ग्रहण किया जाता है। जन्म के चौथे महीने इस संस्कार को करने का विधान है। तीन माह तक शिशु का शरीर बाहरी वातावरण यथा तेज धूप, तेज हवा आदि के अनुकूल नहीं होता है इसलिये प्राय: तीन मास तक उसे बहुत सावधानी से घर में रखना चाहिए। इसके बाद धीरे-धीरे उसे बाहरी वातावरण के संपर्क में आने देना चाहिए। इस संस्कार का तात्पर्य यही है कि शिशु समाज के सम्पर्क में आकर सामाजिक परिस्थितियों से अवगत हो।

अन्नप्राशन संस्कार,,,,,, इस संस्कार का उद्देश्य शिशु के शारीरिक व मानसिक विकास पर ध्यान केन्द्रित करना है। अन्नप्राशन का स्पष्ट अर्थ है कि शिशु जो अब तक पेय पदार्थो विशेषकर दूध पर आधारित था अब अन्न जिसे शास्त्रों में प्राण कहा गया है उसको ग्रहण कर शारीरिक व मानसिक रूप से अपने को बलवान व प्रबुद्ध बनाए। तन और मन को सुदृढ़ बनाने में अन्न का सर्वाधिक योगदान है। शुद्ध, सात्विक एवं पौष्टिक आहार से ही तन स्वस्थ रहता है और स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन का निवास होता है। आहार शुद्ध होने पर ही अन्त:करण शुद्ध होता है तथा मन, बुद्धि, आत्मा सबका पोषण होता है। इसलिये इस संस्कार का हमारे जीवन में विशेष महत्व है।

हमारे धर्माचार्यो ने अन्नप्राशन के लिये जन्म से छठे महीने को उपयुक्त माना है। छठे मास में शुभ नक्षत्र एवं शुभ दिन देखकर यह संस्कार करना चाहिए। खीर और मिठाई से शिशु के अन्नग्रहण को शुभ माना गया है। अमृत: क्षीरभोजनम् हमारे शास्त्रों में खीर को अमृत के समान उत्तम माना गया है।

चूड़ाकर्म संस्कार,,,,,, चूड़ाकर्म को मुंडन संस्कार भी कहा जाता है। हमारे आचार्यो ने बालक के पहले, तीसरे या पांचवें वर्ष में इस संस्कार को करने का विधान बताया है। इस संस्कार के पीछे शुाचिता और बौद्धिक विकास की परिकल्पना हमारे मनीषियों के मन में होगी। मुंडन संस्कार का अभिप्राय है कि जन्म के समय उत्पन्न अपवित्र बालों को हटाकर बालक को प्रखर बनाना है। नौ माह तक गर्भ में रहने के कारण कई दूषित किटाणु उसके बालों में रहते हैं। मुंडन संस्कार से इन दोषों का सफाया होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस संस्कार को शुभ मुहूर्त में करने का विधान है। वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ यह संस्कार सम्पन्न होता है।

विद्यारंभ संस्कार विद्यारम्भ संस्कार के क्रम के बारे में हमारे आचार्यो में मतभिन्नता है। कुछ आचार्यो का मत है कि अन्नप्राशन के बाद विद्यारम्भ संस्कार होना चाहिये तो कुछ चूड़ाकर्म के बाद इस संस्कार को उपयुक्त मानते हैं। मेरी राय में अन्नप्राशन के समय शिशु बोलना भी शुरू नहीं कर पाता है और चूड़ाकर्म तक बच्चों में सीखने की प्रवृत्ति जगने लगती है। इसलिये चूड़ाकर्म के बाद ही विद्यारम्भ संस्कार उपयुक्त लगता है। विद्यारम्भ का अभिप्राय बालक को शिक्षा के प्रारम्भिक स्तर से परिचित कराना है। प्राचीन काल में जब गुरुकुल की परम्परा थी तो बालक को वेदाध्ययन के लिये भेजने से पहले घर में अक्षर बोध कराया जाता था। माँ-बाप तथा गुरुजन पहले उसे मौखिक रूप से श्लोक, पौराणिक कथायें आदि का अभ्यास करा दिया करते थे ताकि गुरुकुल में कठिनाई न हो। हमारा शास्त्र विद्यानुरागी है। शास्त्र की उक्ति है सा विद्या या विमुक्तये अर्थात् विद्या वही है जो मुक्ति दिला सके। विद्या अथवा ज्ञान ही मनुष्य की आत्मिक उन्नति का साधन है। शुभ मुहूर्त में ही विद्यारम्भ संस्कार करना चाहिये।

कर्णवेध संस्कार,,,, हमारे मनीषियों ने सभी संस्कारों को वैज्ञानिक कसौटी पर कसने के बाद ही प्रारम्भ किया है। कर्णवेध संस्कार का आधार बिल्कुल वैज्ञानिक है। बालक की शारीरिक व्याधि से रक्षा ही इस संस्कार का मूल उद्देश्य है। प्रकृति प्रदत्त इस शरीर के सारे अंग महत्वपूर्ण हैं। कान हमारे श्रवण द्वार हैं। कर्ण वेधन से व्याधियां दूर होती हैं तथा श्रवण शक्ति भी बढ़ती है। इसके साथ ही कानों में आभूषण हमारे सौन्दर्य बोध का परिचायक भी है।

यज्ञोपवीत के पूर्व इस संस्कार को करने का विधान है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शुक्ल पक्ष के शुभ मुहूर्त में इस संस्कार का सम्पादन श्रेयस्कर है।

यज्ञोपवीत संस्कार,,,,, यज्ञोपवीत अथवा उपनयन बौद्धिक विकास के लिये सर्वाधिक महत्वपूर्ण संस्कार है। धार्मिक और आधात्मिक उन्नति का इस संस्कार में पूर्णरूपेण समावेश है। हमारे मनीषियों ने इस संस्कार के माध्यम से वेदमाता गायत्री को आत्मसात करने का प्रावधान दिया है। आधुनिक युग में भी गायत्री मंत्र पर विशेष शोध हो चुका है। गायत्री सर्वाधिक शक्तिशाली मंत्र है।

यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं अर्थात् यज्ञोपवीत जिसे जनेऊ भी कहा जाता है अत्यन्त पवित्र है। प्रजापति ने स्वाभाविक रूप से इसका निर्माण किया है। यह आयु को बढ़ानेवाला, बल और तेज प्रदान करनेवाला है। इस संस्कार के बारे में हमारे धर्मशास्त्रों में विशेष उल्लेख है। यज्ञोपवीत धारण का वैज्ञानिक महत्व भी है। प्राचीन काल में जब गुरुकुल की परम्परा थी उस समय प्राय: आठ वर्ष की उम्र में यज्ञोपवीत संस्कार सम्पन्न हो जाता था। इसके बाद बालक विशेष अध्ययन के लिये गुरुकुल जाता था। यज्ञोपवीत से ही बालक को ब्रह्मचर्य की दीक्षा दी जाती थी जिसका पालन गृहस्थाश्रम में आने से पूर्व तक किया जाता था। इस संस्कार का उद्देश्य संयमित जीवन के साथ आत्मिक विकास में रत रहने के लिये बालक को प्रेरित करना है।

वेदारंभ संस्कार,,,,, ज्ञानार्जन से सम्बन्धित है यह संस्कार। वेद का अर्थ होता है ज्ञान और वेदारम्भ के माध्यम से बालक अब ज्ञान को अपने अन्दर समाविष्ट करना शुरू करे यही अभिप्राय है इस संस्कार का। शास्त्रों में ज्ञान से बढ़कर दूसरा कोई प्रकाश नहीं समझा गया है। स्पष्ट है कि प्राचीन काल में यह संस्कार मनुष्य के जीवन में विशेष महत्व रखता था। यज्ञोपवीत के बाद बालकों को वेदों का अध्ययन एवं विशिष्ट ज्ञान से परिचित होने के लिये योग्य आचार्यो के पास गुरुकुलों में भेजा जाता था। वेदारम्भ से पहले आचार्य अपने शिष्यों को ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने एवं संयमित जीवन जीने की प्रतिज्ञा कराते थे तथा उसकी परीक्षा लेने के बाद ही वेदाध्ययन कराते थे। असंयमित जीवन जीने वाले वेदाध्ययन के अधिकारी नहीं माने जाते थे। हमारे चारों वेद ज्ञान के अक्षुण्ण भंडार हैं।

केशांत संस्कार,,, गुरुकुल में वेदाध्ययन पूर्ण कर लेने पर आचार्य के समक्ष यह संस्कार सम्पन्न किया जाता था। वस्तुत: यह संस्कार गुरुकुल से विदाई लेने तथा गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने का उपक्रम है। वेद-पुराणों एवं विभिन्न विषयों में पारंगत होने के बाद ब्रह्मचारी के समावर्तन संस्कार के पूर्व बालों की सफाई की जाती थी तथा उसे स्नान कराकर स्नातक की उपाधि दी जाती थी। केशान्त संस्कार शुभ मुहूर्त में किया जाता था।

समावर्तन संस्कार,,,,, गुरुकुल से विदाई लेने से पूर्व शिष्य का समावर्तन संस्कार होता था। इस संस्कार से पूर्व ब्रह्मचारी का केशान्त संस्कार होता था और फिर उसे स्नान कराया जाता था। यह स्नान समावर्तन संस्कार के तहत होता था। इसमें सुगन्धित पदार्थो एवं औषधादि युक्त जल से भरे हुए वेदी के उत्तर भाग में आठ घड़ों के जल से स्नान करने का विधान है। यह स्नान विशेष मन्त्रोच्चारण के साथ होता था। इसके बाद ब्रह्मचारी मेखला व दण्ड को छोड़ देता था जिसे यज्ञोपवीत के समय धारण कराया जाता था। इस संस्कार के बाद उसे विद्या स्नातक की उपाधि आचार्य देते थे। इस उपाधि से वह सगर्व गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने का अधिकारी समझा जाता था। सुन्दर वस्त्र व आभूषण धारण करता था तथा आचार्यो एवं गुरुजनों से आशीर्वाद ग्रहण कर अपने घर के लिये विदा होता था।

विवाह संस्कार,,,, प्राचीन काल से ही स्त्री और पुरुष दोनों के लिये यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण संस्कार है। यज्ञोपवीत से समावर्तन संस्कार तक ब्रह्मचर्य व्रत के पालन का हमारे शास्त्रों में विधान है। वेदाध्ययन के बाद जब युवक में सामाजिक परम्परा निर्वाह करने की क्षमता व परिपक्वता आ जाती थी तो उसे गृर्हस्थ्य धर्म में प्रवेश कराया जाता था। लगभग पच्चीस वर्ष तक ब्रह्मचर्य का व्रत का पालन करने के बाद युवक परिणय सूत्र में बंधता था।

हमारे शास्त्रों में आठ प्रकार के विवाहों का उल्लेख है- ब्राह्म, दैव, आर्ष, प्रजापत्य, आसुर, गन्धर्व, राक्षस एवं पैशाच। वैदिक काल में ये सभी प्रथाएं प्रचलित थीं। समय के अनुसार इनका स्वरूप बदलता गया। वैदिक काल से पूर्व जब हमारा समाज संगठित नहीं था तो उस समय उच्छृंखल यौनाचार था। हमारे मनीषियों ने इस उच्छृंखलता को समाप्त करने के लिये विवाह संस्कार की स्थापना करके समाज को संगठित एवं नियमबद्ध करने का प्रयास किया। आज उन्हीं के प्रयासों का परिणाम है कि हमारा समाज सभ्य और सुसंस्कृत है।

अन्त्येष्टि संस्कार,,, अन्त्येष्टि को अंतिम अथवा अग्नि परिग्रह संस्कार भी कहा जाता है। आत्मा में अग्नि का आधान करना ही अग्नि परिग्रह है। धर्म शास्त्रों की मान्यता है कि मृत शरीर की विधिवत् क्रिया करने से जीव की अतृप्त वासनायें शान्त हो जाती हैं। हमारे शास्त्रों में बहुत ही सहज ढंग से इहलोक और परलोक की परिकल्पना की गयी है। जब तक जीव शरीर धारण कर इहलोक में निवास करता है तो वह विभिन्न कर्मो से बंधा रहता है। प्राण छूटने पर वह इस लोक को छोड़ देता है। उसके बाद की परिकल्पना में विभिन्न लोकों के अलावा मोक्ष या निर्वाण है। मनुष्य अपने कर्मो के अनुसार फल भोगता है। इसी परिकल्पना के तहत मृत देह की विधिवत क्रिया होती है।

अजीनोमोटो को हम इसके रासायनिक  नाम मोनो सोडियम ग्लूटामेट के नाम से भी जानते है ! इसको संक्षिप्त में हम एमएसजी नाम से भी ...
27/06/2024

अजीनोमोटो
को हम इसके रासायनिक नाम मोनो सोडियम ग्लूटामेट के नाम से भी जानते है !
इसको संक्षिप्त में हम एमएसजी नाम से भी जानते है. ..
अजीनोमोटो की कंपनी का मुख्य कार्यालय चोओ,
टोक्यो में स्थित है !
यह 26 देशों में काम करता है.
इसका इस्तेमाल ज्यादातर चीन की खाद्य पदार्थो में
खाने के स्वाद को बढ़ाने के लिए किया जाता है. ..

पहले हम अधिकांशतः घर पर बने खाने को खाते थे,
लेकिन अब लोग चिप्स, पिज्ज़ा और मैगी जैसे खाने को ज्यादा पसंद करने लगे हैं !
जिनमे अजीनोमोटो का इस्तेमाल होता है.
इसका इस्तेमाल कई डिब्बाबंद फ़ास्ट फ़ूड सोया सॉस, टोमेटो सॉस, संरक्षित मछली जैसे सभी संरक्षित खाद्य उत्पादों में किया जाता है.

अजीनोमोटो
को पहली बार 1909 में जापानी जैव रसायनज्ञ किकुनाए इकेडा के द्वारा खोजा गया था.
उन्होने इसके स्वाद को मामी के रूप में पहचाना जिसका अर्थ होता है
सुखद स्वाद.
कई जापानी सूप में इसका इस्तेमाल होता है.
इसका स्वाद थोडा नमक के जैसा होता है. देखने में यह चमकीले छोटे क्रिस्टल के जैसा होता है.
इसमें प्राकृतिक रूप से एमिनो एसिड पाया जाता है. ..

किन्तु
आज दुनिया के हर कुक खाने में स्वाद को बढ़ाने के लिए इसका इस्तेमाल करते है.
एमएसजी का इस्तेमाल सुरक्षित माना गया है,
इसका
इस्तेमाल पहले चीन की रसोई में होता था,
लेकिन अब ये धीरे धीरे हमारे भी घरों की रसोई में अपना पैठ बना चुका है.
अपने
समय को बचाने के लिए जो हम 2 मिनट में नुडल्स को तैयार कर ग्रहण करते है इस तरह के अधिकांशतः खाद्य पदार्थो में यह पाया जाता है जो धीरे धीरे हमारे शरीर को नुकसान पहुंचाते है. ..

यह
एक प्रकार से
नशे की लत जैसा होता है अगर आप एक बार अजीनोमोटो युक्त भोजन को ग्रहण कर लेते है,

तो
आप उस भोजन को नियमित खाने की इच्छा रखने लगेंगे. ..

इसके
सेवन से शरीर में इन्सुलिन की मात्रा बढ़ जाती है. ..

जब
आप एमएसजी मिले पदार्थो का सेवन करते है, तो रक्त में ग्लूटामेट का स्तर बढ़ जाता है.

जिस की
वजह से इसका शरीर पर गंभीर प्रभाव पड़ता है.

एमएसजी
को एक धीमा हत्यारा🔥 भी कहा जा सकता है !!

यह
आँखों की रेटिना को नुकसान पहुंचाता है साथ ही यह थायराईड और कैंसर जैसे रोगों के लक्षण पैदा कर सकता है.

अजीनोमोटो
से युक्त खाद्य पदार्थो का अगर नियमित सेवन किया जाये तो यह माइग्रेन पैदा कर सकता है जिसको हम अधकपाली भी कहते है.
इस बीमारी में आधे सिर में हल्का हल्का दर्द होते रहता है.

एमएसजी
के अधिक सेवन से मोटापे के बढ़ने का खतरा हमेशा बना रहता है हमारे शरीर में मौजूद लेप्टिन हॉर्मोन,
हमे भोजन के अधिक सेवन को रोकने के लिए हमारे मस्तिष्क को संकेत देते है.

अजीनोमोटो के सेवन से ये प्रभावित हो सकता है जिस वजह से हम ज्यादा भोजन कर जल्द ही मोटापे से ग्रस्त हो सकते है. ..

खैर
फास्ट फूड के तो सभी दीवाने हैं ही !!

बकिया जो है वो तो हइये है . ..

21/02/2024
मंदिर की पैड़ीबड़े बुजुर्ग कहते हैं कि जब भी किसी मंदिर में दर्शन के लिए जाएं तो दर्शन करने के बाद बाहर आकर मंदिर की पेडी...
29/01/2024

मंदिर की पैड़ी

बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि जब भी किसी मंदिर में दर्शन के लिए जाएं तो दर्शन करने के बाद बाहर आकर मंदिर की पेडी या ऑटले पर थोड़ी देर बैठते हैं । क्या आप जानते हैं इस परंपरा का क्या कारण है?

आजकल तो लोग मंदिर की पैड़ी पर बैठकर अपने घर की व्यापार की राजनीति की चर्चा करते हैं परंतु यह प्राचीन परंपरा एक विशेष उद्देश्य के लिए बनाई गई । वास्तव में मंदिर की पैड़ी पर बैठ कर के हमें एक श्लोक बोलना चाहिए। यह श्लोक आजकल के लोग भूल गए हैं।
आप इस लोक को सुनें और आने वाली पीढ़ी को भी इसे बताएं।

यह श्लोक इस प्रकार है -

🚩अनायासेन मरणम् ,बिना देन्येन जीवनम्।
🚩देहान्त तव सानिध्यम्, देहि मे परमेश्वरम् ।।

इस श्लोक का अर्थ है-
🔱 अनायासेन मरणम्...... अर्थात बिना तकलीफ के हमारी मृत्यु हो और हम कभी भी बीमार होकर बिस्तर पर पड़े पड़े ,कष्ट उठाकर मृत्यु को प्राप्त ना हो चलते फिरते ही हमारे प्राण निकल जाएं ।

🔱 बिना देन्येन जीवनम्......... अर्थात परवशता का जीवन ना हो मतलब हमें कभी किसी के सहारे ना पड़े रहना पड़े। जैसे कि लकवा हो जाने पर व्यक्ति दूसरे पर आश्रित हो जाता है वैसे परवश या बेबस ना हो । ठाकुर जी की कृपा से बिना भीख के ही जीवन बसर हो सके ।

🔱 देहांते तव सानिध्यम ........अर्थात जब भी मृत्यु हो तब भगवान के सम्मुख हो। जैसे भीष्म पितामह की मृत्यु के समय स्वयं ठाकुर जी उनके सम्मुख जाकर खड़े हो गए। उनके दर्शन करते हुए प्राण निकले ।

🔱 देहि में परमेशवरम्..... हे परमेश्वर ऐसा वरदान हमें देना ।

यह प्रार्थना करें गाड़ी ,लाडी ,लड़का ,लड़की, पति, पत्नी ,घर धन यह नहीं मांगना है यह तो भगवान आप की पात्रता के हिसाब से खुद आपको देते हैं । इसीलिए दर्शन करने के बाद बैठकर यह प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए ।
यह प्रार्थना है, याचना नहीं है । याचना सांसारिक पदार्थों के लिए होती है जैसे कि घर, व्यापार, नौकरी ,पुत्र ,पुत्री ,सांसारिक सुख, धन या अन्य बातों के लिए जो मांग की जाती है वह याचना है वह भीख है।

हम प्रार्थना करते हैं प्रार्थना का विशेष अर्थ होता है अर्थात विशिष्ट, श्रेष्ठ । अर्थना अर्थात निवेदन। ठाकुर जी से प्रार्थना करें और प्रार्थना क्या करना है ,यह श्लोक बोलना है।

सब से जरूरी बात
जब हम मंदिर में दर्शन करने जाते हैं तो खुली आंखों से भगवान को देखना चाहिए, निहारना चाहिए । उनके दर्शन करना चाहिए। कुछ लोग वहां आंखें बंद करके खड़े रहते हैं । आंखें बंद क्यों करना हम तो दर्शन करने आए हैं । भगवान के स्वरूप का, श्री चरणों का ,मुखारविंद का, श्रंगार का, संपूर्णानंद लें । आंखों में भर ले स्वरूप को । दर्शन करें और दर्शन के बाद जब बाहर आकर बैठे तब नेत्र बंद करके जो दर्शन किए हैं उस स्वरूप का ध्यान करें । मंदिर में नेत्र नहीं बंद करना । बाहर आने के बाद पैड़ी पर बैठकर जब ठाकुर जी का ध्यान करें तब नेत्र बंद करें और अगर ठाकुर जी का स्वरूप ध्यान में नहीं आए तो दोबारा मंदिर में जाएं और भगवान का दर्शन करें । नेत्रों को बंद करने के पश्चात उपरोक्त श्लोक का पाठ करें।

यहीं शास्त्र हैं यहीं बड़े बुजुर्गो का कहना हैं !

🚩🚩🚩 जय श्रीराम 🏹🏹🏹

 #मखाना  : -ठंड के मौसम में सूखे मेवे की मांग स्वतः ही बढ़ जाती है, पर मखाना की मांग दिन प्रतिदिन कम पड़ती जा रही है.......
22/12/2023

#मखाना : -
ठंड के मौसम में सूखे मेवे की मांग स्वतः ही बढ़ जाती है, पर मखाना की मांग दिन प्रतिदिन कम पड़ती जा रही है....
जिसका मुख्य कारण मखाना के गुणकारी पक्ष को न जानना लगता है....
मखाना की प्रजाति हुबहु कमल से मिलती जुलती है,अंतर इतना की मखाना के पौधे बहुत #कांटेदार होते हैं ,
इतने कंटीले कि उस जलाशय में कोई जानवर भी पानी पीने के लिए नहीं जाता है ....
यह तालाब,नदी,और खेतो में पानी भरकर भी पैदा किया जा सकता है ....... ।

इसकी खेती मुख्य रूप से मिथिलांचल में होती है...

बिहार मिथिलांचल की पहचान के बारे में कहा जाता है- 'पग-पग पोखरि माछ मखान' यानी इस क्षेत्र की पहचान पोखर (तालाब), मछली और मखाना से जुड़ी हुई है।
बिहार के दरभंगा, मधुबनी, पूर्णिया, किशनगंज, अररिया सहित 10 जिलों में मखाना की खेती होती है.....
देश में बिहार के अलावा असम, पश्चिम बंगाल और मणिपुर में भी मखाने का उत्पादन होता है,
मगर देशभर में मखाने के कुल उत्पादन में बिहार की हिस्सेदारी 80 प्रतिशत है......

मखाना को देवताओं का भोजन कहा गया है ....जन्म हो या मृत्यु,शादी हो या गोदभराई.....व्रत उपवास हो या यज्ञ हवन मखाने का हर जगह विशेष महत्व रहता है .....
इसे आर्गेनिक #हर्बल भी कहते हैं .....क्योंकि यह बिना किसी रासायनिक खाद या कीटनाशी के उपयोग के उगाया जाता है।

अधिकांशतः ताकत की दवाइयाँ मखाने के योग से बनायी जाती हैं,
मखाने से #अरारोट भी बनता है. ....मखाना बनाने के लिए इसके बीजों को फल से अलग कर धूप में सुखाते हैं. ....
बीजों को बड़े-बड़े लोहे के कढ़ावों में सेंका जाता है. ...कढ़ाव में सिंक रहे बीजों को 5-7 की संख्या में हाथ से उठा कर ठोस जगह पर रख कर लकड़ी के हथोड़ो से पीटा जाता है. ....
इस तरह गर्म बीजों का कड़क खोल तेजी से फटता है और बीज फटकर लाई (मखाना) बन जाता है.
जितने बीजों को सेका जाता है.....उनमें से केवल एक तिहाई ही मखाना बनते हैं....।

औषधीय उपयोग

#किडनी को मजबूत बनाये ..... मखाने का सेवन किडनी और दिल की सेहत के लिए फायदेमंद है...
डाइबिटीज रोगी इसका सेवन कर लाभ पा सकते है...
मखाना कैल्शियम से भरपूर होता है इसलिए जोड़ों के दर्द, विशेषकर #अर्थराइटिस के मरीजों के लिए इसका सेवन काफी फायदेमंद होता है....
मखाने के सेवन से तनाव कम होता है और नींद अच्छी आती है। रात में सोते समय दूध के साथ मखाने का सेवन करने से #नींद न आने की समस्या दूर हो जाती है.....
मखानों का नियमित सेवन करने से शरीर की कमजोरी दूर होती है और हमारा शरीर सेहतमंद रहता है.....
मखाना शरीर के अंग सुन्‍न होने से बचाता है तथा घुटनों और कमर में दर्द पैदा होने से रोकता है.....
#गर्भवती महिलाओं और प्रसूति के बाद कमजोरी महसूस करने वाली महिलाओं को मखाना खाना चाहिये.....
मखाना को दूध में मिलाकर खाने से दाह (जलन) में आराम मिलता है।
#नपुंसकता ...मखाने में जो प्रोटीन,कार्बोहाइड्रेड, फैट, मिनरल और फॉस्फोरस आदि पौष्टिक तत्व होते हैं वे कामोत्तेजना को बढ़ाने का काम करते हैं।
साथ ही शुक्राणुओं के क्वालिटी को बेहतर बनाने के साथ-साथ उसकी संख्या को भी बढ़ाने में सहायता करते हैं...।
कई लोग आज भी शक्तिवर्धक के रूप में विदेशी प्रोडक्ट को चुनते है
वही अमेरिकन हर्बल फ्रुड प्रोडक्ट एशोसिएशन ने मखाना को क्लास वन का फूड प्रोडक्ट घोषित किया हुआ हैं...।
मखाना की आप ढ़ेरो रेसिपी भी तैयार कर सकते हैं..... #मखाना : -
ठंड के मौसम में सूखे मेवे की मांग स्वतः ही बढ़ जाती है, पर मखाना की मांग दिन प्रतिदिन कम पड़ती जा रही है....
जिसका मुख्य कारण मखाना के गुणकारी पक्ष को न जानना लगता है....
मखाना की प्रजाति हुबहु कमल से मिलती जुलती है,अंतर इतना की मखाना के पौधे बहुत #कांटेदार होते हैं ,
इतने कंटीले कि उस जलाशय में कोई जानवर भी पानी पीने के लिए नहीं जाता है ....
यह तालाब,नदी,और खेतो में पानी भरकर भी पैदा किया जा सकता है ....... ।

इसकी खेती मुख्य रूप से मिथिलांचल में होती है...

बिहार मिथिलांचल की पहचान के बारे में कहा जाता है- 'पग-पग पोखरि माछ मखान' यानी इस क्षेत्र की पहचान पोखर (तालाब), मछली और मखाना से जुड़ी हुई है।
बिहार के दरभंगा, मधुबनी, पूर्णिया, किशनगंज, अररिया सहित 10 जिलों में मखाना की खेती होती है.....
देश में बिहार के अलावा असम, पश्चिम बंगाल और मणिपुर में भी मखाने का उत्पादन होता है,
मगर देशभर में मखाने के कुल उत्पादन में बिहार की हिस्सेदारी 80 प्रतिशत है......

मखाना को देवताओं का भोजन कहा गया है ....जन्म हो या मृत्यु,शादी हो या गोदभराई.....व्रत उपवास हो या यज्ञ हवन मखाने का हर जगह विशेष महत्व रहता है .....
इसे आर्गेनिक #हर्बल भी कहते हैं .....क्योंकि यह बिना किसी रासायनिक खाद या कीटनाशी के उपयोग के उगाया जाता है।

अधिकांशतः ताकत की दवाइयाँ मखाने के योग से बनायी जाती हैं,
मखाने से #अरारोट भी बनता है. ....मखाना बनाने के लिए इसके बीजों को फल से अलग कर धूप में सुखाते हैं. ....
बीजों को बड़े-बड़े लोहे के कढ़ावों में सेंका जाता है. ...कढ़ाव में सिंक रहे बीजों को 5-7 की संख्या में हाथ से उठा कर ठोस जगह पर रख कर लकड़ी के हथोड़ो से पीटा जाता है. ....
इस तरह गर्म बीजों का कड़क खोल तेजी से फटता है और बीज फटकर लाई (मखाना) बन जाता है.
जितने बीजों को सेका जाता है.....उनमें से केवल एक तिहाई ही मखाना बनते हैं....।

औषधीय उपयोग

#किडनी को मजबूत बनाये ..... मखाने का सेवन किडनी और दिल की सेहत के लिए फायदेमंद है...
डाइबिटीज रोगी इसका सेवन कर लाभ पा सकते है...
मखाना कैल्शियम से भरपूर होता है इसलिए जोड़ों के दर्द, विशेषकर #अर्थराइटिस के मरीजों के लिए इसका सेवन काफी फायदेमंद होता है....
मखाने के सेवन से तनाव कम होता है और नींद अच्छी आती है। रात में सोते समय दूध के साथ मखाने का सेवन करने से #नींद न आने की समस्या दूर हो जाती है.....
मखानों का नियमित सेवन करने से शरीर की कमजोरी दूर होती है और हमारा शरीर सेहतमंद रहता है.....
मखाना शरीर के अंग सुन्‍न होने से बचाता है तथा घुटनों और कमर में दर्द पैदा होने से रोकता है.....
#गर्भवती महिलाओं और प्रसूति के बाद कमजोरी महसूस करने वाली महिलाओं को मखाना खाना चाहिये.....
मखाना को दूध में मिलाकर खाने से दाह (जलन) में आराम मिलता है।
#नपुंसकता ...मखाने में जो प्रोटीन,कार्बोहाइड्रेड, फैट, मिनरल और फॉस्फोरस आदि पौष्टिक तत्व होते हैं वे कामोत्तेजना को बढ़ाने का काम करते हैं।
साथ ही शुक्राणुओं के क्वालिटी को बेहतर बनाने के साथ-साथ उसकी संख्या को भी बढ़ाने में सहायता करते हैं...।
कई लोग आज भी शक्तिवर्धक के रूप में विदेशी प्रोडक्ट को चुनते है
वही अमेरिकन हर्बल फ्रुड प्रोडक्ट एशोसिएशन ने मखाना को क्लास वन का फूड प्रोडक्ट घोषित किया हुआ हैं...।
मखाना की आप ढ़ेरो रेसिपी भी तैयार कर सकते हैं.....

सूरनदीपावली के दिन सूरन की सब्जी बनती है,,,सूरन को जिमीकन्द (कहीं कहीं ओल) भी बोलते हैं,, आजकल तो मार्केट में हाईब्रीड स...
10/11/2023

सूरन
दीपावली के दिन सूरन की सब्जी बनती है,,,सूरन को जिमीकन्द (कहीं कहीं ओल) भी बोलते हैं,, आजकल तो मार्केट में हाईब्रीड सूरन आ गया है,, कभी-२ देशी वाला सूरन भी मिल जाता है,,,

बचपन में ये सब्जी फूटी आँख भी नही सुहाती थी,, लेकिन चूँकि बनती ही यही थी तो झख मारकर खाना पड़ता ही था,,तब मै सोचता था कि पापा लोग कितने कंजूस हैं जो आज त्यौहार के दिन भी ये खुजली वाली सब्जी खिला रहे हैं,,, दादी बोलती थी आज के दिन जो सूरन न खायेगा
अगले जन्म में छछुंदर जन्म लेगा,,
यही सोच कर अनवरत खाये जा रहे है कि छछुंदर न बन जाये बड़े हुए तब सूरन की उपयोगिता समझ में आई,,

सब्जियो में सूरन ही एक ऐसी सब्जी है जिसमें फास्फोरस अत्यधिक मात्रा में पाया जाता है,, ऐसी मान्यता है और अब तो मेडिकल साइंस ने भी मान लिया है कि इस एक दिन यदि हम देशी सूरन की सब्जी खा ले तो स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में पूरे साल फास्फोरस की कमी नही होगी,,

मुझे नही पता कि ये परंपरा कब से चल रही है लेकिन सोचीए तो सही कि हमारे लोक मान्यताओं में भी वैज्ञानिकता छुपी हुई होती थी ,,,
धन्य पूर्वज हमारे जिन्होंने विज्ञान को परम्पराओं, रीतियों, रिवाजों, संस्कारों में पिरो दिया

आभार रजनी कांत सर

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