पंचतत्व आरोग्यम

पंचतत्व आरोग्यम Contact information, map and directions, contact form, opening hours, services, ratings, photos, videos and announcements from पंचतत्व आरोग्यम, Medical and health, Kailaras.

यह चिकित्सा एक प्राकृतिक पद्धति है जो शरीर के पाँच मौलिक तत्वों—पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश—के संतुलन को पुनर्स्थापित कर रोगों का उपचार करती है।
शरीर की विकृत ऊर्जा को संतुलित किया जाता है।
बिना सर्जरी या दवा के,शरीर को उसकी प्राकृतिक स्थिति में लाना।

24/06/2025

प्रणाम मित्रो 🙏
कृपया ध्यान दे...

पंचतत्व चिकित्सा

सभी मित्रो को नमस्कार।
बिना दवाई व बिना हॉस्पिटल जाये, घर बैठे ही अपने रोगों से मुक्ति पायें ।

हमारे यहाँ पंचतत्व एवं प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति द्वारा सभी प्रकार की बीमारियों का ईलाज किया जाता है।
जिसमे बिना दवाई के ऑनलाइन चिकित्सा की जाती है। आप मे से कुछ लोग या आपके रिश्तेदार किसी प्रकार की शारीरिक समस्या , चाहे समस्या किसी प्रकार की असाध्य और पुरानी हो सेवा ले सकते हैं। तो एक बार सेवा का अवसर दीजिये। क्या पता आपके कारण किसी के कष्ट को कम करने में हम उनका सहयोग कर पाए।

जैसे - सिर दर्द (माइग्रेन) , आंखो की समस्या , एलर्जी , सर्दी (साइनस) , खांसी , बुखार , कान की समस्या (कान दर्द , कम सुनाई देना ) नींद न आना (अनिद्रा ) , मिर्गी, दांत दर्द , गले की समस्या , थाइराइड , कंधा दर्द(फ्रोजन शोल्डर, सर्वाइकल), लिवर की समस्या (फैटी लिवर), ह्रदय रोग , कॉलेस्ट्रॉल, दमा (टीबी, अस्थमा), उदर रोग (पेट के सभी रोग, अल्सर, कब्ज , गैस, एसिडिटी , हर्निया) , एसिडिटी, पथरी (किडनी की पथरी, गॉलब्लेडर की पथरी), ब्लडप्रेशर, मधुमेह (शुगर , डाइबिटीज), शारिरिक दर्द (गठिया, गांठ , सिस्ट , जॉइन्ट पेन) , थकान, तनाव, मानसिक समस्या (डिप्रेशन), त्वचा रोग (सफेद दाग, चर्मरोग, सोराइसिस, एग्जिमा, खुजली), कमर दर्द( स्लिप डिस्क, L4-L5 की समस्या, साइटिका), मोटापा, शरीर में सूजन, घुटना दर्द (अर्थराइटिस), मलेरिया, निमोनिया, लकवा (पैरालिसिस), प्रजनन अंगों के रोग (श्वेतप्रदर , अनियमित माहवारी ) प्रोस्टेट , बबासीर (पाइल्स, भगन्दर, मस्सा), बालों की समस्या (बाल झड़ना, रूसी होना ), निःसन्तान(बांझपन), हार्मोन्स इन्बेलेंस, महिलाओं एवं पुरुषों के गुप्त रोग आदि समस्याओं का समाधान।

चिकित्सा प्राप्त करने हेतु नीचे दिए गए नंबर पर संपर्क करें।

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें ।
पहले मेसेज भेजें समय मिलने पर आपसे संपर्क किया जायेगा।

चिकित्सक - पं. नीरज मुदगल
मो. 9691291261

जय श्री कृष्ण

🙏🙏🙏🙏🙏

30/05/2025

#कोविड-19
सिंगापुर कोविड-19 से संक्रमित व्यक्ति के शव का पोस्टमार्टम करने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है। गहन जांच के बाद पता चला कि कोविड-19 वायरस के रूप में नहीं, बल्कि एक बैक्टीरिया के रूप में मौजूद है, जो विकिरण के संपर्क में आता है और खून में थक्का जमने से इंसान की मौत का कारण बनता है। पाया गया कि कोविड-19 बीमारी के कारण इंसान में खून के थक्के जम जाते हैं, जिससे नसों में खून जम जाता है, जिससे व्यक्ति को सांस लेने में दिक्कत होती है; क्योंकि दिमाग, दिल और फेफड़ों को ऑक्सीजन नहीं मिल पाती, जिससे लोग जल्दी मर जाते हैं। सांस लेने की शक्ति कम होने का कारण जानने के लिए सिंगापुर के डॉक्टरों ने डब्ल्यूएचओ प्रोटोकॉल को नहीं माना और कोविड-19 का पोस्टमार्टम कर दिया। डॉक्टरों ने हाथ, पैर और शरीर के अन्य हिस्सों को खोलकर ध्यान से जांच की, तो उन्होंने देखा कि रक्त वाहिकाएं फैली हुई थीं और खून के थक्कों से भरी हुई थीं, जिससे रक्त प्रवाह बाधित हो रहा था और शरीर में ऑक्सीजन का प्रवाह भी कम हो रहा था, जिससे मरीज की मौत हो रही थी। इस शोध के बारे में जानने के बाद सिंगापुर के स्वास्थ्य मंत्रालय ने तुरंत कोविड-19 उपचार प्रोटोकॉल में बदलाव किया और अपने पॉजिटिव मरीजों को एस्पिरिन 100mg और इमरोमैक देना शुरू कर दिया। नतीजतन, मरीज ठीक होने लगे और उनकी सेहत में सुधार होने लगा। सिंगापुर के स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक दिन में 14,000 से ज़्यादा मरीजों को निकालकर घर भेज दिया। वैज्ञानिक खोज के दौर के बाद, सिंगापुर के डॉक्टरों ने उपचार की विधि को यह कहकर समझाया कि यह बीमारी एक वैश्विक धोखा है, "यह कुछ और नहीं बल्कि इंट्रावैस्कुलर कोएगुलेशन (रक्त के थक्के) और उपचार की एक विधि है। एंटीबायोटिक गोलियाँ सूजनरोधी और एंटीकोआगुलंट्स (एस्पिरिन) लें। यह दर्शाता है कि बीमारी ठीक हो सकती है। सिंगापुर के अन्य वैज्ञानिकों के अनुसार, वेंटिलेटर और गहन देखभाल इकाई (आईसीयू) की कभी आवश्यकता नहीं थी। इस उद्देश्य के लिए प्रोटोकॉल सिंगापुर में पहले ही प्रकाशित हो चुके हैं। चीन को यह पहले से ही पता है, लेकिन उसने कभी अपनी रिपोर्ट जारी नहीं की। इस जानकारी को अपने परिवार, पड़ोसियों, परिचितों, दोस्तों और सहकर्मियों के साथ साझा करें ताकि वे कोविड-19 के डर को दूर कर सकें और महसूस कर सकें कि यह कोई वायरस नहीं है, बल्कि एक बैक्टीरिया है जो केवल विकिरण के संपर्क में आया है। केवल बहुत कम प्रतिरक्षा वाले लोगों को ही सावधान रहना चाहिए। यह विकिरण सूजन और हाइपोक्सिया का कारण भी बनता है। पीड़ितों को एस्प्रिन-100mg और एप्रोनिक या पैरासिटामोल 650mg लेना चाहिए। स्रोत: सिंगापुर स्वास्थ्य मंत्रालय *फ़ॉरवर्ड किया गया प्राप्त
✌️💐⚡️

Google translation from English

क्या आप भी अपनी   की बीमारी को दवाओं से पाल रहे हैं, मतलब साफ है, आप भी   ( #बीमार_को_जीवनपर्यन्त_रखो_बीमार)  ( #आरोग्य_...
26/05/2025

क्या आप भी अपनी की बीमारी को दवाओं से पाल रहे हैं, मतलब साफ है, आप भी
( #बीमार_को_जीवनपर्यन्त_रखो_बीमार)

( #आरोग्य_की_अक्षुणता ) में नहीं......
मर्जी आपकी क्योंकि स्वास्थ भी है आपका
आज ही संपर्क करें

13/04/2025

*चर्म रोग के लिए*
*14/4/2025 सूर्य निकलने से पहले नीम के पेड़ को प्रणाम (नमस्कार) करके एक लोटा जल देकर, यह मंत्र जाप करते हुऐ "ॐ सुप्रभाय नमः ॐ सुभद्राय नमः" तीन परिक्रमा कीजिए उसके बाद सात नीम के फूल पानी के साथ निगल जाइए, आपको एक वर्ष तक चर्म रोग नहीं होगा।*।
🙏जय श्री कृष्ण🙏

31/12/2024

*🚩हम अपना नववर्ष मनाएंगे!*
┈┉❀꧁ω❍ω꧂❀┉┈

*हवा लगी पश्चिम की*
*सारे कुप्पा बनकर फूल गए।*

*ईस्वी सन तो याद रहा,*
*पर अपना संवत्सर भूल गए।।*

*चारों तरफ नए साल का,*
*ऐसा मचा है हो-हल्ला।*

*बेगानी शादी में नाचे,*
*जैसे कोई दीवाना अब्दुल्ला।।*

*धरती ठिठुर रही सर्दी से,*
*घना कुहासा छाया है।*

*कैसा ये नववर्ष है,*
*जिससे सूरज भी शरमाया है।।*

*सूनी है पेड़ों की डालें,*
*फूल नहीं हैं उपवन में।*

*पर्वत ढके बर्फ से सारे,*
*रंग कहां है जीवन में।।*

*बाट जोह रही सारी प्रकृति,*
*आतुरता से फागुन का।*

*जैसे रस्ता देख रही हो,*
*सजनी अपने साजन का।।*

*अभी ना उल्लासित हो इतने,*
*आई अभी बहार नहीं।*

*हम अपना नववर्ष मनाएंगे,*
*न्यू ईयर हमें स्वीकार नहीं।।*

*लिए बहारें आँचल में,*
*जब चैत्र प्रतिपदा आएगी।*

*फूलों का श्रृंगार करके,*
*धरती दुल्हन बन जाएगी।।*

*मौसम बड़ा सुहाना होगा,*
*दिल सबके खिल जाएँगे।*

*झूमेंगी फसलें खेतों में,*
*हम गीत खुशी के गाएँगे।।*

*उठो खुद को पहचानो,*
*यूँ कबतक सोते रहोगे तुम।*

*चिन्ह गुलामी के कंधों पर,*
*कबतक ढोते रहोगे तुम।।*

*अपनी समृद्ध परंपराओं का,*
*आओ मिलकर मान बढ़ाएंगे।*

*आर्यावर्त के वासी हैं हम,*
*अब अपना नववर्ष मनाएंगे।।*
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
*हम बदलेंगे युग बदलेगा,*
*हम सुधरेंगे युग सुधरेगा।*

*प्राणयोग एवं पंचतत्व चिकित्सा*
*पं. नीरज मुदगल*
*संपर्क सूत्र - 9691291261*

*जय श्री कृष्ण*

लो जी बन गया बड़ा बाजार ll ये क्या हो रहा है मित्रो जो बच्चे इस तरह से पैदा होगे वे क्या मान मर्यादा सम्मान जानेंगे वे ह...
20/11/2024

लो जी बन गया बड़ा बाजार ll
ये क्या हो रहा है मित्रो जो बच्चे इस तरह से पैदा होगे वे क्या मान मर्यादा सम्मान जानेंगे वे है ही नही मानव के बच्चे क्रतिम है तो व्यवहार भी क्रतिम ही तो करेगे।
🙏जय श्री कृष्ण🙏

15/10/2024

*शरद पूर्णिमा विशेष*
अर्जुन की छाल को पीस लें, शरद पूर्णिमा के दिन उपवास रखें, रात्रि में दूध से खीर बनाकर थाली में चंद्रमा के प्रकाश में रखें, फिर सुबह 4 बजे 12 ग्राम पाउडर इस पर डालें, प्रात: रोगी को खिलाए, रोगी पूर्णिमा की रात और खीर सेवन के बाद भी 12 घंटे सोने न दें, दमा,अस्थमा समाप्त....

जय माता दी
03/10/2024

जय माता दी

04/07/2024

*!! हे परमेश्वर !!*

*ईश्वर की अद्भुत मशीन*

कोई भी आवेदन नहीं किया था,
किसी की भी सिफारिश नहीं थी, ऐसा कोई असामान्य कार्य भी नहीं है,
फिर भी
सिर के *बालों से* लेकर पैर के *अंगूठे तक* 24 घंटे भगवान, तू *रक्त* प्रवाहित करता है...
*जीभ पर* नियमित अभिषेक कर रहा है...
निरंतर तू मेरा ये *हृदय* चलाता है...

चलने वाला कौन सा *यंत्र* तू फिट कर दिया है *हे भगवान...*
*पैर के नाखून से लेकर सिर के बालों तक बिना रुकावट संदेशवाहन करने वाली प्रणाली...*
किस *अदृश्य शक्ति* से चल रही है
कुछ समझ नहीं आता।

*हड्डियों और मांस में* बनने वाला *रक्त* कौन सा अद्वितीय *आर्किटेक्चर* है...
इसका मुझे कोई अंदाजा नहीं है।

*हजार-हजार मेगापिक्सल वाले दो-दो कैमरे* दिन-रात सारी दृश्यें कैद कर रहे हैं।

*दस-दस हजार* टेस्ट करने वाली *जीभ* नाम की टेस्टर,

अनगिनत *संवेदनाओं* का अनुभव कराने वाली *त्वचा* नाम की *सेंसर प्रणाली*...
और...
अलग-अलग *फ्रीक्वेंसी की* आवाज पैदा करने वाली *स्वर प्रणाली*
और
उन फ्रीक्वेंसी का *कोडिंग-डीकोडिंग* करने वाले *कान* नाम का यंत्र...

*पचहत्तर प्रतिशत पानी से भरा शरीर रूपी टैंकर हजारों छेद होने के बावजूद कहीं भी लीक नहीं होता...*

*स्टैंड के बिना* मैं खड़ा रह सकता हूँ...गाड़ी के *टायर* घिसते हैं, पर पैर के *तलवे* कभी नहीं घिसते।
*अद्भुत* ऐसी रचना है।

*देखभाल, स्मृति, शक्ति, शांति ये सब भगवान तू देता है।* तू ही अंदर बैठ कर *शरीर* चला रहा है।
*अद्भुत* है यह सब, *अविश्वसनीय,*
*असमझनीय।*

ऐसे *शरीर रूपी* मशीन में हमेशा तू ही है,
इसका अनुभव कराने वाला *आत्मा* भगवान तू ऐसा कुछ *फिट* कर दिया है कि और क्या तुझसे मांगूं...

तेरे इस *जीव सेवा* के खेल का निश्छल, *निस्वार्थ आनंद* का हिस्सा रहूँ!...
ऐसी *सद्बुद्धि* मुझे दे!!

तू ही यह सब संभालता है इसका *अनुभव* मुझे हमेशा रहे!!! रोज पल-पल कृतज्ञता से तेरा ऋणी होने का स्मरण, चिंतन हो, यही परमेश्वर के चरणों में प्रार्थना है!*.

🙏जय श्री कृष्ण🙏

07/06/2024

#संस्कृत

(थोड़ा बहुत तो सीख लो, आप लोग या ऐसे ही गुजर जाओगे ) पढ़ो आगे.......

संस्कृत में 1700 धातुएं, 70 प्रत्यय और 80 उपसर्ग हैं, इनके योग से जो शब्द बनते हैं, उनकी संख्या 27 लाख 20 हजार होती है। यदि दो शब्दों से बने सामासिक शब्दों को जोड़ते हैं तो उनकी संख्या लगभग 769 करोड़ हो जाती है.......

जबकि अंग्रेजी के सभी चुराए शब्द जोड़ दिए जाएं तो कुल 2.5 लाख है बस

संस्कृत सबसे प्राचीन भाषा है और सबसे वैज्ञानिक भाषा भी है। इसके सकारात्मक तरंगों के कारण ही ज्यादातर श्लोक संस्कृत में हैं। भारत में संस्कृत से लोगों का जुड़ाव खत्म हो रहा है लेकिन विदेशों में इसके प्रति रुझाान बढ़ रहा है..…...

ब्रह्मांड में सर्वत्र गति है। गति के होने से ध्वनि प्रकट होती है । ध्वनि से शब्द परिलक्षित होते हैं और शब्दों से भाषा का निर्माण होता है। आज अनेकों भाषायें प्रचलित हैं । किन्तु इनका काल निश्चित है कोई सौ वर्ष, कोई पाँच सौ तो कोई हजार वर्ष पहले जन्मी। साथ ही इन भिन्न भिन्न भाषाओं का जब भी जन्म हुआ, उस समय अन्य भाषाओं का अस्तित्व था.….

अतः पूर्व से ही भाषा का ज्ञान होने के कारण एक नयी भाषा को जन्म देना अधिक कठिन कार्य नहीं है। किन्तु फिर भी साधारण मनुष्यों द्वारा साधारण रीति से बिना किसी वैज्ञानिक आधार के निर्माण की गयी सभी भाषाओं मे भाषागत दोष दिखते हैं । ये सभी भाषाए पूर्ण शुद्धता,स्पष्टता एवं वैज्ञानिकता की कसौटी पर खरी नहीं उतरती। क्योंकि ये सिर्फ और सिर्फ एक दूसरे की बातों को समझने के साधन मात्र के उद्देश्य से बिना किसी सूक्ष्म वैज्ञानिकीय चिंतन के बनाई गयी। किन्तु मनुष्य उत्पत्ति के आरंभिक काल में, धरती पर किसी भी भाषा का अस्तित्व न था..........

शब्दों का आधार ध्वनि है, तब ध्वनि थी तो स्वाभाविक है शब्द भी थे। किन्तु व्यक्त नहीं हुये थे, अर्थात उनका ज्ञान नहीं था.….

प्राचीन ऋषियों ने मनुष्य जीवन की आत्मिक एवं लौकिक उन्नति व विकास में शब्दो के महत्व और शब्दों की अमरता का गंभीर आकलन किया । उन्होने एकाग्रचित्त हो ध्वानपूर्वक, बार बार मुख से अलग प्रकार की ध्वनियाँ उच्चारित की और ये जानने में प्रयासरत रहे कि मुख-विवर के किस सूक्ष्म अंग से ,कैसे और कहाँ से ध्वनि जन्म ले रही है

तत्पश्चात निरंतर अथक प्रयासों के फलस्वरूप उन्होने परिपूर्ण, पूर्ण शुद्ध,स्पष्ट एवं अनुनाद क्षमता से युक्त ध्वनियों को ही भाषा के रूप में चुना।

पं. नीरज मुदगल
(प्राणयोग , पंचतत्व एवं प्राकृतिक चिकित्सा)
मों. - 096912 91261

सूर्य के एक ओर से 9 रश्मिया निकलती हैं और सूर्य के चारो ओर से 9 भिन्न भिन्न रश्मियों के निकलने से कुल निकली 36 रश्मियों की ध्वनियों पर संस्कृत के 36 स्वर बने और इन 36 रश्मियो के पृथ्वी के आठ वसुओ से टकराने से 72 प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती हैं । जिनसे संस्कृत के 72 व्यंजन बने.....

इस प्रकार ब्रह्माण्ड से निकलने वाली कुल 108 ध्वनियों पर संस्कृत की वर्णमाला आधारित है, ब्रह्मांड की इन ध्वनियों के रहस्य का ज्ञान वेदों से मिलता है। इन ध्वनियों को नासा ने भी स्वीकार किया है जिससे स्पष्ट हो जाता है कि प्राचीन ऋषि मुनियों को उन ध्वनियों का ज्ञान था और उन्ही ध्वनियों के आधार पर उन्होने पूर्णशुद्ध भाषा को अभिव्यक्त किया। अतः प्राचीनतम आर्यभाषा जो ब्रह्मांडीय संगीत थी उसका नाम संस्कृत पड़ा

संस्कृत – संस् + कृत्
अर्थात श्वासोंसे निर्मित अथवा साँसो से बनी एवं स्वयं से कृत , जो कि ऋषियों के ध्यान लगाने व परस्पर संपर्क से अभिव्यक्त हुयी....

कालांतर में पाणिनी ने नियमित व्याकरण के द्वारा संस्कृत को परिष्कृत एवं सर्वम्य प्रयोग में आने योग्य रूप प्रदान किया।

संस्कृत की सर्वोत्तम शब्द-विन्यास युक्ति के, गणित के, कंप्यूटर आदि के स्तर पर नासा व अन्य वैज्ञानिक व भाषाविद संस्थाओं ने भी इस भाषा को एकमात्र वैज्ञानिक भाषा मानते हुये इसका अध्ययन आरंभ कराया है, क्योंकि कम्प्यूटर की सबसे अच्छी एल्गोरिथ्म संस्कृत में ही लिखी जा सकती है.…..

और भविष्य में भाषा-क्रांति के माध्यम से आने वाला समय संस्कृत का बताया है। अतः अंग्रेजी बोलने में बड़ा गौरव अनुभव करने वाले, अंग्रेजी में गिटपिट करके गुब्बारे की तरह फूल जाने वाले कुछ महाशय जो संस्कृत में दोष गिनाते हैं उन्हें कुँए से निकलकर संस्कृत की वैज्ञानिकता का एवं संस्कृत के विषय में विश्व के सभी विद्वानों का मत जानना चाहिए।......

काफी शर्म की बात है कि भारत की भूमि पर ऐसे लोग हैं जिन्हें अमृतमयी वाणी संस्कृत में दोष और विदेशी भाषाओं में गुण ही गुण नजर आते हैं वो भी तब जब विदेशी भाषा वाले संस्कृत को सर्वश्रेष्ठ मान रहे हैं.....

आज दुनिया भर में लगभग 6900 भाषाओं का प्रयोग किया जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इन भाषाओं की जननी कौन है? नहीं?

दुनिया की सबसे पुरानी भाषा है :- संस्कृत भाषा

पं. नीरज मुदगल
(प्राणयोग , पंचतत्व एवं प्राकृतिक चिकित्सा)
मों. - 096912 91261

आइये जाने संस्कृत भाषा का महत्व -
संस्कृत भाषा के विभिन्न स्वरों एवं व्यंजनों के विशिष्ट उच्चारण स्थान होने के साथ प्रत्येक स्वर एवं व्यंजन का उच्चारण व्यक्ति के सात ऊर्जा चक्रों में से एक या एक से अधिक चक्रों को निम्न प्रकार से प्रभावित करके उन्हें क्रियाशील – उर्जीकृत करता है :-

मूलाधार चक्र –

स्वर 'अ' एवं क वर्ग का उच्चारण मूलाधार चक्र पर प्रभाव डाल कर उसे क्रियाशील एवं सक्रिय करता है।
स्वर 'इ' तथा च वर्ग का उच्चारण स्वाधिष्ठान चक्र को उर्जीकृत करता है।
स्वर 'ऋ' तथा ट वर्ग का उच्चारण मणिपूरक चक्र को सक्रिय एवं उर्जीकृत करता है।
स्वर 'लृ' तथा त वर्ग का उच्चारण अनाहत चक्र को प्रभावित करके उसे उर्जीकृत एवं सक्रिय करता है।
स्वर 'उ' तथा प वर्ग का उच्चारण विशुद्धि चक्र को प्रभावित करके उसे सक्रिय करता है।
ईषत् स्पृष्ट वर्ग का उच्चारण मुख्य रूप से आज्ञा चक्र एवं अन्य चक्रों को सक्रियता प्रदान करता है।

इस प्रकार देवनागरी लिपि के प्रत्येक स्वर एवं व्यंजन का उच्चारण व्यक्ति के किसी न किसी उर्जा चक्र को सक्रिय करके व्यक्ति की चेतना के स्तर में अभिवृद्धि करता है। वस्तुतः संस्कृत भाषा का प्रत्येक शब्द इस प्रकार से संरचित किया गया है कि उसके स्वर एवं व्यंजनों के मिश्रण का उच्चारण करने पर वह हमारे विशिष्ट ऊर्जा चक्रों को प्रभावित करे.......

प्रत्येक शब्द स्वर एवं व्यंजनों की विशिष्ट संरचना है जिसका प्रभाव व्यक्ति की चेतना पर स्पष्ट परिलक्षित होता है। इसीलिये कहा गया है कि व्यक्ति को शुद्ध उच्चारण के साथ-साथ बहुत सोच-समझ कर बोलना चाहिए। शब्दों में शक्ति होती है जिसका दुरूपयोग एवं सदुपयोग स्वयं पर एवं दूसरे पर प्रभाव डालता है। शब्दों के प्रयोग से ही व्यक्ति का स्वभाव, आचरण, व्यवहार एवं व्यक्तित्व निर्धारित होता है।

उदाहरणार्थ जब 'राम' शब्द का उच्चारण किया जाता है है तो हमारा अनाहत चक्र जिसे ह्रदय चक्र भी कहते है सक्रिय होकर उर्जीकृत होता है। 'कृष्ण' का उच्चारण मणिपूरक चक्र – नाभि चक्र को सक्रिय करता है। 'सोह्म' का उच्चारण दोनों 'अनाहत' एवं 'मणिपूरक' चक्रों को सक्रिय करता है।

आशीर्वाद एवं श्राप देने का आधार भी यही है। संस्कृत भाषा की वैज्ञानिकता एवं सार्थकता इस तरह स्वयं सिद्ध है।

भारतीय शास्त्रीय संगीत के सातों स्वर हमारे शरीर के सातों उर्जा चक्रों से जुड़े हुए हैं.......

संस्कृत केवल स्वविकसित भाषा नहीं बल्कि संस्कारित भाषा है इसीलिए इसका नाम संस्कृत है। संस्कृत को संस्कारित करने वाले भी कोई साधारण भाषाविद् नहीं बल्कि महर्षि पाणिनि, महर्षि कात्यायिनि और योग शास्त्र के प्रणेता महर्षि पतंजलि हैं.....

इन तीनों महर्षियों ने बड़ी ही कुशलता से योग की क्रियाओं को भाषा में समाविष्ट किया है।₹, यही इस भाषा का रहस्य है ....

जिस प्रकार साधारण पकी हुई दाल को शुध्द घी में जीरा, मैथी, लहसुन, और हींग का तड़का लगाया जाता है तो उसे संस्कारित दाल कहते हैं..….

घी , जीरा, लहसुन, मैथी , हींग आदि सभी महत्वपूर्ण औषधियाँ हैं। ये शरीर के तमाम विकारों को दूर करके पाचन संस्थान को दुरुस्त करती है

दाल खाने वाले व्यक्ति को यह पता ही नहीं चलता कि वह कोई कटु औषधि भी खा रहा है; और अनायास ही आनन्द के साथ दाल खाते-खाते इन औषधियों का लाभ ले लेता है। ठीक यही बात संस्कारित भाषा संस्कृत के साथ सटीक बैठती है। जो भेद साधारण दाल और संस्कारित दाल में होता है ;वैसा ही भेद अन्य भाषाओं और संस्कृत भाषा के बीच है...……

संस्कृत भाषा में वे औषधीय तत्व क्या है ?
यह विश्व की तमाम भाषाओं से संस्कृत भाषा का तुलनात्मक अध्ययन करने से स्पष्ट हो जाता है।

चार महत्वपूर्ण विशेषताएँ:-
अनुस्वार (अं ) और विसर्ग (अ:):
संस्कृत भाषा की सबसे महत्वपूर्ण और लाभदायक व्यवस्था है, अनुस्वार और विसर्ग। पुल्लिंग के अधिकांश शब्द विसर्गान्त होते हैं -यथा- राम: बालक: हरि: भानु: आदि। नपुंसक लिंग के अधिकांश शब्द अनुस्वारान्त होते हैं-यथा- जलं वनं फलं पुष्पं आदि।

विसर्ग का उच्चारण और कपालभाति प्राणायाम दोनों में श्वास को बाहर फेंका जाता है। अर्थात् जितनी बार विसर्ग का उच्चारण करेंगे उतनी बार कपालभाति प्रणायाम अनायास ही हो जाता है। जो लाभ कपालभाति प्रणायाम से होते हैं, वे केवल संस्कृत के विसर्ग उच्चारण से प्राप्त हो जाते हैं........

उसी प्रकार अनुस्वार का उच्चारण और भ्रामरी प्राणायाम एक ही क्रिया है । भ्रामरी प्राणायाम में श्वास को नासिका के द्वारा छोड़ते हुए भवरे की तरह गुंजन करना होता है और अनुस्वार के उच्चारण में भी यही क्रिया होती है। अत: जितनी बार अनुस्वार का उच्चारण होगा , उतनी बार भ्रामरी प्राणायाम स्वत: हो जायेगा..….

जैसे हिन्दी का एक वाक्य लें-
" राम फल खाता है" इसको संस्कृत में बोला जायेगा- " राम: फलं खादति"=राम फल खाता है ,
यह कहने से काम तो चल जायेगा ,
किन्तु राम: फलं खादति कहने से आपका योग स्वम् हो जाएगा.…….

🙏जय श्री कृष्ण🙏
पं. नीरज मुदगल
(प्राणयोग , पंचतत्व एवं प्राकृतिक चिकित्सा)
मों. - 096912 91261

05/05/2024

स्वर विज्ञान - एक अनूठी विद्या - कब करें कौन सा काम - इस नासिका से श्वास चले तो करें ये काम - Swar Vigyan :

स्वर शास्त्र प्राचीन भारतीय ऋषि- मुनियों के द्वारा दिया गया योग का ऐसा अदभूत उपहार है, जो हमारे शरीर और मन पर बहुत तीव्र गति से असर करता है। यह रोग मुक्त करने के साथ मानसिक संतुलन एवम् व्यवहारिक दुनिया में संघर्ष के योग्य बनाता है।

ऐसा भी कह सकते है कि यह योग के इस सीक्रेट फार्मूला कि ओर बहुत से लोंगो का ध्यान नही जा पाता है। यह प्राणायाम का ही एक प्रकार है, जो सांसों (स्वर ) को पकड कर कार्य करता है और धीरे- धीरे आपके जीवन को बदल कर रख देता है ।

स्‍वर विज्ञान का अल्प ज्ञान भी हमें काफी सारी दैनिक समस्यायों से बचा लेता है और निरंतर अभ्यास हमें योगियों के स्तर तक ले जा सकता है।
श्वसन प्रक्रिया हो सकता है हमारे लिए बिना प्रयास किए की जाने वाली एक सामान्‍य क्रिया है। शरीर की अधिकांश क्रियाओं के लिए हमें सायस प्रयास करने पड़ते हैं। श्‍वास के प्रति हम सचेत हो या न हों हृदय की धड़कन की तरह श्‍वास भी निरंतर चलने वाली क्रिया है। श्‍वास के साथ हम प्राणवायु शरीर के भीतर लेते हैं।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से श्‍वास के साथ आने वाली ऑक्‍सीजन हमारे फेफड़ों तक जाती है और वहां पर रक्‍त कोशिकाएं उस ऑक्‍सीजन को लेकर हमारे विभिन्‍न अंगों तक पहुंचाती हैं, लेकिन श्‍वास का काम यही समाप्‍त नहीं हो जाता।
योग में श्‍वास को एक अलग अंदाज में प्राण कहा गया है। श्‍वास लेने की विधि में व्‍यक्ति के स्‍वस्‍थ और रोगी रहने का राज छिपा है। सही समय पर सही मात्रा में श्‍वास लेने वाला व्‍यक्ति रोग से बचा रहता है।
योग की तरह ही ज्‍योतिष में भी श्‍वास के प्रकार, नासाग्र से निकलने वाली श्‍वास की शक्ति, इडा (बाई नासिका) अथवा पिंगला (दाई नासिका) का चलना अथवा दोनों का साथ चलना (सुषुम्‍ना) को लेकर फलादेश भी बताए गए हैं।

अगर हम सही समय पर सही नासिका का उपयोग कर रहे होते हैं तो इच्छित कार्यों को पूरा करने में सफल होते हैं।
रावण संहिता में स्‍वर विज्ञान के संबंध में विशद् जानकारी दी गई है। हालांकि यह अधिकांशत: प्रश्‍नकर्ता द्वारा प्रश्‍न पूछे जाने पर ज्‍योतिषी द्वारा ध्‍यान में रखे जाने वाले बिंदुओं पर केन्द्रित है, लेकिन किसी आम जातक के लिए भी ये तथ्‍य इतने ही महत्‍वपूर्ण है।
अगर एक जातक सावधानीपूर्वक अपने श्‍वसन यानी इडा अथवा पिंगला स्‍वर का ध्‍यान रखे तो बहुत से कार्यों में अनायास सफलता प्राप्‍त कर सकता है।
हर जातक को रोजाना सुबह उठते ही अपने स्‍वर की जांच करनी चाहिए। इसके लिए सबसे श्रेष्‍ठ समय सुबह सूर्योदय से पूर्व का बताया गया है।

प्राणयोग ध्यान साधना उपचार
*जो चाहें वो पायें*

प्राणयोगी पं. नीरज मुदगल
मों. 096912 91261

स्‍वर विज्ञान के परिणाम :
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सोमवार, बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार को अगर वाम स्‍वर यानी बाई नासिका से स्‍वर चल रहा हो तो यह श्रेष्‍ठ होता है। इसी प्रकार अगर मंगलवार, शनिवार और रविवार को दक्षिण स्‍वर यानी दाईं नासिका से स्‍वर चल रहा हो तो इसे श्रेष्‍ठ बताया गया है।
अगर स्‍वर इसके प्रतिकूल हो तो
रविवार को शरीर में वेदना महसूस होगी
सोमवार को कलह का वातावरण मिलेगा
मंगलवार को मृत्‍यु और दूर देशों की यात्रा होगी
बुधवार को राज्‍य से आपत्ति होगी
गुरु और शुक्रवार को प्रत्‍येक कार्य की असिद्धी होगी
शनिवार को बल और खेती का नाश होगा
स्‍वर को तत्‍वों के आधार पर बांटा भी गया है। हर स्‍वर का एक तत्‍व होता है।
यह इडा या पिंगला (बाई अथवा दाई नासिका) से निकलने वाले वायु के प्रभाव से नापा जाता है।
श्‍वास का दैर्ध्‍य 16 अंगुल हो तो पृथ्‍वी तत्‍व
श्‍वास का दैर्ध्‍य 12 अंगुल हो तो जल तत्‍व
श्‍वास का दैर्ध्‍य 8 अंगुल हो तो अग्नि तत्‍व
श्‍वास का दैर्ध्‍य 6 अंगुल हो तो वायु तत्‍व
श्‍वास का दैर्ध्‍य 3 अंगुल हो तो आकाश तत्‍व होता है।
यह तत्‍व हमेशा एक जैसा नहीं रहता। तत्‍व के बदलने के साथ फलादेश भी बदल जाते हैं।
आगे हम देखेंगे तत्‍व के अनुसार क्‍या क्‍या फल सामने आते हैं।
शुक्‍ल पक्ष में नाडि़यों में तत्‍व का संचार देखें तो आमतौर पर वाम स्‍वर शुभ होते हैं और दक्षिण स्‍वर अशुभ।
पृथ्‍वी तत्‍व चले तो महल में प्रवेश
अग्नि तत्‍व चले तो जल से भय, घाव, घर का दाह
वायु तत्‍व चले तो चोर भय, पलायन, हाथी घोड़े की सवारी मिलती है।
आकाश तत्‍व चले तो मंत्र, तंत्र, यंत्र का उपदेश देव प्रतिष्‍ठा, व्‍याधि की उत्‍पत्ति, शरीर में निरंतर पीड़ा
अगर किसी भी समय में दोनों नाडि़यां एक साथ चलें तो योग में इसे उत्‍तम माना जाता है, लेकिन फल प्राप्ति के मामले में देखें तो फलों का समान फल कहा गया है। इसे बहुत उत्‍तम नहीं माना जाता है।

यात्रा के संबंध में कहा जाता है कि यात्रा के दौरान इडा नाड़ी का चलना शुभ है लेकिन जहां पहुंचता है वहां पहुंचकर घर, ऑफिस या स्‍थल में प्रवेश करते समय पिंगला नाड़ी चलनी चाहिए।
अगली बार जब आप घर से बाहर निकलें तो यह जांच कर लें कि आपका कौनसा स्‍वर चल रहा है। इसी से आपको एक फौरी अनुमान हो जाएगा कि आप जिस काम के लिए निकल रहे हैं वह पूरा होगा कि नहीं।

स्वर विज्ञान एक बहुत ही आसान विद्या है। इनके अनुसार स्वरोदय, नाक के छिद्र से ग्रहण किया जाने वाला श्वास है, जो वायु के रूप में होता है। श्वास ही जीव का प्राण है और इसी श्वास को स्वर कहा जाता है।
स्वर के चलने की क्रिया को उदय होना मानकर स्वरोदय कहा गया है तथा विज्ञान, जिसमें कुछ विधियाँ बताई गई हों और विषय के रहस्य को समझने का प्रयास हो, उसे विज्ञान कहा जाता है। स्वरोदय विज्ञान एक आसान प्रणाली है, जिसे प्रत्येक श्वास लेने वाला जीव प्रयोग में ला सकता है।
स्वरोदय अपने आप में पूर्ण विज्ञान है। इसके ज्ञान मात्र से ही व्यक्ति अनेक लाभों से लाभान्वित होने लगता है। इसका लाभ प्राप्त करने के लिए आपको कोई कठिन गणित, साधना, यंत्र-जाप, उपवास या कठिन तपस्या की आवश्यकता नहीं होती है। आपको केवल श्वास की गति एवं दिशा की स्थिति ज्ञात करने का अभ्यास मात्र करना है।
यह विद्या इतनी सरल है कि अगर थोड़ी लगन एवं आस्था से इसका अध्ययन या अभ्यास किया जाए तो जीवनपर्यन्त इसके असंख्य लाभों से अभिभूत हुआ जा सकता है।

सूर्य, चंद्र और सुषुम्ना स्वर
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सर्वप्रथम हाथों द्वारा नाक के छिद्रों से बाहर निकलती हुई श्वास को महसूस करने का प्रयत्न कीजिए। देखिए कि कौन से छिद्र से श्वास बाहर निकल रही है। स्वरोदय विज्ञान के अनुसार अगर श्वास दाहिने छिद्र से बाहर निकल रही है तो यह सूर्य स्वर होगा।
इसके विपरीत यदि श्वास बाएँ छिद्र से निकल रही है तो यह चंद्र स्वर होगा एवं यदि जब दोनों छिद्रों से निःश्वास निकलता महसूस करें तो यह सुषुम्ना स्वर कहलाएगा। श्वास के बाहर निकलने की उपरोक्त तीनों क्रियाएँ ही स्वरोदय विज्ञान का आधार हैं।
सूर्य स्वर पुरुष प्रधान है। इसका रंग काला है। यह शिव स्वरूप है, इसके विपरीत चंद्र स्वर स्त्री प्रधान है एवं इसका रंग गोरा है, यह शक्ति अर्थात्‌ पार्वती का रूप है। इड़ा नाड़ी शरीर के बाईं तरफ स्थित है तथा पिंगला नाड़ी दाहिनी तरफ अर्थात्‌ इड़ा नाड़ी में चंद्र स्वर स्थित रहता है और पिंगला नाड़ी में सूर्य स्वर। सुषुम्ना मध्य में स्थित है, अतः दोनों ओर से श्वास निकले वह सुषम्ना स्वर कहलाएगा।

स्वर को पहचानने की सरल विधियाँ
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(1) शांत भाव से मन एकाग्र करके बैठ जाएँ। अपने दाएँ हाथ को नाक छिद्रों के पास ले जाएँ। तर्जनी अँगुली छिद्रों के नीचे रखकर श्वास बाहर फेंकिए। ऐसा करने पर आपको किसी एक छिद्र से श्वास का अधिक स्पर्श होगा। जिस तरफ के छिद्र से श्वास निकले, बस वही स्वर चल रहा है।
(2) एक छिद्र से अधिक एवं दूसरे छिद्र से कम वेग का श्वास निकलता प्रतीत हो तो यह सुषुम्ना के साथ मुख्य स्वर कहलाएगा।
(3) एक अन्य विधि के अनुसार आईने को नासाछिद्रों के नीचे रखें। जिस तरफ के छिद्र के नीचे काँच पर वाष्प के कण दिखाई दें, वही स्वर चालू समझें।

जीवन में स्वर का चमत्कार
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स्वर विज्ञान अपने आप में दुनिया का महानतम ज्योतिष विज्ञान है जिसके संकेत कभी गलत नहीं जाते।
शरीर की मानसिक और शारीरिक क्रियाओं से लेकर दैवीय सम्पर्कों और परिवेशीय घटनाओं तक को प्रभावित करने की क्षमता रखने वाला स्वर विज्ञान दुनिया के प्रत्येक व्यक्ति के जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण है।
स्वर विज्ञान का सहारा लेकर आप जीवन को नई दिशा दृष्टि डे सकते है.
दिव्य जीवन का निर्माण कर सकते हैं, लौकिक एवं पारलौकिक यात्रा को सफल बना सकते हैं। यही नहीं तो आप अपने सम्पर्क में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति और क्षेत्र की धाराओं तक को बदल सकने का सामर्थ्य पा जाते हैं।
अपनी नाक के दो छिद्र होते हैं। इनमें से सामान्य अवस्था में एक ही छिद्र से हवा का आवागमन होता रहता है। कभी दायां तो कभी बांया। जिस समय स्वर बदलता है उस समय कुछ सैकण्ड के लिए दोनों नाक में हवा निकलती प्रतीत होती है। इसके अलावा कभी - कभी सुषुम्ना नाड़ी के चलते समय दोनों नासिक छिद्रों से हवा निकलती है। दोनों तरफ सांस निकलने का समय योगियों के लिए योग मार्ग में प्रवेश करने का समय होता है।
बांयी तरफ सांस आवागमन का मतलब है आपके शरीर की इड़ा नाड़ी में वायु प्रवाह है।
इसके विपरीत दांयी नाड़ी पिंगला है।
दोनों के मध्य सुषुम्ना नाड़ी का स्वर प्रवाह होता है।
अपनी नाक से निकलने वाली साँस को परखने मात्र से आप जीवन के कई कार्यों को बेहतर बना सकते हैं। सांस का संबंध तिथियों और वारों से जोड़कर इसे और अधिक आसान बना दिया गया है।

जिस तिथि को जो सांस होना चाहिए, वही यदि होगा तो आपका दिन अच्छा जाएगा। इसके विपरीत होने पर आपका दिन बिगड़ा ही रहेगा। इसलिये साँस पर ध्यान दें और जीवन विकास की यात्रा को गति दें।
मंगल, शनि और रवि का संबंध सूर्य स्वर से है जबकि शेष का संबंध चन्द्र स्वर से।
आपके दांये नथुने से निकलने वाली सांस पिंगला है। इस स्वर को सूर्य स्वर कहा जाता है। यह गरम होती है।
जबकि बांयी ओर से निकलने वाले स्वर को इड़ा नाड़ी का स्वर कहा जाता है। इसका संबंध चन्द्र से है और यह स्वर ठण्डा है।

शुक्ल पक्ष:-
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• प्रतिपदा, द्वितीया व तृतीया बांया (उल्टा)
• चतुर्थी, पंचमी एवं षष्ठी -दांया (सीधा)
• सप्तमी, अष्टमी एवं नवमी बांया (उल्टा)
• दशमी, एकादशी एवं द्वादशी –दांया (सीधा)
• त्रयोदशी, चतुर्दशी एवं पूर्णिमा – बांया (उल्टा)

कृष्ण पक्ष:-
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• प्रतिपदा, द्वितीया व तृतीया दांया (सीधा)
• चतुर्थी, पंचमी एवं षष्ठी बांया (उल्टा)
• सप्तमी, अष्टमी एवं नवमी दांया(सीधा)
• दशमी, एकादशी एवं द्वादशी बांया(उल्टा)
• त्रयोदशी, चतुर्दशी, अमावास्या --दांया(सीधा)

सवेरे नींद से जगते ही नासिका से स्वर देखें। जिस तिथि को जो स्वर होना चाहिए, वह हो तो बिस्तर पर उठकर स्वर वाले नासिका छिद्र की तरफ के हाथ की हथेली का चुम्बन ले लें और उसी दिशा में मुंह पर हाथ फिरा लें।
यदि बांये स्वर का दिन हो तो बिस्तर से उतरते समय बांया पैर जमीन पर रखकर नीचे उतरें, फिर दायां पैर बांये से मिला लें और इसके बाद दुबारा बांया पैर आगे निकल कर आगे बढ़ लें।
यदि दांये स्वर का दिन हो और दांया स्वर ही निकल रहा हो तो बिस्तर पर उठकर दांयी हथेली का चुम्बन ले लें और फिर बिस्तर से जमीन पर पैर रखते समय पर पहले दांया पैर जमीन पर रखें और आगे बढ़ लें।
यदि जिस तिथि को स्वर हो, उसके विपरीत नासिका से स्वर निकल रहा हो तो बिस्तर से नीचे नहीं उतरें और जिस तिथि का स्वर होना चाहिए उसके विपरीत करवट लेट लें। इससे जो स्वर चाहिए, वह शुरू हो जाएगा और उसके बाद ही बिस्तर से नीचे उतरें।

स्नान, भोजन, शौच आदि के वक्त दाहिना स्वर रखें।
पानी, चाय, काफी आदि पेय पदार्थ पीने, पेशाब करने, अच्छे काम करने आदि में बांया स्वर होना चाहिए।
जब शरीर अत्यधिक गर्मी महसूस करे तब दाहिनी करवट लेट लें और बांया स्वर शुरू कर दें। इससे तत्काल शरीर ठण्ढक अनुभव करेगा।
जब शरीर ज्यादा शीतलता महसूस करे तब बांयी करवट लेट लें, इससे दाहिना स्वर शुरू हो जाएगा और शरीर जल्दी गर्मी महसूस करेगा।
जिस किसी व्यक्ति से कोई काम हो, उसे अपने उस तरफ रखें जिस तरफ की नासिका का स्वर निकल रहा हो। इससे काम निकलने में आसानी रहेगी।
जब नाक से दोनों स्वर निकलें, तब किसी भी अच्छी बात का चिन्तन न करें अन्यथा वह बिगड़ जाएगी। इस समय यात्रा न करें अन्यथा अनिष्ट होगा। इस समय सिर्फ भगवान का चिन्तन ही करें। इस समय ध्यान करें तो ध्यान जल्दी लगेगा।
दक्षिणायन शुरू होने के दिन प्रातःकाल जगते ही यदि चन्द्र स्वर हो तो पूरे छह माह अच्छे गुजरते हैं। इसी प्रकार उत्तरायण शुरू होने के दिन प्रातः जगते ही सूर्य स्वर हो तो पूरे छह माह बढ़िया गुजरते हैं। कहा गया है - कर्के चन्द्रा, मकरे भानु।
रोजाना स्नान के बाद जब भी कपड़े पहनें, पहले स्वर देखें और जिस तरफ स्वर चल रहा हो उस तरफ से कपड़े पहनना शुरू करें और साथ में यह मंत्र बोलते जाएं - ॐ जीवं रक्ष। इससे दुर्घटनाओं का खतरा हमेशा के लिए टल जाता है।

आप घर में हो या आफिस में, कोई आपसे मिलने आए और आप चाहते हैं कि वह ज्यादा समय आपके पास नहीं बैठा रहे। ऎसे में जब भी सामने वाला व्यक्ति आपके कक्ष में प्रवेश करे उसी समय आप अपनी पूरी साँस को बाहर निकाल फेंकियें, इसके बाद वह व्यक्ति जब आपके करीब आकर हाथ मिलाये, तब हाथ मिलाते समय भी यही क्रिया गोपनीय रूप से दोहरा दें।
आप देखेंगे कि वह व्यक्ति आपके पास ज्यादा बैठ नहीं पाएगा, कोई न कोई ऎसा कारण उपस्थित हो जाएगा कि उसे लौटना ही पड़ेगा। इसके विपरीत आप किसी को अपने पास ज्यादा देर बिठाना चाहें तो कक्ष प्रवेश तथा हाथ मिलाने की क्रियाओं के वक्त सांस को अन्दर खींच लें। आपकी इच्छा होगी तभी वह व्यक्ति लौट पाएगा।
कई बार ऐसे अवसर आते हैं, जब कार्य अत्यंत आवश्यक होता है, लेकिन स्वर विपरीत चल रहा होता है। ऐसे समय में स्वर की प्रतीक्षा करने पर उत्तम अवसर हाथों से निकल सकता है, अत: स्वर परिवर्तन के द्वारा अपने अभीष्ट की सिद्धि के लिए प्रस्थान करना चाहिए या कार्य प्रारंभ करना चाहिए। स्वर विज्ञान का सम्यक ज्ञान आपको सदैव अनुकूल परिणाम प्रदान करवा सकता है।

कब करें कौन सा काम
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ग्रहों को देखे बिना स्वर विज्ञान के ज्ञान से अनेक समस्याओं, बाधाओं एवं शुभ परिणामों का बोध इन नाड़ियों से होने लगता है, जिससे अशुभ का निराकरण भी आसानी से किया जा सकता है।चंद्रमा एवं सूर्य की रश्मियों का प्रभाव स्वरों पर पड़ता है। चंद्रमा का गुण शीतल एवं सूर्य का उष्ण है।
शीतलता से स्थिरता, गंभीरता, विवेक आदि गुण उत्पन्न होते हैं और उष्णता से तेज, शौर्य, चंचलता, उत्साह, क्रियाशीलता, बल आदि गुण पैदा होते हैं। किसी भी काम का अंतिम परिणाम उसके आरंभ पर निर्भर करता है। शरीर व मन की स्थिति, चंद्र व सूर्य या अन्य ग्रहों एवं नाड़ियों को भलीभांति पहचान कर यदि काम शुरु करें तो परिणाम अनुकूल निकलते हैं।
स्वर वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला है कि विवेकपूर्ण और स्थायी कार्य चंद्र स्वर में किए जाने चाहिए, जैसे विवाह, दान, मंदिर, जलाशय निर्माण, नया वस्त्र धारण करना, घर बनाना, आभूषण खरीदना, शांति अनुष्ठान कर्म, व्यापार, बीज बोना, दूर प्रदेशों की यात्रा, विद्यारंभ, धर्म, यज्ञ, दीक्षा, मंत्र, योग क्रिया आदि ऐसे कार्य हैं कि जिनमें अधिक गंभीरता और बुद्धिपूर्वक कार्य करने की आवश्यकता होती है।
इसीलिए चंद्र स्वर के चलते इन कार्यो का आरंभ शुभ परिणामदायक होता है। उत्तेजना, आवेश और जोश के साथ करने पर जो कार्य ठीक होते हैं, उनमें सूर्य स्वर उत्तम कहा जाता है। दाहिने नथुने से श्वास ठीक आ रही हो अर्थात सूर्य स्वर चल रहा हो तो परिणाम अनुकूल मिलने वाला होता है।

दबाए मानसिक विकार
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कुछ समय के लिए दोनों नाड़ियां चलती हैं अत: प्राय: शरीर संधि अवस्था में होता है। इस समय पारलौकिक भावनाएं जागृत होती हैं। संसार की ओर से विरक्ति, उदासीनता और अरुचि होने लगती है। इस समय में परमार्थ चिंतन, ईश्वर आराधना आदि की जाए, तो सफलता प्राप्त हो सकती है। यह काल सुषुम्ना नाड़ी का होता है, इसमें मानसिक विकार दब जाते हैं और आत्मिक भाव का उदय होता है।

अन्य उपाय
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यदि किसी क्रोधी पुरुष के पास जाना है तो जो स्वर नहीं चल रहा है, उस पैर को आगे बढ़ाकर प्रस्थान करना चाहिए तथा अचलित स्वर की ओर उस पुरुष या महिला को लेकर बातचीत करनी चाहिए। ऐसा करने से क्रोधी व्यक्ति के क्रोध को आपका अविचलित स्वर का शांत भाग शांत बना देगा और मनोरथ की सिद्धि होगी।
गुरु, मित्र, अधिकारी, राजा, मंत्री आदि से वाम स्वर से ही वार्ता करनी चाहिए। कई बार ऐसे अवसर भी आते हैं, जब कार्य अत्यंत आवश्यक होता है लेकिन स्वर विपरीत चल रहा होता है।ऐसे समय स्वर बदलने के प्रयास करने चाहिए।
स्वर को परिवर्तित कर अपने अनुकूल करने के लिए कुछ उपाय कर लेने चाहिए। जिस नथुने से श्वास नहीं आ रही हो, उससे दूसरे नथुने को दबाकर पहले नथुने से श्वास निकालें। इस तरह कुछ ही देर में स्वर परिवर्तित हो जाएगा। घी खाने से वाम स्वर और शहद खाने से दक्षिण स्वर चलना प्रारंभ हो जाता है।

प्राणयोग ध्यान साधना उपचार
*जो चाहें वो पायें*

प्राणयोगी पं. नीरज मुदगल
मों. 096912 91261

आप का आज का दिन मंगलमयी हो - आप स्वस्थ रहे, सुखी रहे - इस कामना के साथ !

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