19/10/2025
ुर्दशी
प्राचीन काल में एक रन्तिदेव नामक राजा था। वह हमेशा धार्मिक कार्य में लगा रहता था। जब उनका अंतिम समय आया तब उन्हें लेने के लिए यमराज के दूत आये और उन्होंने कहा कि राजन अब आपका नरक में जाने का समय आ गया हैं। नरक में जाने की बात सुनकर राजा हैरान रह गये और उन्होंने यमदूतों से पूछा की मैंने तो कभी कोई अधर्म या पाप नहीं किया।
मैंने हमेशा अपना जीवन अच्छे कार्यों को करने में व्यतीत किया। तो आप मुझे नरक में क्यों ले जा रहे हो। इस प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने बताया कि एक बार राजन तुम्हारे महल के द्वारा एक ब्राहमण आया था जो भूखा ही तुम्हारे द्वारा से लौट गया। इस कारण ही तुन्हें नरक में जाना पड रहा हैं।
यह बात सुनकर राजा ने यमराज से अपनी गलती को सुधारने के लिए एक वर्ष का और समय देने की प्रार्थना की। यमराज ने राजा के द्वारा किये गये नम्र निवेदन को मान लिया और उन्हें एक वर्ष का समय दे दिया। यमदूतों से मुक्ति पाने के बाद राजा ऋषियों के पास गए और उन्हें पूरी बात विस्तार से सुनायी।
यह सब सुनकर ऋषियों ने राजा को एक उपाय बताया। जिसके अनुसार ही उसने कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन व्रत रखा और ब्राहमणों को भोजन कराया जिसके बाद उसे नरक जाने से मुक्ति मिल गई। उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति हेतु पृथ्वी पर कार्तिक चतुर्दशी के दिन का व्रत प्रचलित है।
रूप चतुर्दशी कथा,
प्राचीन काल में हिरण्यगर्भ नामक राज्य में एक योगी रहा करते थे। एक बार योगीराज ने प्रभु को पाने की इच्छा से समाधि धारण करने का प्रयास किया। अपनी इस तपस्या के दौरान उन्हें अनेक कष्टों का सामना करना पडा़। उनकी देह पर कीड़े पड़ गए, बालों, रोओं और भौंहों पर जुएँ पैदा हो गई।
अपनी इतनी बुरी हालत के कारण वह बहुत दुःखी होते हैं। तभी विचरण करते हुए नारद जी उन योगी राज जी के पास आते हैं और उन योगीराज से उनके दुःख का कारण पूछते हैं। योगीराज उनसे कहते हैं कि, हे मुनिवर मैं प्रभु को पाने के लिए उनकी भक्ति में लीन रहा परंतु मुझे इस कारण अनेक कष्ट हुए हैं ऎसा क्यों हुआ? योगी के करूणा भरे वचन सुनकर नारदजी उनसे कहते हैं, हे योगीराज तुमने मार्ग तो उचित अपनाया किंतु देह आचार का पालन नहीं जान पाए इस कारण तुम्हारी यह दशा हुई है।
नारद जी की बात को सुन, योगीराज उनसे देह आचार के विषय में पूछते हैं इस पर नारदजी उन्हें कहते हैं कि सर्वप्रथम आप कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन व्रत रखकर भगवान की पूजा अराधना करें क्योंकि ऎसा करने से आपका शरीर पुन: पहले जैसा स्वस्थ और रूपवान हो जाएगा। तब आप मेरे द्वारा बताए गए देह आचार को कर सकेंगे।
नारद जी के वचन सुन योगीराज ने वैसा ही किया और उस व्रत के के बाद उनका शरीर पहले जैसा स्वस्थ एवं सुंदर हो गया। अत: तभी से इस चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी के नाम से जाना जाने लगा।
पूजन विधि-
नरक चतुर्दशी के दिन शरीर पर तिल के तेल की मालिश करके सूर्योदय से पहले स्नान करना चाहिए। स्नान के दौरान अपामार्ग की पत्तियों को शरीर पर स्पर्श करना चाहिए। अपामार्ग को निम्न मंत्र पढ़कर मस्तक पर घुमाना चाहिए-
सितालोष्ठसमायुक्तं सकण्टकदलान्वितम्।
हर पापमपामार्ग भ्राम्यमाण: पुन: पुन:।।
नहाने के उपरांत साफ कपड़े पहनकर, तिलक लगाकर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके निम्न मंत्रों से प्रत्येक नाम से तिलयुक्त तीन-तीन जलांजलि देनी चाहिए। यह यम-तर्पण कहलाता है। इससे वर्ष भर के पाप नष्ट हो जाते हैं-
ऊं यमाय नम:, ऊं धर्मराजाय नम:, ऊं मृत्यवे नम:, ऊं अन्तकाय नम:, ऊं वैवस्वताय नम:, ऊं कालाय नम:, ऊं सर्वभूतक्षयाय नम:, ऊं औदुम्बराय नम:, ऊं दध्राय नम:, ऊं नीलाय नम:, ऊं परमेष्ठिने नम:, ऊं वृकोदराय नम:, ऊं चित्राय नम:, ऊं चित्रगुप्ताय नम:।
इस प्रकार तर्पण कर्म सभी पुरुषों को करना चाहिए, चाहे उनके माता-पिता गुजर चुके हों या जीवित हों। फिर देवताओं का पूजन करके शाम के समय यमराज को दीपदान करने का विधान है।
नरक चतुर्दशी पर भगवान श्रीकृष्ण की पूजा भी करनी चाहिए, क्योंकि इसी दिन उन्होंने नरकासुर का वध किया था।
इस दिन जो भी व्यक्ति विधिपूर्वक भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करता है, उसके मन के सारे पाप दूर हो जाते हैं और अंत में उसे वैकुंठ में स्थान मिलता है।
|| जानते हैं क्यों करते है यमराज की पूजा ||
जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर दैत्यराज बलि से तीन पग धरती मांगकर तीनों लोकों को नाप लिया तो राजा बलि ने उनसे प्रार्थना की- ‘हे प्रभु! मैं आपसे एक वरदान मांगना चाहता हूं। यदि आप मुझसे प्रसन्न हैं तो वर देकर मुझे कृतार्थ कीजिए।
तब भगवान वामन ने पूछा- क्या वरदान मांगना चाहते हो, राजन? दैत्यराज बलि बोले- प्रभु! आपने कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से लेकर अमावस्या की अवधि में मेरी संपूर्ण पृथ्वी नाप ली है, इसलिए जो व्यक्ति मेरे राज्य में चतुर्दशी के दिन यमराज के लिए दीपदान करे, उसे यम यातना नहीं होनी चाहिए और जो व्यक्ति इन तीन दिनों में दीपावली का पर्व मनाए, उनके घर को लक्ष्मीजी कभी न छोड़ें।
राजा बलि की प्रार्थना सुनकर भगवान वामन बोले- राजन! मेरा वरदान है कि जो चतुर्दशी के दिन नरक के स्वामी यमराज को दीपदान करेंगे, उनके पितर कभी नरक में नहीं रहेंगे और जो व्यक्ति इन तीन दिनों में दीपावली का उत्सव मनाएंगे, उन्हें छोड़कर मेरी प्रिय लक्ष्मी अन्यत्र न जाएंगी।
भगवान वामन द्वारा राजा बलि को दिए इस वरदान के बाद से ही नरक चतुर्दशी के दिन यमराज के निमित्त व्रत, पूजन और दीपदान का प्रचलन आरंभ हुआ, जो आज तक चला आ रहा है।
श्रीकृष्ण द्वारा इसी दिन नरकासुर का वध किया गया था
नरक चतुर्दशी का पर्व मनाने के पीछे कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। उन्हीं में से एक कथा नरकासुर वध की भी है जो इस प्रकार है-
प्रागज्योतिषपुर नगर का राजा नरकासुर नामक दैत्य था। उसने अपनी शक्ति से इंद्र, वरुण, अग्नि, वायु आदि सभी देवताओं को परेशान कर दिया। वह संतों को भी त्रास देने लगा। महिलाओं पर अत्याचार करने लगा। जब उसका अत्याचार बहुत बढ़ गया तो देवता व ऋषिमुनि भगवान श्रीकृष्ण की शरण में गए। भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें नरकासुर से मुक्ति दिलाने का आश्वासन दिया, लेकिन नरकासुर को स्त्री के हाथों मरने का श्राप था।
इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा को सारथी बनाया तथा उन्हीं की सहायता से नरकासुर का वध किया। इस प्रकार श्रीकृष्ण ने कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध कर देवताओं व संतों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई। उसी की खुशी में दूसरे दिन अर्थात कार्तिक मास की अमावस्या को लोगों ने अपने घरों में दीएं जलाए। तभी से नरक चतुर्दशी तथा दीपावली का त्योहार मनाया जाने लगा।