23/10/2025
_*।। यम द्वितीया-पर्व ।।*_
देश के विभिन्न-अंचलों के लाखों लोग आज मथुरा में यमुना-स्नान के लिए एकत्र हो रहे हैं । इसका संबंध वैदिक देवता यम से है। जातीय-स्मृतियों में यम मृत्यु के देवता हैं। यम और नचिकेता का संवाद प्रसिद्ध है।नचिकेता के पिता थे -वाजश्रवा -औद्दालक। उन्होंने विश्वजीत यज्ञ किया तो नचिकेता ने देखा कि वे बूढ़ी और बीमार गायों का दान कर रहे हैं । यह देख कर पुत्र ने पिता से पूछा-
*कस्मै मां दास्यसीति ?*
अर्थात् तुम मुझे किसको अर्पित करोगे? औद्दालक क्रोध में थे, बोले-
*मृत्यवे त्वा ददामीति ।*
अर्थात् मैं तुम्हें मृत्यु ( यम ) को अर्पित करता हूं।
नचिकेता यमराज के पास चले गये । उस समय यमराज अपने स्थान पर नहीं थे। नचिकेता ने तीन दिन एवं तीन रातों तक यमराज की प्रतीक्षा की। जब आचार्य यम को यह ग्यात हुआ कि मेरे द्वार पर अतिथि तीन दिन से भूखा रहा तो वे व्याकुल हो जाते हैं और नचिकेता से पुत्र, पौत्र, पशु, हाथी, सोना, घोड़े, विशाल-राज्य आदि का वरदान माँगने के लिए आग्रह करते हैं। नचिकेता उत्तर देते हैं कि ये सभी वस्तुएँ क्षणभंगुर हैं। यम ने कई तरह से नचिकेता की परीक्षा ली किन्तु जब यम ने जान लिया कि यह सत्य की खोज में आया है, तब यम ने नचिकेता को आत्म-तत्त्व का उपदेश किया-
*नैव वाचा न मनसा प्राप्तं शक्यो न चक्षुषा।*
*अस्तित्वति ब्रुवतोऽन्यत्र कथं तदुपलभ्यत।।*
( कठ. 2.3.12 )
इसे न तो वाणी ( अभिव्यक्ति के शब्द ), न मन ( बौद्धिक प्रक्रियाएँ ) और न ही नेत्र ( इंद्रिय ) के माध्यम से प्राप्त ( समझा ) जा सकता है। जो इसे विद्यमान कहता है, उसके अलावा इसे कोई और कैसे जान सकता है? यह सूक्ष्मतम से भी सूक्ष्मतर है और किसी भी तार्किक-व्याख्या से समझ में नहीं आता। इसे "अस्ति" या "अस्तित्व"कहा जाता है। यम नचिकेता को मृत्यु का रहस्य बतलाते हैं, जिसका विस्तार कठोपनिषद में है।यमराज नचिकेता से प्रसन्न होते हैं और तीन दिन की प्रतीक्षा के लिए तीन वरदानों के अलावा यम नचिकेता अग्निविद्या का उपदेश करते हैं और आशीर्वाद देते हैं कि भविष्य में अग्नि-विद्या को नचिकेता-अग्नि कहा जाएगा। यम विवस्वान के पुत्र है ! यम की जुडवां- बहन का नाम है यमी । जब यमी ने यम से रति-प्रस्ताव किया तब यम ने इसे अधर्म के रूप में निरूपित किया ।"यह संवाद
ऋग्वेद:दशम मंडल: सूक्त-१०में है।
ओ चित्सखायं सख्या ववृत्या
तिरः पुरू चिदर्णवं जगन्वान्।
पितुर्नपातमा दधीत वेधा
अधि क्षमि प्रतरं दीध्यानः।।
( १०:१०:१: )
यमद्वितीया के दिन यमराज यमुना के घर पर आये। बहिन यमुना ने आतिथ्य-सत्कार किया, टीका किया, भोजन कराया था, यम ने दक्षिणा के रूप में वरदान दिया कि जो आज के दिन यमुना में स्नान करें उन्हें यमदंड से भय नहीं होगा। आज इसी मिथक के प्रभाव से मथुरा में विशाल स्नानमेला हो रहा है। देश के विभिन्न भागों से लाखों लोग आये हुए हैं । यमुनास्नान का इतना विशाल आयोजन !
आचार्य वासुदेव शरण अग्रवाल कहते हैं ये पर्व और परिक्रमा राष्ट्र के स्वास्थ्य का लक्षण है । उनके शब्द हैं "जब तक भारतीय जाति का जीवन पृथिवी के साथ बद्धमूल है, जब तक हमारे धार्मिक पर्वो पर लाखों मनुष्य नदी और जलाशयों के तटों पर एकत्र होते हैं, तब तक हमारे आन्तरिक- गठन में दैवी स्वास्थ्य के अमर चिह्नों का अस्तित्व सकुशल समझना चाहिये ।पृथिवी के एक-एक जलाशय और सरोवर को भारतीय भावना ने ठीक प्रकार समझने का प्रयत्न किया, उनके साथ सनातन सौहार्द का भाव उत्पन्न किया जो हर एक पीढ़ी के साथ नये रस से उमड़ता चला जाता है। न हमारे तीर्थ और जलाशय पुराने होते हैं और न हमारा उनके साथ सख्य-भाव ही कुंठित होता है। यह जीवन की अमरबेल है जिसकी जड़ें पाताल में है। यह इस बात की निशानी है कि हम देश की विशाल प्रकृति के साथ अपना शुद्ध सम्बन्ध अभी तक बनाए हुए हैं। जिस देवयुग में यहां नदियों की वारिधाराएँ अखंड प्रवाह से बह रहीं थीं उस समय जिन मनीषियों ने प्रगट होकर सारे भू-भाग को मानों देवत्व प्रदान करने के लिए नदियों के तटों और संगमों पर नगरों का निर्माण किया। वे जन-सन्निवेश के आदि केन्द्र तीर्थ विशेष के रूप में हमारे सामने आज भी जीवित हैं । किसी नये भू-प्रदेश को अपना कर जातीय- जीवन के साथ उसका तार पिरो देना भी एक बड़ी कला है। गंगा की अन्तर्वेदि में खड़े होकर आद्य ऋषियों ने विचार किया कि किस प्रकार अपने भू-भाग के साथ अपनेपन -स्व का सम्बन्ध चिरजीवी बनाया जा सकता है ? इस की जो युक्ति उन्होंने निश्चित की वह भूमि को देवत्व प्रदान करने का प्रणाली थी। प्रत्येक सलिलाशय, वारिधारा, नदी, कुंड, पर्वतपाद के मूल में देवत्व का अधिष्ठान है।
[ ब्रजभारतीवर्ष १, भाद्रपद १९६८ वि० अंक ५ ]