10/01/2025
#हंसगुल्ला 168
*गुलजार साहब की दर्दे दास्तान.....*
Gulzar with his dentist।
Gulzar: डॉक्टर साब , दो दिनों से लेफ़्ट साइड का मोलर बहुत दर्द कर रहा हैं, रात भर नींद नहीं आई।
Dentist: Hmmm महसूस तो होता ही होगा कुछ दर्द । धड़कन के आग़ोश में लिपटी, सहमे हुए यूकेलिप्टस के पत्तों की दो बूंद यूं ही दांत पर डाल देते।
Gulzar: doctor वो छोड़ दीजिए, दर्द बहुत हो रहा हैं , कुछ कीजिए।
Dentist : दांतो तले रूई के ख़्वाब में रात की स्याही सी वो दवा, दांतों के साथ बातें करके किसी पुराने नुस्ख़े की तरह आपको ठंडाई देती है।
Gulzar: डाक्टर आप समझते क्यों नहीं कि अन्दर कितना दर्द हो रहा हैं ? Please कुछ कीजिए।
Dentist: (looking into his open mouth carefully) हां कुछ अटके हुए अल्फ़ाज़ हैं दो दांतों के बीच, बहुत पुरानी कहावतों की तरह गूंजते ,काली रात की गवाही दे रहै हैं।
Gulzar: डॉक्टर, जो कुछ है वहां, निकालो जल्दी, दर्द सहा नहीं जा रहा है PLEASE।
Dentist: आसमान के साथ गुफ्तगू करती हुई उस हिलती हुई सी कुर्सी पर आप अपनी पीठ की मुलाक़ात फ़रमायें।
Gulzar: क्या ?? क्या करूं? मैं समझा नही?
Dentist: ये सुई आपके इस आ रहे दर्द को गुमनामी के आग़ोश में लुप्त कराएगी, इन अटके अल्फ़ाज़ों को एक बादल की क़लम से लिखे हुए आंधी की तरह नशेमन तक ले जायेगी।
उसी उजड़े हुए शहर की ख़ाक़ से जब आप जागेंगे तब आपको एक बेदख़ल दांत दो लाइनों का इंतजार करते इस ट्रे में पड़ा मिलेगा?
Gulzar: यानी कि ??
Dentist: अब पता चला दूसरों पे क्या बीतती है जब *"दिन ख़ाली ख़ाली बर्तन है", "इस मोड़ से जाते हैं, कुछ सुस्त कदम रस्ते, कुछ तेज कदम राहें,"*
*"आँधी की तरह उड़कर इक राह गुज़रती है,*
*शरमाती हुई कोई क़दमों से उतरती है,*
टाइप की लंबी लंबी छोड़ते हो??....
*दांत निकालना पड़ेगा। सड़ गया है। समझे??*
😁😂😂