Astro ajay bhushan

Astro ajay bhushan ज्योतिष और कर्मकांड

16/07/2025
19/06/2025

ज्योतिष (Hindu astrology) में, ग्रहों (graha) को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। नौ ग्रहों (Navagraha) को व्यक्ति के जीवन पर प्रभाव डालने वाला माना जाता है। प्रत्येक ग्रह का अपना विशिष्ट महत्व है और यह जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाता है।
नौ ग्रहों का ज्योतिष में महत्व:
सूर्य (Sun):
सूर्य को ग्रहों का राजा माना जाता है और यह आत्मा, पिता, नेतृत्व, और आत्म-सम्मान का प्रतिनिधित्व करता है।
चंद्र (Moon):
चंद्रमा मन, माता, भावनाएं, और मानसिक स्वास्थ्य का प्रतिनिधित्व करता है।
मंगल (Mars):
मंगल ग्रह ऊर्जा, पराक्रम, साहस, और क्रोध का प्रतिनिधित्व करता है।
बुध (Mercury):
बुध बुद्धि, तर्क, संचार, और बुद्धि का प्रतिनिधित्व करता है।
बृहस्पति (Jupiter):
बृहस्पति ज्ञान, बुद्धि, समृद्धि, और भाग्य का प्रतिनिधित्व करता है।
शुक्र (Venus):
शुक्र प्रेम, सौंदर्य, कला, और संबंध का प्रतिनिधित्व करता है।
शनि (Saturn):
शनि न्याय, कर्म, अनुशासन, और दीर्घायु का प्रतिनिधित्व करता है।
राहु (Rahu):
राहु एक छाया ग्रह है जो भौतिक इच्छाओं, भ्रम, और अनिश्चितता का प्रतिनिधित्व करता है।
केतु (Ketu):
केतु भी एक छाया ग्रह है जो आध्यात्मिकता, रहस्यवाद, और मुक्ति का प्रतिनिधित्व करता है।
ग्रहों की दृष्टि और स्थान:
ज्योतिष में, ग्रहों की दृष्टि (drishti) और स्थान (sthan) दोनों का ही जातक के जीवन पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
प्रत्येक ग्रह अपने से सातवें भाव पर पूर्ण दृष्टि रखता है।
बृहस्पति ग्रह अपने से पांचवें और नौवें भाव पर भी दृष्टि रखता है।
शनि ग्रह तीसरे और दसवें भाव पर भी दृष्टि रखता है।
मंगल ग्रह चौथे और आठवें भाव को देखता है।
राहु और केतु क्रमशः पांचवें और नौवें भाव में पूर्ण दृष्टि रखते हैं।
ग्रहों की स्थिति और दृष्टि के आधार पर, ज्योतिषी जातक के जीवन के विभिन्न पहलुओं जैसे कि विवाह, करियर, स्वास्थ्य, और भाग्य के बारे में भविष्यवाणी करते हैं।
अन्य महत्वपूर्ण बातें:
कुछ ग्रह शुभ (auspicious) माने जाते हैं, जबकि कुछ अशुभ (inauspicious)।
ग्रहों की युति (conjunction) और दृष्टि का भी जातक के जीवन पर प्रभाव पड़ता है।
ज्योतिष में, ग्रहों के प्रभावों को कम करने या बढ़ाने के लिए विभिन्न उपाय (remedies) भी बताए गए हैं।

16/06/2025

ग्रहों का हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, ग्रहों की स्थिति और गति व्यक्ति के स्वभाव, भाग्य और जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करती है। ज्योतिष में, ग्रहों को विभिन्न ऊर्जाओं और गुणों से जोड़ा जाता है, जो मानव शरीर और मन पर प्रभाव डालते हैं।
ग्रहों के प्रभाव के कुछ प्रमुख उदाहरण:
सूर्य:
सूर्य को आत्मा और मान-सम्मान का कारक माना जाता है। ज्योतिष में, सूर्य की स्थिति व्यक्ति के स्वभाव और व्यक्तित्व को प्रभावित करती है।
चंद्रमा:
चंद्रमा मन और भावनाओं का कारक माना जाता है। ज्योतिष में, चंद्रमा की स्थिति व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य और स्वभाव को प्रभावित करती है।
मंगल:
मंगल ऊर्जा और साहस का कारक माना जाता है। ज्योतिष में, मंगल की स्थिति व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती है।
बुध:
बुध बुद्धि और संचार का कारक माना जाता है। ज्योतिष में, बुध की स्थिति व्यक्ति की बुद्धि, ज्ञान और संचार कौशल को प्रभावित करती है।
गुरु (बृहस्पति):
गुरु भाग्य और ज्ञान का कारक माना जाता है। ज्योतिष में, गुरु की स्थिति व्यक्ति के भाग्य, सफलता और ज्ञान को प्रभावित करती है।
शुक्र:
शुक्र सौंदर्य और सुख का कारक माना जाता है। ज्योतिष में, शुक्र की स्थिति व्यक्ति के सौंदर्य, संबंधों और सुख को प्रभावित करती है।
शनि:
शनि कर्म और अनुशासन का कारक माना जाता है। ज्योतिष में, शनि की स्थिति व्यक्ति के कर्म, अनुशासन और भाग्य को प्रभावित करती है।
राहु और केतु:
राहु और केतु को छाया ग्रह माना जाता है। ज्योतिष में, राहु और केतु की स्थिति व्यक्ति के जीवन में अनिश्चितता और परिवर्तन लाती है।
ग्रहों के प्रभाव के कुछ वैज्ञानिक पहलू:
ग्रहों की तरंगें, चुम्बकीय बल और रश्मियाँ हमारे जीवन के छोटे-बड़े हर पहलू को निर्धारित करती हैं।
ग्रहों की स्थिति विद्युत चुम्बकीय क्षेत्रों और हार्मोनल प्रभावों जैसे विभिन्न तंत्रों के माध्यम से मूड को प्रभावित कर सकती है।
सूर्य के प्रकाश एवं ऊर्जा का प्रभाव विज्ञान में निर्विवादित है।
निष्कर्ष:
ग्रहों का हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है, जो ज्योतिष शास्त्र में भी माना जाता है। ग्रहों की स्थिति और गति व्यक्ति के स्वभाव, भाग्य और जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करती है। ग्रहों के वैज्ञानिक प्रभाव को भी समझने की आवश्यकता है, जो विद्युत चुम्बकीय क्षेत्रों और हार्मोनल प्रभावों जैसे तंत्रों से जुड़े होते हैं।

31/07/2024

ज्योतिष सूत्र ।
1, अगर किसी का लग्नेश 12 भाव में हो तो जातक पर झूठे इलाज़म लगते है ।

2 ,अगर लग्नेश 12 भाव मे हो जातक विदेश यात्रा करता या विदेश में सेटलमेंट होता है ।

3, सूर्ये के साथ शुक्र युति मे हो तो पुरूष जातक की कुंडली में तो उसकी शारीरिक संबंध बनाने समय कम होता है ।

4, अगर सप्तम में चन्द्र हो कुन्डली मे तो जातक के निजी अंगों मे प्रॉब्लम होती है ।

5, शुक्र और चन्द्र साथ हो तो ऐसे लड़कियों की सास से कभी नही बनती है । ऐसे जातक मे कामुक्ता ज़्यादा होती है जिस वजह से इन पर इल्ज़ाम लगते है

6, सरकारी नोकरी के लिए सूर्ये का दुसरे भाव या भाव पति और दसवें के स्वामी या दसवे भाव से संबंद होना चाहिए साथ ही छटे भाव से भी ।

7, किसी भी जातक के 4th हाउस में अगर सूर्ये मंगल राहु हो या इसका स्वामी सूर्ये मंगल राहु केतु के साथ हो ऐसे जातक की माता का स्वभाव बहुत झगड़ालु किस्म की होती है । ऐसे जातक माता से डर कर रहते है ।

8, अगर राहु दूसरे घर के स्वामी के साथ हो परिवार से धोखा ।4th हाउस के साथ हो तो माँ से धोखा ।5th हाउस के साथ प्यार और बच्चों से धोखा ।सातवे के स्वामी साथ हो पार्टनर से धोखा । 10th के स्वामी के साथ हो वयापार मे धोखा ।

9, दूसरे घर का स्वामी 12th मे हो छटे भाव मे हो 11 भाव का स्वामी छटे भाव मे हो 12th हो तो क़र्ज़ की स्थिति बनती है ।

10 ,मंगल 3rd हाउस मे हो 6हाउस में हो 12th मे हो 11 भाव में जो तो किसी को कर्ज न दे क्योंकि यह किसी को पैसा देंगे तो वापिस नही आता ,

11, अगर किसी का केतु 10th मे उनको बावसीर की प्रॉब्लम होती है ।

12 , अगर केतु 6th हाउस मे हो तो जातक को भ्रामक रोग होता है ।

13, किसी के 5th हाउस मे सूर्ये हो या शुक्र सूर्ये 5th हाउस मे हो या चन्द्र के साथ हो तो जातक को पाथरी की प्रॉब्लम होती है ।वो भी पिते की ।।

14, सप्तम मे मंगल हो ।और शनि कही से दृष्टि डालें सप्तम में तो पुरुष जातक मे दोष होता है । जातक शारिरिक सुख कम देता है

15, अगर तीसरे भाव मे गुरु हो या ग्यारवे भाव मे गुरु हो या तीसरे और ग्यारवे भाव के स्वामी के साथ गुरु हो तो जात्ताक के कंधे चौड़े और भारी होते है , हा अगर किसी का सूर्ये कमजोर हुआ 6 8 12 मे हुआ और चन्दर भी पीड़ित हुआ तो राहु केतु शनि से या केमद्रुम दोष मे हुआ तो जातक तब पतला हो सकता कि उसके कंधे मजबूत न हो ,

16, सप्तम और अष्टम का चन्दर जातक को कामुक बनाता है और जातक को गुप्त शारिरिक कीर्या का रोग देता ।

17,चोथे भाव घर ,घर का माहौल ,माता का सुख, हर प्रकार कर सुखों का घर है जहा जो राशि आएगी उस से और उस भाव का स्वामी किस राशि और किस ग्रह के नक्षत्र में बैठा है और चोथे भाव का स्वामी जिस राशि मे है उसके स्वामी की स्थिति बताएगी आपके जीवन कितना सुख समृद्धि ,माँ का सुख ,शान्ति लिखी है ।

18,चौथे भाव मे शनि हो तो या चौथे भाव के स्वामी के साथ शनि हो तो जात्ताक का घर पुराना लगता है या नया भी बनाया हो वो भी जल्दी पुराना लगने लगे जाता है ,ऐसे लोगो के घर के लोगो का घर का वातावरण नकारात्मक होता है और यह लोग पुरानी विचारधारा का होता है रुढ़िवादी होता है ।

19, मीन ,कर्क वरिचिक राशि मे मंगल जात्ताक को आलस बहुत देता है बॉडी में

20,लगनः का गुरु जात्ताक को विशाल शरीर प्रधान करता है

21, दसवा घर पाप कतरी मे हो या दसवे भाव का स्वामी पाप कतरी मे हो या दसवे घर मे सूर्ये मंगल राहु जैसे ग्रह हो तो जात्ताक की सास बहुत तेज़ तकरार झगड़ालू होगी ।
22, आठवे घर मे राहु या मंगल या आठवे भाव का स्वामी राहु के साथ हो जात्ताक का ससुराल रहस्यमयी और झगड़ालु होता है

23 ,पंचम का स्वामी अगर राहु के साथ है जातक को सोशल मीडिया पर ही ज्यादा प्यार होता है और वही से धोखा खाता shastri ji 8283913469

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भारतीय संस्कृति का आधार वेद को माना जाता है। वेद धार्मिक ग्रंथ ही नहीं है बल्कि विज्ञान की पहली पुस्तक है जिसमें चिकित्सा विज्ञान, भौतिक, विज्ञान, रसायन और खगोल विज्ञान का भी विस्तृत वर्णन मिलता है। भारतीय ज्योतिष विद्या का जन्म भी वेद से हुआ है। वेद से जन्म लेने के कारण इसे वैदिक ज्योतिष के नाम से जाना जाता है।

वैदिक ज्योतिष की परिभाषा

वैदिक ज्योतिष को परिभाषित किया जाए तो कहेंगे कि वैदिक ज्योतिष ऐसा विज्ञान या शास्त्र है जो आकाश मंडल में विचरने वाले ग्रहों जैसे सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध के साथ राशियों एवं नक्षत्रों का अध्ययन करता है और इन आकाशीय तत्वों से पृथ्वी एवं पृथ्वी पर रहने वाले लोग किस प्रकार प्रभावित होते हैं उनका विश्लेषण करता है। वैदिक ज्योतिष में गणना के क्रम में राशिचक्र, नवग्रह, जन्म राशि को महत्वपूर्ण तत्व के रूप में देखा जाता है।

राशि और राशिचक्र

राशि और राशिचक्र को समझने के लिए नक्षत्रों को को समझना आवश्यक है क्योकि राशि नक्षत्रों से ही निर्मित होते हैं। वैदिक ज्योतिष में राशि और [[राशिचक्र[[ निर्धारण के लिए 360 डिग्री का एक आभाषीय पथ निर्धारित किया गया है। इस पथ में आने वाले तारा समूहों को 27 भागों में विभाजित किया गया है। प्रत्येक तारा समूह नक्षत्र कहलाते हैं। नक्षत्रो की कुल संख्या 27 है। 27 नक्षत्रो को 360 डिग्री के आभाषीय पथ पर विभाजित करने से प्रत्येक भाग 13 डिग्री 20 मिनट का होता है। इस तरह प्रत्येक नक्षत्र 13 डिग्री 20 मिनट का होता है।

वैदिक ज्योतिष में राशियो को 360 डिग्री को 12 भागो में बांटा गया है जिसे भचक्र कहते हैं। भचक्र में कुल 12 राशियां होती हैं। राशिचक्र में प्रत्येक राशि 30 डिग्री होती है। राशिचक्र में सबसे पहला नक्षत्र है अश्विनी इसलिए इसे पहला तारा माना जाता है। इसके बाद है भरणी फिर कृतिका इस प्रकार क्रमवार 27 नक्षत्र आते हैं। पहले दो नक्षत्र हैं अश्विनी और भरणी हैं जिनसे पहली राशि यानी मेष का निर्माण होता हैं इसी क्रम में शेष नक्षत्र भी राशियों का निर्माण करते हैं।

नवग्रह

वैदिक ज्योतिष में सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरू, शुक्र, शनि और राहु केतु को [[नवग्रह[[ के रूप में मान्यता प्राप्त है। सभी ग्रह अपने गोचर मे भ्रमण करते हुए राशिचक्र में कुछ समय के लिए ठहरते हैं और अपना अपना राशिफल प्रदान करते हैं। राहु और केतु आभाषीय ग्रह है, नक्षत्र मंडल में इनका वास्तविक अस्तित्व नहीं है। ये दोनों राशिमंडल में गणीतीय बिन्दु के रूप में स्थित होते हैं।

लग्न और जन्म राशि

पृथ्वी अपने अक्ष पर 24 घंटे में एक बार पश्चिम से पूरब घूमती है। इस कारण से सभी ग्रह नक्षत्र व राशियां 24 घंटे में एक बार पूरब से पश्चिम दिशा में घूमती हुई प्रतीत होती है। इस प्रक्रिया में सभी राशियां और तारे 24 घंटे में एक बार पूर्वी क्षितिज पर उदित और पश्चिमी क्षितिज पर अस्त होते हुए नज़र आते हैं। यही कारण है कि एक निश्चित बिन्दु और काल में राशिचक्र में एक विशेष राशि पूर्वी क्षितिज पर उदित होती है। जब कोई व्यक्ति जन्म लेता है उस समय उस अक्षांश और देशांतर में जो राशि पूर्व दिशा में उदित होती है वह राशि व्यक्ति का जन्म लग्न कहलाता है। जन्म के समय चन्द्रमा जिस राशि में बैठा होता है उस राशि को जन्म राशि या चन्द्र लग्न के नाम से जाना जाता है।

Address

Kapurthala
144804

Opening Hours

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Tuesday 9am - 5pm
Wednesday 9am - 5pm
Thursday 9am - 5pm
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Sunday 9am - 5pm

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