28/10/2025
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*विचारणीय विषय "शिक्षक नौकरी छोड़ रहे हैं – एक कड़वा सच"* *क्योंकि शिक्षक को शिक्षण कार्य नहीं करवा कर एक बहुद्देशीय कर्मचारी बना दिया गया है।*
*लेखक: कृष्ण कुमार, निदेशक, एनसीईआरटी*
*प्रकाशित: द इंडियन एक्सप्रेस में*
आज देश के स्कूलों में एक *मौन क्रांति* चल रही है —
शिक्षक थक चुके हैं, असहाय हैं, और निराश हैं।
वे अपनी नौकरी छोड़ रहे हैं — कुछ चुपचाप, तो कुछ भावनात्मक रूप से दूर होकर।
और नई पीढ़ी तो अब *शिक्षक बनना ही नहीं चाहती*।
*क्यों हो रहा है ऐसा?*
1. *कागज़ी झंझाल में फंसे शिक्षक*
अब पढ़ाना प्राथमिकता नहीं रहा।
रोज़ाना की दिनचर्या बन गई है —
"फ़ोटो भेजो", "प्रमाण दो", "रिपोर्ट अपलोड करो"।
कक्षा में उनकी उपस्थिति घट रही है,
स्क्रीन के सामने की उपस्थिति बढ़ रही है।
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2. *तकनीक पर अत्यधिक ज़ोर*
हर विषय, हर उम्र, हर स्तर पर जबरदस्ती डिजिटल टूल्स, ऐप्स और स्मार्ट बोर्ड थोप दिए गए हैं।
शिक्षण एक *यंत्रवत प्रक्रिया* बन गई है —
जिसमें मानवीय संपर्क लगभग गायब हो गया है।
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3. *इवेंट मैनेजर बनते शिक्षक*
हर दिन कोई न कोई दिवस मनाना अनिवार्य हो गया है —
योग दिवस, मातृभाषा दिवस, पर्यावरण दिवस...
शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के बजाय, प्रदर्शन का मापदंड बन गया है —
*कितने इवेंट करवाए*।
प्रधानाचार्य और शिक्षक दोनों इस "शो" में फंसे हैं।
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4. *ग्रामीण शिक्षकों की हालत*
2-3 शिक्षक, सैकड़ों बच्चों के लिए जिम्मेदार।
पढ़ाने के अलावा — मिड-डे मील, छात्रवृत्ति, यूनिफॉर्म, साइकिल और सरकारी रिपोर्टिंग भी उन्हीं की जिम्मेदारी।
अब शिक्षा नहीं, *डेटा इकट्ठा करना* ही मुख्य काम बन गया है।
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5. *मानसिक तनाव और आत्म-सम्मान की गिरावट*
हर कार्य पर निगरानी और “प्रमाण” की मांग ने भरोसा खत्म कर दिया है।
छात्रों के तनावपूर्ण व्यवहार को संभालना,
माता-पिता की अवास्तविक अपेक्षाएं —
शिक्षकों को *भावनात्मक रूप से थका* देती हैं।
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6. *शिक्षा का मूल उद्देश्य खो गया है*
पाठ्यक्रम पूरा करने का भारी दबाव है।
विषयों की संख्या बढ़ती जा रही है।
*विद्यालय अब व्यक्तित्व निर्माण की जगह नहीं रहे।*
आज की शिक्षा एक *"प्रदर्शन परियोजना"* बनकर रह गई है।
शिक्षक और छात्र का रिश्ता — जो कभी शिक्षा की आत्मा था —
अब *संख्याओं और समयसीमाओं में खो गया है*।
छात्र अब शिक्षक को *सेवा प्रदाता* मानते हैं,
मार्गदर्शक या सम्माननीय व्यक्ति नहीं।
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*विचार करने का समय है*
शिक्षा का केंद्र *बच्चा और शिक्षक* होना चाहिए —
ना कि रिपोर्ट और आंकड़े।
यदि शिक्षक को *स्वतंत्रता, सम्मान और भरोसा* नहीं मिला,
तो आने वाली पीढ़ी की शिक्षा *निर्जीव* हो जाएगी।
*हमें शिक्षक पर दोबारा विश्वास करना होगा।*
क्योंकि यदि शिक्षक चला गया —
*विद्यालय तो रह जाएगा, पर शिक्षा नहीं।*