Gahtori Hospital, Kashipur

Gahtori Hospital, Kashipur GAHTORI HOSPITAL IS A SUPERSPECIALITY HOSPITAL. Operating since 2006, this 30 bedded hospital is loc

16/07/2024

गहतोड़ी विमेंस हॉस्पिटल रामनगर रोड, काशीपुर* की डायरेक्टर डॉ भारती पंत गहतोड़ी( MBBS MD Delhi)*
हाई रिस्क प्रसूति - एडवांस फीटल अल्ट्रासाउड - डॉपलर , एडवांस इनफर्टिलिटी अल्ट्रासाउंड स्पेशलिस्ट)
के द्वारा हाल ही में दिए गए साक्षात्कार के अंश

प्रश्न ) मैडम, फीटल मेडिसिन ,हमे इस नई स्पेशियलिटी ब्रांच के बारे में विस्तारपूर्वक बताएं ?

उत्तर) फीटल मेडिसिन , स्त्री प्रसूति विभाग से संलग्न एक एडवांस व स्पेशलाइज़्ड ब्रांच है। इसमें पारंगत स्पेशलिस्ट , हाई रिस्क प्रेग्नेंसी में फीटल मेडिसिन विधि के जरिए मां और गर्भ में अजन्मे शिशु को प्राणघाती खतरों से बचाने की कोशिश करते हैं। नार्मल एवं जटिल प्रसूति को संभालने की दक्षता के साथ , गर्भ में पल रहे भ्रूण की पहली तिमाही से आवश्यकता अनुसार उपयुक्त एडवांस अल्ट्रासाउंड , स्पेशलाइज्ड ब्लड जांच व कभी कभार जेनेटिक टेस्ट का उपयोग किया जाता है । इनसे शारीरिक और मानसिक अपंगताओं, विसंगतियों और खून के बहाव में कमी से उत्पन्न जटिलताओं का पूर्वानुमान लगाया जाता है, और विस्तृत विश्लेषण व उपयुक्त मॉनिटरिंग करके सही समाधान करने की कोशिश करते है।
विदेशों में ये विधि 20 - 25 साल से उपयोग में है मगर भारत में ये केवल 10 - 15 साल में आरंभ हुई है ।

प्रश्न ) फीटल मेडिसिन स्पेशलिस्ट , दूसरे डॉक्टरों से भिन्न कैसे होते हैं ?

उत्तर) :- एक रिसर्च के अनुसार 20% गर्भवती महिलाओं की प्रेगनेंसी जटिल या हाई रिस्क होने की संभावना होती है। ऐसी जटिल गर्भावस्था के पूर्वानुमान और आंकलन के लिए इस विकसित समय में सिर्फ बीमारी की विस्तृत जानकारी, शारीरिक परिक्षण , स्पेशलाइज़्ड ब्लड टेस्ट ही काफ़ी नही बल्कि साथ में एडवांस विधि से 3D-4D अल्ट्रासाउंड व जेनेटिक टेस्टिंग का उपयोग करके उचित निष्कर्ष पर पहुंचा जाता है । गर्भस्थ शिशु के आनुवांशिक ,जेनेटिक और मानसिक मंदता से पीड़ित होने की सम्भावना और उसके वातावरण एवं खून की धमनियों में प्रवाह ( blood flow ) का परिक्षण करना अनिवार्य हो गया है। इनका निरिक्षण , विस्तृत आंकलन और इलाज की सभी संभावनाओं के बारे फीटल मेडिसिन विशेषज्ञ सम्पूर्ण अनुभव रखते हैं। आधुनिक एडवांस तकनीक में निपुणता , शैक्षिक योग्यता और अनुभव इस शाखा की मूलभूत धुरी है।

प्रश्न) अल्ट्रासाउंड के अलावा फीटल मेडिसिन स्पेशलिस्ट अन्य कौनसी प्रक्रिया द्वारा हाईरिस्क गर्भावस्था में मदद करते हैं?

उत्तर):- भ्रूण में अल्ट्रासाउंड या स्पेशलाइज्ड ब्लड टेस्ट द्वारा अगर शारीरिक विकृति या मानसिक अपंगता का संकेत मिलता है तो उसका आनुवांशिक या जेनेटिक कारण ढूंढने के लिए फीटल मेडिसिन विशेषज्ञ, कोरियोनिक विलस सैंपलिंग (CVS), एमनियोसेंटेसिस (Amniocentesis), फीटल ब्लड सैंपलिंग(FBS )और फीटल ब्लड ट्रांस्फ्यूजन (FBT )जैसी एडवांस प्रक्रियाएं का उपयोग करते हैं । विश्व और भारत के कुछ सेंटर में फीटल थेरेपी की सुविधा भी उपलब्ध है।

प्रश्न ) फीटल मेडिसिन के अंतर्गत गर्भवती महिला को प्रमुखत: कौन से अल्ट्रासाउंड करवाने चाहिए?

उत्तर):- गर्भावस्था के दौरान सुनियोजित उपचार हेतु उन कीमती नौ महीनों को मुख्यतः तीन तिमाही में विभाजित किया जाता है । इस समय मुख्य अल्ट्रासाउंड हैं -

1) NT - NB ( न्यूकल ) स्कैन- ये पहली तिमाही (11- 14 हफ्ते ) के सीमित अंतराल में होने वाला बहुत ही विस्तृत और जानकारीपूर्ण अल्ट्रासाउंड है ।

a)डाउन सिंड्रोम जैसे अनेकों मानसिक मंदता सम्बन्धित अनुवांशिक विकार की स्क्रीनिंग इस स्कैन का मुख्य उद्देश्य है।

b)इसके अलावा ये 60-70 % जानलेवा शारीरिक आकार विकार को ढूंढने की भी क्षमता रखता है।

c)न्यूकल स्कैन प्रेगनेंसी की तीसरी तिमाही में अचानक अत्यधिक ब्लड प्रेशर बढ़ने की संभावना का सटीक पूर्वानुमान (Preeclampsia screening) भी करता है । गर्भावस्था के शुरुआत में जानलेवा स्थितियों का सटीक आंकलन समय रहते सही फैसले लेने में मदद करता है ।

2) संपूर्ण आकार विकार ( लेवल II ) स्कैन - ये दूसरी तिमाही (18- 20 हफ्ते) में होने वाला अत्यधिक महत्वपूर्ण अल्ट्रासाउंड है । इस तिमाही तक गर्भस्थ शिशु के ज्यादातर अंग खासकर मस्तिष्क और दिल का पूर्ण विकास हो जाता हैं इसलिए उनका बेहतर आंकलन संभव होता है। इस समय का ये अल्ट्रासाउंड दक्ष हाथों में 80- 90 % शारीरिक आकार विकार के आंकलन की क्षमता रखता है ।

3) जेनेटिक स्क्रीनिंग ( GENETIC SCREENING ) - डाउन सिंड्रोम (Down's syndrome) और अन्य आनुवांशिक बीमारियों का पूर्व या वर्तमान के टेस्ट द्वारा संकेत मिलने पर विस्तृत स्कैन ।

4) फीटल इको ( FETAL ECHO )( 20- 24 हफ्ते ) - अजन्मे शिशु के दिल में आकार विकार होने की सम्भावना होने पर विस्तृत आंकलन किए जाने वाला एडवांस स्कैन ।

5) फीटल न्यूरोसोनोग्राफी (fetal-neurosonography) स्कैन - लेवल 2 अल्ट्रासाउंड के दौरान अजन्मे शिशु के मस्तिष्क आकर विकार मिलने पर विस्तृत आंकलन के लिए एडवांस स्कैन ।

प्रश्न) जटिल गर्भावस्था की कड़ी निगरानी के लिए फीटल मेडिसिन स्पेशलिस्ट कौन से अतिरिक्त अल्ट्रासाउंड का उपयोग करती हैं ?

उत्तर):- भ्रूण सम्बन्धित आकार विकार के अलावा मां और आंवल नाल( प्लेसेंटा व कोर्ड) की अनेकों कमियों के कारण संभव है। इनके लिए भी अल्ट्रासाउंड एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । जैसे -

1) हाई रिस्क फीटल डॉप्लर ( Fetal DOPPLER ) - माँ और भ्रूण की खून की धमनियों में खून के कम प्रवाह होने से बच्चे में दुष्परिणाम का आंकलन। ये कमी जितनी जल्दी आयेगी उतना ही भ्रूण पर दुष्प्रभाव पड़ेगा। इस समस्या का आंकलन , समय समय पर डोपलर निरिक्षण और उपचार को फीटल मेडिसिन स्पेशलिस्ट बखूबी निभाते है।

2) प्लासेंटा आकार विकार स्कैन ( PLACENTAL MORPHOLOGY ) स्कैन -
ये बहुत स्पेशलाइज्ड अल्ट्रासाउंड है जो 2D - 3D एवं कलर डॉपलर की मदद से पूर्व या वर्तमान गर्भावस्था में भ्रूण की बार - बार आकस्मिक मृत्यु(IUD/stillbirth), दो से अधिक गर्भपात(RPL), भ्रूण का अत्याधिक वज़न या पानी कम होने ( IUGR ) जैसी अनसुलझे कारणों को सुलझाने की क्षमता रखता है।

3) प्लेसेंटा एक्रिता ( PLACENTA ACCRETA ) स्कैन - एक से अधिक सिजेरियन ऑपरेशन गर्भवती महिला के आंवल की गर्भाशय पर चिपकने की सम्भावना बड़ा देते हैं । ये एक जानलेवा स्थिति है और इसका पूर्वानुमान ( 70-80% ) इस विशेष अल्ट्रासाउंड द्वारा संभव है।

4) जुड़वाँ और उससे अधिक प्रेगनेंसी - गर्भाशय में एक से अधिक बच्चा प्रेगनेंसी को कई कारणों से अन्य महिलाओं से जटिल बना देती है।

5) *सर्वाइकल लेंथ ( CERVICAL LENGTH ) स्कैन -*असम्यक प्रसव के पुर्वानुमान के लिए इस अल्ट्रासाउंड की सलाह दी जाती है।

प्रश्न) वंशावली विश्लेषण (Pedigree analysis)क्या होता है?ये किन लोगों में अनिवार्य होता है ?

उत्तर) ये एक फीटल मेडिसिन एक्सपर्ट की अतिरिक्त विशेषज्ञता है जिसके द्वारा वह अपने जेनेटिक्स के ज्ञान का उपयोग करके परिवार में या पूर्व की गर्भावस्था में अगर किसी आनुवांशिक बीमारी का इतिहास है अपितु वर्तमान में कोई संकेत हैं तो विस्तृत जानकारी लेकर वंशावली का चित्रण बनाया जाता है । फिर इसका अध्ययन करके उपयुक्त जांच और इलाज की सलाह दी जाती है ।

आपको ये जानकर हर्ष होगा की 2014 से डॉ भारती पंत गहतोड़ी अपने अस्पताल में अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन करके मेटरनल - फीटल मेडिसिन की प्रैक्टिस सुचारू रुप से चला रही हैं।

धन्यवाद 🙏🙏🙏🙏

16/07/2024
13/07/2024
एमनियोसेंटेसिस टेस्ट1. एमनियोसेंटेसिस क्या है ?2. किन कारणों से एमनियोसेंटेसिस टेस्ट करवाने की जरूरत हो सकती है?3. एमनिय...
01/10/2023

एमनियोसेंटेसिस टेस्ट

1. एमनियोसेंटेसिस क्या है ?

2. किन कारणों से एमनियोसेंटेसिस टेस्ट करवाने की जरूरत हो सकती है?

3. एमनियोसेंटेसिस टेस्ट में किन स्वास्थ्य समस्याओं का पता चलता है?

4. एमनियोसेंटेसिस टेस्ट कैसे किया जाता है?

5. एमनियोसेंटेसिस के बाद किन लक्षणों पर ध्यान देना चाहिए?

6. क्या एमनियोसेंटेसिस से गर्भपात होने का खतरा रहता है?

7. एमनियोसेंटेसिस टेस्ट करवाने पर और क्या जोखिम हो सकते हैं?

8. एमनियोसेंटेसिस टेस्ट का परिणाम कब तक मिलता है?

9. अगर टेस्ट में शिशु में स्वास्थ्य समस्या होने का पता चलता है तो क्या होगा?

एमनियोसेंटेसिस टेस्ट गर्भस्थ शिशु में आनुवांशिक (जेनेटिक) या गुणसूत्रीय असामान्यताओं जैसे कि डाउंस
सिंड्रोम आदि का पता लगाने के लिए करवाया जाता है। यह आमतौर पर 15 से 18 सप्ताह की गर्भावस्था के बीच
किया जाता है। इसमें डॉक्टर गर्भ में से एमनियोटिक द्रव का थोड़ा सा नमूना लेंगी, जिसकी जांच की जाएगी।

एमनियोसेंटेसिस क्या है ?

एमनियोसेंटेसिस एक डायग्नोस्टिक टेस्ट है। डॉक्टर आपके गर्भ में से एमनियोटिक द्रव का थोड़ा सा नमूना लेंगी। इस द्रव में आपके शिशु की कुछ कोशिकाएं होती हैं और प्रयोगशाला में इनका परीक्षण किया जाता है।

एमनियोसेंटेसिस आमतौर पर दूसरी तिमाही में 15 से 20 सप्ताह की गर्भावस्था के बीच किया जाता है। मगर इसके बाद यह कभी भी करवाया जा सकता है। यह टेस्ट पहले भी करवाया जा सकता है, मगर जटिलताएं होने की संभावना ज्यादा रहती है, इसलिए आमतौर पर 15 सप्ताह के बाद ही इसे करवाने की सलाह दी जाती है।

इस टेस्ट में डॉक्टर सूईं के जरिये गर्भ में शिशु के आसपास मौजूद एमनियोटिक द्रव का नमूना लेती हैं। इससे शिशु के गुणसूत्रों के बारे में स्पष्ट जानकारी मिल जाती है, जिससे डॉक्टर को असामान्यताओं का पता चलता है।

किन कारणों से एमनियोसेंटेसिस टेस्ट करवाने की जरूरत हो सकती है ?

एमनियोसेंटेसिस कोई नियमित जांच नहीं है। आपकी डॉक्टर एमनियोसेंटेसिस टेस्ट की सलाह तब ही देंगी जब आपके शिशु में कोई विशेष स्वास्थ्य स्थिति होने की संभावना सामान्य से कहीं अधिक हो।

निम्नांकित स्थितियों में आपको एमनियोसेंटेसिस टेस्ट करवाने की ज्यादा संभावना हो सकती है:
पहली तिमाही की किसी जांच या स्कैन जैसे न्यूकल ट्रांसलुसेंसी स्कैन और एनआईपीटी जांच में गर्भस्थ शिशु को डाउंस सिंड्रोम या अन्य गुणसूत्रीय समस्या होने का उच्च जोखिम पता चला हो।

अल्ट्रासाउंड स्कैन में शिशु में गुणसूत्रीय समस्या से जुड़े कुछ संरचनात्मक विकारों का पता चला हो।

आपके परिवार में सिकल सेल रोग, थैलीसिमिया, सिस्टिक फाइब्रोसिस या मस्कुलर डिस्ट्रॉफी जैसी आनुवांशिक स्थितियों का इतिहास रहा है।

आपकी पहले की गर्भावस्था में भी शिशु में आनुवांशिक स्वास्थ्य समस्या थी और इसके दोबारा होने का खतरा भी है।

हालांकि, किसी भी उम्र में गर्भवती होने पर गर्भस्थ शिशु में में गुणसूत्रीय असामान्यताएं हो सकती हैं, मगर यदि आपकी उम्र ज्यादा हो तो शिशु में इसका खतरा और ज्यादा बढ़ सकता है।

एमनियोसेंटेसिस टेस्ट में किन स्वास्थ्य समस्याओं का पता चलता है ?

एमनियोसेंटेसिस से निम्नलिखित असामान्यताओं और विकारों का पता चल सकता है:
डाउंस सिंड्रोम: इस सिंड्रोम से ग्रस्त सभी बच्चों में सीखने से जुड़ी अक्षमता और देर से विकास जैसी समस्याएं हो सकती हैं, मगर हर बच्चे में इन समस्याओं का स्तर अलग-अलग हो सकता है।
एडवर्ड्स सिंड्रोम और पटाउ सिंड्रोम: इन स्वास्थ्य स्थितियों की वजह से गर्भपात, मृत शिशु का जन्म या गंभीर शारीरिक समस्याएं और सीखने से जुड़ी अक्षमताएं होती हैं।
सिस्टिक फाइब्रोसिस: इसमें फेफड़े और पाचन तंत्र गाढ़े, चिपचिपे श्लेम से अवरूद्ध हो सकते हैं।
मस्कुलर डिस्ट्रॉफी: इससे मांसपेशियों में कमजोरी और अक्षमता होती है।
सिकल सेल रोग: इसमें लाल रक्त कोशिकाएं असामान्य ढंग से विकसित होती हैं और शरीर में उचित ढंग से आॅक्सीजन का प्रवाह नहीं कर पातीं।
थैलेसीमिया: यह स्थिति लाल रक्त कोशिकाओं को प्रभावित करती है और एनीमिया, सीमित विकास और अंग क्षति का कारण बनती है।
एमनियोसेंटेसिस टेस्ट से शिशु में जन्मजात संरचनात्मक विकार जैसे कि हृदय संबंधी विकृति या फांक तालु या होंठ आदि का पता नहीं चल सकता। कई संरचनात्मक विकारों का पता दूसरी तिमाही के अल्ट्रासाउंड स्कैन में चल सकता है।
द्रव का नमूना लेते समय अल्ट्रासोनोग्राफी में विशेषज्ञता प्राप्त डॉक्टर अल्ट्रासाउंड करते रहेंगे। इससे आपकी डॉक्टर को द्रव निकालने की प्रक्रिया के दौरान सुई को शिशु और अपरा (प्लेसेंटा) से सुरक्षित दूरी पर रखने में मदद मिलती है।
अधिकांश महिलाओं का कहना है कि इस प्रक्रिया में करीब उतना ही दर्द होता है जितना कि खून का नमूना लेने के दौरान होता है। आपको शायद पेट को सुन्न करने के लिए लोकल एनेस्थीसिया लेने की भी जरुरत नहीं होगी। अधिकांशत:, इस पूरी प्रक्रिया में करीब 10 मिनट का समय लगता है।
यह भी हो सकता है कि डॉक्टर पहले प्रयास में सुई को सही स्थान पर डाल पाने में सफल न हों। अगर, दूसरे प्रयास में भी सफलता नहीं मिलती, तो यह टेस्ट दोबारा किसी ओर दिन कराने के लिए कहा जाएगा।
इस पूरी प्रक्रिया के अंत में, आपकी डॉक्टर और अल्ट्रासाउंड विशेषज्ञ, अल्ट्रासाउंड के जरिये शिशु पर नजर रखेंगे कि वह ठीक-ठाक है या नहीं।

इस प्रक्रिया के दौरान अपने पति, परिवार के किसी निकट सदस्य या दोस्त को सहयोग के लिए साथ ले जाना काफी अच्छा रहता है। बेहतर है कि आप एमनियोसेंटेसिस जांच करवाने के बाद खुद गाड़ी न चलाएं, इसलिए सुनिश्चित करें कि पति या परिवार के कोई सदस्य आपको अस्पताल या डायग्नोस्टिक सेंटर तक लाने और वापस ले जाने का काम कर सकें। टेस्ट के बाद अगले 24 घंटों तक आराम करने का प्रयास करें।

एमनियोसेंटेसिस के बाद किन लक्षणों पर ध्यान देना चाहिए ?

आपको टेस्ट के बाद कुछ घंटों तक थोड़ा सा रक्तस्त्राव स्पॉटिंग और कुछ हल्के मरोड़ हो सकते हैं। मगर यदि निम्नांकित लक्षण हों, तो तुरंत चिकित्सकीय सहायता लें:
अगर आपको हल्के रक्तस्त्राव की बजाय काफी रक्तस्त्राव हो
आपको योनि से तरल पदार्थ आता हुआ दिखे
आपको संकुचन होने लगें
आपके पेट या पीठ में दर्द हो
आपको 100.4 डिग्री फेहरनहाइट से भी ज्यादा तेज बुखार हो
आपको कंपकंपी हो और फ्लू के जैसे लक्षण महसूस हो
क्या एमनियोसेंटेसिस से गर्भपात होने का खतरा रहता है?
सुरक्षा के आधार पर, एमनियोसेंटेसिस टेस्ट गर्भावस्था की शुरुआत में करवाने की बजाय दूसरी तिमाही में करवाना तुलनात्मक रूप से अधिक सुरक्षित माना जाता है।

वैश्विक आंकड़ों के अनुसार, 15 सप्ताह की गर्भावस्था के बाद एमनियोसेंटेसिस करवाने वाली 100 में से एक महिला का गर्भपात होता है। यह एक बात है जो आपको टेस्ट करवाने या न करवाने का निर्णय लेते समय ध्यान में रखनी होगी।

यह स्पष्ट नहीं है कि एमनियोसेंटेसिस टेस्ट के कारण गर्भपात क्यों होता है। संभवतया ऐसा संक्रमण, रक्तस्त्राव या शिशु के चारों तरफ मौजूद एमनियोटिक थैली को क्षति पहुंचने की वजह से होता है।

एमनियोसेंटेसिस के बाद अधिकांश गर्भपात टेस्ट होने के तीन दिन के अंदर हो जाते हैं। मगर कुछ मामलों में दो सप्ताह तक भी ऐसा हो सकता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि यदि एमनियोसेंटेसिस टेस्ट अनुभवी डॉक्टर द्वारा ऐसे अस्पताल में किया जाए, जहां इस तरह के टेस्ट होते रहते हैं, तो गर्भपात या फिर संक्रमण का खतरा काफी कम होता है।
एमनियोसेंटेसिस टेस्ट को लेकर चिंतित होना स्वाभाविक ही है। अगर आप यह जांच करवाने पर विचार कर रही हैं और इसे लेकर चिंता में हैं, तो इस बारे में खुलकर अपनी डॉक्टर से बात करें। वे आपको टेस्ट करवाने के फायदे और नुकसान के बारे में पूरी सलाह देंगी।

आप जिस अस्पताल या डायग्नोस्टिक सेंटर में यह टेस्ट करवाने की योजना बना रही हैं, वहां की प्रतिष्ठा और सुरक्षा रिकॉर्ड के बारे में फीडबैक या लोगों की राय भी पता कर लेना सही रहता है।

एमनियोसेंटेसिस टेस्ट करवाने पर और क्या जोखिम हो सकते हैं ?

गर्भपात के अलावा एमनियोसेंटेसिस टेस्ट से जुड़े कुछ अन्य जोखिम भी हैं, जैसे:
संक्रमण (इन्फेक्शन): सभी सर्जिकल प्रक्रियाओं की तरह ही एमनियोसेंटेसिस के दौरान या बाद में संक्रमण होने का खतरा रहता है। मगर इसकी वजह से किसी तरह का कोई गंभीर संक्रमण होना दुर्लभ है।
रीसस रोग: अगर आपका ब्लड ग्रुप रीसस (आरएचडी) नेगेटिव है, मगर आपके शिशु का ब्लड ग्रुप आरएचडी पॉजिटिव है, तो एमनियोसेंटेसिस के दौरान यह शिशु के खून के प्रति प्रतिक्रिया कर सकता है। ऐसा तब होता है जब गर्भस्थ शिशु का थोड़ा सा खून आपकी रक्त वाहिकाओं में प्रवेश करता है और आपका शरीर इनके खिलाफ एंटिबॉडीज बनाने लगता है। अगर इसका उपचार न किया जाए तो शिशु को रीसस रोग हो सकता है। इसलिए आपको एमनियोसेंटेसिस के बाद एंटी-डी इम्युनोग्लोबुलिन इंजेक्शन दिया जाएगा।
क्लब फुट: 15 सप्ताह की गर्भावस्था से पहले एमनियोसेंटेसिस जांच करवाने से पेट में पल रहे शिशु को 'क्लब फुट' समस्या होने का खतरा बढ़ जाता है। यह एक जन्मजात समस्या है, जिसमें शिशु की एड़ी और पैर विकृत आकार के होते हैं। इसलिए यह जांच 15 सप्ताह की प्रेगनेंसी के बाद ही करवाने की सलाह दी जाती है।

एमनियोसेंटेसिस टेस्ट का परिणाम कब तक मिलता है ?

इस टेस्ट के परिणाम तुरंत नहीं मिलते। आपके द्रव के नमूने में मौजूद कोशिकाओं पर दो तरह के लैबोरेटरी टेस्ट किए जा सकते हैं, ताकि शिशु की आनुवांशिक बनावट के विशिष्ट पहलुओं का परीक्षण किया जा सके।

एक टेस्ट में शीघ्र संक्षिप्त विवरण (ओवरव्यू) मिल जाता है, और परिणाम कुछ दिनों में उपलब्ध हो जाता है। वहीं, दूसरे टेस्ट में विस्तृत विश्लेषण दिया जाता है, और इसके परिणाम आने में दो से तीन हफ्तों का समय लग सकता है।
अगर टेस्ट में शिशु में स्वास्थ्य समस्या होने का पता चलता है तो क्या होगा ?
जांच परिणाम इस बात की पुष्टि कर सकते हैं कि आपके शिशु में कोई गंभीर स्वास्थ्य समस्या नहीं है।

मगर, यदि एमनियोसेंटेसिस जांच में किसी समस्या का पता चलता है, तो डॉक्टर आपके साथ परिणाम पर चर्चा करेंगी। वे आपको जेनेटिक काउंसलर और बच्चों के डॉक्टर के पास भी भेज सकती हैं, ताकि आप इस स्थिति को बेहतर ढंग से समझ सकें।

ये सभी आपको यह निर्णय लेने में मदद करेंगे कि आपको इस गर्भावस्था के साथ आगे बढ़ना चाहिए या नहीं। इस तरह का फैसला लेना अवश्य ही काफी दुखभरा अनुभव होता है। आपका निर्णय जो भी हो, डॉक्टर उसमें आपका पूरा साथ देंगी।

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