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सांस लेने का तरीका बदलिए, जिंदगी बदल जाएगी:
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सांस लेने में 5 सबसे आम गलतियां कौन सी हैं?
क्या आप भी बेहोशी में सांस लेते हैं, होश में नहीं?
मुंह से सांस लेने में क्या खराब बात है?
छाती के बजाय पेट से सांस क्यों लेनी चाहिए?

हम सभी जानते हैं कि प्राण के बिना जीवन संभव नहीं। प्राण गति है, स्पंदन है। ब्रह्मांड में प्राण है, इसलिए वह सतत गतिमान है। हम भी प्राण के चलते ही जीवित हैं। हम तक यह प्राण हमारी सांस के जरिए पहुंचता है। हम जितनी ताकतवर सांस ले पाते हैं यानी हमारी सांस में जितनी ज्यादा ऑक्सीजन रहती है, हममें उतना ज्यादा जीवन, उतनी ऊर्जा बनी रहती है। सांस अगर कमजोर है, तो हमें सांस के जरिए मिलने वाली जीवन ऊर्जा भी कम मिलती है। यह ऊर्जा जितनी कम होती है, हम उतना ज्यादा बीमार रहते हैं और उतना ही एक आनंद भरे जीवन से वंचित बने रहते हैं। सांस लेने में पांच ऐसी बड़ी गलतियां हैं, जो उसे कमजोर बनाती हैं और हमें प्राण ऊर्जा से वंचित करती हैं। आइए जानते हैं कौन सी हैं वे पांच गलतियां।

पहली बात यह है कि होश में सांस लें, बेहोशी में नहीं
सांस लेने में हम सबसे बड़ी और सबसे पहली गलती यह करते हैं कि बेहोशी में सांस लेते हैं। इन पंक्तियों को पढ़ते हुए जरा आप अपनी सांस के प्रति जागरूक हो जाइए। आप देखेंगे कि जागरूक होते ही आपकी सांस उथली से गहरी होने लगेगी। यह बेहोशी में ही होता है कि हम उथली सांस लेते रहते हैं और शरीर निरंतर ऑक्सीजन की कमी में बना रहता है। दिमाग में ऊर्जा कम पहुंचती है और इस तरह हम जल्दी थकने लगते हैं, जल्दी चिड़चिड़े होने लगते हैं।

महात्मा बुद्ध ने अपने शिष्यों को सबसे पहले अपनी सांस के प्रति होशपूर्ण होना सिखाया था। याद रखिए कि जब तक आप पूरे होश में भरकर सांस नहीं लेंगे, तब तक अपने भीतर करिश्माई ऊर्जा महसूस नहीं कर पाएंगे। चाहे सांसारिक जीवन में सफलता हो या आध्यात्मिक जीवन में, उसका पहला कदम आपकी सांस है। बोध और होश से ली गई सांस आपको हमेशा के लिए बदल सकती है।

दूसरी जरूरी बात यह है कि नाक से सांस लें, मुंह से नहीं
प्रकृति ने हमारे शरीर के हर अंग की बनावट उसके जरिए होने वाले काम के हिसाब से तय की है। पैर चलने के लिए, कान सुनने के लिए, आंख देखने के लिए और मुंह खाने के लिए बनाया गया है। सूंघने के अलावा नाक का मुख्य काम सांस लेना है। सांस लेने के जितने लाभ हैं, वे हमें तभी मिलते हैं जब हम नाक से सांस लेते हैं। नाक की बनावट ऐसी है कि ली गई सांस नाक से गुजरते हुए ठीक तरीके से अनुकूलित होती है, हवा में मिले जीवाणु-कीटाणु आदि नाक के भीतर ही रुक जाते हैं, इस हवा को ऐसे प्रेशराइज किया जाता है कि वह फेफड़ों में भीतर तक पहुंच सके। जाहिर है, नाक से सांस लेना छोड़कर अगर आप मुंह से सांस लेंगे, तो इन सभी लाभों से वंचित हो जाएंगे। लेकिन बहुत से लोगों को मुंह से सांस लेने की आदत लग जाती है। वे रात को भी मुंह से ही सांस लेते हैं। यही वजह है कि सुबह उन्हें गला सूखा और दर्द करता हुआ मिलता है। अगर वाकई आपको रात को मुंह से सांस लेने की आदत है, तो आप टेप लगाकर अपना मुंह बंद करके सोएं। सुनिश्चित करें कि आप हमेशा नाक से ही सांस ले रहे हैं और नाक से ही सांस छोड़ रहे हैं।

तीसरी जरूरी बात यह है कि पेट से सांस लें, छाती से नहीं
क्या आपने सांस लेते हुए किसी छोटे बच्चे को देखा है। जरा देखिए उसे। आप पाएंगे कि सांस लेते हुए उसका पेट फूलता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि बच्चे पेट से सांस लेते हैं। यही सांस लेने का सही तरीका भी है। पेट से सांस लेते हुए डायाफ्राम जब फैलता है, तो पेट फूलता है। योग में इस डायाफ्राम ब्रीदिंग कहते हैं। अगर आप अपनी सांस के प्रति थोड़ा भी जागरूक होंगे, तो पाएंगे कि जब भी आप अपने काम में ज्यादा व्यस्त होते हैं, आपकी सांस बहुत उथली हो जाती है। यानी आपकी सांस छाती के ऊपरी हिस्से से नीचे ही नहीं जाती। वह ऊपर ही से लौट आती है। नतीजतन आपके शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती।

आप अगर कुछ दिनों तक डायाफ्राम ब्रीदिंग का अभ्यास करें, तो आप धीरे-धीरे शरीर को पेट से सांस लेने की आदत डाल सकते हैं। अभ्यास करने का सबसे सरल तरीका है कि आप पीठ पर लेट जाएं और अपने पैरों को फोल्ड करके अपने हिप्स के करीब ले आएं। अब आप अपना बांया हाथ पेट पर रख लें और दायां हाथ शरीर के समानांतर जमीन पर रहने दें। सांस लेते हुए अपने पेट पर रखे हाथ को ऊपर उठता महसूस करें। जितनी देर सांस लें उतनी ही देर सांस छोड़ें। रोज 5-7 मिनट का ऐसा अभ्यास आपको पेट से सांस लेने का आदी बना देगा।

चौथी जरूरी बात यह है कि धीमी और गहरी सांस लें, तेज और उथली नहीं
जब हम पेट से सांस लेना शुरू करते हैं, तो उसका एक लाभ यह मिलता है कि हमारी सांस लंबी और गहरी होने लगती है। योग का नियमित अभ्यास करने वाले ज्यादातर योगी ऐसे ही लंबी और गहरी सांस लेते हैं। सांस जितनी धीमी, जितनी गहरी ली जाए, वह हमें उतनी ही लंबी उम्र देती है। अगर आप गौर करेंगे, तो पाएंगे कि जो जानवर जितनी तेज सांस लेता है, वह उतनी तेजी से अपनी उम्र भी खत्म करता है। खरगोश और कुत्ता जल्दी-जल्दी सांस लेते हैं। उनकी आयु भी उतनी ही कम होती है। हाथी उनकी तुलना में कहीं धीमे सांस लेता है, तो हाथी की उम्र सौ वर्ष लंबी हो जाती है। कछुआ हाथी से भी धीमे सांस लेता है, तो वह 300 साल तक भी जीता है।

अब आप इस तथ्य के पीछे का विज्ञान भी समझिए। हम जितनी धीमी और लंबी सांस लेते हैं, हमारे शरीर में उतनी ही ज्यादा ऑक्सीजन जाती है और शरीर को जितनी ज्यादा ऑक्सीजन मिलती है, वह उतना ज्यादा बीमारियों के खिलाफ सफलतापूर्वक लड़ते हुए निरोगी बना रहता है। शरीर जितना निरोगी बना रहता है, उसकी उम्र उतनी ही बढ़ जाती है।

और अब बारी है पांचवीं जरूरी बात की, आप सांस छोड़ने पर ध्यान दें, सांस लेने पर नहीं
अगर आप जागरूक होकर सांस लें, तब भी अगर आपके फेफड़े खाली नहीं हैं, तो आप लंबी सांस नहीं ले पाएंगे। जब तक आपके फेफड़े खाली न हों, आप सांस भरेंगे कहां। इसलिए सांस लेने से ज्यादा सांस छोड़ने पर ज्यादा ध्यान दिए जाने की जरूरत है। आप इसे स्वयं करके देखिए। अपनी सांस के प्रति जागरूक रहते हुए आप सामान्य से ज्यादा समय तक सांस को छोड़िए। आप जितनी देर तक सांस को छोड़ेंगे, आप उतनी ही देर तक सांस को खींच भी पाएंगे। यानी आपका रेचक जितना लंबा होगा, पूरक भी उतना ही लंबा होगा। रेचक सांस छोड़ने की क्रिया को कहते हैं और पूरक सांस लेने की क्रिया को। यह ऐसा ही है कि आप एक झूले को जितना पीछे ले जाते हैं, वह उतना ही आगे भी जाता है। अगर आप सांस को ठीक से छोड़ेंगे नहीं और फेफड़े पूरी तरह सिकुड़ेंगे नहीं, तो वे पूरी सांस भरकर ज्यादा खुल भी नहीं पाएंगे। यानी जब भी आपका लंबी गहरी सांस लेने का मन हो, आप तब उतनी ही देर तक सांस को छोड़ने का काम करें। अलबत्ता, आप सांस छोड़ने पर ही ध्यान दें, सांस लेना अपने आप घटित होने दें। शरीर अपनी सांस की कमी को आपसे खुद ही पूरा करवा लेगा।
.............. जावेद अख्तर ।

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