Jyotish & Karm kand With Pandit Vinay kumar Sharma

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16/05/2023

क्या आप जानते हैं की समयसूचक AM और PM का उद्गगम भारत में ही हुआ था …??

लेकिन हमें बचपन से यह रटवाया गया, विश्वास दिलवाया गया कि इन दो शब्दों AM और PM का मतलब होता है :

AM : Ante Meridian
PM : Post Meridian

एंटे यानि पहले, लेकिन किसके? पोस्ट यानि बाद में, लेकिन किसके? यह कभी साफ नहीं किया गया, क्योंकि यह चुराये गये शब्द का लघुतम रूप था।काफ़ी अध्ययन करने के पश्चात ज्ञात हुआ और हमारी प्राचीन संस्कृत भाषा ने इस संशय को साफ-साफ दृष्टिगत किया है। कैसे? देखिये...

AM = आरोहनम् मार्तण्डस्य
PM = पतनम् मार्तण्डस्य

सूर्य, जो कि हर आकाशीय गणना का मूल है, उसी को गौण कर दिया। अंग्रेजी के ये शब्द संस्कृत के उस वास्तविक ‘मतलब' को इंगित नहीं करते।

आरोहणम् मार्तण्डस्य यानि सूर्य का आरोहण या चढ़ाव। पतनम् मार्तण्डस्य यानि सूर्य का ढलाव।

बारह बजे के पहले सूर्य चढ़ता रहता है - 'आरोहनम मार्तण्डस्य' (AM)। बारह के बाद सूर्य का अवसान/ ढलाव होता है - 'पतनम मार्तण्डस्य' (PM)।

पश्चिम के प्रभाव में रमे हुए और पश्चिमी शिक्षा पाए कुछ लोगों को भ्रम हुआ कि समस्त वैज्ञानिकता पश्चिम जगत की देन है।

हम अपनी हजारों साल की समृद्ध विरासत, परंपराओं और संस्कृति का पालन करते हुए भी आधुनिक और उन्नत हो सकते हैं।इस से शर्मिंदा न हों बल्कि इस पर गौरव की अनुभूति करें और केवल नकली सुधारवादी बनने के लिए इसे नीचा न दिखाएं।समय निकालें और इसके बारे में पढ़ें / समझें / बात करें / जानने की कोशिश करें।

अपने “सनातनी" होने पर गौरवान्वित महसूस करें।

"""""""'''''''''''""""""""जय श्री राम"""""""""""""""""""""""

08/05/2023

*भाषा की दरिद्रता : *नाम रखना*
एक सज्जन ने अपने बच्चों से परिचय कराया, बताया पोती का नाम * #अवीरा* है, बड़ा ही #यूनिक_नाम रखा है।

पूछने पर कि इसका *अर्थ क्या है*,

बोले कि बहादुर, ब्रेव कॉन्फिडेंशियल।

सुनते ही दिमाग चकरा गया। मैंने कहा बन्धु अवीरा तो बहुत ही *अशोभनीय नाम है*। नहीं रखना चाहिए.

उनको बताया कि
1. जिस स्त्री के पुत्र और पति न हों. पुत्र और पतिरहित (स्त्री)
2. इस तरह की स्वतंत्र (स्त्री) का नाम होता है अवीरा.

उन्होंने बच्ची के नाम का अर्थ सुना तो बेचारे मायूस हो गए, बोले महोदय क्या करें अब तो स्कूल में भी यही नाम हैं बर्थ सर्टिफिकेट में भी यही नाम है। क्या करें?

*आजकल लोग नया करने की ट्रेंड में* कुछ भी अनर्गल करने लग गए हैं जैसे कि

*लड़की हो* तो मियारा, शियारा, कियारा, नयारा, मायरा तो अल्मायरा ...

*लड़का हो* तो वियान, कियान, गियान, केयांश ...

और तो और इन शब्दों के अर्थ पूछो तो उत्तर आएगा "इट मीन्स रे ऑफ लाइट" "इट मीन्स गॉड्स फेवरेट" "इट मीन्स ब्ला ब्ला"

*नाम को यूनीक रखने के फैशन* के दौर में एक सज्जन ने अपनी गुड़िया का नाम रखा *"श्लेष्मा"*.

नाम सुनकर मैं सदमें जैसी अवस्था में था. सदमे से बाहर आने के लिए मन में विचार किया कि हो सकता है इन्होंने कुछ और बोला हो या इनको इस शब्द का अर्थ पता नहीं होगा तो मैं पूछ बैठा "अच्छा? श्लेष्मा! का *अर्थ क्या होता है*?

तो महानुभाव नें बड़े ही कॉन्फिडेंस के साथ उत्तर दिया "श्लेष्मा" का अर्थ होता है "जिस पर मां की कृपा हो"

मैंने कहा बन्धु तुंरत प्रभाव से बच्ची का नाम बदलो क्योंकि *श्लेष्मा का अर्थ होता है "नाक का कचरा"* उसके बाद जो होना था सो हुआ.

यही हालात है समाज के एक बहुत बड़े वर्ग का।

*फैशन के दौर में* फैंसी कपड़े पहनते पहनते अर्थहीन, अनर्थकारी, बेढंगे शब्द समुच्चयों का प्रयोग समाज अपने कुलदीपकों के नामकरण हेतु करने लगा है

*अशास्त्रीय नाम* सुनने में विचित्र लगता है, साथ ही बालकों के व्यक्तित्व पर भी अपना विचित्र प्रभाव डालकर व्यक्तित्व को लुंज पुंज करता है -

*शास्त्रों में लिखा है* व्यक्ति का जैसा नाम है समाज में उसी प्रकार उसका सम्मान और उसका यश कीर्ति बढ़ती है.

*स्मृति संग्रह* में बताया गया है कि व्यवहार की सिद्धि आयु एवं ओज की वृद्धि के लिए श्रेष्ठ नाम होना चाहिए.

*नाम कैसा हो*
नाम की संरचना कैसी हो इस विषय में ग्रह्यसूत्रों एवं स्मृतियों में विस्तार से प्रकाश डाला गया है पारस्करगृह्यसूत्र में बताया गया है-

*बालक का नाम* दो या चारअक्षरयुक्त, *पहला अक्षर* घोष वर्ण युक्त, वर्ग का तीसरा चौथा पांचवा वर्ण, मध्य में अंतस्थ वर्ण, य र ल व आदि और नाम का अंतिम वर्ण दीर्घ एवं कृदन्त हो तद्धितान्त न हो।

*धर्मसिंधु में चार प्रकार के नाम बताए गए हैं -*
१ देवनाम
२ मासनाम
३ नक्षत्रनाम
४ व्यावहारिक नाम

*नोट* - कुंडली के नाम को व्यवहार में नहीं रखना चाहिए क्योंकि जो नक्षत्र नाम होता है उसको गुप्त रखना चाहिए.

यदि कोई हमारे ऊपर अभिचार कर्म मारण, मोहन, वशीकरण इत्यादि कार्य करना चाहता है तो उसके लिए नक्षत्र नाम की आवश्यकता होती है,

व्यवहार नाम पर तंत्र का असर नहीं होता इसीलिए कुंडली का नाम गुप्त होना चाहिए।

*बालकों का नाम लेकर पुकारने से* उनके मन पर उस नाम का बहुत असर पड़ता है और प्रायः उसी के अनुरूप चलने का प्रयास भी होने लगता है

इसीलिए *नाम में यदि उदात्त भावना होती है* तो बालकों में यश एवं भाग्य का अवश्य ही उदय संभव है।

*विडंबना यह है की* आज पाश्चात्य सभ्यता के अंधानुकरण में नाम रखने का संस्कार मूल रूप से प्रायः समाप्त होता जा रहा है।
*इससे बचें शास्त्रोक्त नाम रखें इसी में भलाई है, इसी में कल्याण है।*

+++++++++++++जय श्रीराम+++++++++++++

शस्त्र और शास्त्र का ज्ञान होना संसार में अत्यंत आवश्यक है ! एकमात्र शस्त्र या एकमात्र शास्त्र के ज्ञान से काम नहीँ चलेग...
22/04/2023

शस्त्र और शास्त्र का ज्ञान होना संसार में अत्यंत आवश्यक है ! एकमात्र शस्त्र या एकमात्र शास्त्र के ज्ञान से काम नहीँ चलेगा !

शास्त्र के द्वारा ही शस्त्र का निर्माण होता है ! निराकार शास्त्र जब साकार रूप में आता है तब वह शस्त्र बन जाता है ! बिना शस्त्र के किसी भी जीव की परिकल्पना व्यर्थ है , हो ही नहीं सकती !

इसीलिए हर जीव को प्रकृति ने स्वयं अपना एक शस्त्र या अस्त्र प्रदान किया है !
शस्त्र और अस्त्र जीवन को जीवंत रखने के लिए एक बहुत ही आवश्यक अवयव है !

एक छोटे से बच्चे को भी ईश्वर ने Immunity देकर भेजा , फिर धीरे धीरे उसको अपनी भुजा का उपयोग करना आ जाता है , नाख़ून , बाल , आँखों की ऊपर के बाल से लेकर समस्त अंगों को प्रकृति ने अस्त्र शस्त्र से सुसज्जित किया हुआ है !

धूप में निकलते ही आप की त्वचा तुरंत melanin बनाने लगती है ताकि सूर्य की हानिकारक किरणों से रक्षा हो सके ! आपके पसीने तक में बाहरी कीटाणु को मारने वाले तत्व होते हैं जो आपके शरीर की रक्षा करते हैं !

साँप को विष के रूप में , हिंसक जीवों को नुकीले दांत और नाख़ून देकर , सींगवाले पशुओं को सींग देकर प्रकृति ने उसे अस्त्र शस्त्र से पूर्ण रखा है !

इस संसार में उत्पन्न होने वाले सभी जीव ( Virus से लेकर हाथी ) तक सबको प्रकृति ने अस्त्र शस्त्र दिया हुआ है !

इसीलिए अस्त्र शस्त्र को गलत परिभाषित करना अपनी बुद्धि के निम्न स्तर का द्योतक है !

शास्त्र के द्वारा शस्त्र का निर्माण होता है और इसी शस्त्र के द्वारा शास्त्र की रक्षा की जाती है ! जो शास्त्र शस्त्र नहीं बना सकते , चाहे वह स्थूल हो या सूक्ष्म हो , वह शास्त्र एकमात्र त्यागने योग्य ही है !

शास्त्र और शस्त्र दोनों साथ लेकर ही इस संसार की यात्रा पूरी की जा सकती है !

जो आपको शस्त्र त्यागने को कहता है , त्वरित रूप में उस शास्त्र और उस व्यक्ति का परित्याग कर दीजिये क्योंकि वह आपके जीवन को घोर संकट में डालने का कुत्सित प्रयास कर रहा है !

शस्त्र के बिना कोई जीवन नहीं है !

शस्त्र के बिना शास्त्र नहीं और शास्त्र के बिना शस्त्र नहीं !

इसीलिए हमारे सनातन धर्म के प्रतीकों में एक हाथ में शास्त्र धारण करवाया गया है तो तुरंत दूसरे हाथ में शस्त्र धारण करवाया गया है , एक हाथ अभय मुद्रा में हैं तो दूसरा हाथ त्रिशूल धारण किये हुए है !

क्योंकि बिना शस्त्र के आप अपनी रक्षा नहीं कर सकते , दूसरों की तो बात ही छोड़ दें !

भारतीयों की दुर्दशा का प्रमुख कारण यही रहा कि वह शास्त्र के साथ सत्रह शस्त्र भी भूल गये या उनका brainwash करके उनके हाथ से शस्त्र भी छीन लिया गया और शास्त्र भी !

आज भी कई देशों में शस्त्र सञ्चालन या शस्त्र रखना अनिवार्य है ! कई देशों में तो सैनिक शिक्षा तक अनिवार्य है जिसके बिना आप को सरकारी नौकरी तक भी नहीं मिल सकती !

अब आप बतायें उस राष्ट्र का सूर्य अस्त होगा या ऐसे राष्ट्र का सूर्य अस्त होगा जहाँ सभी लोगों को शस्त्र विहीन कर दिया गया ?

वहाँ सभी सैनिक होते हैं , और यहाँ हम एक बाढ़ आ जाए , या एक नाला भी पार करना होता है तो हम army को बुलाते हैं !

स्त्रियों को तो क्या कहूँ , उनके तो सभी हाथ काट डाले गये हैं !
उनको अबला अबला बोलकर तबला बना दिया गया है !
और उनकी मानसिकता भी ऐसी हो गयी है कि एक गड्ढे को भी पार करने के लिए उह Ouch करती हैं और सामने वाले की तरफ कातर दृष्टि से देखती हैं ! एक कॉकरोच या छिपकली भी अगर सामने आ जाये तो heart fail होने का डर रहता है !

यही एक समय था जब स्वयं कैकयी युद्ध क्षेत्र में स्वयं अपने पति दशरथ की रक्षा करती थी !
दुर्गा रूप धारण कर स्वयं एक स्त्री शक्ति ने सभी असुरों का मर्दन किया और सभी देवताओं की रक्षा की !
पिनाक जैसे धनुष को स्वयं सीता उठाकर रख देती थी !
सावित्री जैसी वीर नारी जिसको जिसके पिता ने स्वयं एक रथ बनवा कर दिया कि अकेली इस रथ पर पूरे भारतवर्ष का भ्रमण करो और जो भी उचित वर हो , उसे वरण करो !
भगवन श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा स्वयं एक बहुत बड़ी योद्धा थी और कई युद्धों में श्रीकृष्ण के साथ उन्होंने भाग लिया !

यजुर्वेद १७.४५ के इस श्लोक में उल्लेख मिलता है कि

स्त्रियों की भी सेना होती है ! स्त्रियों को युद्ध में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करें !

अरे बिना दन्त हीन बड़े से बड़े साँप को छोटे छोटे बच्चे भी मार डालते हैं !

मेरा इस देश के सभी नागरिकों से अनुरोध है कि हमेशा शस्त्र से सुसज्जित रहें क्योंकि यहाँ पोलिस या प्रशासन तभी आपके लिए मदद को आएगा जब आप यमपुरी पहुँच चुके होते हैं !

हमारी संस्कृति में शास्त्र और शस्त्र दोनों को साथ लेकर चलने का आदेश है !

धनुर्वेद, धनुष-चन्द्रोदय और धनुष-प्रदीप-तीन प्राचीन ग्रन्थ याद है, इनमें से दो की प्रत्येक की श्लोक-संख्या 60000 है !

इसमें 'परमाणु' से शक्ति निर्माण का भी वर्णन है !

इससे पता चलता है कि प्राचीन काल में 'परमाणु' (ऐटम) से शस्त्रादि-निर्माण की क्रिया भी भारतीयों को ज्ञात थी !

शास्त्र बिना शस्त्र के बेकार है और शस्त्र बिना शास्त्र के बेकार है !

बुद्धिमान और ज्ञानीजन शास्त्र को ही शस्त्र की तरह प्रयोग करते हैं !

पर प्रयोग दोनों का होता है शस्त्र का भी और शास्त्र का भी !

यहीं बस सबसे बड़ी ग़लती हुई हिंदुओं से कि इनको मैकाले की शिक्षा दी गयी और इनके अपने ही शास्त्रों को इनसे ही गाली दिलवाई गयी , मनुवाद , ब्राह्मणवाद जैसी terminology विकसित की गई , इनको अपने ही शास्त्रों के खिलाफ मन में ज़हर बोया गया और शर्मिंदगी महसूस कराई गई , जिससे यह शास्त्र और शस्त्र विहीन होकर विनाश के मुहाने पर खड़े हो गए ।

जिस दिन शस्त्र और शास्त्र दोनों लेकर चलेंगे उसी दिन हम पुनः विश्व गुरु के पद पर आसीन हो जाएंगे ।

-🙏🙏

10/04/2023

एक साधु का न्यूयार्क में एक बड़े पत्रकार
इंटरव्यू ले रहे थेः
पत्रकार-
सर, आपने अपने लास्ट लेक्चर में
*संपर्क* (Contact) और
*जुड़ाव* (Connection)
पर स्पीच दिया लेकिन यह बहुत कन्फ्यूज करने वाला था। क्या आप इनका अंतर समझा सकते हैं ?
साधु मुस्कराये और उन्होंने कुछ अलग...
पत्रकारों से ही पूछना शुरू कर दियाः
"आप न्यूयॉर्क से हैं?"
पत्रकार: "Yeah..."
संन्यासी: "आपके घर मे कौन-कौन हैं?"
पत्रकार को लगा कि.. साधु उनका सवाल
टालने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि
उनका सवाल बहुत व्यक्तिगत और
उसके सवाल के जवाब से अलग था।
फिर भी पत्रकार बोला : मेरी "माँ अब नही हैं, पिता हैं तथा 3 भाई और एक बहन हैं !
सब शादीशुदा हैं। "
साधू ने चेहरे पर मुस्कान लाते हुए पूछा:
"आप अपने पिता से बात करते हैं?"
पत्रकार चेहरे से गुस्सा झलकने लगा...
साधू ने पूछा, "आपने अपने फादर से
last कब बात की थीं ?"
पत्रकार ने अपना गुस्सा दबाते हुए जवाब दिया : "शायद एक महीने पहले।"
साधू ने पूछा: "क्या आप भाई-बहन अक़्सर मिलते हैं? आप सब आखिर में कब मिले
एक परिवार की तरह ?"
इस सवाल पर पत्रकार के माथे पर पसीना
आ गया कि , इंटरव्यू मैं ले रहा हूँ या ये साधु ?
ऐसा लगा साधु, पत्रकार का इंटरव्यू ले रहा है?
एक आह के साथ पत्रकार बोला : "क्रिसमस
पर 2 साल पहले".
साधू ने पूछा: "कितने दिन आप सब
साथ में रहे ?"
पत्रकार अपनी आँखों से निकले
आँसुओं को पोंछते हुये बोला : "3 दिन...!"
साधु: "कितना वक्त आप भाई-बहनों ने
अपने पिता के बिल्कुल करीब बैठ कर गुजारा ?
पत्रकार हैरान और शर्मिंदा दिखा और
एक कागज़ पर कुछ लिखने लगा...।
साधु ने पूछा: " क्या आपने पिता के साथ नाश्ता , लंच या डिनर लिया ?
क्या आपने अपने पिता से पूछा के वो कैसे हैं ?
माता की मृत्यु के बाद उनका वक्त
कैसे गुज़र रहा है...!
साधु ने पत्रकार का हाथ पकड़ा और कहा: " शर्मिंदा, या दुःखी मत होना।
मुझे खेद है अगर मैंने आपको
अनजाने में चोट पहुँचाई हो,
लेकिन ये ही आपके सवाल का जवाब है । *"संपर्क और जुड़ाव"*
*(Contact and Connection)*
आप अपने पिता के सिर्फ संपर्क
*(Contact)* में हैं
‌पर आपका उनसे कोई 'Connection' *(जुड़ाव )* नही हैं।
*You are not connected to him.*
*आप अपने father से संपर्क में हैं*
*जुड़े नही हैं*
*Connection* हमेशा आत्मा से
आत्मा का होता है।
heart से heart होता है।
एक साथ बैठना, भोजन साझा करना और
एक दूसरे की देखभाल करना, स्पर्श करना,
हाथ मिलाना, आँखों का संपर्क होना,
कुछ समय एक साथ बिताना
आप अपने पिता, भाई और बहनों के
संपर्क *('Contact')* में हैं लेकिन
आपका आपस में कोई' जुड़ाव *'(Connection)* नहीं हैं".
पत्रकार ने आँखें पोंछी और
बोला: "मुझे एक अच्छा और अविस्मरणीय
सबक सिखाने के लिए धन्यवाद".
आज यह भारत की भी सच्चाई हो चली है।
सबके हज़ारों संपर्क *(contacts)* हैं
पर कोई *जुड़ाव connection* नहीं हैं।
कोई विचार-विमर्श नहीं है।
हर आदमी अपनी-अपनी नकली दुनियाँ में
खोया हुआ है।
वो साधु और कोई नहीं
*" स्वामी विवेकानंद" थे।”*

08/04/2023

*आज की अमृत कथा*

*जब एक स्त्री का मान रखने के लिये स्वयं श्री कृष्ण स्त्री बन गये..*

राणा सांगा के पुत्र और अपने पति राजा भोजराज की मृत्यु के बाद जब संबन्धीयो के मीरा बाई पर अत्याचार अपने चरम पे जा पहुँचे तो मीरा बाई मेवाड़ को छोड़कर तीर्थ को निकल गई। घूमते-घूमते वे वृन्दावन धाम जा पहुँची।

जीव गोसांई वृंदावन में वैष्णव-संप्रदाय के मुखिया थे। मीरा जीव गोसांई के दर्शन करना चाहती थीं, लेकिन उन्होंने मीरा बाई से मिलने से मना कर दिया। उन्होंने मीरा को संदेशा भिजवाया कि वह किसी औरत को अपने सामने आने की इजाजत नहीं देंगे। मीराबाई ने इसके जवाब में अपना संदेश भिजवाया कि ‘वृंदावन में हर कोई औरत है। अगर यहां कोई पुरुष है तो केवल गिरिधर गोपाल। आज मुझे पता चला कि वृंदावन में कृष्ण के अलावा यहां कोई और भी पुरुष है।

जीव गुसाईं ने सुबह जब भगवान कृष्ण के मंदिर के पट खोले तो हैरत से उनकी आँखें फटी रह गई, सामने विराजमान भगवान कृष्ण की मूर्ति घाघरा चोली पहने हुये थी, कानों में कुंडल, नाक में नथनी, पैरों में पाजेब, हाथों में चूड़ियाँ मतलब वे औरत के संपूर्ण स्वरूप को धारण किये हुये थे।
जीव गुसाईं ने मंदिर सेवक को आवाज लगाई, किसने किया ये सब ??
कृष्ण की सौगंध पुजारी जी मंदिर में आपके जाने के बाद किसी का प्रवेश नही हुआ ये पट आपने ही बंद किये और आपने ही खोले।

जीव गुसाईं अचंभित थे, सेवक बोला कुछ कहूँ पुजारी जी -
वे खोए-खोए से बोले, हाँ बोलो..
पास ही धर्मशाला में एक महिला आई हुई हैं जिसने कल आपसे मिलने की इच्छा जताई थी, आप तो किसी महिला से मिलते नहीं इसलिये आपने उनसे मिलने से मना कर दिया, परन्तु लोग कहते हैं कि वो कोई साधारण महिला नही उनके एकतारे में बड़ा जादू हैं कहते हैं वो जब भजन गाती हैं तो हर कोई अपनी सुधबुध बिसरा जाता हैं, कृष्ण भक्ति में लीन जब वो नाचती हैं तो स्वयं कृष्ण का स्वरूप जान पड़ती हैं, आपने उनसे मिलने से इंकार किया कही ऐसा तो नही भगवान जी आपको कोई संदेश देना चाहते हो ??
जीव गुसाईं तुरंत समझ गए कि उनसे बहुत बड़ी भूल हो गई हैं, मीरा बाई कोई साधारण महिला नही अपितु कोई परम कृष्णभक्त हैं।
वे सेवक से बोले भक्त मुझे तुरंत उनसे मिलना हैं चलो कहाँ ठहरी हैं वो मैं स्वयं उनके पास जाऊँगा।
जीव गुसाईं मीरा जी के सामने नतमस्तक हो गये और भरे कंठ से बोले मुझ अज्ञानी को आज आपने भक्ति का सही स्वरूप दिखाया हैं देवी इसके लिये मैं सदैव आपका आभारी रहूंगा।आईए चलकर स्वयं अपनी भक्ति की शक्ति देखिये।
मीरा बाई केवल मुस्कुराई वे कृष्ण कृष्ण करती उनके पीछे हो चली। मंदिर पहुँचकर जीव गौसाई एक बार फिर अचंभित हुये कृष्ण भगवान वापस अपने स्वरूप में लौट आये थे,पर एक अचम्भा और भी था उन्हें कभी कृष्ण की मूर्ति में मीरा बाई दिखाई पड़ती तो कभी मीराबाई में कृष्ण..!!

*🙏🏻🙏🏼🙏🏾जय श्री कृष्ण*🙏🏽🙏🏿🙏

05/04/2023

*श्री हनुमान जन्मोत्सव की हार्दिक बधाई ।*🌹 *(06 अप्रैल 2023)*

🌹 *‘रामजी तुम्हें प्रेम करेंगे’*

🚩 *हनुमानजी माता सीता की खोज में अनेक कठिनाइयों का सामना करते हुए लंका पहुँचे । अशोक वाटिका में माता सीता के दर्शन कर उन्हें भगवान राम का संदेश दिया । माता सीता हनुमानजी पर बहुत प्रसन्न हुईं तथा उनको आशीर्वाद दिया ।*

🌹 *कितनी कसौटियों से गुजरने के बाद हनुमानजी को माता सीता का आशीर्वाद प्राप्त होता है । सीताजी ने हनुमानजी को आशीर्वाद दिया कि ‘‘अजर बनो ।’’ लेकिन अजर होने (कभी वृद्ध न होने) का आशीर्वाद सुनकर हनुमानजी खामोश ही खड़े रहे, तनिक भी नहीं हिले-डुले । सीताजी को लगा कि शायद अजर होने का वरदान इसे कम पड़ता है, इसलिए उन्होंने दूसरा वरदान दिया कि ‘‘तुम अमर बनोगे ।’’ परंतु हनुमानजी इससे भी प्रभावित नहीं हुए । जब माता को लगा कि इसे अजर-अमर होने में रस नहीं है, तब तो उन्होंने तीसरा आशीर्वाद दिया कि ‘‘...गुननिधि सुत होहू । तुम गुणों की निधि होओगे ।’’*

🌹 *हनुमानजी को इससे भी आनंद न मिला तब माताजी समझ गयीं कि इसको किस बात की भूख है । उन्होंने कहा : ‘‘अजर, अमर और गुणनिधि तो ठीक लेकिन जाओ, मेरा आशीर्वाद है कि श्रीराम तुमसे बहुत प्रेम करेंगे ।*
*करहुँ बहुत रघुनायक छोहू ।।’’*

🌹 *‘प्रेम करेंगे’- इतना सुनते ही हनुमानजी को मानो समाधि लग गयी । कुछ समय बाद वे बोले : ‘‘बस माँ ! मुझे यही चाहिए । मुझे अजर-अमरवाला वरदान नहीं, मुझे तो ‘मेरे भगवान मुझसे प्रेम करें’- यही चाहिए ।’’*

🌹 *सीता माता ने पूछा : ‘‘हनुमंत ! इतने सारे आशीर्वाद मिले फिर भी तुम खुश न हुए लेकिन ‘रामजी तुम्हें प्रेम करेंगे’ यह सुनकर तुम शरीर की सुध-बुध भी खो बैठे, इसका क्या कारण है ?’’*

🌹 *हनुमानजी ने वंदन कर कहा : ‘‘माता ! आप तो सर्वज्ञ हैं, सब जानती हैं । श्रीराम जिससे प्रेम करें, उसके लिए तो क्या कहना ! उसके वर्णन के लिए तो मेरे पास शब्द ही नहीं हैं ।’’*

🌹 *फिर लंका में अपनी पूँछ का चमत्कार दिखाकर प्रभु के पास लौटने से पहले हनुमानजी पुनः अशोक वाटिका में माता से आज्ञा माँगने पहुँचे तो हनुमानजी की सच्ची निष्ठा से माता बहुत प्रसन्न हुईं । सीता माता ने उन्हें भगवान श्रीराम के लिए संदेश दिया और आशीर्वाद देकर हनुमानजी को जाने की आज्ञा प्रदान की । हनुमानजी की अनन्य निष्ठा का ही तो यह फल है कि जहाँ भी ‘राम-लक्ष्मण-जानकी’ को याद किया जाता है, वहाँ हनुमानजी का जयघोष अवश्य होता है ।*

🌹राम लक्ष्मण जानकी । जय बोलो हनुमान की ।।🌹

01/04/2023

अप्रैल फूल" किसी को कहने से पहले
इसकी
वास्तविक सत्यता जरुर जान ले.!!
पावन महीने की शुरुआत को मूर्खता दिवस
कह रहे
हो !!
पता भी है क्यों कहते है अप्रैल फूल (अप्रैल फुल
का
अर्थ है - हिन्दुओ का मूर्खता दिवस).??
ये नाम अंग्रेज ईसाईयों की देन है…
मुर्ख हिन्दू कैसे समझें "अप्रैल फूल" का मतलब बड़े
दिनों से बिना सोचे समझे चल रहा है अप्रैल फूल,
अप्रैल फूल ???
इसका मतलब क्या है.?? दरअसल जब ईसाइयत अंग्रेजो
द्वारा हमे 1 जनवरी का नववर्ष थोपा गया तो उस
समय लोग विक्रमी संवत के अनुसार 1 अप्रैल से
अपना
नया साल बनाते थे, जो आज भी सच्चे हिन्दुओ
द्वारा मनाया जाता है, आज भी हमारे बही
खाते
और बैंक 31 मार्च को बंद होते है और 1 अप्रैल से शुरू
होते है, पर उस समय जब भारत गुलाम था तो ईसाइयत
ने विक्रमी संवत का नाश करने के लिए साजिश करते
हुए 1 अप्रैल को मूर्खता दिवस "अप्रैल फूल" का नाम
दे दिया ताकि हमारी सभ्यता मूर्खता लगे अब आप
ही सोचो अप्रैल फूल कहने वाले कितने
सही हो
आप.?
यादरखो अप्रैल माह से जुड़े हुए इतिहासिक दिन और
त्यौहार
1. हिन्दुओं का पावन महिना इस दिन से शुरू होता है
(शुक्ल प्रतिपदा)
2. हिन्दुओ के रीति -रिवाज़ सब इस दिन के कलेण्डर
के अनुसार बनाये जाते है।
6. आज का दिन दुनिया को दिशा देने वाला है।
अंग्रेज ईसाई, हिन्दुओ के विरुध थे इसलिए हिन्दू के
त्योहारों को मूर्खता का दिन कहते थे और आप
हिन्दू भी बहुत शान से कह रहे हो.!!
गुलाम मानसिकता का सुबूत ना दो अप्रैल फूल लिख
के.!!
अप्रैल फूल सिर्फ भारतीय सनातन कलेण्डर, जिसको
पूरा विश्व फॉलो करता था उसको भुलाने और
मजाक उड़ाने के लिए बनाया गया था। 1582 में पोप
ग्रेगोरी ने नया कलेण्डर अपनाने का फरमान
जारी
कर दिया जिसमें 1 जनवरी को नया साल का प्रथम
दिन बनाया गया।
जिन लोगो ने इसको मानने से इंकार किया, उनको 1
अप्रैल को मजाक उड़ाना शुरू कर दिया और धीरे-
धीरे
1 अप्रैल नया साल का नया दिन होने के बजाय मूर्ख
दिवस बन गया।आज भारत के सभी लोग अपनी ही
संस्कृति का मजाक उड़ाते हुए अप्रैल फूल डे मना रहे
है।
जागो हिन्दुओ जागो।।
अपने धर्म को पहचानो।
इस जानकारी को इतना फैलाओ कि कोई भी इस आने वाली 1 अप्रैल से मूर्खता का परिचय न दे और और अंग्रेजों द्वारा प्रसिद्ध किया गया ये हिंदुओं का मजाक बंद होजाये ।

🙏🙏💐💐जय हिन्द जय भारत 🙏🙏💐💐

30/03/2023

*राम* शब्द में दो अर्थ व्यंजित हैं। सुखद होना और ठहर जाना। अपने मार्ग से भटका हुआ कोई क्लांत पथिक किसी सुरम्य स्थान को देखकर ठहर जाता है। हमने सुखद ठहराव का अर्थ देने वाले जितने भी शब्द गढ़े, सभी में *राम* अंतर्निहित है, यथा *आराम, विराम, विश्राम, अभिराम, उपराम, ग्राम*

जो *रमने* के लिए *विवश* कर दे, वह *राम*

जीवन की आपाधापी में पड़ा *अशांत* मन जिस आनंददायक *गंतव्य* की सतत तलाश में है, वह गंतव्य है *राम*

भारतीय मन हर स्थिति में *राम* को *साक्षी* बनाने का आदी है। दुःख में *हे राम*, *पीड़ा* में *ऐ राम*, *लज्जा* में *हाय राम*, *अशुभ* में *अरे राम राम*, *अभिवादन* में *राम राम*, *शपथ* में *रामदुहाई*, *अज्ञानता* में *राम जाने*, *अनिश्चितता* में *राम भरोसे*, *अचूकता* के लिए *रामबाण*, मृत्यु के लिए *रामनाम सत्य*, *सुशासन* के लिए *रामराज्य* जैसी अभिव्यक्तियां पग-पग पर *राम* को साथ खड़ा करतीं हैं। *राम* भी इतने सरल हैं कि हर जगह खड़े हो जाते हैं। हर भारतीय उन पर अपना अधिकार मानता है। जिसका कोई नहीं उसके लिए राम हैं- *निर्बल के बल राम*। असंख्य बार देखी सुनी पढ़ी जा चुकी *रामकथा* का आकर्षण कभी नहीं खोता। राम पुनर्नवा हैं। हमारे भीतर जो कुछ भी अच्छा है, वह *राम* है। जो *शाश्वत* है, वह *राम* हैं।
*सब-कुछ लुट जाने के बाद जो बचा रह जाता है, वही तो राम है। घोर निराशा के बीच जो उठ खड़ा होता है, वह भी राम ही है।*

सीमाओं के बीच छुपे असीम को देखना हो तो *राम* को देखिए।।

*समस्त की समस्तता को बटोरे प्रभु राम के जन्मोत्सव की समस्त जीवों को मंगलकामनाएं,*
😊🙏💐
*जय श्रीराम!*
*जय माता दी*

30/03/2023

*जय जय श्री राम*

भए प्रगट कृपाला, दीनदयाला,
कौसल्या हितकारी।
हरषित महतारी, मुनि मन हारी,
अद्भुत रूप बिचारी॥

लोचन अभिरामा, तनु घनस्यामा,
निज आयुध भुजचारी।
भूषन बनमाला, नयन बिसाला,
सोभासिंधु खरारी॥

कह दुइ कर जोरी, अस्तुति तोरी,
केहि बिधि करूं अनंता।
माया गुन ग्यानातीत अमाना,
वेद पुरान भनंता॥

करुना सुख सागर, सब गुन आगर,
जेहि गावहिं श्रुति संता।
सो मम हित लागी, जन अनुरागी,
भयउ प्रगट श्रीकंता॥

ब्रह्मांड निकाया, निर्मित माया,
रोम रोम प्रति बेद कहै।
मम उर सो बासी, यह उपहासी,
सुनत धीर मति थिर न रहै॥

उपजा जब ग्याना, प्रभु मुसुकाना,
चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै।
कहि कथा सुहाई, मातु बुझाई,
जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै॥

माता पुनि बोली, सो मति डोली,
तजहु तात यह रूपा।
कीजै सिसुलीला, अति प्रियसीला,
यह सुख परम अनूपा॥

सुनि बचन सुजाना, रोदन ठाना,
होइ बालक सुरभूपा।
यह चरित जे गावहिं, हरिपद पावहिं,
ते न परहिं भवकूपा॥

भए प्रगट कृपाला, दीनदयाला,
कौसल्या हितकारी।
हरषित महतारी, मुनि मन हारी,
अद्भुत रूप बिचारी॥

*आप सभी को श्रीरामनवमी के पवित्र असवर प्राकट्य पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं एंव बधाई*

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25/03/2023

गणगौर व्रत आज
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हिन्दू धर्म में पति की लंबी आयु और संतान के अच्छे स्वास्थ्य के लिए महिलाएं कई व्रत रखती हैं।

हिन्दू धर्म में महिलाएं पति की लंबी आयु और संतान के अच्छे स्वास्थ्य के लिए अनेकों व्रतों का पालन करती हैं जिनमें से कुछ नियमित होते हैं तो कुछ विशेष स्थान रखते हैं। खास व्रतों की इसी सूची में से एक है गणगौर का व्रत।

इस साल गणगौर 24 मार्च, दिन शुक्रवार को मनाया जाएगा। गणगौर के दिन चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पड़ रही है। तृतीया तिथि का शुभारंभ 23 मार्च, दिन गुरुवार (गुरुवार के दिन न करें इन चीजों का दान) को शाम 6 बजकर 20 मिनट से होगा वहीं, इसका समापन 24 मार्च को शाम 4 बजकर 59 मिनट पर होगा। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, इस साल गणगौर का व्रत मार्च की 24 तारीख को रखा जाना है।

गणगौर का महत्व
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गणगौर शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है। गण का अर्थ है भगवान शिव और गौर का अर्थ है माता गौरा अर्थात मां पार्वती। गणगौर के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा का विधान है। खास बात यह है कि इस दिन महिलाएं भगवान शिव और माता पार्वती की मिट्टी की प्रतिमाएं अपने हाथों से बनाती हैं और फिर उनका श्रृंगार कर उनकी पूजा करती हैं।

गणगौर के व्रत से जुड़ी एक मान्यता यह भी है कि इस व्रत का पालन महिलाएं अपने पति से छुपकर करती हैं। गणगौर का व्रत सिर्फ विवाहित ही नहीं बल्कि कुंवारी कन्याएं भी करती हैं। गणगौर का पर्व मुख्य तौर पर मध्य प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा में मनाया जाता है। मान्यता है कि गणगौर का व्रत रखने से मन चाहा वर प्राप्त होता है और शादीशुदा महिलाओं को अखंड सौभग्य मिलता है।

गणगौर की पूजा सामग्री
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गणगौर की पूजा में लकड़ी का साफ़ पटरा, कलश, काली मिट्टी, होलिका की राख, गोबर या फिर मिट्टी के उपले, दीपक, गमले, कुमकुम (कुमकुम को पैरों में लगाने के लाभ), अक्षत, सुहाग से जुड़ी चीज़ें जैसे: मेहंदी, बिंदी, सिंदूर, काजल, रंग, शुद्ध और साफ़ घी, ताजे फूल, आम के पत्ते, पानी से भरा हुआ कलश, नारियल, सुपारी, गणगौर के कपड़े, गेंहू और बांस की टोकरी, चुनरी, कौड़ी, सिक्के, घेवर, हलवा, चांदी की अंगुठी, पूड़ी आदि का प्रयोग किया जाता है।

गणगौर की पूजा विधि
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प्रातः जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं।
स्नान के पश्चात अगर आप विवाहिता हैं तो अपना पूर्ण श्रृंगार करें।
अगर आप अविवाहित हैं तो बस स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
श्रृंगार कर एक लोटे में ताजा जल भरें। उस जल में फूल और दूब मिलाएं।
साथ ही किसी स्वच्छ बगीचे से कंकड़-पत्थर रहित मिट्टी घर लाएं।
उस साफ मिट्टी से भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा बनाएं।
भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्तियों को साथ में स्थापित करें।
अब गणगौर को सुंदर वस्त्र पहनाकर रोली, मोली, हल्दी, काजल, मेहंदी आदि सुहाग की चीजें अर्पित करें।
गणगौर का को वस्तुएं अर्पित करते हुए गीत गाएं।
घर की दीवार पर सोलह-सोलह बिंदियां रोली, मेहंदी व काजल की लगाएं।
एक थाली में जल, दूध-दही, हल्दी, कुमकुम घोलकर सुहागजल तैयार करें।
दोनों हाथों में दूब लेकर सुहागजल से गणगौर को छींटे लगाएं।
बाद में महिलाएं खुद के ऊपर भी इस जल को छिड़कें।
आखिर में मीठे गुने या चूरमे का भोग लगाकर गणगौर माता की कहानी सुनें।
शाम के समय गणगौर को पानी पिलाकर किसी पवित्र सरोवर या कुंड आदि में विसर्जित कर दें।

गणगौर व्रत की पावन कथा
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मान्यता के अनुसार एक बार माता पार्वती, भगवान शिव और नारद मुनि किसी गांव में गये थे। गांव के लोगों को जब यह बात पता चली कि उनके गांव में स्वंय देवता पधारे हैं, तो उन्होंने भगवान को प्रसन्न करने के लिए पकवान बनाने शुरू कर दिए। इसी प्रक्रिया में गांव की अमीर महिलायें भगवान को प्रसन्न करने के लिए पकवान बनाने लगी, जबकि गरीब महिलाओं ने भगवान को श्रद्धा सुमन अर्पित किया।

गरीब महिलाओं की सच्ची आस्था को देख कर माता पार्वती ने उन्हें सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद दे दिया था। तभी दूसरी तरफ से अमीर घरों की महिलायें पकवान लेकर भगवान के पास पहुंचती हैं, जिसके बाद सभी महिलायें मां पार्वती से पूछती हैं कि अब आप हमें क्या आशीर्वाद प्रदान करेंगी। ऐसे में माता पार्वती उनसे कहती हैं कि जो भी महिला उनके लिए सच्चे मन से आस्था लेकर आयी है, उन सभी के पात्रों पर माता के रक्त के छींटे पड़ेंगे। इसके बाद माता पार्वती ने अपनी ऊंगली काटकर अपना थोड़ा-सा लहू उन महिलाओं के बीच छिड़क दिया, जिससे उन महिलाओं को निराश होकर घर वापस जाना पड़ता है, जो मन में किसी भी तरह का लालच लेकर भगवान से मिलने आयीं थीं।

गणगौर व्रत को अपने पति से गुप्त क्यों रखा जाता है?
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इसके बाद देवी पार्वती, भगवान शिव और नारद मुनि को वहीं छोड़ कर नदी में स्नान करने के लिए चली जाती हैं। वहां नदी के तट पर माता भगवान शिव की रेत की प्रतिमा बनाकर उनकी पूजा करती हैं और उन्हें रेत के लड्डू का भोग लगाती हैं। जब वो वापस पहुंचती हैं, तो भगवान शिव उनसे देर से आने की वजह पूछते हैं। तब माता पार्वती उन्हें बताती हैं कि नदी से लौटते हुए उनके कुछ रिश्तेदार मिल गए थे, जिन्होंने उनके लिए दूध भात बनाया था, उसी को खाने में उन्हें विलम्ब हो गया। लेकिन शिव जी तो अन्तर्यामी ठहरे। उन्हें सारी बात पता थी इसलिए वो देवी पार्वती के रिश्तेदारों से मिलने की इच्छा जताते हैं। तब माता पार्वती अपनी माया से वहां एक महल का निर्माण कर देती हैं, जहां भगवान शिव और नारद मुनि की खूब आवभगत की जाती है।

भगवान शिव और नारद मुनि वहां से प्रसन्न होकर लौट रहे होते हैं तब भगवान शिव नारद मुनि से कहते हैं कि वे अपनी रुद्राक्ष की माला वहीं महल में भूल गए हैं, इसलिए नारद मुनि वापस जाकर उनके लिए वह माला ले आएं। नारद मुनि वहां पहुंचते हैं, तो वहां उन्हें कोई महल नहीं मिलता और भगवान शिव की माला उन्हें एक पेड़ की टहनी पर टंगी हुई दिखती है। जब नारद मुनि भगवान शिव को यह बात बताते हैं, तो भगवान शिव मुस्कुराते हुए नारद मुनि को देवी पार्वती की माया के बारे में बताते हैं। बस इसी के बाद से गणगौर पर्व मनाने की परंपरा शुरू हो गयी, जहां पत्नी अपने पति को देवताओं की पूजा के बारे में कोई जानकारी नहीं देती।

11/03/2023

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

*POWER of OM (ॐ)*

*एक घडी, आधी घडी,*
*आधी में पुनि आध।*
*तुलसी चरचा राम की,*
*हरै कोटि अपराध।।*

1 घड़ी = 24 मिनट
1/2 घडी़ = 12 मिनट
1/4 घडी़ = 06 मिनट

*क्या ऐसा हो सकता है कि 6 मिनट में किसी साधन से करोडों विकार दूर हो सकते हैं।*

उत्तर है *हाँ हो सकते हैं*
वैज्ञानिक शोध से पता चला है कि......

सिर्फ 6 मिनट *ॐ* का उच्चारण करने से सैकडौं रोग ठीक हो जाते हैं जो दवा से भी इतनी जल्दी ठीक नहीं होते.........

👉 छः मिनट *ॐ* का उच्चारण करने से मस्तिष्क में विषेश वाइब्रेशन (कम्पन) होता है.... और ऑक्सीजन का प्रवाह पर्याप्त होने लगता है।

👉कई मस्तिष्क रोग दूर होते हैं.. स्ट्रेस और टेन्शन दूर होती है, स्मरण शक्ति बढती है..।

👉लगातार सुबह शाम 6 मिनट *ॐ* के तीन माह तक उच्चारण से रक्त संचार संतुलित होता है और रक्त में *ऑक्सीजन लेबल* बढता है।
*रक्त चाप, हृदय रोग, कोलस्ट्रोल* जैसे रोग ठीक हो जाते हैं....।

👉मात्र 2 सप्ताह दोनों समय *ॐ* के उच्चारण से *घबराहट, बेचैनी, भय, एंग्जाइटी* जैसे रोग दूर होते हैं।

👉कंठ में विशेष कंपन होता है *मांसपेशियों को शक्ति* मिलती है..।

*👉थाइराइड, गले की सूजन दूर होती है और स्वर दोष दूर होने लगते हैं..।*

👉एक माह तक दिन में तीन बार 6 मिनट तक *ॐ* के उच्चारण से *पाचन तन्त्र, लीवर, आँतों को शक्ति प्राप्त होती है,* और डाइजेशन सही होता है, सैकडौं *उदर रोग* दूर होते हैं..।

👉उच्च स्तर का प्राणायाम होता है, और फेफड़ों में विशेष कंपन होता है..।
*फेफड़े मजबूत* होते हैं, *स्वसनतंत्र की शक्ति* बढती है, *6 माह में अस्थमा, राजयक्ष्मा (T.B.)* जैसे रोगों में लाभ होता है।

👉आयु बढती है।

ये सारे रिसर्च (शोध) विश्व स्तर के वैज्ञानिक स्वीकार कर चुके हैं।
*जरूरत है छः मिनट रोज करने की.....।*

ॐ का उच्चारण लम्बे स्वर में करें।।

*अति सुंदर अवश्य पढ़ें*

💠 *स्वर्ग* में सब कुछ हैं लेकिन *मौत* नहीं है,
*गीता* में सब कुछ हैं लेकिन *झूठ* नहीं है,
*दुनिया* में सब कुछ हैं लेकिन किसी को *सुकून* नहीं है,
और
आज के *इंसान* में सब कुछ हैं लेकिन *सब्र* नहीं है।

*राजा भोज* ने *कवि कालीदास* से *दस सर्वश्रेष्ठ* सवाल किए..

1- दुनिया में भगवान की *सर्वश्रेष्ठ रचना* क्या है ?
उत्तर - *''मां''*
2 - सर्वश्रेष्ठ *फूल* कौन सा है ?
उत्तर - *"कपास का फूल"*
3 - सर्वश्र॓ष्ठ *सुगंध* कौनसी है ?
उत्तर - *वर्षा से भीगी मिट्टी की सुगंध*
4 - सर्वश्र॓ष्ठ *मिठास* कौनसी ?
उत्तर - *"वाणी की"*
5 - सर्वश्रेष्ठ *दूध* ?
उत्तर - *"मां का"*
6 - सबसे से *काला* क्या है ?
उत्तर - *"कलंक"*
7 - सबसे भारी क्या है?
उत्तर - *"पाप"*
8 - सबसे *सस्ता* क्या है ?
उत्तर - *"सलाह"*
9 - सबसे *महंगा* क्या है ?
उत्तर - *"सहयोग"*
10 - सबसे *कडवा* क्या है?
ऊत्तर - *"सत्य"*

🎐अगर मेरे पास एक रुपया है एवं आपके पास भी एक रुपया है और हम एक दूसरे से बदल ले तो दोनों के पास एक एक रुपया ही रहेगा ।

_किंतु_

अगर मेरे पास एक अच्छा विचार है एवं आपके पास एक अच्छा विचार है और दोनों आपस में बदल ले तो दोनों के पास दो दो विचार होंगे !

_है न ……!!_

तो अच्छे विचारों का आदान प्रदान जारी रखिये...
और
अपनी मानसिक पूंजी बढ़ाते रहिये ।

🚩☝ *मंजिल वही, सोच नई*☝🚩
,
ऊपर जाने पर एक सवाल ये भी पूँछा जायेगा कि अपनी अँगुलियों के नाम बताओ ।
जवाब:-
अपने हाथ की छोटी उँगली से शुरू करें :-
(1)जल
(2) पथ्वी
(3)आकाश
(4)वायू
(5) अग्नि
ये वो बातें हैं जो बहुत कम लोगों को मालूम होंगी ।

5 जगह हँसना करोड़ो पाप के बराबर है
1. श्मशान में
2. अर्थी के पीछे
3. शोक में
4. मन्दिर में
5. कथा में

सिर्फ 1 बार भेजो बहुत लोग इन पापो से बचेंगे ।।

अकेले हो?
परमात्मा को याद करो ।

परेशान हो?
ग्रँथ पढ़ो ।

उदास हो?
कथाए पढो ।

टेन्शन मे हो?
भगवत गीता पढो ।

फ्री हो?
अच्छी चीजे फोरवार्ड करो
हे परमात्मा हम पर और समस्त प्राणियो पर कृपा करो......

सूचना
क्या आप जानते हैं ?
हिन्दू ग्रंथ रामायण, गीता, आदि को सुनने,पढ़ने से कैन्सर नहीं होता है बल्कि कैन्सर अगर हो तो वो भी खत्म हो जाता है।

आरती----के दौरान ताली बजाने से
दिल मजबूत होता है ।🚩🤷‍♂️
अतः आप उदासीनता ना शर्तें एक दूसरे से सम्पर्क बनाए,जीवन थोड़ा है हाय-हाय में ना लगे रहें।आपका एक मेसेज मेरे पास आएगा तो मेरे पास दो मेसेज हो जाएंगे। वैसे भी आपके पास भी! परंतु घटेगा नहीं,बढ़ेगा!!!
आपसे आशा है आप सहयोग करेंगे।
ज्योत से ज्योत जगाते चलो।
प्रेम की गंगा बहाते चलो।
अब तो राधे-राधे बोलना ही पड़ेगा।
🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️

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