17/07/2025
गोकुल में एक बालक था — नाम था कृष्ण।
बाल्यावस्था से ही उसमें कुछ अलग बात थी। नटखट था, मगर उसकी शरारतों में भी कहीं ना कहीं गहरी सीख छिपी होती थी।
एक दिन की बात है। यशोदा माँ को शिकायत मिली कि कृष्ण ने फिर से मिट्टी खा ली है। परेशान होकर वो दौड़ी-दौड़ी आईं और गुस्से में बोलीं,
“कान्हा! तूने फिर मिट्टी खाई?”
कृष्ण ने मासूमियत से सिर झुका लिया, पर बोला कुछ नहीं। यशोदा माँ ने कहा,
“मुँह खोल! अभी देखती हूँ।”
जैसे ही कृष्ण ने मुँह खोला, यशोदा माँ स्तब्ध रह गईं। मुँह में ना मिट्टी थी, ना कुछ और — वहाँ ब्रह्मांड था। ग्रह, नक्षत्र, आकाशगंगाएं, समय, तत्व, जीवन—सब कुछ। माँ की आंखें भर आईं, पर उसी क्षण कृष्ण ने फिर से मुँह बंद कर लिया। सब कुछ सामान्य हो गया।
माँ ने धीरे से उसे गले लगाया। ना कुछ कहा, ना कुछ पूछा। लेकिन उस दिन से उनकी नजरों में कृष्ण सिर्फ बेटा नहीं, साक्षात सत्य था।
*कुछ वर्षों बाद…*
महाभारत का युद्ध चल रहा था। अर्जुन कुरुक्षेत्र के बीच खड़ा था, जहाँ सामने उसके अपने ही भाई-बंधु, गुरुजन और सखा खड़े थे। युद्ध करना उसे अधर्म लगा, और उसने गांडीव नीचे रख दिया।
*तभी श्रीकृष्ण ने उसी प्रेम से कहा —*
“अर्जुन, तू अपने कर्तव्य से क्यों भाग रहा है? यह शरीर नाशवान है, आत्मा नहीं। जो जन्मा है, उसका मरण निश्चित है। तू युद्ध से नहीं, मोह से डर रहा है।”
कृष्ण ने जो गीता के रूप में अर्जुन को उपदेश दिया, वो केवल उस युद्ध के लिए नहीं था—वो हर युग, हर जीवन के लिए था।
*निष्कर्ष (ज्ञान):*
कभी मिट्टी खाकर ब्रह्मांड दिखाने वाले कृष्ण, कभी मोह से जकड़े योद्धा को ज्ञान देने वाले कृष्ण — यही सिखाते हैं कि जीवन में जो दिखता है, वो सब कुछ नहीं होता।
*जो सत्य है, वो स्थिर है।*
*जो कर्तव्य है, वो धर्म है।*
*जो मोह है, वही सबसे बड़ा बंधन है।*
बोलना पड़ेगा :- श्री राधा श्री राधा श्री राधा