Paras Jyotish Mahavidyalaya

Paras Jyotish Mahavidyalaya Contact information, map and directions, contact form, opening hours, services, ratings, photos, videos and announcements from Paras Jyotish Mahavidyalaya, Astrologist & Psychic, 49/2 A Ramdulal Sarkar Street, KOLKATA.

শ্রীকৃষ্ণতত্ত্ব প্রসঙ্গে শ্রীশ্রীমা আনন্দময়ী মা বলছেন ভক্ত কুমুদ ভট্টাচার্য মহাশয়কে। কাশীতে নর্মদা থেকে মা ফিরে এসেছেন ...
12/01/2023

শ্রীকৃষ্ণতত্ত্ব প্রসঙ্গে শ্রীশ্রীমা আনন্দময়ী

মা বলছেন ভক্ত কুমুদ ভট্টাচার্য মহাশয়কে। কাশীতে নর্মদা থেকে মা ফিরে এসেছেন কাশীতে। উঠেছেন ধর্মশালায়। বহু ভক্ত সমাগম হয়েছে। ভক্তরা মনের সংশয় দূর করবার জন্য প্রশ্ন করছেন। মা হাসি হাসি মুখে তৃপ্তিকর ভাষায় উত্তর দিচ্ছেন। ভক্ত কুমুদবাবু শান্তি পাওয়ার কথা তুলেছেন, তারই উত্তরে শ্রীশ্রীমা সুন্দর করে, সহজ করে শান্তি পাওয়ার পথের নির্দেশ দিলেন। মা আবার কাব্যায়িত করে তৃপ্তিকর ভাষায় ভক্তদের বোঝাচ্ছেন কৃষ্ণতত্ত্ব।

দেখ ত’—গরু ত পশু। পশু কি? না পশুর বৃত্তি। সেই বৃত্তিগুলির রক্ষক রাখাল কি করে? গরুগুলিকে রক্ষা করে যাতে তাদের নিকট হতে দুধ পাওয়া যায় তারই চেষ্টা করে। দুধ হলো শুভ্র বর্ণ। শুভ্র বর্ণ হলো কি-না, সত্ত্বগুণ। বৃত্তিগুলিকে সেই রকম ভাবে রক্ষা করতে হয়। যাতে তা হতে সত্ত্বগুণ বের হয় । তারপর মন্থন করে সত্ত্বের সার বস্তু মাখন উঠল। সেই মাখনের পরিণতি কোথায়? পরমাত্মায়। তাই মাখন চোর কৃষ্ণ। এখন পরমাত্মাকে 'তুমি তুমিই' বল—'আমি আমিই' বল, একই কথা৷

আবার দেখ গোপিনীরা ছিলেন। তাঁরা কে? দশ ইন্দ্রিয়, ছয় রিপু, এই ষোল। ষোলর উপর যে সত্য, স্বরূপ, সেই যে এক রস ধর না, সেই রসই ঋষি নামে কথিত। ঋষিরা কি করলেন? রাম অবতারে, রামের কাছে গিয়ে তাঁকে পতি ভাবে কামনা করলেন। রাম বললেন, 'এখন নয়। কৃষ্ণ অবতারে তোমাদের মনোবাসনা পূর্ণ হবে।' সেই এক রস গিয়ে যখন রামের কাছে দাঁড়ালো মিলন রসের জন্য, তখন আকর্ষণ ব্যতীত সেই রসের পরিণতি হয় না বলে, রামের কাছে গিয়ে পতিভাবে কামনা করলো। রাম বললেন, 'কৃষ্ণ আসলে তোমাদের বাসনা পূর্ণ হবে।' কৃষ্ণ কি? না—আকর্ষণ৷ রামের কাছে গেলেই আকর্ষণ আসবেই। তাই রামকে পতিভাবে চাওয়ার কথা আসলো। তারপর দ্বাপরে শ্রীধাম বৃন্দাবনে যখন কৃষ্ণ আসলেন তখনই লীলা আরম্ভ হলো। কারণ সেই রসই লীলার অধিকারী কি না! তাই কাত্যায়নী পূজা করে পূজ্য পূজকের সীমা অতিক্রম করে লীলার অধিকারী হয়। লীলা নিত্য বলা হয়। সত্যই লীলা কিন্তু নিত্য। নিত্যকাল ধরে শ্রীরাধিকা শ্রীকৃষ্ণের মাধুর্যামৃত আস্বাদ করছেন। আর এই লীলায় যোগ দিল কারা? না—গোপিনীরা । গোপিনী কি? না,—সেই এক রস। ঋষিরাই গোপিনী হয়েছিল। এ হলো অতীন্দ্রিয়ের বিষয়। তাই জাগতিক ভাবে তা ধরতে পারা যায় না। এই প্রাকৃতিক বিষয় ভাব হতে সেই অপ্রাকৃত খেলা। লীলারস গোপন কিনা তাই গোপিনী নামে কথিত ও সেই রসে অধিকারী।

আবার দেখ বাইরের দিক হতে দেখলে গরু রক্ষা করে গোপেরা। গোপ নাম হলো কেন?—না দুধের মধ্যে মাখন গুপ্তভাবে থাকে তা ত সাধারণ ভাবে দেখতে পাওয়া যায় না। এই মাখন অর্থাৎ গুপ্ত জিনিস বের করে বলে তারা গোপ।

(গঙ্গেশচন্দ্র চক্রবর্তী, 'পরমযোগিনী আনন্দময়ী মা')

12/01/2023
12/01/2023
श्रीमद भगवद गीता जयंती की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं..श्रीमद भगवद गीता का माहात्म्यं -श्री वाराह पुराणे में  गीता का माहा...
03/12/2022

श्रीमद भगवद गीता जयंती की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं..

श्रीमद भगवद गीता का माहात्म्यं -

श्री वाराह पुराणे में गीता का माहात्म्यं बताते हुए श्री विष्णु जी कहते हैं :

श्रीविष्णुरुवाच: -

प्रारब्ध को भोगता हुआ जो मनुष्य 'सदा' श्रीगीता के अभ्यास में आसक्त हो वही इस लोक में मुक्त 'और' सुखी होता है 'तथा' कर्म में लेपायमान 'नहीं' होता |(2)

जिस प्रकार कमल के पत्ते को जल स्पर्श 'नहीं' करता उसी प्रकार जो मनुष्य श्रीगीता का ध्यान करता है उसे महापापादि पाप 'कभी' स्पर्श नहीं करते |(3)

जहाँ श्रीगीता की पुस्तक होती है और जहाँ श्रीगीता का पाठ होता है वहाँ प्रयागादि 'सर्व' तीर्थ निवास करते हैं |(4)

जहाँ श्रीगीता प्रवर्तमान है वहाँ 'सभी' देवों, ऋषियों, योगियों, नागों और गोपालबाल श्रीकृष्ण भी नारद, ध्रुव आदि सभी पार्षदों सहित 'जल्दी ही' सहायक होते हैं |(5)

जहाँ श्री गीता का विचार, पठन, पाठन तथा श्रवण होता है वहाँ मैं (श्री विष्णु भगवान) 'अवश्य' निवास करता हूँ | (6)

मैं (श्री विष्णु भगवान) श्रीगीता के आश्रय में रहता हूँ, श्रीगीता मेरा (श्री विष्णु भगवान) 'उत्तम' घर है और श्रीगीता के ज्ञान का आश्रय करके मैं (श्री विष्णु भगवान) तीनों लोकों का पालन करता हूँ |(7)

श्रीगीता 'अति' अवर्णनीय पदोंवाली, अविनाशी, अर्धमात्रा तथा अक्षरस्वरूप, नित्य, ब्रह्मरूपिणी और 'परम' श्रेष्ठ मेरी (श्री विष्णु भगवान) विद्या है इसमें सन्देह नहीं है|(8)

वह श्रीगीता चिदानन्द श्रीकृष्ण ने अपने मुख से अर्जुन को कही हुई तथा तीनों वेदस्वरूप, परमानन्दस्वरूप तथा तत्त्वरूप पदार्थ के ज्ञान से युक्त है |(9)

जो मनुष्य स्थिर मन वाला होकर 'नित्य' श्री गीता के 18 अध्यायों का जप-पाठ करता है वह ज्ञानस्थ सिद्धि को प्राप्त होता है 'और' फिर परम पद को पाता है |(10)

संपूर्ण पाठ करने में असमर्थ हो तो आधा पाठ करे, तो भी गाय के दान से होने वाले पुण्य को प्राप्त करता है, इसमें सन्देह नहीं |(11)

तीसरे भाग का पाठ करे तो गंगास्नान का फल प्राप्त करता है 'और' छठवें भाग का पाठ करे तो सोमयाग का फल पाता है |(12)

जो मनुष्य भक्तियुक्त होकर 'नित्य' एक अध्याय का 'भी' पाठ करता है, वह रुद्रलोक को प्राप्त होता है और वहाँ शिवजी का गण बनकर 'चिरकाल तक' निवास करता है |(13)

जो मनुष्य 'नित्य' एक अध्याय एक श्लोक अथवा श्लोक के एक चरण का पाठ करता है वह मन्वंतर तक मनुष्यता को प्राप्त करता है|(14)

जो मनुष्य गीता के दस, सात, पाँच, चार, तीन, दो, एक या आधे श्लोक का पाठ करता है वह 'अवश्य' दस हजार वर्ष तक चन्द्रलोक को प्राप्त होता है |(15)

गीता के पाठ में लगे हुए मनुष्य की अगर मृत्यु होती है तो वह (पशु आदि की अधम योनियों में 'न' जाकर) पुनः मनुष्य जन्म पाता है|,(16)

(और वहाँ) गीता का पुनः अभ्यास करके 'उत्तम' मुक्ति को पाता है | 'गीता' ऐसे उच्चार के साथ जो मरता है वह सदगति को पाता है |(17)

गीता का अर्थ तत्पर सुनने में 'तत्पर' बना हुआ मनुष्य महापापी हो तो भी वह वैकुण्ठ को प्राप्त होता है 'और' विष्णु के साथ आनन्द करता है|(18)

अनेक कर्म करके 'नित्य' श्री गीता के अर्थ का जो विचार करता है उसे जीवन्मुक्त जानो | मृत्यु के बाद वह परम पद को पाता है |(19)

गीता का आश्रय करके जनक आदि 'कई' राजा पाप रहित होकर लोक में यशस्वी बने हैं 'और' परम पद को प्राप्त हुए हैं |(20)

श्रीगीता का पाठ करके जो माहात्म्य का पाठ 'नहीं' करता है उसका पाठ निष्फल होता है 'और' ऐसे पाठ को श्रमरूप कहा है |(21)

इस माहात्म्यसहित श्रीगीता का जो अभ्यास करता है वह उसका फल पाता है 'और' दुर्लभ गति को प्राप्त होता है |(22)

सूत उवाच:

जो 'अपने आप' श्रीविष्णु भगवान के मुखकमल से निकली हुई है गीता 'अच्छी तरह' कण्ठस्थ करना चाहिए | अन्य शास्त्रों के संग्रह से क्या लाभ?(5)

गीता धर्ममय, सर्वज्ञान की प्रयोजक तथा सर्व शास्त्रमय है, अतः गीता श्रेष्ठ है |(6)

जो मनुष्य 'घोर' संसार-सागर को तैरना चाहता है उसे गीतारूपी नौका पर चढ़कर 'सुखपूर्वक' पार होना चाहिए |(7)

जो पुरुष इस पवित्र गीताशास्त्र को 'सावधान होकर' पढ़ता है वह भय, शोक 'आदि' से रहित होकर श्रीविष्णुपद को प्राप्त होता है |(8)

जिसने सदैव अभ्यासयोग से गीता का ज्ञान सुना नहीं है फिर भी जो मोक्ष की इच्छा करता है वह मूढात्मा, बालक की तरह हँसी का पात्र होता है |(9)

जो 'रात-दिन' गीताशास्त्र पढ़ते हैं 'अथवा' इसका पाठ करते हैं 'या' सुनते हैं उन्हें मनुष्य नहीं अपितु 'निःसन्देह' देव ही जानें |(10)

हर रोज जल से किया हुआ स्नान मनुष्यों का मैल दूर करता है किन्तु गीतारूपी जल में 'एक' बार किया हुआ स्नान भी संसाररूपी मैल का नाश करता है |(11)

जो मनुष्य स्वयं गीता शास्त्र का पठन-पाठन 'नहीं' जानता है, जिसने अन्य लोगों से वह 'नहीं' सुना है, स्वयं को उसका ज्ञान 'नहीं' है, जिसको उस पर श्रद्धा 'नहीं' है, भावना भी 'नहीं' है, वह मनुष्य लोक में भटकते हुए शूकर जैसा ही है | उससे अधिक नीच दूसरा कोई मनुष्य नहीं है, क्योंकि वह गीता को 'नहीं' जानता है |

जो गीता के अर्थ का पठन 'नहीं' करता उसके ज्ञान को, आचार को, व्रत को, चेष्टा को, तप को 'और' यश को धिक्कार है | उससे अधम और कोई मनुष्य नहीं है |(14)

जो ज्ञान गीता में 'नहीं' गाया गया है वह वेद 'और' वेदान्त में निन्दित होने के कारण उसे निष्फल, धर्मरहित 'और' आसुरी जानें |

जो मनुष्य रात-दिन, सोते, चलते, बोलते और खड़े रहते हुए गीता का यथार्थतः सतत अध्ययन करता है वह 'सनातन' मोक्ष को प्राप्त होता है|(16)

योगियों के स्थान में, सिद्धों के स्थान में, श्रेष्ठ पुरुषों के आगे, संतसभा में, यज्ञस्थान में 'और' विष्णुभक्तोंके आगे गीता का पाठ करने वाला मनुष्य परम गति को प्राप्त होता है |(17)

जो गीता का पाठ 'और' श्रवण 'हर' रोज करता है उसने दक्षिणा के साथ अश्वमेध 'आदि' यज्ञ किये ऐसा माना जाता है |(18)

जिसने 'भक्तिभाव से' एकाग्र चित्त से गीता का अध्ययन किया है उसने 'सर्व' वेदों, शास्त्रों तथा पुराणों का अभ्यास किया है ऐसा माना जाता है|(19)

जो मनुष्य 'स्वयं' गीता का अर्थ सुनता है, गाता है 'और' परोपकार हेतु सुनाता है वह परम पद को प्राप्त होता है |(20)

जिस घर में गीता का पूजन होता है वहाँ (आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक) तीन ताप से उत्पन्न होने वाली पीड़ा तथा व्याधियों का भय 'नहीं' आता है | (21)

उसको शाप या पाप 'नहीं' लगता, 'जरा भी' दुर्गति नहीं होती 'और' छः शत्रु (काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर) देह में पीड़ा 'नहीं' करते |(22)

जहाँ 'निरन्तर' गीता का अभिनंदन होता है वहाँ श्री भगवान परमेश्वर में 'एकनिष्ठ' भक्ति उत्पन्न होती है | (23)

स्नान किया हो या न किया हो, पवित्र हो या अपवित्र हो फिर भी जो परमात्म-विभूति का 'और' विश्वरूप का स्मरण करता है वह 'सदा' पवित्र है |(24)

सब जगह भोजन करने वाला और 'सर्व प्रकार का' दान लेने वाला भी अगर गीता पाठ करता हो तो 'कभी' लेपायमान नहीं होता | (25)

जिसका चित्त 'सदा' गीता में ही रमण करता है वह 'संपूर्ण' अग्निहोत्री, 'सदा' जप करनेवाला, क्रियावान तथा पण्डित है | (26)

वह दर्शन करने योग्य, धनवान, योगी, ज्ञानी, याज्ञिक, ध्यानी तथा 'सर्व' वेद के अर्थ को जानने वाला है | (27)

जहाँ गीता की पुस्तक का 'नित्य' पाठ होता रहता है वहाँ पृथ्वी पर के प्रयागादि 'सर्व' तीर्थ निवास करते हैं | (28)

उस घर में और देहरूपी देश में 'सभी' देवों, ऋषियों, योगियों और सर्पों का 'सदा' निवास होता है |(29)

गीता, गंगा, गायत्री, सीता, सत्या, सरस्वती, ब्रह्मविद्या, ब्रह्मवल्ली, त्रिसंध्या, मुक्तगेहिनी, अर्धमात्रा, चिदानन्दा, भवघ्नी, भयनाशिनी, वेदत्रयी, परा, अनन्ता और तत्त्वार्थज्ञानमंजरी (तत्त्वरूपी अर्थ के ज्ञान का भंडार) इस प्रकार (गीता के) अठारह नामों का स्थिर मन से जो मनुष्य 'नित्य' जप करता है वह 'शीघ्र' ज्ञानसिद्धि 'और' अंत में परम पद को प्राप्त होता है | (30,31,32)

मनुष्य जो-जो कर्म करे उसमें 'अगर' गीतापाठ चालू रखता है तो वह 'सब' कर्म निर्दोषता से संपूर्ण करके उसका फल प्राप्त करता है | (33)

जो मनुष्य श्राद्ध में पितरों को लक्ष्य करके गीता का पाठ करता है उसके पितृ सन्तुष्ट होते हैं 'और' नर्क से सदगति पाते हैं | (34)

गीतापाठ से प्रसन्न बने हुए 'तथा' श्राद्ध से तृप्त किये हुए पितृगण पुत्र को आशीर्वाद देने के लिए तत्पर होकर पितृलोक में जाते हैं | (35)

जो मनुष्य गीता को लिखकर गले में, हाथ में 'या' मस्तक पर धारण करता है उसके 'सर्व' विघ्नरूप दारूण उपद्रवों का नाश होता है | (36)

भरतखण्ड में चार वर्णों में मनुष्य देह प्राप्त करके भी जो 'अमृतस्वरूप' गीता 'नहीं' पढ़ता है 'या' नहीं सुनता है वह हाथ में आया हुआ अमृत छोड़कर कष्ट से विष खाता है | (37)

किन्तु जो मनुष्य गीता सुनता है, पढ़ता तो वह इस लोक में गीतारूपी अमृत का पान करके मोक्ष प्राप्त कर सुखी होता है | (38)

संसार के दुःखों से पीड़ित जिन मनुष्यों ने गीता का ज्ञान सुना है उन्होंने अमृत प्राप्त किया है 'और' वे श्री हरि के धाम को प्राप्त हो चुके हैं | (39)

इस लोक में जनकादि की तरह 'कई' राजा गीता का आश्रय लेकर पापरहित होकर परम पद को प्राप्त हुए हैं | (40)

गीता में उच्च 'और' नीच मनुष्य विषयक भेद 'ही' नहीं हैं, क्योंकि गीता ब्रह्मस्वरूप है अतः उसका ज्ञान सबके लिए 'समान' है | (41)

गीता के अर्थ को 'परम' आदर से सुनकर जो आनन्दवान 'नहीं' होता वह मनुष्य प्रमाद के कारण इस लोक में फल 'नहीं' प्राप्त करता है किन्तु व्यर्थ श्रम 'ही' प्राप्त करता है | (42)

गीता का पाठ करे जो माहात्म्य का पाठ 'नहीं' करता है उसके पाठ का फल व्यर्थ होता है 'और' पाठ केवल श्रमरूप 'ही' रह जाता है | (43)

इस माहात्म्य के साथ जो गीता पाठ करता है 'तथा' जो श्रद्धा से सुनता है वह दुर्लभ गति को प्राप्त होता है |(44)

गीता का 'सनातन' माहात्म्य मैंने कहा है | गीता पाठ के अन्त में जो इसका पाठ करता है वह उपर्युक्त फल को प्राप्त होता है | (45)

इति श्रीवाराहपुराणे श्रीमद् गीतामाहात्म्यं संपूर्णम्।

।। आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो ।।

🙏 धन्यवाद 🙏

Address

49/2 A Ramdulal Sarkar Street
Kolkata
700006

Website

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when Paras Jyotish Mahavidyalaya posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Share