28/06/2024
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कुछ शब्द मन मस्तिष्क में गहरी छाप छोड़ देते है।
यह जो बीच में खड़ी लाठी है, उसी की यह कहानी है।
कहते है पुत्र और पौत्र बुढ़ापे की लाठी होते है।
यह कलयुग है साहब! यहां लाठी, लाठी को ढूंढती है।
घर,गली,नुक्कड़, बाजार जाकर चार्ज पूछती है।
बुढ़ापे की लाठी यहां मिलेगी क्या साहब?
सुनकर बेबसी भरी आवाज ,आंख हमारी भर आती है।
देखकर खंडहर इमारत को हाथ लाठी थमाते है।
फिर सुनकर,,
साहब क्या है लाठी का चार्ज? मन ही मन मुस्कुराते है।
बोले
लाठी बनकर आए लेने लाठी, यही चार्ज बतलाते है।
बात आज की है, एक वयस्क अपने 88 वर्षीय दादाजी को लेकर ऑफिस आया और पूछा कि बुढ़ापे की लाठी चहिए
साहब को बुलाया, आशीर्वाद लिया और छड़ी भेट करने के बाद युवक पूछता है
चार्ज क्या होगा ?
साहब बोलते है
तुम लाठी लेने यहां तक आए यही चार्ज है।
धन्य हो मलिक सरazaad सेवा