Vishaghn Vinod

सॉंप तथा मनुष्य प्रकृति की दो विशेष रचनायें हैं। सॉंप इस पृथ्वी पर लगभग 20 करोङ वर्षों से निवासी है॔, जबकि आधुनिक मनुष्य का आगमन मात्र 2 लाख वर्ष पूर्व ही हुआ है। सॉंप चूहे, छिपकली, छछुन्दर आदि छोटे - 2 जीवों को खाकर उनकी संख्या नियंत्रित रखते हैं तथा प्रर्यावरण संतुलन बनाये रखते हैं। इनके प्रर्यावरण महत्व से हमारे पूर्वज भी भलीभॉंति परिचित थे, इसीलिए भगवान शंकर ने सांपों को अपने गले का आभूषण तथा भगवान विष्णु ने शेषनाग को अपनी शय्या बनाया।
सांप विषमतापी (cold blooded) जीव हैं जो अपना शरीर का तापमान स्थिर नहीं रख सकते, अत: तापमान अनुकूल होने पर ही सक्रिय होते हैं। ठण्डे दिनों में सांप शीत समाधि (hybernation) तथा गर्म दिनों में ग्रीष्म समाधि (estivation) लगाकर अपने आप को किसी बिल या धरती के नीचे सुरक्षित रखते हैं। बाहरी तापमान अनुकूल होने पर ही बाहर निकल कर भोजन, प्रजनन आदि करते हैं।
वर्षा ऋतु में सांप सर्वाधिक सक्रिय होते हैं, इसका एक कारण तो भूमिगत शरणस्थलों में पानी भर जाना है, दूसरे, इन दिनों सांपों के भोजन की प्रचुर मात्रा उपलब्ध होती है। अत: भरपूर भोजन कर सर्दियों से पूर्व सांप सुरक्षित बिलों में लौटना चाहते हैं। इस अति सक्रियता के कारण ही मनुष्यों व सांपों में मुठभेड़ होती है जो अक्सर सांप द्वारा काटने तथा मनुष्य द्वारा मार डालने से समाप्त होती है। इस अवस्था को टाला जा सकता है यदि कुछ सजगता बरती जाए।
1. सर्पदंश अधिकतर घुटने से नीचे, पैरों पर या हथेली पर देखा गया है। अत: वर्षा ऋतु में खेतों आदि में काम करते समय घुटनों तक के गम बूट पहने जाने चाहिये अथवा कपड़े की मोटी तहें, जुराबों के साथ लपेटी जानी चाहिये। साथ ही अनजान अंधेरे, नम स्थानों पर बिना देखे हाथ नहीं डालना चाहिये।
2. घरों की नालियों, खिड़कियों या दरवाजे की दरारों को ठीक करवा लेना चाहिये। खिड़की व नाली में तो बारीक जाली लगाना अच्छा रहता है जो मच्छरों से भी बचाव करता है।
3. एक दो दिन छोड़कर घर में किसी तेज गंध वाले कीटाणुनाशक जैसे फिनॉल आदि का पौछा लगाना चाहिये। तेज गंध से सांप दूर रहते हैं।
4. रात्रि, तड़के तथा देर शाम घर से निकलते समय रोशनी तथा एक डंडा अवश्य साथ रखना चाहिये। अधिकतर सर्पदंश अनजाने में सांप पर पैर पड़ जाने से होते हैं। डण्डे का प्रयोग जमीन ठकठकाने या सांप को हटाने के लिये करें। रोशनी से सांप स्वत: अलग हट कर रास्ता दे देता है।
5. जहॉं तक संभव हो, जमीन पर न सोकर खाट चारपाई आदि पर सोयें, ताकि भोजन की खोज में निकले किसी सांप के मार्ग में न पड़े।
6. घरों में तथा घर के आसपास अनाज, जूठन, गन्दगी आदि खुला न छोड़े। ये चूहों व दूसरे छोटे जीवों को आकर्षित करती हैं और इनके पीछे-2 सांप भी आ जाते हैं।
इन बिन्दुओं पर ध्यान देने से न सिर्फ सर्पदंश से बचाव होता है, बल्कि मच्छरों तथा गन्दगी से होने वाले रोगों से भी मुक्ति मिलती है।

सर्पदंश के बादः
प्रश्न यह उठता है कि सर्पदंश के बाद क्या प्राथमिक उपचार किया जाए ताकि पीङित की जान भी बचे तथा उसे कम से कम हानि हो।

1. सांप की पहचान: यदि कोई जानकार तुरंत सांप को पहचान सके और निश्चित कर सके कि यह विषैला है या विषहीन, तो पीिङत को सांत्वना व राहत मिल सकती है तथा बाद में उपचार में भी मदद मिल सकती है।
2. दंश की पहचान: यदि सर्प के काटने पर दो बङे (दूसरा दॉंत नहीं लग पाने पर मात्र एक बङा निशान भी हो सकता है) तथा शेष छोटे-छोटे दांतों से काटने के निशान बनें तो सांप जहरीला है। (चित्र 3 के अनुसार) यदि निशान के अग्र भाग में बङे निशान न बनें हों तो दंश विषहीन है।

3. विष निष्कासन: फिल्मों तथा कहानियों में मूंह द्वारा विष चूसने को एक प्रभावी तरीका बताया जाता है पर यह चूसने वाले के लिये भी जानलेवा हो सकता है। इसकी अपेक्षा प्रोफेसर महोबिया द्वारा खोजी गई महोबिया प्रणाली से विष का निष्कासन करना बहुत प्रभावी है। परन्तु यह क्रिया दंश के पांच मिनट के भीतर करना सबसे अधिक प्रभावी होती है।

महोबिया प्रणाली: डिस्पोजेबल सिरींज (2 ml, 5 ml, 10 ml, 20 ml, या 50 ml की क्षमता) का आगे का भाग तेज चाकू से काटकर समतल कर लें। (नुकीले किनारे चुभ सकते हैं ताकि टेढा मेढा कटाव प्रर्याप्त चूषण नहीं कर सकेगा)

दंश के स्थान को थूक अथवा ग्लिसरीन या पानी से गीला कर लें ताकि चूषण अधिक प्रभावी हों।सिरींज का कटा हुआ भाग इस प्रकार प्रभावित अंग पर रखें कि विषदंतों के निशान घेरे में ही रहें (विषदंत दूर दूर होने पर इस विधि को बारी बारी दोनों विषदंत पर आजमाऍ)। सिरींज को मजबूती से जमा कर रखें तथा पिस्टन को दूसरे हाथ से बाहर खीचें।सिरींज के भीतर दाब कम होने के कारण विषदंतों के निशान से विष तथा विष मिश्रित रक्त खिंचकर बाहर निकलने लगेगा।पिस्टन खींचकर रखें तथा भीतर दाब कम होने पर सिरींज हटा लें। इस विधि को तब तक दोहराते रहें जब तक विषदंतों के निशान से द्रव बाहर आता रहे। इस विधि का यदि ठीक से प्रयोग किया जाये तो 80 प्रतिशत तक विष निष्कासन किया जा सकता है। इससे जान का खतरा तो कम होता ही है, उपचार में लगने वाले धन व समय दोनों की बचत होती है।

4. प्लास्टर विधि: महोबिया प्रणाली से विष निष्कासन के बाद प्रभावित अंग पर मोटी कपङे की पट्टी लपेट दें। पट्टी को ढीला न लपेटें तथा कसकर भी नहीं लपेटें। उचित तो यह होगा कि विषदंतों के निशान को रूई की पट्टी से ढककर अंग पर नीचे से ऊपर की ओर पट्टी लपेटी जाये। पट्टी का दाब इतना हो कि पट्टी व शरीर के बीच मात्र एक उंगली घुसाई जा सके। इस विधि से विष फैलना रूकता है तथा प्रभावित अंग में रक्त संचरण नियंत्रित रहता है।

5. चिकित्सा: पीङित को घबराने न दें। हौसला दें, प्रभावित अंग को स्थिर रखें तथा तुरंत निकट के चिकित्सा केन्द्र पर ले जायें जहॉं पर पर्याप्त विषरोधी सीरम उपलब्ध हों। चिकित्सा कर्मियों को पूरी जानकारी दें तथा उपचार में मदद करें। यदि अस्पताल में पीडि.त जीवित है, सांस ले रहा है तो उसके बचने की संभावना पच्चानवे प्रतिशत तक होती है।

भारत में प्रतिवर्ष लगभग चालीस हजार से भी अधिक लोग सर्पदंश से मारे जाते हैं। आपकी प्राथमिक चिकित्सा की जानकारी किसी की जान बचाने में मददगार हो सकती है।

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