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*डॉ. चन्द्रकान्त लहारिया का कॉलम:* मामूली बीमारियों के लिए भी हम स्पेशलिस्ट के पास क्यों जाते हैं?
19/07/2025

*डॉ. चन्द्रकान्त लहारिया का कॉलम:* मामूली बीमारियों के लिए भी हम स्पेशलिस्ट के पास क्यों जाते हैं?

मामूली बीमारियों के लिए भी हम स्पेशलिस्ट के...

07/07/2025

■ यानी सी रिएक्टिव प्रोटीन के बारे में यह कैसी जाँच है ? कब करायी जाती है ? इससे क्या मालूम पड़ता है ? डॉक्टर इन जाँच को कैसे पढ़ते और समझते हैं ?

दीपिका मैम डॉक्टर के पास अपनी थकान, और कुछेक लक्षण लेकर पहुँची हैं, जो सिर्फ मैं जानती हूँ ! चिकिया को मैं कहती हूँ कि एक ऐसा लक्षण जो अपनेआप में किसी भी रोग तक स्पष्ट पहुँचने में सहायक नहीं। इसलिए जिन जाँचों को तुमसे लिए कहा गया, उनमें CRP भी थी। आज तुम्हारी रिपोर्ट में इस प्रोटीन का स्तर बहुत बढ़ा हुआ आया है।
यह एक ऐसा प्रोटीन है, जिसका निर्माण लिवर के अंदर होता है।

तमाम ऐसे रोग हैं, जिनमें लिवर इस प्रोटीन का निर्माण करता है। इसलिए इस प्रोटीन के बढे भर होने से यह पता नहीं चलता कि रोगी को कौन सा रोग है। लेकिन इतना अक्सर मालूम पड़ जाता है कि रोगी के शरीर में इन्फ्लेमेशन की स्थिति है, जिसके फलस्वरूप लिवर इस प्रोटीन का निर्माण करके इसे ख़ून में छोड़ रहा है।

👉 सी रिएक्टिव प्रोटीन मामूली जुकाम से लेकर कैंसर तक किसी में भी बढ़ सकता है। यह न्यूमोनिया में भी ऊँचा आ सकता है और दिल के दौरे में भी। और ऐसा भी हो सकता है कि तमाम रोगों के दौरान इसका स्तर सामान्य रह जाए। या फिर कई बार इस प्रोटीन का स्तर सामान्य से बढ़ा हुआ निकलता है, जबकि व्यक्ति को कोई रोग नहीं होता।

इसलिए केवल CRP के बढे होने को बीमारी नहीं कहा जा सकता और न केवल इसके आधार पर कोई निष्कर्ष ही निकाला जा सकता है। रोगी के लक्षणों के सापेक्ष ही जाँचों की अहमियत होती है और उनके अनुसार ही डॉक्टरों को विवेकपूर्ण ढंग से जाँचों के निर्देश देने चाहिए।

इस प्रोटीन के नामकरण की कहानी भी बहुत दिलचस्प है। न्यूमोकोकस नामक एक जीवाणु की सतह पर मौजूद 'सी' शर्करा के खिलाफ इस प्रोटीन का बढ़ा स्तर पहली बार मानव शरीर में पाया गया था। इसीलिए इस प्रोटीन को 'सी' के खिलाफ अभिक्रिया करने वाला या सी-रिएक्टिव प्रोटीन नाम दिया गया 🙏

06/07/2025

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22/06/2025


स्टेज पर पिंकी अपने कजिन की शादी में नाच रही थी...बिना यह सोचे कि आज रात का यह डांस उसके जीवन की आख़िरी रात को होने जा रहा है....उम्र ही क्या थी उसकी ? महज छब्बीस बरस ! लेकिन वह सचमुच उम्र की परिधि के उस पार निकल चुकी थी।

मौत कभी-कभी कितनी कम आडम्बरमयी होती है कि हमें उसके आने का आभास ही नहीं होता। वह दबे पाँव आती है और हाथ पकड़ कर संग ले जाती है।

अगर आपने डॉक्टर के कहने पर (या अपनेआप भी) कोलेस्टेरॉल जाँच करायी है, तो थोड़ा उसे ध्यान से देखो ! ध्यान दीजिए उसके अंकित सभी रसायनों पर। लेफ्ट साइड में उनके नाम है और राइट साइड में उनकी संख्याएँ। इन्हीं संख्याओं को देखकर यह तय होता है कि अमुक रसायन बढ़ा हुआ है अथवा नहीं।

जब भी कोलेस्टेरॉल बढ़ने की बात डॉक्टर आपसे करते हैं, तब उनका आशय लिपोप्रोटीनों से होता है - यह बात आप पिछले आर्टिकल्स में आप जान चुके हैं। लेकिन आम बोलचाल में डॉक्टर लिपोप्रोटीन जैसे जटिल शब्द का इस्तेमाल नहीं करते, वे यही कहते सुनते हैं कि आपके खून में कोलेस्टेरॉल बढ़ गया है।

विज्ञान में पुरानी धारणा यह थी कि भोजन से व्यक्ति कोलेस्टेरॉल प्राप्त करता है (जबकि अब आधुनिक ज्ञान इससे विपरीत कहता है।) किसी व्यक्ति के शरीर में 75% कोलेस्टेरॉल लिवर व अन्य अंगों में बनता है, केवल 25% ही भोजन से प्राप्त होता है।

ऐसे में किसी व्यक्ति का यह सोचना कि केवल खानपान में बदलाव से कोलेस्टेरॉल नियन्त्रित हो जाएगा, सही नहीं है। केवल खानपान में परहेज़ से कोलेस्टेरॉल हमेशा कंट्रोल नहीं होगा। इसके लिए व्यक्ति को व्यायाम भी ठीक से करना होगा। लेकिन इसके बाद भी कोलेस्टेरॉल लेवल केवल भोजन और खानपान से नियन्त्रित नहीं किया जा सकता क्योंकि अंगों के भीतर बनने वाले कोलेस्टेरॉल में बढ़ी भूमिका जीनों की है।

अच्छे या बुरे जीनों को हम माँ-बाप से पाते हैं। हमारी इस जेनेटिक विरासत पर हमारा बस नहीं। बुरे जीनों के होने से बच्चों में भी कोलेस्टेरॉल खून में बढ़ा पाया जा सकता है। इन बुरे जीनों के कारण बच्चों में बढ़े हुए कोलेस्टेरॉल लेवल को फैमिलियल हायपर-कोलेस्टेरोलीमिया कहा जाता है। यह एक रोगों का समूह है, इसमें अनेक जीनों के आधार पर अनेक रोग शामिल हैं।

और ये कभी मत सोचो कि बच्चों में और जवानों में कोलेस्टेरॉल बढ़ नहीं सकता। यह कतई सत्य नहीं कि बच्चे बढ़े कोलेस्टेरॉल से प्रभावित नहीं हो सकते। फैमिलियल हायपरकोलेस्टेरोलीमिया से पीड़ित बच्चों में हृदय रोग भी हो सकते हैं ! अन्य स्थानों की धमनियों में भी कोलेस्टेरॉल जमावड़े के कारण रोग पैदा हो सकते हैं।

तो अब आप पूछेंगे की क्या सभी बच्चों को अपना कोलेस्टेरॉल नपवाना चाहिए ?

अमेरिकन एकेडमी ऑफ़ पीडियाट्रिक्स की गाइडलाइन कहती हैं कि 9 से 11 और 17-21 की उम्र के बीच यह खून-जाँच सभी बच्चों अवश्य करानी चाहिए।

साथ ही उन छोटे बच्चों में भी यह जाँच करानी चाहिए, जिनके माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी को हार्ट अटैक या अथीरोस्लेरोसिस सम्बन्धित अन्य रोग रहे हैं या मौतें हुई है !

जिनके माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी का कोलेस्टेरॉल लेवल 240 मिग्रा/डेसीलीटर से अधिक है !

वे बच्चे जिनमें डायबिटीज़, ब्लडप्रेशर या मोटापा हैं अथवा जो बच्चे या जवान धूम्रपान करते हैं।

बच्चे (एवं उनके माँ-बाप) बुरे कोलेस्टेरॉल-जीनों को जान लेंगे तो क्या होगा ? वे अपने भोजन में सार्थक बदलाव करेंगे और व्यायाम नित्य करेंगे। जीन ज़रूर बदलना उनके हाथ में नहीं है, लेकिन जितना वश में है उतना अवश्य किया जाएगा। दवाएँ तो फिर चलनी है ही !!

कोलेस्टेरॉल और जीवन पर बातें होती रहेंगी आगे 🙏

#श्रीमद_कार्डियो_सार EP - 4
डॉ मोनिका जौहरी

17/06/2025

■ जामवंत कह बैद सुषेना। लंका रहइ को पठई लेना।।
धरि लघु रूप गयउ हनुमंता। आनेऊ भवन समेत तुरंता।।

लक्ष्मणजी मूर्छित अवस्था में पड़े हैं ! प्रभु राम बेसुध हैं कि अब कौन सा मुँह लेकर मैं माँ सुमित्रा के सम्मुख जाऊंगा ? तभी रीक्षराज जामवंत ने बताया कि लंका में सुषेण नामक एक वैद्य रहता है ! हनुमान जी गए और वैद्य महराज को उनके घर सहित ही उठा लाये !

हनुमानजी...बैद्यराज सुषेण, जो कि एक दुश्मन देश का डॉक्टर है, उसको भवन सहित उठा लाये हैं...ये सब देखते ही श्री राम के नोरड्रेनेरगिक न्यूरल सिग्नलिंग सिस्टम ने उनकी पुपिल्स को एकदम से डाइलेट कर डाली...प्रभु के मस्तिष्क के वेंटरल टेगमेंटल ऐरिया में नॉरपेनेफ्रिन की बाढ़ ला दिए हनुमान बाबा 😍

प्रभु श्रीराम ने कहा...सुषेण जी। आप लंका के राजवैद्य हैं ! क्या मैं आप पर भरोसा कर सकता हूँ ??

सुषेण बोले - स्वामी ! निरोगी काया हर चिकित्सक के लिए समान विषय होती है। इसीलिये, यह मूर्छित देह मेरे लिए एक विषय है, या यूँ कहो कि एक ऑब्जेक्ट है ! लक्ष्मण नहीं। मैं भयभीत भी नहीं हूँ कि यह देह जीवित होते ही मेरा नाश कर देगी !

राम पदारबिंद सिर नायउ आइ सुषेण।
कहा नाम गिरि औषधी जाहु पवनसुत लेन।।

वैद्यराज ने न सिर्फ औषधि के बारे में बताया, बल्कि उस पर्वत के बारे में भी बताया जहाँ औषधि मिलेगी ! बस फिर क्या था..

रामचरण सरजिस उर राखी। चला प्रभंजनसुत बल भाषी।।

हमारी रोजाना की जिंदगी में ऐसे कई उदाहरण देखने को मिलते हैं। अक्सर हम किसी गम्भीर बीमारी के चपेट में आ जातें हैं, या एक ही काम में बार बार फैल होते है चाहे वह कोई कम्पीटीटिव एग्जाम हो या फिर कोई बिज़नेस या कोई रिलेशनशिप और फिर एक ऐसी दशा में पहुँच जाते जहाँ हमें लगता है की जिंदगी में अब सब कुछ खत्म हो गया है...अब हम कुछ नहीं कर सकते और ये स्थिति हमें डिप्रेशन की ओर ले जाती है। यहाँ तक की कई लोग गलत कदम भी उठा लेते है। लेकिन क्या ऐसा करने से समस्या का हल निकलता है ?? बिलकुल भी नहीं बल्कि हम अपने साथ साथ हमें प्यार करने वाले लोगो को भी दुःख देते है।

👉 तो आपको ऐसी कंडीसन में मेंटल ब्रेकडाउन करना है न कि मूड स्पॉइलर बनना है ! मूड स्पॉइलर कैसे होतें हैं बताऊँगी बाद में कभी !

👉 मनोचिकित्सा आपने पढ़ी नहीं कोई बात नहीं, मानस भी आपने न पढ़ी होगी कोई बात नहीं, मूड स्पॉइलर पर बात बाद में करेंगे जाने दो अभी, मेंटल ब्रेकडाउन आपको करना आता नहीं है ! इन सबसे इतर आपने हमारे मनीषियों ही लिखा था मृच्छकटिकम् में की-

" यथैव पुष्पं प्रथमे विकासे समेत्य पातुं मधुपाः पतन्ति।
एवं मनुष्यस्य विपत्तिकाले छिद्रेष्वनर्था बहुलीभवन्ति ।।

अर्थात् किसी पुष्प के आरंभिक विकास के समय यानी उसके खिलने की आरंभिक अवस्था में उसमें निहित मधु का पान करने जिस प्रकार भँवरो के समूह उसे आ घेरते हैं, उसी प्रकार विपत्ति के समय जरा-सी चूकों के घटित होने पर अनेकों अनर्थ अर्थात् अनिष्ट एक साथ मनुष्य के ऊपर आ पहुंचती हैं।

अब इस पुष्प के जैसे ही आप लोग अगर ऐसी कंडीसन से गुजरते हो। सब कुछ आपके इर्दगिर्द घट रहा है आपके न चाहते हुए भी और आप #होपलैस हो क्या हो #हेल्पलैसनैस !!...और शायद हम सब...गुजरे है इस कंडीसन से। इसको हम मनोविज्ञान की भाषा में मेंटल ब्रेकडाउन कहतें हैं। मेंटल ब्रेकडाउन समझते है न आप ?

जब कुछ ऐसा घटता है, जो आपकी सहन शक्ति से बाहर होता है। आप टूट चुके होते हैं, पर फिर भी आपको दुनिया को दिखाना होता है कि आपको कोई फर्क नहीं पड़ता। बाहर से आप हँसते है, दिन चर्या के सारे काम करते हैं, ऑफिस के काम पर ज्यादा फोकस करते हैं, हर वक्त खुद को बीजी रखते हैं, क्योंकि आपको डर लगता है अगर पांच मिनट खुद के साथ बैठ गए तो सम्भाल नहीं पाएंगे।

इन सबको अंदर कहीँ अपने शरीर के कोने में धँसाकर आप दिन गुजार देते हैं, रातें बिता देते हैं। दुनिया आपकी तारीफ़ करती है कितना जिंदादिल इंसान है, इतनी तकलीफ में है और फिर भी मुस्कुरा रहा है। और आप इस सो कॉल्ड "जिंदादिल" इमेज को बनाकर खुद को योद्धा समझते है और फिर अकेले में भी अपने इस इमेज से बाहर निकल नही पाते। जब अकेले होते हैं तब भी लगता है मैं रो नहीं सकता...मैं टूट नहीं सकता...मैं हार नहीं सकता...पर असल में आप भाग रहे होते हैं खुद से !!

👉 "' अगर कुछ हुआ है तो रियेक्ट करिये आप इंसान है, मशीन नहीं कि दूसरों के हिसाब से खुद को इंस्ट्रक्शन दें और उन्हें दिखाने के लिये खुद के सच से भागें, क्योंकि कहीँ ना कहीँ ये दुःख, गुस्सा, तकलीफ जमा होती जायेगी और किसी रोज हार्ट स्ट्रोक, ब्रेन हैमरेज या पैरालिसिस जैसे अटैक से या सुसाइडल अटेम्प्ट से बाहर निकलेगी। हल्की सी बस एकस दर्द की एक लहर उठेगी और परिवार अगले दिन आपको नहीं पाएगा। आपके लिए रोएगा, तेरहवीं करता आगे बढ़ जाएगा। "यही सत्य है सज्जनों और देवीयों !

इसलिए गुस्सा आता है तो गुस्सा निकालिए किसी इंसान पर नहीं तो जैसे निकाल सके या तो इतना शांत करिये कि उस बात से कोई फर्क ना पड़े। दुःख होता है तो किसी से लिपट कर या किसी के सामने नहीं तो अकेले कमरे में बन्द होकर रोइये, तकलीफ को निकालिए।

बहुत से लोगों से सुना है क्रोध को पालना सीखो, पर सच ये है क्रोध पालने की चीज है ही नहीं आप सतयुग में नहीं है, कलयुग में हैं !! जी भी नहीं पाएंगे ढंग से और अचानक मर जायेंगे किसी रोज !!

शरीर के साथ मन का बोझ लेकर जियेंगे तो और कम जियेंगे शायद जिंदगी के आखिरी दिन हॉस्पिटल में भी गुजरे। इसलिये मेंटल ब्रेकडाउन को समझिये। बुरा लगता है तो रियेक्ट करिये सबके सामने नहीं तो अपने कमरे में अपने सामने खुद के सच को एक्सेप्ट करिये। बेवजह योद्धा मत बनिये, हमेशा लड़ने की या सहकर भी मजबूत बने रहने की जरूरत नहीं होती। कुछ चीजों को निकाल देना चाहिए वक्त रहते या तो चीख कर या थोड़े आंसू बहाकर।

पर हर वक्त सबकुछ खुद के अंदर धँसाकर मत भूल जाइए। ऊपरवाले ने सारी व्यवस्था कर भेजी है आपके बॉडी से कचरे को बाहर निकालने की, तन के लिये भी और मन के लिये भी। तो फिल्टर करते रहिये खुद को।

■ 👉 लो आपकी की भाषा में बोल दूँ - कहते है "" व्हेन लाइफ गिव्स यू हंड्रेड रीजन्स टू क्राइ..शो लाइफ देट यू हैव मिलियन रीजन्स टू स्माइल। ""

एकस्य दुःखस्य न यावदन्तं गच्छाम्यहं पारिमिवार्णवस्य...

एक सपने के टूट जाने के बाद दूसरा सपना देखना ज़िन्दगी है। मुझे इतनी सी हिम्मत की बात समझाई है मेरी जिंदगी ने !! फिर मैंने सीखा और देखा हर दूसरे तीसरे पांचवे सातवें सपने के टूट जाने के बाद, सपना देखना ज़िन्दगी है। जवानी में बाप के मर जाने, कुछ ही महीनों में पार्टनर के चले जाने, और बहुत सी तरह की खुशियों के खत्म हो जाने का नाम ज़िन्दगी है।

बम्बई, मद्रास, बेंगलुरु, दिल्ली जैसी हज़ारो लाखों जगह से तुम कितनी बार खाली हाथ हो जाओगे नही पता...कितनी बार सपने टूटेंगे ? नही पता...कितनी बार धोखे खाओगे ? नही पता...कितनी बार जलील होकर अपनी ही नजरों में कितनी बार औंधे मुंह गिरोगे...इस "कितने बार" का कोई फिक्स "बार" नहीं है !!

कभी कभी तो इन बार के लिए ज़िन्दगी छोटी पड़ जाती है। तुम्हारे गर्भ में आने से पहले और चिता में चले जाने के बाद भी तुम्हारे नाम पर ये "बार" होते रहेंगे ! अपने अपने ""बार"' के लिए तैयार रहो, सुबह उठकर अपनी दुकान खोल लो, तैयार होकर आफिस चले जाओ, शोरूम पर टाइम पर चले जाओ, घर के बीमार आदमी को हॉस्पिटल ले जाओ...काम करते रहो, गिरते रहो...गिरकर उठते रहो बस यही ज़िन्दगी है।

इस समस्या का जवाब एक बार किसी ने विवेकानंद से पूछा की सब कुछ खो देने से ज्यादा क्या बुरा हो सकता है जिसका जवाब विवेकानंद ने दिया - "उस उम्मीद को खो देना जिसके भरोसे सब कुछ पाया जा सकता है" !!

जब तक हम में उम्मीद जिंदा है तब तक हमें कोई हरा नहीं सकता। हाँ हम निराश और परेशान जरुर हो सकते है लेकिन अवसर मिलते ही उस खराब परिस्थिति से बाहर निकाल सकते है। इसके लिए परिवार वालो और दोस्तों की भी जिम्मेदारी बनती है की वह उस इंसान को हर कदम पर सपोर्ट करें। नाउम्मीद और कुछ भी नहीं बस हर एक जीव की प्रवृति है जो उसे अंधरे से बाहर नहीं निकलने देती।
डॉ मोनिका जौहरी

10/06/2025

■ शिवप्रभात आप सब को 🙏 मानसून दस्तक दे चुका है ! बारिश का मौसम भीषण गर्मी से राहत जरूर दिलाता है। लेकिन यह कई संक्रामक बीमारियों का खतरा भी साथ लाता है। नमी और जगह-जगह पानी भरने से बैक्टीरिया और वायरस तेजी से पनपते हैं। इससे इन्फेक्शन फैलने का खतरा बढ़ जाता है। अगर समय पर इन बीमारियों को पहचाना नहीं जाए तो कई बार ये गंभीर रूप ले सकती हैं। हालांकि कुछ जरूरी सावधानियों और साफ-सफाई की आदतों से इस मौसम में खुद को सुरक्षित रखा जा सकता है।
तो चलिए, आज जरूरत की खबर में मानसून के दौरान होने वाली कुछ कॉमन बीमारियों के बारे में बता दूँ :-

इस मौसम में डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया, लेप्टोस्पायरोसिस, टाइफाइड, हैजा, डायरिया, कंजंक्टिवाइटिस और वायरल बुखार जैसी बीमारियां आम हो जाती हैं।

शार्ट में कुछ बातें मतलब लक्षण याद रखना -

■ डेंगू - तेज बुखार, शरीर पर लाल चकते, सिरदर्द, प्लेटलेट्स की कमी

■ चिकनगुनिया - तेज बुखार, जोड़ो में दर्द, थकान, ठंड लगना

■ मलेरिया - तेज बुखार, पूरे शरीर में दर्द, ठंड लगना, सिरदर्द

■ कॉलरा (हैजा) - पतली दस्त, उल्टी होना, मांसपेशियों में ऐंठन, मुँह का सूखना

■ टायफाइड - बुखार चढ़ना उतरना, भूख न लगना, थकान

■ वायरल बुखार - खैर इसपर तो गाली समेत ज्ञान दी थी

■ लेप्टोस्पायरोसिस - बुखार, ठंड लगना, सिरदर्द, मांशपेशियों में दर्द, आँखे लाल होना और दस्त लगना

■ कंजंक्टिवाइटिस - आँखों मे रेडनेस, पानी गिरना, जलन होना, खुजली, दर्द और चुभन होना, पलकों में सूजन होना

👉 डेंगू - यह एक वायरल बुखार है, जो संक्रमित एडीस एजिप्टी मच्छरों के काटने से होता है। यह मच्छर स्थिर पानी में पनपता है। मानसून में यह ज्यादा फैलता है क्योंकि इस मौसम में जगह-जगह पानी जमा होते हैं।

इलाज - इसका कोई सीधा इलाज नहीं है। इसमें बुखार, दर्द और अन्य लक्षणों को कम करने वाली दवाएं दी जाती हैं। साथ ही खूब पानी पीने और आराम करने की सलाह दी जाती है।

👉 चिकनगुनिया - ये वायरल बुखार एडीस अल्बोपिक्टस नामक मच्छरों के काटने से फैलता है, जो कूलर, पौधों के गमलों, बर्तनों और पानी की पाइपों में ठहरे हुए पानी में पैदा होते हैं।

इलाज - इसका भी कोई खास इलाज नहीं है। इसमें दर्द और बुखार कम करने वाली दवाएं दी जाती हैं। साथ ही पर्याप्त आराम और खूब पानी पीने की सलाह दी जाती है।

👉 मलेरिया - मलेरिया मादा एनोफिलीज (Anopheles) मच्छर के काटने से होता है, जो पानी जमा होने वाली जगहों पर प्रजनन करता है। इसलिए मानसून के मौसम में मलेरिया ज्यादा होता है।

इलाज - इसका इलाज एंटीमलेरियल दवाओं से होता है। इसमें खूब पानी पीना और आराम करना जरूरी है।

👉 4. कॉलरा (हैजा) - यह एक बैक्टीरियल इन्फेक्शन है, जो दूषित पानी या भोजन से फैलता है। मानसून में यह ज्यादा फैलता है क्योंकि इस समय पानी जल्दी दूषित हो जाता है।

इलाज - इसमें सबसे पहले मरीज को ORS (ओरल रिहाइड्रेशन सॉल्यूशन) दिया जाता है ताकि शरीर में पानी की कमी न हो। जरूरत पड़ने पर ड्रिप और एंटीबायोटिक दी जाती है। इसलिए उबला हुआ या फिल्टर्ड पानी पिएं। बाहर का खुला खाना न खाएं। साफ-सफाई का विशेष ख्याल रखें।

👉 टाइफाइड - यह बीमारी साल्मोनेला टाइफी नाम के बैक्टीरिया से होती है, जो दूषित पानी और खाना खाने से शरीर में पहुंचता है।

इलाज - इसमें एंटीबायोटिक दवाएं दी जाती हैं। इसमें पूरा कोर्स करना बहुत जरूरी होता है, वरना ये दोबारा हो सकता है।

👉 डायरिया (दस्त) - इसमें गंदे पानी या दूषित भोजन से पेट में इन्फेक्शन हो जाता है। यह बच्चों में ज्यादा होता है।

इलाज - इसका मुख्य इलाज शरीर में पानी की कमी को पूरा करना है। इसके लिए ORS के साथ खूब पानी पिएं। जरूरत पड़ने पर डॉक्टर की सलाह लें।

👉 लेप्टोस्पायरोसिस - यह लेप्टोस्पिरा नाम के बैक्टीरिया से होता है, जो जानवरों के यूरिन, दूषित पानी या मिट्टी के संपर्क में आने से फैलता है। मानसून में बाढ़ के कारण इसका खतरा बढ़ जाता है।

इलाज - इसका इलाज एंटीबायोटिक दवाओं से किया जाता है। डॉक्टर की सलाह पर तुरंत इलाज शुरू कराएं। बाढ़ ग्रस्त इलाकों न रहें। अगर गीली मिट्टी में काम करना पड़े तो जूते और दस्ताने पहनें। खुले घावों को ढककर रखें।

👉 कंजंक्टिवाइटिस - यह आंखों में होने वाला वायरल या बैक्टीरियल इन्फेक्शन है। मानसून में नमी ज्यादा होने से यह तेजी से फैलता है।

इलाज - डॉक्टर इसके लिए आई ड्रॉप्स लिखते हैं। मेडिकल वाले भैया से दवाई लाने के बजाय नजदीकी नेत्र रोग विशेषज्ञ से मिलें ! आंखों को बार-बार न छुएं। अपने तौलिए और रूमाल किसी और के साथ शेयर न करें।

■ अब कुछ सुझाव बता रही हूँ गौर से समझ लेना -

इन सब बीमारियों की चपेट में छोटे बच्चे, बुजुर्ग, कमजोर इम्यूनिटी वाले लोग और गंदगी वाले क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को मानसून की बीमारियों का खतरा अधिक होता है। इसके अलावा प्रेग्नेंट व ब्रेस्टफीड कराने वाली महिलाओें को भी इसमें अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए।

- खाना खाने से पहले हाथों को साबुन से धोएं
- बीमार लोगों से पर्याप्त दूरी बना कर रखें
- सब्जी मंडी जाओ तो मास्क लगा कि जाना
- आंखों में सीधा हाथ न लगाएँ
- किचन, गमलों, कूलर की सफाई का विशेष ध्यान दें
- बीमार हो तो सार्वजनिक जगहों पर न जाएं
- होटल के खाने बाजारू, जोमैटो, पानीपूरी के ठेलों से बचें
- जहाँ तलक हो फिल्टर पानी ही पिएं

फिलहाल इतना ही जहन में बिठा के रखिये ।

अंतिम बात बोल रही हूँ जो किसी भी एलर्जी के मरीज है क्रोनिक वो एकदम सावधान रहना ।
24 घण्टे में अगर प्रीसिम्पटम्स मतलब शुरुआती लक्षण या लक्षण बने रहें तो तुरंत हरकत में आ जाना !
डॉ मोनिका जौहरी 🙏

09/06/2025

■ उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः

मतलब - कोशिश से ही कार्य सफल होते हैं, ना कि इच्छाओं से ! ठीक उसी प्रकार जैसे सोते हुए शेर के मुंह में हिरण स्वयं नहीं आता, उसके लिए शेर को परिश्रम करना पड़ता है !

👉
■ आत्मविश्वास की कमी, बिना कोशिश किए ही हार मान जाना और जलन की भावना, ईर्ष्या, और खुद को हीन समझना मानसिक रुप से कमजोर व्यक्ति के मुख्य लक्षण होते हैं। ये संकेत बताते हैं कि व्यक्ति मानसिक रुप से कमजोर है। और इसी कमजोरी को हम मनोविज्ञान की भाषा मे क्रिएटिव ब्लॉक कहते है जो आगे चलकर कोई मनोरोग का जनक बनती है ! जैसे ANXIETY, DEPRESSION !

आइये जानते है क्या है ये :-

हर व्यक्ति की मानसिक स्थिति एक जैसी नहीं होती। कुछ लोग मानसिक रुप से कमजोर हो सकते हैं जिससे हम दूसरों से खुद को कमजोर मानते हैं। दिमागी रुप से कमजोर ( ब्लॉक ) होने के कारण आपको अन्य लोगों से अधिक बलिदान और संघर्ष करना पड़ सकता है।

ऐसे में हर रचनात्मक इंसान जीवन में कभी ना कभी क्रिएटिव ब्लॉक से गुजरता है। और फिर उसका कमजोर दिमाग अक्सर बहुत सारी भावनाएं और विचार चलता है जो कि दिमाग को क्रियात्मक सोचने से रोकते हैं। जिससे वो कुछ नया नही कर पाते।

ऐसी कंडीसन में तनाव और नकारात्मकता को दूर करने के लिए लोग रचनात्मक तरीकों का सहारा देते हैं। यह रचनात्मक तरीके पेंटिंग, राइटिंग कुछ भी हो सकता है। मगर कभी-कभी ऐसा होता है कि आप कुछ रचनात्मक करने की बहुत कोशिश करते हैं लेकिन वैसा हो नहीं पाता है जैसा आप सोचते हैं। यह मानसिक रुप से ब्लॉक होने पर होता है जब आप कुछ रचनात्मक नहीं कर पाते हैं। हर क्रिएटिव इंसान इस समस्या से गुजरता है, इस समस्या को क्रिएटिव ब्लॉक कहते हैं।

◆ लक्षण कुछ इस तरह के होते है इनमे :-

1. कंफर्ट जोन से बाहर नहीं आते :- अपनी सुविधाओं के दायरे में रहकर हर व्यक्ति काम करना चाहता है। लेकिन जो व्यक्ति क्रिएटिव ब्लॉक से गुजर रहा होता है वह अपने कंफर्ट ज़ोन से कभी भी बाहर आकर काम नहीं करना चाहता है। ऐसे लोग अक्सर कोई भी नई जिम्मेदारी आने से बेहद घबरा जाते हैं।

2. आसानी से हार मान जाते हैं :- परिस्थितियों से हार मानना मानसिक रुप से कमजोर होने की निशानी होती है। जो लोग मानसिक रुप से क्रिएटिव ब्लॉक होते हैं वे जीतने के लिए लड़ नहीं सकते और आसानी से हार मान जाते हैं।

3. दूसरों की सफलता से जलते हैं :- मानसिक रुप से मजबूत लोग दूसरों की सफलता से जलते हैं। लेकिन खुद सफल होने की कोशिश नहीं करते हैं। लगातार दूसरों को सफल और खुद को कम आंकना भी मानसिक रुप से क्रिएटिव ब्लॉक लोगों की निशानी होती है।

4. भरोसे की कमी :- खुद पर भरोसा ना होने के कारण आप आत्म-निर्भर नहीं बन सकते हैं। इससे आप अपने लक्ष्यों की प्राप्ति से अवरोधित हो जाते हैं। क्रिएटिव ब्लॉक में व्यक्ति खुद पर भरोसा नहीं करते और अक्सर हर काम से डरते रहते हैं। खुद पर यह संदेह ही उन्हें असफलता की ओर ले जाता है।

5. प्रतिस्पर्धा से दूर रहना :- जीत-हार जीवन का हिस्सा है। लेकिन अगर आप परीक्षा से ही डर जाएंगें तो सफल होने की कोई गुंजाईश ही नहीं रह जाती है। ऐसे लोग हार जाने के डर से किसी भी प्रतिस्पर्धा में भाग ही नहीं लेते और खुद को आगे बढ़ने का मौका नहीं देते हैं।

👉 कैसे करे स्वस्थ मन का निर्माण और मिटाएँ अपना ब्लॉक :-

★ कुछ नया करने की कोशिश करें :- जब आप खुद पर कुछ रचनात्मक करने के लिए दबाव डालते हैं तो आप अपने तनाव को बढ़ा रहे होते हें। इस समस्या को दूर करने के सबसे आसान तरीका कुछ नया करना है। जब आप कुछ नया करने की सोचते हैं तो आपका दिमाग डाइवर्ट हो जाता है जिससे तनाव दूर होता है। एक बार जब तनाव चला जाता है तो आपको कुछ रचनात्मक करने में दिक्कत नहीं होती है।

★ दूसरों के क्रिएटिव वर्जन को फॉलो करें :- आपकी रचनात्मक चीजों को सबको दिखाना जरुरी होता है। कुछ रचनात्मक करने के साथ बाकि लोगों की रचना को देखने के लिए भी समय निकालें। यह आपको प्रेरित करने में मदद करते हैं।

★ परिणाम पर ध्यान ना दें :- बहुत से लोगों के क्रिएटिव ब्लॉक होने के पीछे का कारण किसी भी रचना का परिणाम सोचना होता है। वह रचना करते समय आनंद लेने की बजाय परिणाम के बारे में सोचकर परेशान होते रहते हैं। रचना करना आपको खुशी देता है ना कि तनाव देना इसलिए रचना करने की प्रक्रिया को तनावपूर्ण बनाने की बजाय छोटी-छोटी चीजों का आनंद लें।

★ ट्रेवल करें :- रोज के काम में आप इतने फंसे रहते हैं कि कुछ भी रचनात्मक करने के लिए प्रेरित नहीं हो पाते हैं। इसके लिए सबसे अच्छा तरीका अपने रोज के रुटीन से बाहर आकर ट्रेवल करें। अगर आप कहीं दूर घूमने नहीं जा सकते हैं तो 1 घंटे घुमना भी काफी होता है।

★ सीमाओं से बाहर आएं :- रचनात्मक होने के लिए अपनी सीमाओं से बाहर जाने में हिजके नहीं। आप जितना नया सोचते हैं वह रचनात्मक काम करने में मदद करते हैं।
डॉ मोनिका जौहरी 🙏

08/06/2025

■ कोलेस्ट्रॉल को लेकर भी मन में जिज्ञासाएँ आती होगी आपके की कैसे बढा हुआ कोलेस्ट्रॉल हमारे लिए खतरनाक है ? किस तरह से हम इसे बेलेंस कर सकते हैं ? क्या इसे बेलेंस करने से हार्ट की बीमारियों से बच सकते है ? किस तरह बढ़ा हुआ कोलेस्ट्रॉल रोगों का जनक बनने लगा ?

आप जिसे कोलेस्ट्रॉल कह रहे हो वो असल में है लिपोप्रोटीन ! सबके नाम बता दिए थे याद होंगे आपको ?

👉 वो प्रोटीन जो लिपो से बने हुए है मतलब वे प्रोटीन जिनमें लिपिड भी है ! लिपिड क्या है ? लिपिड मतलब कोलेस्ट्रॉल और फैट ! और लिपो ? मतलब वो प्रोटीन जो कोलेस्ट्रॉल और फैट को धारण कर लेते है उन्हें लिपोप्रोटीन कहा जाता है !

पिछले लेख में आप जान चुके हैं कि ब्लड में जब बढ़े हुए, नॉर्मल या घटे हुए 'कोलेस्टेरॉल' की बात कर रहे होते हैं, तो हमारा वास्तविक मतलब बढ़ी हुई सामान्य घटी हुई 'अमुक लिपोप्रोटीन' होता है। ये लिपोप्रोटीन बहुत प्रकार के हैं - HDL, LDL, VLDL और ट्राइग्लिसराइड्स। इन सभी लिपोप्रोटीनों के शरीर में अलग अलग काम हैं, ये अलग अलग जैवरासायनिक कार्य किया करतें हैं।

अब प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि इनके कामों को किस तरह समझा जा सकता है ?

लिपोप्रोटीन कौन ? बता दी हूँ ! लिपिड कौन ? समझा दी हूँ !

ये लिपोप्रोटीन हमारे जिस्म की कोलेस्टेरॉल फ़ैट वाहिकाएँ हैं, उन्हें ढोकर शरीर में अलग अलग जगह पहुँचाती हैं। यानी कायलोमायक्रॉन का काम भोजन की वसा व कोलेस्टेरॉल को अवशोषित करके शरीर के अन्य ऊतकों तक पहुँचाना है, तो LDL का काम कोलेस्टेरॉल को लिवर से अन्य ऊतकों तक ले जाना।

अगर शरीर एक शहर है, तो अंग (और उन अंगों को बनाने वाले ऊतक) उस शरीर की कॉलोनियाँ। उन कॉलोनियों के अलग अलग सड़क रूटों पर अलग अलग टैक्सियाँ दौड़ रही हैं। ये टैक्सियाँ लिपोप्रोटीन हैं। किसी रूट पर HDL टैक्सी चलती है, तो किसी पर LDL टैक्सी। किसी सड़क पर यात्रा के लिए VLDL टैक्सी का इस्तेमाल करना होता है, तो किसी पर क़ायलोमायक्रॉन टैक्सी का। इन सभी टैक्सियों में चलने वाला ग्राहक कौन हैं ? फ़ैट, कोलेस्टेरॉल व इनसे बने रसायन।

आप लोग का यह सोचना वाजिब है कि शरीर के भीतर इतने तामझाम की भला ज़रूरत ही क्या थी ? कोलेस्टेरॉल क्या सीधे सीधे खून में अवशोषित होकर एक अंग से दूसरे अंग में नहीं जा सकता था ? क्यों आवश्यक हुआ कि लिपोप्रोटीनों का सहारा लेना पड़ा ? इसका उत्तर यह है कि तमाम फ़ैट और कोलेस्टेरॉल जल में घुल नहीं सकते। और जो जल में अघुलनशील है, उसके ट्रांसपोर्ट में शरीर के भीतर समस्या है।इसलिए शरीर को इन फ़ैट कोलेस्टेरॉल रसायनों को किसी ऐसे रसायन से जोड़कर ट्रांसपोर्ट करना पड़ता है, जो खून में मौजूद पानी में घुल सके। यही वजह है कि लिपोप्रोटीनों का वजूद है।

अगली बार जब आप अपनी या किसी अन्य की लिपिड प्रोफ़ाइल रिपोर्ट देखें, तो सभी कॉलमों को अलग अलग समझें। अगर LDL बढ़ा हुआ है, तो इसका मतलब यह समझें कि एक ख़ास क़िस्म की लिपोप्रोटीनों का स्तर खून में ज़्यादा है। यानी शरीर के किसी ख़ास रूट पर टैक्सियाँ ज़्यादा चल रही हैं, उस रास्ते पर कोलेस्टेरॉल व फ़ैट की आवाजाही अधिक है। अगर HDL घटा हुआ है, तो किसी ख़ास रास्ते पर विशेष टैक्सियों का आवागमन कम हो रहा है। खून की धमनियों के तमाम रोग कोलेस्टेरॉल ढोने वाले इन लिपोप्रोटीनों के गड़बड़ ट्रांसपोर्ट के कारण होते हैं ! हार्ट के भी, मस्तिष्क के, कई अन्य भी। किसी रुट पर टैक्सियाँ ज़रूरत से ज़्यादा चलेंगी अथवा कम, कुछ समस्या ज़रूर आएगी।

सड़क पर अचानक अनेक वाहनों का कोई लम्बा काफ़िला जाता दिखे, तो आप ध्यान से उसे देखने लगते हैं जैसे कोई नेताजी की गाड़ियों का काफिला।

बस आपकी लिपिड प्रोफ़ाइल की रिपोर्ट दरअसल अलग अलग रूटों पर अलग अलग टैक्सियों के काफ़िलों का ट्रैफ़िक बता रही है। कल्पना कीजिये कि लव कपल्स की तरह ही ढेर सारी LDL टैक्सियों में बैठकर खूब सारे कोलेस्टेरॉल व फ़ैट रूपी लोग कहाँ जा रहे हैं ? कहाँ उतरेंगे ये ? इनकी भीड़ तो ज़रूरत से ज़्यादा है ?

#श्रीमद_कार्डियो_सार EP - 2

डॉ मोनिका जौहरी

21/02/2025


लिपिड प्रोफाइल
बेहतरीन तरीके से समझाया गया

एक प्रसिद्ध डॉक्टर ने एक सुंदर कहानी साझा की, जिसमें उन्होंने लिपिड प्रोफाइल को एक अनोखे तरीके से समझाया।

कल्पना करें कि हमारा शरीर एक छोटा शहर है।
इस शहर के मुख्य अपराधी हैं कोलेस्ट्रॉल। इनके कुछ साथी भी हैं, और इनका सबसे बड़ा सहयोगी है ट्राइग्लिसराइड। इनका काम सड़कों पर घूमना, अराजकता फैलाना और रास्तों को जाम करना है।

हृदय इस शहर का केंद्र है।
सभी सड़कें हृदय की ओर जाती हैं। जब अपराधियों की संख्या बढ़ती है, तो वे हृदय के कार्य को बाधित करने की कोशिश करते हैं।

लेकिन हमारे शरीर-शहर में एक पुलिस बल भी है।
एचडीएल एक अच्छा पुलिसवाला है, जो अपराधियों को पकड़कर जेल (यकृत) में डालता है। फिर यकृत उन्हें शरीर से बाहर फेंक देता है।

हालांकि, एक भ्रष्ट पुलिसवाला भी है – एलडीएल।
एलडीएल इन अपराधियों को जेल से बाहर निकालकर वापस सड़कों पर छोड़ देता है।

जब एचडीएल (अच्छी पुलिस) की संख्या कम हो जाती है, तो पूरा शहर अराजकता में डूब जाता है। कौन ऐसे शहर में रहना चाहेगा?

क्या आप अपराधियों को कम करना और अच्छे पुलिसवालों की संख्या बढ़ाना चाहते हैं?

तो चलना शुरू करें!
हर कदम के साथ अच्छे पुलिसवाले एचडीएल की संख्या बढ़ेगी, और अपराधी कोलेस्ट्रॉल, ट्राइग्लिसराइड और एलडीएल कम होंगे।

आपका शहर (शरीर) फिर से स्वस्थ और ऊर्जावान हो जाएगा। आपका हृदय (शहर का केंद्र) अपराधियों के जाम से सुरक्षित रहेगा। जब आपका हृदय स्वस्थ होगा, तो आप भी स्वस्थ रहेंगे।

तो जब भी मौका मिले, चलना शुरू करें!
स्वस्थ रहें और
अच्छी सेहत बनाए रखें!

अच्छे एचडीएल को बढ़ाने और खराब एलडीएल को कम करने के लिए यह एक शानदार लेख है, खासकर पैदल चलने से।

हर कदम एचडीएल को बढ़ाएगा। इसलिए, चलते रहें – चलते रहें – चलते रहें!

कम करें:
1. नमक
2. चीनी
3. सफेद मैदा
4. डेयरी उत्पाद
5. प्रोसेस्ड फूड

खाने में शामिल करें:
1. सब्जियां
2. दालें
3. फलियां
4. मेवे
5. ठंडे दबाए गए तेल (जैसे जैतून, नारियल)
6. फल

तीन चीजें जिन्हें भूलने की कोशिश करें:
1. अपनी उम्र
2. अपना अतीत
3. अपनी शिकायतें

चार चीजें जिनका आनंद लें:
1. अपना परिवार
2. अपने दोस्त
3. सकारात्मक सोच
4. साफ-सुथरा और सुसज्जित घर

तीन आदतें अपनाएं:
1. हमेशा मुस्कुराएं और हंसें
2. नियमित रूप से अपनी गति से व्यायाम करें
3. अपना वजन नियंत्रित करें

छह जरूरी जीवनशैली आदतें:
1. प्यास लगने से पहले पानी पिएं
2. थकान महसूस करने से पहले आराम करें
3. बीमार पड़ने से पहले अपना मेडिकल चेकअप करवाएं
4. चमत्कार की प्रतीक्षा न करें, बल्कि भगवान पर भरोसा रखें
5. खुद पर विश्वास कभी न खोएं
6. हमेशा सकारात्मक रहें और बेहतर भविष्य की उम्मीद करें

11/02/2025


इंसान के सारे रंग तीन रंगों से उपजे हैं : लाल, हरा और नीला। कोई भी रंग इन तीन प्राथमिक रंगों के मिलन से हम बनाते और देखते हैं। हमारी आँखों के रेटिना-पर्दों में मौजूद रिसेप्टर भी इन्हीं तीन रंगों को पहचानते हैं।
रंगों का अन्धापन भी इन्हीं तीन रंगों के आधार पर प्रोटेनोपिया ( लाल न देख पाना ) , ड्यूटेरानोपिया ( हरा न देख पाना ) और ट्राइटेनोपिया (नीला न देख पाना ) कहलाता है

07/02/2025

👉 मनोरोग

👉 मैं एक विकार के बारे में बता रही हूँ, गौर से हर एक लक्षण को समझ लेना :-

"मैं अपने अंदर खाली सा महसूस करती हूँ"
"मैं लगातार अपने जीवन का मतलब ढूढ़ती हूँ "
"मैं दूसरों की प्रतिक्रिया से खुद को आंकती हूँ "
"कभी कभी मैं नहीं जानती कि मैं कौन हूँ "
"पता नही क्यों....!!"

अचानक से भावनाओं का तूफान सा टूट पड़ता है...पल-पल में मूड स्विंग होता है...हर छोटा मसला बहुत बड़ा महसूस होता है...रिश्ते बहुत तेजी से बनते-बिगड़ते हैं...बार बार जॉब छूट जाती है... कुंडली, हाथ दिखाना, ज्योतिष या तांत्रिक के पास बार बार अपनी समस्याओं को लेकर जाना...खुद को किसी से जुड़ा हुआ नहीं पाते। ऐसे ख्यालों से जूझते लोग हमारे आसपास खूब मिलते हैं।

#कुछ_खास_लक्षण : -

#खालीपन व्यक्ति के अंदर सूनापन होता है, व्यक्ति भीतर से खालीपन महसूस करता है। वह खुद को अकेला समझता है। उसको क्रॉनिक फीलिंग्स ऑफ एम्प्टीनेस कहते हैं।

#अस्थिर_संबंध आप या तो बहुत जल्दी किसी के पास चले जाएंगे और अगर पास चले गए तो बहुत जल्दी दूर खिंच जाएंगे। रिश्तों में अस्थिरता होती है। रिश्ते बहुत तेजी से बनते-बिगड़ते हैं। लंबे समय तक कोई भी रिश्ता बनाए रखना इनके लिए कठिन होता है। एक पल में किसी पर विश्वास कर लेते है कुछ ही मिनटों में विश्वास खत्म हो जाता है।

#डिसोसिएशन (अलगाव) आप किसी इंसान को या तो भगवान बना देंगे या अगर उस इंसान ने आपके खिलाफ कुछ कर दिया तो उससे नफरत करने लगेंगे। ऐसे लोग या तो किसी से बहुत प्रेम करने लगते हैं या अकारण ही नफरत।

#पैरासुसाइड ये सुसाइड करने से अलग होता है, इसमें जो विचार आते हैं, उसे पैरासुसाइड कहते हैं। इसमें सुसाइड का डर देकर अपना काम करवाना शामिल है।

#इम्पल्सिविटी (आवेगशीलता)- एकदम से कोई ख्याल उठना, छोटी सी बात पर बहुत गुस्सा करना। ऐसे मरीज कभी कोई एक निर्णय नहीं ले पाते हैं। किसी एक चीज का चुनाव करना इनके लिए कठिन होता है। अगर कुछ सोच लिया तो उसे तुरंत करना है, फिर समय और हालात भी नहीं देख पाते।

#छोड़ दिए जाने का डर - ऐसा लगता है कि आपको सब लोग छोड़ देगें। उन्हें अपने से दूर किए जाने के डर से आप उन्हें बार-बार फोन करने, तंग करने लगते हैं।

#पैरानोया दिमाग में डर, शक होना।

#सेल्फ_इमेज की कमी जैसे : खुद के बारे में एक जैसी और अच्छी सोच ना रख पाना। खुद को दूसरों से जुड़ा हुआ महसूस न करना। चिंता और अवसाद की भावना से घिरे रहना। खुद को संभाल नहीं पाने के कारण सेक्स व मादक द्रव्यों का सेवन ज्यादा करना। लड़ने के लिए हमेशा तैयार रहना।

इस बीमारी में इंसान अपनी भावनाओं को दूसरों के सामने रखने की बजाए इंसान उन्हें छिपाने और दबाने लगता है और यहीं से बीमारी की शुरुआत होती है। जिंदगी में सकारात्मक सोच और अपने हासिल पर खुश होकर हालात बदले जा सकते हैं और बीमारी को कहीं दूर फेंका जा सकता है जरूरत सिर्फ एक ईमानदार कोशिश की है।

सामान्य दिखने वाले ये लोग दरअसल मरीज हैं जिन्हें #बॉर्डरलाइन_पर्सनैलिटी_डिसॉर्डर ने अपने घेरे में जकड़ रखा है। भले ही लोग इसे अपनी तन्हाई, किस्मत, बेबसी समझें पर है ये बीमारी ही।

ज्यादातर समय ये लक्षण बने रहते हैं तो यह मामूली बात नहीं है। वैसे ये लक्षण कभी-कभार हम सबमें दिखाई दे जाते हैं, पर बीपीडी से पीड़ित लोगों में यह व्यवहार बहुत बढ़ जाता है। ज्यादातर समय मरीज बेहद संवेदनशील रहने लगता है। कुल मिलाकर, यह व्यक्ति के मूड, छवि और व्यवहार में तेजी से बदलाव आने की दिक्कतों से जुड़ी मानसिक समस्या है। उपचार में देरी किए जाने से बीपीडी के मरीजों में अवसाद और मूड संबंधी दूसरी समस्याएं भी होने लगती हैं।

यह एक ऐसा मानसिक विकार है जिससे विश्व के 2% लोग प्रभावित हैं। और यह सबसे भ्रमित करने वाली मानसिक बीमारी है। एक ऐसी विचित्र बीमारी है जो ना बीमारी है, ना नॉर्मल है। और उसमें जो सबसे विचित्र नमूना है, वो है बॉर्डरलाइन पर्सनैलिटी डिसऑर्डर। इसके 80% से 90% केस औरतों के साथ होते हैं। बाकी पुरुषों के साथ होते हैं। भारत में लगभग 2 करोड़ लोग बीपीडी के शिकार हैं। इनमें 95% लोगों को कोई मेडिकल मदद नहीं मिल पाती है।

कई लक्षण सामान्य होने के कारण इस डिसॉर्डर की पहचान मुश्किल होती है। कई बार बीमार व्यक्ति की दिक्कत परिवार भी नहीं समझ पाता। एक ओर इस डिसॉर्डर से पीड़ित व्यक्ति अकेला महसूस करता है, दूसरी ओर पल-पल में मूड बदलना लोगों को मरीज के करीब आने ही नहीं देता। इसी वजह से पीड़ित व्यक्ति अंदर ही अंदर घुटता रहता है और अपनी बात किसी से साझा नहीं कर पाता है। जिससे स्थितियां बिगड़ती चली जाती हैं।

#बीपीडी_के_कई_कारण हो सकते है - माता पिता में से किसी को यह समस्या होने पर बच्चों में इसके होने की आशंका बढ़ जाती है। कई बार गर्भावस्था में हार्मोन असंतुलन से बच्चे पर असर पड़ जाता है। तनावपूर्ण माहौल में लंबे समय तक रहना भी इसका शिकार बना सकता है। बचपन में शारीरिक शोषण का शिकार या बहुत कम उम्र में अपनों से अलग हुए बच्चों में इसका असर देखने को मिलता है।

#बड़े_हादसे_भी_हो_सकते_है_कारण जैसे :
- माता-पिता या बच्चों की मृत्य
- प्यार में धोखा
- करीबी रिश्ता टूटना
- घरेलू हिंसा के ईद-गिर्द बचपन बीतना।
जिस घर में घरेलू हिंसा होती है, उन परिवारों के बच्चों में इसकी होने की आशंका बढ़ जाती है।

#विश्व_स्वास्थ्य_संगठन ने इस बीमारी को दो रूपों में बांटा है :-

👉 पहला है #इम्पल्सिव - मरीज में अचानक हरकत में आ जाने की आदत होती है, वो असहमतियों पर झगड़ा करते हैं, गुस्से में आंखें तैराते हैं और कई बार हिंसक भी हो जाते हैं, तुरंत फायदा ना दिखे तो काम हाथ में नहीं लेते और इनका मन एक जगह टिक कर नहीं रहता।

👉 दूसरा है #बॉर्डरलाइन - वाले मरीज अपनी छवि, अभिरुचियां जिनमें सेक्स भी शामिल है और लक्ष्यों को लेकर उहापोह की स्थिति में रहते हैं। कोई रिश्ता कहीं गहरा हो जाए या फिर एकदम कच्चा ही ना निकल जाए इसे लेकर इनके अंदर भावनाएं बहुत उठापटक मचाती हैं। कोई इन्हें छोड़ न दे इसके लिए पूरी जान लगा देते हैं और इसके लिए कई बार खुद को नुकसान भी पहुंचा लेते हैं लंबे समय तक खुद को अकेला और खाली महसूस करते हैं। आमतौर पर वयस्क होने पर इसके लक्षण सामने आते हैं।

■ इलाज मनोचिकित्सक करेगा ! केयर टेकर में क्या करना है वो सिख लो :-

#परिवार_का_साथ_है_जरूरी बीपीडी के लिए घर का माहौल काफी हद तक जिम्मेदार होता है। घर में लगातार लड़ाईयां होना या फिर माता-पिता पति-पत्नी के बीच मतभेद होना भी इस डिसॉर्डर को जन्म दे सकता है। इस डिसॉर्डर की पहचान खुद भी की जा सकती है। खुद पर ध्यान दीजिए कि कहीं आप बहुत सारे नकारात्मक विचारों से तो नहीं घिरे हुए हैं, जिन्हें काबू रख पाना मुश्किल हो रहा है। अगर ऐसा है तो यह विशेषज्ञों की मदद लेने का सही समय है। इस दिक्कत मे DBT थेरेपी भी कारगर मानी जाती है। इसमें बुरे विचारों को अच्छे विचारों में बदलने की कोशिश की जाती है। दवाओं की भी भूमिका होती है, पर सबसे बड़ा योगदान परिवार का होता है। मरीज के करीबी सदस्यों को लगातार यह जानने की कोशिश करनी चाहिए कि मरीज के मन में क्या चल रहा है। वो ना बताना चाहे तो भी प्यार से पेश आते हुए उनसे बातचीत जारी रखनी चाहिए। ऐसे लोगों के साथ ईमानदारी से व्यवहार करना चाहिए। तनावपूर्ण व गंभीर मसलों की बातचीत उनके व्यवहार और हालात को देखकर ही करनी चाहिए। मरीज से विनम्रता से पेश आना चाहिए। साथ ही हर समय उनसे अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद नहीं करनी चाहिए।
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■ इसमें दो ही किस्म के रोगी होते है मोस्टली :-

पहली है #न्यूरोसिस कंडीसन :- ऐसी स्थिति जिसमें व्यक्ति मानसिक रूप से परेशान होता है, लेकिन इसके बावजूद वह अपनी धारणा और वास्तविकता के बीच का अंतर बता सकता है। इन लोगों को अगर सही कॉउंसिल करदे कोई तो ये 7 दिन में 99% सही हो सकतें है।

दूसरी है #साइकोसिस - ऐसी स्थिति जिसमें व्यक्ति मानसिक रूप से परेशान होता है, लेकिन इसके बावजूद वह अपनी धारणा और वास्तविकता के बीच का अंतर बताने में असमर्थ होता है। ये वाले रोगी सेल्फ हार्म, सुसाइड या किसी और व्यक्ति को नुकसान पहुंचा सकते है। या रोग को बाइपोलर डिसऑर्डर तक भी ले जा सकतें हैं। भ्रम या मतिभ्रम का अनुभव इनमें सबसे ज्यादा होता है।

"" हादसा ये नहीं कि आप जीते जी मर जाएं
हादसा ये है कि आप जीते जी मरे हुए जीएं ""
डॉ. मोनिका जौहरी

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Lakhimpur-Kheri
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