राजपूत एग्रीक्लीनिक एंड एग्रीबिजनेस सेंटर - ललितपुर

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राजपूत एग्रीक्लीनिक एंड एग्रीबिजनेस सेंटर - ललितपुर कृषि संबंधित सभी प्रकार की कृषि यंत्र एवं दवाइयां उपलब्ध है

23/08/2025
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16/02/2025

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*आपको और आपके परिवार को प्रकाश व प्रसन्नता के पर्व दीपावली पर बहुत बहुत मंगलकामनाएं।**धन, वैभव, यश, ऐश्वर्य के साथ दीपाव...
31/10/2024

*आपको और आपके परिवार को प्रकाश व प्रसन्नता के पर्व दीपावली पर बहुत बहुत मंगलकामनाएं।*
*धन, वैभव, यश, ऐश्वर्य के साथ दीपावली पर माँ महालक्ष्मी आपकी सुख, सम्पन्नता, स्वास्थ्य व हर्षोल्लास में वृद्धि करें, इन्हीं शुभेच्छाओं के साथ।"*
🙏🙏🙏*ll शुभ दीपावलीll*

हम अक्सर इस घास को मामूली समझ कर नजरअंदाज कर देते हैं, लेकिन इसके बीज बाजार में महंगे बिकते हैं और व्रत में इस्तेमाल किए...
03/09/2024

हम अक्सर इस घास को मामूली समझ कर नजरअंदाज कर देते हैं, लेकिन इसके बीज बाजार में महंगे बिकते हैं और व्रत में इस्तेमाल किए जाते हैं।

इस घास को सामक, समा, सांवा या झींगोरा के नाम से जाना जाता है। समा के चावल इसी घास से प्राप्त होते हैं। मेरे आसपास इसे ढेरों में देखा जा सकता है। इस घास को खरपतवार समझना गलत होगा, क्योंकि प्रकृति ने हमें हर चीज़ उपहार के रूप में दी है, बस हमें उसका ज्ञान नहीं होता।

यह लंबी घास की किस्म होती है, जिसकी बालें चारे के काम आती हैं और सांवा नाम से भी जानी जाती है। इसके बीज स्लेटी रंग के चमकदार होते हैं और चावल, हलुआ आदि में उपयोग किए जाते हैं। यह अनाज विशेषकर वर्षा ऋतु में उगता है और लगभग दो से ढाई महीने में तैयार हो जाता है। फसल तैयार होने पर बीज को पीटकर अलग कर लिया जाता है, जबकि हरे पौधों को काटकर पशुओं को चारे के रूप में दिया जाता है।

मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में स्तनपान कराने वाली माताओं को यह विशेष रूप से खिलाया जाता है, क्योंकि यह डिलीवरी के बाद कमजोरी को दूर करने में सहायक है। आदिवासी समाज में भी यह प्रचलित है।

उत्तराखंड में इसे झंगोरा (Jhangora) कहा जाता है और इसका वैज्ञानिक नाम Echinochloa frumentacea है। झंगोरा चावल की तुलना में अधिक खनिज, वसा, और आयरन से भरपूर होता है। इसमें कैल्शियम की अधिकता हड्डियों को मजबूत बनाती है। झंगोरा की खीर भी बनाई जाती है, जो स्वादिष्ट होती है और इसमें उच्च फाइबर की वजह से यह शुगर पेशेंट्स के लिए आदर्श है। झंगोरा के सेवन से शुगर कंट्रोल में रहती है।

व्रत के दौरान समा के चावल खाने का मुख्य कारण इसके पोषक तत्व हैं। इन चावलों में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, विटामिन ए, सी, और ई की अच्छी खासी मात्रा होती है। कैलोरी में कम और शर्करा में कम होने के साथ ही समा के चावलों में फाइबर, कैल्शियम, पोटैशियम, फास्फोरस, आयरन, और मैग्नीशियम भी होता है।

डायबिटीज रोगी भी समा के चावल खा सकते हैं। इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स 50 होता है, जो लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स कैटेगरी में आता है। इसमें उच्च फाइबर ब्लड ग्लूकोज लेवल को कंट्रोल में रखता है।

ग्लूटन-फ्री आहार की सलाह पर, समा के चावल आदर्श हैं क्योंकि इनमें ग्लूटन की मात्रा बहुत कम होती है, जो ग्लूटन से संबंधित समस्याओं में राहत पहुंचाता है।

हड्डियों के लिए भी समा के चावल लाभकारी हैं क्योंकि इसमें भरपूर कैल्शियम होता है, जो हड्डियों को मजबूत बनाता है और हड्डियों से जुड़ी समस्याओं को दूर रखता है।

वजन कम करने के लिए भी समा के चावल बेहतरीन हैं क्योंकि इसमें कैलोरी की मात्रा कम और फाइबर अधिक होता है, जिससे पेट लंबे समय तक भरा रहता है और वजन घटाने में सहायता मिलती है।

समा के चावल पाचन समस्याओं को भी कम करते हैं। इन्हें खाने से अपच, कब्ज, गैस, और ब्लॉटिंग की समस्याएं नहीं होतीं, जिससे पाचन तंत्र में सुधार होता है।

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