Sri ayurved evam prakratik chikitsa

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11/12/2020

डाक्टर के स्केल में आने पर, उसके कहने पर अपने को मधुमेह का रोगी न समझें
आयुर्वेदिक शास्त्रोक्त तरीके से स्वयं जांचें
अपनी उम्र में १०० जोड़ लें
मान लीजिए आपकी उम्र ४० है तो १००जोड़ कर योग १४० होता है
तो जब खाने के बाद जांच कराते हैं,और आपकी जांच १४० तक आती है तो निश्चित ही आप मधुमेह के रोगी नही हैं जबकि एलोपैथिक डाक्टर आपको मधुमेह का रोगी घोषित कर अपने पास उपलब्ध तीन,चार दवाओं में से दो को चालू कर देगा और ह्रदय रोगी, संवेदना हीन बना देगा

Kamal Ramwani Saransh जी की पोस्ट: मालू का चटक हरा पत्ता और इसके ग़ज़ब के  फायदे – हरिद्वार में फ़ूड टूर करते वक़्त जो बात म...
11/12/2020

Kamal Ramwani Saransh जी की पोस्ट:



मालू का चटक हरा पत्ता और इसके ग़ज़ब के फायदे –

हरिद्वार में फ़ूड टूर करते वक़्त जो बात मुझे सबसे सुखद और यूनिक लगी वो ये कि यहां नाश्ते वाले सब नाश्ता-मिठाई परोसने के लिए मालू के पत्ते का इस्तेमाल करते हैं चाहे वो मथुरा वालो की पूड़ी-सब्ज़ी हो, या जैन चाट की चाट, पंजाबी का समोसा हो या भगवती के छोले भटूरे या मोहन पूरी की पूरी-हलवा। इनका मालू के पत्ते पर परोसना भा गया। मालू के पत्ते को यहां लोकल भाषा मे मालझन का पत्ता भी कहा जाता है।

मुझे इसके 3 फायदे लगे एक तो मालू के पत्ते के चटक हरे रंग के कारण इस पर परोसा गया भोजन वैसे ही खूबसूरत दिखने लगता है। दूसरा इस पर परोसने से भोजन के औषधीय गुण बढ़ जाते हैं तीसरा वनस्पतिक हमेशा रिसाइकल करने योग्य होती है। अंत मे मिट्टी में मिलने के बाद ये फिर से खाद बन जाएगी। प्लास्टिक की क्रॉकरी तरह पर्यावरण को नुकसान नही पहुंचाती।

आजके जमाने मे सामुदायिक खानों वगेरह में पत्तल-दोनो का प्रयोग लगभग खत्म सा हो गया है ऐसे समय मे हरिद्वार में पत्तो पर परोसना मुझे और सुखद लगा।

मानव प्रजाति ने जब से भोजन पकाना और परोसना सीखा तब से भोजन पत्तो पर रखकर ही खाया जाता था। मानव शुरुआती दौर में तो ओढ़ता-पहनता भी पत्ते ही था। भारत मे भी पत्तों पर भोजन करने का जिक्र अक्सर पुराणों और साहित्य में मिलता ही है।

वैसे तो 2000 से ज्यादा किस्म की वनस्पत्तियों की पत्तियां पत्तल बनाने के लिए प्रयुक्त होती थी, परन्तु वर्तमान में प्लास्टिक के प्रचलन व सिकुड़ती जैव-विविधता से अब पत्तियों से निर्मित पत्तल व दोनें मुश्किल से ही दिखाई पडते है।

अब बात मालू के पौधे की मालू का पौधा उत्तराखण्ड में निम्न ऊंचाई से मध्य ऊंचाई तक के जंगलों में पाया जाता है। यह वैज्ञानिक रूप से 'फैबेसी' कुल का पौधा है। जानकारी करने पर पता लगा कि लगभग एक पीढी पूर्व उत्तराखण्ड के पहाडी क्षेत्रों में सामुदायिक संस्थानों में भोजन परोसने के लिए मालू के पत्तों से बने पत्तल-दोनो का उपयोग बहुतायत किया जाता था। लेकिन आजकल आधुनिकता के चलते भोजन परोसने के लिए वर्तमान में मालू के पत्तों की जगह प्लास्टिक व थर्माकोल से निर्मित कृत्रिम थालियों ने ले ली है, जो न केवल मानव स्वास्थ्य बल्कि पर्यावरण पर भी दुष्प्रभाव डालते हैं।

सोचिए हमारे पूर्वजों द्वारा कितनी बेहतर इको फ्रेंडली परंपरा बना रखी थी जो कि उपलब्ध संसाधनो पर आधारित थी तथा मानव स्वास्थ्य व पर्यावरण के लिए भी लाभदायक थी। ऐसे ही दक्षिण भारत में केले के पत्तल तथा अन्य कई जगहों पर पलाश के पत्तो का प्रयोग किया जाता था जो कि मिट्टी में दबाने के पश्चात खाद के लिए भी उपयुक्त होता था।

हम मॉडर्न होने के चक्कर मे अपनी परंपराएं भूल रहे हैं और पत्तल में भोजन परोसना पुरानी बात हो गयी है लेकिन जर्मनी में तो इन पत्तलों को नेचुरल लीफ प्लेट्स के नाम से युवा इसमें बेहद रूचि ले रहे हैं तथा वहां एक नये व्यवसाय का रूप ले चुका है।

प्रदूषण के प्रति जागरूक लोग इसे आधुनिक फैशन शैली में भी रेस्टोरेंट्स में उपयोग कर रहे है। एक अन्तर्राष्ट्रीय लीफ रिपब्लिक कंपनी ने तो इसका प्रचार तथा व्यवसायिक उत्पादन शुरू कर दिया है तथा यूरोप के कई बडे होटलों में इसे बडी संख्या में आयात किया जा रहा है।

चिकित्सा विज्ञान के अनुसार भी प्लास्टिक व थर्माकोल में भोजन करने से उसमें उपस्थित रासायनिक अवयव खाने में मिल कर पाचन क्रिया पर विपरीत प्रभाव डालते है तथा त्वचा व अन्य कई बीमारियों का कारक भी बनते है।

आर्युवेद के अनुसार जिन प्राकृतिक पत्तलों में भोजन परोसा जाता है वह इको फ्रेंडली होने के साथ-साथ उनमें औषधीय गुण भी पाये जाते है जो मानव स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होते है। मैंने कहीं पढ़ा था कि पलाश के पत्तल में भोजन करना सोने के बर्तन में तथा केले के पत्ते में भोजन करना चांदी के बर्तन में भोजन करने के समान होता है।

उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में मालू के पत्ते में भोजन करने के साथ-साथ उसके फल का कोमल बीज को भी आग में पका कर बडे चाव से खाया जाता था। यदि औषधीय दृष्टि से मालू की बात की जाय तो इसमें एण्टी बैक्टीरियल गुण भी पाये जाते है तथा प्राचीन समय में पारम्परिक रूप से इससे बुखार, अतिसार तथा टॉनिक के रूप में प्रयोग किया जाता था ।

हम पश्चिम को देखकर आधुनिक हुए जा रहे और खुद को , खुद की परंपराओं को शनै शनै खत्म करने की ओर अग्रसर है जबकि वो लोग हमको देखकर हमारी संस्कृति , हमारा आयुर्वेद, हमारा योग अपना रहे हैं। उनके द्वारा अब पत्तल-दोनो का इस्तेमाल किया जाना इस बात का सटीक उदाहरण है।

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कमल रामवानी सारांश✍️✍️

 #बर्तन*आइये जानते हैं कौन सी धातु के बर्तन में भोजन करने से क्या क्या लाभ और हानि होती है**सोना*सोना एक गर्म धातु है। स...
10/12/2020

#बर्तन

*आइये जानते हैं कौन सी धातु के बर्तन में भोजन करने से क्या क्या लाभ और हानि होती है*

*सोना*

सोना एक गर्म धातु है। सोने से बने पात्र में भोजन बनाने और करने से शरीर के आन्तरिक और बाहरी दोनों हिस्से कठोर, बलवान, ताकतवर और मजबूत बनते है और साथ साथ सोना आँखों की रौशनी बढ़ता है।

*चाँदी*

चाँदी एक ठंडी धातु है, जो शरीर को आंतरिक ठंडक पहुंचाती है। शरीर को शांत रखती है इसके पात्र में भोजन बनाने और करने से दिमाग तेज होता है, आँखों स्वस्थ रहती है, आँखों की रौशनी बढती है और इसके अलावा पित्तदोष, कफ और वायुदोष को नियंत्रित रहता है।

*कांसा*

काँसे के बर्तन में खाना खाने से बुद्धि तेज होती है, रक्त में शुद्धता आती है, रक्तपित शांत रहता है और भूख बढ़ाती है। लेकिन काँसे के बर्तन में खट्टी चीजे नहीं परोसनी चाहिए खट्टी चीजे इस धातु से क्रिया करके विषैली हो जाती है जो नुकसान देती है। कांसे के बर्तन में खाना बनाने से केवल 3 प्रतिशत ही पोषक तत्व नष्ट होते हैं।

*ताँबा*

ताँबे के बर्तन में रखा पानी पीने से व्यक्ति रोग मुक्त बनता है, रक्त शुद्ध होता है, स्मरण-शक्ति अच्छी होती है, लीवर संबंधी समस्या दूर होती है, ताँबे का पानी शरीर के विषैले तत्वों को खत्म कर देता है इसलिए इस पात्र में रखा पानी स्वास्थ्य के लिए उत्तम होता है. ताँबे के बर्तन में दूध नहीं पीना चाहिए इससे शरीर को नुकसान होता है।

*पीतल*

पीतल के बर्तन में भोजन पकाने और करने से कृमि रोग, कफ और वायुदोष की बीमारी नहीं होती। पीतल के बर्तन में खाना बनाने से केवल 7 प्रतिशत पोषक तत्व नष्ट होते हैं।

*लोहा*

लोहे के बर्तन में बने भोजन खाने से शरीर की शक्ति बढती है, लोह्तत्व शरीर में जरूरी पोषक तत्वों को बढ़ता है। लोहा कई रोग को खत्म करता है, पांडू रोग मिटाता है, शरीर में सूजन और पीलापन नहीं आने देता, कामला रोग को खत्म करता है, और पीलिया रोग को दूर रखता है. लेकिन लोहे के बर्तन में खाना नहीं खाना चाहिए क्योंकि इसमें खाना खाने से बुद्धि कम होती है और दिमाग का नाश होता है। लोहे के पात्र में दूध पीना अच्छा होता है।

*स्टील*

स्टील के बर्तन नुक्सान दायक नहीं होते क्योंकि ये ना ही गर्म से क्रिया करते है और ना ही अम्ल से. इसलिए नुक्सान नहीं होता है.
इसमें खाना बनाने और खाने से शरीर को कोई फायदा नहीं पहुँचता तो नुक्सान भी नहीं पहुँचता।

*एलुमिनियम*

एल्युमिनिय बोक्साईट का बना होता है। इसमें बने खाने से शरीर को सिर्फ नुक्सान होता है। यह आयरन और कैल्शियम को सोखता है इसलिए इससे बने पात्र का उपयोग नहीं करना चाहिए। इससे हड्डियाँ कमजोर होती है. मानसिक बीमारियाँ होती है, लीवर और नर्वस सिस्टम को क्षति पहुँचती है। उसके साथ साथ किडनी फेल होना, टी बी, अस्थमा, दमा, बात रोग, शुगर जैसी गंभीर बीमारियाँ होती है। एलुमिनियम के प्रेशर कूकर से खाना बनाने से 87 प्रतिशत पोषक तत्व खत्म हो जाते हैं।

*मिट्टी*

मिट्टी के बर्तनों में खाना पकाने से ऐसे पोषक तत्व मिलते हैं, जो हर बीमारी को शरीर से दूर रखते थे। इस बात को अब आधुनिक विज्ञान भी साबित कर चुका है कि मिट्टी के बर्तनों में खाना बनाने से शरीर के कई तरह के रोग ठीक होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार, अगर भोजन को पौष्टिक और स्वादिष्ट बनाना है तो उसे धीरे-धीरे ही पकना चाहिए। भले ही मिट्टी के बर्तनों में खाना बनने में वक़्त थोड़ा ज्यादा लगता है, लेकिन इससे सेहत को पूरा लाभ मिलता है। दूध और दूध से बने उत्पादों के लिए सबसे उपयुक्त हैं मिट्टी के बर्तन।
मिट्टी के बर्तन में खाना बनाने से पूरे 100 प्रतिशत पोषक तत्व मिलते हैं। और, यदि मिट्टी के बर्तन में खाना खाया जाए तो उसका अलग से स्वाद भी आता है।

*पानी पीने के पात्र के विषय में 'भावप्रकाश ग्रंथ' में लिखा है*

जलपात्रं तु ताम्रस्य तदभावे मृदो हितम्।
पवित्रं शीतलं पात्रं रचितं स्फटिकेन यत्।
काचेन रचितं तद्वत् वैङूर्यसम्भवम्।
(भावप्रकाश, पूर्वखंडः4)

अर्थात् पानी पीने के लिए ताँबा, स्फटिक अथवा काँच-पात्र का उपयोग करना चाहिए। इनके अभाव में मिट्टी के जलपात्र पवित्र व शीतल होते हैं। टूटे-फूटे बर्तन से अथवा अंजलि से पानी नहीं पीना चाहिए।

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10/12/2020

सभी प्रकार के असाधारण रोग तथा कैंसर, अस्थमा,चर्म रोग, गठिया, जोड़ों का दर्द,लिवर, किडनी,पथरी, बवासीर की सफल चिकित्सा
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