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*गोबर गणेश*यह यथार्थ है कि जितने लोग भी गणेश विसर्जन करते हैं उन्हें यह *लेश मात्र* पता नहीं होगा कि यह गणेश विसर्जन क्य...
23/09/2023

*गोबर गणेश*

यह यथार्थ है कि जितने लोग भी गणेश विसर्जन करते हैं उन्हें यह *लेश मात्र* पता नहीं होगा कि यह गणेश विसर्जन क्यों किया जाता है और इसका क्या लाभ है ??

हमारे देश में *हिंदुओं* की सबसे बड़ी विडंबना यही है कि देखा देखी में एक परंपरा चल पड़ती है जिसके पीछे का मर्म कोई नहीं जानता परंतु भयवश वह चलती रहती है ।

आज जिस तरह गणेश जी की प्रतिमा के साथ दुराचार होता है, उसको देख कर अपने *हिन्दू मतावलंबियों* पर बहुत ही अधिक तरस आता है और दुःख भी होता है ।

शास्त्रों में एकमात्र *गौ के गोबर* से बने हुए गणेश जी की मूर्ति के *विसर्जन* का ही विधान है ।
गोबर से गणेश एकमात्र प्रतीकात्मक है *माता पार्वती* द्वारा अपने शरीर के उबटन से गणेश जी को उत्पन्न करने का ।

चूंकि गाय का गोबर हमारे शास्त्रों में पवित्र माना गया है इसलिए गणेश जी का आह्वाहन गोबर की प्रतिमा बनाकर ही किया जाता है । इसीलिए एक शब्द प्रचलन में चल पड़ा :- *गोबर गणेश* इसलिए पूजा, यज्ञ, हवन इत्यादि करते समय गोबर के गणेश का ही विधान है । जिसको उपरांत में नदी या पवित्र सरोवर या जलाशय में प्रवाहित करने का विधान बनाया गया है ।

*अब समझते हैं कि गणेश जी के विसर्जन का क्या कारण है ????*

*भगवान वेदव्यास* ने जब शास्त्रों की रचना प्रारम्भ की तो भगवान ने प्रेरणा कर प्रथम पूज्य बुद्धि निधान श्री गणेश जी को *वेदव्यास* जी की सहायता के लिए गणेश चतुर्थी के दिन भेजा ।
*वेदव्यास* जी ने गणेश जी का आदर सत्कार किया और उन्हें एक आसन पर स्थापित एवं विराजमान किया ।

*जैसा कि लोग गणेश चतुर्थी के दिन गणपति की प्रतिमा को अपने घर लाते हैं*

वेदव्यास जी ने इसी दिन महाभारत की रचना प्रारम्भ की वेदव्यास जी बोलते जाते थे और गणेश जी उसको लिपिबद्ध करते जाते थे । निरंतर दस दिन तक लिखने के पश्चात *अनंत चतुर्दशी* के दिन इसका उपसंहार हुआ ।

गणेश जी के शरीर की ऊष्मा का निष्किलन या उनके शरीर की उष्मा को शांत करने के लिए वेदव्यास जी ने उनके शरीर पर गीली मिट्टी का लेप किया। इसके उपरांत उन्होंने गणेश जी को जलाशय में स्नान करवाया, जिसे विसर्जन का नाम दिया गया ।

*बाल गंगाधर तिलक* जी ने अच्छे उद्देश्य से यह आरंभ करवाया पर उन्हें यह नहीं पता था कि इसका भविष्य बिगड़ जाएगा ।

गणेश जी को घर में लाने तक तो बहुत अच्छा है, परंतु विसर्जन के दिन उनकी प्रतिमा के साथ जो दुर्गति होती है वह असहनीय बन जाती है। आजकल गणेश जी की प्रतिमा गोबर की न बना कर लोग अपने ऐश्वर्य, पैसे, दिखावे और समाचार पत्र में नाम छापने से बनाते हैं । जिसके जितने बड़े गणेश जी, उसकी उतनी बड़ी ख्याति, उसके पंडाल में उतने ही बड़े लोग और चढ़ावे का तांता । इसके पश्चात यश और नाम समाचार पत्रों में अलग ।
सबसे अधिक दुःख तब होता है जब *customer attract* करने के लिए लोग DJ पर फिल्मी गाने बजाते हैं।

इसके उपरांत विसर्जन के दिन बड़े ही अभद्र ढंग से प्रतिमा की दुर्गति की जाती है । *वेदव्यास जी का तो एक कारण था विसर्जन* करने का परंतु हम लोग क्यों करते हैं यह समझ से परे है ।

क्या हम भी *वेदव्यास* जी के *समकक्ष* हो गए ???
क्या हमने भी *गणेश जी* से कुछ लिखवाया ? क्या हम *गणेश* जी के *अष्टसात्विक* भाव को शांत करने की *शक्ति* रखते हैं ??

*गोबर गणेश मात्र अंगुष्ठ* के बराबर बनाया जाता है और होना भी चाहिए, इससे बड़ी प्रतिमा या अन्य पदार्थ से बनी प्रतिमा के विसर्जन का शास्त्रों में निषेध है । एक बात और *गणेश जी का विसर्जन बिलकुल शास्त्रीय नहीं है।
* यह मात्र अपने स्वांत सुखाय के लिए बिना इसके पीछे का मर्म, अर्थ और अभिप्राय समझे लोगों ने बना दिया ।
एकमात्र हवन, यज्ञ, *अग्निहोत्र* के समय बनने वाले गोबर गणेश का ही विसर्जन शास्त्रीय विधान के अंतर्गत आता है ।

*प्लास्टर ऑफ paris से बने, चॉकलेट से बने, chemical paint से बने गणेश प्रतिमा का विसर्जन एकमात्र अपने भविष्य और उन्नति के विसर्जन का मार्ग है ।*

इससे केवल प्रकृति के वातावरण, जलाशय, जलीय पारिस्थितिकीय तंत्र, भूमि, हवा, मृदा इत्यादि को हानि पहुँचता है । इस गणेश विसर्जन से किसी को एक अंश भी लाभ नहीं होने वाला । हाँ *बाजारीकरण,* को अवश्य लाभ मिलता है परंतु इससे आत्मिक उन्नति कभी नहीं मिलेगी ।

*इसीलिए गणेश विसर्जन को रोकना ही एकमात्र शास्त्र अनुरूप है ।*

माना कि आप अज्ञानतावश डर रहे हैं कि इतनी प्रख्यात परंपरा हम कैसे तोड़ दें तो विसर्जन करिये । किन्तु गोबर के गणेश या मिट्टी के गणेश को बनाकर विसर्जन करिए और उनकी प्रतिमा *१ अंगुष्ठ* से बड़ी न हो ।

गणेश जी को कभी भी विदा नहीं करना चाहिए क्योंकि विघ्न हरता ही यदि विदा हो गए तुम्हारे विघ्न कौन हरेगा। क्या हमने कभी सोचा है गणेश प्रतिमा का *विसर्जन* क्यों?

अधिकतर लोग एक दूसरे की देखा देखी गणेश जी की प्रतिमा स्थापित कर रहे हैं, और ३ या ५ या ७ या ११ दिन की पूजा के उपरांत उनका विसर्जन भी करेंगे।

आप सब से निवेदन है कि आप गणपति की स्थापना करें पर विसर्जन नही।
*विसर्जन केवल महाराष्ट्र* में ही होता हैं क्योंकि गणपति वहाँ एक अतिथि बनकर गये थे, वहाँ लाल बाग के राजा *कार्तिकेय* ने अपने भाई गणेश जी को अपने यहाँ बुलाया और कुछ दिन वहाँ रहने का आग्रह किया था जितने दिन गणेश जी वहां रहे उतने दिन *माता लक्ष्मी और उनकी पत्नी रिद्धि व सिद्धि* वहीँ रही इनके रहने से लाल बाग *धन धान्य* से परिपूर्ण हो गया, तो कार्तिकेय जी ने उतने दिन का गणेश जी को लालबाग का राजा मानकर सम्मान दिया यही पूजन गणपति उत्सव के रूप में मनाया जाने लगा।

अब रही बात देश की अन्य स्थानों की तो गणेश जी *हमारे घर के स्वामी* हैं और घर के स्वामी को कभी विदा नही करते वहीं यदि हम गणपति जी का विसर्जन करते हैं तो उनके साथ *लक्ष्मी जी व रिद्धि सिद्धि* भी चली जायेगी तो जीवन मे बचा ही क्या। हम बड़े चाह से कहते हैं *गणपति बाप्पा मोरया अगले वर्ष तू शीघ्र आ* इसका अर्थ हमने एक वर्ष के लिए गणेश जी लक्ष्मी जी आदि को *बलपूर्वक* पानी मे बहा दिया, तो आप स्वंय सोचो कि आप किस प्रकार से *नवरात्रि पूजा करोगे, किस प्रकार दीपावली पूजन* करोगे और क्या किसी भी शुभ कार्य को करने का अधिकार रखते हो जब आपने उन्हें एक वर्ष के लिए भेज दिया।

*इसलिए गणेश जी की स्थापना करें पर विसर्जन कभी न करे।*

निवेदन

*श्री गणेश चतुर्थी पर गणपति जी की पारंपरिक मूर्ति खरीदें,*

जिसमे गणेश जी के मूल स्वरुप की प्रतिकृति हो, ऋद्धि - सिद्धि विद्यमान हो ।

*बाहुबली गणेश, सेल्फी लेते हुए स्कूटर चलाते हुए ऑटो चलाते हुए बॉडी बिल्डर बाहुबली सिक्स पैक या अन्य किसी प्रकार के अभद्र स्वरुप में गणेश जी को बिठाने का कोई औचित्य नहीं है।

सभी से निवेदन है वास्तविक गणेश जी की प्रतिमा का स्थापना करें.
ॐ एकदंताय नमो नमः...

सभी इसको अध्ययन और मनन करे, तत्पश्चात स्वयं विचार करे....
🙏🙏🙏गणेश जी हमारे घर के मन्दिर में पहले से ही विराजित हैं तो उनकी ही विशेष पुजा करनी चाहिए 🌹🙏ज🌹🙏

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29/08/2023

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28/08/2023

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27/08/2023
21/08/2023

May Lord Shiva bless you and your family with lots of happiness and prosperity in life
हिंदू धर्म में नाग पंचमी का बहुत महत्व है। हर साल श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ये त्योहार मनाया जाता है। इस बार नागपंचमी 21 अगस्त को पड़ रही है। मान्यता है कि इस दिन नाग देवता की आराधना करने से, सांपों के लिए भय खत्म हो जाता है। साथ ही कुंडली में कालसर्प दोष खत्म करने के लिए भी नाग पंचमी के दिन नाग देवता की पूजा की जाती है। नाग देवता के साथ-साथ नागपंचमी पर भोलेनाथ की भी पूजा की जाती है, जिससे उनका विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस साल नागपंचमी का त्योहार दो शुभ संयोग में मनाया जाने वाला है।

*नागपंचमी शुभ मुहूर्त*

श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि 21 अगस्त को सुबह 12 बजकर 21 मिनट पर शुरू होगी। 22 अगस्त को ये तिथि सुबह 2 बजे तक रहेगी। नाग पंचमी की पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 5:53 से लेकर 08:29 तक का है।

*क्यों मनाई जाती है नागपंचमी?*

नागपंचमी का त्योहार मनाने के कई कारण हैं। भोलेनाथ को नाग अति प्रिय हैं। भोलेनाथ अपने गले में वासुकि नाग को धारण रखते हैं। ऐसे में नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा करने से भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद देते हैं। मान्यता है कि नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा करने से कुंडली में कालसर्प दोष खत्म होता है।

*नागपंचमी पौराणिक कथा*

एक पौराणिक कथा के अनुसार अर्जुन के पोते और राजा परीक्षित के बेटे जन्मजेय ने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए नागों के पूरे कुल को खत्म करने के लिए एक यज्ञ का आयोजन किया था। उनके पिता को तक्षक सांप ने मार डाला था। वहीं, ऋषि जरत्कारु के पुत्र आस्तिक मुनि को जैसे ही इस बारे में पता चला, उन्होंने यज्ञ को रोक दिया, जिससे नागों का कुल बच गया। ये यज्ञ श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर रोका गया। इसके बाद नागों को आग की तपिश से बचाने के लिए उन पर कच्चा दूध डाल दिया गया था। तब से ही नागपंचमी मनाई जाती है।

*नागपंचमी पूजा विधि*

नागपंचमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ कपड़े पहनें। इसके बाद शिवलिंग का पानी, कच्चा दूध, दही और शहद आदि से अभिषेक करें। इसके बाद नाग देवता का भी अभिषेक करें और दूध का भोग लगाएं। इसके बाद नाग देवता की आरती करें।

🙏🙏Astro Vedika 🌷🌷
उज्जैन का नागचंद्रेश्वर मंदिर : क्यों खुलता है सिर्फ साल में एक दिन
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हिंदू धर्म में सदियों से नागों की पूजा करने की परंपरा रही है। हिंदू परंपरा में नागों को भगवान का आभूषण भी माना गया है। भारत में नागों के अनेक मंदिर हैं, इन्हीं में से एक मंदिर है उज्जैन स्थित नागचंद्रेश्वर का,जो की उज्जैन के प्रसिद्ध महाकाल मंदिर की तीसरी मंजिल पर स्थित है।

इसकी खास बात यह है कि यह मंदिर साल में सिर्फ एक दिन नागपंचमी (श्रावण शुक्ल पंचमी) पर ही दर्शनों के लिए खोला जाता है। ऐसी मान्यता है कि नागराज तक्षक स्वयं मंदिर में रहते हैं।

नागचंद्रेश्वर मंदिर में 11वीं शताब्दी की एक अद्भुत प्रतिमा है, इसमें फन फैलाए नाग के आसन पर शिव-पार्वती बैठे हैं। कहते हैं यह प्रतिमा नेपाल से यहां लाई गई थी। उज्जैन के अलावा दुनिया में कहीं भी ऐसी प्रतिमा नहीं है।

पूरी दुनिया में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें विष्णु भगवान की जगह भगवान भोलेनाथ सर्प शय्या पर विराजमान हैं। मंदिर में स्थापित प्राचीन मूर्ति में शिवजी, गणेशजी और मां पार्वती के साथ दशमुखी सर्प शय्या पर विराजित हैं। शिवशंभु के गले और भुजाओं में भुजंग लिपटे हुए हैं।

सर्पराज तक्षक ने शिवशंकर को मनाने के लिए घोर तपस्या की थी। तपस्या से भोलेनाथ प्रसन्न हुए और उन्होंने सर्पों के राजा तक्षक नाग को अमरत्व का वरदान दिया। मान्यता है कि उसके बाद से तक्षक राजा ने प्रभु के सा‍‍‍न्निध्य में ही वास करना शुरू कर दिया।

लेकिन महाकाल वन में वास करने से पूर्व उनकी यही मंशा थी कि उनके एकांत में विघ्न ना हो अत: वर्षों से यही प्रथा है कि मात्र नागपंचमी के दिन ही वे दर्शन को उपलब्ध होते हैं। शेष समय उनके सम्मान में परंपरा के अनुसार मंदिर बंद रहता है। इस मंदिर में दर्शन करने के बाद व्यक्ति किसी भी तरह के सर्पदोष से मुक्त हो जाता है, इसलिए नागपंचमी के दिन खुलने वाले इस मंदिर के बाहर भक्तों की लंबी कतार लगी रहती है।

यह मंदिर काफी प्राचीन है। माना जाता है कि परमार राजा भोज ने 1050 ईस्वी के लगभग इस मंदिर का निर्माण करवाया था। इसके बाद सिं‍धिया घराने के महाराज राणोजी सिंधिया ने 1732 में महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। उस समय इस मंदिर का भी जीर्णोद्धार हुआ था। सभी की यही मनोकामना रहती है कि नागराज पर विराजे शिवशंभु की उन्हें एक झलक मिल जाए। लगभग दो लाख से ज्यादा भक्त एक ही दिन में नागदेव के दर्शन करते हैं।

नागपंचमी पर वर्ष में एक बार होने वाले भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन के लिए मंगलवार रात 12 बजे मंदिर के पट खुलेंगे। बुधवार नागपंचमी को रात 12 बजे मंदिर में फिर आरती होगी व मंदिर के पट पुनः बंद कर दिए जाएंगे।

नागचंद्रेश्वर मंदिर की पूजा और व्यवस्था महानिर्वाणी अखाड़े के संन्यासियों द्वारा की जाती है।

नागपंचमी पर्व पर बाबा महाकाल और भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं के लिए अलग-अलग प्रवेश की व्यवस्था की गई है। इनकी कतारें भी अलग होंगी। रात में भगवान नागचंद्रेश्वर मंदिर के पट खुलते ही श्रद्धालुओं की दर्शन की आस पूरी होगी।

नागपंचमी को दोपहर 12 बजे कलेक्टर पूजन करते है। यह सरकारी पूजा होती है। यह परंपरा रियासतकाल से चली आ रही है। रात 8 बजे श्री महाकालेश्वर प्रबंध समिति द्वारा पूजन होगा।
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17/08/2023

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01/08/2023

Bhagyaraj 4 wale sabhi Longon ko ye dates per apne sabhi Kam kerne ki kosish Kernan cahiye unke liye ye sahi dates subh hoti hai

31/07/2023

Number 3 wale long ko ye dates follow Kernan cahiye apne kisi bhi acche Kam ko kerne liye

29/07/2023

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27/07/2023

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