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08/09/2025

कुछ ग्रहण पर और जानकारी सूर्य ग्रहण तो दो प्रकार को होता है पूर्ण और खण्ड ग्रास पर चन्द्र ग्रहण इन दो प्रकार के अतिरिक्त ऐक और प्रकार का होता है जिसको छाया ग्रहण कहते हैं इस छाया ग्रहण में चन्द्रमा की रोशनी धूमिल पड़ती है।
मैंने पहले की पोस्ट में लिखा था ग्रहण में यह आवश्यक होता है पृथ्वी,, चन्द्रमा और सूर्य ऐक लाइन में हो और यह पृथ्वी और चन्द्रमा के गतिमान होने से धीरे-धीरे ग्रसित करते हैं यानी किसी भी ग्रहण का आरम्भ पूर्ण ग्रहण से नहीं हो सकता हैं आरम्भ सदा खण्ड ग्रास से होता है पृथ्वी तथा चन्द्रमा दोनों गतिमान रहते हैं इस कारण कभी खण्ड ग्रास पूर्ण में न बदल कर पुनः ग्रहण के ग्रास का मान घटने लगता है ग्रहण के समय अपने निवास पर ही भगवान का भजन करना उत्तम रहता है। धन्यवाद।

08/09/2025

यह पोस्ट मुझको कल लिखनी थी पर स्वास्थ्य समस्या के कारण लिख नहीं पाया सो आज लिख रहा हूं अधिकांश ज्योतिष को न मानने वाले लोग ग्रहण को ऐक खगोलीय घटना मानते हैं सही पर अधूरा सत्य है जितने भी सात ग्रह प्लस राहु केतु इनका संचालन भी खगोलीय घटना है पर इनके आधार पर गणणा करके फलित करते हैं इसी प्रकार की घटना ग्रहण है जो अन्तरिक्ष मे घटती है पर मानव पर प्रभाव डालती है सदा अमावस्या को सूर्यग्रहण पड़ेगा और पुर्णिमा को चन्द्र ग्रहण पर हर अमावस्या या पूर्णिमा को नहीं कारण यह है ग्रहण में सूर्य चन्द्रमा और पृथ्वी का ऐक सीधी रेखा में होने का सम्बन्ध बनने पर होता है और यह हर अमावस्या और पूर्णिमा को नहीं घटता यह एक विशेष स्थिति ही इसको अलग घटना का रूप देती है।
जब आम दिनों के अतिरिक्त ग्रहण पर सूर्य,, पृथ्वी और चन्द्रमा ऐक सीधी रेखा में होते हैं उस समय अन्तरिक्ष में विकीर्ण बहुत फैलता है इसकी आम दिनो में मात्रा कम रहती है उसको ओजोन परत पृथ्वी पर लगभग न होने की मात्रा में आने देती है पर ग्रहण पर यह स्थिति बदल जाती है इसी विकीर्ण से बचाने के लिऐ ग्रहण के समय मन्त्र पाठ करने को प्रेरित हो लोग इसलिए यह लिखा गया है ग्रहण के समय में करे जाप का दस गुना फल मिलता है ग्रहण में मन्दिरों के पट बन्द कर देते हैं ताकि लोग मन्दिर दर्शन करने घर से न निकले यह ऋषियों की बनाई व्यवस्था थी हमारे ऋषि उस समय के वैज्ञानिक थे उनको इसकी जानकारी थी इस ग्रहण का प्रभाव भी एक मास के अन्दर किसी प्राकृतिक विभीषिका के रूप में देखने को मिलेगा मानव जितनी प्रकृति से छेड़छाड़ कर रहा है प्रकृति उतना रैद्र। रूप से उसका उत्तर दे रही है मैंने अपना मत और आकलन लिखा सबका धन्यवाद।

06/09/2025

अभी ऐक पोस्ट मलंग जी की पढ़ी मैं उनको मस्त मलंग कहता हूं और उनकी पोस्ट पर वकील साहब का उत्तर और धौंस और कमेंट दोनों की लठ्ठ वाली अब इसपर अपना मत लिख रहा हूं यह दोनों पूजा के विधान है पर ऐक अलग तरीके के पहले घर में पूजा करना और घर में मन्दिर बनाकर पूजा करना का अन्तर समझें जब हम कहीं पर भी भगवान का मन्दिर बनाते हैं तो वह उनका निजी आवास जैसा हो जाता है जहां हमने उनको अपने घर में बुलाकर रहने का स्थान दिया है इस कन्डीशन में उस स्थान पर घर के मालिक का प्रवेश केवल ऐक सेवक के रूप में रहता है और उसमें प्रतिदिन प्रातः काल कीर्तन करके उठाना फिर उनकी पूजा अर्चना करना दोपहर में भोग लगाने के बाद शयन करने के लिऐ मन्दिर के पट बन्द करना आदि नियमों का पालन करते है और जब हम बिना मन्दिर बनाए पूजा करते हैं तब हमको प्रतिदिन उनका आवाहन करके बुलाना पड़ता है और पूजन के बाद उनसे अपने धाम पधारने की प्राथना करनी पड़ती है और यह जो भादों की चौथ पर गणपति स्थापित करके पूजा करते हैं इसका नियम अलग है यह कुछ नवरात्र जैसा होता है इसमें चौथ को गणपति का आगमन होता है इसी को प्रतीक रूप में गणेश जी की मूर्ति स्थापित करके आगमन करते हैं और अनन्त चौदस को वह पुनः अपने धाम को पधारते हैं इसी लिऐ उनके गमन को मूर्ति विसर्जन के रूप में करते हैं इस प्राथना के साथ अगले बरस फिर से आना मैंने जो समझा वह लिखा। धन्यवाद।

06/09/2025

अपनी पिछली पोस्ट से आगे मैंने लिखा था सूर्य से दस नक्षत्र आगे इसको केन्द्रीय प्रभाव कहते हैं ज्योतिष की भाषा में इसी को के पी वाले स्क्वायर आस्पेक्ट कहते है पर इन दोनों में अन्तर होता देखने में दशम भाव में बैठे सूर्य का प्रभाव लग्न पर आ रहा है इसमें कारण क्या है यह बहुत विस्तार लेगा सो इस पटल पर सम्भव नहीं है पर ऐक जानकारी दे रहा हूं गोचर के सूर्य के अंशों के आधार पर इस शास्त्र में अनेक के फलित करते हैं इस समय सही से याद नहीं है पर विवाह की लग्न में जो पंच बाण का विचार करते हैं वह गोचर के सूर्य के अंश से ही निर्धारित करते हैं बात पंच बाण में मृत्यु बात शल्य युक्त का त्याग अवश्य करना चाहिए सूर्य से दस नक्षत्र आगे धूम उपग्रह बैठता है जो हर काम को केवल बिगाड़ने वाला होता धूम का विचार तो अवश्य करना चाहिए इसी धूम के कारण जब गोचर का सूर्य जन्म के गोचर का सूर्य गोचर करता है तो धूम कहीं न कहीं बैठेगा वह घर निश्चित होता है इसके आधार पर जातक को बताया जा सकता है कि जन्म दिन के पास एक मास तक जातक को इस भाव‌से सम्बंधित शुभ फल नहीं मिलते हैं उपग्रह में कम से कम धूम और गुलिका का विचार करना ही चाहिए।सूर्य और चन्द्रमा के आधार पर अनेक प्रकार के फल करते हैं सबका धन्यवाद शेष अगली पोस्ट में।

04/09/2025

अपनी पिछली पोस्ट से आगे कुछ पिछली पोस्ट में जोड़ रहा हूं दूसरे घर में कन्या के बुध के साथ राहु प्रवक्ता कैसे बनाता है कन्या में राहु को स्वस्थान होना कहा गया है और यह राहु के लिऐ सुखद रहता है और कन्या में बुध चाहे जितने अंश पर हो या तो वह मूल त्रिकोण में होगा या उच्च का होगा या स्वग्रही होगा यह कन्डीशन बुध के लिऐ भी अनुकूल बनती है पर यह दोनों ग्रह यदि लगभग समान अंश पर हो और भाव मध्य अंश वर्ती हो तो अधिक उत्तम रहता है और यदि दशमेश से किसी प्रकार का सम्बन्ध बन जाए तो किसी राष्ट्रीय स्तर‌की राजनीतिक पार्टी प्रवक्ता के पद पर आसीन होने की सम्भावना बनती बुध और राहु दोनों में वाक पटुता बनती है इस लिऐ यह योग फलित होता है पर यदि इन पर किसी प्रकार का पाप प्रभाव बन गया तो दूसरा भाव धन का भी भी है तब यह ठगी को अपनी आय का साधन बना सकते हैं वाक पटुता का गुण ठगी में सहायक बनेगा।
अब जो पिछली पोस्ट में लिखा था कभी कभी राहु सब कुण्डली में ऐक ही स्थान या भाव कह लें में हो और उन भावों में ऐक ही राशि भी हो पर फल अलग अलग मिलता है इसके कारण को स्पष्ट कर रहा हूं इसमें सूर्य का आकलन करना पड़ता है यदि सूर्य के नक्षत्र से से दस नक्षत्र आगे के नक्षत्र में राहु है तो यह अधिक बुरा फल मिलता है उदाहरण से समझें सूर्य रेवती नक्षत्र में है तो सूर्य के रेवती से गिनना आरम्भ करके रेवती के बाद अश्वनी आश्लेषा नक्षत्र आया अब यदि राहु आश्लेषा नक्षत्र में है तो वह अन्य के राहु के मुकाबले बहुत अधिक बुरा फल देगा यह फल सूर्य के नक्षत्र से दस नक्षत्र आगे अन्य सभी ग्रहों पर भी लागू होगा इसका कारण समझने का प्रयास करें आपकी जानकारी में इजाफा होगा धन्यवाद शेष अगली पोस्ट में।

03/09/2025

अपनी पिछली पोस्ट से आगे राहु के लिए मैंने लिखा था यह इस प्रकार के रोग देता है जो आसानी से पकड़ में नहीं आते उनमें बुखार भी आता है जब गोचर का राहु मंगल और सूर्य दोनों से या इनमें से एक से कुछ विशेष योग बनाता है तो संचारी रोग और ऐसे बुखार जो रूप बदलते रहते हैं कभी वायरल कभी वायरल के साथ डेंगू या चिकन गुनिया का मिश्रित फीवर जो पकड़ में आने में समय लेता है और इस प्रकार के बुखार बहुत लम्बे समय तक नहीं चलते हैं लगभग एक या डेढ़ माह इतने समय में गोचर का सूर्य और मंगल के बदलने की सम्भावना बनती है और इनका प्रकोप कम होने लगता है राहु को मायावी कहा गया है इसलिए यह मनुष्य को भ्रमित करने का प्रयास करता है और यही संचारी रोग में होता है।
राहु में गुण भी हैं और अवगुण भी है गुण जब मिलते हैं जब हम इसके अवगुण को गुण में बदलते हैं कैसे यहा सवाल उठता है इसी के लिऐ उपाय करवाय जाता है उपाय में हमको इसके भ्रमित करने के अवगुण पर लगाम लगानी पड़ती है इसमें जन्मपत्री की ग्रह स्थिति के अनुसार उपाय हर जातक को बताया जाता है पर ऐक उपाय मैं बता रहा हूं उसके करने से राहु के दोषों पर लगाम अवश्य लगती है वह उपाय है भगवान श्री गणेश जी की पूजा जैसा आपका मन करे वैसे करें पर करें।
राहु पर बहुत कुछ लिखा जा सकता है पर केवल ऐक ही विषय पर बराबर पोस्ट लिखना मुझको सही कम लगता है इसलिए नहीं लिखता कुछ पोस्ट और आएगी राहु पर फिर कोई दूसरा टापिक लेंगे सबका धन्यवाद।

03/09/2025

राहु के विषय में ऐक कथा प्रसिद्ध है अमृत पान के समय की यह उस समय ऋषियों का तरीका था ज्योतिष सिखानें का उस समय कागज का अविष्कार नहीं हुआ था पेड़ के पत्तों पर अधिकांश ज्योतिष की सामग्री लिखी जाती थी सो वह कुछ कथा के रूप से सिखाते थे और कुछ श्लोक के रूप में पहले श्लोक याद करवा दिया जो केवल दो लाइन का है वह आसानी से याद होगा जाता था उसके बाद उसका अर्थ समझाते थे जो एक पैराग्राफ के बराबर होता था यहां राहु ने छल से अमृत पान करा यानी राहु में छल और बुद्धि दोनों है जो उसने मोहनी रूप का छल पकड़ लिया यह राहु का गुण उच्च शिक्षा दिलाने में काम आता है केवल दोष ही नहीं गुण भी हैं।
राहु विषाणु जन्य बीमारी का कारक है यानी जो बीमारी आसानी से पकड़ में न आए उनमें राहु का रोल होता है जैसे कैंसर राहु का आकार विशाल है इसको संकेत में बताया सूर्य को ग्रस लेता है ग्रहण के समय इस लिऐ यह अनियंत्रित ग्रोथ को शो करता है और कैन्सर में अनियंत्रित ग्रोथ होती है राहु रूप बदलने में माहिर हैं इसी लिऐ जो बीमारी आसानी से पकड़ में नहीं आती उनका कारक राहु होता है गुरु रिकवरी का ग्रह है करोना टाइम में गुरू रिकवरी का ग्रह नीच में गोचर कर रहा था और उस समय का राहु इस समय याद नहीं है पर जब भी बड़े पैमाने पर संक्रमित रोग फैलते हैं उसमें कारण राहु ही रहता है काला मोतिया आंख की बीमारी है और इसका अभी कोई विशेष इलाज नहीं निकला है इसमें भी राहु का ही हाथ होता है चन्द्रमा के साथ राहु यदि दूसरे भाव में जन्म के समय विद्यमान है तो उस जातक की आंख में काला मोतिया आवश्यक होता है शेष अगली पोस्ट में सबका धन्यवाद।

03/09/2025

हमारे हिन्दू धर्म और शास्त्र के अनुसार भादों मास की पूर्णिमा से श्राद्ध पक्ष आरम्भ होता है इस वर्ष 2025 में भादों की पूर्णिमा का आरम्भ 6 सितंबर शनिवार को भारतीय मानक समयानुसार रात्रि ऐक बज कर 42 मिनट से आरम्भ हो रहा है इस लिऐ श्राद्ध आरम्भ रविवार 7 सितम्बर को होगा इस दिन चन्द्र ग्रहण भी पड़ रहा है इन दोनों का संयोग शुभ नहीं बन रहा है कुछ प्राकृतिक दुर्घटना घटने की सम्भावना बन रही है पित्र विसर्जन अमावस्या का श्राद्ध रवीवार 21 सित्मबर को है।
जो स्त्री सुहागिन मरती है उनका श्राद्ध नवमी को होता है और नवमी का श्राद्ध 15 सितम्बर को है।
जिनके कुल‌ मे श्राद्ध करने वाला कोई पुरुष संतान नहीं होती है उनका श्राद्ध नाती करता है और यह नाना का श्राद्ध सोमवार 22 सितम्बर को कलश स्थापना से पूर्व करना उचित रहेगा।
मैंने अपना मत लिखा सबका धन्यवाद।

01/09/2025

नींद नहीं आ रही है सो पोस्ट लिखने की सोच रहा हूं मैंने जितना ज्योतिष सीखा है आज भी जब मैं कोई जन्मपत्री बनाकर तैयार कर लेता हूं यह काम तो स्वास्थ्य कम सही होने पर भी हो जाता है पर जब उसका विश्लेषण करके उपाय और फल लिखना पड़ता है वह अधूरे स्वास्थ्य के साथ नहीं हो पाता जन्मपत्री में आत्मसात होकर ही फल निकल पाता है और इसमें मुझको आज भी प्रभु की प्रेरणा की आवश्यकता पड़ती है उस समय मैं मैं नहीं होता फल लिखना कुछ और चाहता हूं पर लिख कुछ और जाता है और जो लिख गया वह मैं काटता नहीं हूं प्रभु की इच्छा से लिखा है घटेगा यह मेरा विश्वास रहता है मैं आज तक समझ नहीं पाया यह कैसे घटता है।
कुछ उन ऋषियों के बारे में जिन्होंने इस शास्त्र की रचना करी उस समय कोई वैज्ञानिक साधन तो थे नहीं बहुत सीमित साधनों के रहते हमारे ऋषियों ने इष्ट कृपा से ही इस शास्त्र की गणणा और फलित सिखाया आपको सब पका पकाया मिल रहा है पर उन्होंने तो अपने आत्म बल से इसको प्राप्त करा यह एक जीवन्त शास्त्र है पहले अनेक बार ऐसा अनुभव रहा है केवल जन्म लग्न के अक्षर जैसे खुद बोलकर अपना फल बता रहे हैं और वह फल सदा घटता है।
मैं फलित करनें में गोचर ग्रह स्थिति का विचार करके ही फलित करता हूं वरना फलित में स्थूलता रहती है फेसबुक पर जो कुण्डली विश्लेषण मैं देखता हूं उसमें गोचर का अभाव रहता है वह गोचर‌के बिना कैसे विश्लेषण कर लेते हैं मैं नहीं जानता पर बिना गोचर के मैं नहीं कर पाता।सबका धन्यवाद।

01/09/2025

फलित की अपनी पिछली पोस्ट से आगे हम जब यह कहते हैं यह ग्रह नीच का अशुभ है यह अस्त है कमजोर है यह राहु के साथ है इसलिए खराब है जैसे गुरु राहु के साथ चाण्डाल योग बनाता है यह भी ग़लत है कैसे समझते हैं ग्रह आपकी जन्मकुंडली में आपके पिछले जन्मों के कर्मों की जानकारी देते हैं फिर वह अच्छे या खराब कैसे होंगे वह तो आपके पास्ट की जानकारी दे रहे हैं अच्छे और खराब तो आपके कर्म है पिछले जन्म के और जब आप ग्रहों का अध्ययन इस प्रकार से करते हैं तो आपको रास्ते दिखाई पड़ते हैं क्या उपाय करें इसको श्री पाराशर जी ने रिण करके लिखा है ताकि लोगों को बुरा न लगे इन रिणों को समझ कर उपाय करवाने से जातक को बहुत लाभ होता है और उपाय की सीमा होती है कुछ भाग्य का फल भोगना ही पड़ता है हर दोष का परिहार नहीं होता मैं अपने जीवन से जुड़ी एक घटना शेयर कर रहा हूं मेरी छोटी लड़की के केवल दो लड़कियां हैं मैंने बहुत प्रयास करा पर उसके भाग्य में पुत्र का सुख नहीं था सो मेरा उपाय सफल नहीं हो पाया यह जानकारी मैं इसलिए भी दे रहा हूं मुझसे जादू की आशा न करें हम लोग प्रयास करते हैं कि जातक का कष्ट कम हो पर भगवान की इच्छा सर्वोपरि है यदि वह हां नहीं करते तो उपाय में सफलता नहीं मिलती।
आप लोग ज्योतिषी से तो प्रश्न कर लेते हैं अपने लिए भी कुछ नहीं कर पाए कभी यही डाक्टर से प्रश्न करे उसके घर के लोग बीमार क्यों पड़ते हैं और क्यों मरते हैं कर नहीं पाएंगे केवल साफ्ट‌ टार्गेट ज्योतिषी ही होता है मेरा यह सन्देश है उपाय की सीमा होती है कुछ कष्ट भोगकर ही कटते हैं उपाय से नहीं शेष फिर अगली पोस्ट में धन्यवाद।

01/09/2025

आज कुछ फलित के नियम जो पुस्तकों में होते हैं और वह जो पुस्तकों में नहीं होते केवल अनुभव से आते हैं और इनको केवल वह सीख पाता है जो तर्क न करे ऐक तर्क सार्थक होता है मैं उसकी प्रशंसा करता हूं ऐक निरर्थक होता है जो केवल अपन बात सही साबित करने के लिऐ होता है मैं उसको पसन्द नहीं करता सबसे पहले राहु का उदाहरण लें रहा हूं इसका फल सबसे विचित्र होता है आकलन करना आसान तो बिल्कुल नहीं होता और राहु की गणणा को तथा चन्द्र की गणणा को आधार बनाकर डेस्टिनी प्वाइंट का निर्णय करते हैं फलित में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
राहु लग्न में यह फल देता है यह आपको फलित की पुस्तकों में मिलेगा और यह ग़लत नहीं है पर यह आरम्भिक ज्ञान है ऐक उदाहरण से इसको समझिए गणित सिखानें का आरम्भ सदा गिनती से करते हैं और गिनती के बाद दूसरे कदम में जोड़ना सिखाते हैं फिर गुणा करना और अन्त में भाग लेना कोई भी गणित का अध्यापक छात्र को गुणा या भाग से सिखाना आरम्भ करके गणित नहीं पढ़ा सकता इस उदाहरण का सन्देश समझें यदि आरम्भ में बहुत विस्तार से फल समझाया जायेगा तो जातक सीख नहीं पाऐगा अब राहु लग्न में यह फल देता है यह अन्य सभी ग्रहो पर भी लागू होगा फिर सिखाया जाएगा राहु मेष लग्न में यह फल देगा वृषभ में यह फल देगा फिर लग्न में इस नक्षत्र में यह फल देगा और इस नक्षत्र में यह फल देगा फिर राहु लग्न में सन्धि में या भाव मध्य पर है यह सब ऐक साथ नहीं पढ़ा सकते धीरे धीरे ही समझाने का प्रयास होता है राहु को शास्त्र में नैसर्गिक पाप संज्ञक माना है यह इसका अवगुण है पर इसमें गुण भी बहुत है यह अनुकूल स्थिति में पंचम भाव में बैठ कर पी एच डी करने की क्षमता भी देता है इसलिए केवल बुरा कहना सिरे से ग़लत है राहु में ऐक गुण होता है येन-केन प्रकारेण अपनी बात तर्क के माध्यम से मनवा लेना यही रिसर्च का गुण प्रदान करता है अब आप निर्णय ले इसको केवल खराब कहना इसके साथ अन्याय नहीं है राहु मंगल शनि के साथ उचित संयोग करके उच्चकोटि का न्यूरो सर्जन भी बनाता है यह सब यदि आरम्भ में ऐक साथ सिखानें का प्रयास करें तो छात्र भाग जाएगा इसलिए राहु लग्न में यह फल देता है यह प्रारम्भिक ज्ञान है इसको समझने का प्रयास करें मैं तो सदा कहता हूं इस शास्त्र को एक जीवन में नहीं सीख सकते और बिना इष्ट कृपा के नहीं यह मेरा मत है आप सहमत नहीं होना चाहें तो न हो पर मैं इसी मत को ग्रहण करता हूं शेष अगली पोस्ट में सबका धन्यवाद।

01/09/2025

आज फिर ज्योतिष में उस विषय पर जिसमें मतभेद अधिक है ज्योतिष गणित प्रधान है और मेरा मत है ज्योतिष इष्ट कृपा प्रधान है गणित की इसमें सहायक भूमिका होती है यह मैं अपना मत लिख रहा हूं अन्य सहमत हो आवश्यक नहीं है अपने जीवन की सत्य घटना मैंने ज्योतिष सीखने का आरम्भ श्री त्रिवेणी प्रसाद तिवारी जी से करा था वह मेरे मित्र भी थे उनको वाणी सिद्ध थी जो कह देते थे वह शत-प्रतिशत सही घटता था पर गणित में महारत नहीं थी उनका भतीजा रमाकांत तिवारी था जिसने ज्योतिष सीखने का आरम्भ मुझसे और श्री त्रिवेणी प्रसाद तिवारी जी से करा बाद में ऐक वर्ष का के पी सीखने का कोर्स करा और उसके बाद लखनऊ विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग में दो वर्षों का ज्योतिष में ऐम ऐ का कोर्स करा रमाकांत जब इन्टर के पेपर्स दे चुका तब उसने अपने ताऊ श्री त्रिवेणी प्रसाद तिवारी जी से प्रश्न करा दादा मेरे कितने मार्क्स आएंगे तो वह बोले ऐसे कैसे बताएं किस तारीख को कौन से विषय का पेपर था वह बताओ और किस समय था रमाकांत बताता गया और वह एक से दो मिनट का समय लगाकर केवल हाथ पर गिन कर अंक बताते गए और जितना अंक का योग बताया था उतना ही निकला ऐक अंक का भी अन्तर नहीं था बाद में मैंने रमाकांत से कई बार यह बात कही अब तुम और यह मैं दोनों ज्योतिष गणित उनसे बहुत अधिक जानते हैं पर यह गणणा करके बताने की क्षमता दोनों में नहीं है कि कितने अंक आएंगे उनके उत्तर में ऐक अंक का अन्तर नहीं था और तुम या मैं 5 अंक के प्लस माइनस पर भी उत्तर नहीं निकाल पाएंगे सो यह केवल सात्विक आचरण और इष्ट कृपा से सम्भव हो पाता है केवल गणित से नहीं श्री त्रिवेणी प्रसाद तिवारी जी से ऐक बार ऐक टी वी की रिपेयरिंग करने वाले ने पूंछा था दादा ऐक टी वी में खराबी नहीं मिल पा रही है तब उन्होंने गणणा करके बताया की टी वी की चेसिस को दांए से बांए इतने इन्च नाप कर निशान लगा लो और फिर चौड़ाई में इतनी दूरी पर निशान लगा लो फिर दोनों को एक रेखा से मिला लो जहां मिलान होगा वहीं खराबी है और वह खराबी वहीं मिली क्या आप लोग जो गणित को महत्वपूर्ण मानते हैं वह इस पर कुछ कहना चाहेंगे मेरा सौभाग्य है मुझको ऐसे लोगों से सीखने को मिला इसीलिए मैं इष्ट कृपा को प्रधान मानता हूं गणित को नहीं।
मैंने पहले भी लिखा था और पुनः लिख रहा हूं कभी करके देखिए जब आप जन्मपत्री फलित के लिऐ उठाते हैं तो सबसे पहले उसको माथे से लगाकर अपने आराध्य का ध्यान करें उसके बाद जन्मपत्री खोलकर देखना आरम्भ करें आपके फलित में सुधार आने लगेगा।सबका धन्यवाद।

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