30/12/2022
श्री हरि के पावन धाम में आपका हार्दिक स्वागत है राजमाता🙏
ऐसी पुण्य आत्मा को
यदि आधुनिक युग की #जीजा_बाई की उपमा से सुशोभित करें, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
हमारे तपोनिष्ठ कर्मयोगी को
उत्कृष्ट संस्कारों से दीक्षित करने वाली इस राजमाता को अश्रुपूरित श्रद्धान्जलि...⚘️🙏⚘️
वह आज की जीजाबाई ही थीं
वीर प्रसूता भारत भू-धरा माँ के रूप में अवतरित होकर ऐसी संतान गढ़ती है , जो धरती के भार को कम कर उसे अपनी परिक्रमा करते रहने में निश्चिंति प्रदान करती है। रेणुका, कौशल्या, देवकी, यशोदा से लेकर जीजाबाई की परंपरा में एक नाम हीराबेन जी का है।
संतान को किसी उद्देश्य के लिए तैयार करने में सर्वाधिक तप जिसे करना पड़ता है, सर्वाधिक त्याग जिसे करना पड़ता है वह माँ ही है।
माँ होना केवल बालक को जन्म देना नही होता। माँ को जैविक जननी के साथ सांस्कृतिक जननी की भी भूमिका निभानी पड़ती है।
यह सार्वभौमिक नियम है कि मनुष्य की सबसे बड़ी ताकत ही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी होती है, माँ की कोख से ताकतवर देह का कोई हिस्सा नहीं होता पर उसी कोख से तमाम ऐसे खलनायक पैदा हुए जिनसे पूरा संसार कराह उठा।
इसका एक कारण यह भी है कि गांधारी जैसी प्रज्ञावान माँओं ने अपनी आँखों पर "मोह की पट्टी" बांध रखी थी। उन्होंने जैविकीय पिंड तो तैयार किये पर उसे सांस्कृतिक रूप से तैयार न कर सकीं।
संतान के विचलन और उसके गुणों के प्रति सजग माँ को अपने अस्तित्व को भूलना पड़ता है। यह कार्य अत्यधिक दुरूह है पर असाधारण कार्य हेतु असाधारण तप की आवश्यकता होती है। यह असाधारण कार्य माँ ही कर सकती है। यदि वह ममतामयी है, तो वह अत्यंत कठोर भी है, जो अपनी संतान को अनुशासन से रंचमात्र नही टलने देती।
वह अनुशासन बालक के संस्कार में आ जाता है।
मुझे हर बार याद आता है कि जब भी प्रधानमंत्री जी माँ से मिलने जाते थे तो माँ उन्हें कुछ न कुछ निर्देश देती थीं, उन निर्देशों का एक तरीका भगवदगीता के रूप में भी होता था जो वह मोदी जी को प्रदान करती थीं।
हीरा बेन माँ ऐसी लेखक हैं , जिन्होंने पुस्तक को लिख कर उसे लोकार्पित कर दिया। जब लोक ने उसे अपनी लिखावट मान लिया तो माँ ने अपना अपना अधिकार भी लोक को दे दिया। अब पुस्तक माँ भारती की थाती हो गयी।
एक माँ के लिए इससे बढ़ कर और निश्चिंत होने वाली बात क्या हो सकती है। अपने दुलार का विकेंद्रीकरण करना माँ के लिए अत्यंत कठिन होता है, पर जिस माँ ने अपनी संतान को जनता के दुःख को दूर करने को तैयार किया हो वह विरली ही होती है, वही माँ उस परम्परा में आती है जिस परम्परा को माता जिजाऊ धारण करती हैं।
आज माता हीराबेन ने अपने नरेंद्र को भारत माँ को सौंप कर अपनी राह ली हैं, यह शोक का नहीं, अपितु आनंद का विषय है।
भारत माता की जय ...🙏🙏🙏