31/05/2025
लिवर ट्रांसप्लांट : कैसे होता है डोनर ऑपरेशन I डॉ विवेक गुप्ता, लिवर एवम गैस्ट्रो सर्जन, मेदांता, लखनऊ I
लिवर ट्रांसप्लांट एक जटिल ऑपरेशन है । लिवर ट्रांसप्लांट की जरूरत उन मरीजों को पड़ती है जिनका की लिवर बहुत कमजोर हो चुका है । लिवर आपका सबसे बड़ा आंतरिक अंग है और कई महत्वपूर्ण कार्य करता है । लिवर ट्रांसप्लांट एक अस्वस्थ लिवर को स्वस्थ लिवर से बदलने की एक शल्य प्रक्रिया है । लीवर कमजोर होने की बीमारी को सिरोसिस के नाम से भी जाना जाता है । सिरोसिस कई वजह से हो सकता है जिसमें अत्यधिक शराब पीना तथा हेपिटाइटिस बी एवं हेपिटाइटिस सी तथा डायबिटीज़ एवं मोटापे की वजह से लिवर में कमजोरी आना आम वजह है । बच्चों में कई जन्मजात बिमारी जैसे कि बिलियरी एट्रेसिया, विल्सन्स डिजीज आदि से लिवर जनम से भी खराब हो सकता है । हेपेटाइटिस बी, एवं सी मरीज को इन्फेक्टेड ब्लड चलने से अथवा नीडल द्वारा ड्रग के सेवन से तथा संक्रमित व्यक्ति से सेक्शुअल रिलेशन से भी ट्रांसमिट हो सकता है। यह बिमारी माता द्वारा बच्चे में जन्म के समय भी ट्रांसमिट हो सकती है। यह बिमारी खाने से तथा मरीज की देखभाल से या हाथ लगाने से नहीं फैलती है। लंबे समय तक हेपेटाइटिस बी एवं सी वायरस रहने से लिवर सिरोसिस हो सकती है। सिरोसिस एक गंभीर बिमारी है।
लिवर सिरोसिस होने पे, मरीज को पीलिया, खून की उल्टी तथा पेट में पानी आने जैसी परेशानियां होती हैं । सिरोसिस की बीमारी कई बार सिर्फ पेट में भारीपन या पैरों में सूजन या कम भूख लगने से भी शुरू हो सकती है । इसका मुख्य लक्षण पीलिया भी हो सकता है । पीलिया अंग्रेजी भाषा में जॉन्डिस नाम से जाना जाता है। पीलिया बिलीरुबिन नाम के पदार्थ के जमा होने की वजह से हो जाता है जिसमें की आंखें वह चमड़ी का रंग पीला हो जाता है यह बिलुरुबिन लीवर के द्वारा मेटाबोलाइज्ड किया जाता है तथा लीवर कमजोर होने की वजह से बिलीरुबिन शरीर में में जमा हो जाता है तथा पीलिया हो जाता है । पीलिया के अलावा मरीज को कई अन्य तरह की परेशानी भी हो सकती हैं । मरीज को उल्टी के रास्ते या फिर के रास्ते खून आ सकता है या काले रंग का मल भी हो सकता है, इसके अलावा पेट में पानी भी भर सकता है । लिवर कमजोर हो जाने से लिवर काफी सख्त हो जाता है तथा इसकी वजह से पेट में खून की धमनियों में अत्याधिक प्रेशर बनने से पेट में पानी आ जाना तथा आंतों के अंदर खून की धमनियों का फूल जाने से ब्लीडिंग का खतरा हो जाता है । ऐसे मरीज को अचानक खून की उल्टी होने से गंभीर हालत पैदा हो सकती है । यदि पेट में पानी आ गया है और खून की उल्टी हुई है तो यह लिवर की बीमारी के गंभीर होने का सूचक है । आप डॉक्टर गैस्ट्रोलॉजिस्ट लिवर स्पेशलिस्ट को दिखाकर इसका इलाज तुरंत शुरू कराएं पेट में पानी के लिए डॉक्टर की सलाह लें । इसमें डॉक्टर द्वारा ज्यादातर नमक कम खाने या पानी कम पीने की सलाह दी जाती है तथा ड्यूरेटिक नाम की दवाई ई जिससे कि अत्यधिक पेशाब होता है उससे पानी को निकालने की कोशिश की जाती है । इंटेस्टाइन में सूजी हुई खून की धमनियों को एंडोस्कोपी और बेंडिंग द्वारा कंट्रोल किया जाता है ताकि उनमें रक्तस्राव ना हो दवाइयों द्वारा पानी कम करने से तथा बैंडिंग की प्रक्रिया करने से कुछ हद तक इस बीमारी को कंट्रोल कर सकते हैं परंतु लिवर सिरोसिस होने से अंदरूनी कमजोरी बनी रहती है तथा मरीज की जान को खतरा बना रहता है लिवर सिरोसिस के बढ़ जाने से मरीज को इनके फलों को एन्सेफेलोपैथी हो सकती है तथा मरीज को उलझन या अधिक नींद आना या फिर बेहोशी की हालत भी हो सकती है लिवर द्वारा संचालित पाचन तंत्र बहुत कमजोर हो जाता है इसकी वजह से मरीज की मांसपेशियां काफी कमजोर हो जाती है तथा वजन भी कम हो जाता है एवं एल्ब्यूमिन की मात्रा भी कम हो जाती है मरीज को एल्ब्यूमिन देने की सलाह भी दे सकते हैं ।हैं।सिरोसिस में लिवर में कैंसर बनने की भी संभावना रहती है। सिरोसिस एडवान्स हो जाने के उसके उपचार के लिए आपको डॉक्टर लिवर ट्रांसप्लांट के लिए एडवाइस कर सकते हैं।
इस समय लिवर ट्रांसप्लांट की सक्सेस रेट 90 se 95 प्रतिशत होने के कारण यह एक कारगर उपाय है। लिवर ट्रांसप्लांट - तकनीकी रूप से कठिन सर्जरी मानी जाती है। लिवर सर्जन को विशेष तकनीकों में प्रशिक्षित होना पड़ता है। लिवर ट्रांसप्लांट से पहले मरीज की कई तरह की जांच होती हैं इसमें की ऑपरेशन के लिए फिटनेस के टेस्ट होते हैं लिवर ट्रांसप्लांट ऑपरेशन में मरीज का खराब लिवर निकालकर नया लिवर लगाया जाता है नया लिवर डोनर से प्राप्त होता है अधिकतर रूप से यह मरीज के निकटतम संबंधियों द्वारा ही दिया जाता है जैसे कि पति पत्नी भाई बहन या बच्चों या माता-पिता द्वारा लिवर एक कैडेवर के द्वारा भी प्राप्त हो सकता है परंतु अभी हमारे देश में मृत्यु के बाद लिवर डोनेशन करने की संख्या काफी कम है तथा लिवर ट्रांसप्लांट के मरीज को ऐसे में कई महीनों या फिर सालों तक भी वेट करना पड़ सकता है जिस में जिस दौरान उसकी कंडीशन खराब भी हो सकती है इसलिए ज्यादातर कैसे इसमें मैं नजदीकी रिश्तेदारों द्वारा ही लिवर डोनेशन लिया जाता है में लिवर डोनेशन सर्जरी में लिवर का करीब 50 to 60% परसेंट हिस्सा निकाल दिया जाता है डोनेशन से पहले डोनर के कई तरह के टेस्ट होते हैं जिसमें कि डोनर की जनरल ब्लड टेस्ट जनरल फिजिकल टेस्ट तथा लीवर की अंदरूनी संरचना की जानकारी ली जाती है इसमें सीटी स्कैन करा जाता है ताकि यह देखा जा सके कि लिवर को सही तरीके से विभाजित किया जा सकता है कि नहीं डोनर का ब्लड ग्रुप मरीज के लीवर से मैचिंग होना चाहिए या फिर O ब्लड ग्रुप होना चाहिए का होना चाहिए डोनेशन के लिए कमेटी द्वारा डोनेशन के लिए डोनर को सरकार या अस्पताल द्वारा बनाई हुई कमेटी से अप्रूव किया जाता है ऑपरेशन करीब 8 घंटे का होता है तथा डोनर को अस्पताल में करीब 7 दिन पड़ता है रहना पड़ता है डोनेशन की प्रक्रिया में जान जाने का जोखिम तथा कॉम्प्लिकेशन होने का चांस 1% से भी कम है I कुछ दिनों तक मामूली तकलीफ रह सकती है I मेदांता लखनऊ में यह डोनर ऑपरेशन अत्याधुनिक रोबोटिक सर्जरी द्वारा उपलब्ध है, जिससे की डोनर को कम से कम चीरा आता है तथा दर्द में भी आराम रहता है I करीब 3 महीने में डोनर का लिवर वापस बड़ा हो जाता है लिवर डोनेशन के बाद करीब 1 से 3 महीने में मरीज पूरी तरह से स्वस्थ महसूस करता है तथा दोनों को डोनर को कोई लंबे समय तक दवाई नहीं चलती है
लिवर ट्रांसप्लांट ऑपरेशन करीब 12 घंटे चलता है इसमें मरीज का खराब लिवर पूरी तरह से निकाल दिया जाता है तथा नए लीवर को उसके स्थान पर लगा दिया जाता है इसमें लिवर में आने वाली खून की सप्लाई की नालियों को जोड़ा जाता है पित्त की नली को जोड़ा जाता है एवं लीवर से खून की सप्लाई वापस ले जाने वाली धमनियों को हॉट से जोड़ा जाता है लिवर ट्रांसप्लांट एक बहुत बड़ा ऑपरेशन है इसका सक्सेस रेट करीब 90% है लिवर ट्रांसप्लांट के बाद कॉन्प्लिकेशन हो सकते हैं जैसे कि रिजेक्शन, इंफेक्शन, ब्लीडिंग, पित्त का स्राव हर्निया आदि ट्रांसप्लांट के बाद करीब 5 से 7 दिन आईसीयू में रखा जाता है तथा करीब 15 दिन के अस्पताल में रखा जाता है मरीज को ऑपरेशन के बाद कई तरह की सावधानियां बरतनी होती है जैसे कि खानपान का विशेष ध्यान रखना तथा भीड़ से बचना इसके अलावा मरीज के रेगुलर बेस पर टेस्ट कराए जाते हैं जाते हैं मरीज को रिजेक्शन व इंफेक्शन से बचाने के लिए दवाइयां दी जाती हैं यह दवाइयां शुरुआत में ज्यादा होती है धीरे-धीरे कम की जाती है पर कुछ ताउम्र चलती है दवाइयों के अलावा मरीज की जनरल सेहत का भी काफी ध्यान रखना पड़ता है जैसे कि ब्लड प्रेशर एवं शुगर को कंट्रोल रखना तथा नियमित व्यायाम करना मरीज को एक नई जिंदगी मिल सकती है तथा उसका लीवर नया लेकर कई सालों तक बढ़िया काम कर सकता है मरीज अपनी पूरी नार्मल जिंदगी जी सकता है
Dr Vivek Gupta, Senior Consultant, Liver Transplant and Hepatobiliary Surgery, Medanta Lucknow. Phone number 081728 89259