Liver and Gastro Care

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हम लिवर और गैस्ट्रो से संबंधित बीमारियों या विकारों से पीड़ित व्यक्तियों को चिकित्सा ध्यान और समर्थन प्रदान करने पर केंद्रित है। आइये यहाँ डॉक्टर, मरीज़ और देखभाल करने वाले एक साथ आकर अपने अनुभव, ज्ञान और सलाह साझा करें।

31/05/2025

लिवर ट्रांसप्लांट : कैसे होता है डोनर ऑपरेशन I डॉ विवेक गुप्ता, लिवर एवम गैस्ट्रो सर्जन, मेदांता, लखनऊ I
लिवर ट्रांसप्लांट एक जटिल ऑपरेशन है । लिवर ट्रांसप्लांट की जरूरत उन मरीजों को पड़ती है जिनका की लिवर बहुत कमजोर हो चुका है । लिवर आपका सबसे बड़ा आंतरिक अंग है और कई महत्वपूर्ण कार्य करता है । लिवर ट्रांसप्लांट एक अस्वस्थ लिवर को स्वस्थ लिवर से बदलने की एक शल्य प्रक्रिया है । लीवर कमजोर होने की बीमारी को सिरोसिस के नाम से भी जाना जाता है । सिरोसिस कई वजह से हो सकता है जिसमें अत्यधिक शराब पीना तथा हेपिटाइटिस बी एवं हेपिटाइटिस सी तथा डायबिटीज़ एवं मोटापे की वजह से लिवर में कमजोरी आना आम वजह है । बच्चों में कई जन्मजात बिमारी जैसे कि बिलियरी एट्रेसिया, विल्सन्स डिजीज आदि से लिवर जनम से भी खराब हो सकता है । हेपेटाइटिस बी, एवं सी मरीज को इन्फेक्टेड ब्लड चलने से अथवा नीडल द्वारा ड्रग के सेवन से तथा संक्रमित व्यक्ति से सेक्शुअल रिलेशन से भी ट्रांसमिट हो सकता है। यह बिमारी माता द्वारा बच्चे में जन्म के समय भी ट्रांसमिट हो सकती है। यह बिमारी खाने से तथा मरीज की देखभाल से या हाथ लगाने से नहीं फैलती है। लंबे समय तक हेपेटाइटिस बी एवं सी वायरस रहने से लिवर सिरोसिस हो सकती है। सिरोसिस एक गंभीर बिमारी है।
लिवर सिरोसिस होने पे, मरीज को पीलिया, खून की उल्टी तथा पेट में पानी आने जैसी परेशानियां होती हैं । सिरोसिस की बीमारी कई बार सिर्फ पेट में भारीपन या पैरों में सूजन या कम भूख लगने से भी शुरू हो सकती है । इसका मुख्य लक्षण पीलिया भी हो सकता है । पीलिया अंग्रेजी भाषा में जॉन्डिस नाम से जाना जाता है। पीलिया बिलीरुबिन नाम के पदार्थ के जमा होने की वजह से हो जाता है जिसमें की आंखें वह चमड़ी का रंग पीला हो जाता है यह बिलुरुबिन लीवर के द्वारा मेटाबोलाइज्ड किया जाता है तथा लीवर कमजोर होने की वजह से बिलीरुबिन शरीर में में जमा हो जाता है तथा पीलिया हो जाता है । पीलिया के अलावा मरीज को कई अन्य तरह की परेशानी भी हो सकती हैं । मरीज को उल्टी के रास्ते या फिर के रास्ते खून आ सकता है या काले रंग का मल भी हो सकता है, इसके अलावा पेट में पानी भी भर सकता है । लिवर कमजोर हो जाने से लिवर काफी सख्त हो जाता है तथा इसकी वजह से पेट में खून की धमनियों में अत्याधिक प्रेशर बनने से पेट में पानी आ जाना तथा आंतों के अंदर खून की धमनियों का फूल जाने से ब्लीडिंग का खतरा हो जाता है । ऐसे मरीज को अचानक खून की उल्टी होने से गंभीर हालत पैदा हो सकती है । यदि पेट में पानी आ गया है और खून की उल्टी हुई है तो यह लिवर की बीमारी के गंभीर होने का सूचक है । आप डॉक्टर गैस्ट्रोलॉजिस्ट लिवर स्पेशलिस्ट को दिखाकर इसका इलाज तुरंत शुरू कराएं पेट में पानी के लिए डॉक्टर की सलाह लें । इसमें डॉक्टर द्वारा ज्यादातर नमक कम खाने या पानी कम पीने की सलाह दी जाती है तथा ड्यूरेटिक नाम की दवाई ई जिससे कि अत्यधिक पेशाब होता है उससे पानी को निकालने की कोशिश की जाती है । इंटेस्टाइन में सूजी हुई खून की धमनियों को एंडोस्कोपी और बेंडिंग द्वारा कंट्रोल किया जाता है ताकि उनमें रक्तस्राव ना हो दवाइयों द्वारा पानी कम करने से तथा बैंडिंग की प्रक्रिया करने से कुछ हद तक इस बीमारी को कंट्रोल कर सकते हैं परंतु लिवर सिरोसिस होने से अंदरूनी कमजोरी बनी रहती है तथा मरीज की जान को खतरा बना रहता है लिवर सिरोसिस के बढ़ जाने से मरीज को इनके फलों को एन्सेफेलोपैथी हो सकती है तथा मरीज को उलझन या अधिक नींद आना या फिर बेहोशी की हालत भी हो सकती है लिवर द्वारा संचालित पाचन तंत्र बहुत कमजोर हो जाता है इसकी वजह से मरीज की मांसपेशियां काफी कमजोर हो जाती है तथा वजन भी कम हो जाता है एवं एल्ब्यूमिन की मात्रा भी कम हो जाती है मरीज को एल्ब्यूमिन देने की सलाह भी दे सकते हैं ।हैं।सिरोसिस में लिवर में कैंसर बनने की भी संभावना रहती है। सिरोसिस एडवान्स हो जाने के उसके उपचार के लिए आपको डॉक्टर लिवर ट्रांसप्लांट के लिए एडवाइस कर सकते हैं।
इस समय लिवर ट्रांसप्लांट की सक्सेस रेट 90 se 95 प्रतिशत होने के कारण यह एक कारगर उपाय है। लिवर ट्रांसप्लांट - तकनीकी रूप से कठिन सर्जरी मानी जाती है। लिवर सर्जन को विशेष तकनीकों में प्रशिक्षित होना पड़ता है। लिवर ट्रांसप्लांट से पहले मरीज की कई तरह की जांच होती हैं इसमें की ऑपरेशन के लिए फिटनेस के टेस्ट होते हैं लिवर ट्रांसप्लांट ऑपरेशन में मरीज का खराब लिवर निकालकर नया लिवर लगाया जाता है नया लिवर डोनर से प्राप्त होता है अधिकतर रूप से यह मरीज के निकटतम संबंधियों द्वारा ही दिया जाता है जैसे कि पति पत्नी भाई बहन या बच्चों या माता-पिता द्वारा लिवर एक कैडेवर के द्वारा भी प्राप्त हो सकता है परंतु अभी हमारे देश में मृत्यु के बाद लिवर डोनेशन करने की संख्या काफी कम है तथा लिवर ट्रांसप्लांट के मरीज को ऐसे में कई महीनों या फिर सालों तक भी वेट करना पड़ सकता है जिस में जिस दौरान उसकी कंडीशन खराब भी हो सकती है इसलिए ज्यादातर कैसे इसमें मैं नजदीकी रिश्तेदारों द्वारा ही लिवर डोनेशन लिया जाता है में लिवर डोनेशन सर्जरी में लिवर का करीब 50 to 60% परसेंट हिस्सा निकाल दिया जाता है डोनेशन से पहले डोनर के कई तरह के टेस्ट होते हैं जिसमें कि डोनर की जनरल ब्लड टेस्ट जनरल फिजिकल टेस्ट तथा लीवर की अंदरूनी संरचना की जानकारी ली जाती है इसमें सीटी स्कैन करा जाता है ताकि यह देखा जा सके कि लिवर को सही तरीके से विभाजित किया जा सकता है कि नहीं डोनर का ब्लड ग्रुप मरीज के लीवर से मैचिंग होना चाहिए या फिर O ब्लड ग्रुप होना चाहिए का होना चाहिए डोनेशन के लिए कमेटी द्वारा डोनेशन के लिए डोनर को सरकार या अस्पताल द्वारा बनाई हुई कमेटी से अप्रूव किया जाता है ऑपरेशन करीब 8 घंटे का होता है तथा डोनर को अस्पताल में करीब 7 दिन पड़ता है रहना पड़ता है डोनेशन की प्रक्रिया में जान जाने का जोखिम तथा कॉम्प्लिकेशन होने का चांस 1% से भी कम है I कुछ दिनों तक मामूली तकलीफ रह सकती है I मेदांता लखनऊ में यह डोनर ऑपरेशन अत्याधुनिक रोबोटिक सर्जरी द्वारा उपलब्ध है, जिससे की डोनर को कम से कम चीरा आता है तथा दर्द में भी आराम रहता है I करीब 3 महीने में डोनर का लिवर वापस बड़ा हो जाता है लिवर डोनेशन के बाद करीब 1 से 3 महीने में मरीज पूरी तरह से स्वस्थ महसूस करता है तथा दोनों को डोनर को कोई लंबे समय तक दवाई नहीं चलती है
लिवर ट्रांसप्लांट ऑपरेशन करीब 12 घंटे चलता है इसमें मरीज का खराब लिवर पूरी तरह से निकाल दिया जाता है तथा नए लीवर को उसके स्थान पर लगा दिया जाता है इसमें लिवर में आने वाली खून की सप्लाई की नालियों को जोड़ा जाता है पित्त की नली को जोड़ा जाता है एवं लीवर से खून की सप्लाई वापस ले जाने वाली धमनियों को हॉट से जोड़ा जाता है लिवर ट्रांसप्लांट एक बहुत बड़ा ऑपरेशन है इसका सक्सेस रेट करीब 90% है लिवर ट्रांसप्लांट के बाद कॉन्प्लिकेशन हो सकते हैं जैसे कि रिजेक्शन, इंफेक्शन, ब्लीडिंग, पित्त का स्राव हर्निया आदि ट्रांसप्लांट के बाद करीब 5 से 7 दिन आईसीयू में रखा जाता है तथा करीब 15 दिन के अस्पताल में रखा जाता है मरीज को ऑपरेशन के बाद कई तरह की सावधानियां बरतनी होती है जैसे कि खानपान का विशेष ध्यान रखना तथा भीड़ से बचना इसके अलावा मरीज के रेगुलर बेस पर टेस्ट कराए जाते हैं जाते हैं मरीज को रिजेक्शन व इंफेक्शन से बचाने के लिए दवाइयां दी जाती हैं यह दवाइयां शुरुआत में ज्यादा होती है धीरे-धीरे कम की जाती है पर कुछ ताउम्र चलती है दवाइयों के अलावा मरीज की जनरल सेहत का भी काफी ध्यान रखना पड़ता है जैसे कि ब्लड प्रेशर एवं शुगर को कंट्रोल रखना तथा नियमित व्यायाम करना मरीज को एक नई जिंदगी मिल सकती है तथा उसका लीवर नया लेकर कई सालों तक बढ़िया काम कर सकता है मरीज अपनी पूरी नार्मल जिंदगी जी सकता है
Dr Vivek Gupta, Senior Consultant, Liver Transplant and Hepatobiliary Surgery, Medanta Lucknow. Phone number 081728 89259

12/04/2025

लीवर प्रत्यारोपण के बाद मरीजों को स्वस्थ होते देखना वास्तव में संतोषप्रद है।

Always happy to see patient recover well after liver transplant. Thank to our patient Mr Tiwari for sharing a nice feedback.

16/03/2025

कैंसर श्रृंखला: डॉ. विवेक गुप्ता, एमएस, एफएसीएस, लीवर और गैस्ट्रो सर्जन, लखनऊ (उत्तर प्रदेश).

गॉल ब्लैडर कैंसर
गॉल ब्लैडर कैंसर (पित्ताशय का कैंसर) एक दुर्लभ लेकिन घातक कैंसर है, जो पित्ताशय (गॉल ब्लैडर) में विकसित होता है। यह कैंसर अक्सर देर से पहचाना जाता है, क्योंकि शुरुआती चरणों में इसके लक्षण स्पष्ट नहीं होते। यह कैंसर महिलाओं में पुरुषों की तुलना में अधिक पाया जाता है और खासकर दक्षिण एशियाई देशों, विशेष रूप से भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में इसका अधिक प्रचलन है।

गॉल ब्लैडर कैंसर के कारण

गॉल ब्लैडर कैंसर के सटीक कारण अभी तक स्पष्ट नहीं हैं, लेकिन कुछ कारक इसके जोखिम को बढ़ा सकते हैं:

गॉल स्टोन (पित्ताशय की पथरी) – यह सबसे प्रमुख कारणों में से एक है। लंबे समय तक पित्ताशय में पथरी रहने से सूजन और कैंसर विकसित होने की संभावना बढ़ जाती है।
क्रोनिक कोलेसिस्टाइटिस – पित्ताशय में दीर्घकालिक सूजन कैंसर के विकास का एक महत्वपूर्ण कारण हो सकता है।
आनुवंशिक कारण – जिन लोगों के परिवार में गॉल ब्लैडर कैंसर का इतिहास है, उनमें इसका खतरा अधिक होता है।
खराब आहार और मोटापा – वसायुक्त और जंक फूड का अत्यधिक सेवन, मोटापा और अस्वस्थ जीवनशैली भी कैंसर के जोखिम को बढ़ा सकती है।
रासायनिक और औद्योगिक संपर्क – कुछ विषैले रसायनों और औद्योगिक प्रदूषकों के संपर्क में आने से गॉल ब्लैडर कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है।
गॉल ब्लैडर कैंसर के लक्षण

गॉल ब्लैडर कैंसर के लक्षण आमतौर पर देर से दिखाई देते हैं। इनमें शामिल हैं:

पेट के ऊपरी दाएं हिस्से में दर्द
लगातार अपच, गैस और उल्टी
भूख न लगना और वजन घटना
शरीर और आंखों में पीलापन (पीलिया)
थकान और कमजोरी
पेट में सूजन
गॉल ब्लैडर कैंसर का निदान

चूंकि यह कैंसर प्रारंभिक अवस्था में मुश्किल से पहचाना जाता है, इसलिए निदान के लिए निम्नलिखित परीक्षण किए जाते हैं:

अल्ट्रासाउंड – प्रारंभिक रूप से पित्ताशय में किसी भी असामान्यता को जांचने के लिए किया जाता है।
सीटी स्कैन (CT Scan) और एमआरआई (MRI) – ट्यूमर की सटीक स्थिति और फैलाव का पता लगाने के लिए।
बायोप्सी – कैंसर की पुष्टि के लिए प्रभावित ऊतक का नमूना लिया जाता है।
ट्यूमर मार्कर टेस्ट – रक्त में कुछ विशिष्ट प्रोटीन की उपस्थिति की जांच की जाती है, जो कैंसर का संकेत दे सकते हैं।
गॉल ब्लैडर कैंसर का उपचार

गॉल ब्लैडर कैंसर का उपचार रोगी की स्थिति और कैंसर के चरण पर निर्भर करता है। मुख्य उपचार विधियां निम्नलिखित हैं:

सर्जरी (शल्य चिकित्सा) – अगर कैंसर शुरुआती अवस्था में हो तो गॉल ब्लैडर को निकालने (कोलेसिस्टेक्टॉमी) की प्रक्रिया अपनाई जाती है।
कीमोथेरेपी – दवाओं के माध्यम से कैंसर कोशिकाओं को नष्ट किया जाता है।
रेडियोथेरेपी – उच्च ऊर्जा किरणों की मदद से कैंसर कोशिकाओं को खत्म किया जाता है।
इम्यूनोथेरेपी – शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत कर कैंसर से लड़ने में मदद की जाती है।
निष्कर्ष

गॉल ब्लैडर कैंसर एक गंभीर और जानलेवा बीमारी हो सकती है, लेकिन यदि इसे शुरुआती चरण में पहचान लिया जाए तो इसका सफल उपचार संभव है। स्वस्थ आहार, नियमित व्यायाम और समय-समय पर मेडिकल जांच कराकर इस बीमारी के खतरे को कम किया जा सकता है। यदि किसी को इसके लक्षण दिखें, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।

UNDERSTANDING CANCER SERIES: BY DR VIVEK GUPTA, MS, FACS, Liver and GastroSurgeon, Lucknow (UP)

Gallbladder Cancer: Causes, Symptoms, Diagnosis, and Treatment
Gallbladder cancer is a rare but deadly form of cancer that develops in the gallbladder. It is often diagnosed at a late stage because its symptoms are not evident in the early stages. This cancer is more common in women than in men and has a higher prevalence in South Asian countries, particularly India, Pakistan, and Bangladesh.

Causes of Gallbladder Cancer

The exact causes of gallbladder cancer are not yet fully understood, but certain risk factors can increase the chances of developing it:

Gallstones – This is one of the most significant risk factors. Long-term gallstones can cause chronic inflammation, increasing the risk of cancer.
Chronic Cholecystitis – Prolonged inflammation of the gallbladder can lead to the development of cancer.
Genetic Factors – A family history of gallbladder cancer can increase the likelihood of developing it.
Unhealthy Diet and Obesity – A diet rich in fatty and junk food, obesity, and an unhealthy lifestyle may contribute to the development of cancer.
Exposure to Chemicals and Industrial Pollutants – Exposure to certain toxic chemicals and industrial pollutants can increase the risk of gallbladder cancer.
Symptoms of Gallbladder Cancer

Symptoms of gallbladder cancer typically appear in the later stages. These include:

Pain in the upper right side of the abdomen
Persistent indigestion, gas, and vomiting
Loss of appetite and unexplained weight loss
Yellowing of the skin and eyes (jaundice)
Fatigue and weakness
Swelling in the abdomen
Diagnosis of Gallbladder Cancer

Since this cancer is difficult to detect in the early stages, the following diagnostic tests are used:

Ultrasound – An initial scan to detect any abnormalities in the gallbladder.
CT Scan and MRI – These imaging techniques help determine the exact location and spread of the tumor.
Biopsy – A sample of the affected tissue is taken to confirm cancer.
Tumor Marker Test – A blood test to detect specific proteins that may indicate the presence of cancer.
Treatment of Gallbladder Cancer

The treatment of gallbladder cancer depends on the patient’s condition and the stage of cancer. The primary treatment methods include:

Surgery – If detected in the early stage, the gallbladder is surgically removed (cholecystectomy).
Chemotherapy – Medications are used to destroy cancer cells.
Radiotherapy – High-energy radiation is used to eliminate cancer cells.
Immunotherapy – Boosting the body's immune system to help fight cancer.
Conclusion

Gallbladder cancer is a severe and life-threatening disease, but if diagnosed early, it can be treated successfully. Maintaining a healthy diet, exercising regularly, and undergoing periodic medical check-ups can reduce the risk of developing this cancer. If anyone experiences symptoms, they should seek medical attention immediately.

Dr Vivek Gupta, Senior Consultant, Liver and Gastrosurgeon, Lucknow (UP) 8172889258 Whatsapp

17/02/2025

लिवर ट्रांसप्लांट एक जटिल ऑपरेशन है । लिवर ट्रांसप्लांट की जरूरत उन मरीजों को पड़ती है जिनका की लिवर बहुत कमजोर हो चुका है । लिवर आपका सबसे बड़ा आंतरिक अंग है और कई महत्वपूर्ण कार्य करता है । लिवर ट्रांसप्लांट एक अस्वस्थ लिवर को स्वस्थ लिवर से बदलने की एक शल्य प्रक्रिया है । लीवर कमजोर होने की बीमारी को सिरोसिस के नाम से भी जाना जाता है । सिरोसिस कई वजह से हो सकता है जिसमें अत्यधिक शराब पीना तथा हेपिटाइटिस बी एवं हेपिटाइटिस सी तथा डायबिटीज़ एवं मोटापे की वजह से लिवर में कमजोरी आना आम वजह है । बच्चों में कई जन्मजात बिमारी जैसे कि बिलियरी एट्रेसिया, विल्सन्स डिजीज आदि से लिवर जनम से भी खराब हो सकता है । हेपेटाइटिस बी, एवं सी मरीज को इन्फेक्टेड ब्लड चलने से अथवा नीडल द्वारा ड्रग के सेवन से तथा संक्रमित व्यक्ति से सेक्शुअल रिलेशन से भी ट्रांसमिट हो सकता है। यह बिमारी माता द्वारा बच्चे में जन्म के समय भी ट्रांसमिट हो सकती है। यह बिमारी खाने से तथा मरीज की देखभाल से या हाथ लगाने से नहीं फैलती है। लंबे समय तक हेपेटाइटिस बी एवं सी वायरस रहने से लिवर सिरोसिस हो सकती है। सिरोसिस एक गंभीर बिमारी है।

लिवर सिरोसिस होने पे, मरीज को पीलिया, खून की उल्टी तथा पेट में पानी आने जैसी परेशानियां होती हैं । सिरोसिस की बीमारी कई बार सिर्फ पेट में भारीपन या पैरों में सूजन या कम भूख लगने से भी शुरू हो सकती है । इसका मुख्य लक्षण पीलिया भी हो सकता है । पीलिया अंग्रेजी भाषा में जॉन्डिस नाम से जाना जाता है। पीलिया बिलीरुबिन नाम के पदार्थ के जमा होने की वजह से हो जाता है जिसमें की आंखें वह चमड़ी का रंग पीला हो जाता है यह बिलुरुबिन लीवर के द्वारा मेटाबोलाइज्ड किया जाता है तथा लीवर कमजोर होने की वजह से बिलीरुबिन शरीर में में जमा हो जाता है तथा पीलिया हो जाता है । पीलिया के अलावा मरीज को कई अन्य तरह की परेशानी भी हो सकती हैं । मरीज को उल्टी के रास्ते या फिर के रास्ते खून आ सकता है या काले रंग का मल भी हो सकता है, इसके अलावा पेट में पानी भी भर सकता है । लिवर कमजोर हो जाने से लिवर काफी सख्त हो जाता है तथा इसकी वजह से पेट में खून की धमनियों में अत्याधिक प्रेशर बनने से पेट में पानी आ जाना तथा आंतों के अंदर खून की धमनियों का फूल जाने से ब्लीडिंग का खतरा हो जाता है । ऐसे मरीज को अचानक खून की उल्टी होने से गंभीर हालत पैदा हो सकती है । यदि पेट में पानी आ गया है और खून की उल्टी हुई है तो यह लिवर की बीमारी के गंभीर होने का सूचक है । आप डॉक्टर गैस्ट्रोलॉजिस्ट लिवर स्पेशलिस्ट को दिखाकर इसका इलाज तुरंत शुरू कराएं पेट में पानी के लिए डॉक्टर की सलाह लें । इसमें डॉक्टर द्वारा ज्यादातर नमक कम खाने या पानी कम पीने की सलाह दी जाती है तथा ड्यूरेटिक नाम की दवाई ई जिससे कि अत्यधिक पेशाब होता है उससे पानी को निकालने की कोशिश की जाती है । इंटेस्टाइन में सूजी हुई खून की धमनियों को एंडोस्कोपी और बेंडिंग द्वारा कंट्रोल किया जाता है ताकि उनमें रक्तस्राव ना हो दवाइयों द्वारा पानी कम करने से तथा बैंडिंग की प्रक्रिया करने से कुछ हद तक इस बीमारी को कंट्रोल कर सकते हैं परंतु लिवर सिरोसिस होने से अंदरूनी कमजोरी बनी रहती है तथा मरीज की जान को खतरा बना रहता है लिवर सिरोसिस के बढ़ जाने से मरीज को इनके फलों को एन्सेफेलोपैथी हो सकती है तथा मरीज को उलझन या अधिक नींद आना या फिर बेहोशी की हालत भी हो सकती है लिवर द्वारा संचालित पाचन तंत्र बहुत कमजोर हो जाता है इसकी वजह से मरीज की मांसपेशियां काफी कमजोर हो जाती है तथा वजन भी कम हो जाता है एवं एल्ब्यूमिन की मात्रा भी कम हो जाती है मरीज को एल्ब्यूमिन देने की सलाह भी दे सकते हैं ।हैं।सिरोसिस में लिवर में कैंसर बनने की भी संभावना रहती है। सिरोसिस एडवान्स हो जाने के उसके उपचार के लिए आपको डॉक्टर लिवर ट्रांसप्लांट के लिए एडवाइस कर सकते हैं।

इस समय लिवर ट्रांसप्लांट की सक्सेस रेट 90 se 95 प्रतिशत होने के कारण यह एक कारगर उपाय है। लिवर ट्रांसप्लांट - तकनीकी रूप से कठिन सर्जरी मानी जाती है। लिवर सर्जन को विशेष तकनीकों में प्रशिक्षित होना पड़ता है। लिवर ट्रांसप्लांट से पहले मरीज की कई तरह की जांच होती हैं इसमें की ऑपरेशन के लिए फिटनेस के टेस्ट होते हैं लिवर ट्रांसप्लांट ऑपरेशन में मरीज का खराब लिवर निकालकर नया लिवर लगाया जाता है नया लिवर डोनर से प्राप्त होता है अधिकतर रूप से यह मरीज के निकटतम संबंधियों द्वारा ही दिया जाता है जैसे कि पति पत्नी भाई बहन या बच्चों या माता-पिता द्वारा लिवर एक कैडेवर के द्वारा भी प्राप्त हो सकता है परंतु अभी हमारे देश में मृत्यु के बाद लिवर डोनेशन करने की संख्या काफी कम है तथा लिवर ट्रांसप्लांट के मरीज को ऐसे में कई महीनों या फिर सालों तक भी वेट करना पड़ सकता है जिस में जिस दौरान उसकी कंडीशन खराब भी हो सकती है इसलिए ज्यादातर कैसे इसमें मैं नजदीकी रिश्तेदारों द्वारा ही लिवर डोनेशन लिया जाता है में लिवर डोनेशन सर्जरी में लिवर का करीब 50 to 60% परसेंट हिस्सा निकाल दिया जाता है डोनेशन से पहले डोनर के कई तरह के टेस्ट होते हैं जिसमें कि डोनर की जनरल ब्लड टेस्ट जनरल फिजिकल टेस्ट तथा लीवर की अंदरूनी संरचना की जानकारी ली जाती है इसमें सीटी स्कैन करा जाता है ताकि यह देखा जा सके कि लिवर को सही तरीके से विभाजित किया जा सकता है कि नहीं डोनर का ब्लड ग्रुप मरीज के लीवर से मैचिंग होना चाहिए या फिर O ब्लड ग्रुप होना चाहिए का होना चाहिए डोनेशन के लिए कमेटी द्वारा डोनेशन के लिए डोनर को सरकार या अस्पताल द्वारा बनाई हुई कमेटी से अप्रूव किया जाता है ऑपरेशन करीब 8 घंटे का होता है तथा डोनर को अस्पताल में करीब 7 दिन पड़ता है रहना पड़ता है डोनेशन की प्रक्रिया में जान जाने का जोखिम तथा कॉम्प्लिकेशन होने का चांस 1% से भी कम है I कुछ दिनों तक मामूली तकलीफ रह सकती है I मेदांता लखनऊ में यह डोनर ऑपरेशन अत्याधुनिक रोबोटिक सर्जरी द्वारा उपलब्ध है, जिससे की डोनर को कम से कम चीरा आता है तथा दर्द में भी आराम रहता है I करीब 3 महीने में डोनर का लिवर वापस बड़ा हो जाता है लिवर डोनेशन के बाद करीब 1 से 3 महीने में मरीज पूरी तरह से स्वस्थ महसूस करता है तथा दोनों को डोनर को कोई लंबे समय तक दवाई नहीं चलती है
लिवर ट्रांसप्लांट ऑपरेशन करीब 12 घंटे चलता है इसमें मरीज का खराब लिवर पूरी तरह से निकाल दिया जाता है तथा नए लीवर को उसके स्थान पर लगा दिया जाता है इसमें लिवर में आने वाली खून की सप्लाई की नालियों को जोड़ा जाता है पित्त की नली को जोड़ा जाता है एवं लीवर से खून की सप्लाई वापस ले जाने वाली धमनियों को हॉट से जोड़ा जाता है लिवर ट्रांसप्लांट एक बहुत बड़ा ऑपरेशन है इसका सक्सेस रेट करीब 90% है लिवर ट्रांसप्लांट के बाद कॉन्प्लिकेशन हो सकते हैं जैसे कि रिजेक्शन, इंफेक्शन, ब्लीडिंग, पित्त का स्राव हर्निया आदि ट्रांसप्लांट के बाद करीब 5 से 7 दिन आईसीयू में रखा जाता है तथा करीब 15 से 20 दिन के अस्पताल में रखा जाता है मरीज को ऑपरेशन के बाद कई तरह की सावधानियां बरतनी होती है जैसे कि खानपान का विशेष ध्यान रखना तथा भीड़ से बचना इसके अलावा मरीज के रेगुलर बेस पर टेस्ट कराए जाते हैं जाते हैं मरीज को रिजेक्शन व इंफेक्शन से बचाने के लिए दवाइयां दी जाती हैं यह दवाइयां शुरुआत में ज्यादा होती है धीरे-धीरे कम की जाती है पर कुछ ताउम्र चलती है दवाइयों के अलावा मरीज की जनरल सेहत का भी काफी ध्यान रखना पड़ता है जैसे कि ब्लड प्रेशर एवं शुगर को कंट्रोल रखना तथा नियमित व्यायाम करना मरीज को एक नई जिंदगी मिल सकती है तथा उसका लीवर नया लेकर कई सालों तक बढ़िया काम कर सकता है मरीज अपनी पूरी नार्मल जिंदगी जी सकता है

Dr Vivek Gupta, Senior Consultant, Liver Transplant and Hepatobiliary Surgery, Medanta Lucknow.

लिवर ट्रांसप्लांट /मेदांता, लखनऊ /डॉ विवेक गुप्ता लिवर ट्रांसप्लांट को तकनीकी रूप से कठिन सर्जरी माना जाता है। लिवर सर्ज...
07/07/2024

लिवर ट्रांसप्लांट /मेदांता, लखनऊ /डॉ विवेक गुप्ता

लिवर ट्रांसप्लांट को तकनीकी रूप से कठिन सर्जरी माना जाता है। लिवर सर्जनों को विशेष तकनीकों में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। लिवर ट्रांसप्लांट से पहले मरीज के कई तरह के टेस्ट किए जाते हैं, जिनमें ऑपरेशन के लिए फिटनेस का टेस्ट भी होता है। लिवर ट्रांसप्लांट ऑपरेशन में मरीज के क्षतिग्रस्त लिवर को निकालकर नया लिवर प्रत्यारोपित किया जाता है।

मेदांता हॉस्पिटल, लखनऊ में नियमित रूप से किया जा रहा है लीवर ट्रांसप्लांट। मेदांता में लीवर ट्रांसप्लांट टीम अत्यधिक अनुभवी है। मेदांता टीम में 100 से अधिक डॉक्टर शामिल हैं। कुल मिलाकर मेदांता टीम को 4000 से अधिक ट्रांसप्लांट का अनुभव है।

नया लिवर डोनर से प्राप्त होता है I अधिकतर रूप से यह मरीज के निकटतम संबंधियों द्वारा ही दिया जाता है जैसे कि पति पत्नी भाई बहन या बच्चों या माता-पिता I ज्यादातर इसमें मैं नजदीकी रिश्तेदारों द्वारा ही लिवर डोनेशन लिया जाता हैI लिवर डोनेशन सर्जरी में लिवर का करीब 50 to 60% परसेंट हिस्सा निकाल दिया जाता है I डोनर का लीवर करीब 3 महीने में वापस बढ़ जाता है I
डोनेशन से पहले डोनर के कई तरह के टेस्ट होते हैं जिसमें कि डोनर की जनरल ब्लड टेस्ट जनरल फिजिकल टेस्ट तथा लीवर की अंदरूनी संरचना की जानकारी ली जाती है I इसमें सीटी स्कैन करा जाता है ताकि यह देखा जा सके कि लिवर को सही तरीके से विभाजित किया जा सकता है कि नहीं I डोनर का ब्लड ग्रुप मरीज के लीवर से मैचिंग होना चाहिए या फिर O ब्लड ग्रुप होना चाहिए का होना चाहिए I डोनेशन के लिए कमेटी द्वारा डोनेशन के लिए डोनर को सरकार या अस्पताल द्वारा बनाई हुई कमेटी से अप्रूव किया जाता है I ऑपरेशन करीब 8 घंटे का होता है तथा डोनर को अस्पताल में करीब 5 दिन पड़ता है रहना पड़ता है I डोनेशन की प्रक्रिया में जान जाने का जोखिम 1% से भी कम है तथा कुछ कॉम्प्लिकेशन होने का चांस भी बहुत कम रहता है I कुछ दिनों तक मामूली तकलीफ रह सकती है I करीब 3 महीने में डोनर का लिवर वापस बड़ा हो जाता हैI लिवर डोनेशन के बाद करीब 1 से 3 महीने में मरीज पूरी तरह से स्वस्थ महसूस करता है तथा डोनर को कोई लंबे समय तक दवाई नहीं चलती है I

लिवर ट्रांसप्लांट ऑपरेशन करीब 12 घंटे चलता है I इसमें मरीज का खराब लिवर पूरी तरह से निकाल दिया जाता है तथा नए लीवर को उसके स्थान पर लगा दिया जाता है I इसमें लिवर में आने वाली खून की सप्लाई की नालियों को जोड़ा जाता है पित्त की नली को जोड़ा जाता है एवं लीवर से खून की सप्लाई वापस ले जाने वाली धमनियों को हॉट से जोड़ा जाता है I लिवर ट्रांसप्लांट एक बहुत बड़ा ऑपरेशन है इसका सक्सेस रेट करीब 90-95% है I लिवर ट्रांसप्लांट के बाद कॉन्प्लिकेशन हो सकते हैं जैसे कि रिजेक्शन, इंफेक्शन, ब्लीडिंग, पित्त का स्राव हर्निया आदि, जो की ज्यादतर केस में डॉक्टर कंट्रोल कर लेते हैं I ट्रांसप्लांट के बाद करीब 5 दिन आईसीयू में रखा जाता है तथा करीब 12 से 15 दिन के अस्पताल में रखा जाता है Iमरीज को ऑपरेशन के बाद कई तरह की सावधानियां बरतनी होती है जैसे कि खानपान का विशेष ध्यान रखना तथा भीड़ से बचना इसके अलावा मरीज के रेगुलर बेस पर टेस्ट कराए जाते हैं जाते हैं मरीज को रिजेक्शन व इंफेक्शन से बचाने के लिए दवाइयां दी जाती हैं I यह दवाइयां शुरुआत में ज्यादा होती है धीरे-धीरे कम की जाती है पर कुछ ताउम्र चलती हैI दवाइयों के अलावा मरीज की जनरल सेहत का भी ध्यान रखना पड़ता है जैसे कि ब्लड प्रेशर एवं शुगर को कंट्रोल रखना तथा नियमित व्यायाम करनाI मरीज को एक नई जिंदगी मिल सकती है तथा उसका लीवर नया लेकर कई सालों तक बढ़िया काम कर सकता है मरीज अपनी पूरी जिंदगी जी सकता है I

पीलिया रोग (जॉन्डिस) के बारे में जानकारी।आइए हम लोग पीलिया रोग को समझते हैं। पीलिया अंग्रेजी भाषा में जॉन्डिस नाम से जान...
05/07/2024

पीलिया रोग (जॉन्डिस) के बारे में जानकारी।

आइए हम लोग पीलिया रोग को समझते हैं। पीलिया अंग्रेजी भाषा में जॉन्डिस नाम से जाना जाता है। पीलिया की बिमारी बच्चों एवं वयस्कों में आम तौर से देखी जाती है। इस बिमारी का पता चलता है जब की मरीज की आंखें तथा चमड़ी का रंग पीला पीला सा लगने लगता है। इसके अलावा पेशाब बी हल्के या गाढ़े पीले रंग की होने लगती है। इसमें मल का रंग भी हल्का सफेद कुछ मरीजों में हो सकता है। आंखो में पीलापन आने से पहले कई बार मरीज को बुखार एवं कमजोरी की समस्या हो सकती है। इसके अलावा मरीज को पेट में दर्द अथवा भारीपन की शिकायत भी हो सकती है। पीलिया की बिमारी कुछ मामलों में एक आम बिमारी होती है जिसका कोई इलाज भी सहज होता है। परंतु कुछ मामलों में यह एक गंभीर बिमारी का सूचक होती है जिसमे की कैंसर भी शामिल है।
आइए अब हम पीलिया को और विस्तार में जानते हैं तथा उसके कुछ मुख्य कारणों को समझते हैं।।पीलिया शरीर में बिलिरूबिन की अधिक मात्रा से पैदा होता है। बिलीरूबिन लिवर के द्वारा उत्पाद किया हुआ एक पदार्थ है जो कि लिवर फंक्शन ठीक ना होने के कारण शरीर के अंदर जमा हो जाता है।पीलिया के दो मुख्य कारण है, एक मेडिकल कारण तथा दूसरे सर्जिकल कारण। मेडिकल कारणों में, मुख्य तौर से हेपेटाइटिस इन्फेक्शनआता है। हेपेटाइटिस इन्फेक्शन पांच तरह का होता है। इसमें हेपेटाइटिस ए, बी, सी, डी और ई आते हैं। हेपेटाइटिस ए एवं ई आम तौर पर गंदा भोजन एवं पानी के सेवन से होते हैं। यह बिमारी ज्यादातर मानसून में आती है, तथा इससे कमजोरी, बुखार एवं पीलिया हो जाता है।यह बिमारी आमतौर से बच्चों में आती है तथा इस बिमारी में दवा से 15-20 दिन में आराम आ जाता है।लेकिन कुछ स्थितियों में जैसे कि बुजुर्ग लोगो में और खासकर गर्भवती महिलाओं में हेपेटाइटिस की बिमारी गंभीर रूप ले सकती है। हेपेटाइटिस ए के टीकाकरण से हेपेटाइटिस ए से बचा जा सकता है। इसके अलावा मॉनसून में खासतौर पे और साल के दूसरे दिनों में भी बाहर खाने पीने से बचें। यदि गर्भवती महिलाओं को हेपेटाइटिस हुआ है तो उसको तुरंत ही लिवर के स्पेशलिस्ट को दिखाएं जरूरत पड़ने पर बड़े शहर जाके।
हेपेटाइटिस बी, सी एवं डी किसी मरीज को इन्फेक्टेड ब्लड चलने से अथवा नीडल द्वारा ड्रग के सेवन से तथा संक्रमित व्यक्ति से सेक्शुअल रिलेशन से भी ट्रांसमिट हो सकता है। यह बिमारी माता द्वारा बच्चे में जन्म के समय भी ट्रांसमिट हो सकती है। यह बिमारी खाने से तथा मरीज की देखभाल से या हाथ लगाने से नहीं फैलती है। लंबे समय तक हेपेटाइटिस बी एवं सी वायरस रहने से लिवर सिरोसिस भी हो सकती है।
अच्छी बात यह है कि हेपेटाइटिस बी एवं सी हो जाने पर आजकल कारगर दवाइयां उपलब्ध है। यह दवाई एक हिपेटोलॉजीस्ट या लिवर स्पेशलिस्ट शुरू कर सकता है।इसके अलावा हेपेटाइटिस बी से बचने के लिए टीका मौजूद है। टीके के कारण हेपेटाइटिस बी के मामले अब कम हो रहे हैं। हेपेटाइटिस बी सी एवं डी से बचाव के लिए हमेशा रजिस्टर्ड ब्लड बैंक से ही ब्लड लें तथा।सुई का प्रयोग हमेशा स्टेरिलाइज्ड एवं पैक सुई का ही करें।

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04/07/2024

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Learn about Liver TransplantLiver transplant is considered a technically difficult surgery. Liver surgeons have to be tr...
04/07/2024

Learn about Liver Transplant
Liver transplant is considered a technically difficult surgery. Liver surgeons have to be trained in special techniques. Before liver transplant, many types of tests are done on the patient, in which there are tests of fitness for the operation. In the liver transplant operation, the damaged liver of the patient is removed and a new liver is implanted. The new liver is obtained from the donor. Mostly it is given by the nearest relatives of the patient like husband, wife, siblings or children or parents. In liver donation surgery, about 50 to 60% of the liver is removed.
Before donation, the donor undergoes many types of tests in which the donor's general blood test, general physical test and information about the internal structure of the liver are taken. In this, volumetric CT scan is done so that it can be determined if liver can divided safely. The donor's age should be between 18 to 55 years of age. Donor’s blood group should be preferably same as the patient's blood group or it should be O blood group. For blood group incompatible donors, the patient has to undergo special procedures (Plasmapheresis, Rituximab etc) to reduce the chances of rejection. These advanced facilities are available at Medanta, Lucknow. For donation, the donor is approved by the committee formed by the government or the hospital. The operation takes about 8 hours and the donor has to stay in the hospital for about 5 to 6 days. The donor's liver grows back in about 3 months. After liver donation, the patient feels completely healthy in about 1 to 3 months and donors do not have to take any medicine for a long time.
Liver transplant operation lasts for about 12 hours. In this, the damaged liver of the patient is completely removed and a new liver is implanted in its place. In this, the vessels supplying blood to the liver (Hepatic artery and portal vein) are connected and also the veins (hepatic veins) carrying blood supply back from the liver are connected to the heart. The bile produced by liver goes to the intestines through the bile duct and this is also connected using stitches. Liver transplant is a complex operation. In advanced centres success rate of liver transplant is around 90 to 95%. Some complications which can occur after liver transplant are rejection, infection, bleeding, bile leak, etc. Usually these complications can be controlled by medications or operative intervention. After the transplant, patient is kept in ICU for about 5 days for strict monitoring. The patient is kept in the hospital for about 2 weeks. After discharge, patient has to take some precautions such as taking healthy clean diet and avoiding over crowding. Apart from this, tests are done on the regular basis of the patient. Medicines are given to protect the patient from rejection and infection. These medicines are gradually reduced after few months. Apart from the medicines, the general health of the patient also has to be taken care of such as blood pressure, controlling sugar and doing regular exercise. In 2 to 3 months most of our patients resume normal activities, including going to their previous routine work. The new liver can work well for many years, the patient can live his compete life.

LEARN ABOUT LIVER HEALTHThe liver is the largest internal organ of our body and performs many important functions. Liver...
04/07/2024

LEARN ABOUT LIVER HEALTH
The liver is the largest internal organ of our body and performs many important functions. Liver can get damaged due to many reasons, including excessive alcohol consumption, hepatitis B and hepatitis C, and due to diabetes and obesity. Advanced damage to liver can lead to a condition known as cirrhosis. Cirrhosis is a serious disease. For the treatment of advanced cirrhosis, your doctor may advise you liver transplant. Liver transplant is a surgical procedure to replace an unhealthy liver with a healthy one. At present, the success rate of liver transplant is 90-95%, so it is an effective solution.
We routinely deal with cirrhosis cases in Medanta, Lucknow, most of which are due to alcohol abuse (34%) followed by fatty liver (22%), and hepatitis (18%). Cases of fatty liver are increasing at a rapid pace. This is mainly due to unhealthy lifestyle and uncontrolled diabetes. Fatty liver and diabetes is projected to be the largest cause of damaged liver by 2050.
Prolonged exposure to hepatitis B and C virus can lead to liver cirrhosis. Hepatitis B and C can be transmitted through transfusion of infected blood to a patient or through consumption of drugs through needles and also through sexual relations with an infected person. This disease can also be transmitted from mother to child at the time of birth. This disease does not spread through food or care of the patient or by touching hands. Once liver is damaged beyond a certain point, liver transplant is the only hope of survival for such patients.

Address

Medanta Hospital
Lucknow
226030

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