अग्निहोत्री ज्योतिष

अग्निहोत्री ज्योतिष Astrology is a science; not a fiction, based on facts & lengthy calculations of situations of planet of the relevant person. Agnihotri Astrologers

It is well known fact that the environment affects our feelings, colors cure the diseases, gems help the human beings in many ways and the Moon affects the so far placed sea. Thus, it is 100% true that the nearest star Sun, much bigger planets like Mercury, Venus, Mars, Jupiter, Saturn, Venkatesh (Uranus), Neptune, Pluto and natural satellites like the Moon do effect the human behaviour on this glorious Earth. And, it is left to us to predict what changes these will bring to a person by comparing the natal chart (Janam Kundli) of that individual with respect to the present situations of the said universal bodies. At the time of solar eclipse; it has been proved by the science that birds, animals and other creatures observe silence and stillness; while during lunar eclipse, the sea tides take place and affect the life of aquatic creatures. On the other hand even the Moon affects the menstrual period of the ladies as per its brightness. If the positions of the Earth, the Moon and the Sun are able to do such wonders then the situations of the above said universal bodies at the time of birth at a particular date and place do certainly affect the life-circle of the particular person. This can be predicted well in advance by following certain rules and regulations prescribed in various ancient Indian Astrological books as well as in Western Astrological books. The perfection in calculations leads to perfection in the predictions regarding past, present and future of an individual in this world. There are various methodologies, beliefs about the prediction-systems but the system of calculations remains the same except for some basis like Sayana system and Nirayana system of planetary situations, differences in Ayanamsa-calculation etc. Since average human beings are more prone to the errors than the modern calculators / computers, that’s why we have combined the power of machines and the science of ancient astrological books to produce a much accurate system of horoscope-casting. Thereafter; we can predict the nature, health, wealth, service, miseries, happiness, married-life, profession, finance, family, losses, gains, diseases, ups and downs, relationships with relatives and society, longevity, kinds of acts, rewards or punishments, enemies, expenditure, etc. The Western astrology is based on the Sun while the Indian astrology is based on the Moon; reason being that the change in position of the Moon in relation to the Earth is very fast and changes in human-life are also very fast. Some people argue that predictions made by astrologers adversely affect the concerned people psychologically but logically it is not true. If a person have some disease then he consults a doctor for the treatment of the same and it depends upon the knowledge of the doctor that whether he is able to cure the same or not. Similarly, predictions caution the person well in advance & suggest the ways to overcome the hurdles; as per the knowledge and experience of an astrologer, so that the relevant person must be able to take suitable measures well in time because ‘precaution is better than cure’.

28/05/2025

■■■■■ अष्टगंध स्याही ■■■■■

◆(१) केशर
◆(२) कस्तूरी
◆(३) कर्पूर
◆(४) गोरोचन
◆(५) सफेद चन्दन
◆(६) लाल चन्दन
◆(७) अगर-तगर अथवा कच्ची हल्दी
◆(८) कुमकुम
उपर्युक्त सभी आठ चीजों को अच्छी तरह पाउडर बनाकर शुभ मुहूर्त में गंगाजल में डालकर रख लें ~ इस तरह यह अष्टगंध की मसि या स्याही तैयार हो गई जो भोजपत्र / भुर्जपत्र पर यथोचित कलम से मन्त्रों से अविर्भूत यन्त्र लिखने के काम आती है ।

◆ शेष शुभेच्छा...... ।
◆ ॐ स्मरण...

15/05/2025
🙏 💝💝🙏 🙏~~~~~🙏 🙏.🙏🙏०🙏●●●●●● #त्रिवेणी●●●●●●● पीपल (अश्वत्थ), नीम एवं बड़ (वट) वृक्षों का मूल एक ही जगह इकट्ठा होने से उन्...
20/01/2025

🙏 💝💝🙏 🙏~~~~~🙏 🙏.🙏🙏०🙏
●●●●●● #त्रिवेणी●●●●●●

● पीपल (अश्वत्थ), नीम एवं बड़ (वट) वृक्षों का मूल एक ही जगह इकट्ठा होने से उन्हें #त्रिवेणी कहा जाता है ।

● गंडमूल नक्षत्रों की शान्ति करवाने में जो असमर्थ हों, उन्हें त्रिवेणी की पूजा उचित शुभ फल देती है ।

● कृपया सम्बंधित बच्चे को सारे वस्त्रों सहित स्नानोपरांत, नए वस्त्र धारण करवाके >त्रिवेणी की इस प्रकार दक्षिणावर्ती परिक्रमा करवाएं कि पहिले एक की पूरी परिक्रमा हो जाए, फिर साथ ही दूसरे की एवं तत्पश्चात तीसरे की ।

● परिक्रमा का कार्य बच्चे के पिता, माता, मामा या अन्य सम्बन्धी में से कोई भी एक बच्चे को उठाकर करवा सकता है ।

● इसके पश्चात् मूल पुरुष से क्षमा- याचना करते हुए त्रिवेणी को सम्बंधित बच्चा माथा टेक कर अपने अभिभावक के साथ घर चला जाए परन्तु पीछे मुड़कर न देखे ।

● बच्चे के स्नान किए हुए सभी कपड़ों को अभिभावक जलप्रवाह कर दे । ध्यान रहे बच्चा अपने द्वारा उतारे हुए पुराने कपड़ों को फिर अपना हाथ न लगाए ।

● इसके बाद गंडमूल नक्षत्र अपना दुष्प्रभाव नहीं देगा ।

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🙏ॐश्रीकृष्णादित्त्योङ्कार: परमं शरणं मम् 🙏

*राहुकाल का निर्णय*Rahukal is ⅛th of the whole duration of the day. So, if the day-duration is 12 hours, then Rahukal wi...
05/11/2024

*राहुकाल का निर्णय*

Rahukal is ⅛th of the whole duration of the day. So, if the day-duration is 12 hours, then Rahukal will be exactly of 1½ hours. Easy way to remember Rahukal is as per this verse :-
*Mother Saw Father Wearing The Turban.*

M(other) Monday 7:00 to 8: 30 IST
S(aw) Saturday 8:30 to 10:00 IST
F(ather) Friday 10:00 to 11:30 IST
W(earing) Wednesday 11:30 to 13:00 IST
Th(e) Thursday 13:00 to 14:30 IST
Tu(rban) Tuesday 14:30 to 16:00 IST......... Sunday 16:00 to 17:30 IST

(१७-२३)◆●● #श्रीमद्भगवद्गीता◆●●(आदिपुरुषोत्तम श्रीकृष्णजी का परम् धाम है ॐ)★ श्रीकृष्ण परमात्मा जी अपने मुख-कमल द्वारा अ...
26/10/2024

(१७-२३)◆●● #श्रीमद्भगवद्गीता◆●●
(आदिपुरुषोत्तम श्रीकृष्णजी का परम् धाम है ॐ)

★ श्रीकृष्ण परमात्मा जी अपने मुख-कमल द्वारा अर्जुन से कहते हैं :-

■ श्लोक :-
◆ ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन्।।
या प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिं।। अ८श्१३

◆ सरल हिन्दी :-
● ब्रह्म के वाचक मात्र एक अक्षर "ॐ" को व्यवहार में लाकर और उसे स्मरण करते हुए जो देह-त्याग करता है वो परम गति (ब्रह्मलीन/मोक्ष) को प्राप्त होता है ।

■ श्लोक :-
◆ आब्रह्म भुवनाल्लोका: पुनरावर्तिनोर्जुन।।
मामुपेत्त्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते।। अ८श्१६

◆सरल हिन्दी :-
● हे अर्जुन ! ब्रह्म-लोक तक जितने भी लोक हैं अर्थात ब्रह्म लोक को छोड़कर जितने भी लोक हैं उन सबकी उत्त्पत्ति और लय होता है परन्तु हे कुन्ती-पुत्र ! जो मुझमें मिला उसका फिर कभी भी पुनर्जन्म नहीं होता ।

■ विशेष :-
【● कई विद्वान "आब्रह्म_लोक" कहकर ब्रह्मलोक जाने पर भी पुनर्जन्म की परिकल्पना करते हैं अर्थात् "आब्रह्म" का अर्थ ब्रह्म लोक पर्यन्त न लेकर उसमें ब्रह्म लोक भी समाहित कर दिया है जो महाभूल के अतिरिक्त कुछ नहीं ।
●(यदि ब्रह्मलोक प्राप्त होने के बाद भी पुनर्जन्म के चक्कर होते तो कोई भी व्यक्ति >जप, तप, यज्ञ, दान, सत्कार्य ... आदि धर्म के कार्य कदापि नहीं करते >यह विशेषतः विचारणीय बात है।)

● यदि एकाग्र होकर देखें तो अगले श्लोकों १७, १८, १९ में, जिनका वर्णन नीचे किया गया है, से हमें "ब्रह्मा-लोक" की चर्चा मिल रही है । अतः उपर्युक्त अध्याय ८ की श्लोक संख्या १६ में "आब्रह्म" का शुद्ध अर्थ ब्रह्म लोक पर्यन्त है, इसमें ब्रह्म लोक सम्मिलित नहीं है ।

◆ सहस्त्रयुगपर्यन्तमहर्यद् ब्रह्मणो विदुः ।।
रात्रिं सहस्त्रान्तां ते अहोरात्रविदो जना: ।। अ ८ श् १७

◆ सरल हिन्दी :-
● चारों युग जब एक हजार बार होते हैं तब *ब्रह्मा* का एक दिन होता है और उतने ही समय में *ब्रह्मा* की एक रात होती है । यह जानने वाले ही वस्तुतः दिन एवं रात का तत्त्व जानते हैं ।

■ श्लोक :-
◆ अव्यक्ताद्वयक्तय: सर्वा: प्रभवन्त्यहरागमे ।।
रात्र्यागमे प्रलीयन्ते तत्रैवाव्यक्त संज्ञके ।। अ ८ श् १८

◆ सरल हिन्दी :-
● *ब्रह्मा का दिन होने पर अव्यक्त से सब व्यक्तियों का उदय होता है और रात को उसी में लय हो जाता है ।

■ श्लोक :-
◆ भूतग्रामः स एवायं भू्त्वा भूत्वा प्रलीयन्ते ।।
रात्र्यागमेsवश्च: पार्थ प्रभवत्यहरागमे ।।अ ८ श् १९

◆ सरल हिन्दी :-
● समस्त चराचर वस्तुओं का यह समुदाय इसी प्रकार बार-बार दिन को उदय होता है और रात को लय होता है।

■ श्लोक :-
◆ परस्तस्मातु भावोन्योव्यक्तोव्यक्तात्सनातनः ।।
य स सर्वेषु भूतेषु नश्यत्सु न विनश्यति ।। अ ८ श् २०

◆ सरल हिन्दी :-
● पर इनमें जो एक सनातन अव्यक्त है , वह उस व्यक्त से श्रेष्ठ है । चराचर का नाश होने पर भी उसका नाश नहीं होता ।

■ श्लोक :-
◆ अव्यक्तोsक्षर इत्युक्तस्तमाहु: परमां गतिं ।।
यं प्राप्य न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम् ।।अ ८ श् २१

◆ सरल हिन्दी :-
● अव्यक्त को ही अक्षर ॐ कहते हैं, उसी को ही परम् गति कहते हैं, जिसके प्राप्त होने से पुनर्जन्म नहीं होता, वही (अव्यक्त अक्षर ॐ) मेरा परम् धाम है ।

●ॐ आदिपुरुषोत्तम श्रीकृष्ण: परमं शरणं मम्●

● शेष शुभेच्छा ।
● ॐ स्मरण...

@◆◆◆ श्रीगणेश जी के २१ नामों का स्मरण ◆◆◆(सभी प्रकार के विघ्नों के नाश एवं अभीष्ट सिद्धि हेतु)●ॐ प्रथम् पूज्य श्री >गणेश...
05/09/2024

@◆◆◆ श्रीगणेश जी के २१ नामों का स्मरण ◆◆◆
(सभी प्रकार के विघ्नों के नाश एवं अभीष्ट सिद्धि हेतु)

●ॐ प्रथम् पूज्य श्री >
गणेशाय,
विघ्नेश्वराय,
विकटाय,
भालचन्द्राय,
लम्बोदराय,
एकदन्ताय,
विनायकाय,
गजकर्णाय,
मोदकप्रियाय,
सिन्धूरवर्णाय,
गणाध्यक्षाय,
गजाननाय,
सुमुखाय,
मङ्गलाय,
वक्रतुण्डाय,
गौरीनन्दनाय,
शिवनन्दनाय,
गणपतये,
धूम्रकेतवे,
विघ्नहर्त्रे,
पार्वतीसूनवे
नमो नमः .........

● शेष शुभेच्छा ।
● ॐ स्मरण...

*Vedadhara से साभार* Chant Ganesha's 16 Names: Remove Obstacles, Gain Wisdom and Prosperity.Lyrics:ॐ सुमुखाय नमः । ॐ एकद...
14/08/2024

*Vedadhara से साभार*

Chant Ganesha's 16 Names: Remove Obstacles, Gain Wisdom and Prosperity.
Lyrics:

ॐ सुमुखाय नमः । ॐ एकदन्ताय नमः । ॐ कपिलाय नमः । ॐ गजकर्णकाय नमः ।
ॐ लम्बोदराय नमः । ॐ विकटाय नमः । ॐ विघ्नराजाय नमः । ॐ विनायकाय नमः ।
ॐ धूमकेतवे नमः । ॐ गणाध्यक्षाय नमः । ॐ भालचन्द्राय नमः । ॐ गजाननाय नमः ।
ॐ वक्रतुण्डाय नमः । ॐ शूर्पकर्णाय नमः । ॐ हेरम्बाय नमः । ॐ स्कन्दपूर्वजाय नमः ।

om sumukhaaya namah' . om ekadantaaya namah' . om kapilaaya namah' . om gajakarnakaaya namah' .
om lambodaraaya namah' . om vikat'aaya namah' . om vighnaraajaaya namah' . om vinaayakaaya namah' .
om dhoomaketave namah' . om ganaadhyakshaaya namah' . om bhaalachandraaya namah' . om gajaananaaya namah' .
om vakratund'aaya namah' . om shoorpakarnaaya namah' . om herambaaya namah' . om skandapoorvajaaya namah' .

Meaning

ॐ सुमुखाय नमः - I bow to the one with a pleasing face.
ॐ एकदन्ताय नमः - I bow to the one with a single tusk.
ॐ कपिलाय नमः - I bow to the one of golden color.
ॐ गजकर्णकाय नमः - I bow to the one with ears like an elephant.
ॐ लम्बोदराय नमः - I bow to the one with a large belly.
ॐ विकटाय नमः - I bow to the fierce one.
ॐ विघ्नराजाय नमः - I bow to the king of obstacles.
ॐ विनायकाय नमः - I bow to the leader of all.
ॐ धूमकेतवे नमः - I bow to the one who appears like a comet.
ॐ गणाध्यक्षाय नमः - I bow to the leader of the Ganas.
ॐ भालचन्द्राय नमः - I bow to the one with the moon on his forehead.
ॐ गजाननाय नमः - I bow to the one with an elephant face.
ॐ वक्रतुण्डाय नमः - I bow to the one with a curved trunk.
ॐ शूर्पकर्णाय नमः - I bow to the one with large ears.
ॐ हेरम्बाय नमः - I bow to the compassionate one.
ॐ स्कन्दपूर्वजाय नमः - I bow to the elder brother of Skanda.

These 16 names are a profound invocation of Lord Ganesha, recognizing his various attributes and forms. Each name in this verse reflects a different aspect of Ganesha, from his physical characteristics to his spiritual and cosmic significance.

Benefits of Chanting the Stotra:

Chanting these names with devotion removes obstacles, bring success in endeavors, and bestow wisdom and prosperity. It also helps in developing a deep connection with Lord Ganesha, leading to spiritual growth and inner peace.

*श्रीविष्णोर्दिव्यसहस्रनामस्तोत्रं*ॐ शुक्लाम्बरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजम् ।प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये ...
13/08/2024

*श्रीविष्णोर्दिव्यसहस्रनामस्तोत्रं*

ॐ शुक्लाम्बरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजम् ।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये ॥ १॥

यस्य द्विरदवक्त्राद्याः पारिषद्याः परः शतम् ।
विघ्नं निघ्नन्ति सततं विष्वक्सेनं तमाश्रये ॥ २॥

व्यासं वसिष्ठनप्तारं शक्तेः पौत्रमकल्मषम् ।
पराशरात्मजं वन्दे शुकतातं तपोनिधिम् ॥ ३॥

व्यासाय विष्णुरूपाय व्यासरूपाय विष्णवे ।
नमो वै ब्रह्मनिधये वासिष्ठाय नमो नमः ॥ ४॥

अविकाराय शुद्धाय नित्याय परमात्मने ।
सदैकरूपरूपाय विष्णवे सर्वजिष्णवे ॥ ५॥

यस्य स्मरणमात्रेण जन्मसंसारबन्धनात् ।
विमुच्यते नमस्तस्मै विष्णवे प्रभविष्णवे ॥ ६॥

ॐ नमो विष्णवे प्रभविष्णवे ।

श्रीवैशम्पायन उवाच -
श्रुत्वा धर्मानशेषेण पावनानि च सर्वशः ।
युधिष्ठिरः शान्तनवं पुनरेवाभ्यभाषत ॥ ७॥

युधिष्ठिर उवाच -
किमेकं दैवतं लोके किं वाऽप्येकं परायणम् ।
स्तुवन्तः कं कमर्चन्तः प्राप्नुयुर्मानवाः शुभम् ॥ ८॥

को धर्मः सर्वधर्माणां भवतः परमो मतः ।
किं जपन्मुच्यते जन्तुर्जन्मसंसारबन्धनात् ॥ ९॥

भीष्म उवाच -
जगत्प्रभुं देवदेवमनन्तं पुरुषोत्तमम् ।
स्तुवन् नामसहस्रेण पुरुषः सततोत्थितः ॥ १०॥

तमेव चार्चयन्नित्यं भक्त्या पुरुषमव्ययम् ।
ध्यायन् स्तुवन् नमस्यंश्च यजमानस्तमेव च ॥ ११॥

अनादिनिधनं विष्णुं सर्वलोकमहेश्वरम् ।
लोकाध्यक्षं स्तुवन्नित्यं सर्वदुःखातिगो भवेत् ॥ १२॥

ब्रह्मण्यं सर्वधर्मज्ञं लोकानां कीर्तिवर्धनम् ।
लोकनाथं महद्भूतं सर्वभूतभवोद्भवम् ॥ १३॥

एष मे सर्वधर्माणां धर्मोऽधिकतमो मतः ।
यद्भक्त्या पुण्डरीकाक्षं स्तवैरर्चेन्नरः सदा ॥ १४॥

परमं यो महत्तेजः परमं यो महत्तपः ।
परमं यो महद्ब्रह्म परमं यः परायणम् ॥ १५॥

पवित्राणां पवित्रं यो मङ्गलानां च मङ्गलम् ।
दैवतं दैवतानां च भूतानां योऽव्ययः पिता ॥ १६॥

यतः सर्वाणि भूतानि भवन्त्यादियुगागमे ।
यस्मिंश्च प्रलयं यान्ति पुनरेव युगक्षये ॥ १७॥

तस्य लोकप्रधानस्य जगन्नाथस्य भूपते ।
विष्णोर्नामसहस्रं मे श‍ृणु पापभयापहम् ॥ १८॥

यानि नामानि गौणानि विख्यातानि महात्मनः ।
ऋषिभिः परिगीतानि तानि वक्ष्यामि भूतये ॥ १९॥

ऋषिर्नाम्नां सहस्रस्य वेदव्यासो महामुनिः ।
छन्दोऽनुष्टुप् तथा देवो भगवान् देवकीसुतः ॥ २०॥

अमृतांशूद्भवो बीजं शक्तिर्देवकिनन्दनः ।
त्रिसामा हृदयं तस्य शान्त्यर्थे विनियोज्यते ॥ २१॥

विष्णुं जिष्णुं महाविष्णुं प्रभविष्णुं महेश्वरम् ।
अनेकरूपदैत्यान्तं नमामि पुरुषोत्तमम् ॥ २२ ॥

ॐ अस्य श्रीविष्णोर्दिव्यसहस्रनामस्तोत्रमहामन्त्रस्य ।
श्री वेदव्यासो भगवान् ऋषिः ।
अनुष्टुप् छन्दः ।
श्रीमहाविष्णुः परमात्मा श्रीमन्नारायणो देवता ।
अमृतांशूद्भवो भानुरिति बीजम् ।
देवकीनन्दनः स्रष्टेति शक्तिः ।
उद्भवः क्षोभणो देव इति परमो मन्त्रः ।
शङ्खभृन्नन्दकीचक्रीति कीलकम् ।
शार्ङ्गधन्वागदाधर इत्यस्त्रम् ।
रथाङ्गपाणिरक्षोभ्य इति नेत्रम् ।
त्रिसामासामगः सामेति कवचम् ।
आनन्दं परब्रह्मेति योनिः ।
ऋतुः सुदर्शनः काल इति दिग्बन्धः ।
श्रीविश्वरूप इति ध्यानम् ।
श्रीमहाविष्णुप्रीत्यर्थे सहस्रनामस्तोत्रपाठे विनियोगः ।

ध्यानम् ।
क्षीरोदन्वत्प्रदेशे शुचिमणिविलसत्सैकतेर्मौक्तिकानां
मालाकॢप्तासनस्थः स्फटिकमणिनिभैर्मौक्तिकैर्मण्डिताङ्गः ।
शुभ्रैरभ्रैरदभ्रैरुपरि विरचितैर्मुक्तपीयूषवर्षैः
आनन्दी नः पुनीयादरिनलिनगदाशङ्खपाणिर्मुकुन्दः ॥ १॥

भूः पादौ यस्य नाभिर्वियदसुरनिलश्चन्द्रसूर्यौ च नेत्रे
कर्णावाशाः शिरो द्यौर्मुखमपि दहनो यस्य वास्तेयमब्धिः ।
अन्तःस्थं यस्य विश्वं सुरनरखगगोभोगिगन्धर्वदैत्यैः
चित्रं रंरम्यते तं त्रिभुवनवपुषं विष्णुमीशं नमामि ॥ २॥

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् ।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ॥ ३॥

मेघश्यामं पीतकौशेयवासं
श्रीवत्साङ्कं कौस्तुभोद्भासिताङ्गम् ।
पुण्योपेतं पुण्डरीकायताक्षं
विष्णुं वन्दे सर्वलोकैकनाथम् ॥ ४॥

नमः समस्तभूतानामादिभूताय भूभृते ।
अनेकरूपरूपाय विष्णवे प्रभविष्णवे ॥ ५॥

सशङ्खचक्रं सकिरीटकुण्डलं
सपीतवस्त्रं सरसीरुहेक्षणम् ।
सहारवक्षःस्थलशोभिकौस्तुभं
नमामि विष्णुं शिरसा चतुर्भुजम् ॥ ६॥

छायायां पारिजातस्य हेमसिंहासनोपरि
आसीनमम्बुदश्याममायताक्षमलङ्कृतम् ।
चन्द्राननं चतुर्बाहुं श्रीवत्साङ्कितवक्षसम् ।
रुक्मिणीसत्यभामाभ्यां सहितं कृष्णमाश्रये ॥ ७॥

स्तोत्रम् ।
विश्वं विष्णुर्वषट्कारो भूतभव्यभवत्प्रभुः ।
भूतकृद्भूतभृद्भावो भूतात्मा भूतभावनः ॥ १॥

पूतात्मा परमात्मा च मुक्तानां परमा गतिः ।
अव्ययः पुरुषः साक्षी क्षेत्रज्ञोऽक्षर एव च ॥ २॥

योगो योगविदां नेता प्रधानपुरुषेश्वरः ।
नारसिंहवपुः श्रीमान् केशवः पुरुषोत्तमः ॥ ३॥

सर्वः शर्वः शिवः स्थाणुर्भूतादिर्निधिरव्ययः ।
सम्भवो भावनो भर्ता प्रभवः प्रभुरीश्वरः ॥ ४॥

स्वयम्भूः शम्भुरादित्यः पुष्कराक्षो महास्वनः ।
अनादिनिधनो धाता विधाता धातुरुत्तमः ॥ ५॥

अप्रमेयो हृषीकेशः पद्मनाभोऽमरप्रभुः ।
विश्वकर्मा मनुस्त्वष्टा स्थविष्ठः स्थविरो ध्रुवः ॥ ६॥

अग्राह्यः शाश्वतः कृष्णो लोहिताक्षः प्रतर्दनः ।
प्रभूतस्त्रिककुब्धाम पवित्रं मङ्गलं परम् ॥ ७॥

ईशानः प्राणदः प्राणो ज्येष्ठः श्रेष्ठः प्रजापतिः ।
हिरण्यगर्भो भूगर्भो माधवो मधुसूदनः ॥ ८॥

ईश्वरो विक्रमी धन्वी मेधावी विक्रमः क्रमः ।
अनुत्तमो दुराधर्षः कृतज्ञः कृतिरात्मवान् ॥ ९॥

सुरेशः शरणं शर्म विश्वरेताः प्रजाभवः ।
अहः संवत्सरो व्यालः प्रत्ययः सर्वदर्शनः ॥ १०॥

अजः सर्वेश्वरः सिद्धः सिद्धिः सर्वादिरच्युतः ।
वृषाकपिरमेयात्मा सर्वयोगविनिःसृतः ॥ ११॥

वसुर्वसुमनाः सत्यः समात्माऽसम्मितः समः ।
अमोघः पुण्डरीकाक्षो वृषकर्मा वृषाकृतिः ॥ १२॥

रुद्रो बहुशिरा बभ्रुर्विश्वयोनिः शुचिश्रवाः ।
अमृतः शाश्वतस्थाणुर्वरारोहो महातपाः ॥ १३॥

सर्वगः सर्वविद्भानुर्विष्वक्सेनो जनार्दनः ।
वेदो वेदविदव्यङ्गो वेदाङ्गो वेदवित् कविः ॥ १४॥

लोकाध्यक्षः सुराध्यक्षो धर्माध्यक्षः कृताकृतः ।
चतुरात्मा चतुर्व्यूहश्चतुर्दंष्ट्रश्चतुर्भुजः ॥ १५॥

भ्राजिष्णुर्भोजनं भोक्ता सहिष्णुर्जगदादिजः ।
अनघो विजयो जेता विश्वयोनिः पुनर्वसुः ॥ १६॥

उपेन्द्रो वामनः प्रांशुरमोघः शुचिरूर्जितः ।
अतीन्द्रः सङ्ग्रहः सर्गो धृतात्मा नियमो यमः ॥ १७॥

वेद्यो वैद्यः सदायोगी वीरहा माधवो मधुः ।
अतीन्द्रियो महामायो महोत्साहो महाबलः ॥ १८॥

महाबुद्धिर्महावीर्यो महाशक्तिर्महाद्युतिः ।
अनिर्देश्यवपुः श्रीमानमेयात्मा महाद्रिधृक् ॥ १९॥

महेष्वासो महीभर्ता श्रीनिवासः सतां गतिः ।
अनिरुद्धः सुरानन्दो गोविन्दो गोविदां पतिः ॥ २०॥

मरीचिर्दमनो हंसः सुपर्णो भुजगोत्तमः ।
हिरण्यनाभः सुतपाः पद्मनाभः प्रजापतिः ॥ २१॥

अमृत्युः सर्वदृक् सिंहः सन्धाता सन्धिमांस्स्थिरः ।
अजो दुर्मर्षणः शास्ता विश्रुतात्मा सुरारिहा ॥ २२॥

गुरुर्गुरुतमो धाम सत्यः सत्यपराक्रमः ।
निमिषोऽनिमिषः स्रग्वी वाचस्पतिरुदारधीः ॥ २३॥

अग्रणीर्ग्रामणीः श्रीमान् न्यायो नेता समीरणः ।
सहस्रमूर्धा विश्वात्मा सहस्राक्षः सहस्रपात् ॥ २४॥

आवर्तनो निवृत्तात्मा संवृतः सम्प्रमर्दनः ।
अहः संवर्तको वह्निरनिलो धरणीधरः ॥ २५॥

सुप्रसादः प्रसन्नात्मा विश्वधृग्विश्वभुग्विभुः ।
सत्कर्ता सत्कृतः साधुर्जह्नुर्नारायणो नरः ॥ २६॥

असङ्ख्येयोऽप्रमेयात्मा विशिष्टः शिष्टकृच्छुचिः ।
सिद्धार्थः सिद्धसङ्कल्पः सिद्धिदः सिद्धिसाधनः ॥ २७॥

वृषाही वृषभो विष्णुर्वृषपर्वा वृषोदरः ।
वर्धनो वर्धमानश्च विविक्तः श्रुतिसागरः ॥ २८॥

सुभुजो दुर्धरो वाग्मी महेन्द्रो वसुदो वसुः ।
नैकरूपो बृहद्रूपः शिपिविष्टः प्रकाशनः ॥ २९॥

ओजस्तेजोद्युतिधरः प्रकाशात्मा प्रतापनः ।
ऋद्धः स्पष्टाक्षरो मन्त्रश्चन्द्रांशुर्भास्करद्युतिः ॥ ३०॥

अमृतांशूद्भवो भानुः शशबिन्दुः सुरेश्वरः ।
औषधं जगतः सेतुः सत्यधर्मपराक्रमः ॥ ३१॥

भूतभव्यभवन्नाथः पवनः पावनोऽनलः ।
कामहा कामकृत्कान्तः कामः कामप्रदः प्रभुः ॥ ३२॥

युगादिकृद्युगावर्तो नैकमायो महाशनः ।
अदृश्यो व्यक्तरूपश्च सहस्रजिदनन्तजित् ॥ ३३॥

इष्टोऽविशिष्टः शिष्टेष्टः शिखण्डी नहुषो वृषः ।
क्रोधहा क्रोधकृत्कर्ता विश्वबाहुर्महीधरः ॥ ३४॥

अच्युतः प्रथितः प्राणः प्राणदो वासवानुजः ।
अपांनिधिरधिष्ठानमप्रमत्तः प्रतिष्ठितः ॥ ३५॥

स्कन्दः स्कन्दधरो धुर्यो वरदो वायुवाहनः ।
वासुदेवो बृहद्भानुरादिदेवः पुरन्दरः ॥ ३६॥

अशोकस्तारणस्तारः शूरः शौरिर्जनेश्वरः ।
अनुकूलः शतावर्तः पद्मी पद्मनिभेक्षणः ॥ ३७॥

पद्मनाभोऽरविन्दाक्षः पद्मगर्भः शरीरभृत् ।
महर्द्धि-रृद्धो वृद्धात्मा महाक्षो गरुडध्वजः ॥ ३८॥

अतुलः शरभो भीमः समयज्ञो हविर्हरिः ।
सर्वलक्षणलक्षण्यो लक्ष्मीवान् समितिञ्जयः ॥ ३९॥

विक्षरो रोहितो मार्गो हेतुर्दामोदरः सहः ।
महीधरो महाभागो वेगवानमिताशनः ॥ ४०॥

उद्भवः क्षोभणो देवः श्रीगर्भः परमेश्वरः ।
करणं कारणं कर्ता विकर्ता गहनो गुहः ॥ ४१॥

व्यवसायो व्यवस्थानः संस्थानः स्थानदो ध्रुवः ।
परर्द्धिः परमस्पष्टस्तुष्टः पुष्टः शुभेक्षणः ॥ ४२॥

रामो विरामो विरजो मार्गो नेयो नयोऽनयः ।
वीरः शक्तिमतां श्रेष्ठो धर्मो धर्मविदुत्तमः ॥ ४३॥

वैकुण्ठः पुरुषः प्राणः प्राणदः प्रणवः पृथुः ।
हिरण्यगर्भः शत्रुघ्नो व्याप्तो वायुरधोक्षजः ॥ ४४॥

ऋतुः सुदर्शनः कालः परमेष्ठी परिग्रहः ।
उग्रः संवत्सरो दक्षो विश्रामो विश्वदक्षिणः ॥ ४५॥

विस्तारः स्थावरस्थाणुः प्रमाणं बीजमव्ययम् ।
अर्थोऽनर्थो महाकोशो महाभोगो महाधनः ॥ ४६॥

अनिर्विण्णः स्थविष्ठोऽभूर्धर्मयूपो महामखः ।
नक्षत्रनेमिर्नक्षत्री क्षमः क्षामः समीरणः ॥ ४७॥

यज्ञ इज्यो महेज्यश्च क्रतुः सत्रं सतां गतिः ।
सर्वदर्शी विमुक्तात्मा सर्वज्ञो ज्ञानमुत्तमम् ॥ ४८॥

सुव्रतः सुमुखः सूक्ष्मः सुघोषः सुखदः सुहृत् ।
मनोहरो जितक्रोधो वीरबाहुर्विदारणः ॥ ४९॥

स्वापनः स्ववशो व्यापी नैकात्मा नैककर्मकृत् ।
वत्सरो वत्सलो वत्सी रत्नगर्भो धनेश्वरः ॥ ५०॥

धर्मगुब्धर्मकृद्धर्मी सदसत्क्षरमक्षरम् ।
अविज्ञाता सहस्रांशुर्विधाता कृतलक्षणः ॥ ५१॥

गभस्तिनेमिः सत्त्वस्थः सिंहो भूतमहेश्वरः ।
आदिदेवो महादेवो देवेशो देवभृद् गुरुः ॥ ५२॥

उत्तरो गोपतिर्गोप्ता ज्ञानगम्यः पुरातनः ।
शरीरभूतभृद्भोक्ता कपीन्द्रो भूरिदक्षिणः ॥ ५३॥

सोमपोऽमृतपः सोमः पुरुजित् पुरुसत्तमः ।
विनयो जयः सत्यसन्धो दाशार्हः सात्वताम्पतिः ॥ ५४॥

जीवो विनयिता साक्षी मुकुन्दोऽमितविक्रमः ।
अम्भोनिधिरनन्तात्मा महोदधिशयोऽन्तकः ॥ ५५॥

अजो महार्हः स्वाभाव्यो जितामित्रः प्रमोदनः ।
आनन्दो नन्दनो नन्दः सत्यधर्मा त्रिविक्रमः ॥ ५६॥

महर्षिः कपिलाचार्यः कृतज्ञो मेदिनीपतिः ।
त्रिपदस्त्रिदशाध्यक्षो महाश‍ृङ्गः कृतान्तकृत् ॥ ५७॥

महावराहो गोविन्दः सुषेणः कनकाङ्गदी ।
गुह्यो गभीरो गहनो गुप्तश्चक्रगदाधरः ॥ ५८॥

वेधाः स्वाङ्गोऽजितः कृष्णो दृढः सङ्कर्षणोऽच्युतः ।
वरुणो वारुणो वृक्षः पुष्कराक्षो महामनाः ॥ ५९॥

भगवान् भगहाऽऽनन्दी वनमाली हलायुधः ।
आदित्यो ज्योतिरादित्यः सहिष्णुर्गतिसत्तमः ॥ ६०॥

सुधन्वा खण्डपरशुर्दारुणो द्रविणप्रदः ।
दिवस्पृक् सर्वदृग्व्यासो वाचस्पतिरयोनिजः ॥ ६१॥

त्रिसामा सामगः साम निर्वाणं भेषजं भिषक् ।
संन्यासकृच्छमः शान्तो निष्ठा शान्तिः परायणम् ॥ ६२॥

शुभाङ्गः शान्तिदः स्रष्टा कुमुदः कुवलेशयः ।
गोहितो गोपतिर्गोप्ता वृषभाक्षो वृषप्रियः ॥ ६३॥

अनिवर्ती निवृत्तात्मा सङ्क्षेप्ता क्षेमकृच्छिवः ।
श्रीवत्सवक्षाः श्रीवासः श्रीपतिः श्रीमतां वरः ॥ ६४॥

श्रीदः श्रीशः श्रीनिवासः श्रीनिधिः श्रीविभावनः ।
श्रीधरः श्रीकरः श्रेयः श्रीमांल्लोकत्रयाश्रयः ॥ ६५॥

स्वक्षः स्वङ्गः शतानन्दो नन्दिर्ज्योतिर्गणेश्वरः ।
विजितात्माऽविधेयात्मा सत्कीर्तिश्छिन्नसंशयः ॥ ६६॥

उदीर्णः सर्वतश्चक्षुरनीशः शाश्वतस्थिरः ।
भूशयो भूषणो भूतिर्विशोकः शोकनाशनः ॥ ६७॥

अर्चिष्मानर्चितः कुम्भो विशुद्धात्मा विशोधनः ।
अनिरुद्धोऽप्रतिरथः प्रद्युम्नोऽमितविक्रमः ॥ ६८॥

कालनेमिनिहा वीरः शौरिः शूरजनेश्वरः ।
त्रिलोकात्मा त्रिलोकेशः केशवः केशिहा हरिः ॥ ६९॥

कामदेवः कामपालः कामी कान्तः कृतागमः ।
अनिर्देश्यवपुर्विष्णुर्वीरोऽनन्तो धनञ्जयः ॥ ७०॥

ब्रह्मण्यो ब्रह्मकृद् ब्रह्मा ब्रह्म ब्रह्मविवर्धनः ।
ब्रह्मविद् ब्राह्मणो ब्रह्मी ब्रह्मज्ञो ब्राह्मणप्रियः ॥ ७१॥

महाक्रमो महाकर्मा महातेजा महोरगः ।
महाक्रतुर्महायज्वा महायज्ञो महाहविः ॥ ७२॥

स्तव्यः स्तवप्रियः स्तोत्रं स्तुतिः स्तोता रणप्रियः ।
पूर्णः पूरयिता पुण्यः पुण्यकीर्तिरनामयः ॥ ७३॥

मनोजवस्तीर्थकरो वसुरेता वसुप्रदः ।
वसुप्रदो वासुदेवो वसुर्वसुमना हविः ॥ ७४॥

सद्गतिः सत्कृतिः सत्ता सद्भूतिः सत्परायणः ।
शूरसेनो यदुश्रेष्ठः सन्निवासः सुयामुनः ॥ ७५॥

भूतावासो वासुदेवः सर्वासुनिलयोऽनलः ।
दर्पहा दर्पदो दृप्तो दुर्धरोऽथापराजितः ॥ ७६॥

विश्वमूर्तिर्महामूर्तिर्दीप्तमूर्तिरमूर्तिमान् ।
अनेकमूर्तिरव्यक्तः शतमूर्तिः शताननः ॥ ७७॥

एको नैकः सवः कः किं यत् तत्पदमनुत्तमम् ।
लोकबन्धुर्लोकनाथो माधवो भक्तवत्सलः ॥ ७८॥

सुवर्णवर्णो हेमाङ्गो वराङ्गश्चन्दनाङ्गदी ।
वीरहा विषमः शून्यो घृताशीरचलश्चलः ॥ ७९॥

अमानी मानदो मान्यो लोकस्वामी त्रिलोकधृक् ।
सुमेधा मेधजो धन्यः सत्यमेधा धराधरः ॥ ८०॥

तेजोवृषो द्युतिधरः सर्वशस्त्रभृतां वरः ।
प्रग्रहो निग्रहो व्यग्रो नैकश‍ृङ्गो गदाग्रजः ॥ ८१॥

चतुर्मूर्तिश्चतुर्बाहुश्चतुर्व्यूहश्चतुर्गतिः ।
चतुरात्मा चतुर्भावश्चतुर्वेदविदेकपात् ॥ ८२॥

समावर्तोऽनिवृत्तात्मा दुर्जयो दुरतिक्रमः ।
दुर्लभो दुर्गमो दुर्गो दुरावासो दुरारिहा ॥ ८३॥

शुभाङ्गो लोकसारङ्गः सुतन्तुस्तन्तुवर्धनः ।
इन्द्रकर्मा महाकर्मा कृतकर्मा कृतागमः ॥ ८४॥

उद्भवः सुन्दरः सुन्दो रत्ननाभः सुलोचनः ।
अर्को वाजसनः श‍ृङ्गी जयन्तः सर्वविज्जयी ॥ ८५॥

सुवर्णबिन्दुरक्षोभ्यः सर्ववागीश्वरेश्वरः ।
महाह्रदो महागर्तो महाभूतो महानिधिः ॥ ८६॥

कुमुदः कुन्दरः कुन्दः पर्जन्यः पावनोऽनिलः ।
अमृताशोऽमृतवपुः सर्वज्ञः सर्वतोमुखः ॥ ८७॥

सुलभः सुव्रतः सिद्धः शत्रुजिच्छत्रुतापनः ।
न्यग्रोधोऽदुम्बरोऽश्वत्थश्चाणूरान्ध्रनिषूदनः ॥ ८८॥

सहस्रार्चिः सप्तजिह्वः सप्तैधाः सप्तवाहनः ।
अमूर्तिरनघोऽचिन्त्यो भयकृद्भयनाशनः ॥ ८९॥

अणुर्बृहत्कृशः स्थूलो गुणभृन्निर्गुणो महान् ।
अधृतः स्वधृतः स्वास्यः प्राग्वंशो वंशवर्धनः ॥ ९०॥

भारभृत् कथितो योगी योगीशः सर्वकामदः ।
आश्रमः श्रमणः क्षामः सुपर्णो वायुवाहनः ॥ ९१॥

धनुर्धरो धनुर्वेदो दण्डो दमयिता दमः ।
अपराजितः सर्वसहो नियन्ताऽनियमोऽयमः ॥ ९२॥

सत्त्ववान् सात्त्विकः सत्यः सत्यधर्मपरायणः ।
अभिप्रायः प्रियार्होऽर्हः प्रियकृत् प्रीतिवर्धनः ॥ ९३॥

विहायसगतिर्ज्योतिः सुरुचिर्हुतभुग्विभुः ।
रविर्विरोचनः सूर्यः सविता रविलोचनः ॥ ९४॥

अनन्तो हुतभुग्भोक्ता सुखदो नैकजोऽग्रजः ।
अनिर्विण्णः सदामर्षी लोकाधिष्ठानमद्भुतः ॥ ९५॥

सनात्सनातनतमः कपिलः कपिरव्ययः ।
स्वस्तिदः स्वस्तिकृत्स्वस्ति स्वस्तिभुक्स्वस्तिदक्षिणः ॥ ९६॥

अरौद्रः कुण्डली चक्री विक्रम्यूर्जितशासनः ।
शब्दातिगः शब्दसहः शिशिरः शर्वरीकरः ॥ ९७॥

अक्रूरः पेशलो दक्षो दक्षिणः क्षमिणां वरः ।
विद्वत्तमो वीतभयः पुण्यश्रवणकीर्तनः ॥ ९८॥

उत्तारणो दुष्कृतिहा पुण्यो दुःस्वप्ननाशनः ।
वीरहा रक्षणः सन्तो जीवनः पर्यवस्थितः ॥ ९९॥

अनन्तरूपोऽनन्तश्रीर्जितमन्युर्भयापहः ।
चतुरश्रो गभीरात्मा विदिशो व्यादिशो दिशः ॥ १००॥

अनादिर्भूर्भुवो लक्ष्मीः सुवीरो रुचिराङ्गदः ।
जननो जनजन्मादिर्भीमो भीमपराक्रमः ॥ १०१॥

आधारनिलयोऽधाता पुष्पहासः प्रजागरः ।
ऊर्ध्वगः सत्पथाचारः प्राणदः प्रणवः पणः ॥ १०२॥

प्रमाणं प्राणनिलयः प्राणभृत्प्राणजीवनः ।
तत्त्वं तत्त्वविदेकात्मा जन्ममृत्युजरातिगः ॥ १०३॥

भूर्भुवःस्वस्तरुस्तारः सविता प्रपितामहः ।
यज्ञो यज्ञपतिर्यज्वा यज्ञाङ्गो यज्ञवाहनः ॥ १०४॥

यज्ञभृद् यज्ञकृद् यज्ञी यज्ञभुग् यज्ञसाधनः ।
यज्ञान्तकृद् यज्ञगुह्यमन्नमन्नाद एव च ॥ १०५॥

आत्मयोनिः स्वयञ्जातो वैखानः सामगायनः ।
देवकीनन्दनः स्रष्टा क्षितीशः पापनाशनः ॥ १०६॥

शङ्खभृन्नन्दकी चक्री शार्ङ्गधन्वा गदाधरः ।
रथाङ्गपाणिरक्षोभ्यः सर्वप्रहरणायुधः ॥ १०७॥

सर्वप्रहरणायुध ॐ नम इति ।

वनमाली गदी शार्ङ्गी शङ्खी चक्री च नन्दकी ।
श्रीमान् नारायणो विष्णुर्वासुदेवोऽभिरक्षतु ॥ १०८॥

श्रीवासुदेवोऽभिरक्षतु ॐ नम इति ।

भीष्म उवाच -
इतीदं कीर्तनीयस्य केशवस्य महात्मनः ।
नाम्नां सहस्रं दिव्यानामशेषेण प्रकीर्तितम् ॥ १॥

य इदं श‍ृणुयान्नित्यं यश्चापि परिकीर्तयेत् ।
नाशुभं प्राप्नुयात्किञ्चित्सोऽमुत्रेह च मानवः ॥ २॥

वेदान्तगो ब्राह्मणः स्यात्क्षत्रियो विजयी भवेत् ।
वैश्यो धनसमृद्धः स्याच्छूद्रः सुखमवाप्नुयात् ॥ ३॥

धर्मार्थी प्राप्नुयाद्धर्ममर्थार्थी चार्थमाप्नुयात् ।
कामानवाप्नुयात्कामी प्रजार्थी प्राप्नुयात्प्रजाम् ॥ ४॥

भक्तिमान् यः सदोत्थाय शुचिस्तद्गतमानसः ।
सहस्रं वासुदेवस्य नाम्नामेतत्प्रकीर्तयेत् ॥ ५॥

यशः प्राप्नोति विपुलं ज्ञातिप्राधान्यमेव च ।
अचलां श्रियमाप्नोति श्रेयः प्राप्नोत्यनुत्तमम् ॥ ६॥

न भयं क्वचिदाप्नोति वीर्यं तेजश्च विन्दति ।
भवत्यरोगो द्युतिमान्बलरूपगुणान्वितः ॥ ७॥

रोगार्तो मुच्यते रोगाद्बद्धो मुच्येत बन्धनात् ।
भयान्मुच्येत भीतस्तु मुच्येतापन्न आपदः ॥ ८॥

दुर्गाण्यतितरत्याशु पुरुषः पुरुषोत्तमम् ।
स्तुवन्नामसहस्रेण नित्यं भक्तिसमन्वितः ॥ ९॥

वासुदेवाश्रयो मर्त्यो वासुदेवपरायणः ।
सर्वपापविशुद्धात्मा याति ब्रह्म सनातनम् ॥ १०॥

न वासुदेवभक्तानामशुभं विद्यते क्वचित् ।
जन्ममृत्युजराव्याधिभयं नैवोपजायते ॥ ११॥

इमं स्तवमधीयानः श्रद्धाभक्तिसमन्वितः ।
युज्येतात्मसुखक्षान्तिश्रीधृतिस्मृतिकीर्तिभिः ॥ १२॥

न क्रोधो न च मात्सर्यं न लोभो नाशुभा मतिः ।
भवन्ति कृत पुण्यानां भक्तानां पुरुषोत्तमे ॥ १३॥

द्यौः सचन्द्रार्कनक्षत्रा खं दिशो भूर्महोदधिः ।
वासुदेवस्य वीर्येण विधृतानि महात्मनः ॥ १४॥

ससुरासुरगन्धर्वं सयक्षोरगराक्षसम् ।
जगद्वशे वर्ततेदं कृष्णस्य सचराचरम् ॥ १५॥

इन्द्रियाणि मनो बुद्धिः सत्त्वं तेजो बलं धृतिः ।
वासुदेवात्मकान्याहुः क्षेत्रं क्षेत्रज्ञ एव च ॥ १६॥

सर्वागमानामाचारः प्रथमं परिकल्प्यते ।
आचारप्रभवो धर्मो धर्मस्य प्रभुरच्युतः ॥ १७॥

ऋषयः पितरो देवा महाभूतानि धातवः ।
जङ्गमाजङ्गमं चेदं जगन्नारायणोद्भवम् ॥ १८॥

योगो ज्ञानं तथा साङ्ख्यं विद्याः शिल्पादि कर्म च ।
वेदाः शास्त्राणि विज्ञानमेतत्सर्वं जनार्दनात् ॥ १९॥

एको विष्णुर्महद्भूतं पृथग्भूतान्यनेकशः ।
त्रीन् लोकान्व्याप्य भूतात्मा भुङ्क्ते विश्वभुगव्ययः ॥ २०॥

इमं स्तवं भगवतो विष्णोर्व्यासेन कीर्तितम् ।
पठेद्य इच्छेत् पुरुषः श्रेयः प्राप्तुं सुखानि च ॥ २१॥

विश्वेश्वरमजं देवं जगतः प्रभुमव्ययम् ।
भजन्ति ये पुष्कराक्षं न ते यान्ति पराभवम् ॥ २२॥

न ते यान्ति पराभव ॐ नम इति ।

अर्जुन उवाच -
पद्मपत्रविशालाक्ष पद्मनाभ सुरोत्तम ।
भक्तानामनुरक्तानां त्राता भव जनार्दन ॥ २३॥

श्रीभगवानुवाच -
यो मां नामसहस्रेण स्तोतुमिच्छति पाण्डव ।
सोहऽमेकेन श्लोकेन स्तुत एव न संशयः ॥ २४॥

स्तुत एव न संशय ॐ नम इति ।

व्यास उवाच -
वासनाद्वासुदेवस्य वासितं भुवनत्रयम् ।
सर्वभूतनिवासोऽसि वासुदेव नमोऽस्तु ते ॥ २५॥

श्री वासुदेव नमोऽस्तुत ॐ नम इति ।

पार्वत्युवाच -
केनोपायेन लघुना विष्णोर्नामसहस्रकम् ।
पठ्यते पण्डितैर्नित्यं श्रोतुमिच्छाम्यहं प्रभो ॥ २६॥

ईश्वर उवाच -
श्रीराम राम रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं राम नाम वरानने ॥ २७॥

श्रीरामनाम वरानन ॐ नम इति ।

ब्रह्मोवाच -
नमोऽस्त्वनन्ताय सहस्रमूर्तये
सहस्रपादाक्षिशिरोरुबाहवे ।
सहस्रनाम्ने पुरुषाय शाश्वते
सहस्रकोटियुगधारिणे नमः ॥ २८॥

सहस्रकोटियुगधारिणे नम ॐ नम इति ।

सञ्जय उवाच -
यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः ।
तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम ॥ २९॥

श्रीभगवानुवाच -
अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते ।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ॥ ३०॥

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥ ३१॥

आर्ता विषण्णाः शिथिलाश्च भीता घोरेषु च व्याधिषु वर्तमानाः ।
सङ्कीर्त्य नारायणशब्दमात्रं विमुक्तदुःखाः सुखिनो भवन्ति ॥ ३२॥

कायेन वाचा मनसेन्द्रियैर्वा बुद्ध्यात्मना वा प्रकृतेः स्वभावात् ।
करोमि यद्यत् सकलं परस्मै नारायणायेति समर्पयामि ॥ ३३॥

इति श्रीविष्णोर्दिव्यसहस्रनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।
।।ॐ तत् सत् ।।

05/08/2024

***Vedadhara से साभार***

*Aditya Stuti*

आदिरेष हि भूतानामादित्य इति संज्ञितः ।
त्रैलोक्यचक्षुरेवाऽत्र परमात्मा प्रजापतिः ।
एष वै मण्डले ह्यस्मिन् पुरुषो दीप्यते महान् ।
एष विष्णुरचिन्त्यात्मा ब्रह्मा चैष पितामहः ।
रुद्रो महेन्द्रो वरुण आकाशं पृथिवी जलम् ।
वायुः शशाङ्कः पर्जन्यो धनाध्यक्षो विभावसुः ।
य एव मण्डले ह्यस्मिन् पुरुषो दीप्यते महान् ।
एकः साक्षान्महादेवो वृत्रमण्डनिभः सदा ।
कालो ह्येष महाबाहुर्निबोधोत्पत्तिलक्षणः ।
य एष मण्डले ह्यस्मिंस्तेजोभिः पूरयन् महीम् ।
भ्राम्यते ह्यव्यवच्छिन्नो वातैर्योऽमृतलक्षणः ।
नातः परतरं किञ्चित् तेजसा विद्यते क्वचित् ।
पुष्णाति सर्वभूतानि एष एव सुधाऽमृतैः ।
अन्तःस्थान् म्लेच्छजातीयांस्तिर्यग्योनिगतानपि ।
कारुण्यात् सर्वभूतानि पासि त्वं च विभावसो ।
श्वित्रकुष्ठ्यन्धबधिरान् पङ्गूंश्चाऽपि तथा विभो ।
प्रपन्नवत्सलो देव कुरुते नीरुजो भवान् ।
चक्रमण्डलमग्नांश्च निर्धनाल्पायुषस्तथा ।
प्रत्यक्षदर्शी त्वं देव समुद्धरसि लीलया ।
का मे शक्तिः स्तवैः स्तोतुमार्त्तोऽहं रोगपीडितः ।
स्तूयसे त्वं सदा देवैर्ब्रह्मविष्णुशिवादिभिः ।
महेन्द्रसिद्धगन्धर्वैरप्सरोभिः सगुह्यकैः ।
स्तुतिभिः किं पवित्रैर्वा तव देव समीरितैः ।
यस्य ते ऋग्यजुःसाम्नां त्रितयं मण्डलस्थितम् ।
ध्यानिनां त्वं परं ध्यानं मोक्षद्वारं च मोक्षिणाम् ।
अनन्ततेजसाऽक्षोभ्यो ह्यचिन्त्याव्यक्तनिष्कलः ।
यदयं व्याहृतः किञ्चित् स्तोत्रे ह्यस्मिन् जगत्पतिः ।
आर्तिं भक्तिं च विज्ञाय तत्सर्वं ज्ञातुमर्हसि ।

aadiresha hi bhootaanaamaaditya iti sanjnyitah' .
trailokyachakshurevaa'tra paramaatmaa prajaapatih' .
esha vai mand'ale hyasmin purusho deepyate mahaan .
esha vishnurachintyaatmaa brahmaa chaisha pitaamahah' .
rudro mahendro varuna aakaasham' pri'thivee jalam .
vaayuh' shashaankah' parjanyo dhanaadhyaksho vibhaavasuh' .
ya eva mand'ale hyasmin purusho deepyate mahaan .
ekah' saakshaanmahaadevo vri'tramand'anibhah' sadaa .
kaalo hyesha mahaabaahurnibodhotpattilakshanah' .
ya esha mand'ale hyasmim'stejobhih' poorayan maheem .
bhraamyate hyavyavachchhinno vaatairyo'mri'talakshanah' .
naatah' parataram' kinchit tejasaa vidyate kvachit .
pushnaati sarvabhootaani esha eva sudhaa'mri'taih' .
antah'sthaan mlechchhajaateeyaam'stiryagyonigataanapi .
kaarunyaat sarvabhootaani paasi tvam' cha vibhaavaso .
shvitrakusht'hyandhabadhiraan pangoom'shchaa'pi tathaa vibho .
prapannavatsalo deva kurute neerujo bhavaan .
chakramand'alamagnaam'shcha nirdhanaalpaayushastathaa .
pratyakshadarshee tvam' deva samuddharasi leelayaa .
kaa me shaktih' stavaih' stotumaartto'ham' rogapeed'itah' .
stooyase tvam' sadaa devairbrahmavishnushivaadibhih' .
mahendrasiddhagandharvairapsarobhih' saguhyakaih' .
stutibhih' kim' pavitrairvaa tava deva sameeritaih' .
yasya te ri'gyajuh'saamnaam' tritayam' mand'alasthitam .
dhyaaninaam' tvam' param' dhyaanam' mokshadvaaram' cha mokshinaam .
anantatejasaa'kshobhyo hyachintyaavyaktanishkalah' .
yadayam' vyaahri'tah' kinchit stotre hyasmin jagatpatih' .
aartim' bhaktim' cha vijnyaaya tatsarvam' jnyaatumarhasi .

Meaning:

आदिरेष हि भूतानामादित्य इति संज्ञितः।
त्रैलोक्यचक्षुरेवात्र परमात्मा प्रजापतिः॥
This Aditya, known as the first among beings, is the Supreme Soul, the lord of all beings, the eye of the three worlds.

आदिरेष - this first हि - indeed भूतानाम् - of beings आदित्य - Aditya, Sun इति - thus संज्ञितः - is called त्रैलोक्य - three worlds चक्षुः - eye एव - indeed अत्र - here परमात्मा - Supreme Soul प्रजापतिः - lord of beings

एष वै मण्डले ह्यस्मिन् पुरुषो दीप्यते महान्।
एष विष्णुरचिन्त्यात्मा ब्रह्मा चैष पितामहः॥
This great being shines in this orb; He is Vishnu, the incomprehensible soul, and also Brahma, the grandsire.

एष - this वै - indeed मण्डले - in the orb हि - indeed अस्मिन् - in this पुरुषः - man दीप्यते - shines महान् - great विष्णुः - Vishnu अचिन्त्यात्मा - incomprehensible soul ब्रह्मा - Brahma च - and पितामहः - grandsire

रुद्रो महेन्द्रो वरुण आकाशं पृथिवी जलम्।
वायुः शशाङ्कः पर्जन्यो धनाध्यक्षो विभावसुः॥
He is Rudra, Mahendra, Varuna, the sky, the earth, water, air, the moon, Parjanya, the lord of wealth, and the fire.

रुद्रः - Rudra महेन्द्रः - Mahendra वरुणः - Varuna आकाशम् - sky पृथिवी - earth जलम् - water वायुः - air शशाङ्कः - moon पर्जन्यः - Parjanya धनाध्यक्षः - lord of wealth विभावसुः - fire

य एष मण्डले ह्यस्मिन् पुरुषो दीप्यते महान्।
एकः साक्षान्महादेवो वृत्रमण्डनिभः सदा॥
This great being shines in this orb; He is indeed Mahadeva, always shining like the destroyer of Vritra.

यः - who एष - this मण्डले - in the orb हि - indeed अस्मिन् - in this पुरुषः - man दीप्यते - shines महान् - great एकः - one साक्षात् - indeed महादेवः - Mahadeva वृत्रमण्डनिभः - like the destroyer of Vritra सदा - always

कालो ह्येष महाबाहुर्निबोधोत्पत्तिलक्षणः।
य एष मण्डले ह्यस्मिंस्तेजोभिः पूरयन् महीम्॥
This mighty-armed one is Time, the cause of creation. He fills the earth with his brilliance.

कालः - Time हि - indeed एष - this महाबाहुः - mighty-armed निबोध - know उत्पत्तिलक्षणः - cause of creation यः - who एष - this मण्डले - in the orb हि - indeed अस्मिन् - in this तेजोभिः - with brilliance पूरयन् - filling महीम् - the earth

भ्राम्यते ह्यव्यवच्छिन्नो वातैर्योऽमृतलक्षणः।
नातः परतरं किंचित् तेजसा विद्यते क्वचित्॥
He moves without interruption, marked by immortality. There is nothing superior to him in brilliance anywhere.

भ्राम्यते - moves हि - indeed अव्यवच्छिन्नः - without interruption वातैः - by winds यः - who अमृतलक्षणः - marked by immortality न - not अतः - than this परतरम् - superior किंचित् - anything तेजसा - in brilliance विद्यते - exists क्वचित् - anywhere

पुष्णाति सर्वभूतानि एष एव सुधामृतैः।
अन्तःस्थान् म्लेच्छजातीयांस्तिर्यग्योनिगतानपि॥
He nourishes all beings with nectar and sustains even those of inferior birth and animal origins.

पुष्णाति - nourishes सर्वभूतानि - all beings एष - this एव - indeed सुधामृतैः - with nectar अन्तःस्थान् - residing within म्लेच्छजातीयान् - of inferior birth तिर्यग्योनिगतान् - of animal origins अपि - also

कारुण्यात् सर्वभूतानि पासि त्वं च विभावसो।
श्वित्रकुष्ठ्यन्धबधिरान् पंगूंश्चापि तथा विभो॥
Out of compassion, you protect all beings, O Surya, including those afflicted with leprosy, blindness, deafness, and lameness.

कारुण्यात् - out of compassion सर्वभूतानि - all beings पासि - you protect त्वम् - you च - and विभावसो - O Surya श्वित्र - leprosy कुष्ठ - leprosy अन्ध - blindness बधिरान् - deafness पंगून् - lameness च - and अपि - also तथा - thus विभो - O Lord

प्रपन्नवत्सलो देव कुरुते नीरुजो भवान्।
चक्रमण्डलमग्नांश्च निर्धनाल्पायुषस्तथा॥
O Lord, you are affectionate to the surrendered and make them disease-free. You also help the poor and those with short life spans.

प्रपन्नवत्सलः - affectionate to the surrendered देव - O Lord कुरुते - makes नीरुजः - disease-free भवान् - you चक्रमण्डलम् - in the orb of the wheel अग्नान् - fire च - and निर्धनान् - poor अल्पायुषः - short life spans तथा - thus

प्रत्यक्षदर्शी त्वं देव समुद्धरसि लीलया।
का मे शक्तिः स्तवैः स्तोतुमार्तोऽहं रोगपीडितः॥
O Lord, you directly see and effortlessly uplift. What power do I have to praise you, being afflicted with disease and distress?

प्रत्यक्षदर्शी - directly seeing त्वम् - you देव - O Lord समुद्धरसि - uplift लीलया - effortlessly का - what मे - my शक्तिः - power स्तवैः - with praises स्तोतुम् - to praise आर्तः - afflicted अहम् - I रोगपीडितः - afflicted with disease

स्तूयसे त्वं सदा देवैर्बह्मविष्णुशिवादिभिः।
महेन्द्रसिद्धगन्धर्वैरप्सरोभिः सगुह्यकैः॥
You are always praised by gods, Brahma, Vishnu, Shiva, Mahendra, Siddhas, Gandharvas, Apsaras, and Guhyakas.

स्तूयसे - are praised त्वम् - you सदा - always देवैः - by gods ब्रह्म - Brahma विष्णु - Vishnu शिवादिभिः - and Shiva महेन्द्र - Mahendra सिद्ध - Siddhas गन्धर्वैः - Gandharvas अप्सरोभिः - Apsaras स - and गुह्यकैः - Guhyakas

स्तुतिभिः किं पवित्रैर्वा तव देव समीरितैः।
यस्य ते ऋग्यजुः साम्नां त्रितयं मण्डलस्थितम्॥
What use are praises or hymns to you, O Lord, whose essence is enshrined in the Rig, Yajur, and Sama Vedas?

स्तुतिभिः - with praises किम् - what पवित्रैः - holy वा - or तव - your देव - O Lord समीरितैः - chanted यस्य - whose ते - your ऋक् - Rig Veda यजुः - Yajur Veda साम्नाम् - Sama Veda त्रितयम् - trio मण्डलस्थितम् - enshrined in the orb

ध्यानिनां त्वं परं ध्यानं मोक्षद्वारं च मोक्षिणाम्।
अनन्ततेजसाक्षोभ्यो ह्यचिन्त्याव्यक्तनिष्कलः॥
You are the supreme meditation for yogis, the gateway to liberation for the liberated, with infinite, unshakable, inconceivable, and unmanifested brilliance.

ध्यानिनाम् - for meditators त्वम् - you परम् - supreme ध्यानम् - meditation मोक्षद्वारम् - gateway to liberation च - and मोक्षिणाम् - for the liberated अनन्ततेजः - infinite brilliance अक्षोभ्यः - unshakable हि - indeed अचिन्त्यः - inconceivable अव्यक्तः - unmanifested निष्कलः - without parts

यदयं व्याहृतः किंचित् स्तोत्रेऽस्मिञ्जगतः पतिः।
आर्तिं भक्तिं च विज्ञाय तत्सर्वं ज्ञातुमर्हसि॥
Whatever little is expressed in this hymn, O Lord of the universe, recognizing my distress and devotion, you should know it all.

यत् - whatever अयम् - this व्याहृतः - expressed किंचित् - a little स्तोत्रे - in the hymn अस्मिन् - in this जगतः - of the universe पतिः - Lord आर्तिम् - distress भक्तिम् - devotion च - and विज्ञाय - recognizing तत् - that सर्वम् - all ज्ञातुम् - to know अर्हसि - should

Benefits of Chanting the Stotra:
Chanting these verses with devotion provides health benefits and relief from diseases. It invokes the supreme energy of Surya Bhagavan, purifying the mind and granting clarity. Regular recitation can lead to inner peace and divine blessings, promoting overall well-being, health, and healing.

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