Yogi vaidyasala

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🌿 त्रिकटु – आयुर्वेद का चमत्कारी फार्मूलात्रिकटु का मतलब ही है – तीन तीखे मसाले।👉 सोंठ (सूखी अदरक)👉 काली मिर्च👉 पिप्पली ...
27/08/2025

🌿 त्रिकटु – आयुर्वेद का चमत्कारी फार्मूला

त्रिकटु का मतलब ही है – तीन तीखे मसाले।
👉 सोंठ (सूखी अदरक)
👉 काली मिर्च
👉 पिप्पली (लंबी मिर्च)

आयुर्वेद में इसे “उष्ण वीर्य” (गर्म प्रकृति वाला) माना गया है।
यानि ये शरीर की पाचन शक्ति को जगाता है, चयापचय (मेटाबॉलिज्म) को तेज करता है और शरीर के ज़हरीले तत्वों (आम दोष) को बाहर निकालता है।

🔥 त्रिकटु के अद्भुत फायदे

✅ पाचन तंत्र का रखवाला
भूख बढ़ाए, गैस-अपच दूर करे, आंतों से गंदगी (आम) निकाले और पेट फूलने की समस्या में रामबाण।

✅ वजन घटाने में मददगार
मेटाबॉलिज्म तेज करता है और चर्बी गलाने की प्रक्रिया को तेज़ कर देता है।

✅ सांस की बीमारियों का दुश्मन
खांसी, जुकाम, बलगम, अस्थमा और ब्रॉन्काइटिस में राहत।

✅ इम्यूनिटी बूस्टर
मौसमी सर्दी-जुकाम, वायरल और फ्लू से बचाने वाला सुरक्षा कवच।

✅ जोड़ों और मांसपेशियों का दोस्त
गर्मी और सूजन कम करके गठिया व दर्द में राहत।

✅ त्वचा की सफाई करने वाला
मुंहासे और स्किन इन्फेक्शन में फायदेमंद।

✅ डिटॉक्स करने वाला
लीवर और किडनी को साफ रखकर शरीर की अशुद्धियां बाहर निकालता है।

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🌱 त्रिकटु के सुपरहिट नुस्खे

1️⃣ त्रिकटु + त्रिफला
👉 कब्ज, पाचन और डिटॉक्स के लिए
🔹 1/4 चम्मच त्रिकटु + 1/2 चम्मच त्रिफला गुनगुने पानी में
🌙 रात को सोने से पहले लें।

2️⃣ त्रिकटु + गिलोय
👉 इम्यूनिटी और बुखार के लिए
🔹 1/4 चम्मच त्रिकटु + 1 चम्मच गिलोय रस + शहद
🌞 सुबह खाली पेट लें।

3️⃣ त्रिकटु + अश्वगंधा
👉 कमजोरी और तनाव दूर करने के लिए
🔹 1/4 चम्मच त्रिकटु + 1/2 चम्मच अश्वगंधा गर्म दूध में
🌙 रात को सोने से पहले पिएं।

4️⃣ त्रिकटु + तुलसी
👉 खांसी-जुकाम और अस्थमा के लिए
🔹 तुलसी की पत्तियां उबालकर काढ़ा बनाएं, उसमें त्रिकटु + शहद मिलाएं।
🌞 सुबह-शाम लें।

5️⃣ त्रिकटु + हल्दी
👉 जोड़ों के दर्द और सूजन के लिए
🔹 1/4 चम्मच त्रिकटु + 1/2 चम्मच हल्दी दूध/पानी में
🌙 रात को लें।

6️⃣ त्रिकटु + शहद + नींबू
👉 वजन घटाने और डिटॉक्स के लिए
🔹 त्रिकटु + नींबू रस + शहद गुनगुने पानी में
🌞 सुबह खाली पेट पिएं।

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⚖️ सही मात्रा और सावधानियां

📌 मात्रा: 1/4 से 1/2 चम्मच, दिन में 1–2 बार
📌 समय: सुबह खाली पेट या भोजन से पहले

🚫 पित्त प्रकृति वाले लोग, गर्भवती महिलाएं और ज़्यादा गर्मी वाले शरीर वालों को बिना वैद्य की सलाह के न लें।
🚫 अधिक मात्रा लेने पर एसिडिटी, जलन या दस्त हो सकते हैं।

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✨ निष्कर्ष

त्रिकटु छोटा पैकेट बड़ा धमाका है।
यह पाचन, वजन, श्वसन और इम्यूनिटी – हर क्षेत्र में कमाल दिखाता है।
और जब इसे त्रिफला, गिलोय, अश्वगंधा, तुलसी, हल्दी या शहद के साथ मिलाया जाता है – तो इसका असर और कई गुना बढ़ जाता है।

👉 लेकिन याद रखिए –
"औषधि उतनी ही वरदान है, जितनी सही मात्रा में ली जाए।"🙏

08/08/2025

बिच्छुओं से कीजिए इलाज़

पुराने समय में महिलाओं को पैरों की उंगलियों में बिछियां पहने देखा होगा। लेकिन आजकल के व्यस्त जीवन और मॉडर्न समय मे ये ज्यादातर महिलाएं नही पहनती। जबकि ये केवल श्रृंगार नही है बल्कि बिछियां वाले स्थान पर जो पॉइंट होता है, उसका डायरेक्ट सम्बन्ध महिलाओं के गर्भाशय से होता है।
इस स्थान पर बिछियां पहनने से मासिक चक्र नियमित होता है। ये एक्युप्रेशर थेरेपी का बहुत अच्छा पॉइंट है। साधारण शब्दों में कहा जाएं तो यदि महिलाओं में पीरियड्स डिस्टर्ब हो तो पैरो में बिच्छुए पहनना शुरू करें।

25/07/2025

बच्चों के लिए आयुर्वेद का वरदान है 'स्वर्ण प्राशन', उन्हें बलवान और बुद्धिमान बनाने के लिए जरूर कराएं स्वर्ण प्राशन संस्कार
स्वर्ण प्राशन संस्कार बच्चों के लिए वरदान से कम नहीं हैं. इस लेख में जानिए स्वर्ण प्राशन संस्कार क्या है, स्वर्ण प्राशन संस्कार कितने साल के बच्चों का किया जाता है और स्वर्ण प्राशन संस्कार के लाभ क्या हैं.
घर में जब बच्चे का जन्म होता है तो माता-पिता की खुशी का ठिकाना नही रह जाता है। इस ख़ुशी के मौके पर पूरा परिवार और यहां तक कि रिश्तेदार खुशियां मानते है । ऐसे में माता पिता बच्चे के बेहतर स्वास्थ्य के लिए और बीमारियों से बचाने के लिए कुछ प्राचीन संस्कार अपनाते हैं ताकि बच्चा निरोगी और बीमारियों से लड़ने में पूरी तरह से सक्षम रहे।

प्राचीन संस्कारो में से एक है स्वर्ण प्राशन (Suvarnaprashan) संस्कार, यह सनातन धर्म के 16 संस्कारों में से एक संस्कार है जो बच्चे के जन्म से लेकर 16 वर्ष की आयु तक कराया जाता है। स्वर्ण प्राशन संस्कार आयुर्वेद चिकित्सा की वह धरोहर है जो बच्चों में होने वाली मौसमी बीमरियों से रक्षा करता है। बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य में स्वर्णप्राशन की बहुत अच्छी भूमिका निभाता है।
विस्तार से जानिए स्वर्ण प्राशन (Suvarnaprashan) संस्कार क्या है?
स्वर्ण प्राशन संस्कार स्वर्ण (गोल्ड) के साथ शहद, ब्रह्माणी, अश्वगंधा, गिलोय, शंखपुष्पी, वचा आदि जड़ी बुटियों से निर्मित एक रसायन है। जिसका सेवन पुष्य नक्षत्र के दौरान किया जाता है। स्वर्णप्राशन संस्कार से बच्चों की शारीरिक एवं मानसिक गति में अच्छा सुधार होता है। यह बहुत ही प्रभावशाली और इम्युनिटी बूस्टर होता है, जो बच्चों में रोगों से लड़ने की क्षमता पैदा करता है।

स्वर्ण प्राशन संस्कार से विभिन्न रोगों से लड़ने की क्षमता बच्चों पैदा होती है। आयुर्वेद के क्षेत्र से जुड़े हमारे ऋषि मुनियों एवं आचार्यों ने हजारों वर्षों पूर्व वायरस और बैक्टीरिया जनित बीमारियों से लड़ने के लिए एक ऐसा रसायन का निर्माण किया जिसे स्वर्णप्राशन कहा जाता है। स्वर्ण प्राशन का अर्थ होता है स्वर्ण (सोना) का सेवन।
स्वर्ण प्राशन संस्कार कब और कैसे कराया जाता है?
भारत के प्राचीन 16 संस्कारों में स्वर्ण संस्कार भी एक प्रमुख संस्कार है। हिन्दू परंपरा के अनुसार जब किसी बालक का जन्म होता है तो हिन्दू रीति-रिवाज के अनुसार नवजात शिशु को सोने या फिर चांदी की सली (सलाई) से बच्चे की जीभ पर शहद चटाने या फिर ऊँ लिखने की प्राचीन परंपरा है। मगर आज के समय में बहुत कम लोगों को इसकी जानकारी है। जो माता-पिता इस संस्कार का पालन पूरे नियम के अनुसार करते है तो उनके बच्चों में रोगों से लड़ने की क्षमता बेहतर होती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्रत्येक माह पुष्य नक्षत्र (Pushya Nakshatra) आता है और उसी नक्षत्र के दिन बच्चे को आयुर्वेदिक जड़ी बुटियों से निर्मित रसायन पान कराया जाता है। यह क्रम लगभग 12 से 14 महीनों तक लगातार चलता रहता है.

स्वर्ण प्राशन कौन-कौन से बच्चे ले सकते है?
डॉक्टर चंचल शर्मा के अनुसार, जन्म से लेकर 16 वर्ष की आयु तक के सभी स्वस्थ और अस्वस्थ बच्चे स्वर्ण प्राशन का रस पान कर सकते है। बहुत से लोगों के मन में यह प्रश्न भी उठ सकता है कि क्या इसके कोई दुष्प्रणाम भी है क्या तो बता दें कि इसके एक भी दुष्प्रणाम नहीं है। यह पूरी तरीके से नेचुरल है और यह पूरी तरह से सुरक्षित है।
स्वर्ण प्राशन संस्कार के महत्व क्या-क्या हैं?
स्वर्ण धातु सभी धातुओं में सबसे श्रेष्ठ धातु मानी जाती है। स्वर्ण धातु शरीर के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण होती है। यह बच्चों के विकास तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता में बढ़ाने में सबसे अच्छा योगदान देती है। इन सभी कारणों से ही हजारों वर्षों के बाद भी आज स्वर्ण प्राशन का महत्व बना हुआ है। आयुर्वेद के महान ऋषियों का मत था कि कैसे भी मानव शरीर में स्वर्ण (गोल्ड) की आवश्यकता अनिवार्य है। स्वर्ण प्राशन संस्कार से बच्चे के मानसिक और बौद्धिक क्षमता का विकास होता है। इसके द्वारा बालक के शरीर, मन, बुद्धि और वाणी का उत्तम विकास होता है।

स्वर्ण प्राशन संस्कार के लाभ - Health Benefits Of Suvarnaprashan Sanskar
आयुर्वेद विज्ञान के अनुसार स्वर्ण प्राशन के कई लाभ है जो आपके बच्चे को स्वस्थ बनाने के साथ-साथ गुणकारी, तेजस्वी, ऊर्जावान और बलवान बनाने में मदद करते है।
1.स्वर्ण प्राशन संस्कार के पालन से बालक की बुद्धि, मन, बल एवं पाचन शाक्ति में तेजस्व की वृद्धि होती है।
2.प्रतिदिन स्वर्ण प्राशन का सेवन अगर किसी अच्छे आयुर्वेदिक चिकित्सक की देखरेख में किया जाये तो बालक तेजस्वी बनता है।
3. 6 माह तक नियमित सेवन से बच्चे में स्मरण शाक्ति बढ़ोत्तरी होती है। बच्चा जो बाते सुनता है उसे वह हमेशा याद रहती है।
4.रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है अर्थात सामान्य बच्चों के मुकाबले यह बालक जल्दी से बीमार नही होता है।
5.शारीरिक शाक्ति में वृद्धि होती है ।
6.मानसिक एवं शारीरिक विकास होने से बालक होशियार और बुद्धिमान बनता है।
7.पाचन तंत्र मजबूत होता है।
8.स्वर्णप्राशन से बैक्टीरियल और वायरस (कोरोना वायरस) संक्रमण से आसानी से बचा जा सकता है।
9.महामारी एवं मौसमी बीमारियों से बच्चों के स्वास्थ्य का ख्याल रखता है।
10.बालक सुन्दर और बलशाली बनता है।

👉 72 घंटे का उपवास: मस्तिष्क के लिए प्राकृतिक इलाज,,,,,,??• क्या आप जानते हैं कि 72 घंटे का उपवास आपके मस्तिष्क के लिए ए...
10/07/2025

👉 72 घंटे का उपवास: मस्तिष्क के लिए प्राकृतिक इलाज,,,,,,??

• क्या आप जानते हैं कि 72 घंटे का उपवास आपके मस्तिष्क के लिए एक प्राकृतिक इलाज है,,?

• यह नशे की लत, डिप्रेशन और चिंता को बिना किसी दवा के दूर कर सकता है,,,??
यह थेरेपी है—बिना थेरेपिस्ट के।

• लेकिन उपवास को सही तरीके से करना ज़रूरी है। आइए समझते हैं कि यह कैसे काम करता है।

➡️ उपवास सिर्फ वज़न घटाने के लिए नहीं है

अधिकांश लोग सोचते हैं कि उपवास का उद्देश्य सिर्फ वजन घटाना या पाचन तंत्र को आराम देना है।
लेकिन असली “जादू” हमारे शरीर के सेलुलर स्तर पर होता है, जिसे ऑटोफैजी (Autophagy) कहा जाता है।

• ऑटोफैजी: मस्तिष्क की सफाई प्रक्रिया

ऑटोफैजी आपके मस्तिष्क की अंदरूनी डिटॉक्स मोड है।
यह खराब सेल्स, टूटी हुई माइटोकॉन्ड्रिया, और उन प्रोटीन को साफ करती है जो अल्ज़ाइमर, थकान और डिप्रेशन से जुड़े होते हैं।

• आप सिर्फ खाना नहीं छोड़ रहे—आप मानसिक कचरे को हटा रहे हैं।

👉 72 घंटे का उपवास क्या करता है?

तीन दिन का उपवास मस्तिष्क के लिए एक गहन मरम्मत प्रक्रिया की तरह है।
इस दौरान सक्रिय होता है BDNF (Brain-Derived Neurotrophic Factor)—एक हार्मोन जो नई न्यूरॉन्स बनाने में मदद करता है:

• याददाश्त तेज करता है

• मूड बेहतर करता है

• न्यूरोलॉजिकल बीमारियों से बचाव करता है

➡️ उपवास कैसे करें: चरण-दर-चरण
शुरू करने से पहले (2–3 दिन की तैयारी)
16:8 इंटरमिटेंट फास्टिंग अपनाएं

• कार्ब्स कम करें, हेल्दी फैट्स बढ़ाएं

• नींद और पानी पर ध्यान दें

• यह सब शरीर को धीरे-धीरे कीटोसिस में प्रवेश करने में मदद करेगा और पहले दिन की तकलीफ़ को कम करेगा।

➡️ दिन 1: मानसिक क्रैश
आपका मस्तिष्क घबरा जाता है।
खाने का मतलब होता है डोपामिन—अब वो नहीं मिल रहा।

• आप चिड़चिड़े, थके हुए और बेचैन महसूस करेंगे।
यह असफलता नहीं है—यह विथड्रॉअल है।

• यह वही समय है जब मस्तिष्क की लत टूटती है।
हाइड्रेट रहें, टहलें, स्क्रीन से दूर रहें।

➡️ दिन 2: स्विच ऑन
अब आपका शरीर फैट को जलाने लगता है।
कीटोसिस शुरू होती है।

आपका मस्तिष्क अब शुगर की जगह कीटोन्स से ऊर्जा लेने लगता है:

• मानसिक स्पष्टता

• भूख कम

• चिंता में राहत

अब आप टूट नहीं रहे—आप रीसेट हो रहे हैं।

➡️ दिन 3: ब्रेन रिबूट
यह वह स्तर है जहां अधिकांश लोग पहुंच ही नहीं पाते।

आप शांत, केंद्रित, सतर्क और यहां तक कि हल्की-सी यूफोरिया (आनंदानुभूति) महसूस करते हैं।

• कोई दवा नहीं

• कोई ऐप नहीं

• सिर्फ बायोलॉजी

अब आपका मस्तिष्क खुद को साफ कर रहा है।
BDNF तेजी से बढ़ रहा है—यही आपकी याददाश्त, मूड और लर्निंग को सुधारता है।

➡️ 72 घंटे बाद आपको क्या महसूस होगा:

• आंतरिक शांति

• तेज़ सोच

• बाहरी व्याकुलताओं से दूरी

• संतुलित डोपामिन स्तर

अब आप प्रतिक्रिया देना बंद करते हैं—और चुनाव करना शुरू करते हैं।

👉 उपवास का असली लाभ क्या है?

• लोग सोचते हैं उपवास भोजन का त्याग है,
लेकिन असली परिवर्तन मस्तिष्क में होता है।

• यह आपके तनाव प्रतिक्रिया तंत्र को रीसेट करता है।

➡️ सोचिए:
अगर आप ओवरस्टिम्युलेशन से मुक्त हो जाएं तो आप क्या बन सकते हैं?

• क्या खा सकते हैं 72 घंटे के उपवास में?
शुद्ध पानी (सादा या स्पार्कलिंग)

ब्लैक कॉफ़ी (बिना चीनी या क्रीम)

सादा हर्बल या ग्रीन टी

इलेक्ट्रोलाइट्स (बिना मिठास)

शुद्ध उपवास करने वाले सिर्फ पानी लेते हैं।

➡️ उपवास तोड़ना कैसे है?
सूप से शुरुआत करें

1 घंटे बाद—1-2 उबले अंडे या एवोकाडो या भीगे हुए अंकुरित मूंग लें

फिर 1 घंटे बाद—एक छोटा प्रोटीन और फैट वाला भोजन

कम से कम 24 घंटे तक कार्ब्स, चीनी और प्रोसेस्ड फूड से दूर रहें

➡️ अनुभव से सीखा गया:
"पहली बार 72 घंटे का उपवास करना कठिन होता है।
दूसरी बार चुनौतीपूर्ण होता है लेकिन संभाल सकते हैं।
तीसरी बार, आपको खुद हैरानी होगी कि यह कितना आसान लगता है।"

👉 शरीर सीखता है, और हर बार यह आसान होता जाता है।

और सबसे अच्छी बात?
लाभ धीरे-धीरे बढ़ते हैं।

➡️ निष्कर्ष:
72 घंटे का उपवास सिर्फ उपवास नहीं है—यह मस्तिष्क की मरम्मत है।
यह एक नशे से बाहर निकलने, मानसिक स्पष्टता पाने और जीवन में फिर से नियंत्रण पाने का तरीका है।
अगर आपने ये आजमाया हो तो दूसरों के साथ भी शेयर करें।
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सर्वाइकल, माइग्रेन का धागा(जड़ी)।क्या आप सर्वाइकल या माइग्रेन के कारण गर्दन दर्द, चक्कर, कंधे या पीठ के दर्द से परेशान ह...
05/06/2025

सर्वाइकल, माइग्रेन का धागा(जड़ी)।

क्या आप सर्वाइकल या माइग्रेन के कारण गर्दन दर्द, चक्कर, कंधे या पीठ के दर्द से परेशान है।

अब दर्द से राहत पाना है आसान, पहनिए सर्वाइकल, माइग्रेन का धागा (जड़ी)। एक आयुर्वेदिक उपाय जिसे पहनने से कुछ ही दिनों में आराम महसूस होने लगता है।

जड़ी से बना धागा मंत्र और पारंपरिक विधियों से सिद्ध करके तयार किया गया है।

इस धागे में ऐसी खास जड़ी है, जो शरीर के दर्द वाले हिस्से पर सकारात्मक प्रभाव डालती है। बिना दवा, बिना इंजेक्शन बस पहनिए और फर्क महसूस कीजिए।

हमारे यहां धागा (जड़ी) बिल्कुल फ्री दिया जा रहा है।

हजारों लोगों ने इसे पहन कर अपने दर्द को अलविदा कहा है। अब है आपकी बारी।

अभी संपर्क करें और फ्री पाए - सर्वाइकल, माइग्रेन का धागा (जड़ी)।

कृपया सर्वाइकल या माइग्रेन की समस्या से जो पीड़ित है उनसे निवेदन है कि स्वयं आकर धागा (जड़ी) प्राप्त करें।

स्वस्थ जीवन की ओर एक छोटा कदम पहने और फर्क महसूस करें।

जय आयुर्वेद जय धन्वंतरि
Yogi viadysala
Dugri -dhandra road
Manakwal gate
Ludhiana 098141 35353

ਸਰਵਾਈਕਲ, ਮਾਈਗ੍ਰੇਨ ਦਾ ਧਾਗਾ (ਜੜੀ)।ਕੀ ਤੁਸੀਂ ਸਰਵਾਈਕਲ ਜਾਂ ਮਾਈਗ੍ਰੇਨ ਕਾਰਨ ਗਰਦਨ ਦਰਦ, ਚੱਕਰ, ਮੋਢੇ ਜਾਂ ਪਿੱਠ ਦੇ ਦਰਦ ਨਾਲ ਪਰੇਸ਼ਾਨ ਹੋ?ਹੁ...
05/06/2025

ਸਰਵਾਈਕਲ, ਮਾਈਗ੍ਰੇਨ ਦਾ ਧਾਗਾ (ਜੜੀ)।

ਕੀ ਤੁਸੀਂ ਸਰਵਾਈਕਲ ਜਾਂ ਮਾਈਗ੍ਰੇਨ ਕਾਰਨ ਗਰਦਨ ਦਰਦ, ਚੱਕਰ, ਮੋਢੇ ਜਾਂ ਪਿੱਠ ਦੇ ਦਰਦ ਨਾਲ ਪਰੇਸ਼ਾਨ ਹੋ?

ਹੁਣ ਦਰਦ ਤੋਂ ਰਹਾਤ ਪਾਉਣਾ ਹੋ ਗਿਆ ਆਸਾਨ, ਪਹਿਨੋ ਸਰਵਾਈਕਲ, ਮਾਈਗ੍ਰੇਨ ਦਾ ਧਾਗਾ (ਜੜੀ)।
ਇੱਕ ਆਯੁਰਵੇਦਿਕ ਉਪਾਅ ਜਿਸਨੂੰ ਪਹਿਨਣ ਨਾਲ ਕੁਝ ਹੀ ਦਿਨਾਂ ਵਿੱਚ ਆਰਾਮ ਮਹਿਸੂਸ ਹੋਣ ਲੱਗਦਾ ਹੈ।

ਜੜੀ ਨਾਲ ਬਣਿਆ ਧਾਗਾ ਮੰਤਰਾਂ ਅਤੇ ਪਰੰਪਰਾਗਤ ਵਿਧੀਆਂ ਰਾਹੀਂ ਸਿੱਧ ਕਰਕੇ ਤਿਆਰ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਹੈ।

ਇਸ ਧਾਗੇ ਵਿੱਚ ਐਸੀ ਖਾਸ ਜੜੀ ਹੈ, ਜੋ ਸਰੀਰ ਦੇ ਦਰਦ ਵਾਲੇ ਹਿੱਸੇ 'ਤੇ ਸਕਾਰਾਤਮਕ ਅਸਰ ਪਾਂਦੀ ਹੈ।
ਨਾ ਕੋਈ ਦਵਾਈ, ਨਾ ਕੋਈ ਇੰਜੈਕਸ਼ਨ — ਸਿਰਫ਼ ਪਹਿਨੋ ਅਤੇ ਅੰਤਰ ਮਹਿਸੂਸ ਕਰੋ।

ਸਾਡੇ ਕੋਲੋਂ ਇਹ ਧਾਗਾ (ਜੜੀ) ਬਿਲਕੁਲ ਮੁਫ਼ਤ ਦਿੱਤਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ।

ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਇਹਨੂੰ ਪਹਿਨ ਕੇ ਆਪਣੇ ਦਰਦ ਨੂੰ ਅਲਵਿਦਾ ਆਖਿਆ ਹੈ। ਹੁਣ ਤੁਹਾਡੀ ਵਾਰੀ ਹੈ।

ਹੁਣੇ ਸੰਪਰਕ ਕਰੋ ਅਤੇ ਮੁਫ਼ਤ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰੋ — ਸਰਵਾਈਕਲ, ਮਾਈਗ੍ਰੇਨ ਦਾ ਧਾਗਾ (ਜੜੀ)।

ਕਿਰਪਾ ਕਰਕੇ ਜੋ ਵੀ ਸਰਵਾਈਕਲ ਜਾਂ ਮਾਈਗ੍ਰੇਨ ਦੀ ਸਮੱਸਿਆ ਨਾਲ ਪੀੜਤ ਹਨ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਬੇਨਤੀ ਹੈ ਕਿ ਖੁਦ ਆ ਕੇ ਧਾਗਾ (ਜੜੀ) ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰੋ।

ਸਿਹਤਮੰਦ ਜੀਵਨ ਵੱਲ ਇੱਕ ਛੋਟਾ ਕਦਮ — ਪਹਿਨੋ ਅਤੇ ਅੰਤਰ ਮਹਿਸੂਸ ਕਰੋ।

ਜੈ ਆਯੁਰਵੇਦ, ਜੈ ਧਨਵੰਤਰੀ।
Yogi viadysala
Dugri -dhandra road
Near=manakwal gate
Ludhiana 141116
Mobile number=9814135353

स्वर्ग से आए हैं तीन फूल अपराजिता, पारिजात और मधुकामिनी, जानिए मधुकामिनी क्या है?  #मधुकामिनी के फूल गर्मियों में खिलते ...
02/05/2025

स्वर्ग से आए हैं तीन फूल अपराजिता, पारिजात और मधुकामिनी, जानिए मधुकामिनी क्या है?
#मधुकामिनी के फूल गर्मियों में खिलते हैं। घर में अगर एक बार आपने कामिनी के फूल का पौधा लगा दिया तो ४-५ वर्ष या इससे अधिक समय तक फूल आते रहेंगे। सौंधी और मनमोहक खुशबू के कारण इसे अपने घर की बालकनी में लगाना बहुत ही आसान है।
मधुकामिनी प्लांट को सबसे अच्छे इनडोर और आउटडोर पौधों में से एक माना जाता है। वास्तु के अनुसार यह प्लांट घर-आंगन को खुशियों से भर सकता है।जरूरी बात यह है कि यह कम रखरखाव वाला पौधा है और इसमें सुगंधित फूलों के गुच्छे होते हैं जो सुंदर ति‍तलियों और चिड़ियों को बहुत आकर्षित करते हैं।
मधुकामिनी फूल का वनस्पति नाम है मुराया पैनीकुलेटम। यह एक सफेद रंग का फूल है जो घर की सज्जा के साथ औषधि के लिए भी प्रयोग किया जाता है

खूशबूदार फूलों में से मधुकामिनी दिन रात महकने वाला प्लांट है। यह एक सदाबहार झाड़ीनुमा पौधा है जिसका आकार ५-१५ फिट तक होता है। नारंगी यानी संतरा जैसी सुगंध आने के कारण इसको ऑरेंज जैस्मीन नाम से भी जाना जाता है। इसके फूलों का रंग सफेद होता है!
इसके फूलों की मनभावन सुगंध मानसिक तनाव को दूर करने वाली होती है!

मान्यता है कि जो तीन फूल स्वर्ग से आए हैं उसमें #अपराजिता, #पारिजात के साथ तीसरा फूल मधुकामिनी ही है...


मधुकामिनी के लाभ

इसके मात्र २ पत्तों को उबाल कर पीने से श्वास रोग में बहुत ज्यादा लाभ होता है। गला साफ़ होता है।

इसके फूलों को बेडरूम में रखने से दाम्पत्य जीवन सुखी रहता है। ऐसा माना गया है।

मधुकामिनी की पत्तियां शुभकारी होती हैं इसीलिए विवाह मण्डपों में इसका प्रयोग होता है।

 #होली_का_त्योहार_क्यों_मनाते_हैं? #रंगों के त्यौहार’ के तौर पर मशहूर होली का त्योहार  #फाल्गुन महीने में  #पूर्णिमा के ...
13/03/2025

#होली_का_त्योहार_क्यों_मनाते_हैं?
#रंगों के त्यौहार’ के तौर पर मशहूर होली का त्योहार #फाल्गुन महीने में #पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। तेज संगीत और ढोल के बीच एक दूसरे पर रंग और पानी फेंका जाता है। भारत के अन्य त्यौहारों की तरह होली भी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। प्राचीन #पौराणिक कथा के अनुसार होली का त्योहार, हिरण्यकश्यप की कहानी जुड़ी है।

#होली_का_इतिहास

#हिरण्यकश्यप प्राचीन भारत का एक राजा था जो कि राक्षस की तरह था। वह अपने छोटे भाई की मौत का बदला लेना चाहता था जिसे भगवान विष्णु ने मारा था। इसलिए अपने आप को शक्तिशाली बनाने के लिए उसने सालों तक प्रार्थना की। आखिरकार उसे वरदान मिला। लेकिन इससे हिरण्यकश्यप खुद को भगवान समझने लगा और लोगों से खुद की भगवान की तरह पूजा करने को कहने लगा। इस दुष्ट राजा का एक बेटा था जिसका नाम #प्रहलाद था और वह भगवान विष्णु का परम भक्त था। प्रहलाद ने अपने पिता का कहना कभी नहीं माना और वह भगवान विष्णु की पूजा करता रहा। बेटे द्वारा अपनी पूजा ना करने से नाराज उस राजा ने अपने बेटे को मारने का निर्णय किया। उसने अपनी बहन #होलिका से कहा कि वो प्रहलाद को गोद में लेकर आग में बैठ जाए क्योंकि होलिका आग में जल नहीं सकती थी। उनकी योजना प्रहलाद को जलाने की थी, लेकिन उनकी योजना सफल नहीं हो सकी क्योंकि प्रहलाद सारा समय भगवान विष्णु का नाम लेता रहा और बच गया पर होलिका जलकर राख हो गई। होलिका की ये हार बुराई के नष्ट होने का प्रतीक है। इसके बाद भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप का #वध कर दिया, इसलिए होली का त्योहार, होलिका की मौत की कहानी से जुड़ा हुआ है। इसके चलते भारत के कुछ राज्यों में होली से एक दिन पहले बुराई के अंत के प्रतीक के तौर पर होली जलाई जाती है।

#रंग_होली_का_भाग_कैसे_बने?

यह कहानी भगवान विष्णु के अवतार भगवान कृष्ण के समय तक जाती है। माना जाता है कि भगवान #कृष्ण #रंगों से होली मनाते थे, इसलिए होली का त्योहार रंगों के रूप में लोकप्रिय हुआ। वे #वृंदावन और #गोकुल में अपने साथियों के साथ होली मनाते थे। वे पूरे गांव में मज़ाक भरी शैतानियां करते थे। आज भी वृंदावन जैसी मस्ती भरी होली कहीं नहीं मनाई जाती।
होली #वसंत का त्यौहार है और इसके आने पर सर्दियां खत्म होती हैं। कुछ हिस्सों में इस त्यौहार का संबंध वसंत की फसल पकने से भी है। किसान अच्छी फसल पैदा होने की खुशी में होली मनाते हैं। होली को ‘वसंत महोत्सव’ या ‘काम महोत्सव’ भी कहते हैं।

#होली_एक_प्राचीन_त्यौहार_है

होली प्राचीन हिंदू त्यौहारों में से एक है और यह ईसा मसीह के जन्म के कई सदियों पहले से मनाया जा रहा है। होली का वर्णन जैमिनि के पूर्वमिमांसा सूत्र और कथक गुह्य सूत्र में भी है।

प्राचीन भारत के मंदिरों की दीवारों पर भी होली की मूर्तियां बनी हैं। ऐसा ही 16वीं सदी का एक मंदिर विजयनगर की राजधानी #हंपी में है। इस मंदिर में होली के कई दृश्य हैं जिसमें राजकुमार, राजकुमारी अपने दासों सहित एक दूसरे पर रंग लगा रहे हैं।

कई मध्ययुगीन चित्र, जैसे 16वीं सदी के अहमदनगर चित्र, मेवाड़ पेंटिंग, बूंदी के लघु चित्र, सब में अलग अलग तरह होली मनाते देखा जा सकता है।
अभिज्ञान शाकुंतलम, वात्सायन कामसूत्र, रघुवंश, मालविकाग्नि मित्रम, भविष्योत्तर पुराण आदि में होली के व्यापक महत्व का वर्णन मिलता है।

#आयुर्वेद_में_होली_का_महत्त्व

होली का #आयुर्वेद की दृष्टि से बहुत ज्यादा महत्व है। #शिशिर ऋतु के अंत और #बसंतऋतु के आगमन पर आयोजित होने वाले होली त्योहार के बाद सूर्य का तेज बढ़ने लगता है। इस समय शरीर में कफ का प्रकोप होता है जिससे शरीर की #त्वचा पर अनेक #विकार होने की संभावना रहती है, उन त्वचा के विकारों को दूर करने के लिए #पलास आदि फूलो के रंग लगाकर शरीर पर मलने से कफदोष दूर होता है
आयुर्वेद के संहिता ग्रंथो में कहा गया है कि शीतकाल में जमा #कफ गर्मी मिलते ही बाहर निकलने लगता है। प्राकृतिक रंगों का प्रयोग करने से शारीरिक विकार दूर हो जाते हैं।
पहले होली के रंग #टेसू या #पलाश के फूलों से बनते थे और उन्हें #गुलाल कहा जाता था। वो रंग त्वचा के लिए बहुत अच्छे होते थे क्योंकि उनमें कोई रसायन नहीं होता था। लेकिन समय के साथ रंगों की परिभाषा बदलती गई। आज के समय में लोग रंग के नाम पर कठोर रसायन का उपयोग करते हैं। इन खराब रंगों के चलते ही कई लोगों ने होली खेलना छोड़ दिया है। हमें इस पुराने त्यौहार को इसके सच्चे स्वरुप में ही मनाना चाहिए।

#होली_समारोह

होली एक दिन का त्यौहार नहीं है। कई राज्यों में यह तीन दिन तक मनाया जाता है।

दिन 1 – पूर्णिमा के दिन एक थाली में रंगों को सजाया जाता है और परिवार का सबसे बड़ा सदस्य बाकी सदस्यों पर रंग छिड़कता है।

दिन 2 – इसे पूनो भी कहते हैं। इस दिन होलिका के चित्र जलाते हैं और होलिका और प्रहलाद की याद में होली जलाई जाती है। अग्नि देवता के आशीर्वाद के लिए मांएं अपने बच्चों के साथ जलती हुई होली के पांच चक्कर लगाती हैं।

दिन 3 – इस दिन को ‘पर्व’ कहते हैं और यह होली उत्सव का अंतिम दिन होता है। इस दिन एक दूसरे पर रंग और पानी डाला जाता है। भगवान कृष्ण और राधा की मूर्तियों पर भी रंग डालकर उनकी पूजा की जाती है।

आप सभी को रंगों का त्यौहार होली की हार्दिक शुभकामनाएं
🙏

  "मौत को छोड कर हर मर्ज की दवाई है कलौंजी"कलयुग में धरती पर संजीवनी है कलौंजी, अनगिनत रोगों को चुटकियों में ठीक करती है...
12/03/2025


"मौत को छोड कर हर मर्ज की दवाई है कलौंजी"

कलयुग में धरती पर संजीवनी है कलौंजी, अनगिनत रोगों को चुटकियों में ठीक करती है।

[A] कैसे करें इसका सेवन?

कलौंजी के बीजों का सीधा सेवन किया जा सकता है।
एक छोटा चम्मच कलौंजी को शहद में मिश्रित करके इसका सेवन करें।
पानी में कलौंजी उबालकर छान लें और इसे पिएँ।
दूध में कलौंजी उबालें। ठंडा होने दें फिर इस मिश्रण को पिएँ।
कलौंजी को ग्राइंड करें व पानी तथा दूध के साथ इसका सेवन करें।
कलौंजी को ब्रैड, पनीर तथा पेस्ट्रियों पर छिड़क कर इसका सेवन करें।

[B] ये किन-किन रोगों में सहायक है?

1/. टाइप-2 डायबिटीज:
प्रतिदिन 2 ग्राम कलौंजी के सेवन के परिणामस्वरूप तेज हो रहा ग्लूकोज कम होता है। इंसुलिन रैजिस्टैंस घटती है,बीटा सैल की कार्यप्रणाली में वृद्धि होती है तथा ग्लाइकोसिलेटिड हीमोग्लोबिन में कमी आती है।

2/. मिर्गी:
2007 में हुए एक अध्ययन के अनुसार मिर्गी से पीड़ित बच्चों में कलौंजी के सत्व का सेवन दौरे को कम करता है।

3/. उच्च रक्तचाप:
100 या 200 मि.ग्रा. कलौंजी के सत्व के दिन में दो बार सेवन से हाइपरटैंशन के मरीजों में ब्लड प्रैशर कम होता है।
रक्तचाप (ब्लडप्रेशर) में एक कप गर्म पानी में आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर दिन में 2 बार पीने से रक्तचाप सामान्य बना रहता है। तथा 28 मि.ली. जैतुन का तेल और एक चम्मच
कलौंजी का तेल मिलाकर पूर शरीर पर मालिश आधे घंटे तक धूप में रहने से रक्तचाप में लाभ मिलता है। यह क्रिया हर तीसरे दिन एक महीने तक करना चाहिए।

4/. गंजापन:
जली हुई कलौंजी को हेयर ऑइल में मिलाकर नियमित रूप से सिर पर मालिश करने से गंजापन दूर होकर बाल उग आते हैं।

5/. त्वचा के विकार:
कलौंजी के चूर्ण को नारियल के तेल में मिलाकर त्वचा पर मालिश करने से त्वचा के विकार नष्ट होते हैं।

6/. लकवा:
कलौंजी का तेल एक चौथाई चम्मच की मात्रा में एक कप दूध के साथ कुछ महीने तक प्रतिदिन पीने और रोगग्रस्त अंगों पर कलौंजी के तेल से मालिश करने से लकवा रोग ठीक होता है।

7/. कान की सूजन, बहरापन:
कलौंजी का तेल कान में डालने से कान की सूजन दूर होती है। इससे बहरापन में भी लाभ होता है।

8/. सर्दी-जुकाम:
कलौंजी के बीजों को सेंककर और कपड़े में लपेटकर सूंघने से और कलौंजी का तेल और जैतून का तेल बराबर की मात्रा में नाक में टपकाने से सर्दी-जुकाम समाप्त होता है। आधा कप पानी में आधा चम्मच कलौंजी का तेल व चौथाई चम्मच जैतून का तेल मिलाकर इतना उबालें कि पानी खत्म हो जाए और केवल तेल ही रह जाए। इसके बाद इसे छानकर 2 बूंद नाक में डालें। इससे सर्दी-जुकाम
ठीक होता है। यह पुराने जुकाम भी लाभकारी होता है।

9/. कलौंजी को पानी में उबालकर इसका सत्व पीने से अस्थमा में काफी अच्छा प्रभाव पड़ता है।

10/. छींके:
कलौंजी और सूखे चने को एक साथ अच्छी तरह मसलकर किसी कपड़े में बांधकर सूंघने से छींके आनी बंद हो जाती है।

11/. पेट के कीडे़:
दस ग्राम कलौंजी को पीसकर 3 चम्मच शहद के साथ रात सोते समय कुछ दिन तक नियमित रूप से सेवन करने से पेट के कीडे़ नष्ट हो जाते हैं।

12/. प्रसव की पीड़ा:
कलौंजी का काढ़ा बनाकर सेवन करने से प्रसव की पीड़ा दूर होती है।

13/. पोलियों का रोग:
आधे कप गर्म पानी में एक चम्मच शहद व आधे चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर सुबह खाली पेट और रात को सोते समय लें। इससे पोलियों का रोग ठीक होता है।

14/. मुँहासे:
सिरके में कलौंजी को पीसकर रात को सोते समय पूरे चेहरे पर लगाएं और सुबह पानी से चेहरे को साफ करने से मुंहासे कुछ दिनों में ही ठीक हो जाते हैं।

15/. स्फूर्ति:
स्फूर्ति (रीवायटल) के लिए नांरगी के रस में आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर सेवन करने से आलस्य और थकान दूर होती है।

16/. गठिया:
कलौंजी को रीठा के पत्तों के साथ काढ़ा बनाकर पीने से गठिया रोग समाप्त होता है।

17/. जोड़ों का दर्द:
एक चम्मच सिरका, आधा चम्मच कलौंजी का तेल और दो चम्मच शहद मिलाकर सुबह खाली पेट और रात को सोते समय पीने से जोड़ों का दर्द ठीक होता है।

18/. आँखों के सभी रोग:
आँखों की लाली, मोतियाबिन्द, आँखों से पानी का आना, आँखों की रोशनी कम होना आदि। इस तरह के आँखों के रोगों में एक कप गाजर का रस, आधा चम्मच कलौंजी का तेल और दो चम्मच शहद मिलाकर दिन में 2बार सेवन करें। इससे आँखों के सभी रोग ठीक होते हैं। आँखों के चारों और तथा पलकों पर कलौंजी का तेल रात को सोते समय लगाएं। इससे आँखों के रोग समाप्त होते हैं। रोगी को अचार, बैंगन, अंडा व मछली नहीं खाना चाहिए।

19/. स्नायुविक व मानसिक तनाव:
एक कप गर्म पानी में आधा चम्मच कलौंजी का तेल डालकर रात को सोते समय पीने से स्नायुविक व मानसिक तनाव दूर होता है।

20/. गांठ:
कलौंजी के तेल को गांठो पर लगाने और एक चम्मच कलौंजी का तेल गर्म दूध में डालकर पीने से गांठ नष्ट होती है।

21/. मलेरिया का बुखार:
पिसी हुई कलौंजी आधा चम्मच और एक चम्मच शहद मिलाकर चाटने से मलेरिया का बुखार ठीक होता है।

22/. स्वप्नदोष:
यदि रात को नींद में वीर्य अपने आप निकल जाता हो तो एक कप सेब के रस में आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर दिन में 2 बार सेवन करें। इससे स्वप्नदोष दूर होता है। प्रतिदिन कलौंजी के तेल की चार बूंद एक चम्मच नारियल तेल में मिलाकर सोते समय सिर में लगाने स्वप्न दोष का रोग ठीक होता है। उपचार करते समय नींबू का सेवन न करें।

23/. कब्ज:
चीनी 5 ग्राम, सोनामुखी 4 ग्राम, 1 गिलास हल्का गर्म दूध और आधा चम्मच कलौंजी का तेल। इन सभी को एक साथ मिलाकर रात को सोते समय पीने से कब्ज नष्ट होती है।

24/. खून की कमी:
एक कप पानी में 50 ग्राम हरा पुदीना उबाल लें और इस पानी में आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर सुबह खाली पेट एवं रात को सोते समय सेवन करें। इससे 21 दिनों में खून की कमी दूर होती है। रोगी को खाने में खट्टी वस्तुओं का उपयोग नहीं करना चाहिए।

25/. पेट दर्द:
किसी भी कारण से पेट दर्द हो एक गिलास नींबू पानी में 2 चम्मच शहद और आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर दिन में 2 बार पीएं। उपचार करते समय रोगी को बेसन की चीजे नहीं खानी चाहिए। या चुटकी भर नमक और आधे चम्मच कलौंजी के तेल को आधा गिलास हल्का गर्म
पानी मिलाकर पीने से पेट का दर्द ठीक होता है। या फिर 1 गिलास मौसमी के रस में 2 चम्मच शहद और आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर दिन में 2 बार पीने से पेट का दर्द समाप्त होता है।

26/. सिर दर्द:
कलौंजी के तेल को ललाट से कानों तक अच्छी तरह मलनें और आधा चम्मच कलौंजी के तेल को 1 चम्मच शहद में मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से सिर दर्द ठीक होता है। कलौंजी खाने के साथ सिर पर कलौंजी का तेल और जैतून का तेल मिलाकर मालिश करें। इससे सिर दर्द में आराम मिलता है और सिर से सम्बंधित अन्य रोगों भी दूर होते हैं।
कलौंजी के बीजों को गर्म करके पीस लें और कपड़े में बांधकर सूंघें। इससे सिर का दर्द दूर होता है।
कलौंजी और काला जीरा बराबर मात्रा में लेकर पानी में पीस लें और माथे पर लेप करें। इससे सर्दी के कारण होने वाला सिर का दर्द दूर होता है।

27/. उल्टी:
आधा चम्मच कलौंजी का तेल और आधा चम्मच अदरक का रस मिलाकर सुबह-शाम पीने से उल्टी बंद होती है।

28/. हार्निया:
तीन चम्मच करेले का रस और आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर सुबह खाली पेट एवं रात को सोते समय पीने से हार्निया रोग ठीक होता है।

29/. मिर्गी के दौरें:
एक कप गर्म पानी में 2 चम्मच शहद और आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करने से मिर्गी के दौरें ठीक होते हैं। मिर्गी के रोगी को ठंडी चीजे जैसे- अमरूद, केला, सीताफल आदि नहीं देना चाहिए।

30/. पीलिया:
एक कप दूध में आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर प्रतिदिन 2 बार सुबह खाली पेट और रात को सोते समय 1 सप्ताह तक लेने से पीलिया रोग समाप्त होता है। पीलिया से पीड़ित रोगी को खाने में मसालेदार व खट्टी वस्तुओं का उपयोग नहीं करना चाहिए।

31/. कैंसर का रोग:
एक गिलास अंगूर के रस में आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर दिन में 3 बार पीने से कैंसर का रोग ठीक होता है। इससे आंतों का कैंसर, ब्लड कैंसर व गले का कैंसर आदि में भी लाभ मिलता है। इस रोग में रोगी को औषधि देने के साथ ही एक किलो जौ के आटे में 2 किलो गेहूं का आटा मिलाकर इसकी रोटी, दलिया बनाकर रोगी को देना चाहिए। इस रोग में आलू, अरबी और बैंगन का सेवन नहीं करना चाहिए। कैंसर के रोगी को कलौंजी डालकर हलवा बनाकर खाना चाहिए।

32/. दांत:
कलौंजी का तेल और लौंग का तेल 1-1 बूंद मिलाकर दांत व मसूढ़ों पर लगाने से दर्द ठीक होता है। आग में सेंधानमक जलाकर बारीक पीस लें और इसमें 2-4 बूंदे कलौंजी का तेल डालकर दांत साफ करें। इससे साफ व स्वस्थ रहते हैं।
दांतों में कीड़े लगना व खोखलापन: रात को सोते समय कलौंजी के तेल में रुई को भिगोकर खोखले दांतों में रखने से कीड़े नष्ट होते हैं।

33/. नींद:
रात में सोने से पहले आधा चम्मच कलौंजी का तेल और एक चम्मच शहद मिलाकर पीने से नींद अच्छी आती है।

34/. मासिकधर्म:
कलौंजी आधा से एक ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से मासिकधर्म शुरू होता है। इससे गर्भपात होने की संभावना नहीं रहती है।
जिन माताओं बहनों को मासिकधर्म कष्ट से आता है उनके लिए कलौंजी आधा से एक ग्राम की मात्रा में सेवन करने से मासिकस्राव का कष्ट दूर होता है और बंद मासिकस्राव शुरू हो जाता है।
कलौंजी का चूर्ण 3 ग्राम की मात्रा में शहद मिलाकर चाटने से ऋतुस्राव की पीड़ा नष्ट होती है।
मासिकधर्म की अनियमितता में लगभग आधा से डेढ़ ग्राम की मात्रा में कलौंजी के चूर्ण का सेवन करने से मासिकधर्म नियमित समय पर आने लगता है।
यदि मासिकस्राव बंद हो गया हो और पेट में दर्द रहता हो तो एक कप गर्म पानी में आधा चम्मच कलौंजी का तेल और दो चम्मच शहद मिलाकर सुबह-शाम पीना चाहिए। इससे बंद मासिकस्राव शुरू हो जाता है।
कलौंजी आधा से एक ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन 2-3 बार सेवन करने से मासिकस्राव शुरू होता है।

35/. गर्भवती महिलाओं को वर्जित:
*गर्भवती महिलाओं को इसका सेवन नहीं कराना चाहिए क्योंकि इससे गर्भपात हो सकता है।*

36/. स्तनों का आकार:
कलौंजी आधे से एक ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से स्तनों का आकार बढ़ता है और स्तन सुडौल बनता है।

37/. स्तनों में दूध:
कलौंजी को आधे से 1 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सुबह-शाम खाने से स्तनों में दूध बढ़ता है।

38/. स्त्रियों के चेहरे व हाथ-पैरों की सूजन:
कलौंजी पीसकर लेप करने से हाथ पैरों की सूजन दूर होती है।

39/. बाल लम्बे व घने:
50 ग्राम कलौंजी 1 लीटर पानी में उबाल लें और इस पानी से बालों को धोएं इससे बाल लम्बे व घने होते हैं।

40/. बेरी-बेरी रोग:
बेरी-बेरी रोग में कलौंजी को पीसकर हाथ-पैरों की सूजन पर लगाने से सूजन मिटती है।

41/. भूख का अधिक लगना:
50 ग्राम कलौंजी को सिरके में रात को भिगो दें और सूबह पीसकर शहद में मिलाकर 4-5 ग्राम की मात्रा सेवन करें। इससे भूख का अधिक लगना कम होता है।

42/. नपुंसकता:
कलौंजी का तेल और जैतून का तेल मिलाकर पीने से नपुंसकता दूर होती है।

43/. खाज-खुजली:
50 ग्राम कलौंजी के बीजों को पीस लें और इसमें 10 ग्राम बिल्व के पत्तों का रस व 10 ग्राम हल्दी मिलाकर लेप बना लें। यह लेप खाज-खुजली में प्रतिदिन लगाने से रोग ठीक होता है।

44/. नाड़ी का छूटना:
नाड़ी का छूटना के लिए आधे से 1 ग्राम कालौंजी को पीसकर रोगी को देने से शरीर का ठंडापन दूर होता है और नाड़ी की गति भी तेज होती है। इस रोग में आधे से 1 ग्राम कालौंजी हर 6 घंटे पर लें और ठीक होने पर इसका प्रयोग बंद कर दें। कलौंजी को पीसकर लेप करने से नाड़ी की जलन व सूजन दूर होती है।

45/. हिचकी:
एक ग्राम पिसी कलौंजी शहद में मिलाकर चाटने से हिचकी आनी बंद हो जाती है। तथा कलौंजी आधा से एक ग्राम की मात्रा में मठ्ठे के साथ प्रतिदिन 3-4 बार सेवन से हिचकी दूर होती है। या फिर कलौंजी का चूर्ण 3 ग्राम मक्खन के साथ खाने से हिचकी दूर होती है। और यदि
3 ग्राम कलौंजी पीसकर दही के पानी में मिलाकर खाने से हिचकी ठीक होती है।

46/. स्मरण शक्ति:
लगभग 2 ग्राम की मात्रा में कलौंजी को पीसकर 2 ग्राम शहद में मिलाकर सुबह-शाम खाने से स्मरण शक्ति बढ़ती है।

47/. पेट की गैस:
कलौंजी, जीरा और अजवाइन को बराबर मात्रा में पीसकर एक चम्मच की मात्रा में खाना खाने के बाद लेने से पेट की गैस नष्ट होता है।

48/. पेशाब की जलन:
250 मिलीलीटर दूध में आधा चम्मच कलौंजी का तेल और एक चम्मच शहद मिलाकर पीने से पेशाब की जलन दूर होती है।

■ " चूना अमृत है " ..■〰〰〰〰〰〰〰चूना जो आप पान में खाते है वो सत्तर बीमारी ठीक करदेते है ।जैसे किसी को पीलिया हो जाये माने ...
28/02/2025

■ " चूना अमृत है " ..■
〰〰〰〰〰〰〰
चूना जो आप पान में खाते है वो सत्तर बीमारी ठीक कर
देते है ।

जैसे किसी को पीलिया हो जाये माने जॉन्डिस
उसकी सबसे अच्छी दवा है चूना ;
गेहूँ के दाने के बराबर चूना गन्ने के रस में मिलाकर पिलाने से बहुत जल्दी पीलिया ठीक कर देता है ।
और ये ही चूना नपुंसकता की सबसे अच्छी दवा है -

■ अगर किसी के शुक्राणु नही बनता उसको अगर गन्ने के रस के साथ चूना पिलाया जाये तो
साल डेढ़ साल में भरपूर शुक्राणु बनने लगेंगे; और
जिन माताओं के शरीर में अन्डे नही बनते उनकी बहुत अच्छी दवा है ये चूना ।

■ बिद्यार्थीओ के लिए चूना बहुत अच्छा है जो लम्बाई बढाता है -

■ गेहूँ के दाने के बराबर चूना रोज दही में मिला के खाना चाहिए,
दही नही है तो दाल में मिला के खाओ,
दाल नही है तो पानी में मिला के पियो - इससे लम्बाई बढने के साथ स्मरण शक्ति भी बहुत अच्छा होता है ।

■ जिन बच्चों की बुद्धि कम काम करती है मतिमंद बच्चे
उनकी सबसे अच्छी दवा है चूना

■ जो बच्चे बुद्धि से कम है, दिमाग देर में काम करते है, देर में सोचते है हर चीज
उनकी स्लो है उन सभी बच्चे को चूना खिलाने से अच्छे
हो जायेंगे ।

■ बहनों को अपने मासिक धर्म के समय अगर कुछ भी तकलीफ होती हो तो उसका सबसे अच्छी दवा है चूना ।
हमारे घर में जो माताएं है जिनकी उम्र पचास वर्ष हो गयी और उनका मासिक धर्म बंध हुआ उनकी सबसे अच्छी दवा है चूना; गेहूँ के दाने के बराबर चूना हर दिन खाना दाल में, लस्सी में, नही तो पानी में घोल के पीना । जब कोई माँ गर्भावस्था में है तो चूना रोज खाना चाहिए क्योंकि गर्भवती माँ को सबसे ज्यादा केल्शियम की जरुरत होती है और चूना केल्शियम का सबसे बड़ा भंडार है ।

■ गर्भवती माँ को चूना खिलाना चाहिए
अनार के रस में - अनार का रस एक कप और चूना गेहूँ के दाने के बराबर ये मिलाके रोज पिलाइए नौ महीने तक लगातार दीजिये
तो चार फायदे होंगे -

■ पहला फायदा :-
माँ को बच्चे के जनम के समय कोई तकलीफ नही होगी और नॉर्मल डीलिवरी होगा,

■ दूसरा :-
बच्चा जो पैदा होगा वो बहुत हृष्ट पुष्ट और तंदुरुस्त
होगा ,

■ तीसरा फ़ायदा :-
बच्चा जिन्दगी में जल्दी बीमार नही पड़ता जिसकी माँ ने चूना खाया ,

■ चौथा सबसे बड़ा लाभ :-
बच्चा बहुत होशियार होता है बहुत Intelligent और Brilliant होता है उसका IQ बहुत अच्छा होता है ।
चूना घुटने का दर्द ठीक करता है , ■ कमर का दर्द ठीक करता है ,

■ कंधे का दर्द ठीक करता है,

■ एक खतरनाक बीमारी है Spondylitis वो चुने से ठीक होता है ।
कई बार हमारे रीढ़की हड्डी में जो मनके होते है उसमे दुरी बढ़ जाती है Gap आ जाता है - ये चूना ही ठीक करता है
उसको; रीड़ की हड्डी की सब बीमारिया चूने से ठीक होता है ।
अगर आपकी हड्डी टूट जाये तो टूटी हुई हड्डी को जोड़ने की ताकत सबसे ज्यादा चूने में है ।
चूना खाइए सुबह को खाली पेट ।

■ मुंह में ठंडा गरम पानी लगता है तो चूना खाओ बिलकुल ठीक हो जाता है ,

■ मुंह में अगर छाले हो गए है
तो चूने का पानी पियो तुरन्त ठीक हो जाता है ।

■ शरीर में जब खून कम हो जाये तो चूना जरुर लेना चाहिए ,

■ एनीमिया है खून की कमी है उसकी सबसे अच्छी दवा है ये चूना ,
चूना पीते रहो गन्ने के रस में , या संतरे के रस में नही तो सबसे अच्छा है अनार के रस में - अनार के रस में चूना पिए खून बहुत बढता है ,
बहुत जल्दी खून बनता है -

एक कप अनार का रस गेहूँ के दाने के बराबर चूना सुबह
खाली पेट ।

भारत के जो लोग चूने से पान खाते है, बहुत होशियार लोग
है पर तम्बाकू नही खाना, तम्बाकू ज़हर है और चूना अमृत है ..
तो चूना खाइए तम्बाकू मत खाइए और पान खाइए चूने का उसमे कत्था मत लगाइए, कत्था केन्सर करता है,

● पान में सुपारी मत डालिए ● सोंट डालिए उसमे ,
● इलाइची डालिए ,
● लौंग डालिए.
● केशर डालिए ;
ये सब डालिए पान में चूना लगा के पर तम्बाकू नही , सुपारी नही और कत्था नही ।
■ घुटने में घिसाव आ गया और डॉक्टर कहे के घुटना बदल दो तो भी जरुरत नही चूना खाते रहिये

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Dugri - Dhandra Road, Near Manakwal Gate
Ludhiana
141116

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Tuesday 9am - 5pm
Wednesday 9am - 5pm
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