Jai Maa Kali astrologer

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Jai Maa Kali  astrologer MAA KI KIRPA
(2)

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13/07/2025
Jai Maa Kali
13/07/2025

Jai Maa Kali

06/07/2025

**अष्टम भाव **
अष्टम भाव डेंजर का है अर्थात ख़तरे का ऐसा ख़तरा जो बिना बात के गले पड़ जाए इसलिए जो ग्रह यहाँ बैठे उसके कारण के व्यक्ति से बचे जैसे शुक्र हो तो स्त्री से न उलझें मंगल हो तो पुरुष से शानि हो तो जानवर से गुरु हो तो शिक्षक से बुध हो तो रिश्तेदार से चंद्र हो तो मान समान स्त्री से सूर्य हो तो सरकार से
एस्ट्रो रोहित चोपड़ा 7508866666

*घर में गरीबी आने के कारण.....*1=रसोई घर के पास में पेशाब करना ।2=टुटी हूई कन्घी से कंगा करना ।3=टूटा हुआ सामान उपयोग कर...
04/07/2025

*घर में गरीबी आने के कारण.....*

1=रसोई घर के पास में पेशाब करना ।
2=टुटी हूई कन्घी से कंगा करना ।
3=टूटा हुआ सामान उपयोग करना।
4= घर में कूडा-करकट रखना।
5=रिश्तेदारो से बदसुलूकी करना।
6=बांए पैर से पैंट पहनना।
7=सांध्या वेला मे सोना।
8=मेहमान आने पर नाराज होना।
9=आमदनी से ज्यादा खर्च करना।
10=दाँत से रोटी काट कर खाना।
11=चालीस दीन से ज्यादा बाल रखना
12=दांत से नाखून काटना।
13=खडे खडे पेशाब करना ।
14=औरतो का खडे खडे बाल बांधना।
15 =फटे हुए कपड़े पहनना ।
16=सुबह सूरज निकलने तक सोते रहना।
17=पेंड के नीचे पेशाब करना।
18=बैतूल खला में बाते करना।
19=उल्टा सोना।
20=श्यमशान भूमि में हसना ।
21=पीने का पानी रात में खुला रखना
22=रात में मागने वाले को कुछ ना देना
23=बुरे ख्याल लाना।
24=पवित्रता के बगैर धर्मग्रंथ पढना।
25=शौच करते वक्त बाते,करना।
26=हाथ धोए बगैर भोजन करना ।
27=अपनी औलाद को कोसना।
28=दरवाजे पर बैठना।
29=लहसुन प्याज के छीलके जलाना।
30=साधू फकीर को अपमानित करना या उस से
रोटीया फिर और कोई चीज खरीदना।
31=फूक मार के दीपक बुझाना।
32=ईश्वर को धन्यवाद किए बगैर भोजन
करना।
33=झूठी कसम खाना।
34=जूते चप्पल उल्टा देख करउसको सीधा नही
करना।
35=हालात जनाबत मे हजामत करना।
36=मकड़ी का जाला घर में रखना।
37=रात को झाडू लगाना।
38=अन्धेरे में भोजन करना ।
39=घड़े में मुंह लगाकर पानी पीना।
40=धर्मग्रंथ न पढ़ना।
41=नदी , तालाब में शौच साफ करना और उसमें
पेसाब करना ।
42=गाय , बैल को लात मारना ।
43=माँ-बाप का अपमान करना ।
44=किसी की गरीबी और लाचारी का मजाक
उडाना ।
45=दाँत गंदे रखना और रोज स्नान न करना ।
46=बिना स्नान किये और संध्या के समय
भोजन करना ।
47=पडोसियों का अपमान करना , गाली देना ।
48=मध्यरात्रि में भोजन करना ।
49=गंदे बिस्तर में सोना ।
50=वासना और क्रोध से भरे रहना ।
51= दूसरे को अपने से हीन समझना । आदि ।

शास्त्रों में है कि जो दूसरो का भला करता है ।
ईश्वर उसका भला करता है।मित्रों शेयर जरूर
करें ।

॥ ॐ नमो नारायण ॥

🕉️🌹🙏 जन्म कुण्डली मिलाने व दिखाने
एस्ट्रो रोहित चोपड़ा 075088 66666

28/06/2025

*शनि और चन्द्रमा जनित विषयोग विवरण*

ज्योतिष के अनुसार ‘‘आयु, मृत्यु, भय, दुख, अपमान, रोग, दरिद्रता, दासता, बदनामी, विपत्ति, निन्दित कार्य, नीच लोगों से सहायता, आलस, कर्ज, लोहा, कृषि उपकरण तथा बंधन का विचार शनि ग्रह से होता है।

‘‘अपने अशुभ कारकत्व के कारण शनि ग्रह को पापी तथा अशुभ ग्रह कहा जाता है। परंतु यह पूर्णतया सत्य नहीं है। वृष, तुला, मकर और कुंभ लग्न वाले जातक के लिए शनि ऐश्वर्यप्रद, धनु व मीन लग्न में शुभकारी तथा अन्य लग्नों में वह मिश्रित या अशुभ फल देता है।

शनि पूर्वजन्म में किये गये कर्मों का फल इस जन्म में अपनी भाव स्थिति द्वारा देता है। वह 3, 6, 10 तथा 11 भाव में शुभ फल देता है। 1, 2, 5, 7 तथा 9 भाव में अशुभ फलदायक और 4, 8 तथा 12 भाव में अरिष्ट कारक होता है।

बलवान शनि शुभ फल तथा निर्बल शनि अशुभ फल देता है। यह 36 वें वर्ष से विशेष फलदाई होता है। शनि की विंशोत्तरी दशा 19 वर्ष की होती है।

अतः कुंडली में शनि अशुभ स्थित होने पर इसकी दशा में जातक को लंबे समय तक कष्ट भोगना पड़ता है। शनि सब से धीमी गति से गोचर करने वाला ग्रह है। वह एक राशि के गोचर में लगभग ढाई वर्ष का समय लेता है। चंद्रमा से द्वादश, चंद्रमा पर, और चंद्रमा से अगले भाव में शनि का गोचर साढ़े-साती कहलाता है। वृष, तुला, मकर और कुंभ लग्न वालों के अतिरिक्त अन्य लग्नों में प्रायः यह समय कष्टकारी होता है।

शनि एक शक्तिशाली ग्रह होने से अपनी युति अथवा दृष्टि द्वारा दूसरे ग्रहों के फलादेश में न्यूनता लाता है। सप्तम दृष्टि के अतिरिक्त उसकी तीसरे व दसवें भाव पर पूर्ण दृष्टि होती है। शनि के विपरीत चंद्रमा एक शुभ परंतु निर्बल ग्रह है। चंद्रमा एक राशि का संक्रमण केवल 2( से 2) दिन में पूरा कर लेता है।

चंद्रमा के कारकत्व में मन की स्थिति, माता का सुख, सम्मान, सुख-साधन, मीठे फल, सुगंधित फूल, कृषि, यश, मोती, कांसा, चांदी, चीनी, दूध, कोमल वस्त्र, तरल पदार्थ, स्त्री का सुख, आदि आते हैं। जन्म समय चंद्रमा बलवान, शुभ भावगत, शुभ राशिगत, ऐसी मान्यता है कि शनि और चंद्रमा की युति जातक द्वारा पिछले जन्म में किसी स्त्री को दिये गये कष्ट को दर्शाती है।

वह जातक से बदला लेने के लिए इस जन्म में उसकी मां बनती है। माता का शुभत्व प्रबल होने पर वह पुत्र को दुख, दारिद्र्य तथा धन नाश देते हुए दीर्घकाल तक जीवित रहती है। यदि पुत्र का शुभत्व प्रबल हो तो जन्म के बाद माता की मृत्यु हो जाती है अथवा नवजात की शीघ्र मृत्यु हो जाती है।

इसकी संभावना 14 वें वर्ष तक रहती है। दर्शाती है, जिसका अशुभ प्रभाव मध्य अवस्था तक रहता है। शनि के चंद्रमा से अधिक अंश या अगली राशि में होने पर जातक अपयश का भागी होता है।

सभी ज्योतिष ग्रंथों में शनि-चंद्र की युति का फल अशुभ कहा है। ‘‘जातक भरणम्’ ने इसका फल ‘‘परजात, निन्दित, दुराचारी, पुरूषार्थहीन’’ कहा है। ‘बृहद्जातक’ तथा ‘फलदीपिका’ ने इसका फल ‘‘परपुरूष से उत्पन्न, आदि’’ बताया है। अशुभ फलादेश के कारण इस युति को ‘‘विष योग’’ की संज्ञा दी गई है। ‘विष योग’ का अशुभ फल जातक को चंद्रमा और शनि की दशा में उनके बलानुसार अधिक मिलता है।

कंटक शनि, अष्टम शनि तथा साढ़ेसाती कष्ट बढ़ाती है। कुंडली में जिस भाव में ‘विष योग’ स्थित होता है उस भाव संबंधी कष्ट मिलते हैं। नजदीकी परिवारजन स्वयं दुखी रहकर विश्वासघात करते हैं। जातक को दीर्घकालीन रोग होते हैं और वह आर्थिक तंगी के कारण कर्ज से दबा रहता है। जीवन में सुख नहीं मिलता। जातक के मन में संसार से विरक्ति का भाव जागृत होता है और वह अध्यात्म की ओर अग्रसर होता है।

भावानुसार ‘विष योग’ का फल
प्रथम भाव (लग्न) -इस योग के कारण माता के बीमार रहने या उसकी मृत्यु से किसी अन्य स्त्री (बुआ अथवा मौसी) द्वारा उसका बचपन में पालन-पोषण होता है। उसे सिर और स्नायु में दर्द रहता है। शरीर रोगी तथा चेहरा निस्तेज रहता है। जातक निरूत्साही, वहमी एवं शंकालु प्रवृत्ति का होता है। आर्थिक संपन्नता नहीं होती। नौकरी में पदोन्नति देरी से होती है। विवाह देर से होता है। दांपत्य जीवन सुखी नहीं रहता। इस प्रकार जीवन में कठिनाइयां भरपूर होती हैं।

द्वितीय भाव -घर के मुखिया की बीमारी या मृत्यु के कारण बचपन आर्थिक कठिनाई में व्यतीत होता है। पैतृक संपत्ति मिलने में बाधा आती है। जातक की वाणी में कटुता रहती है। वह कंजूस होता है। धन कमाने के लिए उसे कठिन परिश्रम करना पड़ता है। जीवन के उत्तरार्द्ध में आर्थिक स्थिति ठीक रहती है। दांत, गला एवं कान में बीमारी की संभावना रहती है।

तृतीय भाव - जातक की शिक्षा अपूर्ण रहती है। वह नौकरी से धन कमाता है। भाई-बहनों के साथ संबंध में कटुता आती है। नौकर विश्वासघात करते हैं। यात्रा में विघ्न आते हैं। श्वांस के रोग होने की संभावना रहती है।

चतुर्थ भाव - माता के सुख में कमी, अथवा माता से विवाद रहता है। जन्म स्थान छोड़ना पड़ता है। मध्यम आयु में आय कुछ ठीक रहती है, परंतु अंतिम समय में फिर से धन की कमी हो जाती है। स्वयं दुखी दरिद्र होकर दीर्घ आयु पाता है। उसके मृत्योपरांत ही उसकी संतान का भाग्योदय होता है। पुरूषों को हृदय रोग तथा महिलाओं को स्तन रोग की संभावना रहती है।

पंचम भाव - में विष योग होने से शिक्षा प्राप्ति में बाधा आती है। वैवाहिक सुख अल्प रहता है। संतान देरी से होती है, या संतान मंदबुद्धि होती है। स्त्री राशि में कन्यायें अधिक होती हैं। संतान से कोई सुख नहीं मिलता।

षष्ठ भाव - जातक को दीर्घकालीन रोग होते हैं। ननिहाल पक्ष से सहायता नहीं मिलती। व्यवसाय में प्रतिद्धंदी हानि करते हैं। घर में चोरी की संभावना रहती है।

सप्तम भाव - स्त्री की कुंडली में विष योग होने से पहला विवाह देर से होकर टूटता है, और वह दूसरा विवाह करती है। पुरूष की कुंडली में यह युति विवाह में अधिक विलंब करती है। पत्नी अधिक उम्र की या विधवा होती है। संतान प्राप्ति में बाधा आती है। दांपत्य जीवन में कटुता और विवाद के कारण वैवाहिक सुख नहीं मिलता। साझेदारी के व्यवसाय में घाटा होता है। ससुराल की ओर से कोई सहायता नहीं मिलती।

अष्टम भाव - दीर्घकालीन शारीरिक कष्ट और गुप्त रोग होते हैं। टांग में चोट अथवा कष्ट होता है। जीवन में कोई विशेष सफलता नहीं मिलती। उम्र लंबी रहती है। अंत समय कष्टकारी होता है।

नवम भाव - भाग्योदय में रूकावट आती है। कार्यों में विलंब से सफलता मिलती है। यात्रा में हानि होती है। ईश्वर में आस्था कम होती है। कमर व पैर में कष्ट रहता है। जीवन अस्थिर रहता है। भाई-बहन से संबंध अच्छे नहीं रहते।

दशम भाव - पिता से संबंध अच्छे नहीं रहते। नौकरी में परेशानी तथा व्यवसाय में घाटा होता है। पैतृक संपत्ति मिलने में कठिनाई आती है। आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं रहती। वैवाहिक जीवन भी सुखी नहीं रहता।

एकादश भाव - बुरे दोस्तों का साथ रहता है। किसी भी कार्य मे लाभ नहीं मिलता। 1 संतान से सुख नहीं मिलता। जातक का अंतिम समय बुरा गुजरता है। बलवान शनि सुखकारक होता है।

द्वादश स्थान - जातक निराश रहता है। उसकी बीमारियों के इलाज में अधिक समय लगता है। जातक व्यसनी बनकर धन का नाश करता है। अपने कष्टों के कारण वह कई बार आत्महत्या तक करने की सोचता है।

महर्षि पराशर ने दो ग्रहों की एक राशि में युति को सबसे कम बलवान माना है। सबसे बलवान योग ग्रहों के राशि परिवर्तन से बनता है तथा दूसरे नंबर पर ग्रहों का दृष्टि योग होता है। अतः शनि-चंद्र की युति से बना ‘विष योग’ सबसे कम बलवान होता है। इनके राशि परिवर्तन अथवा परस्पर दृष्टि संबंध होने पर ‘विष योग’ संबंधी प्रबल प्रभाव जातक को प्राप्त होते हैं।

इसके अतिरिक्त शनि की तीसरी, सातवीं या दसवीं दृष्टि जिस स्थान पर हो और वहां जन्मकुंडली में चंद्रमा स्थित होने पर ‘विष योग’ के समान ही फल जातक को प्राप्त होते हैं। 7508866666

उपाय शिवजी शनिदेव के गुरु हैं और चंद्रमा को अपने सिर पर धारण करते हैं। अतः ‘विषयोग’ के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए देवों के देव महादेव शिव की आराधना व उपासना करनी चाहिए। सुबह स्नान करके प्रतिदिन थोड़ा सरसों का तेल व काले तिल के कुछ दाने मिलाकर शिवलिंग का जलाभिषेक करते हुये ‘ऊँ नमः शिवाय’ का उच्चारण करना चाहिए।

उसके बाद कम से कम एक माला ‘महामृत्युंजय मंत्र’ का जप करना चाहिए। शनिवार को शनि देव का संध्या समय तेलाभिषेक करने के बाद गरीब, अनाथ एवं वृद्धों को उरद की दाल और चावल से बनी खिचड़ी का दान करना चाहिए। ऐसे व्यक्ति को रात के समय दूध व चावल का उपयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे चंद्रमा और निर्बल हो जाता है।
**माँ काली ज्योतिष केंद्र**
**ज्योतिष एवं वास्तु विशेषज्ञ**
**रोहित चौपड़ा (गुरू जी)**
📞7508866666

*गुरुदेव बृहस्पति के विषम फल, कारण और निवारण (पुनः प्रेषित)*आज तक हम लोग गुरु को सौरमंडल का सिर्फ एक ग्रह तक ही सीमित कर...
28/06/2025

*गुरुदेव बृहस्पति के विषम फल, कारण और निवारण (पुनः प्रेषित)*

आज तक हम लोग गुरु को सौरमंडल का सिर्फ एक ग्रह तक ही सीमित कर पाए है, गुरु ग्रह नही बल्कि एक सकारात्मक आकर्षण होता हैं, जैसे शिखा बांधने का सकारात्मक प्रभाव पड़ता हैं, उसी तरह सिर पर पल्लू लेने का भी असर होता हैं, हम किसी भी बात का एक पहलू ही देख पाते हैं, दूसरा नही देखते, जैसे हम ये देखते की वो हीरोइन या वो महिला तो किसी के सामने सिर नही ढकती, या कम कपड़ो के रहती ,फिर वो तो सफल है या ऊंचाई पर है, पर क्या आपने उनकी पारिवारिक स्थिति देखी या आपने उनको नजदीक से देखा। उनके जीवन मैं तलाक, शराब, खुलापन कितना बढ़ गया। कब वो किसकी थी, किसकी हो जाती, बहुत सी बातें होती जो लेख मैं सम्भव नही।

ये बात सच है की आजादी के इस युग मैं मनचाहे कपड़े पहनने की आजादी हो गई, पर आजादी और संस्कार दोनों अलग अलग होते हैं। अब जींस, पेंट, टी शर्ट की दुनिया मैं सिर पर पल्लू , चुनरी आदि के संस्कार लुप्त प्रायः हो गए।

जब लड़कियों को मन्दिर मैं आरती करते वक्त देखा जाता तो जीन्स पेंट पर बिना पल्लू, या बिना चुनरी ढके आरती करती है, आप खुद ही सोचिये क्या ये संस्कार उचित है।

महिलाओं की बात छोड़ो, जो पुरुष भी बिना वजह बदन की नुमाइश करता उसका गुरु ग्रह भी खराब हो जाता है।

महिलाओं का जीवन उनके पति बच्चों और घर -गृहस्थी में सिमटा होता है। जन्म कुंडली में बृहस्पति खराब हो तो वह महिला को स्वार्थी, लोभी और क्रूर विचार धारा की बना देता है। दाम्पत्य जीवन में दुखों का समावेश होता है और संतान की ओर से भी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पेट और आंतों के रोग हो जाते हैं।

अगर जन्म- कुंडली में बृहस्पति शुभ प्रभाव दे तो महिला धार्मिक, न्याय प्रिय, ज्ञानवान, पति प्रिया और उत्तम संतान वाली होती है। ऐसी महिलाएं विद्वान होने के साथ -साथ बेहद विनम्र भी होती है।

कुछ कुंडलियों में बृहस्पति शुभ होने पर भी उग्र रूप धारण कर लेता है तो स्त्री में विनम्रता की जगह अहंकार भर जाता है। वह अपने समक्ष सभी को तुच्छ समझती है क्योंकि बृहस्पति के शुभ होने पर उसमें ज्ञान की सीमा नहीं रहती। वह सिर्फ अपनी ही बात पर विश्वास करती है।अपने इसी व्यवहार के कारण वह घर और आस-पास के वातावरण से कटने लगती है और धीरे- धीरे अवसाद की और घिरने लग जाती है क्योंकि उसे खुद ही मालूम नहीं होता की उसके साथ ऐसा क्यों हो रहा है।

यही अहंकार उस में मोटापे का कारण भी बन जाता है। वैसे तो अन्य ग्रहों के अशुभ प्रभाव से भी मोटापा आता है मगर बृहस्पति के अशुभ प्रभाव से मोटापा अलग ही पहचान में आता है यह शरीर में थुल थूला पन अधिक लाता है क्योंकि की बृहस्पति शरीर में मेद कारक भी है तो मोटापा आना स्वाभाविक ही है।

कमजोर बृहस्पति हो तो पुखराज रत्न धारण किया जा सकता है, पर लग्न कौन सा है, देखकर ही पहने गुरुवार का व्रत करें, सोने का धारण करें,पीले रंग के वस्त्र पहनें और पीले भोजन का ही सेवन करें।

एक चपाती पर एक चुटकी हल्दी लगाकर खाने से भी बृहस्पति अनुकूल होता है।

उग्र बृहस्पति को शांत करने के लिए बृहस्पति वार का व्रत करना, पीले रंग और पीले रंग के भोजन से परहेज करना चाहिए बल्कि उसका दान करना चाहिए। केले के वृक्ष की पूजा करें और विष्णु भगवान् को केले का भोग लगाएं और छोटे बच्चों, मंदिरों में केले का दान और गाय को केला खिलाना चाहिए।

अगर दाम्पत्य जीवन कष्टमय हो तो हर बृहस्पति वार को एक चपाती पर आटे की लोई में थोड़ी सी हल्दी ,देसी घी और चने की दाल ( सभी एक चुटकी मात्र ही ) रख कर गाय को खिलाएं।

कई बार पति-पत्नी अगल -अलग जगह नौकरी करते हैं और चाह कर भी एक जगह नहीं रह पाते तो पति -पत्नी दोनों को ही बृहस्पति को चपाती पर गुड की डली रख कर गाय को खिलानी चाहिए।

सबसे बड़ी बात यह के झूठ से जितना परहेज किया जाय, बुजुर्गों और अपने गुरु,शिक्षकों के प्रति जितना सम्मान किया जायेगा उतना ही बृहस्पति अनुकूल होता जायेगा।

जिन महिलाओं या पुरुष का गुरु उच्च राशि का हो वो अपने पहने हुए कपड़े भी दान नही करे, साथ ही जो महिलाएं मॉल आदि मैं ड्रेस खरीदने के पहले पहन कर देखती हैं, क्या आप जानती हो कि उसके पहले उस ड्रेस को किसने पहनकर देखा? किसी और कि नकारात्मकता उस ड्रेस मैं पहले से होकर आपके साथ आ जाती हैं।

गुरु का व्यक्तिगत सम्बन्धो पर असर
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बृहस्पति वृद्ध, समझदार और संबंधो को जोड़कर रखने वाला ग्रह है।कुंडली में कई तरह के अशुभ योग और पाप ग्रहो के दुष्प्रभाव के कारण रिश्तों में खराबी और खटास आने लगती है जिस कारण एक समय ऐसा आता है कि वह रिश्ते ख़त्म होने की कतार पर आ जाते है।हर एक रिश्ते का कोई न कोई कारक ग्रह होता है।जैसे सूर्य पिता, चंद्र माँ, मंगल छोटा भाई, बुध बहन, मित्र, बुआ, फूफा, मोसी, मौसा, बृहस्पति दादा, पुत्र गुरु, घर का कोई बुजुर्ग व्यक्ति, शुक्र पत्नी प्रेमिका, शनि चाचा, ताऊ, नोकर संबंधियो का कारक होता है।इसी तरह अलग-अलग भावो से अलग अलग संबंधियो का विचार किया जाता है।यहाँ बात रिश्तों में बृहस्पति के विषय में कर रहा हूँ।।

चौथा भाव माँ के रिश्ते का भाव होता है तो चंद्र सम्बन्ध में माँ का कारक ग्रह है।शनि राहु केतु यह प्रथकता वादी ग्रह या पीड़ा देने वाले स्वभाव के होते है।

चौथा भाव, भावेश और चंद्र पर शनि राहु केतु जैसे ग्रहो का प्रभाव माँ सुख की हानि करने वाला होता है।चौथा भाव, भावेश और चंद्र बहुत ज्यादा कमजोर होकर शनि राहु केतू पृथकतावादी ग्रहो के प्रभाव से माँ सुख में कमी कर देंगे या माँ को दूर कर देंगे, आदि जिससे माँ सुख की हानि होगी और ज्यादा स्थिति चोथे भाव, भावेश और चंद्र की ख़राब होने पर निश्चित ही माँ का सुख नही मिलता।ऐसी स्थिति में चोथे भाव, भावेश और चंद्र का बली गुरु के प्रभाव में होना आपके और आपकी माँ के बीच सुख में वृद्धि कर संबंधो को स्थाई रूप से ठीक तरह से चलाता रहेगा।इसके लिए आवश्यक है गुरु का कुंडली में शुभ स्थिति में होना।शुभ गुरु सुख में वृद्धि करने वाला होता है। जिस भाव, भावेश और कारक संबंधी पर गुरु का शुभ प्रभाव पड़ेगा ऐसे संबंधियो के साथ आपके अच्छे और मधुर सम्बन्ध रहेंगे।पाप ग्रहो का प्रभाव ऐसे भाव, भावेश और कारक ग्रहो संबंधो पर होने से सुख की हानि होकर परेशानिया होती साथ ही सम्बन्ध भी ख़राब होते है।पाप ग्रहो के साथ जहाँ शुभ गुरु का प्रभाव पड़ेगा उस स्थान की हानि नही होती।ऐसी स्थिति में आपके संबंधियो से आपके अच्छे और मधुर सम्बन्ध रहते है क्योंकि गुरु कभी भी स्थिति को बिगड़ने नही देता यह सभी को एकसाथ जोड़कर रखने का काम करता है।इसी कारक गुरु को दोषो का नाश करने वाला और बेहद शुभ ग्रह माना गया कुंडली का शुभ और अनुकूल बृहस्पति कई तरह के अनिष्टों की शांति करने में सक्षम होता है। मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु, मीन लग्न के लिए गुरु बेहद शुभ होता है। 7508866666

नीचे दिए गए शास्त्रसम्मत वैदिक उपाय करने से गुरु के अरिष्ट प्रभावों में लाभ मिलता है एवं कल्याण का मार्ग प्रशस्त होता है।

अरिष्ट फल नाशक गुरु के उपाय👇
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१🔹 २१ गुरुवार तक बिना क्रम तोड़े हर गुरुवार का व्रत रख कर भगवान् विष्णु के मंदिर में पूजा के उपरांत पंडित जी से लाल या पीले चन्दन का तिलक लगवाए तथा यथा शक्ति बूंदी के लड्डू का प्रसाद चढ़ा कर बालको में बाँटना चाहिए। इससे लड़की या लड़के के विवाह आदि सुख संबंधों में पड़ने वाली बाधाएं दूर होती है।

२🔹 भगवान् विष्णु के मंदिर में किसी शुक्ल पक्ष से शुरू करके २७ गुरुवार तक प्रत्येक गुरुवार चमेली या कमल का फूल तथा कम से कम पांच केले चढाने से मनोकामना पूर्ण होती है।

३🔹 गुरुवार के दिन गुरु की ही होरा में बिना सिले पीले रेशमी रुमाल में हल्दी की गाँठ या केले की जड़ को बांधकर रखे, इसे गुरु के बीज मंत्र ("ॐ ऐं क्लीं बृहस्पतये नमः") की ३ माला जप कर गंगाजल के छींटे लगा कर पुरुष दाहिनी भुजा तथा स्त्री बाई भुजा पर धारण करे इससे भी बृहस्पति के अशुभ फलों में कमी आती है।

४🔹 गुरु पुष्य योग में या गुरु पूर्णिमा के दिन , बसंत पंचमी के दिन, अक्षय तृतीया या अपने तिथि अनुसार जन्मदिन के अवसर पर श्री शिवमहापुराण, भागवत पुराण, विष्णुपुराण, रामायण, गीता, सुंदरकांड, श्री दुर्गा शप्तशती आदि ग्रंथो का किसी विद्वान् ब्राह्मण को दान करना अतिशुभ होता है।

५🔹किसी भी शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरुवार से आरम्भ कर रात में भीगी हुई चने की दाल को पीसकर उसमें गुड़ मिलाकर रोटियां लगातार २१ गुरुवार गौ को खिलाने से विवाह में आरही अड़चने दूर होती है। किसी कारण वश गाय ना माइक तो २१ गुरुवार ब्राह्मण दंपति को खीर सहित भोजन करना शुभ होता है।

६🔹 जन्म कुंडली में गुरु यदि उच्चविद्या, संतान, धन आदि पारिवारिक सुखों में बाधाकारक हो तो जातक को माँस, मछली शराब आदि तामसिक भोजन से परहेज करना चाहिए। अपना चाल-चलान भी शुद्ध रखना चाहिए।

७🔹 कन्याओं के विवाहादि पारिवारिक बाधाओं की निवृत्ति के लिए श्री सत्यनारायण अथवा गुरुवार के २१ व्रत रख कर मंदिर में आटा, चने की दाल, गेंहू, गुड़, पीला रुमाल, पीले फल आदि दान करने के बाद केले के वृक्ष का पूजन एवं मनोकामना बोलकर मौली लपेटते हुए ७ परिक्रमा करनी चाहिए।

८🔹 यदि पंचम भाव अथवा पुत्र संतान के लिए गुरु बाधा कारक हो तो हरिवंशपुराण एवं श्री सन्तानगोपाल या गोपाल सहस्त्रनाम का पाठ जप करना चाहिए।

९🔹 गुरु कृत अरिष्ट एवं रोग शांति के लिए प्रत्येक सोमवार और वीरवार को श्री शिवसहस्त्र नाम का पाठ करने के बाद कच्ची लस्सी, चावल, शक्कर आदि से शिवलिंग का अभिषेक करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है।

१०🔹 इसके अतिरिक्त गुर जनित अरिष्ट की शांति के लिए ब्राह्मण द्वारा विधि विधान से गुरु के वैदिक मन्त्र का जप एवं दशांश हवन,
करवाने से अतिशीघ्र शुभ फल प्रकट होते है।

११🔹 पुखराज ८, ९, या १२ रत्ती को सोने की अंगूठी में पहनने से बल, बुद्धि, स्वास्थ्य, एवं आयु वृद्धि, वैवाहिक सुख, पुत्र-संतानादि कारक एवं धर्म-कर्म में प्रेरक होता है। इससे प्रेत बाधा एवं स्त्री के वैवाहिक सुख की बाधा में भी कमी आती है।

१२🔹 शुक्ल पक्ष के गुरूवार को, गुरु पुष्य योग, गुरुपूर्णिमा अथवा पुनर्वसु, विशाखा, पूर्वाभाद्रपद आदि नक्षत्रो के शुभ संयोग में विधि अनुसार गुरु मन्त्र उच्चारण करते हुए सभी गुरु औषधियों को गंगा जल मिश्रित शुद्ध जल में मिला कर स्नान करने से पीलिया, पांडुरोग, खांसी, दंतरोग, मुख की दुर्गन्ध, मंदाग्नि, पित्त-ज्वर, लीवर में खराबी, एवं बवासीर आदि गुरु जनित अनेक कष्टो की शांति होती है।

🕉️🌹🙏 जन्म कुण्डली मिलाने व दिखाने और बनाने हस्त रेखा मस्तिष्क रेखा
जय माँ काली ज्योतिष केन्द्र में आप का स्वागत है
एस्ट्रो रोहित चोपड़ा 075088 66666

26/06/2025

🕉️ *Gupt Navratri Siddhi Mahotsav* 🕉️
*26 जून से 4 जुलाई 2025* तक
इस गुप्त नवरात्रि में हम कुछ विशिष्ट और शक्तिशाली तांत्रिक व आध्यात्मिक वस्तुओं की सिद्धि करने जा रहे हैं।
यदि आप इनमें से कोई वस्तु बुक करवाना चाहते हैं तो कृपया अपना नाम व गोत्र हमें मैसेज करें।

📿 सिद्ध की जाने वाली विशेष वस्तुएं और उनके लाभ:

🔮 *इंद्रजाल* – सुरक्षा, नकारात्मक ऊर्जा से बचाव और वशीकरण शक्ति के लिए।
🌱 *गुंजा (रक्त, श्वेत, श्याम, पीत)* – लक्ष्मी प्राप्ति, शत्रु शमन व विशेष टोटकों में उपयोगी।
🌿 *जटाशंकरी (हथा जोड़ी)* – धन आकर्षण, रोगनाशक शक्ति और ग्रह दोष शमन के लिए उत्तम।
🌿 *मंजिष्ठा*– जीवन से रुकावटें दूर करने और शांति हेतु।
🌾 *श्वेत सरसों*– नजर दोष, ऊपरी बाधा और भूमि दोष निवारण में प्रयोग।
🌰 *खूनी जायफल* – तांत्रिक प्रयोगों, आकर्षण और बुरी नजर से रक्षा हेतु।
🥥 *लघु नारियल*– धन सिद्धि और शुभ कार्यों में सफलता हेतु।
🥥 *तंत्रोक्त नारियल*– नज़र दोष , ऊपरी बाधा हटाने हेतु ,रक्षा के लिए ।
🥥 *एकाक्षी नारियल* – दुर्लभ वस्तु, तांत्रिक प्रयोग व शीघ्र सिद्धि में उपयोगी।
🖤 *ब्लैक ओब्सिडियन*– नेगेटिव एनर्जी से सुरक्षा और आत्म-बल वृद्धि।
🐅 *टाइगर आई स्टोन* – निर्णय क्षमता, साहस व आत्मविश्वास के लिए।
🔴 *5 मुखी रुद्राक्ष* – मन की शांति, रोग निवारण व साधना में सहायक।
🔱 *9 मुखी रुद्राक्ष* – दुर्गा शक्ति का प्रतीक, भय नाशक और आत्मरक्षा हेतु।
📿 *रुद्राक्ष माला (5 मुखी/9 मुखी)* – जाप, सिद्धि व ऊर्जा संतुलन के लिए।
🐚 *राहु शंख* – राहु दोष निवारण, तांत्रिक सिद्धि व शक्ति जागरण में सहायक।
🐚 *मोती शंख* – लक्ष्मी कृपा और मानसिक शांति हेतु।
🐚 *11 प्रकार की कौड़ी सेट*– समृद्धि, व्यापार वृद्धि और तांत्रिक प्रयोग हेतु।
🐚 *दक्षिणावर्ती शंख* – मां लक्ष्मी की कृपा हेतु अति शुभ और दुर्लभ। 7508866666
📿 *करुंगाली माला* – ऊर्जा सुरक्षा, तांत्रिक प्रयोग व काली उपासना में आवश्यक।
🔱 *श्री यंत्र* – धन, समृद्धि और सौभाग्य प्राप्ति हेतु सर्वोत्तम यंत्र।
🔱 *काली यंत्र* – शत्रु विनाश, सुरक्षा और तांत्रिक शक्ति के लिए।
🔱 *बगलामुखी यंत्र* – वाणी व कार्य में विजय, कोर्ट केस में सफलता हेतु।
🔱 *महालक्ष्मी यंत्र* – मां लक्ष्मी की कृपा से धन, वैभव और ऐश्वर्य की स्थायी प्राप्ति हेतु अति शुभ व प्रभावशाली यंत्र।
🛡️ *दुर्गा रक्षा कवच* –हर प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा व संकट से रक्षा के लिए।

📩 बुकिंग के लिए नाम व गोत्र भेजें। सीमित संख्या में ही सिद्धि संभव है।
🙏 ये सभी वस्तुएं विशेष पूजा व तंत्र सिद्धियों द्वारा जाग्रत की जाएंगी।
एस्ट्रो रोहित चोपड़ा 075088 66666

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