Dr B R अंबेडकर

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31/07/2023

दलित का शाब्दिक अर्थ क्या है?

दलित शब्‍द का शाब्दिक अर्थ है- दलन किया हुआ। इसके तहत वह हर व्‍यक्ति आ जाता है जिसका शोषण-उत्‍पीडन हुआ है। रामचन्द्र वर्मा ने अपने शब्‍दकोश में दलित का अर्थ लिखा है, मसला हुआ, मर्दित, दबाया, रौंदा या कुचला हुआ, विनष्‍ट किया हुआ। पिछले छह-सात दशकों में 'दलित' पद का अर्थ काफी बदल गया है।

31/07/2023

हिंदी की पहली दलित कहानी कौन सी है?

मोहनदास नैमिशराय की 'अपने-अपने पिंजरे को हिंदी की पहली दलित आत्मकथा माना जाता है । इसका प्रकाशन 1995 ई. में हुआ था। दरअसल, इससे पहले भगवानदास की 'मैं भंगी हूँ' का प्रकाशन हुआ था, लेकिन स्वयं रचनाकार इसे आत्मकथा नहीं मानते हैं इसीलिए नैमिशराय जी को हिंदी की पहली आत्मकथा लिखने का बहुमान मिलता है ।

पूना समझौते का दलितों पर प्रभाव :पूना समझौते ने दलितों को राजनीतिक हथियार बना दिया। संयुक्त निर्वाचन में वास्तविक दलितों...
24/09/2022

पूना समझौते का दलितों पर प्रभाव :

पूना समझौते ने दलितों को राजनीतिक हथियार बना दिया। संयुक्त निर्वाचन में वास्तविक दलितों को हराकर हिंदू जाति के संगठनों का एजेंट बना दिया और केवल उन दलितों की चुनावी जीत को पक्का किया जो इन संगठनों के एजेंट या हथियार थे।
पूना समझौते ने दलितों के राजनीतिक, वैचारिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक अवनयन को बढ़ावा दिया और इस प्रकार ब्राह्मणवादी सामाजिक व्यवस्था से लड़ने वाले दलितों के वास्तविक एवं स्वतंत्र नेतृत्व को बर्बाद कर दिया।
इसने हिंदू से पृथक एवं अलग दलित अस्तित्व को स्वीकार न करके उसे हिंदू सामाजिक व्यवस्था के एक हिस्से के रूप में रखा।
इस समझौते ने समानता-स्वतंत्रता-बंधुत्व-न्याय पर आधारित ‘आदर्श समाज’ के सामने बाधा खड़ी की।
दलित वर्ग को एक पृथक एवं भिन्न तत्व न मानकर इसने दलित एवं अन्य अल्पसंख्यकों के अधिकारों एवं सुरक्षा संबंधी रक्षोपायों को भारत के संविधान में स्पष्ट करने से रोक दिया।
सांप्रदायिक निर्णय द्वारा भारतीयों को विभाजित करने तथा पूना समझौते के द्वारा हिंदुओं से दलितों को पृथक करने की व्यवस्थाओं ने गांधी जी को आहत कर दिया। गांधी जी ने पूना समझौते के प्रावधानों को पूरी तरह पालन किये जाने का वचन दिया। अपने वचन को पूरा करने के उद्देश्य से गांधी जी ने अन्य कार्यों को छोड़कर पूर्णरूपेण ‘अश्पृश्यता निवारण अभियान’ में जुट गए।
वर्ण-व्यवस्था पर गांधी व अंबेडकर के मतभेद
गांधी और अंबेडकर दोनों तात्कालिक सामाजिक स्थितियों व परिवेश से असंतुष्ट थे। दोनों समाज का नव निर्माण करना चाहते थे, परंतु इस संदर्भ में समस्या के कारण, स्वरुप व निदान के प्रति दोनों का दृष्टिकोण एवं कार्य-पद्धति अलग-अलग थी।

गांधी जी वर्ण-व्यवस्था के प्रबल समर्थक थे। उनका मानना था कि वर्ण-व्यवस्था समाज के लिये उपयोगी है, इससे श्रम-विभाजन एवं विशेषीकरण को बढ़ावा मिलता है। वहीँ अंबेडकर वर्ण-व्यवस्था के कट्टर आलोचक थे। अंबेडकर के अनुसार, वर्ण-व्यवस्था अवैज्ञानिक, अमानवीय, अलोकतांत्रिक, अनैतिक, अन्यायपूर्ण एवं शोषणकारी सामाजिक योजना है।
गांधी जी का मानना था कि छुआछूत का वर्ण-व्यवस्था से सीधा संबंध नहीं है। छुआछूत वर्ण-व्यवस्था की अनिवार्य विकृति न होकर वाह्य विकृति है, अतः छुआछूत समाप्त करने हेतु वर्ण-व्यवस्था में रचनात्मक सुधार की आवश्यकता है। वहीँ अंबेडकर के अनुसार, अश्पृश्यता या छुआछूत वर्ण-व्यवस्था का अनिवार्य परिणाम है। अतः बिना वर्ण-व्यवस्था का उन्मूलन किये छुआछूत को दूर नहीं किया जा सकता है।
गांधी जी छुआछूत को दूर करने के लिये आदर्शवादी व दीर्घकालिक उपायों की बात करते थे जबकि अंबेडकर छुआछूत को दूर करने के लिये व्यावहारिक, त्वरित एवं ठोस उपायों पर बल देते थे।
गांधी जी ने सवर्ण हिंदुओं के दृष्टिकोण में परिवर्तन कर अछूतों के प्रति भेदभाव को दूर करने के प्रयासों के हिमायती थे वहीँ अंबेडकर यह मानते थे कि हिंदू धर्म के अंतर्गत अछूतों का उद्धार नहीं हो सकता अतः धर्मान्तरण द्वारा ही दलितों का उद्धार संभव है।
गांधी जी के अनुसार हिंदू धर्मशास्त्र अश्पृश्यता का समर्थन नहीं करते जबकि अंबेडकर का मानना था कि हिंदू धर्मशास्त्र में ही अश्पृश्यता के बीज विद्यमान हैं।

भारतीय बहुज्ञ, संविधानशिल्पी, समाज सुधारक, प्रथम कानून एवं न्यायमन्त्रीभीमराव रामजी आम्बेडकर(14 अप्रैल, 1891 – 6 दिसंबर,...
24/09/2022

भारतीय बहुज्ञ, संविधानशिल्पी, समाज सुधारक, प्रथम कानून एवं न्यायमन्त्री

भीमराव रामजी आम्बेडकर(14 अप्रैल, 1891 – 6 दिसंबर, 1956), डॉ॰ बाबासाहब आम्बेडकर नाम से लोकप्रिय, भारतीय बहुज्ञ, विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, और समाजसुधारक थे। उन्होंने दलित बौद्ध आंदोलन को प्रेरित किया और अछूतों (दलितों) से सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध अभियान चलाया था। श्रमिकों, किसानों और महिलाओं के अधिकारों का समर्थन भी किया था।वे स्वतंत्र भारत के प्रथम विधि एवं न्याय मन्त्री, भारतीय संविधान के जनक एवं भारत गणराज्य के निर्माताओं में से एक थे।

आम्बेडकर विपुल प्रतिभा के छात्र थे। उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स दोनों ही विश्वविद्यालयों से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधियाँ प्राप्त कीं तथा विधि, अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में शोध कार्य भी किये थे।व्यावसायिक जीवन के आरम्भिक भाग में ये अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे एवं वकालत भी की तथा बाद का जीवन राजनीतिक गतिविधियों में अधिक बीता। इसके बाद आम्बेडकर भारत की स्वतंत्रता के लिए प्रचार और चर्चाओं में शामिल हो गए और पत्रिकाओं को प्रकाशित करने, राजनीतिक अधिकारों की वकालत करने और दलितों के लिए सामाजिक स्वतंत्रता की वकालत की और भारत के निर्माण में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा।

हिंदू पंथ में व्याप्त कुरूतियों और छुआछूत की प्रथा से तंग आकार सन 1956 में उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया था। सन 1990 में, उन्हें भारत रत्न, भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से मरणोपरांत सम्मानित किया गया था। 14 अप्रैल को उनका जन्म दिवस आम्बेडकर जयंती के तौर पर भारत समेत दुनिया भर में मनाया जाता है।

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