02/10/2021
जुफ्फर जोत(kullu) में काफी समय तक चिन्डी देवी विराजमान रही और भक्तों की मनोकामना पूरी करती रही दोनों ब्राह्मण अभी भी माता की नित्य पूजा करते और भोग लगाते , माता भी रोज उनके हाथों से भोग ग्रहण करती एक दिन दोनों ब्राह्मण ब्रह्म मुहर्त में माता की पूजा करने पहुंच गए और पूजा सम्पन्न होने के बाद भोग ग्रहण करने के लिए माता का आवाहन करने लगे तभी उस मूर्ति से दो दिव्य कन्याएं प्रकट हो गयी दोनों भाई अचंभित हो गए और माता से पूछा कि माता आप नित्य ही एक रूप में प्रकट होती है आज आपके साथ ये दूसरी माता कौन है । तब वह दुर्गा रूपी देवी बोली " यह में ही हूँ जो दो रूपों में विभक्त हो गई हूं तुम हम दोनों को ही भोग लगाओ " , दोनों ब्राह्मणों ने देवी इच्छा से ऐसा ही किया ब्राह्मणों ने उन दोनों ने देवियो को काठु , कोदरे का भोग लगाया परंतु वह उस दूसरी कन्या के गले मे फंस गया और उसे कोदरे का भोग अच्छा नही लगा
उसने चारो और देखा कोदरे के ही खेत दिखाई दिए उसने वहाँ से किसी दूसरे स्थान पर जाने की इच्छा व्यक्त की और समीप ही एक लोहार को लोहे के दराटी बनाने को कहा , लोहार तीन दिन तक टाल मटोल करता रहा तीसरे दिन क्रुद्ध हो देवी ने लोहार को श्राप दे डाला और स्वयं ही शक्ति से दराटी बना कर पुनः जुफ्फर पहुंच गई । उस दिव्य तेज वाली माता से बोली कि " मुझे यह काठु कोदरे का भोग प्रिय नहीं है में धान कांगणी के देश को जाना चाहती हू " । तब वह जुफ्फर भगवती बोली कि " ब्रह्म मुहर्त में यहाँ से ऊपर जोगणियो का वास है , वहाँ जाना वहाँ से जिस और भी तुम्हारी दृष्टि पड़े उस ओर चलना प्रारम्भ करो जहाँ पर तुम्हें रात्रि हो जाए वहीं तुम निवास करना " ऐसा मुझे तुम वचन दो , इस तरह के वचन दे वह दिव्य कन्या शीघ्र ही 64 जोगणियो के पास पहुंच गई श्रावण का महीना था चारों ओर धुंध छाई हुई थी तभी उस दिव्य कन्या की दृष्टि करसोग क्षेत्र पर पड़ी । घनघोर वर्षा और धुन्ध की वजह से कन्या रास्ता भटकते हुए शिवा ठूठ में पहुंचती है वहाँ पर वह दुर्गा रूपी दिव्य कन्या देखती है कि एक महापुरुष दिव्य आभा लिए घोर ध्यान में लीन है , पर उस महापुरुष पर वर्षा का कोई प्रभाव नहीं है तब वह दिव्य कन्या उस महातेजस्वी व्यक्ति के पास जाती है और हाथ जोड़ के ध्यान से जागने की पार्थना करती है रुदन व द्रवित आवाज की वजह से उस महातेजस्वी महापुरष ने अपनी आंखें खोली तो देखा कि सामने एक दिव्य कन्या खड़ी है जो वर्षा से भीग चुकी है और उसके वस्त्र भी फट गए है तब उस महायोगी ने सर्वप्रथम कन्या को वस्त्र प्रदान किये और क्षण भर में ही वर्षा को रोक दिया । इस तरह की घटनाओं के बाद उस महायोगी ने कन्या से पूछा कि " तुम कौन हो और कहाँ से आई हो " तब वह दिव्य कन्या बोली " मै जुफर जोत से आई हूं और अपने लिए स्थान ढूंढ रही हूं , आप कौन है और यहाँ घोर तपस्या क्यों कर रहे है ".
तब वह दिव्य महापुरुष बोला कि " मै देव महासू हूँ और इस क्षेत्र से राक्षसों का अंत करके यहाँ शांति ध्यान में बैठा हूँ यह पूरा क्षेत्र मेरे अधिकार में है । तुम मेरी शरण मे हो तुम यहाँ से निकलने वाली धार में निवास करो मै तुम्हारे साथ अपने गण भेजता हुँ जो तुम्हारी रक्षा करेंगे " । इस तरह के वचन कह कर धर्म सूत्र से दोनों ने भाई बहन का नाता स्वीकार किया और देव महासू ने वचन दिया जब भी कोई आपत्ति विपति हो तो तुम मेरे पास मेरे इस स्थान पर आ जाना । इस तरह के घटनाक्रम के बाद वह दिव्य तेज वाली कन्या समीप के एक गांव बाझु पहुंच जाती है , वह भूख के कारण एक बूढ़ी औरत से दूध मांगती है , बूढ़ी औरत पूछती है कि " तुम कौन हो और कहाँ से आई हो " । तब वह कन्या बोलती है कि " पहले मुझे कोरे बर्तन में दूध पिलाओ फिर मै बताऊ " , तब उस औरत के हाथो से दूध पीकर वह कन्या तृप्त हुई और बोली " मैं दुर्गा देवी हुँ और जुफ्फर से आई हूं तुमने मुझे दूध पिला के तृप्त किया अतः आज से मैं आपके साथ ही सदा रहूंगी " , ऐसा वचन दे समीप ही उसने अपनी दराटी से पानी का डिभर ( छोटा तालाब ) बना दिया । आगे बढ़ते हुए वह एक बड़े मैदान में पहुंचती है और उस स्थान को भी अपने लिए नियुक्त करती है चलते चलते वह दिव्य कन्या जिऊंगधार में पहुंच यहाँ पर जोगणियो को विश्राम देती है और स्वयं भी विश्राम करती है ।वहाँ से उसे बाहोग नाम की जगह के बारे में पता चलता है जहाँ पर मरेच्छों का आतंक था । तब वह कन्या अपना रूप बदल लेती है और बूढ़ी औरत का रूप ले लेती है औरबाहोग गाँव पहुंचते ही वह देखती है चांदी के बड़े खल ( धान कूटने का स्थान ) में सोना रखा हुआ और उसकी पहरेदारी के लिए मरेछो ने रखे है , अपनी ओर किसी को आता देख मरेछों वह कुत्ते बूढ़ी औरत पर छोड़ दिए।क्रोध में देवी ने भी उन पर बाघ छोड़ दिया जिसने कुती को एक ही झटके में समाप्त कर दिया बूढ़ी औरत के वेश में उस देवी ने मरेछो को श्राप दिया और उनके सोने को भी नष्ट कर दिया । अब संध्या का समय हो गया रात्रि विश्राम का विचार कर वह समीप ही माहोग नाम के गांव में पहुंची संध्या समय किसी मेहमान को आया देख उन्होंने उसका आदर सत्कार किया और बैठने को स्थान दिया पर वह बोली कि मुझे भूख लगी पहले मुझे,
दूध दो तो एक स्त्री ने झट से कोरे बर्तन में उसे दूध पिलाया और विश्राम करने का आग्रह किया उन्होंने कहा कि यहाँ मरेछो का आतंक है आप भीतर चले पर वह देवी बोली " मै यही बाहर पुरानी शाल में सोऊंगी " तब सभी परिवार के सदस्य भी उस के साथ सो गए और कुछ पहरेदारी करने लगे । मध्य रात्रि को सभी को स्वप्न दर्शन हुए की जो स्त्री उनके साथ सोई है व साक्षात दुर्गा देवी है और वह देवी बोली कि " में दुर्गा देवी हूं और जुफ्फर जोत से आई हूं मैंने इस स्थान से मरेछों को सदा के लिए समाप्त कर दिया है मै तुम सब से अति प्रसन्न आज के बाद में सदा के लिए इस स्थान पर ही तुम्हारे साथ रहूंगी । जिस स्थान पर लाल चीटिया घेरा बना कर के लकीरे दे रही हो वहाँ मेरा मन्दिर बनाना । जिस स्थान पर काली चीटिया गोल घेरा बना रही हो वहाँ मेरा ढिभर ( तालाब ) बनाना जिस स्थान पर चींटिया चक्र के समान घूम रही हो वहाँ मेरा मेला लगाना।यह तीनों स्थान चिकनी मिट्टी पर ही होंगे वहाँ इनको ढूंढना " । स्वप्न दर्शन पाकर जब सभी परिवार वालो ने देखा तो वह औरत अदृश्य हो गई थी और जहाँ पर वह सोई थी वहाँ माता की एक प्रतिमा थी सुबह होते ही ठाकुरों ने उस स्थान की खोज की तो शीघ्र ही उन्हें तीनों स्थान प्राप्त हुए और उन्होंने माता का मंदिर चिन्डी नाम की जगह बनाया इस तरह भगवती दुर्गा उस स्थान में कन्या रूप में विराजमान हो गई ।