Koytur Gondwana Mandla

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यह चैनल किसी भी जाती, धर्म, वर्ण, मजहब की धार्मिक भावनाये/श्रद्धा को आहत नहीं करता बल्कि हमारा स्पष्ट उद्देश्य, समाज में फैले अंधविश्वास, पाखंड, कुरीतियों, भेदभाव, छुवाछुत के प्रति लोगो को वैज्ञानिक सोच के अनुसार जागरूक करना है |

राजस्थान के झालावाड़ के पीपलोदी में विद्यालय की छत गिरने की दु:खद घटना ने मेरे हृदय को झकझोर दिया है।स्कूल की लापरवाही स...
26/07/2025

राजस्थान के झालावाड़ के पीपलोदी में विद्यालय की छत गिरने की दु:खद घटना ने मेरे हृदय को झकझोर दिया है।
स्कूल की लापरवाही सरकार की नाकामी देखो बच्चों की जान चली गई ।
मासूम बच्चों को श्रद्धांजलि अर्पित अंतिम जोहार 😥🙏

प्रकृति शक्ति से अर्ज विनती है कि घायलों को शीघ्र स्वस्थ करें और परिजनों को यह दुःख घड़ी सहन करने की शक्ति दें।
of Home Affairs, of India Ministry of Cooperation, Government of India All India Radio News

फूलन देवी प्रथम महिला क्रांतिकारी थी जिन्होंने जातीय उत्पीड़न के विरुद्ध आवाज उठाई।   #फूलन_देवी
25/07/2025

फूलन देवी प्रथम महिला क्रांतिकारी थी जिन्होंने जातीय उत्पीड़न के विरुद्ध आवाज उठाई। #फूलन_देवी

🌱🌳🌴  #हरेली    पडुंम  की अग्रिम शुभकामनाओं के साथ. . . . बहुत बहुत जय सेवा! प्रकृति सेवा! 🌱🌳🌴"हर्र(रास्ता ) + ऐली= हरेली...
24/07/2025

🌱🌳🌴 #हरेली पडुंम की अग्रिम शुभकामनाओं के साथ. . . . बहुत बहुत जय सेवा! प्रकृति सेवा! 🌱🌳🌴
"हर्र(रास्ता ) + ऐली= हरेली पडुम /कुसीर पडुंम / अमुस"/जिरांग/दोबेंग पोहलाना= याने
(कोयापूनेम / प्रकृति का मार्ग की ओर ले जाती त्योहार)

कोयतोरिन तकनीकी के वैज्ञानिकता को परिभाषित करता एक अदभुत त्योहार .... स्वास्थ्य वर्धक जड़ी बुटियो कोयोकंद,शतावरी,रसना आदि के विशेष मिश्रण को एक साथ सभी बच्चों, बड़ो व कोंदाल ( बैल ) जैसे पशुओं को एक साथ खिलाकर ...दस्त,डायरिया,कमजोरी जैसे महामारियो को जड़ से मिटाने...का. जागरूकता महाअभियान. . .जिसमें वर्तमान की तरह भारी भरकम स्वास्थ्य महकमे व अरबों रुपये की राशि नहीं लगती...इसी दिन से लिगों पेन ने बरसात के बाद उगी वनस्पतियों को उनके औषधीय गुणों से उनके लयोर शिष्यों को परिचित कराने का class लगाया जाता है. . . यही से झिर्रा /दोबांग जैसे पत्तेदार सब्जियों को अपने पेन पुर्वजो को अर्पित कर खाना शुरू किया जाता है . ... बरसाती किड़ों-मकोड़ों व जहरीले सांपों से बच्चों को बचाने भिमा लिगों द्वारा अविष्कारित पवित्रतम " गो " से "गोण्ड़ोन्दी"/ #डिटोंग (गेड़ी) के रूप में जमीन से कई फिट ऊपर चलने कि तकनीकी का उद्घाटन करने ... फसलों को तनाछेदक व अन्य कीटों से बचाने पवित्रतम कोयतोरिन "को " वृक्ष #कोहका (भेलवा) . . व. #ब्लैक_शैडो जैसे किट भक्षी चिड़ियों को आर्कषित कर फसल प्रबंधन करने ....पवित्रतम " मड़दी" (साजा) की डगाली गाड़ने (जैसा करने हजारों साल बाद भी आज के कृषि वैज्ञानिक अब भी सलाह देते रहते हैं )..... . बच्चों को दिमागी रूप से सजग और पवित्र कोया पुनेमी "को" से " #कोर्र घड़ी " के साथ टाइम सेट कर अपने अनुमस्ष्तिक को विकसित करने के लिए. . . . #लेसनी/ "पन बिछु " से जहर इन्जेक्ट करना या लहसुन की कली से आंकना..... पवित्रतम " #कोंदाल " के बछड़े को हल चलाने की प्रथम पाठशाला का गुर सीखाकर ..मानव सभ्यता के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले महान कोंदाल के प्रति संवेदनशीलता विकसित करने का त्योहार ..नमक की कमी जो दस्त व बरसात में आम है...नमक को #डांग_कांदा के पत्तों के साथ खिलाना.... कोयतोरिन अर्थतंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पवित्र गोण्डवाना के पवित्र " गो " शब्द से निर्मित " गोंडरी " में उत्पादित फसलों में शाखाओं को तेजी से पल्लवित करने के लिए. . . #हर्बल_हार्मोंस_उत्प्रेरको एव हर्बल कीटनाशकों का एक साथ एक ही दिन और लगभग एक ही समय " झिड़काव" करने का प्रचीन तरीका .... .. हम मूलवासियों/इण्डिजिनस के इन "कोयतोरिन टेक्नोलॉजियों " को विश्व को पुनः अध्ययन करना ही होगा. . . . और विज्ञान को अपने बिना ब्रेक की गाड़ी को किसी मूलवासी पहाड़ी गांव पर अटका कर अपने इतिहास की जड़ो में जाकर " कोयतोरिन टेक्नोलॉजी सिस्टम " के वैज्ञानिकता का " क"ख"ग" अब हर हाल मे पढना ही पड़ेगा. . . और नहीं तो प्रकृति की दिशा की उल्टी दिशा में चलने वाले लोगों को हमारी " कोयतोरिन टेक्नोलॉजी " ....अंधविश्वास ही लगते रहेगी और प्रकृति यूँ ही नष्ट होते रहेगी . .. . . . . हे मेरे प्यारे smart koytorin लया लयोर आइये कोया पुनेम के " हर्र" ( रास्ता ) में चलने के संकल्पों के साथ. . . . "हरेली" पंडुम मनाऐ.....बहुत बहुत शुभकामनाएं ...बहुत बहुत सेवा जोहार
#नारायन_मरकाम(शोधार्थी केबीकेएस - लिंगो ह्यूमन मेट्रिक्स एण्ड इन्वेस्टमेंट सिस्टम)
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(KBKS के कोया पुनेम व पर्यावरण विषय पर आयोजित विभिन्न प्रशिक्षण सत्रों से अनुग्रहीत ... . .क्रमश :...... )
Koytur Gondwana Mandla Apna Mandla DrBrajesh Maravi

🌳🌻🌺 गोंड और भील दोनों शब्द समझने की जरूरत है। गोण्ड— भील एक जाति वाचक शब्द है गोंड जीव वाचक शब्द है।-गोंड की उत्पत्ति :-...
21/07/2025

🌳🌻🌺 गोंड और भील दोनों शब्द समझने की जरूरत है।
गोण्ड— भील एक जाति वाचक शब्द है गोंड जीव वाचक शब्द है।
-गोंड की उत्पत्ति :-
गो+अंड
गो=गोंगो ,अंड=गर्भाश्य से जिसका भी जन्म हुआ़ वह गोंड है

भील— भील शब्द की उत्पत्ति "विल" या "बिल्लू" शब्द से हुई है, जिसका द्रविड़ भाषा में अर्थ "धनुष" होता है.भील का अर्थ है कमान। ये धनुष रखते हैं इसलिए भील कहलाते हैं।
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हमारे रीति-रिवाज केवल रस्में नहीं... यह पुरखों की वो विरासत है, जिससे हम आज भी जुड़े हैं।🌿 धरती से जुड़ी परंपरा, जंगल से...
21/07/2025

हमारे रीति-रिवाज केवल रस्में नहीं... यह पुरखों की वो विरासत है, जिससे हम आज भी जुड़े हैं।
🌿 धरती से जुड़ी परंपरा, जंगल से निकला ज्ञान, और पुरखों की सादगी ही हमारी असली पहचान है।

🙏 जय जोहार! 🙏जय आदिवासी संस्कृति!🌾
#विश्वआदिवासीदिवस #जयजोहार #आदिवासी_संस्कृति

यह जंगल में पैदा होने वाली सब्जी है लेकिन अभी इसकी बड़े लेवल पर खेती भी होने लग गई जिसमें अनावश्यक केमिकल डाल करके प्राक...
21/07/2025

यह जंगल में पैदा होने वाली सब्जी है लेकिन अभी इसकी बड़े लेवल पर खेती भी होने लग गई जिसमें अनावश्यक केमिकल डाल करके प्राकृतिक सब्जी बताने का करेज चालू हो गया है अगर वास्तव में इसका प्राकृतिक रूप से लाभ लेना होता है तो जंगल से ही तोड़कर लाने पड़ते हैं या फिर घर पर भी लगाया जा सकता है
DrBrajesh Maravi Koytur Gondwana Mandla

"जिसे शहर वाले झाड़-झंखाड़ कहते हैं,उसी जंगल से निकलता है हमारा जीवन का स्वाद।ये करैल नहीं, हमारी माँ की सीख है —'जंगल प...
19/07/2025

"जिसे शहर वाले झाड़-झंखाड़ कहते हैं,
उसी जंगल से निकलता है हमारा जीवन का स्वाद।

ये करैल नहीं, हमारी माँ की सीख है —
'जंगल पर भरोसा रखो बेटा, पेट भी भरेगा और संस्कृति भी बचेगी।'

हम बाजार से नहीं, जंगल से जीते हैं।
हम पैसों से नहीं, प्रकृति से अमीर हैं।

बांस की कोपल — कोमल, लेकिन मजबूत।
जैसे हम आदिवासी — शांत, लेकिन अडिग।

जब-जब कोई हमें पिछड़ा कहता है,
हम मुस्कुराते हैं और कहते हैं —

हम जंगल के बच्चे हैं, सभ्यता से पहले के इंसान हैं।

जोहार 🙏 Koytur Gondwana Mandla

Koytur Gondwana Mandla
19/07/2025

Koytur Gondwana Mandla

 #अमरबेल अमर बेल एक पराश्रयी (दूसरों पर निर्भर) लता है, जो प्रकृति का चमत्कार ही कहा जा सकता है। बिना जड़ की यह बेल जिस ...
19/07/2025

#अमरबेल अमर बेल एक पराश्रयी (दूसरों पर निर्भर) लता है, जो प्रकृति का चमत्कार ही कहा जा सकता है। बिना जड़ की यह बेल जिस वृक्ष पर फैलती है, अपना आहार उससे रस चूसने वाले सूत्र के माध्यम से प्राप्त कर लेती है। अमर बेल का रंग पीला और पत्ते बहुत ही बारीक तथा नहीं के बराबर होते हैं। अमर बेल पर सर्द ऋतु में कर्णफूल की तरह गुच्छों में सफेद फूल लगते हैं। बीज राई के समान हल्के पीले रंग के होते हैं। अमर बेल बसन्त ऋतु (जनवरी-फरवरी) और ग्रीष्म ऋतु (मई-जून) में बहुत बढ़ती है और शीतकाल में सूख जाती है। जिस पेड़ का यह सहारा लेती है, उसे सुखाने में कोई कसर बाकी नहीं रखती है।

#रंग : अमर बेल का रंग पीला होता है।

#स्वाद : इसका स्वाद चरपरा और कषैला होता है।

#स्वभाव : अमर बेल गर्म एवं रूखी प्रकृति की है। इस लता के सभी भागों का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है।
मात्रा (खुराक) : अमर बेल को लभगभ 20 ग्राम की मात्रा में प्रयोग कर सकते हैं।

#गुण : आकाश बेल ग्राही, कड़वी, आंखों के रोगों को नाश करने वाली, आंखों की जलन को दूर करने वाली तथा पित्त कफ और आमवात को नाश करने वाली है। यह वीर्य को बढ़ाने वाली रसायन और बलकारक है।

#अमरबेल_के_औषधीय_प्रयोग :-

१ #रक्तविकार(blood disorder) : 4 ग्राम ताजी बेल का काढ़ा बनाकर पीने से पित्त शमन और रक्त शुद्ध होता है।

२ #शिशु_रोग :
• अमर बेल को शुभमुहूर्त में लाकर सूती धागों में बांधकर बच्चों के कंठ (गले) व भुजा (बाजू) में बांधने से कई बाल रोग दूर होते हैं।
• इस बेल को तीसरे या चौथे दिन आने वाले बुखारों में बुखार आने से पहले गले में बांधने से बुखार नहीं चढ़ता है।

३ #बालों_का_बढ़ना : 250 ग्राम अमरबेल की बूटी (लता, बेल) लेकर 3 लीटर पानी में उबाल लें। जब पानी आधा रह जाये तो इसे उतार लें। सुबह इससे बालों को धोयें इससे बाल लंबे हो जाते हैं।

४ #बालों_का_झड़ना : अमरबेल के रस को रोजाना सिर में मालिश करने से बाल उग आते हैं।

५ #बांझपन (गर्भाशय का न ठहरना) : अमरबेल या आकाशबेल (जो बेर के समान वृक्षों पर पीले धागे के समान फैले होते हैं) को छाया में सुखाकर रख लेते हैं। इसे चूर्ण बनाकर मासिक धर्म के चौथे दिन से पवित्र होकर प्रतिदिन स्नान के बाद 3 ग्राम चूर्ण 3 मिलीलीटर जल के साथ सेवन करना चाहिए। इसे नियमित रूप से 9 दिनों सेवन करना चाहिए। इससे सम्भवत: प्रथम संभोग में ही गर्भाधान हो जाएगा। यदि ऐसा न हो सके तो योग पर अविश्वास न करके इसका प्रयोग पुन: करें, इसे कहीं घाछखेल नाम से भी जाना जाता है।

६ #जुएं_का_पड़ना : हरे अमरबेल को पीसकर पानी के साथ मिला लें और बालों को धोएं। इससे जुएं मर जायेंगे। इसे पीसकर तेल में मिलाकर लगायें, इससे बालों के उगने में लाभ होगा।

७ #बालरोग_हितकर : अमरबेल का टुकड़ा बच्चों के गले, हाथ या बालों में बांधने से बच्चों के सभी रोग समाप्त हो जाते हैं।

८ #घाव :
• अमरबेल के काढ़े से घाव या खुजली को धोने से बहुत फायदा होता है।
• अमरबेल पीले धागे की तरह से भिन्न व हरे रंग की भी पायी जाती है जिसे पीसकर मक्खन तथा सोंठ के साथ मिलाकर लगाने से चोट का घाव जल्दी ही ठीक हो जाता है।
• अमर बेल के 2-4 ग्राम चूर्ण को या ताजी बेल को पीसकर सोंठ और घी में मिलाकर लेप करने से पुराना घाव भर जाता है।
• अमर बेल का चूर्ण, सोंठ का चूर्ण समान मात्रा में मिलाकर आधी मात्रा में घी मिलाएं और तैयार लेप को घाव पर लगाएं।

९ #पित्त_बढ़ने_पर : आकाशबेल का रस आधा से 1 चम्मच सुबह-शाम खाने से यकृत (लीवर) के सारे दोष और कब्ज़ दूर हो जाते हैं, इसके साथ पित्त की वृद्धि को भी रोकता है जिससे जलन खत्म हो जाती है।

१० #पेट_का_बढ़ा_हुआ_होना (आमाशय का फैलना) : हरे रंग की अमरबेल को पीसकर काढ़ा बनाकर 20 से लेकर 40 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह और शाम सेवन करने से यकृत या प्लीहा (तिल्ली) की वृद्धि के कारण पेट में आए फैलाव को निंयत्रित करता हैं। ध्यान रहे कि पीले रंग वाली अमरबेल का प्रयोग न करें।

११ #सौंदर्य_प्रसाधन : अमरबेल (पौधे पर फैले पीले धागे जैसी परजीवी) की तरह की अमरबेल की एक और जाति होती है जोकि अपेक्षाकृत पीले से ज्यादा हरा होता है। इस हरे अमरबेल को पीसकर पानी में मिलाकर बाल धोने से सिर की जुएं समाप्त हो जाती है। इसे तेल में मिलाकर लगाने से बाल भी जल्दी बढ़ जाते हैं।

१२ #बाल : बेल को तिल के तेल में पीसकर सिर में लगाने से सिर की गंज में लाभ होता है तथा बालों की जड़ें मजबूत होती हैं।
• लगभग 50 ग्राम अमरबेल को कूटकर 1 लीटर पानी में पकाकर बालों को धोने से बाल सुनहरे व चमकदार बनते है, बालों का झड़ना, रूसी में भी इससे लाभ होता है।

१३ #आंखों_में_सूजन (Swelling in eyes): बेल के लगभग 10 मिलीलीटर रस में शक्कर मिलाकर आंखों में लेप करने से नेत्राभिश्यंद (मोतियाबिंद), आंखों की सूजन में लाभ होता है।

१४ #मस्तिष्क (दिमाग) विकार : इसके 10-20 मिलीलीटर स्वरस को प्राय: पानी के साथ सेवन करने से मस्तिष्क के विकार दूर होते हैं।

१५ #पेट_के_विकार :
• अमरबेल को उबालकर पेट पर बांधने से डकारें आदि दूर हो जाती हैं।
• आकाश बेल का रस 500 मिलीलीटर या चूर्ण 1 ग्राम को मिश्री 1 किलोग्राम में मिलाकर धीमी आंच पर गर्म करके शर्बत तैयार कर लें। इसे सुबह-शाम करीब 2 ग्राम की मात्रा में उतना ही पानी मिलाकर सेवन करने से शीघ्र ही वातगुल्म (वायु का गोला) और उदरशूल (पेट के दर्द) का नाश होता है।

१६ #यकृत: बेल का काढ़ा 40-60 मिलीलीटर पिलाने से तथा पीसकर पेट पर लेप करने से यकृत वृद्धि में लाभ होता है।
• बेल का हिम या रस लगभग 5-10 मिलीलीटर सेवन करने से बुखार तथा यकृत वृद्धि के कारण हुई कब्ज मिटती है।
• 10 मिलीलीटर अमरबेल (पीले धागे वाली) का रस सुबह-शाम सेवन करने से यकृत सही हो जाता है। इससे यकृत दोष से उत्पन्न रोग भी दूर हो जाते हैं।

१७ #सूतिका_रोग : अमर बेल का काढ़ा 40-60 मिलीलीटर की मात्रा में पिलाने से प्रसूता की आंवल शीघ्र ही निकल जाती है।

१८ #अर्श (बवासीर) में : अमरबेल के 10 मिलीलीटर रस में पांच ग्राम कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर खूब घोंटकर रोज सुबह ही पिला दें। 3 दिन में ही खूनी और वादी दोनों प्रकार की बवासीर में विशेष लाभ होता है। दस्त साफ होता है तथा अन्य अंगों की सूजन भी उतर जाती है।

१९ #उपदंश (सिफिलिस) : अमरबेल का रस उपदंश के लिए अधिक गुणकारी हैं।

२० #जोड़ों_के (गठिया) दर्द :
• अमर बेल का बफारा देने से गठिया वात की पीड़ा और सूजन शीघ्र ही दूर हो जाती है। बफारा देने के पश्चात इसे पानी से स्नान कर लें तथा मोटे कपड़े से शरीर को खूब पोंछ लें, तथा घी का अधिक सेवन करें।
• अमर बेल का बफारा (भाप) देने से अंडकोष की सूजन उतरती है।

२१ #बलवर्धक (ताकत को बढ़ाने हेतु) : 11.5 ग्राम ताजी अमर बेल को कुचलकर स्वच्छ महीन कपड़े में पोटली बांधकर, 500 मिलीलीटर गाय के दूध में डालकर या लटकाकर धीमी आंच पर पकाये। जब एक चौथाई दूध शेष बचे तो इसे ठंडाकर मिश्री मिलाकर सेवन करें। इससे कमजोरी दूर होती है। इस प्रयोग के समय ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।

२२ #खुजली (itching): अमर बेल को पीसकर बनाए गए लेप को शरीर के खुजली वाले अंगों पर लगाने से आराम मिलता है।

२३ #पेट_के_कीड़े(Stomach bug) : अमर बेल और मुनक्कों को समान मात्रा में लेकर पानी में उबालकर काढ़ा तैयार कर लें। इस काढ़े को छानकर 3 चम्मच रोजाना सोते समय देने से पेट के कीडे़ नष्ट हो जाते हैं।

२४ #गंजापन (बालों का असमय झड़ जाना)(Baldness) : बालों के झड़ने से उत्पन्न गंजेपन को दूर करने के लिए गंजे हुए स्थान पर अमर बेल को पानी में घिसकर तैयार किया लेप धैर्य के साथ नियमित रूप से दिन में दो बार चार या पांच हफ्ते लगाएं, इससे अवश्य लाभ मिलता है।

२५ #छोटे_कद_के_बच्चों_की_वृद्धि_हेतु : जो बच्चे नाटे कद के रह गए हो, उन्हें आम के वृक्ष पर चिपकी हुई अमर बेल निकालकर सुखाएं और उसका चूर्ण बनाकर 1-1 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम पानी के साथ कुछ माह तक नियमित रूप से खिलाएं।

२६ #पेट_के_रोग (Stomach diseases) : अमर बेल के बीजों को पानी में पीसकर बनाए गए लेप को पेट पर लगाकर कपड़े से बांधने से गैस की तकलीफ, डकारें आना, अपान वायु (गैस) न निकलना, पेट दर्द एवं मरोड़ जैसे कष्ट दूर हो जाते हैं।

२७ > सुजाक व उपदंश में : अमर बेल का रस दो चम्मच की मात्रा में दिन में तीन बार सेवन करने से कुछ ही हफ्तों में इस रोग में पूर्ण आराम मिलता है।

२८ > यकृत रोगों में (Liver diseases): यकृत (जिगर) की कठोरता, उसका आकार बढ़ जाना जैसी तकलीफों में अमर बेल का काढ़ा तीन चम्मच की मात्रा में दिन में, 3 बार कुछ हफ्ते तक पीना चाहिए।

२९ > रक्तविकार(blood disorder) : अमर बेल का काढ़ा शहद के साथ बराबर की मात्रा में मिलाकर दो चम्मच की मात्रा में दिन में तीन बार सेवन करें।

३० > नजर तेज : नजर कमजोर होने पर, आंखों पर सूजन होने पर, अमर बेल का लेप आंखें की पलकों और माथे पर मालिश करने धीरे धीरे फायदा होता है। नजर तेज करने में अमर बेल सहायक है।

1.

सावधानियां:

अमरबेल का उपयोग किसी विशेषज्ञ की सलाह के बिना न करें, क्योंकि इसकी अधिक मात्रा हानिकारक हो सकती है।

https://youtu.be/7oYDYn8iBSQAlso share our community  like comment follow subscribe  youtube  channel ▶️
14/07/2025

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हूल क्रांति आदिवासी अधिकार और अस्मिता के संरक्षण  की लड़ाई थी  1855 के दशक में शक्तिशाली और कठोर अंग्रेज शासक के विरुद्ध...
13/07/2025

हूल क्रांति आदिवासी अधिकार और अस्मिता के संरक्षण की लड़ाई थी

1855 के दशक में शक्तिशाली और कठोर अंग्रेज शासक के विरुद्ध , संथाल जनजाति के सिद्धो - कान्हू , चांद, भैरव और उनकी बहनों फूलो और झानो ने अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में “अबूआ दिशूम अबूआ राजा "(हमारा - देश हमारा शासन) घोषणा कर , हूल क्रांति का बिगुल फूंका था ।

30 जून 1855 को झारखंड के साहिबगंज जिले का भोगनाडीह गांव से शुरू हुई इस संग्राम में हज़ारों की संख्या में वीर आदिवासी शहीद हुए थे ।

आज देश आज़ाद है , किंतु आज भी अशिक्षा , गरीबी , ग़लत जानकारी, प्रलोभन ,छल कपट, इत्यादि , जैसे शत्रु आदिवासी समाज के अधिकार और अस्मिता को कमजोर कर रहे हैं

हुल संथाली भाषा है जिसका अर्थ है “क्रांति” । आज भी समाज को शिक्षा क्रांति और पारंपरिक क्रांति की आवश्यकता है !

(Pic : सिद्धो - कान्हू )

इस सन्दर्भ मे आप सभी का क्या कहना है..….Koytur Gondwana Mandla by...... ....
09/04/2025

इस सन्दर्भ मे आप सभी का क्या कहना है..….
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